दिल्ली का तीसरा दिन अपने साथ आये मित्रवर गुप्ता जी के एक 'देखुआरी'* अभियान में बीत गया .रजनीश जी को फोनियाया तो वे कहीं किसी साहित्य अकादमी का संदर्भ देने लगे ..बाद में पता लगा कि वे किसी सीक्रेट मिशन पर थे....बनारस से फोन पर फोन आ रहे थे वहां शीघ्र पहुँचने को ....मेरी वापसी यात्रा तो ९ के शाम को शिवगंगा एक्सप्रेस से नियत थी मगर अब तुरंत निकलना जरुरी हो गया था और उधर विज्ञान संचार की कांफ्रेंस भी अपने शबाब पर थी ....बनारस के लिए इन्डियन एरलाईन्स की साढ़े दस बजे जाने वाली उडान से निकलने की संभावना क्षीण थी ...शाम स्पाईस जेट की टिकट ही नहीं मिल पाई ....न तो कांफ्रेंस में जा पाए और न ही बनारस को निकल सके ....अब बचे थोड़े समय में निर्णय लिया गया कि एक शादी के बाबत गुप्ता जी के अनुरोध को पूरा कर लिया जाय ..लड़के की देखुआरी कर ली जाय .
लड़का पीतमपुरा में किसी प्राईवेट कम्पनी में कार्यरत था ...अब गुप्ता जी पूरी जासूसी पर उतारू थे...लड़का आफिस से कुछ देर के लिए निकला था ..इसी बीच उसके कार्यालय भवन के पांचवें तल पर मुझे भी खींच खांच कर वे ले जा पहुचे और जिस तरीके से लड़के से जुडी बातें पता करने लगे मुझे असहज लगने लगा ..यह शिष्टाचार के विपरीत सा लगा और मैंने उन्हें हठात रोकते हुए कहा कि लड़के को आने दीजिये उसी से सब बातें पूछ लेगें ...इतने में 'लड़के' महोदय आ ही गए ओर हमें बड़े आदर भाव से आफिस में बैठाये और कॉफ़ी मंगा ली ..मुझे लगा कि थोड़ी देर तक उनके बॉस ओर सहकर्मियों ने मौके की नजाकत समझते हुए उन्हें ही कार्यालय के बॉस की पदवी दे दी थी -मतलब उनके आफिस में गजब की आपसी समझ थी ....गुप्त जी संतुष्ट हो चले थे..लड़का दिल्ली के अस्पतालों से प्लेसेंटा -गर्भनाल खरीद कर अमेरिका की स्टेम सेल कम्पनियों को भेजने के काम में लगी फर्म में कार्यरत था ...अब मैं तो एक शौकिया विज्ञान संचारक हूँ ही ..लगा स्टेम सेल का कथा पुराण बांचने -लड़के के मुंह पर अपने देखुआरो के प्रति प्रशंसा भाव देख गुप्त जी आह्लादित हुए ...और लिफ्ट से उतरते ही मेरे प्रति तगड़ी कृतज्ञता व्यक्त की ..देखुआर और भावी वर दोनों इम्तहान में पास हो चुके थे..
अब थोड़े से बचे समय में हम चले प्रियेषा कौमुदी ,बेटी से मिलने जो दिल्ली विश्वविद्यालय नार्थ कैम्पस के करीब ही हडसन लेन में रहती हैं और अभी अभी जैसलमेर टूर से लौट कर वहां की मिठाईयां हम सभी को खिलाने को उत्सुक थीं ...पीतमपुर से यह जगह ज्यादा दूर नहीं है और हम पूरे दिन की टैक्सी कर ही चुके थे....प्रियेषा से मिलने के उपरान्त वापस पुराने राजेंद्रनगर के होटल पहुंचे और फिर सज धज कर आज के कांफ्रेंस बैंक्विट के लिए जा पहुंचे -आज का भी रात्रि भोज स्वागत भोज की तरह भव्य और लाजवाब था ...उसका वर्णन पहले की पुनरावृत्ति ही होगी ...आज का रात्रि भोज मुख्य आयोजक संस्थान के मुखिया द्वारा दिया गया था ....और भोज के दौरान ही उनका एक संबोधन ध्वनि विस्तारक से भी हमें सुनायी दिया जिसे सुन कर मुझे रामायण के राजा भानुप्रताप के भोज के समय की गयी आकाशवाणी याद आ गयी -ब्राह्मणों ,इस भोज को मत खाओ इसमें नर मांस मिला हुआ है ,सब अपने अपने घर जाईये ...(विप्र ब्रिंद उठि उठि घर जाहू ..) यह पुराणोक्त पूरा दृश्य ही लगा साकार हो उठा है ..होठों पर बरबस ही मुस्कान खिंच आई ...
दिल्ली एअरपोर्ट टर्मिनल तीन का एक कोना
अगले दिन सुबह ही जल्दी जल्दी तैयारी,प्लेन न छूट जाय यह अतिरिक्त सावधानी बरत कर सवा आठ बजे ही इंदिरा गांधी अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर जा पहुंचा ..फिर उसी टर्मिनल तीन के इन्द्रपुरी सरीखे दृश्यों का नजारा किया -जगमग जगमग करते किताबों के स्टैंड ,फ़ूड मार्ट ,ध्यान केंद्र आदि जगहों पर इधर उधर निरुद्येश्य घूमता रहा ,ट्रैवेलेटर पर आता जाता रहा ...एक जगह सामने बनते हुए डोसा देखा तो खाने का मन हो आया तो ९० रुपये(हे राम ) का डोसा खरीदा ,खाया ..तभी याद आया रुमाल जेब में नहीं है और सारा सामान तो लगेज में बुक हो गया है ...वहां के चमकते दमकते उपभोक्ता स्टोरों पर एकल रुमाल खोजने लगा मगर एक साथ ४ या पांच के सेट चार सौ से छः सौ की रेंजमें उपलब्ध मिले ..अकेला रुमाल कहीं मिल ही नहीं रहा था ..भला मार्केटिंग का यह कौन सा फंडा है समझ नहीं पाया ... एक दूसरे ऊँची दूकान और फीके पकवान वाले ने कहा कि हाँ अकेला रुमाल तो है मगर लायिनेन/लिनेन (LINEN ) का ... मैंने तपाक से कहा दे दे भाई ..लो काम बन गया ..मगर दाम सुना तो लगा दिल ने सहसा धडकना ही बंद कर दिया हो -एक अदद रुमाल के लिए सिर्फ १४०० रूपये की दरकार थी ...मैंने तेजी से उसे वापस फेंका और सारी ,इट्स टू कास्टली कहकर वहां से फूट लिया ..प्लेन का समय भी हो चला था ...हल्दीराम के शो रूम जहाँ करीब सौ खाद्य आईटमों की रेंज थी और सभी आईटम बाजार भाव पर ही उपलब्ध थे ,थोड़ी खरीददारी की .....और चल पड़ा गेट नंबर २८ बी की ओर जो हमें विमान तक ले जाने वाला था .....वहां पहुँचने पर पता लगा कि प्रस्थान गेट में परिवर्तन हो गया है और अब विमान के लिए २९ अ से प्रस्थान करना है ..जो सौभाग्य से बगल में ही था ...
लिनेन की चौदह सौ रूपये की हूबहू ऐसी ही रुमाल जो मैं ले न सका:जिनके तेल के कुए होंगे वे ही ले पाते होंगें
विमान ने देर से उडान भरी मगर बनारस की औसतन एक घंटे की यात्रा को पचास मिनट में पूरा किया गया ..यात्रा के दौरान एक मजेदार क्षण तब आया जब परिचारिका को मैंने ये बताया कि नाश्ते की आलू की टिक्की की प्रेपरेशन ठीक नहीं है जबकि मैं लगभग पूरा नाश्ता -केक ,स्प्रिंगरोल,एक पैटीज उदरस्थ भी कर चुका था ....परिचारिका ने कहा सर मैं अभी आती हूँ और अगले ही पल लाकर नाश्ते का दूसरा बड़ा पैकेट पकड़ा दिया ..मैं कहता ही रह गया कि नो नो आई डिड नाट मीन दैट..इस बार का नाश्ता पहले से कई गुना ज्यादा अच्छा था ,बिल्कुल गौरमेट च्वायस -या तो यह एक्जीक्यूटिव क्लास वालों के लिए था .आई मीन कैटल क्लास वालों से अलग विशिष्ट यात्रियों के लिए या फिर क्रूज/विमान स्टाफ के लिए था ...मैं भी स्नैक्स का स्वाद लेते वक्त अपने को उसी क्लास का मानने के मुंगेरीलाल के सपने में खो सा गया ..तभी बनारस लैंड करने का ऐनाउन्स्मेंट हो गया ..झटपट नाश्ता खत्म किया ......
अगले बीस मिनट बाद मैं बाबतपुर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के आगमन गेट से बाहर निकल रहा था ...
इति श्री दिल्ली संस्मरण कथा -सीजन दो
सीजन प्रथम
*देखुआरी -भावी वर को देखकर विवाह के लिए चयन की प्रक्रिया पूर्वांचल में देखुआरी कही जाती है!
मैं तो पोस्ट में फायदेमंद चीजें ही ढ़ूंढता हूँ। तीन चीजें मिलीं....
जवाब देंहटाएं1-शादी के लिए लड़का ढूंढने में आपकी मदद लेनी चाहिए।
2-इंद्रपुरी में रूमाल भी नहीं खरीदना चाहिए।
3-हवाई यात्रा के दौरान खा-पी कर खाने की आलोचना करनी चाहिए, ताकि दुबारा मिल जाय।
१४०० का रुमाल ...ले भी लिया तो उससे हाथ पोछने का मन तो करेगा नहीं, फ्रेम में लगा कर सजाना पड़ेगा.
जवाब देंहटाएंमेरे ख्याल से आपको पेपर नैपकिन पूछना चाहिये था. T3 के ग्राउंड फ़्लोर पर एक अकेली परचून जैसी दुकान है जिसमें सिगरेट, पानी, बिस्कुट, चाकेट बगैहर मिलता है यहां पेपर नैपकिन भी मिलना ही चाहिये. ये दुकान एंट्री गेट व daredevils के बीच, daredevils वाली साइड ही है... बल्कि यूं कहें कि यही एक दुकान है जो फुटकर चीज़े बेचती है बाकियों का तो बस थोक का ही काम समझिये :)
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र पाण्डेय + नोटेड कि आप तुरंत दुबारा भी खा सकते हैं। :)
जवाब देंहटाएंव्हाट अ फूल आई एम काजल जी ,सच्ची पेपर नैपकिन से काम चल जाता -उसका कोई भी दाम अफोर्डेबल भी होता !
जवाब देंहटाएंनेक्स्ट टाईम !
1400 रूपये में तो थान आ जाय, ससुरा रूमाल का चीज है।
जवाब देंहटाएंलेकिन फिर थान से हाथ मुंह भी तो नहीं पोंछा जाता :)
मस्त संस्मरण है।
ये अचानक सीबीआई टाइप देखुआरी विजिट करने वालों से बड़ी भारी चिढ है मुझे. एक बार फंस चुका हूँ चक्कर में. एक जनाब पता नहीं कहाँ-कहाँ से पता करके तीन लोगों के साथ मेरे हॉस्टल में आ गए थे.. मैं टी-शर्ट पायजामा में नींद मार रहा था.
जवाब देंहटाएंमुझे इतना गुस्सा आया सुनके.. बोला किसने बोल दिया आपको कि मुझे शादी करनी है अभी.. मैं जा रहा हूँ अभी, क्लास है.. पर कमीने दोस्त हालात भांप कर चिप्स, कोल्ड ड्रिंक वगैरह ले आये.. सालों को मजा जो लेना था..
देखुआर तो चले गए.. पर उसके बाद जो झेलना पढ़ा मुझे.. मत पूछिए...
बाकी, यात्रा का संस्मरण मजेदार रहा.. आगे से रूमाल वगैर लेके जाइयेगा..
@गिरिजेश जी,
जवाब देंहटाएंखाया तो बस पेट भर, सोया अपनी नींद
मन लोभी पागल फिरा,नई नहीं यह दीद।
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जवाब देंहटाएंऊंची दुकान ओर फ़ीका पकवान सही कहा जी, अंदर कहने को ही टेक्स फ़्रि हे सब चीजे बहुत मंहगी हे , इस लिये उन दुकानो पर भीड भी कम होती हे, ओर इन दुकानो का किराया भी बहुत ज्यादा.... १४०० का रुमाल मै तो १४० का भी ना लूं, हां टाय्लेट मै जा कर कई बार नेपकिन मिल जाता हे:) जो रुमाल का काम चला लेता हे, ओर फ़िर जहाज मै भी नेपकिन जिन्दा वाद, किसी को बताना नही.... वरना लोग हमे कंजुस कहेगे, चलिये डबल खाना भी का लिया अब राम राम
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी वाली तीन सीखें हमने भी नोट कीं :-). आप भी गजबैं हैं...हम मिलने में टाल-मटोल इसलिए कर रहे थे कि आपका कांफ्रेंस बहुत दूर था और आप प्रियेषा से मिलने नॉर्थ कैम्पस आये और हमें बताया तक नहीं. वहाँ से सिर्फ़ पन्द्रह मिनट की दूरी पर हम रहते हैं.
जवाब देंहटाएं१४०० की रुमाल से अच्छा है शर्ट में ही हाथ पोंछ लें, अगर धुलने से साफ़ ना हुई तो १४०० की नयी शर्ट ले आयें :)
जवाब देंहटाएंगिरिजेश राव और अभिषेक ने काम की बातें बताई है ....
जवाब देंहटाएंभाई मिश्रा जी पांडे जी की मेहरबानी से ये तेल का कुआ याद आ ही जाता है| जन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ |
जवाब देंहटाएंआज देवेन्द्र भाई + काजल भाई + गिरिजेश राव साहब + मुक्ति जी के साथ :)
जवाब देंहटाएंवैसे सतीश पंचम के आइडिये से एक बात सूझी , आप एक थान खरीद के , सहयात्रियों को रुमाल बाँट सकते थे :)
... atisundar ... lagtaa hai "tel ke kuye" par kuchh likhanaa hi padegaa !!!
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी , आखिर में दिया क्लू बड़े काम का है । हम भी याद रखेंगे । आभार ।
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की हार्दिक बधाई अवम शुभकामनायें ।
Bahut sundar saarthak prasuti
जवाब देंहटाएंJanamdin kee bahut bahut haardik shubhkamnayne
`एक अदद रुमाल के लिए सिर्फ १४०० रूपये की दरकार थी
जवाब देंहटाएंअब जान गए ना मिश्रजी तडकभडक के दाम :) चलिए जन्मदिन पर कोई भी तोहफ़ा महंगा नहीं होता... तो यह रहा हमारी ओर से :) :)
अथ श्री दिल्ली कथा सम्पूर्ण हुई .अफ़सोस रहा न मिल पाने का ...खैर १४०० के रुमाल ..सोच के ही पसीने आने बंद हो जाए और हाथ साफ़ रहने लगेगे :)
जवाब देंहटाएंहाय हाय हमारी दिल्ली में रुमाल ही चौदह सौ का है मुआं ..इधर हम प्याज के अस्सी रुपए किलो हो जाने पर ही हलकान हुए जा रहे हैं ..गज्जब तरक्की है यार ....
जवाब देंहटाएंअपनी दिल्ली यात्रा की बहुत सी रोचक बातें बताईं आपने...शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंजन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंओह!काम की बात, देर में पढ़ा।
रिपोर्ताज आपकी सक्रियता को रोचक कर रहा है और घर बैठे हम सब यात्रा का आनन्द ले रहे हैँ . अरविन्द जी ।
जवाब देंहटाएंआपकी यात्राएँ वाकई घटना प्रधान होती हैं। मजा आ गया पढ़कर। अभिषेक ओझा जी की आइडिया बहुत अच्छी है।
जवाब देंहटाएंअली जी से सहमत ...
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की बहुत बधाई व शुभकामनायें ...वैसे था कब ??
जन्मदिन पर ईश्वर बुरी नज़र से बचाए :-) यही कामना है ..
जवाब देंहटाएंरूमालों की यह दुर्गत देखकर, हमने रूमाल रखना बन्द कर दिया। एक रूमाल के लिये तेल का कुआँ कौन माँगे भगवान से।
जवाब देंहटाएंअपनी लड़की देने के पहले जाँच पड़ताल कर लेनी चाहिये। हमारे ससुराल वालों ने नहीं की, फिर भी मजे में हैं।
टर्मिनल 3 की भव्यता देख हम भी मुग्ध हो गये। कलमाड़ी जी का कोई योगदान नहीं है इसमें?
एक यात्रा जो अनेक लोगों के लिये साधारण यात्रा मात्र होती उसे आपकी सारस्वत प्रतिभा एवम् सशक्त लेखनी ने मनोरंजक, ज्ञानवर्द्धक एवम् आनन्ददायक बना दिया। सच में रचनात्मक प्रतिभा किसी-किसी में होती है, भावनाओं का उद्रेक एवं एक सृजनात्मक दृष्टि भी दुरभ ही होती है..........पर आपकी प्रस्तुति एवं समग्र लेखन संसार (जो ब्लॉग पर उपलब्ध है) को देखकर एवम् पढ़कर यही लगा कि दुर्लभ, सुलभ में बदल गया।
जवाब देंहटाएंहर युग में अच्छी रचनाओं का स्वागत होता है..........आजकल तो अच्छी रचानाओं का अकाल सा है.....खासकर पत्रिकाओं में। हाँ ब्लॉग इस कमीं को कुछ हद तक पूरा करता है। पत्रिकाओं में रचानाओं का प्रकाशन तो क्रेताओं एवं बाज़ार को देखकर होता है। राजेन्द्र यादव सम्पादित हंस इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
आपको जन्मदिन कीबहुत-बहुत शुभकामनायें। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंएक स्वस्थ
सुखी
शान्तिपूर्ण
एवं समृद्ध जीवन के लिये।
और सतत् प्रभावशाली, विचारपूर्ण लेखन, सृजन के लिये।
जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंसुख
शान्ति एवं समृद्धि की त्रिवेणी आपके जीवन में सदा प्रवाहित रहे। माँ सरस्वती एवं पूज्य गणेश की कृपा आप पर बनी रहे। इसी तरह आपकी लेखनी पाठकों, रसिकों, सहृदयों का हृदयानुरञ्जन, ज्ञानवर्द्धन एवं मनः प्रसादन करते हुए भारतीय साहित्य संसार को समृद्ध करती रहे्।।
यही प्रभु से कामना है
आपको जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाये..माफ कीजियेगा आने में थोड़ी देर हो गई .
जवाब देंहटाएंतो यहाँ भी जन्मदिन शुभकामना की स्नेह वर्षा हो गयी -हम मनुष्य है यह विश्वास बार बार पुख्ता होता रहता है .....
जवाब देंहटाएंसभी स्नेहीजनों ,मित्रों का बहुत बहुत आभार जिन्होंने दिया (जन्मदिन शुभकामना ) उनका भला और जिन्होंने नहीं दिया उनका भी भला )
टर्मिनल ३ की तो पर्यावरणविद आलोचना भी कर रहे हैं. वैसे भी यह विकसित भारत के प्रतीक के रूप में निर्मित ज्यादा महसूस होता है; साथ ही फ्लाईट में बैठ जाने तक उसके छुटने का डर भी सताता रहता है.
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