इस समय हिन्दी ब्लागजगत मजहबी द्वन्द्वों से आंदोलित सा है -मजहब को लेकर सबकी अपनी अपनी प्रतिबद्धताएं हैं और लोग अपने स्टैंड से एक इंच भी आगे पीछे होने को तैयार नहीं हैं .आश्चर्य तो यह है कि अब हिन्दू भी कई बातों को लेकर अकड़ने लगे हैं -यह उनका प्रतिक्रया वादी स्टैंड है !
कुछ बातें सूत्र रूप में ही कहना है -लेकिन सबसे पहले माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्बारा "हिन्दू धर्म "पर कुछ वर्ष पहले व्यक्त एक अभिमत कि "दरअसल हिन्दू धर्म एक जीवन दर्शन है -"धर्म की किसी सकीर्ण परिभाषा में इसे बाँधना मुश्किल है .आख़िर धर्म क्या है ?
जो धारण किया जाय या धारण करने योग्य हो वही धर्म है .एक उदाहरण से इसे समझें तो बात बहुत आसान हो जायेगी .रेडिंयम् एक चमकने वाला पदार्थ है -पुरानी घडियों में इसी के हलके लेप से अंधेरे में अंकों को देखकर समय ज्ञात होता था .आज रेडियम परिवार के अनेक तत्व हैं और प्रकाश विकिरण के गुण को रेडियो एक्टिविटी के नाम से जाना जाता है -यह प्रकाश विकिरण ही इन तत्वों का गुण धर्म है -उनकी रेडियोधर्मिता है ।
विज्ञान का सेवक हूँ ना इसलिए यह उदाहरण विज्ञान की दुनिया से !आख़िर मनुष्य का धर्म क्या है ! या क्या होना चाहिए ? इस पर मजहबों की पोथियाँ हैं और हम सब मनुष्य को धारण करनेवाले कितने ही उदात्त बातों को एक साँस में कह सकते हैं -पर फिर यह खून खराबा क्यों ? यह मंदबुद्धियों की देन है -जो पोंगे और कठमुल्ले बने हुए है उन्होंने अपने धर्मग्रंथों विकृत कर डाला है ,वस्तुतः उन्हें अपवित्र कर डाला है ।
अब हिंदू धर्म को ही देखिये -इतनी उदार ,व्यापक सोच शायद ही कहीं है ! यहाँ कोई प्रतिबंध नही है -
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आप इश्वर को माने या ना माने आप हिन्दू है !
आप मन्दिरजाएँ या ना जाएँ आप हिन्दू हैं ।
आप मांस खाएं या ना खाएं आप हिन्दू है
आप शराब पियें ना पियें आप हिन्दू हैं
आप धूम्रपान करें या न करे आप हिन्दू हैं !
आप व्रत रखे या ना रखे आप हिन्दू है .
हिन्दू इतनी स्वतंत्रता को एन्जॉय करता है कि वह केवल देव दुर्लभ है !
हमारीबौद्धिक यात्रा ही "इदिमिथम कही सकई ना कोई " की रही है -चरैवेति चरैवेति की -यानी सत्य की खोजमें चलते रहो चलते रहो जिसे तुम अन्तिम सत्य मान बैठे हो वह सत्य का पासंग भी नही है -कितना वैज्ञानिक सम्मत चिंतन है यह -विज्ञान की दुनिया में फतवे नहीं होते -अंध श्रद्धा नही होती !
क्या ऐसे ही नहीं हो सकते दुनिया के सभी धर्म ?
मुझे बहुत संतोष है कि मैं हिदू हूँ क्योंकि अगर कुछ भी और होता मसलन एक मुसलमान तो मुझे इश्वर पर जबरिया विश्वास करना पङता !
क्यों सच कहा ना ?
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
सत्य वचन महाराज्।
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने .. दिल की बात है जो मानो वह सच ..प्रेम से रहना बोलना ही सबसे अच्छा धर्म है . इसी में ईश्वर का वास है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा अरविन्द जी !
जवाब देंहटाएंआप इश्वर को माने या ना माने आप हिन्दू है !
आप मन्दिरजाएँ या ना जाएँ आप हिन्दू हैं ।
आप मांस खाएं या ना खाएं आप हिन्दू है
आप शराब पियें ना पियें आप हिन्दू हैं
आप धूम्रपान करें या न करे आप हिन्दू हैं !
आप व्रत रखे या ना रखे आप हिन्दू है .
इतनी उदार ,व्यापक सोच शायद ही कहीं है !
जिसे तुम अन्तिम सत्य मान बैठे हो वह सत्य का पासंग भी नही है -कितना वैज्ञानिक सम्मत चिंतन है यह -विज्ञान की दुनिया में फतवे नहीं होते -अंध श्रद्धा नही होती !
मुझे बहुत गर्व है कि मैं हिदू हूँ....
मुझ अल्पबुद्धि की राय आपकी अन्तिम लाइन से मेल नहीं खाती की मई और कुछ होता तो जबरिया बिस्वास करता =एक कड़बी बात यदि आप अमेरिका में पैदा हुए होते तो भी क्या मेरा भारत महान बोलते =ईसाई घर में पैदा हुए होते तो क्या शिव जी को पूजते
जवाब देंहटाएंNice words.But...
जवाब देंहटाएंThere is no 'HINDU DHARM'. It's a socalled name. real name is .'SANATAN DHARM' = for ever, for all by all (including all living and non-living). Dharma is duty.
@
जवाब देंहटाएंअनामदास
जी बिल्कुल दुरुस्त !
bahut sunder sir
जवाब देंहटाएंkuch bhi ho
hindu hein
सत्य वचन मिश्राजी ! हम आपसे सहमत हैं ! प्रणाम !
जवाब देंहटाएंबाकी के विचार के बारे मे कोई टिप्पणी नही।
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है-
"जिसे तुम अन्तिम सत्य मान बैठे हो वह सत्य का पासंग भी नही है -कितना वैज्ञानिक सम्मत चिंतन है यह -विज्ञान की दुनिया में फतवे नहीं होते -अंध श्रद्धा नही होती !"
sahmat hu ji aapse..
जवाब देंहटाएंwaise aaj kal sanaatan dharm ke baare mein bhi log anonymously batane lage..
aise lekho ki avashyakta hai..
क्या बात है छोटी सी पोस्ट मैं सारगर्भित विचार .गर्व से कहो हम हिंदु हैं,
जवाब देंहटाएंजाहिर है आपकी सोच विज्ञान सम्मत है, पर मनुष्य ने रिलिजन का अविष्कार तर्क-वितर्क पूर्ण वार्तालाप के लिए किया ही नहीं है.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आप ने जवदस्ती से मनवाया ग्या कुछ भी अच्छा नही होता,
जवाब देंहटाएंमै आप की बात से सहमत हू
धन्यवाद
सही कहा आपने .. आभार.
जवाब देंहटाएंहिन्दू इतनी स्वतंत्रता को एन्जॉय करता है कि वह केवल देव दुर्लभ है !
जवाब देंहटाएं" wow, what a great thought, how simply and straightly you have described your thoughts in this artical. '
Regards
सच कहा है अरविन्द जी. मैं भी अपने को भाग्यशाली मानता हूँ कि विभिन्न विचारधाराओं को आदर देने वाली स्वतंत्र परम्परा में जन्म हुआ.
जवाब देंहटाएंअगर मुझे अपना धर्म पुन: चुनने चुनने की सुविधा मिले तो मैं जो चुनूंगा वह हिन्दू धर्म के करीब होगा। हिन्दू धर्म में टैबूज़ नहीं हैं और इसे आप अपनी समझ से परिभाषित कर सकते हैं!
जवाब देंहटाएंइस विचार पर उन सभी को ध्यान देने की जरुरत है जिनको लगता है की हिंदू धर्म खतरे में है
जवाब देंहटाएंहमने जितना भी धर्मग्रंथों का अध्ययन किया हमने पाया कि यह इंसान की व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं का कुल योग है
आप एक चीज बताना भूल गए शायद
किसी को हिंदू बनाने कोई तरीका नही है
लोग हिंदू ख़ुद ही बनते हैं
बस इस सोच को कट्टरवाद से बचाने की जरुरत है क्योंकि यहाँ कट्टरवाद के लिए कोई स्थान नही है
सचमुच विज्ञान को धर्म मानकर जीना शुरू कर दें, तो बहुत सारी दिक्कतें दूर हो जाएंगी।
जवाब देंहटाएंमेरी समझ से धर्म एक सामाजिक पहचान भर है। क्योंकि न तो इसके चुनाव की सुविधा हमें प्राप्त है और न ही इसके बारे में सवाल की ही। धर्म एक अंध विश्वास है। यह सिर्फ श्रद्धा की मांग करता है, अंध श्रद्धा की। और मेरी समझ से यह बात सभी धर्मों पर लागू होती है।
जवाब देंहटाएंवैसे मेरी जानकारी के मुताबिक दुनिया में जितने भी धर्म प्रचलित हैं, उनमें सबसे कम आडम्बर ईसाई धर्म में हैं। इस लिहाज से ईसाइयों में यह गर्व ज्यादा होना चाहिए।
आखिर में आपके द्वारा उठाए गये सवाल के बारे में- मेरी समझ से ईश्वर में विश्वास व्यक्ति की निजी सम्पदा है। उसे किसी पर थोपा नहीं जा सकता। जहाँ तक मुस्लिम धर्म की बात है, मैं स्वयं उसकी सारी बातों पर यकीन नहीं करता। बल्कि मैं तो यहां तक सोचता हूं कि ईश्वर मनुष्य की पैदाइश है। बावजूद इसके जब कभी कोई बुरा/कठिन समय आता है, तो मन में कहीं न कहीं उस अज्ञात सत्ता के प्रति एक निवेदन/प्रार्थना का नजरिया खुद ब खुद उत्पन्न हो जाता है। यही वह डर है, जिसने मनुष्य को ईश्वरत्व की ओर धकेला। मैं समझता हूं मेरी जैसी विचारधारा वाले मुस्लिम भी अच्छी खासी संख्या में हैं, भले ही वे इसे जाहिर करने में हिचकते हों।
ऐसे में मेरी समझ से आपका यह सवाल इस बात को रेखांकित करता है कि या तो आप इतने दिनों के सम्पर्क के बावजूद मुझे नहीं समझ पाए, या फिर आपके मन में भी कहीं न कहीं कोई पूर्वाग्रह अभी भी छुपा हुआ बैठा है, जिसे आप भी पहचान नहीं पा रहे हैं।
good comment zakir! deep idea!
जवाब देंहटाएं"ऐसे में मेरी समझ से आपका यह सवाल इस बात को रेखांकित करता है कि या तो आप इतने दिनों के सम्पर्क के बावजूद मुझे नहीं समझ पाए, या फिर आपके मन में भी कहीं न कहीं कोई पूर्वाग्रह अभी भी छुपा हुआ बैठा है, जिसे आप भी पहचान नहीं पा रहे हैं। "
जवाब देंहटाएंज़ाकिर आपने इसे अपने ऊपर क्यों ले लिया -यह तो एक सार्वजनिक पोस्ट थी !
hindu
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