महाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ?
गर्व से कहता ताल ठोंक कर -
महाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ?
चाहे जितना ही लिख मारो
प्रवचन करते रहे शास्त्र पर ,
नही असर पड़ने वाला है
वज्र हुआ ईमान बेच कर ।
नित नूतन महफ़िल सजती है ,
स्वर्ग कैद है हाथ हमारे ।
मरे थैलों पर चलते हैं -
मुल्ला पंडित कवि बेचारे ,
गर्व से कहता ताल ठोक कर
महाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ?
सुरा सुन्दरी की दुनिया से
किंग कोबरा सा फुफ्कारे
काले धन के उच् शिखर से
हाथ उठा फिर फिर ललकारे
भ्रष्ट रहा हूँ ,भ्रष्ट रहूँगा -
चाहे जितना जोर लगा ले !
गर्व से कहता ताल ठोक कर
महाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ?
टूटे नेता टूटे अफसर
टूटी जनता टूटी आशा
विद्यामंदिर भी सब टूटे
टूट रहा समाज का नाता ,
सब कुछ टूट चुका है लेकिन
मैं दिन प्रतिदिन बढ़ता जाता ,
गर्व से कहता ताल ठोंक कर
महा भ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ?
प्रेस मालिक अपना जिगरी है
सम्पादक ? मेहमान हमारे !
राजा दादा ,अपना ही है
कौन तुम्हारे है रखवारे ?
साक्ष्य हमारे टुकडों जीता
न्याय हमारे पाकेट में है
शासन मेरी बाट जोहता
सारी सत्ता साथ हमारे
जो सक्षम हैं वे सब मेरे-
किसके बल तुम आँख दिखाते
गर्व से कहता ताल ठोंक कर
महाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ।
(राजेन्द्र स्मृति से साभार ,२०००)
यह कविता स्वर्गीय पूज्य पिता जी,डॉ राजेंद्र प्रसाद मिश्र (५ सितम्बर १९४०-५ अक्टूबर १९९९) ने १९९० के आसपास लिखी थी .कल उनका पुण्य दिवस है और मैं इस अनुष्ठान में भाग लेने गावं (जौनपुर ) जा रहा हूँ .वहाँ नेट की सुविधा अभी नही है इसलिए यह कविता श्रद्धांजलि स्वरुप क्वचिदनयतोअपि पर आप मित्रों के लिए छोडे जा रहा हूँ ! उम्मीद है पसंद आयेगी !
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
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9 वर्ष पहले
गर्व से कहता ताल ठोंक कर
जवाब देंहटाएंमहाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ।
इस कालजयी रचना को पढ़वाने के लिए आपका आभार और पुण्य दिवस पर नमन !
मरे थैलों पर चलते हैं -
जवाब देंहटाएंमुल्ला पंडित कवि बेचारे ,
गर्व से कहता ताल ठोक कर
महाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ?
इस रचना को यहाँ प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद ! पुन्यदिवस पर प्रणाम !
आपके पुज्य पिताजी को मेरी भी श्रद्धांजलि ।उन्होने 17-18 साल पहले ही आने वाले समय की कल्पना कर ली थी।बेजोड व्यन्ग है सामाजिक व्यवस्था पर। अच्छी रचना पढाने के लिये आभार आपका।
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि आपके पूज्य पिताजी को।
जवाब देंहटाएंमहाभ्रष्टता तो असुरिक वृत्ति है। उसके विषय में इस प्रकार का लेखन महा-भ्रष्टों को कुछ तो लजायेगा। वही सार्थकता है इस कविता की।
टूट रहा समाज का नाता ,
जवाब देंहटाएंसब कुछ टूट चुका है लेकिन
मैं दिन प्रतिदिन बढ़ता जाता ,
गर्व से कहता ताल ठोंक कर
महा भ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ?
बहुत सही लिखा है आपके पिता जी ने ..आज भी यही हालात है ..बलिक इस से भी अधिक बिगड़ चुके हैं ..इस रचना को यहाँ पढ़वाने के लिए धन्यवाद ..आपके पिता जी के पुण्य दिवस पर मेरी श्रद्धांजलि ..
गर्व से कहता ताल ठोंक कर -
जवाब देंहटाएंमहाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ?
" अच्छी रचना पढाने के धन्यवाद, आपके पुज्य पिताजी को मेरी श्रद्धांजलि "
regards
महाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ?
जवाब देंहटाएंmain bhi ye hi keh rha hu. jab aaj tak kisi bhrasht aadmi ka kuch nahi bigadta to mera kya khak bigdega.
bahut hi veecharsheel vyangya hai.
aap ke pita ji ki punya tithi par meri taraf se bhi shradhanjli.
Rakesh Kaushik
गर्व से कहता ताल ठोंक कर
जवाब देंहटाएंमहाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ।
kuch nahi kar paye aaj tak
ab kya satya pakad loge
regards
bahut sunder ved vakya
makrand
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंयह कविता आज के नौकरशाहों और नेताओं पर पूरी तरह से खरी उतरती है।
स्वर्गीय डॉ राजेंद्र प्रसाद मिश्र जी के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंस्वर्ग कैद है हाथ हमारे ।
जवाब देंहटाएंमरे थैलों पर चलते हैं -
मुल्ला पंडित कवि बेचारे ,
गर्व से कहता ताल ठोक कर
महाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ?
बहुत बढ़िया.
कविता बहुत सुंदर है. यह रंग कम ही देखने को मिलता है। आदरणीय पिता श्री को हमारा भी नमन।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका पूज्य पिता जी की इतनी उम्दा हम सब के साथ बांटने के लिए.
जवाब देंहटाएंउनकी पुण्य आत्मा को नमन एवं श्रृद्धांजलि!!
ये हुई ना मर्दों वाली बात
जवाब देंहटाएंआपके पिताजी ने लिखी बात इतने समय बाद भी यथार्थ रूप में चरितार्थ हो रही है =पहले मैंने समझा कि यह आपकी लिखी है तो कमेन्ट कर दिया फिर अपनी आदत के मुताविक दुबारा पढी कुछ लाईने नोट करने के लिए टीबी पढने में आया पूज्य पिताजी कि लिखी है /उनके पुन्य दिवस पर सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंगर्व से कहता ताल ठोक कर
जवाब देंहटाएंमहाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ?
हमें तो ये दो लाईन जबरदस्त लगी, ऐसा लगा अमर सिंह टाईप कोई नेता इसे पढ़ रहा है
बहुत बहुत सुंदर कविता है.आपके बापूजी को नमन.चाहे कितने भी पहले लिखी गई हो पर यह सदा के लिए ही उस काल का सत्य है.
जवाब देंहटाएंअरविंद जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत देर से इस रचना को पढ़ा है ॥पिताजी की यह रचना आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उस समय रही होगी ... आभार
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 01-03 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं..शहीद कब वतन से आदाब मांगता है .. नयी पुरानी हलचल में .
आज के दौर मे एकदम सटीक कविता है सर!
जवाब देंहटाएंसादर
गर्व से कहता ताल ठोंक कर
जवाब देंहटाएंमहाभ्रष्ट हूँ क्या कर लोगे ।
कुछ नहीं कर लेंगे क्योंकि हम तो तुम्हारे जैसों के डर से खुल कर लिख नहीं पाते हें. वैसे आज का सच यही है जो कह गए हमारे बुजुर्ग वह गलत नहीं था. - सैयां भये कोतवाल अब डर काहे का .
कविता की प्रासंगिकता आज भी वैसी ही है .
जवाब देंहटाएंपिता जी की पुण्य-समृति को नमन!
bahut hi sateek panktiyaan..
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