बस कुछ प्रहर का इंतज़ार और ,माननीय सुप्रीम कोर्ट अयोध्या फैसले को रोकने सुनाने पर अपना फैसला सुना देगी ...और एक बार फिर पूरे परिवेश में उहापोह और आशंकाओं का ज्वार उफनाता जायेगा ...इस मुद्दे पर ब्लागजगत में खूब लिखा गया है और अनवरत लिखा भी जा रहा है -जिससे यह इंगित होता है कि भारतीय जनमानस इस मुद्दे पर कितना आंदोलित है ...अब जिस मोड पर यह समूचा मामला पहुँच चुका है उसके कुछ निहितार्थ स्पष्ट होने लगे है ....
कट्टर मुस्लिम और हिन्दू इस मामले पर कोई आम सुलह नहीं चाहते ,वे कोर्ट का ही फैसला चाहते हैं ...क्योकि माननीय हाईकोर्ट का फैसला तो अंतिम होता नहीं ,यह मामला देर सबेर सुप्रीम कोर्ट में जाएगा ही ....और इस तरह कानूनी दांव पेंच में फंस कर रह जाएगा ....अयोध्या में राम का मंदिर नहीं बन सकेगा ....मुल्लाओं का कहना है कि शरीयत उन्हें मस्जिद जो अल्लाह की मिलकियत है को गैर मुस्लिमों को देने की इजाजत नहीं देती ..हिन्दू अपनी इस बात पर अटल हैं कि अयोध्या में हम राम मंदिर नहीं बनायेगें तो फिर कहाँ बनायेगें ....अब यह आस्था का मिलियन डालर सवाल मुंह बाये खड़ा है ...हाशिये पर पहुँच चुकी बी जे पी को इससे एक मुद्दा मिलने की उम्मीद जग गयी है ...हाईकोर्ट का फैसला अगर मस्जिद के मालिकाना हक़ में आता है तो वह तुरंत सुप्रीम कोर्ट जाने का फिजा तैयार करेगी और इससे भी आगे बढ़कर मांग करेगी कि संसद में क़ानून बनाकर मंदिर अयोध्या में ही बनाया जाय और इसी बैसाखी के सहारे आगामी लोकसभा में प्रचंड बहुमत लेने की अपील बहुसंख्यकों से की जा सके ....यह मामला अब केवल राजनीतिक निहितार्थों की ओर बढ रहा है...
मगर इतना तय है कि जो भी फैसला होगा उससे जन भावनाएं तो आहत होंगी ही ,हाँ अब इतनी समझदारी लोगों में आ गयी है कि वे अपने आक्रोश को आक्रामक तरीके से व्यक्त करने में संयम बरतेगें -समय का यही तकाजा भी है ....यह मामला अब लम्बे कानूनी दांवपेंच में ही पड़ा रह जाय वही शायद देशहित में है ....आपकी क्या राय है ?
हम नहीं सुधरेंगे ....शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंदेखते हैं आखिर क्या होता है! इंतज़ार रहेगा! सुन्दर पोस्ट!
जवाब देंहटाएंजैसा की आपने कहा मिश्रा जी ...इस मुद्दे के जलते तंदूर में हर कोई अपनी अपनी रोटी सेकना चाहता है ... चाहे वो राजनैतिक दल हों या धार्मिक संगठन ... परन्तु इस मुद्दे को हलके में नहीं लिया जाना चाहिए ... ये एक सोये हुए ज्वालामुखी के सामान है यदि ये फूट पड़ा तो सारी मानवता का विनाश कर सकता है ... किसी ने ठीक कहा है ...religion is the opm of masses...वक़्त है सैयम बनाए रखने का ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
लेख को पढ़कर अच्छा लगा ........
जवाब देंहटाएंजाने काशी के बारे में और अपने विचार दे :-
काशी - हिन्दू तीर्थ या गहरी आस्था....
pahle ye mamla rajniti ke sath janmans se jura tha....lekin ab
जवाब देंहटाएंsirft kshudra rajniti hi rah gai
hai....
om shanti...shanti...shanti...
pranam
संयम ! आ नो भद्रा क्रतवो यन्तु विश्वतः
जवाब देंहटाएंअब तो राम ही राखे...शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंफैसला तो होना ही चहिये , नासूर क्यों पाला जाय . बस जरुरत है इस फैसले को अगली पीढ़ी के स्वागत के लिए विलंबित ना किया जाय.
जवाब देंहटाएंhttp://ashishkriti.blogspot.com/
राम रूठा खुदा खफा सा है.
जवाब देंहटाएंआदमी आदमी जुदा सा है.
लगता नहीं कि फैसला होगा...
ये फैसला भी एक हादसा सा है.
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शुभकामनाएँ.
मुद्दा तो बहुत गरम है, फैसला आ जाये तो अच्छा है
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें:-
ईदगाह कहानी समीक्षा
apki bat se mai purn tah sahmat hun
जवाब देंहटाएंसभी को फ़ैसले का इंतजार है। पुरखे कहते-कहते चले गये सबका मालिक एक है मगर सब कीताबों के पन्नों मे दफ़न हो गया। काश कुछ ऎसा हो जाये वहाँ न राम अकेला हो न रहीम ही दोनो का खूबसूरत कोई संगम सा नज़र आये पर काश...
जवाब देंहटाएंफैसला लटकाए रखने से कोई लाभ नहीं है ..न जाने कितनी पीढियां इसी मुद्दे पर खत्म हो जाएँगी ...जो होना है आज हो जाये ..बेहतर होगा ..
जवाब देंहटाएंकाश मंदिर या मस्जिद की जगह कोई स्कूल , अस्पताल खुलवा दिया जाये ...
मेरे विचार से लेख अच्छा है :))
जवाब देंहटाएंमैं भी यही कहूंगी .. काश मंदिर या मस्जिद की जगह कोई स्कूल , अस्पताल खुलवा दिया जाये !!
जवाब देंहटाएंसंगीता जी
जवाब देंहटाएंये क्या कह दिया ??:) इस पोस्ट को भी पढ़े :)
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/09/blog-post_25.html
मामला बड़ा संवेदनशील है । अभी टल जाये तो बेहतर ।
जवाब देंहटाएंआपसी सहमती की संभावनाएँ समाप्त हो चुकी हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आ चुका है। सबकी निगाहें 30 सितंबर पर टिकी हैं। कोई भी देश कानून से चलता है, सभी को माननीय उच्च न्यालय का फैसला सरमाथे पर रखना होगा। विरोध के लिए सड़कें नहीं सर्वोच्च न्यायालय है। सभी को इस बात का ध्यान तो रखना ही होगा कि मंदिर-मस्जिद से देश बड़ा है, सभी धर्मों से बड़ी है मानवता।
जवाब देंहटाएंअब तो यही कहता है
मेरा मन
क्यों नाचें भला
सपेरे की बीन पर
सर्प बन!
मगर इतना तय है कि जो भी फैसला होगा उससे जन भावनाएं तो आहत होंगी ही ,हाँ अब इतनी समझदारी लोगों में आ गयी है कि वे अपने आक्रोश को आक्रामक तरीके से व्यक्त करने में संयम बरतेगें -समय का यही तकाजा भी है ....यह मामला अब लम्बे कानूनी दांवपेंच में ही पड़ा रह जाय वही शायद देशहित में है ....आपकी क्या राय है ?
जवाब देंहटाएंआपसे अक्षरश सहमत.
रामराम.
देश के इतिहास में एक मोड़ लायेगा यह प्रकरण।
जवाब देंहटाएंहुये वही जो राम रचि राखा .
जवाब देंहटाएंआप हमेशा ही बढ़िया लिखते हैं इस बार भी बढ़िया लिखा है बस मुझे अब मुस्लिमों को अल्पसंख्यक और हिन्दुओं के लिए बहुसंख्यक कहा जाना खलता है.
जवाब देंहटाएंविचार शून्य से सहमत। भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं। न तो राम रहीम एक हैं और न ईश्वर अल्लाह।
जवाब देंहटाएंऐसी बातें हिन्दुओं को भुलवाने वाली झुनझुना हैं। आज़ादी के बाद से ही जो धीमा ज़हर हिन्दुओं को पिलाया गया है उसी का असर है - अस्पताल, स्कूल जैसी बातें। कहाँ कहाँ बनवाइएगा? राम की जन्मभूमि पर ही ऐसे प्रस्ताव क्यों? मामला अयोध्या में मन्दिर का नहीं संस्कृतिपुरुष आराध्य राम के जन्मस्थान पर मन्दिर का है।
... यह मामला हमलोगों के जीवन में सुलझने वाला नहीं है। कारण बस यह कि दूसरे पक्ष में इस्लाम खड़ा है। जिन्हें कोई शंका हो वे क़ुरआन का अध्ययन कर अपनी आँखें खोल लें।
क्षमा कीजिएगा। कटु हो गया। ऑफलाइन हो रहा हूँ।
गिरिजेश जी आप-ने दो टूक बात कही है -इस्लाम का सिक्का पूरी दुनिया में कायम है!
जवाब देंहटाएंऔर इसी का नतीजा है हिन्दुओं के आराध्य का मंदिर भंवर जाल में है .
मुझे कोई हल दूर दूर तक नहीं दीखता ....
दद्दा, एक बात हम पूछते हैं, अगर अपनी जमीन और अपना मकान आंदोलन करके और फौजदारी करके लेनी है तो कैसा अपना देश और कैसा अपना वतन.
जवाब देंहटाएंहम लोग एक जनेऊ के लिए उत्तर पश्चमी सरहद जो आज पकिस्तान में हे को छोड़ कर आये - अपना घर-बार और जमीन जायदाद.
अब आप जैसे ऐसा लिख रहे हैं - पर मुझे भविष्य में समझ नहीं आता - अगर मुस्लिम आक्रांता यहाँ से हमें धकेलंगे तो फिर कहाँ जायेंगे ?
इन लोगों कि मानसिकता में बदलाव लाना होगा - अगर हिन्दुस्तान को फूलों का गुलदस्ता बनाये रखना चाहते हो तो.
विचार धन्य भैया ,
जवाब देंहटाएंएक तो आफ लाईन हो लिए और एक फौजादारी से डरते हैं ...
फिर तो बन गया मंदिर जन्मभूमि पर ...हमारी यही नीयत रही है और नियति भी!
परसों का फैसला एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का फैसला होगा -हम कोई हिन्दू राष्ट्र तो हैं नहीं ...
हम संविधान से बांध दिए गए हैं .....
नहीं अल्लाह मस्जिद में,
जवाब देंहटाएंन मन्दिर में कोई ईश्वर;
जहाँ बाग-ए-मोहब्बत है,
वहीं गुल बन खिला ईश्वर !!
लेकिन मुद्दा मन्दिर या मस्जिद का है ही कहाँ....मुद्दा तो सिर्फ अहं का है..ओर ये अहं ही तो है, जो टूटता दिखता नहीं.
मैं यहाँ गिरिजेश जी से पूरी तरह सहमत हूँ... मेरे पास ऐसे ऐसे लॉजिक हैं हैं जो यह साबित करते हैं कि वहां मस्जिद बन ही नहीं सकती... न ही वहां कभी मस्जिद थी... सोच रहा हूँ कि एक पोस्ट लिखूं...
जवाब देंहटाएंफैसला तो अब हो ही जाना चाहिए जितना ज्यादा लटकेगा उतना ही उछलेगा.
जवाब देंहटाएंशाम को टिपियानें की कोशिश की थी पर टिप्पणी लटक गयी ! अब दोबारा फैसला लिखने की हिम्मत नहीं है ! इसलिए अपनी प्रतिक्रिया केवल एक शब्द ...संयम !
जवाब देंहटाएंलेकिन मुद्दा मन्दिर या मस्जिद का है ही कहाँ....मुद्दा तो सिर्फ अहं का है..और ये अहं ही तो है, जो टूटता दिखता नहीं.
जवाब देंहटाएंवत्स जी का कथन ही असली सच है
ऑफ लाइन नहीं हुवे हम पता नहीं आपने कब मिलने कि कोशिश कि. - और सही बताएं तो फौजदारी के लिए तैयार है.
जवाब देंहटाएंदद्दा आपको याद दिलाना चाहूँगा - शाहबानो मामले को, जिसे स्व. राजीव गाँधी ने संसद के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निरस्त करवा दिया था .....
जवाब देंहटाएंक्या तब ""फैसला एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का फैसला होगा""" एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का फैसला नहीं था.
बहुत छोटा हो कर बड़ी बात कर रहा हूँ. क्षमा सहित : राम राम
मेरे बस मै हो तो वहां ना मंदिर बने ना मस्जिद, वहा बने एक अस्पताल जिस मै हिंदु ओर मुस्लिम मिल कर अपनी अपनी ताकत से पेसा लगाये ओर सब का इलाज यहां भगवान ओर खुदा के नाम से हो, ओर दुनिया को दिखा दे कि हम एक है, ओर जो नेता हमे भडकायेगा वो मुंह की खायेगा,
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
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हम तो इस मामले पर अपनी पहले ही इस तरह कह चुके हैं...
मैंने एक सपना देखा है...
वही सपना देखिये आप भी !...
क्योंकि फैसला अब आने ही वाला है...
आभार!
...
देखेंगे फैसला कितना स्पष्ट आता है
जवाब देंहटाएं@दीपक बाबा आपकी बात सोलहो आने सच है ....
जवाब देंहटाएंजो कुछ बन पड़े किया जाना चाहिए मंदिर निर्माण के लिए
Raam janam bhumi belongs to all indians and mandir should be built over there.
जवाब देंहटाएंPlease ..No hospital or school even no community center ...reasoning-->Just imagine if a hospital or school is there and people from all community sharing that space .
IF Any time even at any small argument
people from one religion will start saying and showing full adhikaar tht 'that place' belongs to him.
CAN YOU IMAGINE THAT SCENE?again riots /conflict will start.
This is what you want to give to future generations?
Babar was a foreigner,he came from other country ,he did not bring land with him to build a mosque.
How can they make a holy mosque on the foundation of a holy temple?If they build then that will not be a pure mosque,['Remember any hindu temples' foundation is kept with all hindu rituals.']
Raamjanam bhumi belongs to hindus and given back to hindus to built a temple only.
It is very very sad and pathetic that in our own country we are fighting for our own land.
No doubts in few years hindus will be alpsankhyak.
Holy Quraan never teaches violence,it teaches lesson of peace and brotherhood but few misguided people ruined image of a true muslim.
I can guess judgment will be in favour of raamjanam bhumi with all historical evidences.
This issue needs one sided judgment not a combo.
fearless to say that 'Those who are advising for hospital or school,actually wants this issue to remain unsolved and let future generations suffer same how we are suffering.
जवाब देंहटाएंunfortunately these people are having no backbones[sorry for being rude]
History says ,archeological evidences say that there was a temple.
I myself saw that structure [before its destruction.]
Pillars were of that so called mosque were ancient hindu architecture.
you could clearly make out that pillars were very different from the rest of the structure.
Why more of such supportive evidences are not shown in public.
?संयम /शान्ति किसलिए?
जवाब देंहटाएंआर या पार का फैसला हो तो बात बने.
कम से कम आज होगा जितना नुक्सान होना होगा.
यूँ सालों साल किश्तों किश्तों में ज़ख़्मी तो न करें देश को.
कृतिका ,आभार !
जवाब देंहटाएंआपके विचार इस मुद्दे पर बहुत स्पष्ट और सटीक हैं ...मैं शब्दशः सहमत हूँ .
यह केवल एक जिद है कि इंगित स्थल मस्जिद है..जबकि शरीयत के हिसाबं से भी वह
जगह्न जहाँ नमाज न पढी जाती हो और जिसका फाउनडेशन मंदिर हो मस्जिद नहीं हो सकती ...
वहां कुछ और नहीं मंदिर ही बनना न्याय की भावना के अनुरूप होगा ..
आपके सहज और इतने स्पष्ट विचार से मैं बहुत प्रभावित हूँ - पुनः धन्यवाद !
यह मामला अब लम्बे कानूनी दांवपेंच में ही पड़ा रह जाय वही शायद देशहित में है --- हमारी भी यही राय है। आपकी राय भी यहाँ इन्तज़ार कर रही है
जवाब देंहटाएंwww.veerbahuti.blogspot.com
dhanyavaad|
आज और आने वाला कल ..... दोनो ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण होने वाला है ये फैंसला ....
जवाब देंहटाएंजो होना है आज या कल ... उसे अभी होना ही ज़्यादा अछा है ....
देखें फैसला क्या कहता है ...!
जवाब देंहटाएंचलिये कुछ घंटे बचे हैं...देखते हैं क्या होता है उस फैसले में जिसे फिर चुनौती दी ही जानी है।
जवाब देंहटाएंयह देश जब तक अपने घाव सीधे-सीधे देखेने से बचता फिरेगा, इसका घाव नासूर बन कर ताउम्र
तड़पाता ही रहेगा।
अरविंद जी फ़ैसला तो आ गया है। मगर लगता है कि कुछ दिनो का झाँसा है कि ये बवाल शान्त रहे। जो लोग अमन चैन से नही रहने वाले वो किसी भी हाल में नही मानेंगे।
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