हिन्दू समाज का जिन बातों ने सबसे ज्यादा अहित किया है उनमें जाति पाति की भावना एक है .आज जाति पाति की भावना सभ्य समाज का एक सबसे बड़ा कोढ़ है और दुःख की बात यह है कि यह भावना कथित ऊंची जातियों में ज्यादा बलवती दिखती है .मैंने एक ब्लॉग आलेख पढ़ा जिसमें जाति बोध से प्रेरित होने के कारण यह बताने का प्रयास किया गया कि भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद, महान धर्मवेत्ता और दार्शनिक विवेकानन्द आदि महापुरुष कायस्थ थे...मैंने वहां यह टिप्पणी की -
"महापुरुषों को किसी जाति की श्रेणी में रखना उचित नहीं है .जातियां महापुरुषों से हो सकती हैं मगर महापुरुष किसी जाति के नहीं ....." (स्मृति के आधार पर )..मुझे दुःख हुआ कि मेरी टिप्पणी प्रकाशित न कर मुझे पूर्वाग्रही माना गया ..हाँ कई दूसरे सुधी टिप्पणीकारों ने जब इस ओर संकेत किया तो मुझे अपनी धारणा पर स्थिर रहने का बल मिला ..."
वैसे तो ब्लॉग लेखन ब्लॉग स्वामी को अपने मन का कुछ भी लिखने का छूट प्रदान करता है मगर सार्वजनिक लेखन में कुछ सामाजिक सरोकारों को ध्यान में रखना होगा ...आज हिन्दी ब्लॉग लेखन धर्म ,सम्प्रदाय और अब जाति आह्वान की ओर उन्मुख होता दिख रहा है -इसके अंतर्निहित कारण हो सकते हैं -चलो स्वजाति -प्रेरण से और कुछ नहीं तो कुछ टिप्पणियाँ ,कुछ सहानुभूति और कुछ जाति समर्थित दबदबा भी कायम हो ही जायेगा ....यह सचमुच दुखद है कि समाज में आज भी कई ऐसे आर्थोडाक्स बुद्धिजीवी मिल जायेगें जो अपने जाति बोध से निकल नहीं पाए हैं -मैं राजनीति के घिनौनेपन की तो बात ही नहीं कर रहा -मैं कुछ और लोगों की बात कर रहा हूँ जो जिम्मेदार पदों पर हैं ,अच्छा ख़ासा पढ़े लिखे हैं मगर अपनी जाति व्यामोह से उबर नहीं पा रहे हैं ..वे कहते हैं कि चाणक्य ब्राह्मण था ..फला फला ऋषि मुनि जिनकी हम संतानें हैं और जिनसे हमारे गोत्र बने हैं ब्राह्मण थे......मैं उनसे पूछता हूँ महाकाव्यों, पुराणों के संकलनकर्ता वाल्मीकि -वेदव्यास क्या थे? तो वे बगले झाँकने लगते हैं! हरिवंश राय बच्चन भले ही कायस्थ के घर पैदा हुए थे मगर उनके 'आचरण' तो ब्राहमण के रहे (ब्राह्मण का अर्थ है जो लोगों के मोहजनित अज्ञान को दूर करे ) ....उन्होंने पंजाबी भद्र महिला से शादी की और परिवार को एक ऐसा संस्कार दिया कि आज अमिताभ बच्चन यह नहीं मानते कि वे किसी जाति से सम्बन्धित हैं -उनका पूरा परिवार एक आदर्श भारतीय परिवार है ...
ब्लॉग जगत में जाति आह्वान और जाति वंशावली /विरुदावली यहाँ पहले से ही बढ रहे अलगाववाद और वैषम्य को और बढ़ा देगी -शायद ही कोई कथित जाति हो जिनमें महापुरुषों ने आँखे न खोली हो ..राजा राम तो ठाकुर ही थे,कृष्ण यादव और कितने ही हमारे महान आर्ष ग्रन्थों के रचनाकार शूद्र! फिर क्या बात बनी ? हम इससे क्या साबित करेगें ? मुझे दुःख है कि कई महानुभावों ने ब्लॉग लेखिका को किन्ही निहित कारणों से यह आश्वश्त किया कि उस पोस्ट से जाति की बिल्कुल बू नहीं आ रही है ..मैं सोचता हूँ जो व्यक्ति जाति पाति से ऊपर उठ कर अपने समाजिक सरोकारों को नहीं निभाता वह एक अच्छा नागरिक नहीं है .और उस पर मुगालता यह कि वे समाज की सेवा करने को तत्पर हैं ... आज तक के मेरे लम्बे सामाजिक जीवन में कई लोगों ने मुझसे ब्राहमण होने की दुहाई देकर छोटे मोटे लाभ अर्जित करना चाहा है मैंने उन्हें खूब लताड़ा है -मुझे कितने ब्राह्मणों को कहना पड़ा है कि मात्र ब्राह्मण के यहाँ जन्म लेने से कोई ब्राहमण नहीं हो जाता न तो केवल जनेऊ धारण करने और लम्बी चुटिया रख लेने से ..चुटिया रखने वाले विद्वानों को मैं हंसी मजाक में चोटी का विद्वान् कहता हूँ -
हमें जाति पाति को नहीं बल्कि व्यक्ति को महत्व /सम्मान देने का संस्कार बच्चों को देना चाहिए ....मुझे गर्व है कि मैं और मेरा परिवार जाति पाति में विश्वास नहीं रखता यद्यपि इस भावना से हमेशा पीड़ित प्रताड़ित भी होता आया है ...जाति से ऊपर उठिए मित्रों ......
I Appreciate your lovely post, happy blogging!!!
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम...
जातियों को लेकर दुविधा बनी हुई है। जाति टूटे यह एक आदर्श स्थिति होगी मगर फिलहाल,क्या अगड़े क्या पिछड़े,सबके लिए जाति एक हक़ीक़त है,यह स्वीकारने में भी संकोच नहीं होना चाहिए। चंद अरबपतियों को छोड़ दें,तो कम से कम हमारे देश में जाति का व्यामोह अधिकतर के भीतर रहता ही है। महापुरुषों का संबंध जाति से नहीं होता,बल्कि जाति से ऊपर उठने पर ही महापुरुष बनना संभव। आर्थिक सुदृढ़ता से नहीं बल्कि चेतना का स्तर ऊपर उठने पर ही जातिविहीन समाज की कल्पना संभव।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका जो आप मेरे ब्लॉग पर पधारे ........
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया लिखा है
सही बात कही है आपने .... आभार
इसे भी पढ़े :-
(आप क्या चाहते है - गोल्ड मेडल या ज्ञान ? )
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_16.html
मै तो इतज़ार में हूं, उन नामुराद जाति गणना वालों की, वो आयें और उनके कागजों पर मैं अपने हाथों से मोटा मोटा लिख दूं :
जवाब देंहटाएंउत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र !
अच्छा लिखा आपने ....ऐसा ही सभी को सोचना चाहिए.
जवाब देंहटाएं_____________________________
'पाखी की दुनिया' - बच्चों के ब्लॉगस की चर्चा 'हिंदुस्तान' अख़बार में भी.
@डॉ अरविन्द मिश्र जी !
जवाब देंहटाएं" "महापुरुषों को किसी जाति की श्रेणी में रखना उचित नहीं है ."
मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ ! अपना पक्ष बताऊँ तो मैं उन्हें महापुरुष ही नहीं मान सकता जो किसी जाति विशेष से बंधे रहे हों और उन्हें अपनी जाति के लिए काम करते हुए गौरव महसूस हुआ हो !
मगर डॉ दिव्या श्रीवास्तव को भी मैं दोषी नहीं मानता कि उन्होंने कायस्थों से जुड़े महापुरुषों का नाम लिया और इसका उन्हें गर्व महसूस होता है ! अपने कुलसंस्कृति और समाज की बात करते हुए यदि वे अपने पितामह और पूर्वजों के गौरव को याद कर रही हैं तो यह एक सामान्य बात है और यह किसी भी भांति दुराग्रह की श्रेणी में नहीं रखा जाये तभी बेहतर होगा !
व्यक्तिगत तौर पर मैं जातिवाद का उल्लेख और खास तौर पर पुराणों के सन्दर्भ में कहना निंदनीय मानता हूँ , इससे बचा जाना चाहिए ! हमारे आदिग्रंथों में जातियों के बारे में विभिन्न विभिन्न व्याख्याएं दी गयी हैं जो आधुनिक काल में खरी और सही नहीं मानी जाती ! लोग अपनी अपनी बुद्धि के हिसाब से इसका अर्थ निकालते और समझते रहे हैं ! कटुता से बचने के लिए हम, इन सन्दर्भों का उपयोग न ही करें तो बेहतर हैं !
आपसे एक अनुरोध करता हूँ आप दोनों के मध्य जो भी कटुता पैदा हुई वह आप लोगों के लेखों से अब भी झलकती है यह उन लोगों के लिए कष्टदायक हो सकती है जो दोनों को पढना पसंद करते हैं अथवा जो निष्पक्ष रहना चाहते हैं ! आप लोग जब कडवे कमेन्ट लिखते हैं तो निस्संदेह आपके पाठक भी दो पक्षों में बंट जाते हैं जिनका इस झगडे से कोई सरोकार नहीं !
आशा है बुरा नहीं मानेंगे !
सादर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसतीश जी ,
जवाब देंहटाएंभाई मैं तो उस कुल का हूँ जिनके जीन अयातुल्ला खोमानी के वंशजों से ९९ दशमलव २ प्रतिशत मिलते हैं !वैज्ञानिक पद्धति से खूब जांचे परखे गए हैं ...
बात कटुता की नहीं -बात मुद्दों की है -अब यहाँ लोग कायस्थ कुल गीत गायेगें ,ब्राह्मण गर्ग गोत्र का तीन तेरह करेगें ,क्षत्रिय चन्द्र सूर्य के वंशज होने का
दावा करेगें तो बहुत कटुता बढ़ जायेगी ..
हमें इस थोथी जाती श्रेष्ठता के मिथक से दूर होना होगा !
कटुता की पोटली लोग लिए फिर रहे हैं -मेरी रीत चुकी है !
@आपसे एक अनुरोध करता हूँ आप दोनों के मध्य जो भी कटुता पैदा हुई वह आप लोगों के लेखों से अब भी झलकती है यह उन लोगों के लिए कष्टदायक हो सकती है जो दोनों को पढना पसंद करते हैं अथवा जो निष्पक्ष रहना चाहते हैं ! आप लोग जब कडवे कमेन्ट लिखते हैं तो निस्संदेह आपके पाठक भी दो पक्षों में बंट जाते हैं जिनका इस झगडे से कोई सरोकार नहीं !
जवाब देंहटाएंआशा है बुरा नहीं मानेंगे !
सतीश भाई आप यह बात केवल मुझी से कहकर कहीं पक्षपात तो नहीं कर रहे :)
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंअलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-१, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
सार्थक लेख
जवाब देंहटाएंEK BAAR PHIR SATISH BAHIJEE SE SAHMAT
जवाब देंहटाएं......... KAI BATEN KHUD-B-KHUD SAMAJH JANE WALI HOTI HAI.........
BLOGWOOD KE SAPT-DHROOV HAIN AAP ..... SATAHI VISHYON PAR APNI ABHA
JAYA NA KAREN ......
AAM MITHA HOTA .... SAB JANTA HAI ...
LEKIN OOS MITASH KA ANUBHAV ...... JISNE JAISA KHAYA HOTA HAI ..... OOS TARAH KA MITHASH ANUBHAV KARTA HAI......
SADAR PRANAM.
मेरे हिसाब से कोई भी छॊटा बडा नही जात के हिसाब से, छॊटा बडा बनता है अपने विचारो से अपनी सोच से, मुझे किसी के हाथ से पानी पिलाये खाना खिलाये मुझे कुछ गलत नही लगता, मेरे लिये सामने वाला भी मेरे ही समान एक इंसान है,बाकी सब झूठ, जात पात हमारे कर्म को दिखाती है, हमे समाज मै इज्जत दिलाती है, हमे छोटा या बडा नही बनाती
जवाब देंहटाएंनाम लिखते हैं आप - अरविन्द मिश्र
जवाब देंहटाएंऔर उस पर तुर्रा ये कि "मेरा परिवार जाति पाति में विश्वास नहीं रखता"
ये मिश्र का दुमछल्ला किस लिए
इसको लफ्फाजी कहा जाता है
दोहरा चरित्र
जरा ब्लॉग समुदाय को बताने का कष्ट करें कि आपके घर परिवार के कितने लड़के और लड़कियों की शादियाँ अनुसूचित अथवा पिछड़ी जातियों में तय हुयीं ?
दरअसल हिन्दुस्तानियों का ख़ास शगल है - "लफ्फाजी"
इसके बिना उनकी पहचान कम्प्लीट नहीं होती.
हमें जाति पाति को नहीं बल्कि व्यक्ति को महत्व /सम्मान देने का संस्कार बच्चों को देना चाहिए ....
जवाब देंहटाएंआप से काफी हद तक सहमत । काफी हद इसलिए --कि शादी ब्याह अपनी जाति में हों तो कोई बुराई नहीं है । लेकिन अन्तर्जातीय हों तो भी कोई विरोध नहीं है ।
महापुरुषों ही क्यों किसी को भी जाति की श्रेणी में रखना उचित नहीं है.
जवाब देंहटाएं@शैलेन्द्र भाई -
जवाब देंहटाएंकाहें शर्मिंदा करते हैं -हम कौनो ध्रुव व्रुब नहीं -एक आम ब्लॉगर हैं -
वही बने रहना चाहते हैं !
@अनाम भाई आपकी पीड़ा समझता हूँ -उस दिशा में कुछ कर सकने का मौका मिला तो पीछे नहीं हटूंगा
जवाब देंहटाएंमेरे लिए मनुष्य महत्वपूर्ण है -उसके गुण दोष तो स्वीकार -अस्वीकार मगर जाती के चश्मे से मनुष्य को देखना यह मानवता का अपमान है !
आपकी बात से सहमत हैं, इसीलिये हमारी जात हमारा धर्म हमारा कर्म सब कुछ ताऊपना है. हम तो बस लोगों को ताऊगिरी करते देखना चाहते हैं, क्या रखा है जात पांत में. अपना तो एक ही नारा है.... ताऊगिरी करिये, मस्त रहिये.
जवाब देंहटाएंरामराम.
"महापुरुषों को किसी जाति की श्रेणी में रखना उचित नहीं है .जातियां महापुरुषों से हो सकती हैं मगर महापुरुष किसी जाति के नहीं ....."
जवाब देंहटाएं--
बहुत ही उपयोगी आलेख!
भारतवर्ष इस समय जितनी सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है उनमें एक बड़ा भाग जाति व्यवस्था के कारण पैदा हुआ हैं। विडम्बना यह है कि यह बीमारी लगातार बढ़ती जा रही है। जिन जातियों को दलित और पिछड़ी कहा जाता है वे अब जाति-स्वाभिमान रैली करके अपनी जातीय पहचान को नये सिरे से परिभाषित कर रही हैं। राजनीतिज्ञों को भी यह बहुत रास आ रहा है क्योंकि बिना कुछ खास किए ये एक खास संख्या के वोटरों का जुगाड़ कर ले रहे हैं।
जवाब देंहटाएंमुझे निराशा होती है कि निकट भविष्य में यह जातीय उन्माद कम होने के बजाय बढ़ता दिखायी दे रहा है। अब मनुष्य से भेंट होना मुश्किल हो गया।
@ "महापुरुषों को किसी जाति की श्रेणी में रखना उचित नहीं है .जातियां महापुरुषों से हो सकती हैं मगर महापुरुष किसी जाति के नहीं ....."
जवाब देंहटाएंपर मैं पूछना चाहुंगा की महात्मा गाँधी भारत में पैदा हुए, लेकिन सारा विश्व उन्हें महान और आदर्श व्यक्तित्व मानता है तो क्या अब हम इन्हें सिर्फ इसलिए भारतीय कहना बंद करदें की इन्हें देश विशेष की सीमाओं में बांधने से इनकी महानता में कमीं आ जाएगी, क्या गांधीजी को भारतीय कहने में हम गर्व का अनुभव ना करें, क्या हम सीना फुला कर कहना बंद करदें की गाँधी जैसा व्यक्तित्व भारत में पैदा हुआ था ???????????
महापुरुषों की महानता स्तुत्य है क्योंकि महान बनने के लिये कई उपाधियों से ऊपर उठना पड़ता है।
जवाब देंहटाएंजो जाती की खिलाफत कर रहें है वे अपनी जाती भारतीय लिखवायेंगे, मतलब तो वही हुआ ना की भारतीयता भी अपने आप में एक पहचान है. एक बड़ी पहचान. हमारा घर भी हमारी एक पहचान होता है, लेकिन उसके अन्दर भी हमारा एक कमरा नियत है . घर के बाहर हमारा घर हमारी पहचान है घर के अन्दर हमारा कमरा. जाती का विरोध आँख मीच कर करने वालों से मैं विनम्रता-पूर्वक कहना चाहुंगा की. हम अगर एक ऐसा समाज बना सकें की हमारा एक अलग से घर होना जरुरी ना हों हम कहीं भी किसी भी घर में अपने ही घर की तरह रह पायें तो ही जाती रूपी पहचान का विरोध करें. सरकार के अलग अलग विभाग है उनमें काम करने वालों की अपने अपने विभागों से पहचान है क्या ख़त्म कर देनी चाहियें यह पहचान भी. डाक्टर की डाक्टर होने से , सैनिक की सेना में नौकरी करने से , मास्टर की पढ़ाने से. हर किसी की एक अलग पहचान आखिर क्यों है इतनी पहचान.
जवाब देंहटाएंआप सभी आदरणीयों से यह बालक इतना ही निवेदन करना चाहता है की आप पुरानी चली आई पहचानों को ख़त्म कर दीजिये पर कोई ना कोई स्थानापन्न पहचान तो हर व्यक्ति की रहेगी ही. और अगर ना रहेगी तो किस तरह नहीं रहेगी आप बताने की कृपा करें.
हमें जाति पाति को नहीं बल्कि व्यक्ति को महत्व /सम्मान देने का संस्कार बच्चों को देना चाहिए ...
जवाब देंहटाएं..पूर्णतया सहमत। हकीकत यह भी है कि आज पढ़े-लिखे घरों के बच्चे अपने माता-पिता से इस बात से भी नाराज हो जाते है कि आपने घर आए अमुक मेहमान से उसकी जाति क्यों पूछी ? पढ़े-लिखे हो कर भी आप रूढ़िवादी हैं।
..स्वार्थ में अंधे राजनीतिज्ञों को अभी इस परिवर्तित हो रहे समाज की विचारधारा का ज्ञान नहीं हो रहा है, पता चलेगा तो सर पीटेंगे..
:)
जवाब देंहटाएंगाने आये थे फिर सतीश जी का कमेंट दिखा.... कायस्थ कुल गीत गायेगें/////
जवाब देंहटाएंतो चुप्पे निकल जाते हैं.
बढ़िया आलेख.
जाति और क्षुद्र स्वार्थ से ऊपर उठने वाले ही महापुरुष कहलाते हैं ...
जवाब देंहटाएंये सभी महापुरुष अपने उच्च मानवीय गुणों और जुझारू प्रवृति के कारण जाने जाते रहे हैं ...न कि किसी जाति विशेष के नुमाईंदों के रूप में ...
जाति व्यवस्था समाप्त नहीं होगी। इतना ही होगा कि गोलबन्दियों से पुनर्व्यवस्थित हो नए जाति समूह बन जाएँगे।
जवाब देंहटाएंमहान आत्माएँ भी जातिगत पूर्वग्रहों से मुक्त नहीं रही हैं। लेकिन उनका मूल्यांकन जाति सापेक्ष नहीं होना चाहिए।
अमित शर्मा जी ,
जवाब देंहटाएंआपकी बात से मैं सहमत नहीं ,महात्मा गांधी भारत के कम मानवता के ज्यादा करीब हैं ,वे एक वैश्विक व्यक्तित्व हैं ०जैसे हम आईंस्टीन को अपने करीब पाते हैं -यह महत्वपूर्ण नहीं की वर कहाँ जन्मे थे !
@बेचैन आत्मा
जवाब देंहटाएंसच ,आईये हम सब जाति से ऊपर उठ व्यक्ति को सम्मान दें ..
मैंने देखा है की कई आर्थोडाक्स रिटायर्ड लोग अपने बच्चों में जाति श्रेष्टता का संस्कार देते रहते हैं ...
यह परले दर्जे की संकीर्णता है -ऐसे लोगों में ब्राह्मण ,क्षत्रिय और कायस्थ नंबर वन है -
ऐसे लोगों से मुझे घृणा है -ये लोग जीवन भर कोई सामाजिक बेहतरी का काम न करकर केवल दमड़ी बनाने में लगे रहते हैं और रिटायर होने पर बौद्धिक व्यापकता के अभाव में बच्चों को भी अनर्गल बाते बताकर समाज का अहित करते हैं -
ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार ही भारत की तस्वीर निखार सकता है !
आप ऐसे अभिभावक क्यों नहीं बनते जो बच्चों को जाति धर्म से ऊपर उठकर इंसान को समझने पहचनाने को प्रेरित करते ...
ब्लॉग जगत में क्या कोई किसी की जाति पूछ रहा है -
मैंने यह कभी सायास यह जानने की कोशिश नहीं करता सामने वाला किस जाति का है -मैं उसका मूल्यांकन उसके व्यक्तित्व पर करता हूँ -मुझे पता नहीं गिरिजेश राव किस जाति के हैं (शायद ठाकुर ) ,प्रवीण शाह की जाति क्या है ,एबी असहज किस जाति से नमूदार होते हैं ,ताऊ रामपुरिया की जाति क्या है ,समीर लाल को किसी ने बाताया कायस्थ हैं ,अब कई लोग apnee जाती प्रगट कर रहे हैं ,इसके अपने निहितार्थ हो सकते हैं -बाप दादाओं की जाति क्या रही इससे ज्यादा जरूरी है आप इन बातों से ऊपर उठें !
@
जवाब देंहटाएंमैं अपनी टिप्पणी में कुछ और भी जोड़ना चाहूंगी ...
महापुरुषों से हटकर आम इंसान की बात करें तो उनके लिए जाति निरपेक्ष होना आसान नहीं है ...
जब शिक्षा , राजनीति , नौकरी , समाज सेवा आदि के लिए व्यक्तियों का निर्धारण जाति पर आधारित हो , तो किसी भी सामान्य व्यक्ति का जाति से निरपेक्ष होना मुश्किल है ...
अभी हमारे देश में जन्म आधारित जाति व्यवस्था ही है ...हमारे देश का कानून भी जन्म आधारित जातियों को ही मान्यता देता है तो , ऐसे में आम इंसान से उसे उसकी जाति से अलग होकर देखना कैसे संभव है
...किसी दिन (असभव सा ही लगता है ) यदि कर्म के आधार पर जातियों का निर्धारण किया जा सका . हमारे नियम ,कानून भी कर्म आधारित जातियों को मान्यता दे सकें ...तब ही आम इंसान इससे निरपेक्ष रह सकेगा ..
महापुरुषों के लिए यह सभव हो सकता है , और वो होते ही कितने हैं ...!
बात चाहे किसी कि भी हो, शर्त यह है कि मुहब्बत की होनी चाहिए. अगर बात इस शर्त के अनुरूप है तो करने दीजिये जिसकी चाहें उसकी बातें.... :-)
जवाब देंहटाएंJason Brown ji se sahmat.
जवाब देंहटाएंसही लिखा आपने लेकिन इस पर कुछ कमेन्ट ऐसे भी पढ़ने को मिले जो दकियानूसी है जाती ना पूछो साधू की पूछ लीजिये ज्ञान
जवाब देंहटाएंवैसे जाति की हीं ग्रंथि ऐसे जातियों में ज्यादा ही परिलक्षित हो रही है जिनकी अधिक चर्चा इतिहास में नही रही है
मैंने भी इस ब्लॉग को पढ़ा दुःख हुआ की ऐसे लोग भी है जो ब्लॉग की इस विधा को इतनी साधारण किस्म की बातो में प्रयोग कर रहे है अतीत के महापुरुषों ने कभी भी ना तो जातीय सम्मेलन कराये ना ही कही अपनी जाति को लेकर आत्म प्रशंसा ही कर डाली
रही बात मिश्रा या अन्य जातिसूचक शब्द नाम में लगाने की तो उस पर लोगो को क्यों आपत्ति है आप किसी मिश्रा या तिवारी की सोच देखे अब इस उम्र में नाम तो कोई बदलने से रहा
एक अच्छी प्रस्तुति आँख खोल देने वाली बधाई स्वीकार करे
आप कबीर वाला ही काम कर रहे है निंदको को नियरे ही रखिये
जी
जवाब देंहटाएंजी
जवाब देंहटाएंजिस प्रकार विश्व भारत को हिन्दू राष्ट्र की दृष्टी से देखता है,वैसे भारत इंग्लैंग को अंग्रेज,अरब को इस्लाम,रोम को रोमन इसराइल को यहूदी दृष्टी से ही देखते है,आप उसी राष्ट्र की गहराई में जाए,विदित होगा वहां भी जातियां है,जाती भेद है।
जवाब देंहटाएंजाती विभाजन,जातिभेद
एक तर्क द्वारा हमें एक उत्तर सामने से प्राप्त हुवा !
पांच उंगलियां बराबर की होती तो जाती भेद ना होता।लेकिन जब पांच उँगलियाँ आपस में मिलती है,तो मुठ्ठ बन जाती है। राष्ट्र पर संकट आए तो हम मुठ्ठ बन सकते है,
परंतु जाती बंधनों से मुक्त नहीं हो सकते।
जिस प्रकार विश्व भारत को हिन्दू राष्ट्र की दृष्टी से देखता है,वैसे भारत इंग्लैंग को अंग्रेज,अरब को इस्लाम,रोम को रोमन इसराइल को यहूदी दृष्टी से ही देखते है,आप उसी राष्ट्र की गहराई में जाए,विदित होगा वहां भी जातियां है,जाती भेद है।
जवाब देंहटाएंजाती विभाजन,जातिभेद
एक तर्क द्वारा हमें एक उत्तर सामने से प्राप्त हुवा !
पांच उंगलियां बराबर की होती तो जाती भेद ना होता।लेकिन जब पांच उँगलियाँ आपस में मिलती है,तो मुठ्ठ बन जाती है। राष्ट्र पर संकट आए तो हम मुठ्ठ बन सकते है,
परंतु जाती बंधनों से मुक्त नहीं हो सकते।
जो जाति है , वो कभी जाती नही । और जो जाती है, वो जाति नही । भारत को इस जातिवाद से मुक्त होने में सदियों लग जायेगी । आपकी बात से सहमत हूँ ।
जवाब देंहटाएंजो जाति है , वो कभी जाती नही । और जो जाती है, वो जाति नही । भारत को इस जातिवाद से मुक्त होने में सदियों लग जायेगी । आपकी बात से सहमत हूँ ।
जवाब देंहटाएं