रविवार, 5 सितंबर 2010

मानस का बोनस -श्रृंखला का समापन!

अन्यान्य सांसारिक कारणों से यह श्रृंखला अधूरी  रह गयी थी -सो वन्दे  वाणी विनायकौ के आह्वान से इसे पूरी करने का संकल्प ले रहा हूँ ...मानस में तुलसी दास जी ने बालकाण्ड के पहले श्लोक में ही ..मंगलानाम च कर्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ कहकर एक नई परम्परा का सूत्रपात कर दिया  - लोक जीवन में गणेश ही प्रथम पूजा के अधिकारी रहे हैं -आज भी किसी भी शुभ काम के लिए श्री गणेशाय नमः लिखने की आम परम्परा है .अब तुलसी का बुद्धि चातुर्य देखिये कि उन्होंने वन्दे विनायकौ ही न कहकर वन्दे वाणी विनायकौ कहा और बुद्धि विद्या की अधिष्टात्री  माँ सरस्वती के प्रति अपना समर्पण व्यक्त किया -तुलसी की कृतज्ञता और विनम्रता की सानी कवि जगत में  कहीं और नहीं मिलती ...सकल कला सब विद्या हीनू  कहने वाला कवि एक कालजयी कृति की रचना  कर बैठता है ..

.अब गुरु के प्रति ही उनकी विनम्रता देखिये ..बंदऊं  गुरु पद पदुम परागा सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ...वे गुरु की चरण धूलि के प्रति भी सहज अनुरागी  हैं ...उसे पराग कणों का दर्जा देते हैं ....वे गुरु का दर्जा सब लोकों से ऊपर रखते हैं ,अलौकिक मानते हैं ...और जब धरती पर उतरते हैं तो कहते हैं -बंदऊं प्रथम महीसुर चरना मतलब धरती के देवताओं में सर्वप्रथम ब्राह्मणों की वंदना करते हैं .मगर कौन ब्राह्मण ? कहते हैं -मोह जनित संशय सब हरना -ब्राह्मण की इतनी सुन्दर और सुस्पष्ट परिभाषा मुझे कही और नहीं मिलती -मतलब हम जब तक खुद ही नहीं वरन दूसरों के  मोह से उत्पन्न शंकाओं का  समाधान करने में समर्थ न हो जायं ब्राह्मण कहलाने के योग्य नहीं है ..अर्थात ब्राह्मण जन्म से नहीं मोह जनित संशय सब हरना-  इस क्षमता से युक्त होने पर होता है ...कर्म से होता है ....यही  ब्राह्मण होने की कसौटी है ...मैं सोचता हूँ कि यह कितना बड़ा मानदंड रख गए बाबा -इस पर कितने ब्राह्मण   खरे उतरते हैं आज? मेरी तरह  कितने ही  जन्मना ब्राह्मण  धरा पर  आये और गए ..मगर 'तुलसी के ब्राहमण' नहीं हो पाए ...केवल बाबा स्वयं ही उस पर खरे उतरते दीखते हैं ....

तुलसी के मानस का पारायण जीवन को सार्थकता देने का एक सहज उपाय है मगर इसमें सहज रूचि ही नहीं हो पाती लोगों की ..इसका रोचक वर्णन तुलसी ने बालकाण्ड में  किया है -मानस पाठ पारायण की कई बाधाएं हैं और जिन्हें इसमें रूचि नहीं है वे इसके पाठारंभ से ही नीद के वश हो जाते हैं ..कोई अद्भुत प्रेरणा ही है जो लोगों में मानस के प्रति प्रेम जगाती है ...बहुतेरे जीवन भर इस महान ग्रन्थ से कन्नी ही काटते रह जाते हैं ...और जीवन की  एक सार्थक सच्चिदानंद  अनुभूति से वंचित रह जाते हैं ...

मानस की प्रस्तावना चकित भी करती है और गहरे  प्रभावित भी ...तुलसी बाबा ने शुरू में ही संदर्भ ,कथा का हेतु,कृतज्ञता  ज्ञापन  आदि पर विस्तार से लेखनी चलाई है -चकित इस लिए होना पढता है कि उन्होंने इस ग्रन्थ की रचना के पूर्व समग्र उपलब्ध साहित्य का बहुत विशद अध्ययन किया है ,संत समागम किया है ....खल वंदना तो बालकाण्ड का एक अद्भुत आकर्षण है ...खल वह जो बिना ही प्रयोजन के अपने हित करने वाले के भी प्रतिकूल आचरण करता है ..उन्होंने ऐसे लोगों की वंदना की है ...मगर यह भी जोड़ने से नहीं हिचके .बायस पलिहीं  अति अनुरागा होहिं निरामिष कबहूँ न कागा -अब सोने के पिजड़े में बड़े ही प्यार से पाला गया कौआ साथी चिड़ियों का  भक्षण थोड़े ही छोड़ देगा...संत असंत की तुलना करते हुए वे कहते हैं -बिछुरत एक प्राण हरि लेहीं मिळत एक दुःख दारुण देहीं ...लेकिन वे इन लोगों को दोष से बरी भी कर देते हैं -विधि प्रपंचु गुन अवगुण साना ..मतलब विधाता ने ही इस संसार को गुन अवगुण दोनों को साथ मिलाकर रचा है -भलो भलायिहिं पै लहईं लहईं निचाहहीं नीचु -भले भलों की ओर आकर्षित होते हैं ..नीच, नीच/नीचता  की ही ओर ..मगर अंततः सभी को राममय जानकर उनकी बंदना करते हैं ..कैसी उदार और व्यापक दृष्टि है तुलसी की ...जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि,बंदऊँ सबके पद कमल सदा जोर जुग पानि ..

उनकी अतिशय विनम्रता के पग पग पर दर्शन होते हैं -कबि न होऊँ नहि बचन प्रवीनू सकल कला सब विद्या हीनू .....एक संशय उनके मन में बना ही रहता है जैसे असहाय होकर कहते हैं पैहहिं सुख सुन सुजन सब खल करिहैं उपहास ....उन्होंने दुष्ट अच्छे लोग ,संत असंत के इतने पहचान के चिह्न दे दिए हैं कि आज भी समाज में उनके जरिये आसानी से इनकी पहचान हो सकती है ...मानस के प्रणयन को यद्यपि उन्होंने स्वान्तः सुखाय बताया है - रचना की सोदेश्यता की बहस पर अपनी छीछालेदर करवाने का निवारण  कर दिया यह घोषित करके .....मगर मानस प्रेमी यह जानता है कि राम कथा जग मंगल हेतू और कीरति भनिति भूति भल सोई सुरसरि सम सब कर हित होई -मतलब रचना तो समाज के हित के लिए ही होनी चाहिए ...

एक पोस्ट के इस छोटे से आलेख में मानस समुद्र की कुछ रस बूंदे ही यहाँ टपक पाई हैं ...अब केवल इस ग्रन्थ के नामकरण पर प्रकाश डाल कर आज विदा लूँगा ! तुलसी कहते हैं राम चरित मानस यहिं नामा ..जिसे रचि महेश निज मानस(ह्रदय)  राखा ..और सुसमय पाकर पार्वती के समक्ष  इस कथा को वे प्रगट करते हैं ..ताते रामचरित मानस बर  ....इसका रूपक मानस सरोवर (मान  सरोवर ) का है जिसकी सात सुन्दर सीढियां(काण्ड )  है जिससे उतर कर ही फिर मानस अवगाहन का सुअवसर मिल पाता है ...मानस के पात्रों ,परिवार समाज के आदर्श ,राजा प्रजा के आत्मीय सम्बन्ध ,राम का सर्वस्व  त्याग, राम भारत के भातृत्व प्रेम /सेवक धर्म की मिसाल - राम को वापस लाने के लिए भरत का यह कहना -सिर बलि जाऊं उचित अस मोरा सबते सेवक धर्म कठोरा ... कई प्रसंग है जिसे हम समय समय पर चर्चा में लायेगें ..और कुछ बेहद उत्कृष्ट चिंतन जैसे कि राम का भारद्वाज से पूछना कि वे कहाँ रुकें और फिर भारद्वाज का जवाब कि चराचर जगत तो आपका है मगर आपने पूछा है तो सुनिए राम आप कहाँ कहाँ रुक सकते हैं ....राम की सौम्यता और बड़ों का सम्मान -वेद पुराण वशिष्ट सुनावहीं राम सुनहिं यद्यपि सब जानहिं और रावण रथी विरथ रघुबीरा की विभीषण की चिंता और राम का जवाब कि रथ किसे कहते हैं -रावण के रथ से धर्म के रथ का विभेद -जिसने गांधी जी को अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने को प्रतिबद्ध कर दिया और वैकल्पिक ब्रह्मांडों में काक भुशुण्डी का भ्रमण और राम न देखेऊ आंन का सत्य बोध कितना कुछ तो है जिसे  आपसे साझा करना है ...मैं यह संकल्प पूरा ही करके विश्राम लूँगा मित्रों -राम काज कीन्हे बिना मोहिं कहाँ विश्राम ....
 

कबीर तुलसी श्रीराम त्रयी और मानस का बोनस -1

तुलसी जयन्ती पर युगद्रष्टा कवि को श्रद्धा सुमन: कबीर तुलसी श्रीराम त्रयी और मानस का बोनस -2

बोलो सियावर रामचंद्र की जय .....कबीर तुलसी श्रीराम त्रयी और मानस का बोनस -3

12 टिप्‍पणियां:

  1. मानस का यह पाठ अद्भुत है......! आगे भी इन्तिज़ार रहेगा आपकी लेखनी के जादू का.

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  2. सियावर रामचंद्र की जय.... पढ़ रहे हैं.. पुरानी श्रंखला छूट गई है, अब वह पढ़ने जा रहे हैं.

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  3. मैं यह संकल्प पूरा ही करके विश्राम लूँगा मित्रों -राम काज कीन्हे बिना मोहिं कहाँ विश्राम ..

    बहुत सही कहा आपने. समय तो प्रभु श्रीराम की कृपा से निकल ही आयेगा. आपको इस कार्य को पूरा करने के लिये हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. मानस विमर्श के बहाने समाज विमर्श और वर्तमान समय में उस समय की जीवन पद्धति की प्रासंगिकता पर आप के विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।
    शुभमस्तु।

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  5. बंदऊं प्रथम महीसुर चरना।
    मोह जनित संशय सब हरना।।

    वाह! अपन तो नतमस्तक हैं।

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  6. बहुत सुन्दर और शानदार प्रस्तुती!
    शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

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  7. बहुत सुन्दर और शानदार प्रस्तुती!
    हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

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  8. इस राममय श्रृंखला ने राम के कुछ अंशों से साक्षात्कार करवाया | आशा है इसी प्रकार समग्र राम के दर्शन होंगे |

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  9. शानदार पोस्ट। बढ़िया मानस विमर्श।

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