फेसबुक पर आज मेरी एक पूर्व परिचिता डॉ .तरलिका त्रिवेदी जो मूलतः गुजराती भद्र महिला और विज्ञान कथाओं की प्रेमी हैं ने नार्सिसस की दुखद दास्तान का जिक्र किया है -नार्सिसस एक सुन्दर यूनानी युवक की मिथक कथा है. वह बहुत सुन्दर है किन्तु खुद पर सहज ही मोहित होने वाली कन्याओं का तिरस्कार उपेक्षा करता रहता है .आखिर प्रतिशोध की देवी नेमेसिस ने उसे सबक सिखाने का मन बनाया -उसे प्रेरित किया गया कि वह सघन जंगल के एक मनोरम झील की ओर जाय ,वहां पहुँच कर नार्सिसस ने अपना मुंह उस झील में निहारा तो अपना चेहरा देख उसे खुद अपने से ही प्रेम -आत्मासक्ति हो गयी ,वह फिर बार बार उसी झील में अपना मुंह देखने को आतुर रहने लगा और एक दिन दुर्घटना का शिकार होकर उसी में गिरकर जांन गँवा बैठा -वह जिस जगह गिरा था वहीं मानो सरोवर की वेदना एक फूल के रूप में मूर्तिमान हो उठी - नार्सिसस का फूल! .इस कथा के कई और प्रतिरूप हैं -मगर आज जो उद्धरण तरलिका जी ने दिया है वह बहुत रोचक है -
कहानी यूं आगे बढ़ती है -नार्सिसस की अकाल मौत से दुखी वनदेवी झील के पास आयीं और उन्होंने पाया कि कभी मीठे जल की स्रोत रही झील अब आंसुओं के खारे पानी में तब्दील हो गयी है -
"तुम क्यों रो रही हो? " झील से वनदेवी ने पूछा.
"ओह उसी नार्सिसस की याद में ..." झील का जवाब आया .
"आखिर तुम्हे दुःख क्यूं न हो ..वह सब कुछ छोड़ केवल तुम्हारे पास ही तो आता था ..एक तुम्ही तो थी जो उसकी अतुलनीय सुन्दरता का सामीप्य पा सकी थी ...आखिर तुम्हे फिर दुःख क्यों न हो ..." वनदेवी ने सांत्वना भरे शब्द कहे ..
"..लेकिन .....क्या नार्सिसस सुन्दर था ? झील के स्वर में किंचित विस्मय था ..
"आखिर यह तुमसे बेहतर और कौन जान सकता है ? " ... अब चौकने की बारी थी बनदेवी की ..
कुछ क्षण नीरवता छाई रही ..झील चुप थी ..आखिर कह ही पडी ...
"मैं नार्सिसस के लिए रो जरूर रही हूँ मगर मैंने कभी यह ध्यान ही नहीं दिया कि वह सुन्दर था ...मैं तो इसलिए उसकी याद कर रो रही हूँ कि जब भी वह नीचे झुक कर मुझमें अपना चेहरा निकट से निहारता था तो उसकी आँखों की गहराई में मैं खुद अपना छवि देख देख कर निहाल हो जाती थी ...
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कितनी अजीब सी और दुखांत कथा है न ...जो यह भी इंगित करती है कि सुन्दरता तो देखने वाले की निगाह में कैद हो रहती है -झील का दुर्भाग्य (या सौभाग्य यह आप निर्णीत करें ) कि वह निकटस्थ नार्सिसस का सौन्दर्यपान नहीं कर सकी -इतना आत्मकेंद्रित थी वह और वैसा ही हतभाग्य था नार्सिसस जो खुद के अलावा किसी और का सौन्दर्य नहीं सराहता था -इस बेरुखी और अनमनेपन से एक दुखांत कथा जनम गयी ...कहीं कहीं हम भी इसी तरह के आत्मकेंद्रण का शिकार हो समूचा जीवन निष्फल कर जाते हैं ..खैर .....
बात केवल इतनी ही नहीं थी जो मेरी इस पोस्ट का हेतु बनी -पूरी कहानी पढ़ते पढ़ते मुझे नर्गिस के फूल की याद आई और मुझे लगा कि कहीं न कहीं नार्सिसस का नर्गिस के फूल से कोई सम्बन्ध जरूर है ..और यह बात सच है ....अपनी इस खोज पर मैं अभिभूत हूँ ..कोई गलत तो नहीं .....! अल्लामा मुहम्मद इकबाल ने यह पूरी दास्तान जरूर पढी होगी -और उनके मन में नर्गिस के अभिशप्त फूल (नार्सिसस की अंतिम परिणति ) की याद रही होगी -
नर्गिसी सौन्दर्य :अभिशप्त या प्रशंसित ? (इस लिंक पर कुछ और नर्गिसी सौन्दर्य का पान करें )
जिसे शायद अपने पूर्व जीवन में सौन्दर्य के प्रति बेरुखी और आत्मरति का चिरन्तन पश्चाताप है -
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा''
(सौजन्य :बेनामी )
यह शायद उसे प्रतिशोध की देवी का शाप है -ज्यादातर लोगों द्वारा न देखे जाने का -प्रशंसित न किये जाने का ..मैंने भी नर्गिस का फूल नहीं देखा मगर यह होता खूबसूरत है ...मगर प्रशंसक बाहुल्यता से वंचित है .....मैं यह कथा तब नहीं जानता था जब मैंने पहली बार इस शेर की व्याख्या के लिए ब्लॉगजगत को क्लांत किया था -खूब चर्चा हुई थी तब यहाँ वहां ..और वहां यहाँ आज उसी चर्चा का एक और पहलू जुड़ रहा है और मेरा दिल बाग़ बाग है ..समय मिले तो पूरी चर्चा का आनन्द उठायें और फिर आज की इस पोस्ट को दुबारा पढ़ें :)
"कहीं कहीं हम भी इसी तरह के आत्मकेंद्रण का शिकार हो...." "अपनी इस खोज पर मैं अभिभूत हूँ ..कोई गलत तो नहीं" हमें बड़ा डर लग रहा है कहीं आप भी नार्किसस की राह पर चलने का इरादा तो नहीं रख रहे हैं? -:) सुन्दर पोस्ट. आभार.
जवाब देंहटाएंवाह नार्किसस और नर्गिस के बारे में पहली बार पढ़ा, ये नर्गिस का फ़ूल तो हमने भी कहीं नहीं देखा आज तक।
जवाब देंहटाएंएक पुष्प में इतना कुछ।
जवाब देंहटाएंमैं तो इसलिए उसकी याद कर रो रही हूँ कि जब भी वह नीचे झुक कर मुझमें अपना चेहरा निकट से निहारता था तो उसकी आँखों की गहराई में मैं खुद अपना छवि देख देख कर निहाल हो जाती थी .......रोमांचित कर गयी यह पंक्तियाँ और फूल तो यह खूबसूरत है ही ...नया ही जाना इसके बारे में ...शुक्रिया अरविन्द जी
जवाब देंहटाएंये नर्गिस का फूल डीफ़ोडेल्स को कहते हैं ..नहीं पता था ..यहाँ तो बहुत मिलते हैं ये लोग अपने घरों में सजाते हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सी जानकारियां मिली ..शुक्रिया.
फूल बहुत हैं नर्गिस के
जवाब देंहटाएंअपने इस हिन्दी ब्लागिरी में.
निष्कर्ष 1:
जवाब देंहटाएंआत्ममुग्धता -> रुदन
आदमी हो या झील
निष्कर्ष 2:
दर्पण विहीन समाज में त्रासदी काफी likhee जाती है
हजारों साल नर्गिस जब अपनी बेनूरी पर रोती है
जवाब देंहटाएंतब कहीं होता हैं चमन में कोई दीदावर पैदा arvind mishra
"हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा'
ikbaal
शुक्रिया अनामी ,इस भूल अहसास था -सोचा कोई सुधी जन ठीक ही कर देंगें और इसी बहाने एक टिप्पणी मिल जायेगी!:)
जवाब देंहटाएंअब याददाश्त का क्या बड़ी बेवफा है ,ऍन वक्त पर साथ जोड़ देती है मुई !!
फिर से शुक्रिया !
शेर को दुरुस्त करने के लिए बेनामी जी का शुक्रिया. माँ कसम, बेनामी हमेशा गलत बातें नहीं बोलते. कभी-कभी शेर भी ठीक करवा देते हैं.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया बेनामी जी. आज आपने बेनामियों का मान बढ़ाया.
शुक्रिया मिश्र जी, आपने बेनामी की बात मानकर बेनामियों का मान बढ़ाया.
सब ऐसे ही बेनामियों का मान बढ़ाते रहे तो बेनामी का भी थोड़ा नाम हो जाएगा.
शेर तो वाकई ग़ज़ब का है ।
जवाब देंहटाएंउसकी आँखों की गहराई में मैं खुद अपना छवि देख देख कर निहाल हो जाती थी ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी बहुत अच्छी पोस्ट ....आभार
मैं अनुष्का .....नन्ही परी
ये नर्गिस के फ़ुल मेरे गार्डन मै बहुत होते है सर्दी खत्म होते ही टूलपन के संग...... लेकिन हमे नही पता था कि यह ही नर्गिस के फ़ुल हे, आप का धन्यवाद, बहुत सुंदर विवरण
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी ....और झील के आंसू ...कथा अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंक्या बात है पंडिज्जी आज काफी भावुक औ काफी फिलासफरनुमा ख्याल दे डाले हैं आपने ! पर्सनली ये पोस्ट अपने दिल के करीब सी लगी ! कहीं हमारी सोहबत का असर तो नहीं ? याकि पिछले कुछ दिनों की कड़वाहट का :)
जवाब देंहटाएंइस फूल पर चर्चा अभी कुछ दिनों पहले ही प्रेम पत्र के लेखक से हुई थी.
जवाब देंहटाएंपोस्ट का मज़ा,बेनामी की बात और अली सा की टिप्पणी ने और बढ़ा दिया!!
जवाब देंहटाएंडैफोडिल्स को ही नर्गिस कहते हैं यह बताने के लिए धन्यवाद.पोस्ट अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंshukriya is jaankaari ko yahan baantne ke liye
जवाब देंहटाएंवक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।
जवाब देंहटाएंनिर्विध्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
@ झील में निहारा तो अपना चेहरा देख उसे खुद अपने से ही प्रेम ..."
जवाब देंहटाएंकहां है जी वो झीळ :)
Like this post.
जवाब देंहटाएंThis shows softer side of your personality.
appreciate it.
"Narcissism ,in Psychiatry is a personality disorder characterized by the patient's overestimation of his /her own appearance and abilities and an excessive need for admiration.
जवाब देंहटाएंGood to read this post .
veerubhai .
नार्किसस सी एक कथा मैंने भी पढ़ी.अपने प्रियतम की प्रतीक्षा करते हुए नायक प्राण त्याग देता है.दम निकलते समय उसकी एक अंतिम इच्छा होती है, ईश्वर से कहता है -'मेरी आँखे खुली रखना बहार आने तक......वो जाते हुए कह गई थी वो फिर आएगी जब वादियों में बहारे लौटेगी'
जवाब देंहटाएंपर....वो नही आई.कहते है वह प्रेमी नर्गिस का फूल हो गया.उसकी पंखुडियां और बीच की आकृति खुली आँखों सी प्रतीत होती है.
जिसे लौट कर न आना था ....वो नही आई पर....आज भी नार्किसस की आँखे -नर्गिस के फूल के रूप में -'उसकी' प्रतीक्षा में खुली है.बहारे हर साल आती है चली जाती है.पर....जाने कब खत्म होगी उस प्रियतम उस प्रेमी की प्रतीक्षा.मुझे तो कभी वो राधा लगता है और कभी......... खुद ..... इंदु.
निःसंदेह वो हर युग में जन्म लेता है और हर जन्म में उसके भाग्य में प्रतीक्षा ही आती है.
किसी ने लिखा है.मैं अक्सर पढ़ती सुनती हूँ-
' मरना मरना हर कोई आखे,
ते मैं वी आक्खा मरना ,
जिस मरने तो पेलो मेल न् होवे
उस मरने दा की करना,
वक्त अखिरी होवे मेरा ,
मेरा मुरों से वल करना,
इक गल रखनायाद या मेरी,
मेरी अँखियाँ बंद न करना
शायद मेरा सोणा आवे
मैं दीदार हुजुर दा करना........................'
बहुत मार्मिक कथा है.फिर एक लहर मुझे दूर तक बहा ये लिए जाती है ऐसा ही कुछ लिखा है आपने.
मेरे कृष्णा भी हर बार मेरी गोद चुनते हैं.आते हैं ........चले जाते हैं.यशोदा बनने का सौभाग्य देते हैं राधे सी तडप दे जाते हैं. प्रतीक्षा दोनों रूपों में खत्म नही होती मेरी. देखती हूँ नार्किसस नही मरा सर जी! वो तो मुझमे जीता है आज भी........नर्गिस वादियों में भी तडपती है और...यहाँ भी. दोनों की आँखे खुली रहेगी अंत समय तक.क्या लिखूं.
आंसू बहना बंद करे तो ............क्या कुछ और नही कहना चाहती हूँ मैं.............
नर्गिस के फूल के बारे में तो नहीं जानता,पर सुंदरता तब अभिशप्त हो जाती है जब वह प्रशंसित नहीं होती,कोई चाहने वाला नहीं होता !
जवाब देंहटाएंइन्दुजी ने सारी दास्ताँ बयान कर दी,मैं तो निःशब्द हूँ !