...कृष्ण भारतीय लोकमानस के नायक हैं उन्होंने सब कुछ ईमानदारी से किया,राधा से प्रेम ,गोपियों से प्रेम -वह व्यभिचार नहीं था -शुद्ध सात्विक प्रेम था ...लोकमानस आज भी राधा कृष्ण कथा को दिल से लगाये हुए है . भागवत में रसिया कृष्ण.... छलिया कृष्ण .....मनबसिया कृष्ण की छबियाँ उभरती हैं .....अब कहाँ है वह कृष्ण और राधा का उदात्त प्रेम ? सच मानिए प्रेम सच्चे निर्विकार दिल के लोग कर सकते हैं जिनके दिल में टुच्चई भरी हो प्रेम उनके वजूद को स्पर्श नहीं करता ..कभी भूले कर भी जाता है तो फिर उच्चाटन भी शीघ्र हो जाता है ..मैंने आपने सभी ने प्रेम किया है परिणतियाँ जो भी हुई हों ...जो अभागा है प्रेम उसे रिक्त कर गया ...हम तो इसी कृष्ण रस में ही सराबोर हैं -यही जीवन्तता की उर्जा है यही इस कलि काल में जीवन का अवलंबन हैं .मूरख नहीं समझते ...जीवन की बढ़ती विभीषिकाओं के इस दौर में जीवन के प्रति यह प्रेम ही आशा जगाता है ,जिलाए चलता है ..हमारे हरि हारिल की लकड़ी ...अभागे हैं वे लोग जो इस अनुभूति से वंचित रह जाते हैं ...प्रेम मन और ह्रदय की उदात्तता है ....कलुष नहीं ....प्रेम को जब भी कटघरे में रखा जाएगा वह निर्दोषता को उजागर करने खुद नैसर्गिक मदद के रूप में आ जायेगा ...
मुझे तो राधा कृष्ण का यह रूप ही जंचता है -और तुम्हे ?
जीवन में खुद और अपने रिश्तों के प्रति ईमानदार रहो ..कोई किसी से जबरदस्ती प्रेम नहीं करता ..कर भी नहीं सकता .....यह हो ही जाता है ...इससे बड़े ऋषि मुनि नहीं बचे तो हम साधारण मार्टल्स की क्या औकात -चीयर अप कि आप किसी से प्रेम करते हैं और कोई आपको प्रेम करता है -यह गहरे मन की अनुभूति है ,चौराहे पर टंटा करने की नही.वे बदनसीब हैं जिनसे कोई प्रेम नहीं करता ..हैं न ?
पुनश्च :
इस पोस्ट के एक टिप्पणीकार और अप्रतिम मेधा के धनी युवा कवि राजेन्द्र स्वर्णकार जी जिनके भाव -शब्द मन में गहरे उतरे हैं और देर तक अपनी मौजूदगी बनाए रखने में समर्थ हैं को महाकवि देव की एक प्रसंगगत कविता समर्पित कर रहा हूँ आप भी आन्नद लें :
कोउ कहो कुलटा कुलीन अकुलीन कहौ
कोउ कहो रंकिनी कुलंकिनी कुनारी हौ
कैसो परलोक नर लोक वर लोकन में
लीन्हों मैं अशोक लोक लोकन ते न्यारिहौं
तन जाऊ मन जाऊ देव गुरु जन जाऊ
जीव क्यों न जाऊ टेक टरत न टारिहौं
वृंदा वनवारी वनवारी की मुकुट वारी
पीत पट वारी वाहि मूरत पे वारिहौं
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इस पोस्ट के एक टिप्पणीकार और अप्रतिम मेधा के धनी युवा कवि राजेन्द्र स्वर्णकार जी जिनके भाव -शब्द मन में गहरे उतरे हैं और देर तक अपनी मौजूदगी बनाए रखने में समर्थ हैं को महाकवि देव की एक प्रसंगगत कविता समर्पित कर रहा हूँ आप भी आन्नद लें :
कोउ कहो कुलटा कुलीन अकुलीन कहौ
कोउ कहो रंकिनी कुलंकिनी कुनारी हौ
कैसो परलोक नर लोक वर लोकन में
लीन्हों मैं अशोक लोक लोकन ते न्यारिहौं
तन जाऊ मन जाऊ देव गुरु जन जाऊ
जीव क्यों न जाऊ टेक टरत न टारिहौं
वृंदा वनवारी वनवारी की मुकुट वारी
पीत पट वारी वाहि मूरत पे वारिहौं
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गहन चिन्तन। प्रेम की गहराई बहुत अधिक है, तल बिरले ही छू पाते हैं। जो छू पाते हैं, बाहर आना नहीं चाहते।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंकृष्ण का राधा से प्रेम ही लोगों को ज्यादा क्यों रुचता है ...क्यूकी इसमें सुविधा है ..?
जवाब देंहटाएंकोई देवकी , यशोदा , मीरा , सुभद्रा , अर्जुन या द्रौपदी के साथ कृष्ण के रिश्ते को याद क्यों नहीं करता ...!
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी और पर्युषण पर्व की शुभकामनायें! [वैसे राधा नाम की नारी का वर्णन न तो महाभारत में है और न ही हरिवंश पुराणादि में।]
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण...जय श्री कृष्ण...जय श्री कृष्ण...जय श्री कृष्ण...जय श्री कृष्ण...जय श्री कृष्ण...जय श्री कृष्ण...जय श्री कृष्ण...जय श्री कृष्ण...जय श्री कृष्ण...जय श्री कृष्ण...
जवाब देंहटाएंसोचता हूँ, आज ‘दूसरी राधा’ क्या कर रही होंगी।
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कोई कन्फ़्यूजन और बवाल खड़ा हो इससे पहले ही स्पष्ट कर दूँ कि मेरा आशय पुर्व पुलिस अफ़सर डी.के.पण्डा से है। :)
उदात्त प्रेम के लिए समाज में अवस्था है क्या? क्या कृष्णभक्त भी उस उदात्त प्रेम को बर्दाश्त कर सकेंगे।
जवाब देंहटाएंहर मन में एक कृष्ण है , हर मन में एक राधा है । इंसान इंसान से प्रेम करने लगे तो आज चारों ओर राधा कृष्ण नज़र आएंगे । लेकिन ऐसा हो तभी तो ।
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें ।
वाणी जी ,
जवाब देंहटाएंजाकी रही भावना जैसी ...
अनुराग जी कह रहे हैं महाभारत में राधा नहीं है -तो भी लोक जीवन ने उन्हें प्राण प्रतिष्ठा दी
.......मुझे तो कृष्ण का यह राधामय रूप ही उपास्य लगता है बाकी नटवरलाल के विविध रूप हैं किसी में मन रचा लीजिये
आपको कौन सा रूप अच्चा लगता है -सामने बताईये ..अब तो महिलाओं से चैट में भी रूह काँप जायेगी .
सिद्धार्थ जी ,
जवाब देंहटाएंडी के पंडा का तो मैं नहीं जानता -मगर दूसरी राधा कोप भवन में हैं !
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जवाब देंहटाएं.
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जीवन में खुद और अपने रिश्तों के प्रति ईमानदार रहो ..कोई किसी से जबरदस्ती प्रेम नहीं करता ..कर भी नहीं सकता .....यह हो ही जाता है ...इससे बड़े ऋषि मुनि नहीं बचे तो हम साधारण मार्टल्स की क्या औकात -चीयर अप कि आप किसी से प्रेम करते हैं और कोई आपको प्रेम करता है -यह गहरे मन की अनुभूति है ,चौराहे पर टंटा करने की नही... वे बदनसीब हैं जिनसे कोई प्रेम नहीं करता... हैं न ?
बहुतेरी गालियाँ खाये हैं हम...बहुतों को नसीब वाला बनाया/बनाये हुऐ हैं... अब आप आज सरेआम हमें बदनसीब कह रहे हो... कोई बात नहीं... कभी तो नसीब सुधरेगा... ;))
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Great and very nice. impressive and meaningful Thanks again.
जवाब देंहटाएंकृष्ण प्रेम मयी राधा
जवाब देंहटाएंराधा प्रेममयो हरी
♫ फ़लक पे झूम रही साँवली घटायें हैं
रंग मेरे गोविन्द का चुरा लाई हैं
रश्मियाँ श्याम के कुण्डल से जब निकलती हैं
गोया आकाश मे बिजलियाँ चमकती हैं
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये
प्रेम कहां निर्विकार रह पाता है अरविंद जी
जवाब देंहटाएंजब अपेक्षाएं व आकांशाए हावी होने लगती है।
वाणी जी नें सही कहा।
अनुराग जी ने तथ्य प्रस्तूत कर दिया।
"राधा प्रेम हमारी सुविधाओं की उपज है।"
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं
सुन्दर प्रस्तुति. श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनांए.
जवाब देंहटाएंKYA BAAT HAI ..... AAJ DONO LEKH PAR TIPPNI NAHI AAEE....
जवाब देंहटाएंAPNE LEKH AUR OOSPAR AAEE TIPPANI PAR GOUR KAREN...EK KOLAJ HAI PATHAK VARG KA AAPKE PRATI....ISE TOOTNE NA DE...
AUR HAN PLEASE PLEASE PLEASE DEV(SHIV JI KE TIPPANI PAR SHANT CHHITT SE GUNE.
SADAR PRANAM.
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंगहन चिन्तन,श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये...!
जवाब देंहटाएंप्रेमपूर्ण पहलू पर गहन चिन्तन...
जवाब देंहटाएंकाश कोई इस प्रेम में डूब पाये
राधा कृष्ण का प्यार तो बहुत महान था, लेकिन हमारे पोंगा पडितो ने ओर आज के फ़ुलहड भजनो ने उसे भी गंदा कर दिया, वेसे तो प्यार शव्द ही अपने आप मै महान है.... लेकिन आज इस के मायने ही बदल गये.बहुत सुंदर लिखा आप ने धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
आज मीरा याद आ रही हैं:
जवाब देंहटाएंसखी मोरी नींद नसानी हो।
बिन देख्या कल नाहिं परे चित ऐसी घनी हो।
अंतर्वेदन विरह की वह पीर न जानी हो।
मीरा व्याकुल विरहनी सुध बुध बिसरानी हो।
मोरी नींद नसानी हो।
...
कब मिलोगे?
कब कबीर सा गाने को मिलेगा -
दुलहिनी गावहु हो मंगलाचार
हमरे घर आए राजा राम भरतार!
कब मिलोगे?
मोरी नींद नसानी हो।
कृष्ण ही राधा है और राधा ही है कृष्ण .इस बात को वही समझे जो प्रेम को समझ पाए ..अच्छा लगे आपके इस विषय पर विचार जन्माष्टमी की बधाई आपको
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण जन्माष्ठमी की बहुत-बहुत बधाई, ढेरों शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंराधे..राधे.. जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
इसपर टिप्पणी कभी बाद में ! फिलहाल जन्माष्टमी की शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमहाराज पहले त ई बतावा जाय के, कहाँ के कृष्ण.. अउर काहे की राधा ?
जवाब देंहटाएंदुःशासन द्रारा एक का चीरहरण तो दुनिया ने देखा महाभारत,
कन्हाई ने असँख्य गोपियों का वस्त्रहरण किया, सो वह श्रीमद्भागवत की कहानियाँ होय गईं ।
मनई करे तो व्यभिचार, ऊई करें तो लीला ?
मनुष्य कभी निष्काम रह भी पाया है, जो श्रीकृष्ण के सम्मुख खड़ा होना चाहता है ?
रहा होगा राधा और कृष्ण में दिव्य प्रेम, उसका वर्णन साहित्य की दृष्टि से तो ठीक लगता है, पर इस उद्दात अलौकिक प्रेम में लोककल्याण की ऎसी कौन सी दृष्टि है कि, इसे महिमामँडित किया जाता रहे !
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और यह मॉडरेशन विरोध-पट्टी !
जवाब देंहटाएंई टिप्पणी बक्सन के कउन चाल-चलन बा हो, जईसे दुबरे के दुआरे कऽ ज्यौनार ?
गरिया से एतना डेराला हो.. त टोला के चौपाल में बईठ के बतकही लगावा, मरदे !
अरविंद मिश्र जी
जवाब देंहटाएंअब कहाँ है वह कृष्ण और राधा का उदात्त प्रेम ? पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया ।
संक्षिप्त होने के उपरांत भी सारगर्भित सुंदर आलेख है ।
मेरी चंद लाइनें आपको समर्पित करने को मन हो आया है …
राधा के दिल में शम्अ मुहब्बत की जलादी
हर इक अदा कमाल की शाइस्तगी रही
कन्हैया बिरज छोड़' मथुरा - द्वारका चला
बरसों तलक बिरज में बजती बांसुरी रही
महबूब का फ़िराक़ सह सकी न मा'शूक़ा
राधा के चश्म फिर सदा नुमू नमी रही
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर मंगलकामनाएं ! शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
कृष्ण का बाल रूप , भाई और सखा भाव ही मुझे सबसे अधिक लुभाता है ...
जवाब देंहटाएंवे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मित्र थे ...
अर्जुन , सुदामा और द्रौपदी के साथ उनकी मित्रता ...पवित्रतम रिश्ता ...
मित्रता के नाम पर जो कुछ घमासान मचा हुआ है , उन्हें कृष्ण को याद करना चाहिए ...
@ चैट पर निरर्थक वार्तालाप से बचना/डरना ही चाहिए , वो चाहे स्त्री हो या पुरुष ..!
@डॉ अमर,
जवाब देंहटाएंआपकी दृष्टि और अंदाजे बयां की बलिहारी ...ऐसे ही आपको युग पुरुष थोड़े ही माना जाता है .
मैं समझता हूँ लोक कल्याण के मुद्दे पर प्रजनन और वंश परम्परा के सनातन लक्ष्य को भी कसौटी पर लिया जय
मानव विकास में कई ऐसे कालखंड आये जब जनसंख्या विलुप्ति की सीमा तक जा पहुँची -
इसलिए प्रजनन महिमामंडित होता रहा -शिव पार्वती की लोक रंजक कथाओं और कृष्ण राधा प्रेम और अन्यान्य आख्यानों में बस यही प्रतीति है -यह रामयुग के बाद की बाते हैं ...हम वही स्मृति शेष लिए है ..विस्तार हो जाएगा इसलिए यही रोकता हूँ !
राजेन्द्र जी आपके भाव -शब्द मन में गहरे उतरते हैं और देर तक अपनी मौजूदगी बनाए रखने में समर्थ हैं !
जवाब देंहटाएंमहाकवि देव की कुछ पंक्तियाँ आपको समर्पित -
कोउ कहो कुलटा कुलीन अकुलीन कहौ
कोउ कहो रंकिनी कुलंकिनी कुनारी हौ
कैसो परलोक नर लोक वर लोकन में
लीन्हों मैं अशोक लोक लोकन ते न्यारिहौं
तन जाऊ मन जाऊ देव गुरु जन जाऊ
जीव क्यों न जाऊ टेक तरत न टारिहौं
वृंदा वनवारी वनवारी की मुकुट वारी
पीत पट वारी वाहि मूरत पे वारिहौं
यह कविता मैं मूल ब्लॉग पर भी दे रहा हूँ आपकी टिप्पणी की सुखद स्मृति के लिए ....
सुन्दर और सार्थक चिन्तन। आपको श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये। बहुत दिनो बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय अरविंद मिश्र जी
जवाब देंहटाएंआपके स्नेह और बड़प्पन के आगे नतमस्तक हूं ।
मैं तो बहुत तुच्छ रचनाकार हूं
महाकवि देव को और उनकी लेखनी को
साक्षात् दंडवत प्रणाम है । मैं इस कवित्त को सहेज कर रख रहा हूं ।
कवित्त बहुत ही प्रेरक छंद होता है । और किसी के लिए हो न हो मुझे नव सृजन के लिए तुरंत आमंत्रित करता है ।
अरविंदजी , आपके लिए …
गोविंद की सौं है अरविंद , अरविंद सो है ,
नियम आचार तेज संयम प्रकाशी है !
ज्ञानी , है विज्ञानी , संतजन - सा है ध्यानी ,
पूरा सागर विराट ; न कि बूंद ये ज़रा - सी है !!
लघु का भी मान करे , गुणी का सम्मान करे ,
सुना था कि कृष्ण के सदृस महारासी है !
राजेन्द्र कसौटी बिन परखे है खरा सोना ,
कृष्ण - सा ही योगी , कर्मवीर ये संन्यासी है !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
( दिन भर बिजली की आंखमिचौली के कारण आपके यहां दुबारा आने को तरस गया ।)
राजेन्द्र जी ,
जवाब देंहटाएंस्नेहाभिवादन ,
अभिभूत हूँ ,.आप जैसे मेधावी और सहृदय व्यक्ति के चलते ही जीवन में आस्था बनी रहती है ..
क्या आपके ब्लॉग पर आपके रचनाओं की ई मेल सब्सक्रिप्शन है है ?
बहुत आभार
अरविन्द
कृष्ण-राधा का प्रेम लोकमानस का, जनमानस का प्रेम है, विशुद्ध प्रेम...जिसमें देह अनुपस्थित नहीं है, परन्तु मात्र देह नहीं... एक-दूसरे के प्रति अनन्य समर्पण भाव है...तन-मन दोनों का समर्पण... जहाँ अहं तो है, पर स्वार्थ नहीं...निःस्वार्थ प्रेम
जवाब देंहटाएंऔर हाँ, सबसे बढ़कर इसमें दोनों का सामान स्थान है... जो कि भक्ति में नहीं होता... मीरा का प्रेम भक्ति है...राधा का नहीं... दोनों पक्षों की पूर्ण सहमति सबसे बड़ी बात है...
@ डॉ. अमर कुमार, द्रौपदी के चीर-हरण का प्रेम से कुछ लेना-देना नहीं है...क्योंकि ये उसके अपमान के लिए हुआ था...प्रेम के लिए नहीं.