अभी कुछ ही दिन बीते जब प्रियेषा कौमुदी मिश्र (बेटी जो दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्ययनरत है ) ने मुझसे रात में फोन कर कहा कि मुझे वह शान्ति पाठ नहीं याद आ रहा है जो मैंने इलाहाबाद में महर्षि पातंजलि विद्यालय में सीखा था ...मैंने कहा इन दिनों जब तुम्हारा इम्तहान चल रहा है तो फिर पाठ्य पुस्तकों के अलावा सहसा ये शान्ति पाठ की जरूरत क्यूं ? उसने कहा मुझे उसकी ध्वनि बहुत अच्छी लगती थी और जब भी मैं उनका सस्वर पाठ करती थी तो मुझे बहुत अच्छा लगता था .इस समय मूड फ्रेश करने के लिए पठन पाठन के अंतराल में मैं शान्ति पाठ करने की सोच रही हूँ .माँ बाप बच्चों की सद इच्छा पूरी करते ही हैं -सो मैंने फोन पर ही उपनिषदों से/के कुछ चुनिन्दा शांति पाठ उसे सुनाने शुरू किये -
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ॥
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः । व्यशेम देवहितं यदायुः ॥
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ॥
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ तन्मामवतु तद् वक्तारमवतु अवतु माम् अवतु वक्तारम्
ॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः॥।
(यह अथर्ववेदीय शान्ति पाठ है ,अर्थ है ॐ हे देवगण!हम कानो से कल्याणरूप वचन सुने . हम नेत्रों से शुभ दर्शन करें, .सुगठित अंगों एवं शरीर से जब तक आयु है देवहित में स्तवन करते रहें . महान कीर्ति वाला इंद्र हमारा कल्याण करे .विश्वका जानने वाला सूर्य हमारा कल्याण करे .आपत्तियां आने पर चक्र के समान घातक गरुण हमारा कल्याण करें.बृहस्पति हमारा कल्याण करे ,ॐ शान्ति शान्तिः शान्तिः )
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः । व्यशेम देवहितं यदायुः ॥
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ॥
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ तन्मामवतु तद् वक्तारमवतु अवतु माम् अवतु वक्तारम्
ॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः॥।
(यह अथर्ववेदीय शान्ति पाठ है ,अर्थ है ॐ हे देवगण!हम कानो से कल्याणरूप वचन सुने . हम नेत्रों से शुभ दर्शन करें, .सुगठित अंगों एवं शरीर से जब तक आयु है देवहित में स्तवन करते रहें . महान कीर्ति वाला इंद्र हमारा कल्याण करे .विश्वका जानने वाला सूर्य हमारा कल्याण करे .आपत्तियां आने पर चक्र के समान घातक गरुण हमारा कल्याण करें.बृहस्पति हमारा कल्याण करे ,ॐ शान्ति शान्तिः शान्तिः )
"नहीं पापा नहीं यह वाला नहीं "
"च्च ..तब कौन कुछ तो याद होगा ?"
"नहीं बिलकुल याद नहीं ,पहला शब्द ही याद आ जाता तो तो मुझे पूरा याद न हो आता "
" हूँ यही तो है तोता रटंत का परिणाम ,तुम्हे अर्थ सहित याद रखना चाहिए "
" अबसे अर्थ के साथ याद कर लूंगी ..पहले याद तो आये .."
अच्छा तो क्या यह है- ॐ सह नाववतु ......
वह खुशी से मानो उछल पडी हो ,हमने आगे का शान्ति पाठ साथ साथ किया ..आईये आप भी ज्वाईन करें -
ॐ सह नाववतु ।
सह नौ भुनक्तु ।
सहवीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु ।
मा विद्विषावहै ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
सह नौ भुनक्तु ।
सहवीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु ।
मा विद्विषावहै ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
(ॐ ... परमेश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ साथ रक्षा करे ....हम दोनों को साथ साथ विद्या के फल का भोग कराये ,हम दोनों एक साथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें ,हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो ,हम दोनों परस्पर द्वेष न करें ..
ॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः॥।कृष्ण यजुर्वेदीय )
अच्छा हुआ यह दूसरे नंबर का शांति पाठ ही प्रियेषा का इच्छित पाठ था ..नहीं तो पिता -पुत्री का यह शान्ति -अन्वेषण रात्रि - शान्ति का कुछ अतिक्रमण तो जरूर करता ..मैंने उसे बताया कि ऐसे कई शान्ति पाठ हैं तो उसने सहर्ष कहा कि मैं गर्मी की छुट्टियों में उन सभी को अर्थ सहित याद कर लूगीं -आखिर वह एक अच्छी बेटी जो है ...अगले एक मई को आने वाली है -संध्या मिश्र उसकी आगवानी में जुट गयीं हैं .....आखिर माँ का दिल जो ठहरा ......
मैंने यह शांति पाठ यहाँ डालना चाहा ,ब्लॉग जगत को भी इसकी निरंतर बड़ी जरूरत है .
यह शांति पाठ तो मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय के गुरू-शिष्यों के लिए अधिक सारगर्भित लग रहा है:)
जवाब देंहटाएंक्योंकि यहॉं इसकी नितांत आवश्यकता है-
परमेश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ साथ रक्षा करे ....हम दोनों को साथ साथ विद्या के फल का भोग कराये ,हम दोनों एक साथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें ,हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो ,हम दोनों परस्पर द्वेष न करें .. ॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः॥।कृष्ण यजुर्वेदीय
शांति पाठ केवल कर्ण प्रियता के लिये किये जायें ! फिर उनके अर्थ भी स्मृतियों में सहेज लिये जायें मेरे लिये इतना पर्याप्त नहीं है ! क्या यह संभव है कि हम उन्हें अपने जीवन में भी उतार लें ?
जवाब देंहटाएंपुत्री का आगमन शुभ हो ! सहमत हूँ कि ब्लाग जगत को इसकी आवश्यकता है !
कृपया शीर्षक सुधार लें
जवाब देंहटाएंजीतेन्द्र भगत जी के पीछे हाथ जोड़ कर शांतिपाठ में खड़ा हूँ ! कुछ और भी बोलते तो अच्छा लगता !
जवाब देंहटाएंशांति पाठ को पढ़कर अच्छा लगा रोज उच्चारण करते हैं परंतु पढ़ा कई दिनों बाद :)
जवाब देंहटाएंशांति पाठ को पढ़कर अच्छा लगा रोज उच्चारण करते हैं परंतु पढ़ा कई दिनों बाद :)
जवाब देंहटाएंमानसिक शान्ति का आनन्द प्राप्त करने के लिए और मन को व्यर्थ की उलझनों में फँसने नहीं देने के लिए इस तरह के शांति पाठ बल प्रदान करता है।
जवाब देंहटाएंॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः॥।
सच कहा आपने "ब्लॉग जगत को भी इसकी निरंतर बड़ी जरूरत है।"
बहुत अच्छा लगा यह पोस्ट। दिल से आभार।
सही है, अच्छा है...अब से मैं भी करूँगी शान्ति पाठ...पर मुझे याद ही नहीं होते...बस सुनने में अच्छे लगते हैं...प्रियेषा की रुचि है इनमें जानकर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंI used to bribe Goddess Saraswati during my exams.....
जवाब देंहटाएं"Nattwa Saraswati devi , Shuddhayaam, Gunayaam.....Pariniya Praveshay, Laghu-siddhant, kaumudeem !
Jo bhi ho,pita putri ka kitna sundar rishta ujagar hua hai!
जवाब देंहटाएंॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः॥।
जवाब देंहटाएं-बस यह जप लग गया है!!
बिटिया के आगमन के पूर्व बधाई. यह तो विशेष पर्व है. किसी शान्ति मन्त्र की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए.
जवाब देंहटाएंऊपर के दो लम्बे लम्बे पाठ तो याद ही नहीं हुए, लेकिन ॐ शान्तिः शान्ति शान्ति ठीक है।
जवाब देंहटाएंश्लोक के साथ अर्थ देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंब्लौगर मित्र, आपको यह जानकार प्रसन्नता होगी कि आपके इस उत्तम ब्लौग को हिंदीब्लॉगजगत में स्थान दिया गया है. ब्लॉगजगत ऐसा उपयोगी मंच है जहाँ हिंदी के सबसे अच्छे ब्लौगों और ब्लौगरों को ही प्रवेश दिया गया है, यह आप स्वयं ही देखकर जान जायेंगे.
जवाब देंहटाएंआप इसी प्रकार रचनाधर्मिता को बनाये रखें. धन्यवाद.
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
जवाब देंहटाएं--शान्त होकर इतना भी पाठ कर लिया जाय तो आनंद मिलता है।
ॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः॥
जवाब देंहटाएंये ठीक है कि ब्लॉगजगत को इसकी आवश्यकता है ....हमें भी ...
पिता-पुत्री का यह आत्मीय संवाद पढना अच्छा लगा ...
मेरे ख्याल से सर साफ़ नीयत, कम उलझन, सादा जीवन ही मूल शांति मंत्र है
जवाब देंहटाएंॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः॥।
जवाब देंहटाएंईस्वर हमारी और आपकी शान्ति कामना जरूर पूरी करेंगे। बस मन लगाकर जपना जरूरी है।
कृपया ईस्वर को ‘ईश्वर’ पढ़ें
जवाब देंहटाएं@ईश्वर की कृपा से एक और टिप्पणी तो मिली !
जवाब देंहटाएंऊं शांति। सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ते थे बचपन में। ये शांति पाठ रोज़ाना पढ़ते थे।
जवाब देंहटाएं@आपका व्यक्तित्व बोलता है यूनुस !
जवाब देंहटाएंअद्भुत शान्ति है इसमें ।
जवाब देंहटाएंइस शांति पाठ की सबको ही जरूरत है.
जवाब देंहटाएंमाँ का दिल तो बाट जोह ही रहा होगा,बेटी भी कम उत्सुकता से छुट्टी की राह नहीं देख रही होगी.....अपने हॉस्टल के दिन याद आ गए ,जब हम दस दिन पहले से कबर्ड पर लकीरें खींच देते थे और सोने से पहले एक लकीर मिटा दिया करते थे...और अंतिम लकीर मिटा घर चले जाते थे.
बहुत ही उम्दा पोस्ट , सच कहा आपने आज ब्लोग जगत को और जगत को भी इसकी बहुत जरूरत है ।
जवाब देंहटाएंॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
जवाब देंहटाएंयह तो हमारी सनातन परम्परा रही है.
जवाब देंहटाएंसभी माँ-बाप एक जैसे ही होते हैं.. है ना?
जवाब देंहटाएंद्यौ: शांति:
जवाब देंहटाएंपृथ्वी शांति:
ओषधय: शांति:
वनस्पतय: शांति:
सर्व शांति:
....
...
चाणक्य धारावाहिक का यह प्रारम्भ पाठ याद हो आया। कहीं से ऑडियो मिल जाय तो लगा दीजिए।
संगीतसुलभ, छ्न्दबद्ध और लयात्मक होने के कारण इन मंत्रों का मन पर प्रभाव बहुत स्थायी हो जाता है।
प्रियेषा कौमुदी मिश्र को स्नेहाशीर्वाद।
"ॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः॥।"
जवाब देंहटाएंलगातार उच्चरित होते रहने वाले शब्द हैं यह ! इनका प्रभाव स्थायी हो !