अप्रैल माह में ही चिलचिलाती भयंकर धूप ,गर्मी के थपेड़ों ने बनारस के जन जीवन को जहां बेहाल कर रखा है -मनरेगा के काम में धूप गर्मी की परवाह किये बिना औरतें भी हाड तोड़ परिश्रम कर रही हैं -मैंने बनारस के हरहुआ ब्लाक के उंदी गाँव में कड़ी धूप में महिलाओं को भी पुरुषों से कन्धा से कन्धा मिलाकर काम करते हुए देखा और मानव जिजीविषा के आगे नतमस्तक हो गया -आसमान से बरसती आग और चमड़ी को जला सी देने वाली मिट्टी को वे काट खोद कर अपने सर पर उठाये हुए दिख रही हैं जबकि पारा ४५ डिग्री तक जा पहुंचा है -यह दृश्य अब आम है ...यह है नारी शक्ति और उत्साह का साकार होना .....और नारी की पुरुष के आगे बराबरी का हक़ का जोरदार इज़हार!
मनरेगा का बढ चढ़ कर काम करती औरतें -ग्राम उंदी, बनारस
वह शारीरिक शक्ति में भी पुरुष से पीछे नहीं है और न ही परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ सर पर उठाने में नाकाबिल ...वह आगे बढ़कर चुनौतियों और अवसरों का लाभ उठाने में अब पुरुषों से कतई पीछे नहीं हैं ...आलसी, निकम्मे पुरुषों अब चेत जाओ ,नारी शक्ति अब मुखर है -अब सामाजिक और राजनीतिक हस्तक्षेपों के लिए भी पूरी तौर पर तैयार हैं ...उसे कम कर आंकना आज एक बड़ी भूल है ...मैंने अपने निरीक्षण में यह भी देखा कि पुरुषों की अपेक्षा वे अपने काम में ज्यादा सिन्सियर,और केन्द्रित है और उन्हें अपना काम और लक्ष्य भली भांति मालूम होता है ...वे प्रश्नों को सही सही समझती हैं और सटीक उत्तर देती हैं जबकि साथ के पुरुष मजदूर कई बार पूछे गए सवाल का सही मतलंब ही नहीं समझ पाते और आयं शायं बकते हैं -हमें सचमुच इस नारी शक्ति को सलाम करना होगा और प्रशंसा करनी होगी .
उन्हें कड़ी मिट्टी काटते और खोदते देख मैं तनिक विचलित भी हुआ -यह भी दिमाग में आया कि हाय मनुष्य की परिस्थितियाँ उससे जो न करा दें -सुकोमल हाथ क्या कुदरत ने इतना कठोर /कडा काम करने के लिए बनाया है -मगर उनके चेहरों पर एक प्रतिबद्धता और आत्मविश्वास की झलक ने मेरे मन में सहज ही आ गये ऐसे भावों को तिरोहित कर दिया ..जब उनमें ऐसा कोई दौर्बल्य नहीं है तो फिर इस पर क्या सोचना ....उन्हें मजदूरी के केवल सौ रूपये ही रोज मिलते हैं जो की आज की महंगाई के हिसाबं से क्म है -जब अरहर की दाल आज करीब सौ रूपये किलो मिल रही है -१०० रूपये की कीमत आखिर है ही क्या ? मगर यह उनके परिश्रम से कमाया हुआ धन है ,आत्मविश्वास और ईमानदारी की कमाई है जो करोडो रूपये की काली कमाई से लाख गुना बेहतर है ...वो कहते हैं न जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान !
नारी शक्ति तुझे सलाम !
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
-
Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
लगता है पुरुषों के दिन लदने वाले हैं।
जवाब देंहटाएंवह तोडती थी पत्थर
जवाब देंहटाएंदेखा था उसे मैंने
इलाहबाद के पथ पर
वह तोडती थी पत्थर !
अरविन्द जी,आपने सही मुद्दा उठाया !
मनरेगा तो ठीक है लेकिन क्या कभी हमने सोचा कि उस महिला को कितनी मेहनत करनी पड़ती है ? सुबह उठी पूरे घर के लिए खाना बनाया , चौका चुल्हा पानी , और फिर मनरेगा ???????????
कई बार मुझे लगता है कि पुरुष सामाजिक / पारिवारिक दायित्वों के मामले में किंचित कामचोरी का रवैयाः अपनाता है उसका देहबल स्त्रियों को धमकाने और स्त्रियों द्वारा मेहनत से अर्जित की गई पूंजी को व्यसन पूर्ति का ज़रिया बनाने में व्ययीत होता है देश के ज्यादातर हिस्सों की तरह बस्तर में भी पितृ सत्ता वाला समाज है पर सच पूछिये तो यहां कन्या के जन्म को पुत्र के जन्म की तुलना में ज्यादा सेलिब्रेट किया जाता है कारण केवल दो ! एक तो वही आपका मनरेगा , कि स्त्रियां धन अर्जित करें और पुरुष शराबखोरी में लिप्त पड़ा रहे , दूसरा ये कि उसकी औकात स्त्रियों से कमतर आंकी गई है और उसे शादी के लिए स्त्रीधन का जुगाड़ करना जरुरी हो जाता है नि:संदेह पहला कारण दूसरे कारण के लिए उत्तरदाई है !
जवाब देंहटाएंमैं जब भी स्त्रियों को हाड़ तोड़ मेहनत करते देखता हूँ तो सोचता हूँ कि जब वो गर्भवती थी तो उसने किसी निठल्ले की वज़ह से किसी भावी निठल्ले का बोझ उठाया और अब उसे जीवित रखने के लिये अभिशप्त सी यत्नरत ! मैं ये नहीं कह रहा कि दुनिया के तमाम मर्द इस श्रेणी में आते हैं पर यह तो तय है कि ऐसे मर्दों की संख्या कम भी नहीं है ! ज़ाहिर है स्त्रियां केवल आधी आबादी ही नहीं हैं वे आधे से भी ज्यादा हैं ! मेहनत ...सामाजिक दायित्व बोध और समझदारी ...कहां कहां गिनूं जहां वे अग्रिम पंक्ति में ना हों !
यह महिलाएं वाकई बहुत मेहनत कर रही हैं और तिसपर मजदूरी 100 रूपये तो बहुत बहुत कम है।
जवाब देंहटाएंजहाँ तक जूझकर काम करने की बात है, महिलायें किसी से कमतर नहीं ।
जवाब देंहटाएंनर्म कलाइयों को हालात कठोर बना देते हैं।
जवाब देंहटाएंइसी को अनुकूलन कहते हैं।
आज का नायिका चित्रण (भेद ) अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सारगर्भित लेख व विचार . मेरे अपने और जिग्यांसा से जाना है की स्त्रीयां मर्दों के मुकाबले ज्यादा मेहनती और जिम्मेदार होती हैं .हाँ अपवाद भी हो सकते हैं .
जवाब देंहटाएंयह भी सच है कि उनके श्रम को हर पुरुष प्रधान समाज में अक्सर कमतर आँका जाता है.
नरेगा अगर भ्रष्टाचार मुक्त हो जाये तो देश की तस्वीर बदल जाये .
नारी शक्ति पर अच्छी प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंआपने ठीक कहा है, स्त्रियाँ अपने काम के प्रति ज्यादा सिंसेर होती हैं.
जवाब देंहटाएंकामचोर पुरुषों से हजार गुना सही हैं.
जवाब देंहटाएंmahilaon ke prati karuna drishti?
जवाब देंहटाएंGhar mein sab raji-khushi to hai na?
Smiles !
स्त्री की इसी मेहनत से डरे पुरूष उसे विधायिका में बराबर का अधिकार नहीं देना चाहते
जवाब देंहटाएं@ zeal
जवाब देंहटाएं:)
:) :)
:) :) :).......
चलिये...आपने माना तो कि महिलाएँ शारीरिक रूप से भी पुरुषों से कमतर नहीं होतीं, नहीं तो जैविक निर्धारणवाद के पीछे हाथ धोकर पड़े रहते हैं. अली जी की टिप्पणी सटीक है. पुरुष औरतों की इस शक्ति का फ़ायदा उठाने से भी नहीं चूकता. मज़दूर वर्ग में ये ज्यादा होता है. हमारे हरवाह हरिकेस भी पीकर टुन्न रहते थे. और तो और उनकी पत्नी मज़दूरी करके जो कमाती थीं, वो भी छीनकर दारू पी जाते थे. ये एक घर का नहीं बल्कि हर तीसरे घर का किस्सा है.
जवाब देंहटाएं@ zeal
जवाब देंहटाएं@गिरिजेश राव
:))
मगर यह उनके परिश्रम से कमाया हुआ धन है ,आत्मविश्वास और ईमानदारी की कमाई है जो करोडो रूपये की काली कमाई से लाख गुना बेहतर है ..
जवाब देंहटाएं--सीधी-सच्ची बात।
नारी-शक्ति को सलाम करती इस पोस्ट के लिए बहुत आभार ....
जवाब देंहटाएंमनरेगा की मेहरबानी है ...:)
अच्छी पोस्ट ...!!
आज की वस्तविकता को दर्शाता ये लेख बहुत ही सुंदर है।
जवाब देंहटाएंमेहनत और लगान के आगे हर कठिनाई दूर हो जाती है...कुछ ऐसा ही यहा देखने को मिलता है..महिला पुरुष से तनिक भी कम नही है यह सच भी है...उनके हौसले को सलाम करता हूँ...बहुत बढ़िया प्रसंग...धन्यवाद अरविंद जी
जवाब देंहटाएंपता नहीं, मैने पढ़ा कि मनरेगा लोगों को काहिल/अकर्मण्य बनाने का रास्ता बताता है।
जवाब देंहटाएंइसका सत्यापन बाकी है।
सही मुद्दे को लेकर आपने बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! महिलाएँ इतनी तकलीफ़ उठाकर दिनभर काम करती हैं पर उसके बदले उन्हें बहुत ही कम पैसे मिलते हैं जो नाइंसाफ़ी है! उम्दा पोस्ट!
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
उन्हें मजदूरी के केवल सौ रूपये ही रोज मिलते हैं जो की आज की महंगाई के हिसाबं से क्म है -जब अरहर की दाल आज करीब सौ रूपये किलो मिल रही है -१०० रूपये की कीमत आखिर है ही क्या ?
आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,
अच्छा सवाल उछाला है, अगर यह मजदूरी बढ़रगी तो खेत में काम करने वाले मजदूर की मजदूरी भी बढ़ जायेगी, परिणाम स्वरूप दाम भी बढ़ेंगे... पर क्या हमेशा अपनी और सिर्फ अपनी ही सोचने वाला हमारा मध्य वर्ग इसके लिये तैयार है ? विचित्र विधवा विलाप तो नहीं कतने लगा फिर से !
.
जवाब देंहटाएं.
.
'कतने लगा'= 'करने लगेगा' पढ़ा जाये।
बहुत ही बढ़िया आलेख...आज महिलायें शारीरिक श्रम से भी नहीं घबरातीं...पर कई जगह मजदूरी उन्हें पुरुषों से कम मिलती है जबकि मेहनत समान रूप से करती हैं..
जवाब देंहटाएंवक्त बदलने वाला है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
लवली के कमेन्ट को मेरा भी कमेन्ट माना जाय ..
जवाब देंहटाएंऐसी और चर्चाएँ आयें तो और मजा आये ..
हाँ आज तीन पोस्ट पहले वाले अर्थ जी नहीं आ रहे हैं अर्थ - विषयक जानकारी हेतु ?
किस 'earth' पर भ्रमण - रत हैं ? कितने miles चले गए होंगे ? आखिर A से Z तक की यात्रा ( आंग्ल-परिप्रेक्ष्य में )
भी करनी पड़ती है न ? / !
मेहनतकश महिलाएं हैं.घर चलाना है इन्हीं को..पत्थर तोड़ने के अलावा इनके पास कोई और विकल्प नहीं है ये इनकी मजबूरी ही होगी.
जवाब देंहटाएंफोटो मे केवल 9 महिलाओ को देख कर आप दयाद्र हो गये मनरेगा मे महिलाओ का भी पन्जीयन होता है यदि काम ना दिया जाय तो मुसीबत की क्यों नही काम मिला और काम कराया जाय तो मुसीबत कि हाड्तोड मेहनत के बाद मात्र 100 रुपये मज्दूरी
जवाब देंहटाएंमनरेगा यहा सफ़ल है कि नही मज्दूरो को 100 रू मिल भी रहे है कि नही कि उन पर भी गिध द्रिष्टि लगी हुई है विचारणीय विन्दु यह है कार्य स्थल पर शेड और पानी की सुविधा नही दिख रही है यह नियमो की अवहेलना है सिस्टम की खामी साफ़ दिख रही है जो चित्र से बया हो रही है
वैसे मेरा अनुमान है कि इन 9 महिलाओ मे से कम से कम 5 के पति भी इसी साईट पर काम कर रहे होंगे मजबूरी मे कभी कभी महिला और पुरूष दोनो परिवार के लिये कमाते है वरना पुरूष मानसिकता चाहे ग्रामीण हो या शहरी महिला को काम करने की इजाजत नही देता ऐसा नही है कि इन सारि महिलाओ के पति कामचोर या शराबी ही होगे हमे तो इनके हौसले और जज्बे का सम्मान करना चाहिये कि इन्होने पेट की खातिर कोई अन्य साधन नही अपनाया जैसा कि शहरो मे हो रहा है श्रमेव जयते
आपकी काम प्रशंसक द्रिष्टिकोण के हम कायल हो गये
आलसी, निकम्मे पुरुषों अब चेत जाओ
जवाब देंहटाएंभाईसाहब , इन्हे चेतना होता तो कब के चेत जाते । हमारे यहाँ छत्तीसगढ़ में यही मजदूर औरते अब शराबबन्दी के लिये भी आन्दोलन में लगी है ।