विदा तिरुवनंतपुरम .....रेलवे स्टेशन का एक हिस्सा ..
२६ मार्च ,२०१० ,तिरुवनंतपुरम से विदाई का दिन था .कन्याकुमारी मुम्बई सुपरफास्ट ट्रेन से १०.३० बजे चलकर २ बजे तक एर्नाकुलम/कोचीन पहुँचने का कार्यक्रम बना .दक्षिण भारत के प्रायः सभी स्टेशन बहुत साफ़ सुथरे होते हैं , तिरुवनंतपुरम तो और भी नीट एंड क्लीन है -यहाँ की साफ़ सफाई देखकर मन प्रमुदित हो गया .यहाँ ट्रेनें भी अमूमन समय से ही चलती हैं -हमारी ट्रेन भी समय पर आ गयी और हमने सी आफ करने आये मित्रों और तिरुवनन्तपुरम को विदा फिर आयेगें कहते हुए आगे को प्रस्थान किया . ट्रेन से केरल की कंट्री साईड दृश्यावली बहुत मोहक लगती है -मैंने अपने फोटोकैम से कई चित्र लिए ,सभी एक से बढ कर एक ..एक यहाँ भी चेप रहा हूँ -ट्रेन के भीतर जो भी खाने की सामग्री पैंट्री के बेयरे ला रहे थे वे सब भी एक से बढ कर एक सुस्वादु, लाजवाब! -मैंने थोड़ा बहुत सभी को चखा और अपने दल को भी खिलाया -दल वाले भी अब तक मेरे चटोरे स्वभाव को भांप गए थे और मेरी अनिच्छा के बावजूद (अरे बाबा कोई कितना खायेगा !) कुछ न कुछ लेकर मुझे खिलाते रहे -चने और मूंग के बड़े ,बनाना फ्राई .. यम यम .....ओह कई का नाम याद नहीं ..अब मुझे खाने पीने और मन रंजन के दीगर मामलों से भी कभी भी ऊब नहीं होती -न तो मैं कर ही नहीं पाता न ....क्या करें पेट तो भर जाता है मन ही ससुरा नहीं भरता ...बहरहाल हमने इस सुदीर्घ भोजन सेशन का पुरलुत्फ समापन वेज बिरयानी से किया ..यह भी यम यम और लो जी एर्नाकुलम आ गया ..कुछ अड़चने यहाँ इंतज़ार कर रही थीं ...
ईश्वर का खुद का घर क्यों न हो इतना सुन्दर....
हमने चलने के पहले मत्स्यफेड केरल के जरिये केरल सरकार से कोचीन की राजकीय अतिथिशाला में अपने दल के रुकने का आवेदन किया था -मगर वहां से तो टरका दिया गया ..हम आवासीय व्यवस्था के लिए थोड़ी देर दर दर और डर डर भटकते रहे और इस दौरान स्टेशन के ही समीप बी टी एच -भारत टूरिस्ट होटल और एम एन होटल में सभी का आवासीय जुगाड़ हो गया (सिफ़ारिश भारत होटल की है! यह सस्ता और कम्फर्टेबल है ) .अब मुझे याद आया कि श्रीमती जी की एक फरमाईश पूरी करनी थी -एक ख़ास मसाला लेना था जो उन्होंने इसके पहले के कोचीन प्रवास में लिया था और उसका स्टाक कब का ख़त्म हो चुका था. जो बनारस या आस पास के शहरों में उपलब्ध नहीं हो पाया -मैंने उन्नी कृष्णन से उसका चित्र बनाकर नाम जान लिया था -अनीस फूल -या anise star ....यह एक अद्भुत मसाला है और सबसे बड़ी बात यह है कि चीन में स्वायिन फ़्लू की एक मात्र प्रभावशाली दवा टामीफ्लू (oseltamivir )इसी मसाले से व्यापारिक स्तर पर प्राप्त शिक्मिक अम्ल से बनती है -भारत में यह मसाला नाम मात्र का ही उत्पादित होता है और हम इसे चीन से ही बड़े स्तर पर आयातित करते हैं .हो सकता है इसका प्रयोग आम सर्दी जुकाम में भी कारगर होता हो -इस बार इसे चेक करते हैं .बहरहाल मैंने इस मसाले की पर्याप्त मात्रा खरीद ली -यहाँ कोचीन में मसालों की बड़ी बड़ी दुकाने हैं और एक ज्यूज स्ट्रीट ही इसके नाम पर विख्यात है .मेरी देखा देखी मेरे दल के सभी सदस्यों ने दूसरे मसालों के साथ अनीस फूल की अच्छी खासी मात्रा भी खरीद डाली -इससे वे भी पहले से परिचित नहीं थे -चित्र यहाँ लगा रहा हूँ ताकि आप अपने शहर के मसाला दुकानों पर इसकी पड़ताल कर सकें .
अब मुझे इस यात्रा सम्पूर्णंम का जो सबसे महत्वपूर्ण चरण किसी अनुष्ठान की शुचिता के साथ पूरा करना था वह ब्लॉग जगत के जाने माने चिठेरे (चिठेरे=नामकरण साभार ज्ञानदत्त जी ) डॉ जे सी फिलिप शास्त्री जी से मिलना था ..अरे वही अपने सारथी वाले शास्त्री जी ....और मैं उनसे मिलने के उपक्रम में लग गया .....
अगला अंक महामिलन ......
केरल यात्रा की यादे मन को सुहाई! ख़ास हमारे गुरुदेव से आपकी का सचित्र वर्णन पढना चाहूँगा !
जवाब देंहटाएंइति सप्तमोSध्याय:
जवाब देंहटाएंमसाला तो ले लिया, इसका खाने में प्रयोग भी बताएँगे ? आशा है मेरा स्टॉक भी ले लिए होंगे।
क्षमा करे ! भूल सुधारे
जवाब देंहटाएंख़ास हमारे गुरुदेव से आपकी मुलाक़ात सचित्र वर्णन से पढना चाहूँगा !
महावीर
सुखद रहा है पूरा वृत्तान्त.
जवाब देंहटाएंसच मे ईश्वर का घर सुन्दर है।और हां खुदा का नेक बंदा शास्त्री जी भी तो वंहा रहता है।चलिये आपको उनसे मिलने का सौभग्य मिला,भेंट के बारे मे बताईयेगा विस्तार से।
जवाब देंहटाएंमन का क्या है..! अपनी गति से लुभावनी चीजों के प्रति आसक्ति दिखाता है । हां ! अनीस फूल के बारे में ज्ञानवर्धक जानकारी के लिये आभार...!
जवाब देंहटाएंतिरुअनन्तपुरम् का स्टेशन तो सच में बहुत साफ-सुथरा है. अनीस स्टार के बारे में विस्तार से बताने के लिये धन्यवाद. थोड़े अनीस स्टार इधर भी भिजवा दीजियेगा. वैसे आपने बताया नहीं कि आपके यहाँ ये कौन सी डिश में प्रयुक्त होता है?
जवाब देंहटाएंMai kabhi Keral nahi ja payi..aapka yah sachitr warnan dekh-padhke phir wo ichha hilore marne lagi hai..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वर्णन रहा इस यात्रा का । कोई यदि प्रेरित हो दक्षिण दर्शन का कार्यक्रम बनाये तो बंगळुरु में स्वागतार्थ मेरी सेवायें प्रस्तुत हैं ।
जवाब देंहटाएं@मुक्ति और गिरिजेश,
जवाब देंहटाएंअपुन के गिरोह के बहुतै आलसी हैं आप दूनौ जने -थोड़ा गूगलिंग करिए न !
हम यही सोच रहे थे कि केरल यात्रा के विवरण में अभी तक शास्त्री जी का प्रवेश क्यों न हुआ। कल उन के जन्मदिन पर उन से बात हुई तो पता लगा आप लोग उन से मिले थे, लेकिन बिलकुल आखिरी पड़ाव के रूप में। महामिलन की रिपोर्ट का इंतजार करते हैं।
जवाब देंहटाएं@Girijesh,Mukti,
जवाब देंहटाएंhttp://www.indianspices.com/html/s0625staranise.htm
@ क्या करें पेट तो भर जाता है मन ही ससुरा नहीं भरता...
जवाब देंहटाएं--------------------------सही बाभन नहीं लग रहे आप :)
हम जैसों का तो मन भर जाता है पर पेटवा भराए भी नहीं
भरता .. अगस्त्य का खोंम्हा कहाँ भरने वाला !
उधर दूसरी ओर प्रिय पात्र सुदामा भी पीछा नहीं छोड़ते , गोया मूठी बाँध
के यही कह रहे हों कि लो 'इसी तीन मूंठी में जीत लो दुनिया जहान ' , यह
सब तो मन भरने से ही हुआ होगा न , पेट भल्हूँ खाली रहे !
.
महामिलन देखने की प्रतीक्षा है , पर साजिश तो यह बताती है कि कहीं यहाँ
भी मिस केरला जैसा मामला 'ठन ठन गोपाल' न निकल जाय !
.
रोचक है , बस भिंडे रहिये , कष्ट-रण से ही संस-मरण निकलता है !
आपकी केरल यात्रा का संस्मरण बहुत ही रोचक व ज्ञानवर्धक है। अनीस स्टार से कुछ और परिचय कराने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया यात्रा वृतांत रहा. शाश्त्रीजी से आपके बारे मे फ़ोन पर पता चल गया था. अब देखते हैं आप का क्या कहना है? कहीं बलागर्स मीट तो नही निपटा डाली दो महारथियों ने?:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
केरल की हरियाली सचमुच मनभावन है।
जवाब देंहटाएंअच्छा रहा यात्रा वृतांत।
अरविन्द जी , स्वाद वाला एलिमेंट तो है पर वो ...लालित्य वाला गायब क्यों है ? आलेख में कुछ खोया खोया सा लगता है ! आश्चर्य ये है कि मित्रों नें ऐनिस स्टार के चक्कर में इस बाबत कुछ कहा ही नहीं !
जवाब देंहटाएंबढ़िया संस्मरण...आपके साथ साथ हम लोग भी केरल घूम लिए..धन्यवाद
जवाब देंहटाएं'अनीस फूल' की जानकारी वाकई अद्भुत है. अरुणाचल में इसके संबध में और भी जानकारी मिलनी चाहिए. कोशिश करके देखता हूँ.
जवाब देंहटाएं'अनीस फूल' की जानकारी वाकई अद्भुत है. अरुणाचल में इसके संबध में और भी जानकारी मिलनी चाहिए. कोशिश करके देखता हूँ.
जवाब देंहटाएंयात्रा वृत्तांत बहुत अच्छा रहा...और ये अनीस फूल की जानकारी भी...मुंबई में ये बहुतायत से मिलता है..और मराठी में इसे चकरी फूल कहते हैं....और यहाँ गरम मसाले में अन्य मसालों के साथ इसके पाउडर का सम्मिश्रण भी रहता है,पाव भाजी में इसका उपयोग जरूर करते हैं....एवरेस्ट के गरम मसालों में इसका स्वाद मिलता है...ये स्टॉक ख़त्म हो जाए तो पत्नीश्री को एवरेस्ट के गरम मसाले उपयोग करने की सलाह दे सकते हैं.
जवाब देंहटाएंफूल चकरी की जानकारी प्राप्त हुई ..रश्मि की टिप्पणी ने जानकारी में इजाफा किया ...
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