नाश्ते पानी के थोड़ी देर बाद ही उन्नीकृष्णन साहब मिलने को आ गए .साईंस फिक्शन की बाते हुईं -हिन्दी और साईंस फिक्शन की एक ही महादशा हिन्दुस्तान में चल रही है -दोनों भाषावाद के शिकार हैं! मैंने उन्नी से तिरुवनंतपुरम में जल्दी ही एक साईंस फिक्शन गोष्ठी करने का सुझाव दिया -उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. मतलब जल्दी ही एक और केरल भ्रमण पक्का .मैंने उनसे अपनी एक उधेड़बुन की भी चर्चा की -मैं अपने विगत दो केरल भ्रमण में कोवलम नहीं जा सका था -यात्रा का प्लान ही ऐसा बनता था कि कन्याकुमारी के चक्कर में कोवलम छूट जाता था -इस बार मैने कोवलम देखने का पक्का इरादा कर लिया था मगर मेरा दल पूरे विद्रोह पर उतारू था -उन्नी ने कहा कि वे शाम को मुझे लेकर कोवलम चलेगें -कोवलम का समुद्र तट /बीच शहर से महज १६ किलोमीटर की दूरी पर है .-अब थोडा प्रशासनिक कूटनीति का सहारा लेना पड़ा और डिवायिड एंड रूल से दल दो फाड़ हो गया .एक कन्याकुमारी दल दूसरा कोवलम दल! कभी कभी या इधर मैं अक्सर सोचने लगता हूँ कि आखिर मैं हूँ क्या ? एक सहज साधारण सा मानुष या फिर कूटनीति का माहिर या कुटिल प्रशासक या इनमें सब कुछ एक ही देह- मन में भरा हुआ सा या फिर एक सीधा साधा सा निरीह ब्लॉगर ? फैसला आप सुधी जन ही करें!
एक निस्तेज सा अनरोमांटिक कोवलम का सूर्यास्त
बहरहाल एक दल -दक्षिणपंथी तो कन्याकुमारी रवाना हो गया ..दूसरा वामपंथी मेरे साथ और बाकी अदृश्य शक्तियां मेरे पीछे हो लीं ..हम रवाना हुए कोवलम के लिए -कितने मंसूबे और फंतासियाँ थीं (वो वाली नहीं जो आप समझ रहे /रही हैं ) मन में कोवलम के साक्षात प्रथम दर्शन का रुमान भरा हुआ था -मगर उतना ही निराश भी हुआ मैं -बेहद फालतू सा बीच है कोवलम -पर्यटन -प्रचार ने तिल का ताड़ बना रखा है बस =अफ़सोस हुआ कन्याकुमारी न जाकर ..कन्याकुमारी बार बार जाने लायक है चिर प्राचीन और चिर नवीन -हर वक्त का एक कन्टेम्पररी क्लासिक! वैसे तो उम्र के इस पड़ाव पर सब कुछ अब एक तरह से मन माने की ही बात हो चला है - बोले तो सम सार्ट आफ मेक बिलीव्स आनली ...मगर कन्याकुमारी व्यामोहित करता है -रोमांचित करता है -तीन तीन सागरों का मिलन, भारत का आख़िरी बिंदु ,विवेकानन्द शिला ,सूर्य की प्रथम रश्मि से झिलमिला पड़ने वाली कन्याकुमारी (अनवेड पार्वती ) की हीरे की नथ... सब कुछ एक ऐन्द्र्जालिक प्रभाव का सृजन करते हैं ..मगर यहाँ कोवलम में तो कुछ भी ऐसा नहीं था ....सूर्यास्त भी अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सका -शायद मनुष्य मनःस्थिति का दास होता है -क्या मेरी मनःस्थिति ही एक नैसर्गिकता के साथ सिनेर्जी नहीं कर पा रही थी या कोवलम ऐसा ही है निस्तेज और वीरान सा! जो भी हो आपको जब भी कोवलम और कन्याकुमारी का विकल्प परेशांन करे याद रखियेगा -आपको रुख कन्याकुमारी का ही करना है .
कोवलम तट पर तीन तिलंगे ...बाएं शोभना और दायें उन्नीकृष्णन
कोवलम से मन जल्दी ऊब गया -शाम तिर आई थी ....हम वापस हो लिए -उन्नी ने एक शानदार दावत देकर साईंस फिक्शन भातृत्व का धर्म निभाया -सलाम उन्नी ! हम भी याद रखेगें आप को!
कल सुबह कोचीन की तैयारी करनी थी .....अपने ब्लॉगर श्रेष्ठ शास्त्री जी का कोचीन ...मतलब एर्नाकुलम !
जारी ...
अच्छा यात्रा विवरण। कन्याकुमारी ठीक है लेकिन केरल गया तो कोवलम भी अवश्य ही जाना चाहूँगा। शायद यही देखने कि आखिर अरविंद जी निराश क्यों हुए।
जवाब देंहटाएं"कितने मंसूबे और फंतासियाँ थीं (वो वाली नहीं जो आप समझ रहे /रही हैं )"
जवाब देंहटाएंमिश्र जी आप लाख सफाई दें पर हम मानने वाले नहीं हैं हम वही समझ रहे हैं जिसके लिए आप झूठ मूठ में मना कर रहे हैं ! आप भी मान क्यों नहीं लेते कि आपकी पोस्ट का लालित्य स्रोत वही है उसके बिना आपकी पोस्ट बांचते हुए ऐसा लगता है गोया हम भी सफ़ेद कपडे पहन कर आये हुए हैं ! तो प्रभु मूल सुर और पोस्ट की कमनीयता से छेड़छाड़ जनता बर्दाश्त नहीं करेगी समझे आप ?
कोवलम बीच के बारे में तो खूब सुना पढा देखा था आज आपने उसके एक नए रूप से ही परिचय करवा दिया । दोनों को छोड कर जो अदृश्य शक्तियां आपके पीछे पडी उन्होंने यात्रा संस्मरण बहुत ही अद्भुत लिखवाया है आपसे , कन्याकुमारी का विकल्प ही चुनेंगे हम भी ..आगे सस्नेह ..प्रतीक्षा रहेगी ...
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
कभी कभी ऐसा होना स्वाभाविक है कि अपेक्षा के अनुरूप प्रकृति से सामंजस्य नहीं हो पाता ..! फिर भी कुछ अलग सा अनुभव अवश्य ही जुड़ जाता है साथ में..!
जवाब देंहटाएंपड़ाव अच्छा रहा !
आभार !
आप निरीह ब्लागर भले ही हों लेकिन उम्र का प्रभाव आप पर शोभना और उन्नी से कम ही नज़र आता है और तस्वीर देख कर तो कम से कम कोई आपको निरीह ब्लागर नही कहेगा।वैसे बहुत सुन रखा था कोवलम के बारे मे,आपने तो निपटा ही दिया केरला टूरिज़्म को।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रहा यहां तक का यात्रा वृतांत. अब शाश्त्रीजी के साथ आपके मिलन के विवरण की प्रतिक्षा है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
यात्रा वृत्तांत के अगले चरण की प्रतीक्षा है।
जवाब देंहटाएं@ आखिर मैं हूँ क्या ? एक सहज साधारण सा मानुष या फिर कूटनीति का माहिर या कुटिल प्रशासक या इनमें सब कुछ एक ही देह- मन में भरा हुआ सा या फिर एक सीधा साधा सा निरीह ब्लॉगर?
जवाब देंहटाएंइतनी निर्ममता से अपनी ही चीर फाड़ ! ना भैया ना, सब झेल नहीं पाते।
@ एक निस्तेज सा अनरोमांटिक कोवलम का सूर्यास्त
आदमी अपने मनोभावों को प्रक्षेपित कर देता है कभी कभी दृश्यावली पर। वहाँ किसी चट्टान पर बैठ पानी में पैर डाल छपकारी देना था। शायद समुद्र का स्नेह स्पर्श मन मधु कर देता। अब तो आप चूक गए।
फिर क्या हुआ ?
@किया तो था -उसी से तो थोड़ी राहत मिली थी और मिले थे असंख्य सिलिका कण कुछ तो यहाँ तक भी आ गए हैं !
जवाब देंहटाएंकिसने सरापा....जरूर कन्याकुमारी जानेवाले बंधुओं ने...:)
जवाब देंहटाएंरोचक संस्मरण
कोवलम कन्याकुमारी के जैसा खूबसूरत तो नहीं है ...मगर है समंदर का किनारा ही ...इसलिए इतना निस्तेज भी नहीं ....
जवाब देंहटाएंसरापा देने वाले को रश्मि ने खूब पहचान लिया है ..:):)
रोचक संस्मरण ...!!
शायद मनुष्य मनःस्थिति का दास होता है -
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी , शायद नहीं , निश्चित तौर पर।
कोवलम बीच को भारत में सबसे सुन्दर बीचों में माना गया है।
लेकिन एन्जॉय करने के लिए सही संगी साथी का होना भी तो ज़रूरी है।
कन्या कुमारी की विशेषता तो यही है वहां तीन तीन सागर एक साथ मिलते हुए नज़र आते हैं ।
लेकिन जिस बिंदु पर ये नज़ारा नजार आता है वहां खड़े होकर आपको और भी बहुत कुछ नज़र आएगा।
टिप ऑफ़ इण्डिया --छोटा सा किनारा --रेत और पत्थर --उनके बीच जगह जगह पड़ा ह्युमन एक्सक्रिता।
जी हाँ , जोहड़ का किनारा लगता है । बड़ा मूड खराब हुआ था सुबह ५ बजे , जब हम सूर्योदय देखने वहां पहुंचे।
अब तो आप समझ गए होंगे कि अफ़सोस नहीं करना चाहिए ।
बहुत सुंदर जी, आप की यात्रा का विवरण बहुत सुंदर लगा हम भी कभी मोका मिला तो जरुर इधर घुमने आयेगे, सुंदर चित्रो ओर सुंदर विवरण के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकोवलम् सुकून से बैठने वाली जगह है । मैनें वैवाहिक जीवन के अत्यन्त सुखद क्षण वहाँ काटे हैं ।
जवाब देंहटाएंसूर्योदय और सूर्यास्त तो निस्तेज यहां भी हैं!
जवाब देंहटाएंसजीव यात्रा विवरण.
जवाब देंहटाएंडा० साहब की बातों में दम लगता है--एन्जॉय करने के लिए सही संगी साथी का होना भी तो ज़रूरी है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप दोनों का।
यात्रा वर्णन मस्त जा रहा है.. रही सही कमी टिप्पणियाँ पूरी किए दे रहीं हैं।
केरल यात्रा पर जाने से पहले आपका यह यात्रा संस्मरण न पढ़ना बिना टिकट सफर के समान होगा।
जवाब देंहटाएंहम तो ठगे से रह जा रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया संस्मरण
जवाब देंहटाएंअगर केरल जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो प्रिंट निकाल कर फिर से पढेंगे
:):):)
बेचारे मिसिर जी, बामन होइके सरापने के परभाव में आ गये...च्च च्च च्च च्च ! कोवलम जैसे सुन्दर सी बीच का आनन्द नहीं ले पाये. चलिये...हम याद रखेंगे, केरल जायेंगे तो पहले कोवलम ही देखेंगे और उसके बाद कन्याकुमारी, जिससे कन्याकुमारी का मज़ा किरकिरा न हो.
जवाब देंहटाएं[ एक निस्तेज सा अनरोमांटिक कोवलम का सूर्यास्त ].....
जवाब देंहटाएंYour post will give a big blow to Indian tourism...
while being on pleasure trip in past few days to 'phi-phi Island' and 'James bond Island' in 'Phuket'...i recalled your beautiful narration of 'Kerala'. I was wondering if you had been in my place , you certainly would have described it beautifully.
Power of words makes the things all the more beautiful.
@thanks for these beautiful words of encouragement Zeal!
जवाब देंहटाएंधर्मवीर भारती अज्ञेय-केन्द्रित फिल्म सन्नाटे का छ्न्द का उद्धरण देते हुए अपनी पुस्तक ’कुछ चेहरे कुछ चिन्तन'में लिखते हैं इस कोवलम के समुद्र के लिए - "कोवालम का समुद्र होता तो दूर तक फैली रेत को किनारे-किनारे से छूता, सहमता, बीच के रेतीले द्वीपों में शर्माया सा खड़ा रहता..."
जवाब देंहटाएंमन का प्रक्षेपण तो होता ही है ..एक बार फिर देखिएगा कोवालम ! शायद इस बार वह कुछ अलग तरह का अनुभव दे !