सोमवार, 22 अप्रैल 2013

दिल को दहलाती दरिन्दगी

दिल्ली में दुबारा दरिन्दगी की वीभत्स दास्तान ने मन विचलित कर दिया है . इन दिनों मीडिया में ऐसी शर्मनाक घटनाओं का काफी कवरेज हो रहा है -क्या इन घटनाओं में अचानक बेतहाशा वृद्धि हुयी है? ऐसा नहीं है -निर्भया काण्ड के बाद इन घटनाओं को बस ज्यादा कवरेज मिल रहा है . सामान्य मनोविज्ञान ऐसा होता है कि किसी घटना के प्रमुखता से प्रचारित होने पर हम वैसी घटना की आस पास की पुनरावृत्ति की नोटिस लेने लग जाते हैं .पहले भी ये घटनाएँ घट रही थीं मगर मीडिया ने उन्हें निर्भया काण्ड के बाद ज्यादा फोकस और कवर किया है. हाँ मीडिया वीभत्स घटनाओं को कभी कभी और भी वीभत्सता प्रदान कर देता है . मगर अभी घटी दिल्ली की घटना को बयाँ करने में शब्द तक नाकाफी हैं . फिर मीडिया को भी क्या दोष देना? दिल्ली ही नहीं इन दिनों सारे देश से ऐसे समाचार मिल रहे हैं जो संवेदनशील लोगों को अवसादग्रस्त कर देने के लिए काफी हैं . निश्चय ही ये घटनाएं बहुत ही अमानवीय और घृणित है और आश्चर्य होता है कि कुछ नराधम किस सीमा तक जा सकते हैं। मगर ये असामान्य घटनाएँ हो क्यों रही है?
क्या नैतिक शिक्षा का अभाव हो चला है? लोग इंटरनेट पर बिखरी अश्लीलता से प्रेरित होकर ऐसा कर रहे हैं? या ये जन्मजात अपराधी हैं? नैतिक शिक्षा जब ज्यादा प्रभावी रही होगी तब क्या ऐसे वीभत्स यौन अपराध नहीं होते रहे होंगे ? यह यही देश है जहां सद्यजात बच्ची को मार देने के तरह तरह के फार्मूले अपनाए जाते रहे हैं . अजन्में फीमेल गर्भ के समापन में वैज्ञानिक विधियों का दुरूपयोग अब भी थमा नहीं है यद्यपि आज ऐसे कृत्य पर सख्त कानूनी पाबंदी और दंड के प्रावधान हैं . यह सब तो पहले से ही चल रहा है फिर हम किस और कैसी नैतिक शिक्षा की दुहाई दे रहे हैं? वह कितनी कारगर होगी? तो फिर क्या इंटरनेट ,विज्ञापन या फ़िल्में ही इसके लिए जिम्मेवार हैं? कुछ हद तक तो यह हो सकता है मगर इन्हें तो बहुत लोग देखते हैं मगर सभी कहाँ ऐसे घिनौने कृत्य करते हैं? तब? कारण दूसरा है!
न जाने किस  किस मनःस्थिति में  हताशा या आक्रोश में ब्लागजगत में विचित्र बात भी कही गयी एक पोस्ट में कि दरिन्दे यदि चाहें तो बड़े लोगों के साथ दुराचार कर भले कर लें मगर बच्चियों को छोड़ दें -"वे अपनी काम-पिपासा ,अपने हमउम्र वालों के साथ ही शांत करें. इन मासूम बच्चियों को बख्श दें"  इससे तो मुझे मिथकीय कहानियां याद आयीं जिनमें राक्षसों को संतुष्ट रखने और पूरी बस्ती को बचाने को रोज किसी को उसके हवाले कर दिया जाता था -बलि भी इसी मानसिकता की देन है -यह तो हास्यास्पद बात हुयी कम से कम विज्ञान के इस युग में! मुझे लगता है ऐसे कृत्य करने वाले जन्मजात अपराधी हैं . मैंने अपने एक साईंस फिक्शन में भविष्य के एक ऐसे समाज का खाका  खींचा है जो अपराध मुक्त है -मतलब वहां जीरो अपराध हैं .ऐसा इसलिए हो पाता है कि गर्भधारण के एक पखवारे के बाद से ही बच्चे के जींस की स्क्रीनिंग शुरू हो जाती है और समग्र रूप से उनके प्रत्येक विकारयुक्त जीन का विश्लेषण किया जाता है अगर विकारग्रस्त जीन का सुधार संभव हुआ तो ठीक वर्ना उसे जन्म देने की अनुमति नहीं दी जाती . हाँ जन्म लेने के पहले भी कोई भूल चूक की दुबारा तिबारा जांच होती है और अगर कोई आपराधिक जीन तब भी पहचान में आता है तो ऐसे बच्चे को जन्म तो लेने देते हैं मगर उसे एक निर्वासित जीवन के लिए "काला पानी" सदृश द्वीप आदि पर भेज दिया जाता है .मतलब ऐसे जीनिक अपराधियों को मुख्यधारा में रहने का अधिकार ही नहीं होता .
क्या अब हमारे पास सचमुच ऐसा ही विकल्प शेष है ? क्या ऐसी प्रौद्योगिकी जो अब असंभव नहीं रह गयी है के प्रति हम जन समर्थन के लिए आगे आयेगें? जिस प्रकृति के यौन अपराध हो रहे हैं उससे तो यही लगता है कि अपराधी जन्मजात विकृतियाँ लिए हुए हैं और मुख्य समाज में उन्हें रहने का कोई हक़ नहीं है! हमें इसका कोई जड़तोड़ इलाज करना ही होगा ताकि न रहे बांस न बजे बासुरी . मुझे इसके अलावा कोई कारगर हल दीख नहीं रहा .क़ानून से डरने वालों के लिए क़ानून है जीनिक अपराधियों पर क़ानून का शिकंजा शायद ही कामयाब हो सके ? क्या सोचते हैं आप ?

43 टिप्‍पणियां:

  1. सबसे पहले ये दास्तान सुनते सुनते कान पक गए और मैं आश्चर्य चकित हूँ न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में उच्च पद पर बैठे नपुंसकों से जो उचित और कारगर उपाय खोज नहीं पा रहे हैं बस अब और नहीं ..... अब समाज को हथियार उठाने की सलाह पर लिखें ........

    जवाब देंहटाएं
  2. बलात्कारी जैसे अपराधियों को अपराधी बनाने में जेनेटिक्स के अलावा घर के संस्कार , रहन सहन , पलायन , पृथक्करण जैसे कारण भी योगदान देते हैं। लेकिन इस तरह के घ्रणित और अमानवीय कुकृत्य के पीछे आजकल की तकनीकि सुविधाएँ भी सहयोगी हैं। नेट पर उपलब्ध सामग्री पर अंकुश होना भी ज़रूरी है .

    जवाब देंहटाएं
  3. ....कानून बदलने से कुछ नहीं होगा,समाज के बिना बदले।
    .
    .और यह इतना आसान नहीं है :-(

    जवाब देंहटाएं
  4. मुझे लगता है ऐसे कृत्य करने वाले जन्मजात अपराधी हैं ............। जन्‍मजात अपराधी क्‍या होता? आपने ऐसी निरर्थक बात कर विवाद उत्‍पन्‍न कर दिया है। कच्‍ची मिट्टी को जैसे ढालोगे, वैसे ही तो ढलेगी। मनुष्‍य बचपन से जो देखता आ रहा है, वही तो चाहे-अनचाहे करेगा। और मुगल साम्राज्‍य के आने के बाद अत्‍यंतन गोपनीय क्रीड़ा को ऐसा खिलौना बना दिया गया कि अब इस पोर्न जमाने में आते-आते वह खिलौना बन गया है। बच्‍चे भी उसे इच्‍छा-अनिच्‍छा से टटोल रहे हैं। क्‍या सब कुछ पोर्न, सेक्‍स, आइटम सांग ही रह गया है, जो सत्‍ता प्रतिष्‍ठान से लेकर तमाम विज्ञानी-ज्ञानी लोग उससे मुद्रा का कारोबार चला रहे हैं और उसे गाहे-बगाहे उचित ठहरा रहे हैं। उसका हवाला देकर कहते हैं कि इसे देख कर थोड़े ही कोई बलात्‍कार करता है, यह तो जन्‍मजात विकृति है। अगर विकृति जन्‍मजात है तो सुकृति भी जन्‍मजात होनी चाहिए। नब्‍बे प्रतिशत लोग कम या ज्‍यादा रुप में दुनिया में विकृत हैं तो क्‍या वे सब जन्‍मजात हैं। और हां जब विकृत को आपने पकड़ लिया है, तो क्‍या उसे वैज्ञानिक बनाने के लिए पाल रही है सरकार दोषसिद्धी होने पर भी। लटकाती क्‍यों नहीं है उसे? आप ही ने कहा है कि जब भ्रूण में फीमेल को मार दिया जाता है, जो अभी दुनिया में आया भी नहीं, जिसने कुछ अच्‍छा-बुरा किया ही नहीं तो इन बुरे करनेवालों को बचा कर क्‍या होगा। क्‍या कानून ऊपर से टपका है जो उसे बदला नहीं जा सकता। पोर्न साइट बन्‍द करने की बात हो रही, गूगल या इंटरनेट बन्‍द होने की नहीं। तो तब आप क्‍यूं चिंतित हैं? क्षमा चाहता हूँ भावावेग को खांटी भड़ास और ओछा विवाद न समझें। बचपन में निबंध आता था....विज्ञान वरदान भी और अभिशाप भी। सबको कटु अनुभव है कि यह अभिशाप अधिक सिद्ध हो रहा है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. असहमति का स्वागत है -मैं वातावरण के बजाय जीनों को ज्यादा दोषी मानता हूँ .....और ऐसी विकृतियाँ जनसंख्या में बहुत मामूली होती हैं तो ऐसे लोगों को क्यों न काले पानी का रास्ता दिखा दिया जाय

      हटाएं
    2. नब्‍बे प्रतिशत हैं ऐसे सबको कालापानी? वैज्ञानिक चमत्‍कार तब क्‍या जंगली जानवर देखेंगे?

      हटाएं
    3. नब्बे प्रतिशत ठीक लोग हैं महराज

      हटाएं
    4. ठीक होते तो बलात्‍कार जैसे भाव-व्‍यवहार समाज में होते ही नहीं। और जो करते वे तुरत-फुरत मृत्‍युदण्‍ड को प्राप्‍त होते।

      हटाएं
  5. सहमत कि -- “अपराधी जन्मजात विकृतियाँ लिए हुए हैं और मुख्य समाज में उन्हें रहने का कोई हक़ नहीं है! हमें इसका कोई जड़तोड़ इलाज करना ही होगा ताकि न रहे बांस न बजे बासुरी .”

    जवाब देंहटाएं
  6. जिस तरह के अपराध देखने में आने लगे हैं उससे तो लगता है कि ये अपराधी किसी मनोविकृति का शिकार हैं.उसका कारण, परिवार, समाज , हालात, शिक्षा या जन्मजात कुछ भी हो सकते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  7. पोस्ट पढ़कर सबसे पहले तो यह ख्याल आ रह है कि क्या यह संभव है ? आज के हालात में तो मन में इतना रोष है कि लगता है चाहे जो राह खोजी जाय, समाज को इन विकृत मानसिकता वाले लोगों से मुक्ति तो मिले ....

    जवाब देंहटाएं
  8. भ्रष्ट नेता ,निष्क्रिय प्रशासक और लुंज पुंज राजव्यवस्था से मुक्ति नहीं मिल पा रही है |अपराधियों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए जैसे पहले होता था ,हुक्का पानी बन्द |अब तो अपराधी और अधिक पूजनीय और माननीय हो गये हैं |

    जवाब देंहटाएं
  9. असली बात तो समाधान निकालने की है,वो निकलना चाहिये। नैतिक शिक्षा और धर्म की शिक्षा जैसी बातें तो अब आऊटडेटिड मान ही ली गईं हैं,अब तो विज्ञान और वैज्ञानिकों का ही सहारा है, वही कुछ करें।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत दिनों बाद सरकार बहादुर को भ्रष्टाचार के आरोपों से राहत मिली है ।उस पर आरोप लगाने वाला समाज आज खुद बलात्कार जैसे गम्भीर आरोप झेल रहा है।ऐसा नहीं है कि बलात्कार जैसा पैशाचिक कृत्य कभी-कभार होता है पर खबर कभी कभी बन पाता है। इसके लिए तो हमें चिंतित होना ही चाहिए पर कहीं यह व्यवस्था की तरफ से हमारा भटकाव तो नहीं है ?आज कानून-व्यवस्था तो कटघरे में है ही,समाज भी खुद को शर्मिंदा महसूस कर रहा है।
    केवल कानून बदलने से कुछ नहीं होने वाला,बहुत कुछ बदलना है जिसमें संस्कार,सोच और समाज और व्यवस्थामुख्य घटक हैं।

    जवाब देंहटाएं
  11. काश आपके साइंस फिक्शन की बात यथार्थ में तब्दील हो किसी रोज़. उससे कारगर उपाय कुछ नहीं होगा.

    जवाब देंहटाएं
  12. हमें दिलचस्प बात यह लगी की अब जब ये घ्रणित काण्ड हुआ तो मीडिया कवरेज में यौन शोषण का वर्णन कर रही है! ये है हमारा मीडिया और उसकी परिपक्वता और उसकी संवेदनशीलता ! बताया जा रहा है की बच्ची के साथ क्या क्या हुआ, गोया रिपोर्टिंग न हुई , मस्तराम की कहानी हो गयी,...हद हो गई ! क्या बलात्कार शब्द मात्र से यह स्पष्ट नहीं होता की किया हुआ होगा? उसकी डिटेल्स देने की क्या जरूरत है? इस तरह की खबरों को तवज्जो देने का क्या औचित्य है ? बलात्कार एक का हुआ है, और इस खबर की डीटेल्स पढ़ कर जाने कितने लोगों का बिना करे ही सोच में बलात्कार हो गया होगा… क्यों? क्योंकि मीडिया ने खबर का इतनी असंवेदनशीलता से प्रचार किया है, की कोई भी इस तरह की खबर पढ़ कर अच्छा महसूस नहीं कर सकता ...


    ये आदमी तो हमें मानसिक रूप से विक्षिप्त लगता है. इस तरह का कोई आदमी अगर हमारे इर्द गिर्द घूमें तो हमें तो उसकी फितरत पहचानने में ज्यादा देर नहीं लगेगी . इस आदमी ने निश्चित तौर से पहले भी बहुत कुछ अंट शंट किया होगा। अब इस तरह का आदमी इतने सालों तक खुला घुमाता फिर रहा था, और तब किसी मीडिया वाले का उस पर गया नहीं गया, और उसके आस पास के लोगों ने भी कभी कुछ महसूस नहीं किया - ये सोचने वाली बात है. ..

    हमारे देखे तो संस्कार से पुख्ता कोई जींस नहीं हो सकती .

    परवरिश ही उसने ऐसी पाई है 'मजाल',
    निकलेगा भी तो कितना मुआ निकलेगा !

    आपकी साईंस फिक्शन के लिए शुभ कामनाएं ...

    लिखते रहिये ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहमत ,यही तो और पीडादायक है कि मीडिया खासकर दृश्य मीडिया विद्रूपता ,वीभत्सता और घिनौनेपन को और भी बढ़ा देता है !

      हटाएं
    2. ...ई मजाल भाई/बहिन अच्छा कहिन !

      हटाएं
  13. हर व्यक्ति में कुछ न कुछ दोष होता है, चाहे वह कोई भी हो,शिक्षित,अशिक्षित संपन्न असंपन्न.यह भी क्यों भूल रहे हैं कि हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में कोई अपराध करता ही है.वीज्ञानिक में भी कोई कम होगी, आखिर जब वह भावी संतान के गुणों का मूल्याकन कर उनमें क़तर ब्योत करेगा ,तो वह भी सर्वगुण संपन्न होगा क्या जरुरी है.उसकी अपराध करने की परवर्ती आने वाले बच्चे में भी आ सकती है.इसलिए अपराधमुक्त संतान की उत्पति होगी, जरुरी नहीं है,बाकि आपकी कल्पना एक अच्छी कल्पना है,शत प्रतिशत न सही, अस्सी - नब्बे तक भी ऐसी सन्तति उत्पन्न हो तो कोई बुरा नहीं.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी परिकल्पित कथा की आलोचना से कमियों का निराकरण हो सकेगा -आभार

      हटाएं
  14. माना कि जन्मजात विकर्ति हो सकती है पर यह सामाजिक विकर्ति ज्यादा है ।

    जवाब देंहटाएं
  15. हल अपने अंदर से ही निकलने वाला है ... मंथन चल रहा है समाज में ... पता नहीं कितनी ओर व्यथा झेलनी है नारी समाज को ... ओर पुरुष ... पता नहीं कब जागने वाला है ... पर अभी तो दृश्य भयावह ही है ...

    जवाब देंहटाएं
  16. वैसे तो कुसंस्कार, अनैतिकता का वातावरण ,इंटरनेट ,विज्ञापन टीवी,मीडिया,फ़िल्में और स्वतंत्रता के नाम स्वछंदता के प्रसारक आदि बहुत से तत्व इसके लिए प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष जिम्मेदार है. प्रत्येक कारण को टालने से नहीँ समुच्य में विचार करने पर और सभी का ईलाज करने पर ही निराकरण पाया जा सकेगा.

    पर आपके कहे अनुसार जन्मजात स्वभाव से भी इंकार नहीं किया जा सकता. दर्शन भी जन्मांतर से कर्मसत्ता की उपस्थिति को मानता है. कोई आश्चर्य नहीं यदि कर्मसत्ता जिंस का आधार लेकर सक्रिय होती हो. यदि ऐसा होगा तो जिंस रिपेयर सफल नहीं होगा, और कोई चुनौति उत्पन्न होगी. पुरूषार्थ एक तत्व है और रहेगा और प्रत्येक स्वभाव परिवर्तन पुरूषार्थ से ही सम्भव होगा.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुज्ञ जी ,
      कुछ तो माना आपने :-)
      आपकी भाषा में बात करूं तो संस्कार में प्रारब्ध भी निहित है यानी जन्म पूर्व के संस्कार जिनके वाहक जीन ही होते हैं तो क्यों न जन्म के पूर्व उनकी थारो स्क्रीनिंग हो जाय और विकृतियों को जीन चिकित्सा से दूर करने के उपाय हों!

      हटाएं
  17. दिल्ली और अन्य जगहों पर हुई दुर्घटनायें दुखद हैं। कष्टप्रद हैं।

    बाकी आपकी फ़िक्शन की बात फ़िक्शन तक ही रहे तो बेहतर है। ऐसी चीजों के सदुपयोग कम दुरुपयोग ज्यादा होते हैं।

    भ्रूण परीक्षण मशीन का उपयोग कन्या भॄण हत्या के लिये ज्यादा होता है। ऐसे ही ड्फ़ेक्टिव भॄण वाले लोगों का दुरुपयोग दूसरों को परेशान करने में होगा।

    वाल्मीकि पहले डाकू थे। बाद में आदि कवि बने।
    ययाति अपने पूर्वज की लम्पटता के चलते शाप पाकर लम्पट बने।

    ऐसे न जाने कितने ऐसे तमाम किस्से हैं। इनके भॄण का क्या करेंगे? आने देंगे या निपटा देंगे?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनूप जी वैज्ञानिक संकल्पना को मिथकीय चरित्रों के उदाहरण से खंडित कर रहे हैं ?

      हटाएं
    2. वैज्ञानिक संकल्पना करने वाला बताये कि ऐसी स्थिति में क्या किया जायेगा? मिथकीय चरित्र के समान आजकल के जीवन में अनेकों उदाहरण ऐसे मिलते हैं जब व्यक्ति का हृदय परिवर्तन होता है और वह बेहतर इंसान बनता है। संकल्पना की व्यवहारिकता भी तो देखी जायेगी कि खाली कल्पनालोक में विहार किया जायेगा?

      हटाएं
    3. इंगित विज्ञान कथा मात्र खयाली पुलाव नहीं है आज मानव जीनोम उद्घाटित है और अंतर्जाल पर उपलब्ध है -जीनिक विकार एक सत्य है -हाँ हम जीनिक विकार और उपचार के काफी करीब आ पहुंचे हैं -यदि प्रसव पूर्व जीनिक विकृतियों का पता लग जाए तो उनका निवारण संभव हो सकेगा और यह एक उपयुक्त मानवोपयोगी तकनीक होगी !

      हटाएं
  18. काश जन्म से ही पता चल जाये कि कितना दुख देने वाला है कोई..

    जवाब देंहटाएं
  19. अरविंद जी,

    मैंने ज़ूलोजी की क्लास में कहीं पढ़ा था कि अगर अमेरिका में जेनेटिक गड़बड़ी की वजह से किसी पुरुष में XYY सेक्स क्रोमोसोम्स हो जाते हैं और वो अपराध करता है तो उसे सामान्य पुरुष के अपराध से अलग समझा जाता है...अपराध को ऐसे व्यक्ति के जेनेटि विकार से जोड़ कर देखा जाता है...कृपया इस पर और रौशनी डालें...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. खुशदीप जी ,
      आप सुपर मेल की बात कर रहे हैं जिनमें एक वाई (पुरुष क्रोमोजोम ) अतिरिक्त होने के कारण आपराधिक (यौन व अन्य ) प्रवृत्तियाँ होना स्थापित सत्य है -मगर अब तो हम पूरे मानव जीनोम का खाका खीच चुके हैं और उस दिन के करीब तक आ पहुंचे हैं जब एक एक जीन की जांच कर विकृतियों की पूर्व प्रसव जानकारी ले सकते हैं .

      हटाएं
  20. विज्ञान जहां वरदान साबित हुआ है वहीँ अभिशाप भी साबित हुआ है और लोगों के मनों को प्रदूषित करने का साधन भी विज्ञान ही बनता जा रहा है ! आज अंतर्जाल पर ऐसी अश्लील सामग्री भरी पड़ी है और हर किसी कि पहुँच में है ! जब वही अश्लील सामग्री किसी किशोर के हाथ लगती है तो उसका बाल मन सही और गलत का फैसला करनें में असमर्थ होता है और वो जहर बनकर उसके दिमाग में प्रवेश कर जाती है ! यह तो मैनें केवल एक कारण दिया है लेकिन ऐसे अनेकों कारण है जिनके कारण धीरे धीरे अश्लील अपराधों कि प्रवृति बढती जाती है ! कोई भी जन्मजात अपराधी नहीं होता है बल्कि आसपास के वातावरण और गलत संगति के कारण अपराधी बनता है !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. यह विज्ञान या प्रौद्योगिकी का दोष नहीं बल्कि जिम्मेदारी मनुष्य की है कि वह इनका उपयोग या दुरूपयोग कर सकता है ! बाकी अपराधों के प्रति एक जन्मजात सहिष्णुता कुछ लोगों में हो सकती है जो वातावरण के अनुसार घट बढ़ सकती है -हम अपने जीनों के ही सत्परिणाम या दुष्परिणाम होते हैं !

      हटाएं
  21. अपराध मुक्त समाज की संकल्पना प्रभावित करती है मगर सिर्फ जीन ही विकृतियों के कारण होंगे , इसमें थोडा शक है .. अच्छी परवरिश , सुसंस्कार , बच्चों के सुदृढ़ व्यक्तित्व को निरुपित करने में मदद कर सकते हैं , जीन की विकृतियों के बावजूद भी . एक ही मनुष्य अँधेरे और उजाले के साथ जीवन यात्रा में प्रवेश करता है , उसके उजाले को परिवर्धित करने में मदद की जा सकती है , विवेक का उचित संज्ञान विकसित किया जा सकता है . मगर किस तरह , इस पर और विकल्प सोचने होंगे !
    समस्या के समाधान पर विचार करने को प्रेरित करती एक अच्छी पोस्ट !

    जवाब देंहटाएं
  22. हाँ , आपकी पोस्ट के लिए यह शीर्षक जमा नहीं !

    जवाब देंहटाएं
  23. एक सुखद समाज की कल्पना बहुत सार्थक है काश ऐसा संभव हो सके

    जवाब देंहटाएं
  24. कल्पना में तो आप धरती को अपराध शून्य कर दे या इसको स्वर्ग बना दें पर वास्तविता तो कुछ और है और हमें वास्तविकता का सामना करना है
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post बे-शरम दरिंदें !
    latest post सजा कैसा हो ?

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत उम्दा लेखन | संतान के पाँव पलने में पहचानने के दिन आ गए हैं |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    जवाब देंहटाएं
  26. आपने अपने लेख में महत्वपूर्ण बातों को रेखांकित किया है आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी मनुष्य की नीचता इस स्तर पर आ गयी है कि उसे नरपशु से कम नहीं कहा जा सकता और यह अपराध तब तक होते रहेंगे जब तक मनुष्य एक अध्यात्मिक द्रष्टिकोण का निर्माण नहीं कर लेगा

    जवाब देंहटाएं

यदि आपको लगता है कि आपको इस पोस्ट पर कुछ कहना है तो बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएं-आपकी प्रतिक्रिया का सदैव स्वागत है !

मेरी ब्लॉग सूची

ब्लॉग आर्काइव