हिन्दी ब्लॉगर अपनी औकात एक बार फिर दिखा दिए.डोयिचे वेले के बाब्स पुरस्कारों में इस बार हिन्दी के शामिल होते ही बखेड़ा खड़ा हो गया है . जो वैश्विक समुदाय के सामने यह फिर साबित करता है कि हिन्दी वाले और अब खासकर हिन्दी के ब्लॉगर कभी परिपक्व नहीं हुए और न होंगें .हिन्दी के साथ विवाद का चोली दामन का सम्बन्ध बना हुआ है और शुद्ध हिन्दी में कहें कि यह एक अन्योनाश्रित सम्बन्ध बन गया है . डोयिचे वेले की तरफ से कहीं कुछ गलत नहीं हुआ . और न परिकल्पना की ही ओर से कुछ गलत था . यह हम हैं जो अपनी निजी खुन्नसों और निहितार्थों के चलते इन्हें विवादास्पद बनाते हैं . हिन्दी भाई कई लोग तो ऐसे होते हैं कि सम्मान पुरस्कारों की तब तक आलोचना करते हैं जब तक कि वही सम्मान उन्हें खुद नहीं मिल जाता . फिर चुप लगा जाते हैं .
डोयिचे वेले अंतर्जाल सक्रियता पर एक वैश्विक पुरस्कार आयोजन पहले से भी करती आयी है .बस इस बार उसमें हिन्दी जुड़ गयी और कुछ श्रेणियों में नामांकन मांगे गए . इसकी पहली सूचना ज्यादातर लोगों को खुशदीप जी की पोस्ट से मिली थी, सक्रिय लोगों ने नामांकन कर दिए . मैं नामांकन के जरिये पुरस्कार -सम्मान के पक्ष में कभी नहीं रहा -यह मुझे भीख का कटोरा लेकर कुछ मांगने जैसा लगता है भले ही कोई दूसरा ही आपका नामांकन क्यों न करे . मगर यह मेरा अपना बहुत निजी विचार है मगर तमाम चयन की प्रक्रियाओं में यह भी एक प्रक्रिया है और मैं इसी रूप में इसे लेता हूँ . हाँ सम्मान तो जो सम्मान लायक हो -किसी क्षेत्र में अतुलनीय कार्य किया हो उसे अपने स्रोतों के माध्यम से सम्मानकर्ता व्यक्ति /संस्था को चुन लेना चाहिए - मगर नोबेल पुरस्कार तक नामांकन मांगते हैं तो अगर डोयिचे वेले ने भी यही रास्ता अपनाया तो यह उसका निर्णय है,उसकी शर्त है . कतिपय हिन्दी ब्लागरों ने चुपके से अपने ब्लागों को नामित कर दिया या करा दिया . कुछ लोगों ने दूसरे ब्लागों को घोषित तौर पर नामांकित किया -वास्तव में किया या खुद अपना कर गए कौन जानता है? :-) . अब यह तो भारतीय सूचना आधिकार के तहत डोयिचे वेले से पूछा भी नहीं जा सकता और उसे बताने की भी कोई बाध्यता नहीं है . अब जो ब्लॉग नामांकित हुए होंगें उन ही में से कुछ चयनित भी होने थे सो हो गये. हमें भी शुरू में और अब भी लगता है कि चयनित ब्लागों से कितने ही बहुत बेहतर ब्लॉग छूट गए हैं मगर क्या कीजियेगा जब वे नामांकित ही नहीं हुए .
डोयिचे वेले अंतर्जाल सक्रियता पर एक वैश्विक पुरस्कार आयोजन पहले से भी करती आयी है .बस इस बार उसमें हिन्दी जुड़ गयी और कुछ श्रेणियों में नामांकन मांगे गए . इसकी पहली सूचना ज्यादातर लोगों को खुशदीप जी की पोस्ट से मिली थी, सक्रिय लोगों ने नामांकन कर दिए . मैं नामांकन के जरिये पुरस्कार -सम्मान के पक्ष में कभी नहीं रहा -यह मुझे भीख का कटोरा लेकर कुछ मांगने जैसा लगता है भले ही कोई दूसरा ही आपका नामांकन क्यों न करे . मगर यह मेरा अपना बहुत निजी विचार है मगर तमाम चयन की प्रक्रियाओं में यह भी एक प्रक्रिया है और मैं इसी रूप में इसे लेता हूँ . हाँ सम्मान तो जो सम्मान लायक हो -किसी क्षेत्र में अतुलनीय कार्य किया हो उसे अपने स्रोतों के माध्यम से सम्मानकर्ता व्यक्ति /संस्था को चुन लेना चाहिए - मगर नोबेल पुरस्कार तक नामांकन मांगते हैं तो अगर डोयिचे वेले ने भी यही रास्ता अपनाया तो यह उसका निर्णय है,उसकी शर्त है . कतिपय हिन्दी ब्लागरों ने चुपके से अपने ब्लागों को नामित कर दिया या करा दिया . कुछ लोगों ने दूसरे ब्लागों को घोषित तौर पर नामांकित किया -वास्तव में किया या खुद अपना कर गए कौन जानता है? :-) . अब यह तो भारतीय सूचना आधिकार के तहत डोयिचे वेले से पूछा भी नहीं जा सकता और उसे बताने की भी कोई बाध्यता नहीं है . अब जो ब्लॉग नामांकित हुए होंगें उन ही में से कुछ चयनित भी होने थे सो हो गये. हमें भी शुरू में और अब भी लगता है कि चयनित ब्लागों से कितने ही बहुत बेहतर ब्लॉग छूट गए हैं मगर क्या कीजियेगा जब वे नामांकित ही नहीं हुए .
एक मैं ही अकेला नकचढ़ा फक्कड़ थोड़े ही हूँ जो खुद नामांकन से दूर रहा . विज्ञान / भ्रमण की कटेगरी में उन्मुक्त सरीखा ब्लॉग जहाँ प्रामाणिक प्रथम स्रोत की जानकारी लिए है और जहां बेहतरीन पोडकास्ट भी है या मेरा अपना साईब्लाग ही है विज्ञान संचार के समर्पित प्रयास हैं . मगर ये तो नामंकित ही नहीं हुये. हाँ तस्लीम को अवश्य नामांकित किया गया और यह भी एक नियमित ब्लॉग है जिसमें शुरुआती योगदान मेरा भी कुछ कम नहीं रहा -नामकरण,अवधारणा और लगभग सौ शुरुआती पहेलियों जिनसे यह ब्लॉग निगाह में आया- मैं केवल इसलिए इससे जुडा रहा क्योकि आम आदमी तक विज्ञान संचार मेरे अस्थि -मज्जा में समाहित है . इसकी आरंभिक पहेलियों के जरिये ब्लागरों में विज्ञान में अभिरूचि जगाने का बीड़ा मैंने उठाया था -यहाँ यहाँ यहाँ और अनेक पोस्टों में यह इतिहास दर्ज है .
सर्प संसार में आज भी साँपों से जुड़े अपने फर्स्ट हैण्ड अनुभवों को निरंतर साझा करता रहता हूँ . मेरे करीब के लोग जानते हैं कि सापों में मेरी बहुत रूचि है .लोगों को याद होगा एक ब्लॉग भारतीय भुजंग था जिसकी माडरेटर लवली कुमारी हुआ करती थीं मगर उन्होंने पता नहीं किस रुष्टता से यह ब्लॉग बंद कर दिया और मेरे कितनी ही पोस्टें पब्लिक डोमेन से हट गयीं। मैंने उसे अनुरोध भी किया कि मुझसे व्यक्तिगत रुष्टता की सजा आप पाठकों को क्यों दे रही हैं -यह तो अन्याय है पर उन्होंने मेरी एक न सुनी और ब्लॉग ही बंद कर दिया . मैं अंततः व्यक्ति को महत्वपूर्ण नहीं मानता उसके काम को प्राथमिकता देता हूँ . अब भारतीय भुजंग से मेरी छुट्टी के बाद मुझे शिद्दत से महसूस हुआ कि मेरे वे पाठक बिचारे जो भारतीय भुजंग से जुड़े थे और कितनों के मेरे पास फोन तक आते थे उनके लिए कुछ किया जाना चाहिए .अब चूंकि मैं अन्य तमाम कामों में उलझा रहता हूँ और मेरी दूसरी आदत है लोगों को विज्ञान लेखन में प्रोत्साहित करते रहने का मैंने जाकिर जी से यह अनुरोध किया और इस तरह सर्प संसार अस्तित्व में आया .
खुशदीप जी की ही दूसरी पोस्ट से मुझे बाब्स के लिए हिन्दी की श्रेणियों में चयनित ब्लागों की जानकारी हुयी तो मुझे आश्चर्यमिश्रित आह्लाद हुआ कि अच्छे कार्य कभी न कभी पहचाने जरुर जाते हैं . मैंने तुरंत फोन पर जाकिर जी को बधाई दी , मगर उसके बाद की घटी घटनाएँ मुझे पीड़ित कर गयीं और ऐसे अनुभव मेरे साथ होते ही रहे हैं अनगनित . सो मुझमें इम्युनिटी आ गयी हैं -हुआ यह कि जाकिर जी के सौजन्य से लखनऊ के अखबारों में जाकिर जी के फोटो सहित यह समाचार छापे गए कि उनके दो ब्लागों को बाब्स पुरस्कारों के लिए चुन लिया गया है -आदि आदि , मुझे धक्का लगा -दोनों ही सामूहिक ब्लॉग हैं और ईमानदारी तो सभ्य/अकादमिक जगत में बरती ही जानी चाहिए -खबर तब भी बनती और डॉ जाकिर अली 'रजनीश' का सम्मान भी कुछ कम न होता . वैसे भी ब्लॉग के माडरेटर वहीं हैं -बान जाने का उनका ही हक़ है और वे जायेगें भी .सर्प संसार के लिए भी यद्यपि उन्होंने मुझे जाने का आग्रह किया है मगर मैं तो उन्हें ही अधिकृत करता . मगर यहाँ जाकिर भाई से मानव स्वभावगत चूक हुयी। और उसी दिन मैंने अपने स्वभावगत मजबूरी से इस पुरस्कार अभियान से खुद को तटस्थ कर लिया . मुझे हमेशा आगे देखने की आदत है.
मगर इस मुद्दे पर फुरसतिया महराज मुझे कोंचते जा रहे हैं और पोस्ट दर पोस्ट लिखते जा रहे हैं .अजीब सा गलचौर सा माहौल बन रहा है। लाबीयिंग चगल रही है .और तस्लीम तथा नारी को एक दूसरे के नाकारात्मक वोट (नेगेटिव वोटिंग ) मिल रहे हैं -मतलब जिसे नारी (कृपया पढ़ें सुश्री रचना सिंह ) अन्यान्य कारणों से पसंद नहीं है वो तस्लीम को वोट कर रहा है और जिसे तस्लीम(कृपया पढ़ें डॉ जाकिर अली 'रजनीश' ) पसंद नहीं वह नारी को वोट दे रहा है .खेमेबाजी प्रत्यक्ष हो गयी है. काश ये ब्लॉग सकारात्मक वोट ही हासिल करते और इतने खराब भी नहीं हैं . इस खेमेबाजी के चलते मोर्चाये हुए लिंक भी उभर आये या उधिरा गए हैं जो चिटठा चर्चा की नवीनतम पोस्ट पर देखे जा सकते हैं .
अब जबकि मैं तटस्थता से निकल आया हूँ तो यह स्पष्ट कर दूं (ताकि कोई मुगालता किसी को न रहे) कि सबसे अच्छे नामंकित हिन्दी ब्लॉग में मैं तस्लीम को और मोस्ट क्रिएटिव ब्लॉग में सर्प संसार को और निजी ब्लागों में दुधवा लाईव को समर्थन कर रहा हूँ और मित्रों से इन्हें वोट करने की अपील करता हूँ!
अंत में निष्कर्षतः मैं यह अवश्य कहता हूँ कि डोयिचे वेले के बाब्स पुरस्कार के आयोजक धन्यवाद के पात्र हैं और मैं उनका व्यक्तिगत रूप से आभारी हूँ कि उन्होंने हिन्दी को एक मौका दिया है , उनकी प्रक्रिया में सायास कहीं कुछ भी गड़बड़ नहीं की गयी है -मुझे खुशदीप जी के इस कथन पर हैरत है कि ये पुरस्कार फिक्स्ड हैं . हाँ एक आदमी अगले चौबीस घंटों में दुबारा वोट कर सकता है और अपनी कई आई डी से कर सकता है यह उचित नहीं है -यह तो फिर थोक के भाव में लोगों से वोट कराने का मामला बन जाता है . मगर यही प्रक्रिया तो और भी भाषाओं के साथ है ! मैं जूरी से अपील करता हूँ कि हिन्दी वालों की हाय हाय से विचलित हुए बिना वे अपने निर्णय को अंजाम देगें!
सर्प संसार में आज भी साँपों से जुड़े अपने फर्स्ट हैण्ड अनुभवों को निरंतर साझा करता रहता हूँ . मेरे करीब के लोग जानते हैं कि सापों में मेरी बहुत रूचि है .लोगों को याद होगा एक ब्लॉग भारतीय भुजंग था जिसकी माडरेटर लवली कुमारी हुआ करती थीं मगर उन्होंने पता नहीं किस रुष्टता से यह ब्लॉग बंद कर दिया और मेरे कितनी ही पोस्टें पब्लिक डोमेन से हट गयीं। मैंने उसे अनुरोध भी किया कि मुझसे व्यक्तिगत रुष्टता की सजा आप पाठकों को क्यों दे रही हैं -यह तो अन्याय है पर उन्होंने मेरी एक न सुनी और ब्लॉग ही बंद कर दिया . मैं अंततः व्यक्ति को महत्वपूर्ण नहीं मानता उसके काम को प्राथमिकता देता हूँ . अब भारतीय भुजंग से मेरी छुट्टी के बाद मुझे शिद्दत से महसूस हुआ कि मेरे वे पाठक बिचारे जो भारतीय भुजंग से जुड़े थे और कितनों के मेरे पास फोन तक आते थे उनके लिए कुछ किया जाना चाहिए .अब चूंकि मैं अन्य तमाम कामों में उलझा रहता हूँ और मेरी दूसरी आदत है लोगों को विज्ञान लेखन में प्रोत्साहित करते रहने का मैंने जाकिर जी से यह अनुरोध किया और इस तरह सर्प संसार अस्तित्व में आया .
खुशदीप जी की ही दूसरी पोस्ट से मुझे बाब्स के लिए हिन्दी की श्रेणियों में चयनित ब्लागों की जानकारी हुयी तो मुझे आश्चर्यमिश्रित आह्लाद हुआ कि अच्छे कार्य कभी न कभी पहचाने जरुर जाते हैं . मैंने तुरंत फोन पर जाकिर जी को बधाई दी , मगर उसके बाद की घटी घटनाएँ मुझे पीड़ित कर गयीं और ऐसे अनुभव मेरे साथ होते ही रहे हैं अनगनित . सो मुझमें इम्युनिटी आ गयी हैं -हुआ यह कि जाकिर जी के सौजन्य से लखनऊ के अखबारों में जाकिर जी के फोटो सहित यह समाचार छापे गए कि उनके दो ब्लागों को बाब्स पुरस्कारों के लिए चुन लिया गया है -आदि आदि , मुझे धक्का लगा -दोनों ही सामूहिक ब्लॉग हैं और ईमानदारी तो सभ्य/अकादमिक जगत में बरती ही जानी चाहिए -खबर तब भी बनती और डॉ जाकिर अली 'रजनीश' का सम्मान भी कुछ कम न होता . वैसे भी ब्लॉग के माडरेटर वहीं हैं -बान जाने का उनका ही हक़ है और वे जायेगें भी .सर्प संसार के लिए भी यद्यपि उन्होंने मुझे जाने का आग्रह किया है मगर मैं तो उन्हें ही अधिकृत करता . मगर यहाँ जाकिर भाई से मानव स्वभावगत चूक हुयी। और उसी दिन मैंने अपने स्वभावगत मजबूरी से इस पुरस्कार अभियान से खुद को तटस्थ कर लिया . मुझे हमेशा आगे देखने की आदत है.
मगर इस मुद्दे पर फुरसतिया महराज मुझे कोंचते जा रहे हैं और पोस्ट दर पोस्ट लिखते जा रहे हैं .अजीब सा गलचौर सा माहौल बन रहा है। लाबीयिंग चगल रही है .और तस्लीम तथा नारी को एक दूसरे के नाकारात्मक वोट (नेगेटिव वोटिंग ) मिल रहे हैं -मतलब जिसे नारी (कृपया पढ़ें सुश्री रचना सिंह ) अन्यान्य कारणों से पसंद नहीं है वो तस्लीम को वोट कर रहा है और जिसे तस्लीम(कृपया पढ़ें डॉ जाकिर अली 'रजनीश' ) पसंद नहीं वह नारी को वोट दे रहा है .खेमेबाजी प्रत्यक्ष हो गयी है. काश ये ब्लॉग सकारात्मक वोट ही हासिल करते और इतने खराब भी नहीं हैं . इस खेमेबाजी के चलते मोर्चाये हुए लिंक भी उभर आये या उधिरा गए हैं जो चिटठा चर्चा की नवीनतम पोस्ट पर देखे जा सकते हैं .
अब जबकि मैं तटस्थता से निकल आया हूँ तो यह स्पष्ट कर दूं (ताकि कोई मुगालता किसी को न रहे) कि सबसे अच्छे नामंकित हिन्दी ब्लॉग में मैं तस्लीम को और मोस्ट क्रिएटिव ब्लॉग में सर्प संसार को और निजी ब्लागों में दुधवा लाईव को समर्थन कर रहा हूँ और मित्रों से इन्हें वोट करने की अपील करता हूँ!
अंत में निष्कर्षतः मैं यह अवश्य कहता हूँ कि डोयिचे वेले के बाब्स पुरस्कार के आयोजक धन्यवाद के पात्र हैं और मैं उनका व्यक्तिगत रूप से आभारी हूँ कि उन्होंने हिन्दी को एक मौका दिया है , उनकी प्रक्रिया में सायास कहीं कुछ भी गड़बड़ नहीं की गयी है -मुझे खुशदीप जी के इस कथन पर हैरत है कि ये पुरस्कार फिक्स्ड हैं . हाँ एक आदमी अगले चौबीस घंटों में दुबारा वोट कर सकता है और अपनी कई आई डी से कर सकता है यह उचित नहीं है -यह तो फिर थोक के भाव में लोगों से वोट कराने का मामला बन जाता है . मगर यही प्रक्रिया तो और भी भाषाओं के साथ है ! मैं जूरी से अपील करता हूँ कि हिन्दी वालों की हाय हाय से विचलित हुए बिना वे अपने निर्णय को अंजाम देगें!
होई वही जेहि राम रचि राखा ……
जवाब देंहटाएंaajkal jo chal raha hai wahan sab taraf vivaad hi utpann ho raha hai , beshak iske badle yadi hindi ke liye saparpit blog apna karye imaandaari se kare to wahi uttam hai , mai in sab baato se door rahati hoon , arop , pratyarop se sivad dhukh ke kuch nahi milta , ..... accha karye apne aap sthan bana leta hai .
हटाएंचाहे आपसी रंजिश कितनी ही हो और किसी की भी किसी से हो मगर इस वक्त जरूरत है हम सब एक हो जायें और अपनी भारतीय भाषा हिन्दी का मान बढायें और जिस भी ब्लोग को जो पसन्द करता हो वो उसे वोट कर दे लेकिन उसके लिये के दूसरे पर इस तरह छींटाकशी करना , अपमान करना कहीं से भी उचित नहीं लगता । मेरे ख्याल से हम सभी सभ्य समाज के सभ्य नागरिक हैं और पढे लिखे हैं तो यदि अपनी अपनी मर्यादा में रहकर बिना किसी पर आरोप प्रत्यारोप लगाये एक कार्य को अंजाम दिया जाये तो ज्यादा सुखकर नहीं होगा …………ज़रा सोचिये !!!
जवाब देंहटाएंवन्दना जी बहुत अच्छी बात की है -आभार
हटाएंअरविंद जी, शेष बिन्दुओं पर मेरी आपसे फोन पर वार्ता हो चुकी है। ...यह पोस्ट लगाकर आपने अच्छा किया। बहुत सारा कुहासा छंट सकेगा। आभार।
जवाब देंहटाएंएक निवेदन है कि कृपया सेकेंड लास्ट पैरा बोल्ड कर दें और उसमें आए ब्लॉगों के नाम हाइलाइट कर दें, जिससे निष्कर्ष पाठकों की नजर में प्रमुखता से आ सके।
...गुरूजी ! हमें तो यही लोचा नहीं समझ में आ रहा है कि जिस साईट की प्रक्रिया ही संदेहास्पद हो,ढेर सारी अनियमितताएं हों,मामला फिक्स-सा लगे,बावजूद इसके लोग गुहार मचाये हुए हैं.और यह सब हिंदी के नाम पर हो रहा है.इसके लिए राजनीति की तरह ब्लॉगर भी आचरण कर रहे हैं.उन्हें अपने झंडे को उठाने में राजा भैया टाइप या बहन जी टाइप लोगों से भी परहेज नहीं है.चर्चा होती है मूल्यों की,पर यदि आज यदिरप्पा,बंगारू ,मायावती,मुलायम या ए राजा जैसे लोग ईमानदारी की वकालत करने लगेंगे तो क्या हमें उनकी पृष्ठभूमि को नजरंदाज़ करना होगा ? पर हमारे एक निष्पक्ष चर्चाकार एवं आलोचक इन सब बातों को धता बताते हुए ,अपने अभियान को पाक-साफ़ करार देते हैं.
जवाब देंहटाएंहमारे द्वारा बिना किसी के नाम का उल्लेख की गई चार कंधों की टीप से किसी को ऐतराज़ है पर उस से नहीं जो किसी व्यक्ति की जीवित रहते हुए ही तेरहीं या बरखी की बात करे.उल्टे उसकी बातों को उन्हें कोट करने की ज़रूरत पड़ रही है तो कोई उसका बैक-अप लेने को उतावला है.यह किस तरह का नैतिक अभियान है ?
बहरहाल,डायचे-वेले एक विशुद्ध व्यावसायिक अभियान है.आज फिक्सिंग की बात करने वाले कल यदि जीत जाते हैं तो कोई शिकायत नहीं करेंगे.
अब चर्चा स्वदेसी परिकल्पना की होगी उस विदेसिया की नहीं !
हाँ अब हम परिकल्पना सम्मान को आयोजित करने में लग जाय-जिसे कलेश हो होता रहे!
हटाएंमैने अपने ब्लाग विज्ञान विश्वको ना ही नामांकित किया, ना ही किसी से कहा। किसी पाठक ने स्वंय ही कर दिया! इसके बाद भी मैने इसके लिये वोटो के लिये अपील नहीं की, क्योंकि
जवाब देंहटाएं१। मेरे अधिकतर पाठक छात्र है, वो इन वोट देने लेने के पचडो मे नहीं पड्ते। विज्ञान के पाठक ऐसे भी होते कितने है?
२। यदि किसी पाठक को वोट देना है और यदि उसने मेरे लेखों से कुछ पाया है वह मांगे बिना भी देगा। किसी अपील की क्या जरूरत ?
३। कोई पुरसकार / अधिक वोट गुणवत्ता कि गारंटी तो नहीं! मेरे ९०% पाठक गूगल से आते है, बिना किसी प्रचार के , उस पर से फरमाईसे लेकर भी कि उन्हे क्या पढ्ना है।
४।सारे लेख कापी-राईट मुक्त है, कितने जगह कापी हुये है, अखबारो मे छपे है, और क्या चाहिये? उपयोगिता का इससे बेहतर प्रमाण क्या?
५। मेरा ब्लाग अभी तक अविवादित रहा है, उसे ऐसा ही रहने देना चाहता हुं!
६। मै स्वांत सुखाय लिखता हुं, किसी पुरस्कार की कोई अपेक्षा नही।
इन सभी मुद्दो को अंगूर खट्टे हैं कहा जा सकता है, परवाह नही :-)
आशीष जी ,
हटाएंनिसंदेह विज्ञान विश्व आपकी विज्ञान के प्रति गहन रूचि और समर्पण का ब्लॉग है .
आशीष जी,
हटाएंकोई अंगूर खट्टे वट्टे नहीं हैं ।
आप निस्संदेह बहुत उपयोगी जानकारी लगातार शेयर कर रहे हैं ।
और आपको सच में इन "सम्मानों" (???) का कोई लालच नहीं है ।
यह कैसा सम्मान है जिसे गालियाँ दे और खा कर पाया जाता है ?
अफसोस राजनीति यहाँ भी हावी हो गई. .
जवाब देंहटाएं१.मुझे धक्का लगा -दोनों ही सामूहिक ब्लॉग हैं और ईमानदारी तो सभ्य/अकादमिक जगत में बरती ही जानी चाहिए -खबर तब भी बनती और डॉ जाकिर अली 'रजनीश' का सम्मान भी कुछ कम न होता . यह दो टूक बात है। आपको धक्का लगना स्वाभाविक है। हमें आपसे सहानुभूति है।
जवाब देंहटाएं२. साई ब्लॉग और तस्लीम ने वैज्ञानिक प्रसार के ब्लॉग हैं। लेकिन जितना आकर्षक और अपीलिंग साईब्लॉग का विज्ञान प्रसार का अंदाज है उसके मुकाबले तस्लीम का कहां। दोनों की पापुलर पोस्टें देखकर यह बात साफ़ हो सकती है। साईब्लाग में देखिये-(i)नारियां क्यों बनाती है यौन सम्बन्ध ? एक ताजातरीन जानकारी ! (ii)नारी-नितम्बों तक आ पहुँची सौन्दर्य यात्रा !(iii)पशु पक्षियों के प्रणय सम्बन्ध (३)-बड़े खतरे हैं इस राह में (डार्विन द्विशती विशेष ) (iv)क्या महिलाओं के लिए छलावा है चरम सुख ? (v)कामोद्दीपक भी हैं नारी के कान ...मनोरम यात्रा का नया पड़ाव (vi)दोहरी भूमिका में हैं नारी के वक्ष ...
कितना तो अपीलिंग है विज्ञानप्रसार। अब इसके मुकाबले तस्लीम की पापुलर पोस्टें देखिये। लगेगा जैसे वाल्वो की ए.सी.बस से उतारकर किसी लोकल बस में बैठा दिया गया हो जबरियन।
(i)प्रेमी-प्रेमिका वशीकरण मंत्र (ii)लाल किताब के सिद्ध टोटके (iii)सर्वमनोकामना पूर्ति मंत्र (iv)पुत्र प्राप्ति के उपाय (v)काले साए : आत्माएं, टोने-टोटके और काला जादू ...
साईब्लॉग का नामांकन होता तो विज्ञान का सौन्दर्यपक्ष मजबूत होता। इसके न होने से धक्का लगना स्वाभाविक है।
३.इस इनाम की चयन प्रक्रिया ऐसी है कि अगर वोट से इनाम मिलने होते तो कुछ बच्चे दिहाड़ी में लगाकर खूब सारे वोट बटोरे जा सकते हैं। कोई बंधन नहीं। एक आदमी एक जगह बैठा खूब सारे खाते बनाकर कित्ते ही वोट करे।
४.बाकी आशीष ने अपनी बात कही ही।
आपके मानस पुत्रों के लिये शुभकामनायें।
अनूप जी
हटाएंजिस सौन्दर्य पक्ष को आप साईब्लॉग में देख रहे हैं उसके इतर के भी कई लेबल हैं वहां
मगर आप को तो अपनी रूचि का ही विषय चाहिए :-)
आपने इन पोस्टों को पढ़कर नारी के नख से शिख तक के सौन्दर्य के पडावों पर विराम लिया है ब्लॉगर का श्रम सार्थक हुआ !
हटाएंहमने कोई पोस्टे पढ़ी नहीं। शीर्षक ही देखे। उनसे ही अन्दाज लगा कि कैसा विज्ञान पसरा है।
हटाएंओह हो हो आप बाल ब्रह्मचारी हैं उन पोस्टों को पढने में प्रत्यक्षतः लज्जा आती होगी न ? :-) कोई आधी आबादी वाला जान जाएगा तो कह नहीं देगा कि लो भला अपने अनूप जी भी तो वईसे ही निकल गए ,घोर कलजुग है -इमेज का लफडा भी ससुअर बहुत बुरी चीज है -कोई बात नहीं है छुप छुपा के पढ़ते रहिये -कौन चेक कर रहा है :-)
हटाएंऔर अपनी कहूं तो एक वैज्ञानिक चेतना संपन्न का नजरिया अलग होता है ! वह बाल ब्रह्मचारी नहीं होता !
अपनी कहूं तो एक वैज्ञानिक चेतना संपन्न का नजरिया अलग होता है ! वह बाल ब्रह्मचारी नहीं होता !
हटाएंवही तो सालों से देखते आ रहे हैं कि वैज्ञानिक चेतना क्या-क्या देख दिखाकर समृद्ध हुई है, हो रही है।
बाकी हमन आपको शुभकामनायें दीं और आपके प्रति सहानुभूति व्यक्त की। उसके लिये धन्यवाद तक नहीं दिया। ब्लॉगर के लिये पूरी पोस्ट में धन्यवाद की तलाश में बेचैन ब्लॉगर अपने यहां औपचारिकता प्रदर्शन में चूक कैसे जाता है?
जहाँ कहीं भी श्रेष्ठता वोटिंग पर आधारित होने लगती है, बेचैनी होने लगती है। पर कोई मानक भी तो हो, उत्तर न पाकर चुपचाप बैठ जाता हूँ।
जवाब देंहटाएंयहाँ तो बस नामांकन ही मानक है
हटाएंहिंदी ब्लॉगिंग में जब भी पुरस्कारों की बात होती है , कोई न कोई विवाद उठ खड़ा होता है . मुझे लगता है इसके पीछे अंग्रेजों का हाथ तो नहीं :)
जवाब देंहटाएंजिनको पुरस्कारों के चयन की विधि नहीं पता , उन्हें सूचना प्रेषित करने तक तो ठीक है , कौन किसको वोट दें , नहीं दे , अपनी मर्जी है ! काहे की मगजमारी :(
अरविंद जी,
जवाब देंहटाएंजैसे हैरत आपको हुई, ऐसी ही हैरत मुझे भी हुई जब मुझे किसी ने ये जानकारी दी कि इन पुरस्कारों के लिए हिंदी के एक मात्र जूरी सदस्य के ब्लॉग को जाकर देखिए...वहां लिंक रोड पर जूरी के माननीय सदस्य ने 20 ब्लॉग्स और उनकेी मॉडरेटरों के नाम लिंक सहित दे रखे हैं...ज़ाहिर है कि जूरी सदस्य के ये पसंदीदा ब्लॉग्स होंगे...और ये लिंक आज के नहीं कई साल से इस ब्लॉग्स पर हैं...अब इन 20 ब्लॉग्स में तीन अलग अलग ब्लॉग्स के नाम डायचे वेले के नामांकित ब्लॉग्स की सूची में स्थान भी पा जाते हैं...इन तीन में से एक ब्लॉग ऐसा भी है जिसके मॉ़डरेटर को अकेले ही उनके दो ब्लॉग्स के लिए तीन नामांकन मिले हैं...
इऩ पुरस्कारों के लिए जितने भी सुझाव आए उसमें अंतिम नामांकित ब्लॉग्स को छांटना जूरी सदस्य का ही काम है...यहां तक कि वोटिंग के बाद भी अंतिम तौर पर विजेता ब्लॉग का चयन जूरी सदस्यों के हाथ में ही होगा...मेरा सवाल यही है कि अगर जूरी सदस्य अगर अपने पसंदीदा ब्लॉग्स को ही नामांकित कराने का ज़रिया बनता है तो क्या नैतिक रूप से ये उचित है...आप किसी मुकदमे को भी देखे अगर जज को पता चल जाता है कि वादी या प्रतिवादी में से कोई उसका दोस्त, रिश्तेदार या पहले से जान-पहचान का है तो वो अपने को मुकदमे की सुनवाई से अलग कर लेता है...लेकिन यहां तो जूरी सदस्य पुरस्कारों की सुझाव, नामांकन और नतीजे की हर प्रक्रिया, हर कदम से जुड़े हैं...क्या उन्हें ये सब देखते हुए खुद को अलग नहीं कर लेना चाहिए था...क्योंकि
Caesar's wife must be above suspicion.
जय हिंद...
रवीश कुमार हो सकता है इन ब्लागों के फैन रहे हों और संयोग से इनके नामांकन भी मिले हों -अब वे ब्राडकास्ट मीडिया के आदमी हैं -बहुत व्यस्त रहते होंगे - समय की किल्लत को देखते हुए जाने समझे ब्लागों का चयन आसान रहा होगा ! अब इसमें डोयिचे वेले वाले बिचारों का क्या दोष ?
हटाएंकिसी महापुरुष ने कहा है व्यस्त रहें न कि अस्त-व्यस्त
हटाएंरवीश साहेब जमीनी स्तर के पत्रकार हैं, और 'हलाली मीट' उन्हें कुछ न कुछ जमीनी स्तर की ब्लॉग्गिंग दिखाई दी होगी ... सो डोयिचे वेले के आगे परोस दिया. वाकई अब भला डोयिचे वेले का क्या दोष.
मुझे कभी नहीं लगा की ब्लॉग लिख कर लोग कुछ ऐसा चमत्कार कर रहे हैं की उन्हें सम्मानित किये जाने की परंपरा डाली जय। लेकिन क्या करें कुछ लोगों को ऐसा भ्रम होता है की अगर वो समुद्र में पेशाब कर दें तो सुनामी आ जाएगा। ऐसे लोग जब हिंदी में ब्लॉग लिखते हैं तो इन्हें लगता है की ये लोग हिंदी पर उपकार कर रहे हैं। अपने इस चमत्कार को ये लोग समाज सेवा, हिंदी सेवा, साहित्याकारिता अदि जाने क्या क्या समझने लगते हैं। अब जब खुद को ये इतना कुछ समझते हैं तो इन्हें पुरस्कार की लालसा भी हो ही जाती है। कोई और पुरस्कृत ना करे तो खुद ही पुरस्कार देना शुरू कर देते हैं। मैं तो सभी लोगों से यही अपील करूँगा की जरा वास्तविकता में आकार विचार करें और सोचें की ब्लॉग लिख कर आप कौन सा तीर मार रहे हैं की आपको सम्मानित किया जाय। मुझे तो ये सब आयोजन लाटरी जितने वाले इ मेल्स की तरह का ही लगता है। मुझे नहीं लगता की बॉब साहब किसी को फ्री में जर्मनी बुलाएँगे। अतः एक दुसरे की तंग खीचने की जगह ब्लॉग्गिंग के मजे लें
जवाब देंहटाएंकौन सा काम करने पर आपको चमत्कार लगेगा ? :-)
हटाएंacchaa raayta faila hua hai |
जवाब देंहटाएंइस मुहावरे का मतलब तनिक बतायिये तो -इधर नहीं बोला जाता !
हटाएं@ जो वैश्विक समुदाय के सामने यह फिर साबित करता है कि हिन्दी वाले और अब खासकर हिन्दी के ब्लॉगर कभी परिपक्व नहीं हुए और न होंगें.
जवाब देंहटाएंगलत बात!!
नामांकन पर प्रश्न खडे कर हिन्दी के ब्लॉगर समुदाय नें परिपक्वता ही नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता का परिचय दिया है। जिस नामांकन में किसी तरह के मानक ही न हों, 'हलाल मीट' जिसके मोडरेटर का अता-पता नहीं, लेखन सडते मांस सा हो, क्या यह प्रतिनिधित्व है आपके हिन्दी ब्लॉगर समुदाय का? खैर आप तो इसके नामांकन से उत्साहित होकर 'झटका मांस'ब्लॉग बनाने को आतूर थे… :) यदि यही हमारी दशा और यही हमारे हिंदी ब्लॉग का स्तर है तो यह सम्मान नहीं, हमारा अपमान है। समझो इस बात को… बांस पर लटकी गाजर है यह……सम्मोहन से बाहर आओ……… कुछ भी वैश्विक ख्याति नहीं मिलने वाली। नामांकन दर्शा रहे है कि हमारे यहां 'सपेरों' 'जंगलीपन' 'मांसभक्षण' और 'नारीउत्पीडण' आदि समस्याओं पर जागृति ही नहीं आई है।
सुज्ञ जी
हटाएंहलाल मीट का मुकाबला झटका मीट से ही हो सकता है . और इस मामले पर हम संतोष त्रिवेदी के साथ एक झटका मीट यानी झट पट मीटिंग करने वाले थे!
खानपान के मामले में शाकाहार श्रेष्ठ हो सकता है मगर यह व्यक्ति की निजी अभिरुचि पर निर्भर है !
"हमारे यहां 'सपेरों' 'जंगलीपन' 'मांसभक्षण' और 'नारीउत्पीडण' आदि समस्याओं पर जागृति ही नहीं आई है।"
हटाएंआप तो हैं ही जागृति फैलाने के लिए -एक एक कर फैलाते जाईये रायता (हे यह रायता वाला प्रयोग यहाँ गलत तो नहीं है ? )
@ हे यह रायता वाला प्रयोग यहाँ गलत तो नहीं है ?
हटाएंसही प्रयोग है अरविंद जी जागृति पर आपकी सोच से परफेक्ट मेच!!!
मुकाबला? खून सना वस्त्र खून से ही धोने से साफ नहीं होता अरविंद जी!! यहाँ बात मात्र शाकाहार की ही नहीं है. ब्लॉग की सामग्री का मूल्यांकन कीजिए,लेखन के स्तर को देखिए और उपयोगिता देखिए.... भले खानपान व्यक्ति की निजी अभिरुचि हो, मगर उचित अनुचित के विवेक से उन अभिरुचियों में ही तो परिवर्तन होना चाहिए.कोई भी परिवर्तन व्यक्तिगत इकाई से ही आरम्भ होकर समाज देश तक विस्तार पाता है.
हटाएंहमारा विरोध नामांकन की दुराग्रह भरी मंशाओं से है, हमारा दूसरे ब्लॉग्स से कोई विरोध नहीं है. मात्र इस एक ब्लॉग ने गुड को गोबर किया हुआ है. आप किसी भी ब्लॉग का समर्थन करें कोई समस्या नहीं. किंतु आप चयन की दुराग्रह भरी प्रक्रिया को भी समर्थन दे रहे है इसलिए कहना पडा.
हटाएंईमानदारी से इन विषयों की न तो जानकारी है, न लालसा है... इसलिए समझ में ही नहीं आता कि क्या कहूँ!!
जवाब देंहटाएंआप डायचे वेले द्वारा दिए जानेवाले ब्लॉगिंग पुरस्कार में पड़े हुए हैं, यहां तो कम्प्यूटर और ब्लॉगिंग से पूर्व पुस्तकों में रचे गए साहित्य हेतु दिए जानेवाले पुरस्कारों में भी बहुत खिलंदड़े होते रहे हैं। लिखते रहिए और जैसे दिखते हैं आप वैसे ही मस्त रहिए। आगे की शुभकामनाओं सहित। आपके प्रत्युत्तरों हेतु धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंताऊ या संसार में अटपट खटपट लोग, अब क्या कहें? एक कहानी याद आती है एक सिद्ध को सिद्धि मिल गई तो दूसरा सिद्ध भगवान से नाराज होगया. अब इसमे पहले का क्या दोष?
जवाब देंहटाएंआपने बात तो खरी खरी लिखी है पर अब डायचा वाला हो ही गया है तो क्या फ़र्क पडता है? अगले साल भी तो होगा तब देख लेंगें.:)
रामराम
ऐसे आयोजन हिंदी का मान बढ़ा न पायें तो कम न करें यह ख्याल ज़रूर रहे , हम सबको... बाकि तो जो चल रहा है वो सबके सामने है ही ...
जवाब देंहटाएंकोऊ नृप होय हमें का हानि..
जवाब देंहटाएंसंजय जी की बात, मेरी भी बात !
हटाएंनिष्पक्षता ज़रूरी है
जवाब देंहटाएं..... ८ मई को हिंदी का सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग घोषित किया जाता है..
जवाब देंहटाएंऔरत की हक़ीक़त
और इसी के साथ ही 'हलाल मीट' को अब तक का हिंदी भाषा में सबसे बढिया फोलो करने लायक ब्लॉग माना गया है..
९ मई को ही गूगल ने भी गाइड लाइन जारी कर दी है कि
उक्त दोनों ब्लोगों पर गर सुबह उठ कर टिप्पणी न की गयी तो उस दिन किसी भी ब्लॉग पर आपकी टीप मान्य नहीं होगी. और नया ब्लॉग बनाने समय ब्लोग्गर 'हलाल मीट' पर ऑटोमेटिक ही फोलो हो जाएगा.
नो न नुकर..
स्वस्थ हिंदी ब्लॉग्गिंग को हार्दिक शुभकामनाएँ :(
दीपक जी ,
हटाएंमुझे जो जानकारी मिली है अनुसार रवीश जी की भूमिका अब तक कोई ख़ास नहीं रही है -यह चयन नामांकनों के आधार पर डोयिचे वेले ने खुद किया है -हाँ अंतिम निर्णय जूरी का होगा !
नीचे लिखी पंक्तियां डॉयचे वेले के होम पेज के हिंदी सेक्शन में 4200 सुझाव शीर्षक के तहत पढ़ी जा सकती हैं-(लिंक- http://thebobs.com/hindi/)
हटाएंइस साल बॉब्स के लिए नामांकित किए गए ब्लॉग्स, वेबसाइटों और प्रोजेक्ट्स की संख्या 4200 तक पहुंची. यह पिछले साल की तुलना में एक हजार ज्यादा है. ऐसा भी हुआ कि एक ही वेबसाइट को कई लोगों ने नामांकित किया. इनकी संख्या 5584 थी.
यह शानदार है. आपकी मदद के लिए धन्यवाद.
अब ये सूची अंतरराष्ट्रीय जूरी को पहुंचाई जाएगी. जूरी हर भाषा में नामांकित ब्लॉग्स का मूल्यांकन करेगी और नामांकन फाइनल करेगी. हिन्दी के लिए यह काम रवीश कुमार करेंगे.
3 अप्रैल 2013 से ऑनलाइन वोटिंग शुरू होगी. इसमें हर श्रेणी में अपने पसंद के उम्मीदवार को आपके वोट की जरूरत होगी. इसी तरह से सबसे लोकप्रिय श्रेणी का उम्मीदवार चुना जाएगा.हर कोई इसमें वोट दे सकता है. वोटिंग की आखिरी तारीख है 7 मई 2013.
इसके अलावा हर भाषा की छह श्रेणियों में जूरी विजेता चुनेगी. इसके लिए जूरी की बैठक 4 और 5 मई को बर्लिन में होगी. इस दौरान बहस होगी उम्मीदवारों पर और फैसला होगा बहुमत के मुताबिक. 3 अप्रैल तक जूरी सदस्यों के पास काफी काम है. फिर शुरू होगी ऑनलाइन वोटिंग…
जय हिंद...
हिंदी भाषी बेल्ट की ब्लॉग्गिंग का भटाधार करने में तथाकथित इसी बेल्ट के बेहतरीन पत्रकार / एंकर की भूमिका सालों तक इतिहास में दरज रहेगी..
हटाएंडॉ अरविन्द आप रवीश जी की भूमिका को यूँ खारिज नहीं कर सकते.
आभार खुशदीप जी इस प्रामाणिक जानकारी को साझा करने के लिए
हटाएंशताब्दियाँ बीत गयी, पर हिंदीभाषी समाज को जयचंदों से छुटकारा नहीं मिला :(
जवाब देंहटाएंअच्छा, तो यह मामला भी इतनी चिरकुट और हास्यास्पद गति को प्राप्त कर चुका है।
जवाब देंहटाएंवाह मेरे शेरों, जमाये रहो बमचक।
हाय हाय...
जवाब देंहटाएं