रविवार, 7 अप्रैल 2013

हेरिटेज पर्यटन का एक दिनी आनंद -आईये साझा कीजिये!(सोनभद्र एक पुनरान्वेषण-4)


इन दिनों बच्चे यहाँ राबर्ट्सगंज आये हुए हैं -बंगलूरु से कौस्तुभ और दिल्ली से प्रियेषा तो हम दूनो  परानी के एकाकी जीवन में थोडा स्पंदन हुआ  -इस स्पंदन का परिणाम यह रहा कि हमने एक दिन प्रकृति की गोंद में  गुलजार करने का कार्यक्रम बना लिया -मैंने सोचा एक पंथ दो काज हो जाएगा -सोनभद्र के पुनरान्वेषण की मेरी श्रृंखला के लिए एक और पोस्ट का जुगाड़ हो जाएगा  -यहाँ के कई स्थलों पर जाने को लेकर मंथन होता रहा मगर अंत में महुवरिया जाने को लेकर एका हुयी जो आज भी महुआ के पेड़ों से आच्छादित एक सघन वन क्षेत्र है .पता नहीं आप लोगों के साथ ऐसा होता है कि नहीं मगर मेरे परिवार में सहमति मुश्किल से ही बन पाती है -यह बच्चों को अनावश्यक स्वतंत्रता देने का एक  परिणाम लगता  है  :-( . सबमें सहमति बनने में ही समय और मानसिक ऊर्जा दोनों का काफी अपव्यय हो जाता है .बहरहाल तय पाया गया कि हम महुवरिया स्थित  कैमूर वन्य जीवन अभयारण्य को आज गुलजार करके रहेगें . स्थानीय वन विभाग की मदद ली गयी और उनके एक  स्टाफ को लेकर हम आज भी दुरूह से जंगली क्षेत्र में कृष्ण मृग घाटी की ओर  बढ़ चले . 
 साभार: वेबसायिट -पूर्वी उत्तर प्रदेश पर्यटन ( हम इस दृश्य की फोटोग्राफी कर पाने में कामयाब नहीं हुए ) 

राबर्ट्सगंज से घोरावल मार्ग पर 15 किमी चलकर शाहगंज बाज़ार है जहाँ से बाईं और वनाच्छादित कैमूर पर्वत श्रृंखला  है -सुबह पौने सात बजे चलकर हम साढ़े सात बजे तक जंगल में प्रवेश कर चुके थे -मुख्य आकर्षण था जल्दी से जल्दी कृष्ण मृगों की एक झलक देखना जो बढ़ती गर्मी के साथ शिला खण्डों की  ओट लेने वाली थी और वहां  पहुँच वे फिर नहीं दिखते  .ट्रैवेल एजेंसी  ने इस वन्य पर्यटन के लिए बोलेरो के साथ एक दक्ष ड्राइवर हमें दिया था जो  दुर्गम पहाडी स्थलों पर भी आराम से ऐसे ड्राइव कर रहा था की हमें हैरत हो रही थी -अचानक ऐसा लगता कि सामने तो कोई रास्ता ही नहीं है -मगर वन विभाग का गाईड झाड़ियों के बीच से आगे की राह दिखा देता .करीब 45 मिनट तक चलते रहने के बाद भी एक भी काला मृग नहीं दिखा .हम निराश होते जा रहे थे .

 मृगों को देखने के लिए दूरबीन मुफीद रही 

तभी वनकर्मी ने अचानक वाहन रुकवाई और हमें तुरंत नीचे उतरने को कहा -हिरन हिरन के उच्चारण से हम फ़ौरन गाडी से उतर पड़े -वह दूर के एक उपत्यका की ओर  इशारा कर देखने को कह रहा था -मुझे कुछ नहीं दिखा -मैं कहाँ कहाँ कहता रहा और वह बार बार उंगली का इशारा करते हुए वहां वहां की रट लगाए जा रहा था -बेटे ने पहले देखा और कहा हाँ हाँ है तो वो देखिये . मुझे नहीं दिखा .लगा जैसे आसमान में अभी के धूमकेतु देखने के असफल प्रयास की पुनरावृत्ति सी हो रही हो . मगर यहाँ तो पूरा जमीनी मामला था ...तब तक बेटी ने और फिर पत्नी ने भी देखने की हामी भर ली -मैंने अविश्वास से पत्नी के चेहरे की ओर देखा -वहां हर्ष का उफान देखकर लगा कि वे मृगों को सचमुच देख चुकी थीं -अरे अरे वे तो गिनती भी करती जा  रही थीं -कुल अट्ठारह! अब मुझे एक बहुत नागवार  लगने वाला पराजय बोध  सा हो आया -हुंह! मैंने भी आख्नें उसी ओर गड़ा दीं जिस ओर कई जोड़ी आँखें पहले से उठी हुयी थीं -और लो मुझे भी दिख गया-मगर  बैकग्राउंड में वे ऐसे छुपे से थे कि बिना अभ्यस्त आँखों के उनका दिखना मुश्किल ही था और वे बड़े छोटे भी लग रहे थे .....मैंने दूरबीन की मदद ली जिससे आसमान और परिवेश की ब्यूटी निहारने में अब तक की मेरी प्रवीणता थी  -अब पहली बार वन्य जीवों पर दूरबीन साध रहा था .
 पुष्पित पलाश के  बैकग्राउंड में हमने फोटो खिचवायीं-साथ में डेजी भी ! 

वाह! अद्भुत !! नयनाभिराम !!! यह काले मृगों का एक झुण्ड था -मादाएं ज्यादा थी मगर दो नर थे जो बड़े ग्रेसफुल और मोहक लग रहे थे -उनका काला पृष्ठ भाग और नीचे का सफ़ेद हिस्सा अद्भुत कंट्रास्ट सौन्दर्य प्रगट कर रहा था -उन्हें पता लग गया था कि वे निगरानी में हैं। काले मृग के नर की सींग भी बहुत मोहक होती है।  इन्हें अंग्रेजी में ब्लैक बक - एंटीलोप कहते हैं यानि इनकी सींग कभी नहीं गिरती जबकि हिरणों की सींग हर वर्ष गिर जाती है -हिरन (डीयर ) और एंटीलोप में यही बड़ा फर्क है। अब  मैंने देखना चाहा कि पत्नी की गणना सही थी या नहीं -कम से कम पराजित होने के अनुभव की भरपाई का एक मौका था मेरे पास -मैंने गिनकर उनकी संख्या शुद्ध की और कहा 18 नहीं कुल 19 मृग हैं -उनकी बतायी संख्या से एक ज्यादा . उन्होंने कोई प्रतिवाद नहीं किया तो मुझे संतोष हुआ ,वैसे दूरबीन तो मेरे ही पास थी और उन्हें फिर से गिनने का मौका मैं देने की मूड में नहीं था . उस दल का नेतृत्व मादा कर रही थी -अचानक ही सबने तेज कुलांचे भरी और ये जा वो जा -जिधर से हम आये थे उधर ही पूरा दल लोप हो गया था ! हम अनिवर्चनीय आनन्द के मोड में थे -यहाँ रक्त पुष्पित पलाश के पेड़ों के बैकग्राउंड में हमने फोटो खिचवायीं -एक मकसद तो पूरा हो गया था . अब क्या? ..  कुछ इसी  मुद्रा में मैंने वन पथ प्रदर्शक की ओर देखा .
                                       गहरी खाईं के छोर पर गुफा चित्रों का रोमांचक स्थल
वह बहुत मितभाषी था और स्थानीय डायिलेक्ट में जो बोल रहा था उसे भी समझने में काफी मशक्कत हो रही थी -जैसे वह भालू को भाल कह रहा था -वह जब भी कुछ कहता हम एक दूसरे के चेहरे को प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लग जाते . उसका इशारा अब फिर से गाडी में बैठने के लिए था . अब हम लखनिया गुफा पाईंट पर पहुंचे जहाँ से सैकड़ों फीट नीचे की सपाट और 90 डिग्री की सीधी ढाल पर सोन नदी का विहंगम दृश्य था ....रहस्यानुभूति और रोमांच का भाव उत्पन्न करते इस दृश्य को हम मंत्रमुग्ध से निहारते रहे। हमने केव पेंटिंग्स के बारे में पूछा तो वनकर्मी ने उस सपाट सी बहुत खतरनाक खाईं के किनारे किनारे एक बड़ी सी छतरीनुमा चट्टान के नीचे जाने को कहा -मेरी तो हिम्मत नहीं हुयी -भारी शरीर लिए काफी झुक  कर जाना और वह भी खाईं के आख़िरी किनारे से ..न बाबा न ...जान है तो जहांन है -मगर बच्चे तो देखते देखते आँखों से ओझल भी हो गए और उनके ममत्व में माँ भी कहाँ रुकी -सब आँखों से ओझल बस मैं चिल्लाता रहा संभल के संभल के ....
  बूझो तो जाने! कौन सा जानवर बनाया था उस आदि चित्रकार ने  
उन्हें  गुफा चित्रकारी का आनन्द  लेते छोड़ हमारे पथ प्रदर्शक मुझे लेने लौट आये -मैंने उससे यह तहकीकात की कि पहले कभी भी कोई कैजुअलिटी आदि तो नहीं हुयी -कोई नीचे तो नहीं  गिरा -उसके यह बताने पर कि ऐसी कोई घटना कभी नहीं घटी मैं भी हिम्मत बांध बमुश्किल उंकरु -मुंकरु गुफा में प्रवेश तो कर गया -सामने ही दीवाल पर आदि मानवों द्वारा संभवतः पलाश के फूलों और मिट्टी से बनाएं रंग से भित्ति पर तरह तरह के चित्र उकेरे गए थे- जगली जानवरों के अनेक चित्र थे -बच्चे उनकी फोटो लेने में मशगूल थे -उनकी आनन्दित माँ किसी भी  खतरे से अनभिज्ञ रोमांचित दिख रही थीं  और मैं अपनी और सभी की सकुशल वापसी को लेकर व्यग्र था -आम भारतीय तनिक भी ऐडवेंचर प्रेमी नहीं है -मैं क्या खुद एक प्रमाण नहीं हूँ? बहरहाल धडकते दिल से मैं बाहर आया और फिर एक एक को चिल्ला चिल्ला कर वापस बुलाया -बेटे ने एक गुफा चित्र  फेसबुक पर लगाया है -आप बताईये कौन सा जानवर है -फेसबुक पर कई लाल बुझक्कड़ बूझ चुके हैं -मिजारिटी साही के पक्ष में हैं जबकि संतोष त्रिवेदी सूअर के पक्ष में हैं -आप भी तनिक बताईये -
अगला भाग अगली पोस्ट में !

39 टिप्‍पणियां:

  1. कभी मौका लगा तो एक बार यहाँ जरुर जाउँगा।

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  2. सलमान खाँ की वज़ह से ब्लैक बक के बारे में पहले पढ़ा था। किसी भी अभयारण्य में जानवरों के पास तक पहुँच कर कैमरे में क़ैद कर पाना टेढ़ी खीर होती है। आप भाग्यशाली हैं कि दूरबीन से ही सही उनको देख तो लिया।

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  3. यानि ब्लैक बक का देखना तो शेर से भी ज्यादा रोमांचक था। :)
    सही कहा , हम हिंदुस्तानी एडवेंचर में थोड़े कंजूस होते हैं।
    चित्र तो जंगली सूअर जैसा ही दिखा रहा है , हालाँकि नहीं है।

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  4. वाह वाह खूब घूम आये आप।

    साही लगा पहले। फिर सूअर सा लगा ।... पता नही क्या होगा।

    ब्लैक बक देखे आपने। हाउ लकी। :)

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    1. आईये न सपरिवार निमंत्रण है आपको भी ब्लैक बक दिखायेगें!

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    2. बाबा रे। हम नही जायेंगे। बहुत डरती हूं मैं । :( फोटो तक ठीक है। या टीवी पर।

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    3. मतलब आपने मेरा निमंत्रण ठुकरा दिया :-) इसमें डरने जैसा क्या है- बस उस गुफा चित्र को देखने मत जाईयेगा बाकी तो प्रकृति की सुरम्य गोद है !

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    4. है न? मेरा पहला तुक्का सही था। :)

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    5. आप दोनों डिसाइड कर के बता दीजियेगा।

      :) हमारे लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है। :)

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    6. एक संभावना और है और यह बात अचानक मेरे मन में फ्लैश हुयी है -हो सकता है दिखने में साही और सूअर के बीच का भी कोई जावर रहा हो हजारो साल पहले जो विलुप्त हो गया हो!

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    7. :)
      archaeological proofs are needed for such hypothesis - just going bye cave sketches it is tooooooo much of a - well - tukka as i said above :)

      it may have been so - but i do not think that porcupine and pigs families are closely enough related biologically. but we never do know.... it is all in the realms of guesswork.

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  5. with friends n family aside.. /
    any place is suited for party n picnic..
    pics r enticing... will visit some day :)

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  6. अच्छा ही है ऐसे स्थल के लिए समय निकाला आपने ..... कितना कुछ जानने समझने को है , साझा करने का आभार

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  7. किसी अभयारण्य में वन्य प्राणियों को देखना एक अद्भुत दृश्य होता है, हम भी रणथम्बौर में पूरा दिन जीप में घूमते रहे थे और दिन बीतते पता भी नहीं चला।
    फ़ैमिली गेट टुगेदर और वो भी प्रकृति की गोद में + पोस्ट का जुगाड़, एक पंथ कई काज हुये ये तो। बधाई।

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  8. आपके माध्यम से यह जानकारी हम तक पहुंची, धन्यवाद...

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  9. सुन्दर यात्रा वृत्तांत. कैमूर के बारे सुना था. ये पढ़ने के बाद जाने की इच्छा और बढ़ गयी है. लेकिन वक़्त के इजाज़त देते ही सबसे पहले बनारस की धरती पर जाना है.

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  10. परिवार में थोड़ी बहस के बाद एकमत ना हुए तो परिवार ही क्या :)
    नब्बे डिग्री की ढाल पर नदी का दृश्य ख़ासा रोमांचक रहा होगा !
    काले मृग के झुण्ड की तस्वीर भी होनी चाहिए थी .
    हमको भी साही ही लगा!
    रोचक लेखन !

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  11. ...आप घूमते रहें और इधर हम बुढिया रहे हैं !!

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  12. इधर विवाह में इस साही के कांटे का बड़ा महात्म्य है . इसी से सिंदूर दान होता है . मैंने देखते ही समझ लिया . यूँ ही आप हमें घुमाते रहें..

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  13. अरररे!!! घूमना बाकि रह गया क्या!!!? मुझे तो लग रहा था कि सर जी के साथ-साथ ही घूम रहा हूँ।

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  14. आपने यात्रा को जीवंत कर दिया

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  15. यंहा घुमने की इच्छा बढ़ा दी है आपने

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  16. लगता है चित्रकार ने चित्र नहीं, पहेली रचा है.

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  17. गहरी खाईं के छोर पर गुफा चित्रों का रोमांचक स्थल........बहुत अच्‍छा चित्र है।

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  18. आपको नव संवत 2070 की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

    आज 11/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की गयी हैं. आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  19. आपके संस्मरण से बहुत कुछ जानने को मिला है ... बहुत कुछ है देश में जिसको देखना अभी बाकी है ... नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...

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  20. इतना रोचक यात्रा-वृत्तांत, लगा जैसे हम भी इस यात्रा का हिस्सा थे.
    ये जानवर साही नहीं हो सकता साही के सारे शरीर में कांटे होते हैं
    पर्यटन का एक नया पता मिला .....धन्यवाद अरविन्द जी...


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  21. प्रकृति की गोद में बैठकर आनन्द के अतिरिक्त और क्या आ सकता है।

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  22. रोमांचक !
    वैसे यात्रा में जब घर का बड़ा साथ हो तो कैसी भी यात्रा हो उस में सारी जिम्मेदारी मुखिया के सर होती है बाकि सब मौज करते हैं!छोटा सा उदाहरण है कि गाडी चलाने वाला बेचारा सड़क पर ध्यान देता है आसप्[आस गुजरती गाड़ियों पर लेकिन उस में बैठे बाकि लोग आस-पास के दृश्यों का आनंद लेते हैं.
    गहरी खाई के छोर से तस्वीर लेना भी एक यादगार अनुभव रहा होगा.बहुत अच्छी तस्वीर है.
    -चित्र २ में दख रही आकृति से यह जानवर जंगली सूअर के जैसा लग रहा है.

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  23. एंटी लोप और हिरन का फर्क खूब सूरती से आप समझा गए हैं .चित्र साही का प्रतीत होता है जिसके सारे शरीर पर हिफाज़ती कांटे होते हैं तेज़ धार .बढ़िया संस्मरण चुटीला व्यंग्य विनोद और पारिवारिक स्पर्श लिए .

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