कल देखी डेल्ही बेली ..बकवास ..पूरा पैसा बर्बाद ..टोटल ट्रैश! आमिर ने कई अच्छी फिल्मे दी हैं बीते दिनों ..पीपली लाईव जैसी धांसूं और धोबी घाट जैसी प्रयोगधर्मी ..मगर यह तो बिलकुल पटरी से उतरी हुयी है ....गंदे अश्लील दृश्य, बात बात पर गंदी गालियाँ ...कला और सृजन के नाम पर भद्दगी ,फूहड़पन और भडन्गई!और इस फिल्म के नकारात्मक पहलुओं को ही प्रचार का मुद्दा बनाकर मीडिया के जरिये अभियान ..और समाज के सबसे स्फूर्त ,कल्पनाशील युवाओं को जाल में फांस कर उनकी जेब खाली करने की कवायद ..यही है डेल्ही बेली बस! यह परम्परा और संस्कृति से कटे लोगों का रुग्ण विलास है ....और एक कुचक्र युवाओं के उर्वर मन को संदूषित करने का ...यह बर्दाश्त के काबिल नहीं है ..
फिल्म में कहने भर को एक स्टोरी है मगर की नयापन नहीं ...हीरे की स्मगलिंग ,पैकेट का गलत हाथों में पहुंचना और फिर मारामारी ....कामुक दृश्य ,भोडे सेक्स का प्रदर्शन जिसके बारे में लिखना ही संभव नहीं -कैसे बेहूदे लोगों ने इसे सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए परदे पर उतारा है ...क्या सेक्स इतना ही गन्दा, गलीज है? एक मोटा पात्र तो पूरी फिल्म में केवल अधोवायु निकालता रहता है ...और कामेडी फिल्म के नाम पर प्रचारित हो रही इस फिल्म की पूरी कामेडी बस यहाँ से शुरू होकर लैट्रिन तक समाप्त होती है ....नारी समलैंगिकता ,कनिलिंगस ,अधेड़ उम्र की वैश्यावृत्ति आदि दृश्यों के सहारे फूहड़ हास्य कुरेदने की नाकाम कोशिश की गयी है ...इतनी बदतर फिल्म कैसे बनायी गयी मुझे इस पर आश्चर्य है ...एक पात्र (हीरो? )के पैंट के जिपर वाला हिस्सा एक सेक्स सेशन में सहसा उठा तो कैमरे का फोकस वहां! मुख मैथुन के दृश्यांकन के दौरान लडकी (हीरोईन ) की शिकायत कि मूछे सफाचट करो !युवाओं को यह सतही वाहियात कामुक सनसनी देकर क्या चाहती है आमिर और उनकी पार्टी ?
भला हो उस विंडो कन्या का जिसने टिकट लेते ही अप्रत्याशित और अभूतपूर्व रूप से मुझे आगाह किया कि फिल्म बेहद गंदी है और गालियों से भरी है ...उसकी इस चेतावनी को अनसुना कर एक बौद्धिक दंभ के अंदाज में मैंने केवल इतना कहा ,"मुझे पता है " ..उसने हताशा भरे चेहरे से टिकट मुझे सौप दिया ,साथ में पत्नी जी भी थीं जो फिल्म को ज्यादा देर नहीं झेल पायीं और हाल से निकल चलने का आग्रह किया ..और यह प्रस्ताव भी रखा कि टिकट को दूसरी फिल्म के लिए बदल दिया जाय -ऐसे अनुभव मेरे लिए जीवन में पहली बार हो रहे थे...मैं ठगा सा बस केवल फिल्म की बेहूदी टीम को कोसता रहा ..शिव शिव कर फिल्म पूरी हुयी और बेहद बुझे मन से हम हाल के बाहर निकले ...काश उस विंडो कन्या बात मान ली होती मैंने ....
यह फिल्म तो बैन होनी चाहिए ..हम कला और सृजन की अभिव्यक्ति के नाम पर भद्दगी का ऐसा नंगा नाच कैसे कर सकते है ..आखिर कोई तो श्लील अश्लील की सीमा रेखा बचे ..इस फिल्म ने तो धड़ल्ले से सब मिटा डाला ...और वह भी यूथ के नाम पर ..क्या भारत का यूथ इतना अशिष्ट और मार्बिड हो उठा है ? हमारे बच्चे ऐसे माहौल के पात्र हैं -नहीं नहीं यह सही नहीं हो सकता ...जरुर फिल्मकारों ने एक अतिरंजित दृश्य सामने रखा है ....इस फिल्म में ट्रेंड के नाम पर एक आईटम डांस खुद आमिर ने किया है जिससे ज्यादा पकाऊ कुछ नहीं हो सकता ..बस फूहड़ उछल कूद ....हो सकता है इसकी मूल कृति /स्क्रिप्ट कलात्मक रही हो मगर उसके फूहड़ दृश्यांकन ने इसकी हवा निकाल दी है!
मत जाईये देखने ,बात मानिये नहीं तो जाकर पछ्तायेगें! पहली बार हुआ है कि किसी फिल्म को मुझे एक भी स्टार देने का मन नहीं है ...
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"अक्सर बोल्ड टोपिक पर लिखने को विख्यात अरविन्द मिश्र अगर इसे थर्ड ग्रेड बता रहे हैं तो खूब प्रचारित, यह मूवी देखने की कोई जरूरत नहीं है "
जवाब देंहटाएंयह सलाह मैंने अपने एक दोस्त को दी है ! हम मूवी मनोरंजन के लिए जाते हैं न की गन्दगी और बदबू झेलने !
आभार आगाह करने को !
@जी, सतीश जी पूरी फिल्म ही विकृतिपूर्ण दृश्य समेटे है -इरोटिका और पोर्नो तक भी मंजूर हो सकता है ..मगर यह फिल्म और उसके भोंडे हास्य के दृश्य अझेल हैं -इससे लाख गुना बेहतर तो कोंडके थे =कुछ निर्मल हंसी तो छूटती थी ..भले ही वहां भी संवाद द्विअर्थी क्या निरर्थक ही थे ! इस फिल्म का पुरजोर विरोध होना चाहिए -यह हमरे बच्चों का मानसिक प्रदूषण के लिए उद्यत है !
जवाब देंहटाएं.कौन जा ही रहा है..
जवाब देंहटाएंपईसा देकर गाली सुनने ?
चवन्नी चैप वाले भाई तो बिछे बिछे जा रहे थे :-(
जनता को आगाह करने के लिये धन्यवाद! अच्छी फ़िल्में देखने का ही वक़्त नहीं है तो ऐसी फ़िज़ूल फ़िल्म कौन देखेगा?
जवाब देंहटाएंबात आप सही कह रहे हैं लेकिन आज-कल जिस बात की मनाही होती है वही लोग ज्यादा देखना चाहते है.
जवाब देंहटाएंहमारे शहर मे तो एक भी सिनेमा हाल नही। एक था उसे भी गिरा दिया गया है। लेकिन अगर टी वी पर आयी तब भी नही देखेंगे। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंइस फ़िल्म के लिये आमिर ने 'A' सर्टिफ़िकेट लिया है, अगर आप शायद सर्टिफ़िकेट देख लेते तो जाने से बच जाते, ये तो सब पैसा कमाने का जरिया है। पर कहीं न कहीं यह समाज का सत्य भी है।
जवाब देंहटाएंसंक्षिप्त विवरण में आपने जो कुछ बताया है, मुझे लगता है वह बहुतों को आकर्षित करने वाला है.
जवाब देंहटाएंसोच रहा था आज जाने के लिए अच्छा किया आप ने बता दिया..
जवाब देंहटाएंअब कोई और विकल्प ढूंढ़ लूँगा...मगर डेल्ही बेली ही क्यों??
आज कल के किसी भी खबरिया चैनेल की वेबसाइट देख लें बेहूदी नग्न तस्वीरों का पूरा एल्बम ही मिल जायेगा..
पतन हर दिशा में शुरू हुआ है डेल्ही बेली उसकीसिर्फ कड़ी एक है..
आपनी आगाह कर दिया पंडित जी.. न भी करते तो हम नहीं जाने वाले थे.., आभार आपका!
जवाब देंहटाएं@ डा.अमर कुमार:
चवन्नी चैप वाले अब्राहम साहब इन दिनों देवयानी चौबल के पदचिह्नों पर चल निकले हैं!!उनकी बातों पर ध्यान दिया तो एम्बैरेस होना भी पद सकता है!!
उधेड़बुन में हूँ....एक तबका इसे अच्छी फिल्म बता रहा है...और एक तबका घटिया...
जवाब देंहटाएंक्या करूं, आज देखने का प्रोग्राम था पोस्टपोन कर दिया है...
थोड़े दिन और इंतज़ार करते हैं... लेकिन एक बात तय है आमिर से ये उम्मीद नहीं थी... आज टाईम्स ऑफ़ इंडिया में महेश भट्ट और अनुराग कश्यप कहते हैं..हममे मैच्योरिटी आ रही है...क्या गाली देना मैच्योरिटी की निशानी है....धन्य है...
विरले ही होते हैं जो उत्कर्ष पर पहुँचकर नीचे ज़मीन पर धड़ाम नहीं गिरते....
जवाब देंहटाएंआमिर के फ़िल्मी जीवन पर दाग लगने से अब वे असली चंद्रमा नज़र आयेंगे.
हम को चान्स ही नहीं था फँसने का, अब आप ने और पक्का कर दिया। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमैं तो फ़िल्में देखने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता. अच्छा लगा ये जानकर कि मैंने कुछ नहीं खोया गर ये भी नहीं देखी तो :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत मिक्स रिव्यू पढने में आ रहे हैं. कुछ जगह तो उत्कृष्ट बोल्ड फिल्म से नवाज दिया गया...पर आपके मुताबिक तो..क्या हो गया आमिर खान को.
जवाब देंहटाएंसृजनशीलता बनाये रखने के लिये फूहड़ता बहा दी है, इस फिल्म के माध्यम से।
जवाब देंहटाएंफिल्में देखने की आदत छूटे हुए वर्षों हुए ! आप हां भी कहते तो हम शायद ही देखते !
जवाब देंहटाएंलगता है ये फिल्म बाज़ार में काफी चलेगी ! वेब साइट्स में इस तरह की खिड़कियों पे ट्रेफिक की रेलम पेल से तो यही अंदाज़ लगता है !
मिस्र जी , स्वयं तो पता होने पर भी देख आए और हमें मना कर रहे हैं देखने से । हा हा हा ! बढ़िया है !
जवाब देंहटाएंवैसे भैया जी , हम तो बहुत कम ही फ़िल्में देखते हैं । वो भी रिलीज होने के कुछ समय बाद ।
कल यहाँ टिकट नहीं मिल पाया. और अब दुबारा तो नहीं ही जा रहा.
जवाब देंहटाएंआपकी समीक्षा बता रही है की सफलता की बदहजमी शायद इसे ही कहते हैं ...
जवाब देंहटाएंअच्छा किया बता दिया , लोग पैसे फूंकने से बच जायेंगे !
धन्यवाद आगाह करने का...... स्पष्ट, सटीक समीक्षा
जवाब देंहटाएंइस फ़िल्म के बारे में दो बाते हैं।
जवाब देंहटाएं१) नयी प्रकार की फ़िल्में बननी चाहिये, क्योंकि अश्लीलता/हिंसा से भरी कुछ बढिया फ़िल्में भी हैं। शायद समय लगे लेकिन बालीवुड में भी ऐसी फ़िल्म बन पाये।
२) कोई शक नहीं कि मुझे ये फ़िल्म पसन्द नहीं आयी, आशा है बहुतों को नहीं आयी होगी और हजारों को ये आस्कर मैटीरियल भी लगी होगी।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
जवाब देंहटाएंआपने उस विंडो बालिका की बात तो मानी नहीं और आप चाहते हैं कि दूसरे आपकी बात मानें। :)
भाई साहब आप क्या कह रहें हैं -भडंग -ई पसंद इसे पसंद करते हुए बोल्ड होना कहतें हैं -क्या बोल्ड फिल्म बनाई है .और आपने भी भाई साहब इस की और पब्लिसिटी कर दी .यकीन मानिए समीक्षा पढके कई ने मन बना लिया होगा .काम की बात यह बतलाइए फिल्म को सर्टिफिकेट कौन सा मिला है ?जिप /पेंट की चैन के भाग का ऊपर उठना लिंगोथ्थान कहलाता है ज़नाब .
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देव,
मैंने यह फिल्म नहीं देखी और न ही देखना चाहता हूँ... पर आप से यह जरूर कहूँगा कि एक बार फिर से इस फिल्म को देखें पर पत्नी श्री के साथ न जायें... फिल्म को तब देखें जब बनारस की GEN NEXT इस फिल्म को देख रही हो... यों कहिये कि मेरा स्वभाव ही ऐसा है कि मैं किसी को भी कुछ सीख नहीं देता, इसीलिये GEN NEXT के फेसबुक पेजेस पर मौजूद (बतौर मित्र) रहता हूँ... थोड़ी सिनेमेटिक लिबर्टी तो ली होगी फिल्मकार ने, पर हमारे नगरों की एक पूरी की पूरी पीढ़ी कुछ इसी तरह का बोलती, सोचती व व्यवहार करती है... भला मानिये या बुरा पर यह हकीकत है आज की... देहरादून में ग्यारहवीं में पढ़ने वाला लड़का फेसबुक पर अपने ही पुरूष मित्र के साथ फोटो खिंचा अपने कपल होने की सगर्व घोषणा कर रहा है... और दसवीं ग्यारहवीं में पढ़ने वाली लड़कियों के फेसबुक कमेंट्स में लेस्बियनिज्म व यौनिकता का गहरा अंडरकरंट आप देख सकते हैं कभी भी... अभी हाल ही में मसूरी गया था... शाम को लौटते हुऐ कार के आगे आगे देहरादून के बोर्डिंग स्कूलों में पढ़ने वाले लड़के लड़कियाँ मौज मस्ती कर वापस जा रहे थे... हरकतें ऐसी थीं कि मैं भाई को बोला, गाड़ी रोक दो... इनको कम से कम पाँच किलोमीटर दूर जाने दो, तब चलाना...
@ हम कला और सृजन की अभिव्यक्ति के नाम पर भद्दगी का ऐसा नंगा नाच कैसे कर सकते है ..आखिर कोई तो श्लील अश्लील की सीमा रेखा बचे ..इस फिल्म ने तो धड़ल्ले से सब मिटा डाला ...और वह भी यूथ के नाम पर ..क्या भारत का यूथ इतना अशिष्ट और मार्बिड हो उठा है ? हमारे बच्चे ऐसे माहौल के पात्र हैं -नहीं नहीं यह सही नहीं हो सकता ...जरुर फिल्मकारों ने एक अतिरंजित दृश्य सामने रखा है
देश का दुर्भाग्य तो है ही... पर भारत के एक वर्ग का यूथ ऐसा ही हो चुका है... :(
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@प्रवीण शाह जी,
जवाब देंहटाएंAgain.... oh! not again!
शायद !और ऐसे ही धड़े में आमिर ने सेध लगा दी -परहेज सेक्स से नहीं उसके विकृत प्रदर्शन से है -ये पाईंट नोट किया जाय माई लार्ड !
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जवाब देंहटाएं.
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@ Again.... oh! not again!
शायद !और ऐसे ही धड़े में आमिर ने सेध लगा दी -परहेज सेक्स से नहीं उसके विकृत प्रदर्शन से है -ये पाईंट नोट किया जाय माई लार्ड !
देव,
विकृत तो यह आपके-मेरे लिये है... कुछ के लिये तो यह हकीकतबयानी है... आप मेरी मानिये तो, एक बार फिर देख आइये... स्कूल कॉलेज के बच्चों वाले शो में... नजरिया बदल जायेगा आपका... वैसे भी आप जैसे अच्छे फिल्म समीक्षक के लिये सबके नजरिये को देखना-समझना प्राथमिक आवश्यकता है... :)
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सेंसर बोर्ड चाय-पानी टेबल हो गया है। ऐसे में ये सब तो आना ही था।
जवाब देंहटाएं........
जवाब देंहटाएं........
pranam.
' A ' सर्टिफिकेट मिलने का शायद यही मतलब होता है.अच्छा किया आगाह कर के ..धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट नहीं आती तो शायद ना देखते, लेकिन अब उत्कंठा हो गयी है, सो देखनी पडेगी।
जवाब देंहटाएं(आपके पाठकों में मेरे जैसे लोग भी हैं, जिनपर उल्टा असर होता है)
प्रणाम
aagah karne ke liye bahut bahut dhanyvaad .
जवाब देंहटाएंTOI ne to 4 star de diye the lagta tha acchee movie hogee.suna hai interval bhee nahee hai.
samay bacha bahut bahut dhanyvaad.
@नहीं ,इंटरवल है !
जवाब देंहटाएं@अमृता तन्मय
जवाब देंहटाएंफिल्मों के अडल्ट होने से परहेज नहीं है ,वे सुरुचिपूर्ण तो हों -विकृतियाँ न परोस रही हों !
चलिए... फ़ार ए चेंज, आपकी बात रख लेते है और नहीं जाते डेली बेली देखने:) वैसे भी हम कोई पिक्चर देखने नहीं जाते :))
जवाब देंहटाएंPachhtane ke baad hi aisi baate baahar aayengi.aabhar
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट और प्रवीण शाह जी का कमेंट दोनो ही मानसिक हलचल पैदा करने वाला है। यह सत्य है कि युवाओं की भाषा, जीवन शैली कुछ अधिक बोल्ड हो चली है। फिल्म में वही दिखाया गया है जो समाज में चल रहा है। इन सब के बावजूद ऐसी फिल्मे समाज के लिए हानीकारक हैं। फिल्म का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। 'तारे जमीन पर' जैसी फिल्म बनाने वाले आमीर को अचानक से क्या हो गया ! कुछ समझ में ही नहीं आ रहा।
जवाब देंहटाएंब्लैक फिल्म में अमिताभ बच्चन पर असंवेदनशील भूमिका निभाने का तंज कस चुके आमिर ख़ान परफेक्ट बिजनेसमैन हैं...नर्मदा हो या देशहित से जुड़ा कोई अन्य मुद्दा, आमिर अगर अपनी संवेदनशीलता का रोना रोते हैं तो उसके पीछे भी कहीं न कहीं अपने प्रोडक्शन की फिल्मों का प्रचार ही उनके ज़ेहन में कौंध रहा होता है...
जवाब देंहटाएंअब देखिए न आप भी आमिर की फिल्म के नाम पर तीन-चार सौ रुपये का कूंडा कर आए...यानि आमिर अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब हैं...
जय हिंद...
ब्रांडेड मीडिया मैनेजमेंट तो बढ़िया किया है आमिर ने. गैर पेड न्यूज माध्यम ने ही कलई खोल दी. शायद आगे ब्लॉग समीक्षकों को भी मैनेज करने का ट्रेंड स्थापित हो.
जवाब देंहटाएंआपकी बात से पूरी तरह सहमत..
जवाब देंहटाएंमैं तो गल्ती से चला गया, इंटरवल के बाद वापस आ गया।
खरगोश का संगीत राग रागेश्री
जवाब देंहटाएंपर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी
स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें
वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे
इसमें राग बागेश्री भी
झलकता है...
हमारी फिल्म का संगीत वेद
नायेर ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत
कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों
कि चहचाहट से मिलती है.
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