बनारस का कल का तापक्रम ३.५ डिग्री तक ढुलक आया ,इस हाड कपाऊँ ठण्ड में ३५ लोग अकाल मृत्य का वरण कर लिए . मित्रगण मुझे बसंत उत्सव पर आमंत्रित कर रहे हैं .उन्हें कह दिया भाई अभी तो ठण्ड के मारे बुरा हाल है कुछ राहत मिलेगी तो बसंत सेना का भी स्वागत करूँगा ..सुबह रजाई में ही दुबका हुआ था कि मेरे लगोटिया यार और परिवारी चिकित्सक जार्जियन डॉ .राम आशीष वर्मा जी का फोन आ गया. बस मित्र का हाल चाल पूंछने .कहने लगे मैं अपना बी पी जरा रोज चेक कराऊँ -मैं घबडाया -
"..मैं... मैं ..ठीक हूँ डाक्टर साहब ..बिलकुल ठीक हूँ ...हाँ ठण्ड बहुत लग रही है ..
.".इसलिए ही कह रहा हूँ " उन्होंने जोर दे कर कहा.
"ठण्ड और बी पी में भी कोई सम्बन्ध है क्या डाक्टर साहब ? " मैं थोडा खीझा ..
" ...कई लोग बिना टिकट कटाए चल दे रहे हैं .....इसलिए सावधानी जरूरी है ." कहते हुए वे हँस पड़े..
"मतलब?' ......मैं समझ नहीं पाया था इस बात का मर्म ...
"मतलब ये कि जाड़े में ही अधिकांश हर्ट अटैक और ब्रेन हैमरेज और उसके चलते लकवा /फालिज की घटनाएँ हो रही है और लोग बिना डाक्टर के पास आये.... मतलब बिना टिकट कटा कर ही चल दे रहे हैं ...."
मुझे हंसी आ गयी ..इस बात में भे डाक्टर साहब को हास्य सूझ रहा था ..यह एक भारतीय ही कर सकता है शायद ..जन्म और मृत्यु इन दोनों विपरीत मामलो के लिए भी मुक्त हास्य यहीं भारत मे ही संभव है ....वे हँसते हंसाते मुझे यह पते की बात बता देंना चाहते थे कि मैं स्वास्थ्य के प्रति इस ठण्ड के मौसम में खास सतर्क रहूँ .और बी पी नियमित चैक कराता रहूँ . मनोज ने उन्हें शायद बताया है कि मैं इन दिनों ब्लागिंग में ज्यादा मुब्तिला रहता हूँ ..इसलिए भी वे मेरे बी पी को लेकर चिंतित हो उठे थे और आपने मनोविनोदी स्टाईल में मुझे आगाह करने को फोन कर दिया था .
मैं उस समय तो उनकी टिकट कटाने के बात का उसी मनोविनोदी लहजे में जवाब नहीं दे सका था मगर बाद में कुछ बाते दिमाग में कुलबुलाने लगीं .डाक्टर साहब को चिंता थी उन लोगों की जो बिना टिकट कटाए ही परमधाम तक चले जा रहे हैं -मतलब अचानक बिना किसी तैयारी और पूर्व सूचना के ....अब डाक्टर साहब को मैं क्या बताता ........मैं अपने गाँव के ही कई ऐसे बूढ पुरनियों को देख रहा हूँ जो पिछले दस सालों से परमधाम एक्सप्रेस का टिकट कटाए हुए सूर्य के उत्तरायण होनेका हर वर्ष इंतज़ार करते हैं मगर उनका टिकट ही कन्फर्म नही हो पा रहा है . वे जाने को तन मन से तैयार हैं ..मैं जब भी उनसे मिलता हूँ यही कहते हैं ,'बचवा दौअववा यिहूँ सलिया नाई लयिग हमै ..छोड़ दिहिस फिर एक साल नरक भोगे बिदा ....." यही बात वे पिछले कई साल से कह रहे हैं और मैं उन्हें हर बार दिलासा देता हूँ कि नहीं अभी तो आप बिलकुल स्वस्थ दिखते हैं ..और आपके चाहने से क्या होता है ,जब बुलावा आएगा तभी तो जाईयेगा ! और वे मेरी बात को सुनते हुए अविश्वास भरी नजरो से मुझे देखते हैं ..मानो यह जज करना चाहते हों कि मैं सच कह रहा हूँ या झूंठ -अब मैं चूकि सच्चे मन से उनके दीर्घायु वाली बात कहता हूँ इसलिए वे आश्वस्त होकर अगले वर्ष का इंतज़ार शुरू कर कर देते हैं .
मगर लगता है इन दिनों परम धाम में भी तत्काल सेवा शुरू हो गयी है -वेटिंग कन्फर्म ही नहीं हो रही है कुछ लोग बाग तत्काल सेवा का लाभ लेकर परम धाम को चल दे रहे हैं -डाक्टर साहब ऐसे लोगों की ही ओर इशारा कर रहे थे....क्या करियेगा यह ठण्ड ही ऐसी है ...इसमें कहीं जाने वाने की जरूरत नहीं है और न ही हिम्मत है -तत्काल सेवा किस लिए है ? जरूरी होगा तो नियोक्ता खुद ही तत्काल सुविधा से बुला भेजेगा .
तब तक मैं आराम करता हूँ ,रजाई में दुबकता हूँ ..मानव ऊष्मा का उपभोग करते हुए रात काटने के लिए .अगर जरूरत पडी तो .कल बी पी भी चैक करा लूँगा!
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Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
अरविन्द जी आपका लेख पढ़ कर दो कविता की लाइने भी बन गई ;
जवाब देंहटाएंये लोकतंत्र के चलते पुर्जे देखो कैसे-कैसे जुल्म ढा रहे,
वेटिंग लिस्ट वाले बैठे है, तत्काल सेवा वाले चले जा रहे ....
aअरविन्द जी ये सब ब्लागिन्ग का असर है एक साल मे हम भी मरीज हो गये। लगता है तत्काल सेवा हमे भी लेनी पडेगी। वैसे ऐसे मज़ाक ब्लागर ही कर सकते हैं शुभकामनायें ध्यान रखें
जवाब देंहटाएंदो बरस पहले बीपी हाई हुआ था। कुछ माह तक नियमित जोगिंग से मुकाम पर आ गया। तब से जब तब शाम के वक्त जब एक किलोमीटर दूर दूध लेने जाता हूँ पास ही डाक्टर साहब को बीपी नापने को कहता हूँ। हर बार नार्मल आता है। सर्दी में खूब हरी सब्जियाँ खाई हैं और खाया है देसी दानेदार गुड, बिना नागा। कल से सरसों का चेंपा उड़ रहा है। श्रीमती जी ने हरी सब्जियाँ बन्द करने का ऐलान कर दिया है इस भय से कि अनजाने में भी शाकाहारी होने का व्रत भंग न हो जाए।
जवाब देंहटाएंआप मस्त रहिए। हमारे यहाँ दिन की सर्दी कम या यूँ कहें कि गायब सी हो गई है। लेकिन रात का तापमान गिर गया है।
यहा भी भीड़भाड़ वहाँ भी धक्कापेल क्या किस्मत है ना हो तो अन्य साधनो हां याद आया सर्वजन हिताय की बस सेवा से ही यात्रा की सलाह दे डालिये मान्यवर पक्का है बेटिकट भी जायेन्गे तो भी कुहासे मे कही ना कही परमधाम तक पहुन्च ही जायेन्गे ये मुमुक्षु जन बेचारो को सीनियर सिटिज़न का भी लाभ नही मिल रहा है वैकुंठ जाने मे बडी अन्धेर्गर्दी है भाई सो ओढ ले रजाई और सीटी बजा के बोले आल इज़ वेल
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तब तक मैं आराम करता हूँ ,रजाई में दुबकता हूँ ..मानव ऊष्मा का उपभोग करते हुए रात काटने के लिए .अगर जरूरत पडी तो .कल बी पी भी चैक करा लूँगा!
हा हा हा! आदरणीय अरविन्द जी,
यहां तो दिन भी रजाई में ही कट रहा है, वैसे मैं तो कहूंगा कि बीपी नापना आप सीख ही लें, बहुत आसान है।
आपने ठंढ के बहाने यह बात कही..और हमलोग अक्सर किसी नयी उम्र वाले के एक्सीडेंट की खबर सुन...यही सोचते हैं...कि ईश्वर इतनी नाइंसाफी क्यूँ करता है...
जवाब देंहटाएंकल दायें कंधे में दर्द उठा था तो एक बार यही ख्याल आया..... कि कहीं हार्ट अटैक तो नहीं? लेकिन बाद में पता चला कि ठण्ड से गैस चढ़ गई थी.... फिर बी.पी. नपवाया...सब नोर्मल था.... लेकिन ठण्ड में तो इस बात का डर तो रहता ही है...कि कहीं सटक ना लें इस नामुराद दुनिया से... अभी हमने पैंतालीस नहीं पार किया है.... लेकिन फिर भी डर तो रहता ही है.... आजकल जवान क्या और बूढ़े क्या? वैसे ठण्ड में प्रोपर चेक अप कराते रहना चाहिए... मैं तो पुर्णतः शाकाहारी हूँ... लोग कहते हैं कि नॉन-वेज से गर्मी बनी रहती हैं....(वैसे! मेरे शाकाहारी होने पर ...लोग मुझे भौकाली भी कहते हैं..) ...अब यह बता दीजिये कि मानव ऊष्मा का उपभोग कैसे करते हैं? हम भी कर लें....
जवाब देंहटाएंक्यों डरा रहे हैं भाई साहब...?
जवाब देंहटाएंमैं तो रोज सुबह सात बजे तक तैयार होकर मेयो हाल चला जाता हूँ। एक घण्टे तक रैकेट भाँजने के बाद गीला टीशर्ट बदलना पड़ता है।
ठंड से डरकर रजाई में दुबकना कोई मर्दों का काम थोड़े न है। रोज दौड़ लगाइए... ससुरा जाड़ा भागेगा क्यों नहीं..! :)
डॉक्टर साहब ने मज़ाक मज़ाक में बड़ी बात कह दी अरविन्द जी।
जवाब देंहटाएंलेकिन घबराइये नहीं, ठण्ड में बी पी हाई नहीं होता।
हाँ गतिविधियाँ ज़रूर कम हो जाती हैं।
वैसे दिनेश जी, जोगिंग के बजाय वॉगिंग करें तो बेहतर होगा।
@@महफूज यह विवाहितों का राज है -आपको नहीं बता सकता, सारी !
जवाब देंहटाएंक्षद्म नाम से पूंछ लो !
अब बता दीजिये कैसे करते हैं मानव ऊष्मा का उपभोग? छदम नाम से आया हूँ....
जवाब देंहटाएंअब ये साढ़े तीन डिग्री वाला बहाना छोडिये मिसिर जी क्या हम जानते नहीं कि रजाई में काहे दुबके पड़े हैं ? बाहर निकलिये , तनि वाक ऊक कीजिये मह्फूज रहियेगा !
जवाब देंहटाएंशीत लहरी...और तत्काल टिकट ...तो अकसर साथ-साथ हो जाते हैं खास करके जो बेघर होते हैं उनके लिए..
जवाब देंहटाएंलेकिन जिस तरह आप बता रहे हैं वास्तव में बड़ा भयावह होगा इस ठण्ड से निजात पाना...घरों की बनावट ...दरवाजे-खिडकियों की झिरियाँ ठंढ में अपना भरपूर योगदान कररही होंगी...
यह भी सच है कि ठण्ड में बी.पी. लो होने का चाँस हो जाता है.....हड्डी कंपा देने वाली ठण्ड पड़ रही है..आपलोग बच के रहिएगा...
और आपका आलेख बहुत ही रोचक....
शुभकामना...
आज मजाक में ही गम्भीर विषय पर लेखनी चल गयी ,
जवाब देंहटाएंठंड ऐसी -बाप रे बाप ,
बचपन से आज तक कभी इस दिन तक ऐसी ठंड नहीं देखी,
और हाँ, मैंने तो कभी आपकी ब्लागिंग का जिक्र डॉ साहब से नहीं किया,कल उनसे मेरी मुलाकात होने वाली है अब जरूर कर दूंगा.
बनारस, अस्सी, गलियाँ, घाट ... जाने क्या क्या याद आ गए !
जवाब देंहटाएंआप सोचेंगे इनका इस पोस्ट से क्या सम्बन्ध? है, इस लेख में जिसे ब्लॉगर ही रच सकते हैं, बनारसी स्पर्श है भैया! है!! अभिधा का सौन्दर्य। शब्दों की कोई सायास बुनावट नहीं...
_______________________
सुन रहे हैं जी..बहुत ठंड है. नपवाने मे तो क्या परेशानी है..बिना टिकिट से तो बेहतर ही है :)
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ भैया ,
जवाब देंहटाएंयी कहावत गाँव गिराव में है -
लड़िकन के त बोलब न
जवान लागे भाई
बुढवन के छोड़ब न
चाहे कितनौ ओढब रजाई
अब आप जवान माचो आदमी
और मैं ...रजाई ना छोड़ब ...
ठंड तो जानलेवा हो ही रही है अबके , मगर उसे भी कहां भान होगा कि ब्लाग्गर इस बहाने भी कई कई पोस्ट ठेलेंगे , बेचारे महफ़ूज़ भाई को नहीं बताया आपने , अब वो भी अगला प्रश्न पूछ ही बैठेंगे , एक और पोस्ट बना के , आखिर लाल लंगोटे वाले सांड ठहरे
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
@ सिद्धार्थ
जवाब देंहटाएंअरे भाई तुम्हारा त्रिदोष संतुलन ठीक है इसलिए ठंड नहीं लगती। मुझे बहुत लगती है। पीर समझ सकता हूँ।
@ महफूज
मानव शरीर का तापमान स्थायी रहता है और उससे ऊष्मा का क्षरण वातावरण में होता रहता है। रजाई ओढ़ने पर यह ऊष्मा रजाई और शरीर के बीच में ही निबद्ध होती रहती है। इसी निबद्ध ऊष्मा को मानव ऊष्मा कहते हैं। ऐसा इसलिए कहते हैं कि अधिकतर मानव ही रजाई ओढते हैं (अपवाद भी हैं )। मानव रजाई ओढ़ने पर इस ऊष्मा का उपयोग शरीर को ठंड में गर्म रखने के लिए करता है। वैज्ञानिक इसी को 'मानव ऊष्मा का उपभोग' कहते हैं।
विवाहित होने की दशा में दम्पति द्वारा एक ही रजाई का प्रयोग होता है। परंतु निबद्ध ऊष्मा की मात्रा दुगुने से अधिक होती है। इस अतिरिक्त ऊष्मा के यथार्थ कारणों की अभी तक वैज्ञानिक मीमांसा नहीं हो पाई है इसलिए ऊष्मा की यह अतिरिक्त मात्रा राज माने रहस्य है जिसकी खोज में कवि जन भी लगे रहते हैं। चूँकि अतिरिक्त ऊष्मा की मात्रा दम्पतियों में अलग अलग होती है इसलिए इस रहस्य के उद्घाटन हेतु विवाहित होना आवश्यक है। वैज्ञानिकों के पास जितने आंकड़े उपलब्ध हैं, वे किसी एम्पीरिकल सूत्र के अनुसन्धान हेतु पर्याप्त नहीं है , इसलिए स्वत: अनुभूति महत्वपूर्ण हो जाती है।
(इस अंश का प्रयोग विज्ञान आधारित ब्लॉगों में आभार प्रदर्शन के साथ किया जा सकता है।)
भाई हम तो हमेशा तेयार रहते है, हम कोन सा पट्टा लिखा कर लाये है,सांसे देने वाले जब भी सपलाई बन्द कर दी तो भाई हम चले जायेगे.... कोई डर नही.
जवाब देंहटाएंऐसे मज़ाक में ही गम्भीर बात कह देना आपके ही बस की बात है. जवाब नहीं आपका. और टिप्पणियाँ पढ़कर मज़ा आ गया. ठंड तो इस वर्ष सच में ही बहुत अधिक पड़ रही है.
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है आपने!
दुबकने से ठंड नहीं भागती। खेलने, व सैर की सलाह देने वालों से सहमत हूँ। ऐसा करने वालों का टिकट भी जल्दी नहीं कटता।
जवाब देंहटाएंवैसे वसंत पंचमी के दिन यह तापमान! गजब है।
घुघूती बासूती
@गिरिजेश भाई ,आपका भी जवाब नहीं -महफूज को मानव ऊष्मा के बारे में अब भली भांति ज्ञात हो गया होगा , कुछ जोड़ना चाहता हूँ -
जवाब देंहटाएंआपने द्वितीय पैरा में जो विवेचित करने का प्रयास किया गया है वह विज्ञान के दूसरे अनुशासनों में "सिनेर्जिज्म " के नाम से जाना जाता है -यहाँ भी "सिनेर्जिज्म" की ही परिघटना ()मूर्तिमान होती है .यदि अलग अलग रजाईयों के भीतर मानव तन हैं तो अलग अलग ऊष्मा का जो नियत मान होगा मान लीजिये वह 'क' और 'क ' है ,अब एक रजाई में ही अगर दो जन हो गए तो निकलने वाली ऊष्मा, क+क = २क न होकर २ 'क' से अधिक "क" हो जाती है जैसे ढाई या तीन क तक -.यही सिनेर्जिज्म है !
सावधानी :ऐसे प्रयोग गैर विवाहितों के लिए वर्जित हैं.
()छूट गया -phenomenon of synergism!
जवाब देंहटाएंवेटिंग लिस्ट वाले बैठे हैं ..तत्काल सेवा वाले चले जा रहे हैं ...आजकल यही ज्यादा हो रहा है ...
जवाब देंहटाएंकल की घटना पर बहुत सटीक बैठती हैं ये पंक्तियाँ ...अपनी स्कूटी से कॉलेज जा रही एक परिचित छात्रा बस से कुचल कर चल बसी ...एक का मजाक दूसरे के लिए त्रासदी बन गया ....!!
इस आलेख को पढ़ते ही जो पहली प्रतिक्रिया मन में आयी ...टिपण्णी ...सॉरी सॉरी ...टिप्पणी में लिख दी ...फिर इस पूरे आलेख को पढ़ा और प्रतिक्रियाओं को भी ...
जवाब देंहटाएंवसंत कहाँ नहीं आया ...सब तो बौराए लग रहे हैं ...:)...
तत्काल सेवा की यही तो महिमा है।
जवाब देंहटाएंये माटी के चोला के कौन ठिकाना रे भाई
जवाब देंहटाएंबुढे बैठे रही गए चले गबरु जवान रे भाई
उनसे कमबख्त दिल लगा के रोग ले बैठे
पता नही कब चला चली की बेला रे आई
कब तक युवा रहेगा बसंत?
चिट्ठाकार चर्चा
सब प्रकाण्ड विद्वान् हैं....!! और अब तो गुरुओं ने सप्रसंग व्याख्या कर दी है ..अब का....!! गुरु गुड़ रहेंगे और चेला चीनी...!!
जवाब देंहटाएं------------आपकी पोस्ट आज दिल को छू गयी,लोग-बाग़ तो बसंत मना रहे है , अरे कैसा वसंत ,गाँव का तो हाल बेहाल है ,मम्मी का फोन आया था कह रही थी इस ठंड में गाँव में अब तक पांच मौते हो गईं------ -----------
जवाब देंहटाएंइन दिनों परम धाम में भी तत्काल सेवा शुरू हो गयी है -वेटिंग कन्फर्म ही नहीं हो रही है कुछ लोग बाग तत्काल सेवा का लाभ लेकर परम धाम को चल दे रहे हैं
जवाब देंहटाएंआजकल कार्पोरेटाईजेशन का जमाना है. उपर यमराज जी ने भी चित्रगुप्त की जगह सब IIM और हार्वर्ड पास आऊट की भर्ती करली है लाभ कमाने के लिये.
इसीलिये कि तत्काल सेवा मे मुनाफ़ा ज्यादा है अत: आजकल रेल्वे की तरह यमराज जी भी तत्काल सेवा को प्रोमोट कर रहे हैं.:)
रामराम.
अब बता दीजिये कैसे करते हैं मानव ऊष्मा का उपभोग? छदम नाम से आया हूँ....
जवाब देंहटाएंहा हा हा..
कमबख्त ब्लॉगिंग जो न करवाए।
जवाब देंहटाएं--------
औरतों के दाढ़ी-मूछें उग आएं तो..?
ज्योतिष के सच को तार-तार करता एक ज्योतिषाचार्य।
मौसम ने निकम्मा कर दिया मित्रों
जवाब देंहटाएंवरना हम भी आदमी थे काम के
ये है बुखार ब्लोगिंग का..........
जवाब देंहटाएंइस घोर ठंढी में भी पोस्ट लिख ले रहे हैं आप. ब्लॉग्गिंग है तो एक्टिव तो रखे हुए ही है !
जवाब देंहटाएंमिसिर जी !
जवाब देंहटाएंनमस्कारान्ते ...
आजकल टीपना कम हो पा रहा है , कानों में कुछ गूँज-सा रहा है , माइक्रोफोन
की सीली- सीली आवाजों में वही खिचाव आज फिर ........... ओफ्फ्फो ---
'' दुनिया ने याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिलफरेब हैं ग़म रोजगार के | ''
.......... फिर भी 'दरो-दीवार पे हसरत से नजर करते हैं ' ..
और ये काम करता रहूँगा , , ,
जीनोम वाली पोस्ट बेहद पसंद आयी , और यहाँ पर तो पोस्ट व टीप की समृद्धि को
निरख रहा हूँ , आश्चर्यचकित हूँ और अभिभूत भी !
.............. आर्य ! आभार ,,,
phenomenon of synergism....हा! हा! मिश्र जी आपका भी जवाब नहीं। सर्दी के माकूल एक लाजवाब पोस्ट...टिप्पणियों ने तनिक गर्मी तो बढ़ा ही दी है।
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