क्या अपना सम्मान खो रहे हैं पद्म सम्मान ?
वैसे मैंने तो आज इस मनो- बीमारी से रोकथाम के लिए अंतर्जाल अवकाश / ब्रह्मचर्य (व्रत) ले रखा था मगर शाम आते आते यह टूट गया है -ब्रह्मचर्य में शायद इसका टूटना ही सदैव अन्तर्निहित है .मगर बात इससे भी ज्यादा गंभीर है .कभी कभी अभिव्यक्ति के सरोकार ऐसे होते हैं कि ऐसे व्रतों का टूट जाना ही ठीक है .आज के अख़बारों में पद्म पुरस्कार/सम्मानों की घोषणा हुई है और मन व्यथित हो गया है .आमिर को पद्म भूषण और महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी को मात्र पद्म श्री ?...और उन्होंने इसे यह कहकर ठुकरा दिया है कि यह उनका सम्मान नहीं बल्कि अपमान है .यह उन्होंने बिलकुल उचित ही किया है .वैसे अगर वे इस सम्मान को स्वीकार कर लेते तो यह सम्मान खुद सम्मानित हो उठता .मगर लगता है अब भारत का यह श्रेष्ठ सम्मान खुद अपना सम्मान खो चुका है .
आखिर इस सम्मान के मानदंड क्या हैं ? क्या यह सचमुच राष्ट्रीय सम्मान के मापदंड पर खरा रह गया है ? ऐसा लगता है पद्म सम्मान अब राष्ट्रीय नहीं महज सरकारी सम्मान रह गये हैं .अँधा बांटे रेवड़ी सरीखा ही. जिस पर सरकार ,पी एम ओ , कृपालु हो उसने झटक लिया सम्मान -देश में काबिल योग्यतम चिकित्सक को कौन ढूंढें ,चलो प्रधान मंत्री का आपरेशन करने वाले को ही एक पद्म थमा दिया जाय . आश्चर्य है कि खोजने से भी भारत रत्न नहीं मिल रहे हैं -जबकि पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी वहीं है -चिराग तले अन्धेरा .आखिर क्या वे भारत रत्न के योग्य नहीं हैं ? क्या इसलिए कि वे कांग्रेसी नहीं हैं ? भारत में बहुत कम ऐसे होगें जिन्हें वास्तव में भारत के इस रत्न को "भारत रत्न " देना आपत्तिजनक लगे बाकी तो सब इस निर्णय को सर माथे रखेगें. कितना विवेकहीन है पद्म पुरस्कारों का निर्णय ! अब आमिर को पद्म विभूषण और रेखा को मात्र पद्म श्री ? क्या आधार है भैया इसका ? क्या आमिर रेखा से ज्यादा श्रेष्ठ हैं ? उन्हें पद्म भूषण और रेखा को पद्म श्री से तो ऐसा ही लगता है -लेकिन क्या सिने प्रेमियों को भी यह निर्णय गले उतरता है ? समान और सम्माननीय प्रतिभाओं के साथ यह भेद भाव क्यों ? कहीं आमिर को कांग्रेस पार्टी के प्रचार तंत्र का ब्रांड अम्बेसडर बनाने की तो मंशा नही है ?
मुझे बराबर लगता रहा है कि पद्म पुरस्कार का भी तीव्र राजनीतिकरण होता गया है .कोई सुस्पष्ट और पारदर्शी चयन प्रणाली नहीं रह गयी है .बस कुछ योग्य लोगों के साथ तमाम अयोग्यों को इस सम्मान (? ) की फेहरिस्त में जोड़ लिया जाता है -यह भी ध्यान नहीं रखा जाता है कि किसे कौन सा सम्मान दिया जा रहा है .महाकवि शास्त्री जी के शिष्यों तक को पद्म श्री न जाने कब का मिल चुका और आज जब उन्हें पद्म समान दिए जाने की बात भी होती है तो आमिर को उनके ऊपर रख दिया जाता है .अब वे किसी पुरस्कार के मोहताज तो नहीं रहे मगर कम से कम उन्हें अपमानित तो मत करो महानुभावों!
मिश्र जी, आप को वेदना हुई और आप ने उसे अभिव्यक्त किया। वेदना इस लिए हुई कि आप आज भी भारत सरकार से न्याय की आशा रखते हैं। मुझे कोई वेदना नहीं हुई, मेरी उन से कोई प्रत्याशा नहीं थी। मैं तो अब ये समाचार पढ़ना सुनना ही बंद कर चुका हूँ, कि किसने किसको पुरस्कृत किया। हाँ जब किसी को वास्तव में कोई जन सम्मान मिलता है तो अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंजिस सरकार की साहित्य अकादमी सेमसंग पुरस्कार दे रही हो। उस से क्या आशा की जा सकती है। वस्तुतः हमारा गणतंत्र सठिया गया है। उस के घुटने जवाब देने लगे हैं। वह चलने में असमर्थ होता जा रहा है। गणतंत्र के वृद्ध होने की गति तीव्र हो गई है।
इस गणतंत्र से आशाएँ करना व्यर्थ है। अब तो इस के स्थान पर लोक गणतंत्र बनाने की आवश्यकता है।
सभी विजाताओं को बहुत-बहुत बधाई, बाकी पुरस्कार के लिए तो उपर वाला ही जांने ।
जवाब देंहटाएंAapki baat se sahmat hoon Dr. sahab...
जवाब देंहटाएंJai Hind...
आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूँ.... अब राष्ट्रीय पुरुस्कारों का राजनीतिकरण हो चुका है.... मेरे साथ भी सन २००५ में मुलायम सरकार ने ऐसा भेदभाव किया था.... जबकि मुझे अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार मिल चुका था.... यहाँ सब जगह लोब्बिंग है....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंi am completely agree with you.
जवाब देंहटाएंसब गणतन्त्र का खेल है
जवाब देंहटाएंआमिर खान को देश ज्यादा पहचानता है
शास्त्री जी को कौन
बहुत ही समय सामयिक आलेख...इसमें क्या शक कि इस तरह के पुरस्कार भी पूर्णरूपेण राजनैतिक होते जा रहे हैं...अब सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही qualification देखी जाती है कि आप किस पार्टी के पक्षधर हैं ..
जवाब देंहटाएंमुझे आमीर के पद्म भूषन मिलने से कोई आपत्ति नहीं है ...हाँ महामहीम अटल विहारी बाजपाई को इस काबिल नहीं समझे जाने का क्षोभ अवश्य है....
आपके इस विवेकशील आलेख कि लिए आपका हृदय से धन्यवाद....आपकी उठी ऊँगली के साथ हमारी भी एक उंगली साझा कर रही है....इस अन्याय की ओर... उठ कर...!!
आपने सही मुद्दा उठाया है. पर जैसा कि दिनेश जी ने कहा कि शायद हमें सरकार से ऐसी कोई आशा ही नहीं रखनी चाहिये कि वह पुरस्कारों से योग्य व्यक्तियों को सम्मानित करेगी. मुझे तो ऐसा लगता है कि पुरस्कार समिति के सामने जो पड़ता है या अधिक लोकप्रिय होता है, उसी को पुरस्कार या सम्मान मिल जाता है. सही मायनों में पद्म पुरस्कारों का तो अब कोई महत्त्व ही नहीं रह गया है. मैं तो ठीक से पढ़ती ही नही हूँ, इनके बारे में. पर जिस तरह से ये सम्मान दिये जा रहे हैं, उसकी निन्दा तो होनी ही चाहिये.
जवाब देंहटाएंपुरस्कारों का यह हाल है की सरकार को भी नहीं समझा आता किसे दें .
जवाब देंहटाएंलोगों से aplication मंगए जाते हैं
सन २००५ में मेरा नाम यश भारती के लिए भी नोमिनेट हुआ था.... पर वो बड़े बी... के छोटे बी.... को मिल गया .... जबकि प्रबल दावेदारी में मैं था.... यह तो है ही.... कि आजकल चापलूसी का ज़माना है.... जो जितनी चापलूसी कर ले.... उतना ऊपर चढ़ ले.... भले ही टैलेंट ना हो....
जवाब देंहटाएंagree with dear Adaa ji.....
आपने सही मुद्दा उठाया है. पर जैसा कि दिनेश जी ने कहा कि शायद हमें सरकार से ऐसी कोई आशा ही नहीं रखनी चाहिये कि वह पुरस्कारों से योग्य व्यक्तियों को सम्मानित करेगी. मुझे तो ऐसा लगता है कि पुरस्कार समिति के सामने जो पड़ता है या अधिक लोकप्रिय होता है, उसी को पुरस्कार या सम्मान मिल जाता है. सही मायनों में पद्म पुरस्कारों का तो अब कोई महत्त्व ही नहीं रह गया है. मैं तो ठीक से पढ़ती ही नही हूँ, इनके बारे में. पर जिस तरह से ये सम्मान दिये जा रहे हैं, उसकी निन्दा तो होनी ही चाहिये.
जवाब देंहटाएंपहले भी जब किसी को अंतराष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो फिर भारत सरकार जागती है... हम भी कुछ दे दें. बाकी राजनीति तो होनी ही चाहिए :) हम तो वैसे ही इन पुरस्कारों पर ध्यान नहीं देते.
जवाब देंहटाएंआज पुरस्कारों की ही इज्जत नही ओर देने वाला भी शायद पहले ही भाव तोल कर लेता होगा, इस लिये अब इन की घोषाणा से कोई आशयर्य नही होता, वरना भारत मै रतनो की कमी नही, आज यह सब बिकाऊ माल बन गया है, आप के लेख से सहमत हुं
जवाब देंहटाएंछोडिये इन सब को, वेसे दिल को ठेस तो लगती ही है
पहले दरख्वास्त लगाइये कि मैं पुरुस्कार के काबिल हूं. फिर जिला प्रशासन से जोड़-तोड़ करिये कि वह आपका नाम भेज दें. अगर आपकी किस्मत बुलन्द हुई तो फिर ......आप भी......
जवाब देंहटाएंइसमे कोई शक नहीं की पुरस्कार वितरण से लेकर पद चयन तक सभी प्रक्रियाओ का पूरी तरह राजनीतिकरण हो चूका है ! चापलूस शहद चाट रहे है और योग्य मूह ताक़ रहे है, पर एक और कटु सत्य तो यह भी है की जिस तरह गलत को अनदेखा कर हम लोगो ने ही उसे अपना अधिकार बड़ाने का मोका दिया है! उसी तरह अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठा कर ही सिर्फ उसे बदलने की कोई सम्भावना बन पाती है ! इस और आपने ध्यान दिया अपनी आवाज़ बुलंद की आप प्रशंसा के पात्र है यक़ीनन आपकी आवाज़ मैं हमारी आवाज़ भी शामिल है !!
जवाब देंहटाएंसरकार से इतनी नाराजगी क्यों ....उनकी तो स्पष्ट नीति है ...पद्मविभूषण आदि पुरस्कार के लिए योग्यता कहाँ आड़े आती है ....और बाजपेयी जी जैसे निर्विवाद जनप्रिय नेता को पुरस्कार देकर क्या उन्हें अपनी लुटिया डुबोनी है ...फिर तो उनके दल में ही बाजपेयीजी को आदर्श माना जाएगा ....
जवाब देंहटाएंअन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए आपको साधुवाद ...!!
इन पुरस्कारों की संवैधानिकता पर पहले ही विवाद हो चुका है क्यों कि संविधान के अनुसार गणतंत्र किसी को उपाधि से नहीं नवाजेगा।
जवाब देंहटाएंआज भी अगर कोई इन पुरस्कारों को नाम के आगे लगाता है तो वह असंवैधानिक है।
इनमें जनता के धन और संसाधन जाया होते हैं इसलिए मुद्दे तो उठने ही चाहिए। बहुत पहले से ही ये पुरस्कार राजनीति के मोहरे बन चुके हैं।
इन्हें 'पद्म' नहीं 'दम' पुरस्कार कहना चाहिए। कौन दमदार है, कितना दमदार है, यह सरकारें तय करती हैं।
कुछ रेवड़ियाँ इधर उधर उछाल दी जाती हैं ताकि बन्दरबाँट पर प्रश्न न उठें लेकिन प्रश्न तो उठ ही जाते हैं। शास्त्री जी ने अच्छा किया।
जिसकी जितनी पहुँच है, उतना उतना पाये...यही सिस्टम है जी!!
जवाब देंहटाएंअब इससे बडा अन्याय और क्या होगा? जो अभी तक हमारी अनदेखी की जारही है. और आप कुछ बोल अन्ही रहे हैं हमारे बारे में.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
एक तराजू बनाई जानी चाहिये
जवाब देंहटाएंउसमें पुरस्कार और संभावित
पुरस्कार विजेता का तुलन
होना चाहिए
जहां पर विजेता भारी हो
वहां पर पुरस्कार/सम्मान को
आभारी होना चाहिए
इसके विपरीत दिया जाये
तो लाचारी होना चाहिये।
वैसे अधिकतर जगह
दिखती है लाचारी।
.
जवाब देंहटाएं.
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आदरणीय गिरिजेश जी ने सही बताया है कि हमारा संविधान इस प्रकार के इनामों को सही नहीं मानता... इसीलिये कोई भी अपने नाम के आगे इन्हें लगा नहीं सकता...क्या करोगे ताम्रपत्र, शॉल और नारियल का?...पराधीन भारत में रानी द्वारा बांटे जाने वाले 'नाइटहुड', 'लॉर्ड' और 'सर' की उपाधि तथा वायसरायों द्वारा दिये जाने वाले 'रायसाहब' व 'राय-खान बहादुर' के ओहदों की तर्ज पर शुरू किये गये ये पुरस्कार आज २१वीं सदी के आत्मविश्वासी और अपरंपरावादी देश के लिये अपनी प्रासंगिकता बहुत पहले ही खो चुके हैं...बस इनका विसर्जन बाकी है... देर सबेर वह भी हो ही जायेगा नयी पीढ़ी के ही हाथों...देखते रहिये... मैं तो आश्वस्त हूँ पूरी तरह से इस बारे में।
सार्थक पोस्ट !
जवाब देंहटाएंदरअसल यह पोस्ट देश की ट्रेजेडी/कॉमेडी का चित्रण है।
नि:संदेह अब लगभग हर छोटा बड़ा पुरस्कार/सम्मान संदेह के घेरे में है। इन पुरस्कार कमेटियों में बैठे स्वमानधन्य निर्णायक अपनों को रेवड़ियाँ बांटते नज़र आते हैं। आजकल पुरस्कार के साथ पैरवीवाद भी होता है।
फिलहाल आदर्श वाक्य को दोहराते रहिये :
"पुरस्कार साहित्यकार से बड़े नहीं होते या पुरस्कार किसी के बड़ा साहित्यकार होने की गारण्टी नहीं होते"
ये पद्म बड़ा है मस्त-मस्त,
जवाब देंहटाएंमिलने वाला है मस्त-मस्त,
जो पिछड़ा है वो पस्त-पस्त,
इसमें नेता की नज़र मिली,
नहीं इसमें प्रतिभा की क़द्र हुई,
जो करे बराबर चरण ध्यान,
उसको मिल जाए पद्म ज्ञान.
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पद्म के लिए बहुत पहले एक कविता लिखी थी, अब सोचते हैं कि पद्म पुरस्कार हम भी देने लगें.
एक और विसंगति.........................सचिन के गुरु सचिन के बाद सम्मानित हुए हैं पद्म से.....................
मिश्रा जी, आपने बाजी मार ली… इस मुद्दे पर मेरी पोस्ट लगभग तैयार थी… अब उसे ज़रा Edit करके कल डालूंगा… आपने बेहतरीन लिखा है। फ़िर भी कोशिश करूंगा कि हल्का-फ़ुल्का मैं भी लिख सकूं… लेकिन अब कल ही होगा, क्योंकि कई बातों पर मेरी और आपकी पोस्ट में समानता है…। इसे कहते हैं विचारों का मिलन… :) अच्छी पोस्ट की बधाईयाँ…
जवाब देंहटाएंहम सबके मन में ये विचार कोंधते है आपने बहुत ही अच्छे तरीके से सभी के मन कि बातो को अभिव्यक्ति दे दी पढ़कर थोडा सुकून मिला|
जवाब देंहटाएंजब हत्या के आरोपियों को मिले सुर मेरा तुम्हारा गीत गाते देखा तो भी मन इतना ही व्यथित हुआ है |
कृपया बुरा न माने लेकिन आप भी तो इसी विचार धारा के वाहक हैं। जो विज्ञान साहित्य के लिये काम कर रहे हैं उन्हे आपने किनारे करके 'ब्लाक' दिया जिससे आपकी कुर्सी न छिने और चापलूसों की फौज तैयार कर ली है। दोहरे मापदंढ। वाह जी वाह।
जवाब देंहटाएंदरअसल आजकल सम्बंध हर जगह हावी है, फिर चाहे वे पुरस्कार हों अथवा ब्लॉगवाद।
जवाब देंहटाएंहम सुखी हैं - इन दोनो सज्जनों को नहीं जानते!
जवाब देंहटाएंतो ये कौन सी नहीं बात है ..कब से तो यही होता रहा है हर पुरुस्कार समारोह में खुले तौर पर राजनीती कि बू आती है...और जी योग्यता से पुरूस्कार का क्या मतलब ..? वो तो अपनी अपनी पहुंह का मामला है न
जवाब देंहटाएंएक बार शाहरूख खान ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि हम तो भांड हैं। जैसा करने को कहते हैं बस कर देते हैं। अब ऐसी ही बिरादरी को सारे पदम पुरस्कार मिलते हैं तो फिर इन पुरस्कारों का महत्व ही समाप्त हो जाता है। किसी कलाकार ने यदि देश हित में ऐसा अभिनय किया हो जिससे सर्वव्यापी परिवर्तन हुआ हो तब तो पुरस्कृत करो नहीं तो केवल नाचने कूदने के लिए ही देश के सर्वोच्च पुरस्कार की बलि चढ़ा दो, ठीक नहीं है।
जवाब देंहटाएंक्या अदम पदम के लिये परेशान हैं भाईजी. यहां नोबेल की बखत खत्म हो चली है. ओबामा साहब जिस दिन ३०,००० नये सैनिक भेजते हैं अगले दिन नोबेल शांति पुरस्कार लेते हैं. मजाक है सब.
जवाब देंहटाएंऔर आप इतने गम्भीर हो गये कि वेब ब्रह्मचर्य ही तोड़ बैठे. ना जी ना.... :-)
मिश्रा जी, इसमें कुछ गलत नहीं लगता कि आमिर खान को ये पुरस्कार दिया जा रहा है... क्योंकि जिस तरह आमिर खान ने मेधा पाटेकर का साथ नर्मदा बाँध रोको अभियान में दिया और कई समाज सेवा के काम करते रहे और इस सब के अलावा उनकी अधिकाँश फ़िल्में ना सिर्फ कला बल्कि सन्देश की दृष्टि से भी परिपक्व होती हैं... इस पुरस्कार के लिए सिर्फ कलाकार होना आवश्यक नहीं बल्कि वो सब भी चाहिए जिससे समाज को एक नयी दिशा मिले... फिल्मों के माध्यम से ही सही उन्होंने कई समस्याओं के खिलाफ आवाज़ बुलंद की है जो और कोई अभिनेता चाहे वो अमिताभ हों या रेखा नहीं कर सके और ना ही शाहरुख़... अगर काला कि ही बात थी तो अमिताभ, शाहरुख़ से बहुत पहले नसीरुद्दीन शह जी, ओमपुरी, अनुपम खेर, पंकज कपूर और कई बेहतरीन कलाकार आते हैं.. जिनके आगे आज भी अमिताभ सिर्फ एक स्टाइलिश कलाकार हैं... हाँ बात यहाँ आके जरूर गलत हो जाती है कि श्री जानकी बल्लभ जी को बहुत पहले वह सम्मान मिलना था जो आमिर खान को अभी मिला....
जवाब देंहटाएंवैसे
भी आज की युवा पीड़ी में किसे इन पुरस्कारों के बारे में मालूम है... यहाँ तो कई लोग ये ही चर्चा कर रहे थे कि पद्म श्री बड़ा है या पद्म भूषन.... और पढ़े लिखे लोगों का क्या कहें... मेरे ख्याल से देश का ५०% युवा ये नहीं जानता कि कौन सा पुरस्कार बड़ा है.... सिवाय भारत रत्न के...
जय हिंद....
इट्स आल अबाउट द मनी, हनी!
जवाब देंहटाएंइस देश की तो पुरानी रीत है-बिन मांगे मोती मिले.
जवाब देंहटाएंदीपक “मशाल” की बात से पूर्णतया सहमत।
जवाब देंहटाएंमहाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी
व आमिर खान को बधाई।
और सैफ साब को किस बात का?
जवाब देंहटाएंअपने ही आस=पास हुए कुछ शहीदों के संग हुये दोयम व्यवहार को देखते हुये और इन नटनियों की फौज को तमाम पुरुस्कारों से नवाजे जाते देख कर मन मेरा भी अजीब वितृष्णा से भरा हुआ है।
---आपसे पूर्णतया सहमत हूँ-----
जवाब देंहटाएंHow very tragic :-(
जवाब देंहटाएंYour anger & your post is valid
100 %
सरकारी कागजों पर दर्ज तहरीरों को आप सम्मान मानते हैं ?
जवाब देंहटाएंयह विचार आये थे बिलकुल मेरे मन में भी ! मन विचित्र हो उठा है,’भारत रत्न’क्यों नहीं !
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं असली लोकतंत्र.
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