अब अनुज से क्या डाह मगर कभी कभी गिरिजेश जी के आलस्य से जबरदस्त ईर्ष्या हो उठती है ...सारा आलस्य अपने में स्थित और स्थिर किये वे बाकी हम निरीह संसारियों को लास्य (ता) के नर्तन में झोक दिए हैं ...अब देखिये न कल सुबह दस बजे से निरंतर राजकीय कामों में लगे होकर एक फील्ड विजिट और जांच पड़ताल से उबर कर रात साढ़े बारह बजे जब घर लौटा तो मेरे पास कुल डेढ़ घंटे का आराम का समय बचा था ..क्योंकि उसके बाद अपने दो लंगोटिया मित्रों ..एक अमेरिका से आये डॉ प्रदीप सिंह और दूसरे सुल्तानपुरी डॉ.आर. ऐ. वर्मा को सपरिवार बाबा विश्वनाथ की मंगला आरती में शरीक कराना था ....सो एक घंटे सो भी लिया और फिर तैयार हो गया ड्यूटी के लिए ....घर से निकल कर रेडिसन होटल से मैंने मित्रों को लिया और बाबा के दरबार में अल्लसुबह हाजिरी लगा दी ....सुबह के पौने तीन बजे थे ....बाबा भोले नाथ की मंगला आरती शुरू हो चुकी थी ....सुबहे बनारस का नैसर्गिक आनंद और तिस पर बाबा की मंगला आरती ....क्या कहिये ..इस आनंद का वर्णन शब्दों में तो हो ही नहीं सकता ....
बताता चलूँ कि बाबा भोलेनाथ की चौबीस पहरों में कई आरतियाँ होती हैं ....सबसे पहली आरती होती है मंगला आरती ...सर्वतो भद्र कामना से बाबा का प्रातःकालीन अभिषेक पूरे बाजे गाजे और बधाई गान के साथ होती है और उसके बाद मंदिर आम दर्शनार्थियों के लिए खुल जाता है ...आरती देखने के लिए प्रति व्यक्ति २०१ रुपये का टिकट है ...फिर साढ़े ग्यारह बजे बाबा की भोग आरती होती है ...उनका भोग लगता है जो दर्शनार्थियों में बटता है . बाबा के भोग तृप्ति के बाद चराचर में भला अतृप्त कौन रह सकता है ....मुझे सबसे भव्य ,खूबसूरत आरती सप्तर्षियों द्वारा शाम ढलते ही की जाने वाली सप्तर्षि आरती लगती है ..जिसकी भव्यता और श्रृंगार अलौकिक है ....और सौन्दर्यबोध की ऐसी आकंठ तृप्ति कि मत कुछ पूछिए ..इसके पश्चात एक और श्रृंगार आरती और रात ११ बजे शयन आरती के बाद मंदिर कपाट बंद हो जाते हैं मंगला आरती के लिए ..
. आप भी प्रात दर्शन कीजिये बाबा विश्वनाथ जी के ...
तो आज हम मंगला आरती से सीधे लौटकर आपसे रूबरू हो गए हैं ...साढ़े चार बजे लौटा हूँ और अब इस समय साढ़े पांच बज रहे हैं ....नीद आँखों से कोसो दूर है और साढ़े आठ बजे फिर दोस्तों के साथ नाश्ता करना मुक़र्रर हुआ है ...अब मैं गिरिजेश जी (गिरिजा +ईश ) से डाह न भी करुँ तो आखिर कैसे ....? मगर वे बहुत भोले हैं इसका तनिक भी माख न रखेगें !
गिरिजेश जी और प्रिय बेनामी के अनुरोध पर कबाडखाना पर पंडित पद्म भूषण छन्नूलाल मिश्र जी के सुर में तुलसीदास कृत और मुझे भी बहुत प्रिय स्तुति का लिंक यह है ,आप भी जरूर सुनिए ...
जो भोला है उससे डाह कैसा.
जवाब देंहटाएंमैं बनारस आया, माफ कीजियेगा आपसे मुलाकात नहीं कर पाया. गर्मी से बेहाली का माहौल बनारस में था ही. वैसे भी कुछ कार्य सम्पादित करने थे वे भी नहीं कर पाया. अक्टूबर में फिर पहुचूंगा और आपके दर्शन अवश्य करूँगा.इस बार थोड़े ज्यादा दिनों के लिये प्रोग्राम बना रहा हूँ.
जय हो!! कभी मंगला आरती के लिए आपको फिर जगवायेंगे पौने तीन बजे..तैयार रहें. :)
जवाब देंहटाएंवाह प्रात: मंगलमयी हो गई. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट तो श्लेषमयी हो गई! जिसके अनुज स्वयं शंकर हों, उसे प्रणिपात देव ! :)
जवाब देंहटाएंआभार मेरी पोस्ट का लिंक देने के लिए।
चोरी के बाद बाबा का गया भौतिक शृंगार वापस कहाँ आया? हो सके तो उनका पुराना वाला शेषनागाच्छादित चित्र लगा दीजिए।
शेषनाग कभी कभी भ्रम में डाल देते हैं। शंकर के गले में तो विष्णु के उपर छाया करते ! वासुकी और शेषनाग में अंतर है न? नागों की परम्परा रहस्यमय लगती है। पूर्वी उत्तरप्रदेश में बौद्ध धर्म से वापस सनातन धर्म में आई कुछ जातियाँ अपने को नागवंशी कहती हैं।
लोकगाथाओं में शंकर भोले भण्डारी तो हैं लेकिन छलिया और कौतुकप्रिय भी हैं। भारतीयता को अगर कोई देव पूरी तरह से व्यक्त करता है तो वह है - महादेव। मुझे तो महादेव भारत के प्रतीक लगते हैं। इसीलिए ज्ञानवापी परिसर मुझे हमेशा गलदश्रु करता रहा है। बगल की मस्जिद तक हिन्दुस्तान की स्थिति को बखूबी बयाँ करती है। वहाँ जाने पर पीड़ा भी बहुत होती है। नन्दी कब तक राह अगोरेगा ?
नमामिशमीशान निर्वाण रूपं
.. इस स्तोत्र को भी यहाँ डालिए न।
प्रवासी मित्रों के साथ भोलेनाथ की मंगला आरती के दर्शन ...तो ये राज़ था ...
जवाब देंहटाएंमन प्रसन्न हुआ ...सुबह सुबह बाबा के दर्शन हो गए ...पॉवर कट के कारण थोड़ी देर से सही ...
कहते हैं शंकरजी को चढ़ाया हुआ प्रसाद आमजन को नहीं लेना चाहिए ...इसलिए ही शिव परिवार की स्थापना की जाती है ...गणेशजी को भोग अर्पित कर वही प्रसाद वितरित किया जाता है ...विश्वनाथ जी के प्रत्यक्ष दर्शन तो किये हैं मगर पूजन की परंपरा का इतना ज्ञान नहीं है ...(वैष्णव ठहरे..)
मंगला आरती किसी भी मंदिर में दर्शनीय और अनुपम आनंद देने वाली होती है ...
आभार !
@ नमामि शमीशान
जवाब देंहटाएंयह तो तुलसी रामायण में है। लिरिकल है। इसका राग यमन में अच्छा गान होगा। कबाड़खाना पर छन्नूलाल मिश्र का गायन उपलब्ध है:
http://kabaadkhaana.blogspot.com/2008/01/blog-post_7609.html
बहुत बहुत धन्यवाद ....हमारे यहाँ तो रात है ..पर बाबा के दर्शन से आनंद आ गया ...
जवाब देंहटाएंजय हो ...!!
आके हम भी कभी आपको ऐसे ही जगायेंगे :)
चपलता और आलस्य दोनो की कृपा से ये बगिया सुवासित है देव !
जवाब देंहटाएंजय बाबा विश्वनाथ !!!!
जय बाबा विश्वनाथ !!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ...
हर हर महादेव, काशी शम्भो विश्वनाथ.
जवाब देंहटाएंहर हर महादेव !
जवाब देंहटाएंजय हो आपकी !
नाम उनका भले ही गिरिजेश हो पर वे तो 'नख्लौ' मे पडे है ! सिद्ध ये हुआ कि पुण्य लाभ अरविन्द नाम से भी कमाया जा सकता है !
जवाब देंहटाएंआरती देखने के लिए प्रति व्यक्ति २०१ रुपये का टिकट है . अरे बाप रे अब भगवान के दर्शन के लिये भी टिकट? हम नही जायेगे चाहे कोई मुफ़ल मै भी ले जाये जी.
जवाब देंहटाएंआप का लेख बहुत सुंदर लगा,
पंडित जी! बम भोले के दर्शन से तृप्त हुए... बचपन की याद ताज़ा हो गई...
जवाब देंहटाएंआपकी ऊर्जा से बनारस का माहौल दमदमा रहा है । बाबा को इतना कम सोने देते हैं कहीं रूठ न जायें । चार घंटे की नींद भी नहीं !
जवाब देंहटाएंजय भोलेशंकर. आभार.
जवाब देंहटाएंवाह, आपने तो भोला बाबा के दर्शन करवा ही दिए....मजा आ गया :)
जवाब देंहटाएंछन्नू लाल मिश्र जी को मैं भी काफी पसंद करता हूँ....उनका गाया होरी खेलैं दिगंबर मसाने में वाला गीत तो मेरा फेवरेट गीत है ।
बाबा का आशीर्वाद मिला है आपको...बहुत सुंदर पोस्ट बनी है.
जवाब देंहटाएंजय भोले नाथ मंगला आरती मंगलमय हो शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया और शानदार पोस्ट! आपको बाबा का आशीर्वाद मिला है ये तो सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात है!
जवाब देंहटाएंहम जैसों को भी दर्शन करा दिए भोले के ! आभार !
जवाब देंहटाएंआप करते रहिए डाह! आखिर नजदीक रहने वाले ही करते हैं। हम तो इंतजार में हैं, बाबा के बुलावे के।
जवाब देंहटाएंहर हर महादेव !
जवाब देंहटाएंnamaeesh-meeshan, nirwaan rupam, Vibhumvyapakam , bramha ved-swaroopam
जवाब देंहटाएंNijam, nirgunam,nirvikalpam, Niruham,
Chidakash makaash vasam bhajehum...
Prabhu Darshan karwane ke liye aabhar
Har har Mahadev !
आपके भोलेनाथ जी के दर्शन के लिए हम भी पहुँचे थे, बिटिया की सहेली की माँ के साथ। दोनों बनारस में नए, न कभी उस शहर समान कोई शहर देखा था, न वैसी गलियाँ न वैसी भीड़। दोनों भीड़ में दर्शन के लिए अपने आप पीछे वालों के धक्के के भरोसे बढ़े चले जा रहे थे......
जवाब देंहटाएंअरे यह सब तो अपने ब्लॉग में लिखूँगी।
अभी बस इतना ही कि दर्शन करने वालों से ईर्ष्या है और सच में अच्छा ही हुआ कि हम साथ की स्त्री के खोए मंगलसूत्र में उलझ साथ की मस्जिद वाली बात पर ध्यान नहीं दे पाए अन्यथा यूँ ही .....
घुघूती बासूती
हमें भी शिव बाबा के दर्शन करा दिए ..आप ने पुण्य बाँटा है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
यही पर दर्शन हो गाये बाबा भोले नाथ के ..
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर।
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