विगत सप्ताह दो महत्वपूर्ण पुस्तकों की मानार्थ प्रतियां प्रकाशकों की ओर से मिली. पहली पुस्तक अनिल पुसदकर जी की क्यों जाऊं बस्तर मरने तथा दूसरी सतीश सक्सेना जी की मेरे गीत है .ये दोनों ही पुस्तकें जानी मानी शख्सियतों और ब्लागरों की लिखी हैं . अभी निकाय निर्वाचनों में अतिशय व्यस्तता के कारण इन्हें पढ़ तो नहीं पाया हूँ .मगर पुस्तक के आने पर उसके रैपर को खोलकर मुख्य पृष्ठ निहारने ओर एक सरसरी निगाह से पन्नों को पलटने का लोभ भला कहाँ संवरण हो पाता है . सो यह कृत्य तो सहज ही संपन्न हो गया .
अनिल पुसदकर जी की पुस्तक क्यों जाऊं बस्तर मरने दरअसल उनकी एक आत्मप्रवंचना है जिसमें वे एक पत्रकार की हैसियत से दैनिक भास्कर में लगातार पुलिस के विरोध में लिखने के बाद/बावजूद नक्सल हिंसा में शहीद पुलिस और परिवार के संवेदना के पहलुओं से रूबरू होते हैं . और नक्सली हिंसा के शहीद पुलिस एवं उनके परिवारों से जुड़े कई मौजू सवालों को पुस्तक में संवाद की शैली में उठाते हैं .यह संवाद उनके कई वर्षों के बाद अचानक मिले एक मित्र से होता है . पुस्तक का कलेवर नयनाभिराम है और वैभव प्रकाशन ,अमीनपारा चौक ,रायपुर ,छतीसगढ़ ने इसे बड़ी ही सुरुचिपूर्णता से छापा है . पुस्तक के सभी पृष्ठ बहुरंगी और प्लास्टिक कोटेड हैं .ज़ाहिर है पुस्तक का शेल्फ जीवन ज्यादा है.कृति के बारे में कभी फुर्सत से लिख सकूंगा .
दूसरी पुस्तक सतीश सक्सेना जी की मेरे गीत की भी चर्चा इन दिनों चल रही है . ज्योतिपर्व प्रकाशन, इंदिरापुरम गाजियाबाद ने इस पुस्तक -कवि के प्रथम गीत संग्रह को भी बड़े सलीके से छापा है . पुष्प छाया सज्जित आवरण आकर्षित करता है. .यह एक भरा पूरा गीत संग्रह है १२२ पृष्ठों का ...और भूमिका तथा गीतों के संकलन को एक नज़र में देखने से यह कृति कृतिकार के बारे में भी बहुत कुछ बताती हुयी लगती है -कोई गीतकार या कवि कैसे बन जाता है यह पुस्तक इसे बखूबी बयान करती लगती है . संकलित कुछ गीत पहले से ही पढ़े हुए हैं और विहगावलोकन के समय उनकी स्मृति भी कौंधती रही ...मैं सतीश जी के व्यक्तित्व और उनके कृतित्व का पहले से भी फैन रहा हूँ -इसलिए यह पुस्तक मेरे लिए बहुत प्रिय है और मेरे बुक शेल्फ की लम्बी अवधि तक शोभा बढ़ाने वाली है .
दोनों कृतिकारों को बहुत बहुत बधाई के साथ यह सुझाव भी की पुस्तक को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए आनलाईन फ्लिपकार्ट सरीखी सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए अपने प्रकाशक से कहें ...मेरी गुजारिश है कि ये पुस्तकें आप भी पढ़ें और लेखकीय श्रम को सार्थक करें .
दोनों पुस्तकें शीघ्रातिशीघ्र पढ़ने की बहुत इच्छा है।
जवाब देंहटाएंबड़े भाई, सतीश जी की पुस्तक स्वयं उन्होंने मेरे घर आकर भेंट की.. कृतार्थ हुआ.. बस एक बात का अफ़सोस रहा कि मैं उस पुस्तक की समीक्षा नहीं लिख पाया अपनी व्यक्तिगत परेशानियों के कारण.. अब कार्यमुक्त हूँ (यहाँ से) और भार मुक्त हूँ (आशाओं की पीड़ा से)..जाने के पूर्व लिखने का प्रयास रहेगा!!
जवाब देंहटाएंपुसदकर साहब की प्रशंसा सुनी बहुत है, पढ़ने का अवसर बहुत कम मिला है!!
अनिल भाई की यह पुस्तक यकीनन पढ़ने योग्य होगी, यह दिल्ली में कहाँ उपलब्ध होगी अगर बता सकें तो आभारी रहूँगा !
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
Congratulations to Writers :)
जवाब देंहटाएंsameeksha ke liye abhar aur sbubhkamnayen bhau aur bhaijee ko...
जवाब देंहटाएंpranam.
@अनिल पुसदकर जी की पुस्तक क्यों जाऊं बस्तर मरने दरअसल उनकी एक आत्मप्रवंचना है
जवाब देंहटाएं...आत्म-प्रवंचना से यहाँ आप क्या कहना चाह रहे हैं? शब्द खटक रहा है |
सतीश जी ने मुझे भी वह प्रति दी है,पर मैं जल्दी में नहीं हूँ.पुस्तक-भेंट के प्रति उनका आभार
आप के लिए कामना कि शीघ्र इन पुस्तकों को अपनी तरह से निचोडकर हमारे सामने रखें !
और बनाओ चेले.....
जवाब देंहटाएं:)
पुस्तक आकर्षक है और आपकी लेखनी से मिली झलक भी .. पढने की उत्सुकता बढ़ाती हुई..हमारी शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंसतीश जी की पुस्तक तो आने वाली होगी. मिलते ही पढ़ डालेंगे:)दूसरी पुस्तक के बारे में सुना ही है.कभी मिली तो जरुर पढेंगे.
जवाब देंहटाएंआपको मानार्थ प्रतियां मिल गईं , सतीश भाई द्वारा वरदान तो हमें भी दिया गया था पर इंतज़ार काफी लंबा हुआ :)
जवाब देंहटाएंअनिल जी की पुस्तक विमोचन समारोह में राहुल सिंह जी गये थे , उसकी प्रशंसा उन्हीं से सुनी है ! पढ़ने का अवसर कब मिलेगा कह नहीं सकते !
आपका आनलाइन फ्लिपकार्ट वाला सुझाव बहुत बढ़िया है ! इससे हम जैसे लोग भी इन पुस्तकों को पढ़ पायेंगे !
@ और बनाओ चेले...
जवाब देंहटाएंचेले चैले हो रहे, ले मुगदर का रूप |
दोनों हाथों भांजते, पर सम्बन्ध अनूप |
पर सम्बन्ध अनूप, परसु से भय ना लागे |
त्यागा जब से कूप, गोलियां भर भर दागे |
चेला यह उद्दंड, गुरू को अतिशय प्यारा |
लगे गुरु को ठण्ड, अलावी बने सहारा |
हमको भी पुस्तक मिली, जय जय मेरे गीत |
जवाब देंहटाएंएक एक प्रस्तुति पढ़ी, जागी प्रीत-प्रतीत |
जागी प्रीत-प्रतीत, मुबारक होवे भैया |
रविकर प्रचलित रीत, भाव की लेत बलैया |
हर्षित मन-अरविन्द, पटल-मानस पर चमको |
बस्तर वाले अनिल, विषय भय भाया हमको ||
आपके द्वारा की गयी समीक्षा का इंतज़ार रहेगा ....
जवाब देंहटाएंमेरे गीत पुस्तक सतीश जी ने मुझे भी प्रेषित की है ... बहुत भाव पूर्ण गीत हैं ...
हम तो बधाई पहले ही दे चुके . अब आपकी समीक्षा का इंतजार रहेगा .
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें सभी को .
@ चेला यह उद्दंड ...
जवाब देंहटाएंकलयुग में पहचान शिष्य की न कर पाए
उस गुरु की धोती, न जाने कब खुल जाए
जब जब आये विपत्ति गुरु पर, चेला धाये
धक्का गुरु को एक, सदा को जान छुटाए !
कृपया इसे गंभीरता से न लें , गुरु चेला दोनों से निवेदन है :)
सतीश जी और रविकर जी,
जवाब देंहटाएंहमें समझने और हमारे गुरूजी को समझाने का आभार |
दोनो पुस्तकों के बारे में जान कर अच्छा लगा । वापसी पर पढूंगी । आशा है आप शीघ्र ही इनकी समीक्षा भी करेंगे ।
जवाब देंहटाएंबधाई अनिल पुसदकर जी को और सतीश सक्सेना जी को
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा
thanks for the nice intro to the 2 books :)
जवाब देंहटाएंमैं आजकल ‘मेरे गीत’ पढ़ रहा हूँ। बस्तर वाली किताब मिलेगी तो अच्छा लगेगा।
जवाब देंहटाएंआप ब्लॉगजगत की हलचल से यूँ ही परिचित कराते रहें। आभार।
संतोष जी की बात उस पुस्तक को पढ़े-जाने बिना नहीं समझी जा सकती। आप शायद कुछ प्रकाश डालना चाहें।
समीक्षा का इंतजार रहेगा....
जवाब देंहटाएंअनिल जी और सतीश जी दोनों ही हिन्दी ब्लॉगिंग की शान हैं। अच्छे लोग हैं, किताबें भी अच्छी हैं। समीक्षा का इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर
जवाब देंहटाएं"मेरे गीत" पढ़ी हमने भी ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
dono pustaken padhne ka soubhaagy jab milega to jaroor padhenge ... dono sthaapit bloger hain aur achaa likhte hain ...
जवाब देंहटाएंसतीश जी के सौजन्य से मेरे गीत मुझे भी मिला है। देखें कब अवसर मिलता है इसकी समीक्षा लिख पाने का।
जवाब देंहटाएंआपने दोनों ही पुस्तकों का बहुत अच्छा परिचय दिया है।
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