यह तब की बात है जब मैं एक स्नातक छात्र था .यानी १९७६ के आस पास .मेरे चाचा जी उन्ही दिनों फेलोशिप पर जर्मनी जा रहे थे तो एक पैनासोनिक का टेप रिकार्डर घर पर दे गए जिसे उन्होंने दिल्ली में खरीदा था .उन दिनों टेपरिकार्डर गाँव के लिए एक अजूबा था .अब टेपरिकार्डर जैसा आवाज का एक अजूबा और नया 'बाईस्कोप' मिल जाय तो फिर क्या कहना ..गवईं लोगों की आवाजें टेप की जातीं और फिर उनको सुना देने पर वे भौचक रह जाते ..रेडिओ एक कोने में उपेक्षित हो गया और टेप रिकार्डर की करामातें चल पडीं ..उन्ही दिनों पिता जी मेहदी हसन की चंद चुनिन्दा ग़ज़लों का पालीडोर कंपनी का ओरिजिनल कैसेट घर ले आये थे ..और दिन रात वह बजता था .....मैं उससे बेफिक्र था .मुझे मेहदी हसन के बारे में कुछ पता नहीं था ..
पिता जी ने सबसे पहले इस अजीम शख्सियत और पाकिस्तानी फनकार से मेरा परिचय कराया था ..पकिस्तान में कुछ अच्छा भी हो सकता है उसकी यह पहली मिसाल थी ...पिता जी ने कहा कि देखो मेहदी हसन कितने अलग अंदाज़ में दिले नादां तुझे हुआ क्या है गाते हैं. मैंने मिर्ज़ा ग़ालिब की यह ग़ज़ल दूसरे फनकारों को गाते हुए सुनी थी .मेहदी हसन की आवाज़ में यह बिलकुल अलग क्लासिकी तरीके से गाई हुयी लगी .....और सच बताऊँ पहली बार तो ख़राब सा लगा मेहदी साहब से यह ग़ज़ल सुनना ..मगर ज्यों ज्यों सुनता गया ..उसकी तासीर गहन होती गई और आज तो यह ग़ज़ल किसी और की गाई अच्छी ही नहीं लगती ..
आगे तो मेहदी साहब जैसे जीवन का एक हिस्सा ही बनते गए .. जैसे एक मजेदार याद है जब मैं मुम्बई में दो सालाना विभागीय ट्रेनिंग पर था तो वहां पहली बार सांख्यिकी पर एक पूरे पेपर की तैयारी करनी थी ..मुझे सांख्यिकी के सिद्धांत मेहदी हसन साहब की ग़ज़लों की तासीर लिए लगते थे ...और मैंने उनकी ऐसी ब्लेंडिंग तैयार की कि उधर सांख्यिकी के कोई चैप्टर पर पढाई चलती तो उस्ताद की कोई न कोई ग़ज़ल पार्श्व में बजती रहती थी और साथी मुझे इनका दीवाना सिरफिरा क्या क्या न कहते थे -आखिर में जब नतीजा आया तो सैद्धांतिक सांख्यिकी में मुझे सर्वोच्च स्थान मिला था ..आप भी यह फार्मूला अपना सकते हैं :)
आगे तो मेहदी साहब जैसे जीवन का एक हिस्सा ही बनते गए .. जैसे एक मजेदार याद है जब मैं मुम्बई में दो सालाना विभागीय ट्रेनिंग पर था तो वहां पहली बार सांख्यिकी पर एक पूरे पेपर की तैयारी करनी थी ..मुझे सांख्यिकी के सिद्धांत मेहदी हसन साहब की ग़ज़लों की तासीर लिए लगते थे ...और मैंने उनकी ऐसी ब्लेंडिंग तैयार की कि उधर सांख्यिकी के कोई चैप्टर पर पढाई चलती तो उस्ताद की कोई न कोई ग़ज़ल पार्श्व में बजती रहती थी और साथी मुझे इनका दीवाना सिरफिरा क्या क्या न कहते थे -आखिर में जब नतीजा आया तो सैद्धांतिक सांख्यिकी में मुझे सर्वोच्च स्थान मिला था ..आप भी यह फार्मूला अपना सकते हैं :)
मेहदी हसन सरीखे फनकार को सुनने समझने पसंद करने का एक प्रोटोकोल है .उनकी आवाज़ और अंदाज़ तथा हुनर की बारीकियों को पसंद करने के लिए उनकी गायकी में तनिक समय जाया करना होगा ..उसे शुरू शुरू में पेशेंस के साथ / सकून से सुनना होगा -यह एक सीखने का सबब है .एक क्लास है जहां आपको मन लगाना है .आप पायेगें धीरे धीरे आप इनकी गायकी में रूचि लेने लगे हैं और फिर यह तासीर बढ़ती ही जायेगी ...मेहदी हसन को पसंद करने के लिए पहले आपके मस्तिष्क के कुछ तंतुओं को संवेदित होना होगा अगर वह इलाका पूरी तरह निष्क्रिय ही न हो गया हो .. :) और इसमें शुरुआती समय लग सकता है .मगर फिर आपको इसकी तलब लगनी शुरू हो जायेगी ...दुनिया में कितने ही नशे हैं उसमें एक प्यारा सा नशा है ग़ज़लों का और उसमें भी अगर आप मेहदी हसन को पसंद करते हैं तो आप एक अलग क्लास के व्यक्ति हैं . उनसा दूजा कोई नहीं है . दुनिया का बड़ा सा बड़ा ग़ज़ल गायक मेहदी हसन को शीश झुकाता रहा है .वे ग़ज़ल गायिकी के लीजेंड बन गए .
एक और बात है जो मेहदी हसन की गायकी के करीब हमें ला सकती है .यह है दिल का साफ़ होना ,बिना छक्का पंजा के और चालाक दुनियादारी से दूर होना ..वे भी ऐसे ही थे निष्कपट ,सहज सरल और विनम्र ...हर वक्त दुनियादारी में डूबे व्यक्ति के लिए कहाँ शेरो सुखन और वह भी मेहदी हसन की गायकी? इसके लिए निष्कपटता तो मानों एक अनिवार्य शर्त है ..मैंने खुद पाया है जिन्हें मेहदी हसन पसंद हैं वे बहुत सीधे सरल लोग हैं और एक ख़ास तरह की संवेदनशीलता लिए हुए हैं . यह एक अलग सा विशिष्ट ग्रुप ही है जिसे आप मेहदी हसन फैन ग्रुप कह सकते हैं .
वह पहला कैसेट जिसने मुझे इस अजीम हस्ती से मिलाया था
मुझे ३६ साल पहले घर में आये उस कैसेट जो आज भी मेरे संग्रह का एक नायब आईटम है की एक एक ग़ज़ल के हर्फ़ दर हर्फ़ याद हैं ..उनके साथ जिए जीवन के कितने ख़ास पल छिन भी जैसे तरोताजा से हैं . चाहे खुशी के पल हों या गम के ये गज़लें मुझे एक सा आनंदित करती रहीं हैं .....दिल की बात लबों पर लाकर अब तक हम दुःख सहते हैं ...अर्जे नियाज़ इश्क के काबिल नहीं रहा .....मग्घन बात पहेली जैसी .....दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है ......क्यूं दामने हस्ती तक बढ़ने दिया हाथों को ....और भूली बिसरी चंद उमीदें चंद फ़साने याद आये .....यह आख़िरी वाली तो जब भी सुनता हूँ पूरा अतीत ही मानों सामने आ साकार हो उठता है ...इसके बाद की तो उनकी कितनी और गज़लें आयीं और दिल दिमाग पर कब्ज़ा करती चली गयीं .....
रंजिश ही सही .... मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो......बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी ......गुलों में रंग भरे ....इन सभी की एक सूची नजरिया वाले ब्लॉगर ने भी दी है -वे भी मेहदी साहब के दीवाने रहे हैं .....तीन दशकों के एक लम्बे साथ के बाद मेहदी हसन साहब का जाना दुखी कर गया है मगर तसल्ली यही है कि उनकी गज़लें उनकी दिलकश आवाज़ आज भी हमारी एक बेशकीमती धरोहर है .....ऐसी शख्सियतें कहाँ फ़ना होती है वह तो हमारे अहसासों हमारी चेतना में मानो पैबस्त रहती है जैसे बस गर्दन झुकाई और देख ली सूरत यार की .....अमर हैं मेहदी हसन साहब!
फनकार को विनम्र श्रद्धांजलि..
जवाब देंहटाएंमेहदी हसन की गायकी में शास्त्रीय संगीत की अथाह गहराई थी। जितना डूबो उतना आनंद।
जवाब देंहटाएंगमें जहाँ का हिसाब एक तरफ...''वो'' गुलों में रंग भर गये बेहिसाब हर तरफ..जिसे जिन्दगी का हर मौसम दुहरायेगा..बस सुकून ही सुकून पायेगा..
जवाब देंहटाएंयह मखमली और बहती हुई आवाज अब शायद ही कभी पैदा होगी, विनम्र श्रद्धांजली.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कभी कभी हम भी गजल सुन लिया करते हैं, मेंहदी हसन साहब की गायकी की बात ही कुछ और है ।
जवाब देंहटाएंमखमली आवाज़ के जादूगर को विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंआप ने ३६ साल से इस केसेट को संभाले रखा है येही काफी है यह बताने के लिए कि आप मेहदी साहब के बड़े प्रशंसक हैं.
जवाब देंहटाएं..
सादर नमन |
जवाब देंहटाएंमेंहदी हसन साहब से हमारा परिचय हुए ज़्यादा वक्फा तो नहीं हुआ पर जब से उनको सुनना शुरू किया कोई और पसंद नहीं आया गज़ल गायकी में.हाँ,मुन्नी बेगम,गुलाम अली और फरीदा खानम ज़रूर ऐसे फनकार हैं जो प्रभावित करते हैं.संयोग यह देखिये कि ये सब पाकिस्तान से ताल्लुक रखते थे या हैं.
जवाब देंहटाएं...मैंने अपने पास ज़्यादा तो नहीं पर चुनिन्दा बीस गज़लों की प्लेलिस्ट बना रखी है,बीते साल ही इक सीडी ले आया था,उसी से ये गाने सुनता रहता हूँ.
..पाकिस्तान को चाहने की एक और सिर्फ एक वज़ह यह थी कि नूरजहाँ,इकबाल और मेंहदी हसन वहीँ से ताल्लुक रखते थे,हालाँकि यह सब अविभाजित हिंदुस्तान के ही थे.
हम सबसे ज़्यादा तभी संजीदा होते हैं जब हमारा दर्द किसी और रूप में बाहर आए,ऐसे में उनकी ग़ज़लें सुकून देती थीं,गम को कम करती थीं.ऐसा भी नहीं है कि जब हम गमगीन हों,तभी सुनें,खुशी के समय यही ग़ज़लें और खुशी बढ़ाती हैं.
मेंहदी हसन साब ज़मीं से जुड़े गायक थे और इसीलिए लगता है कि उनके जाने से ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा दरक गया है हमारे दिल की शक्ल में !
bhaiya, i am wistness to your first tape recorder, as it was my first also, i had for the first time seen, heard a tape recorder at your village, i rem. i was with my father to your place and there was a tape recorder and mehndi hasanji,also we recordered our voice and would replay it to listen.....your blog very well highlights the whole process of how the gazhals would engulf you . mana ke mahobat ka chuppana hai mahobat, rashmo rahit duniya ko dikhan ne ke liye aaa.. ranjish hi sahi dil hi dukhane ke liye aaa...
जवाब देंहटाएंone can never miss him he lives in his talent.. always
उनके जाने से हुई क्षति की पूर्ति असंभव है.
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि..
जवाब देंहटाएंमेंहदी हसन की याद में एक सार्थक पोस्ट ॥
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि ...नमन , ऐसी शक्सियत की कमी तो सदा ही खलेगी....
जवाब देंहटाएंफैन्स के जेहनों में यादें ही शेष रह जाती हैं ! यही सच्ची श्रद्धांजलि है !
जवाब देंहटाएंपिता किस किस तरह से याद रह जाते हैं ....
जवाब देंहटाएंउनकी स्मृतियों के आलोक में मेहंदी हसन को याद करना अच्छा लगा !
सार्थक सच्ची श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंRest in peace !!!
जवाब देंहटाएंartist is immortal.. he/she never dies.. she lives in the form of its art 4 forever n ever..
लास्ट लिविंग लेजंड अब अपने तलत अज़ीज़ साहब ही बचें हैं .कहतें हैं नक़ल में ,सौम्य रूप में बला का आकर्षण होता है गए साल यहाँ मुंबई में तलत अज़ीज़ साहब ने एक कार्यक्रम में शिरकत की - A TRIBUTE TO MEHDI HASAN .यकीन मानिए जब आप (तलत अज़ीज़ साहब )मेहदी हसन साहब की गाई ग़ज़ल प्रस्तुत करते तो वह मेहदी नुमा ही हो जाते .ताली बजतीं तो वह कहते ये तालियाँ मेरे उस्ताद के लिए जिनकी सोहबत में मैंने दीक्षा ली .तलत साहब ग़ज़ल में पी एच ड़ी किए हैं और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव लिए हैं .
जवाब देंहटाएंमेहदी हसन साहब को सुनना कोई खोई हुई चीज़ ढूँढने जैसा है -
मोब्बत करने वाले कम न होंगें ,
तेरी महफ़िल में लेकिन हम न होंगे .
अगर तू इत्तेफाकन मिल भी जाए ,
तेरी फुरकत के सदमे कम न होंगे .
सलाम उनको हमारा ,करते रहेंगे (आखिरी नहीं है ).
आशय यही है डॉ श्याम गुप्त जी ,डॉ जाकिर भाई रजनीश जी हमारी मौखिक परम्पराएं ,दंत कथाएँ फिर चाहे भले वे धार्मिक रंजक लिए हों उनमे मौजूद विज्ञान तत्वों पर चर्चा हो .विज्ञान कथा लेखन को पंख लगें .वैसे भी दंत कथाओं का कोई मानक स्वरूप नहीं होता है जितने मुख उतनी कथाएँ .आप सभी विद्वत जनों का आभार .
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि .
जवाब देंहटाएं"पहले आपके मस्तिष्क के कुछ तंतुओं को संवेदित होना होगा अगर वह इलाका पूरी तरह निष्क्रिय ही न हो गया हो .. :) और इसमें शुरुआती समय लग सकता है .मगर फिर आपको इसकी तलब लगनी शुरू हो जायेगी"
जवाब देंहटाएंबिलकुल यही मेरे साथ हुआ, CD लाकर रख दी, सुनी २ साल बाद...बहुत खूब analysis..
"तंतुओं को संवेदित होना होगा"--में गहरे इशारे हैं.
आपकी यह बात भी यद् रंखुंगा की उन्हें सीधे अच्छे लोग ही ज्यादा पसंद करते हैं...जाचता हु.
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जवाब देंहटाएंजो आँख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है
हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
दिल ए नादां तुझे हुआ क्या है........
एक मुक्कम्मल फनकार थे हसन साहब ....खुदा उन्हे सुकून दे.
मैं मेहेंदी हसन की मुरीद हूँ । उनकी तुलना किसी से नहीं हो सकती । गायक़ी तो उनकी लाज़वाब थी ही , उनका शब्द-चयन भी अद्भुत था - " किस-किस को बतायेंगे जुदाई का सबब हम । तू मुझसे खफा है तो ज़माने के लिए आ ----
जवाब देंहटाएं