मंगलवार, 12 जून 2012

हिन्दी ब्लागिंग का मूल्यांकन पर्व


हिन्दी ब्लागिंग के मूल्यांकन पर्व पर कुछ छुट्टा विचार आते रहे तो उन्हें रुक रुक कर लिख डाला और यह पोस्ट बन गयी .चूंकि विचार ही छुट्टा आते गए हैं इसलिए उनमें तारतम्यता की तलाश मत करियेगा ....

दूसरों का लपक कर मूल्यांकन करने में एक चालाक रणनीति तो रहती ही है कि खुद अपने कर्मों का मूल्यांकन बच जाता है ..आज के इस माहौल में कब न जाने कौन मुआ आकर मूल्यांकन कर ही डाले -वह ऐसा करे इसके पहले ही काहें न अपना बचा के सबका खुद ही कर डाला जाय ... फिर लोगबाग भय भी खाने लगते हैं अरे यार यह तो मरखना मूल्यांकक(शब्द गलत हो तो क्षमा मेरा आशय मूल्यांकन करने वाले से है ) है इससे पंगा न लो कहीं यह मूल्यांकन न कर दे ..बैठे बिठाये साला एक लफड़ा कि अपुन तो तीसरे नंबर पर आये ....अब दो ऊपर के लोगों की करनी धरनी में नामालूम कौन से सुरखाब के पर लगे हैं -मगर मूल्यांकन हो गया तो हो गया -ठप्पा लग गया तो लग गया ....अरे रे रे यह देखो फलनवा तो उससे कम अच्छा लिखता है ...फुरसतिया तो तीसरे चौथे पर लोढ़ गए ..क्या सचमुच बंदा इत्ता ही बुरा लिखता है दोयम तीयम नंबर का कि फलाने से भी नीचे आ गया ...? 

दूसरों को उनकी औकात बताने के नकचढ़पन की यह शायद वही प्रवृत्ति है जो हिन्दी आलोचना में काफी पहले ही मुखरित हो गयी थी ...अगर खुद के कृत्य -कृतित्व से लोगों में अपनी स्थायी छाप न बन पाने की आशंका हो आयी हो तो दीगर लोगों का मूल्यांकन शुरू कर दो ...लोग भय खाने लग जायेगें ..रुतबा भी बढ़ा सो अलग ..एक गोलबंदी भी पक्की ..रेगुलर ठकुर सुहाती का भी पक्का इंतजाम ....नौबत बजती रहे हर रोज ....मुझे लगता है खुद के रचनाकर्म की लोकप्रियता कम होने की आशंका /असुरक्षा लोगों को ऐसे टोटके करने को उकसाती है ...चलो एक आयोजन कर ही डालो ..यह एक ध्यानाकर्षण का जुगाड़ है ....इसी बहाने ही कुछ दिन ही सही लाईम लाईट में आने का मौका मिल जाता है ....हो सकता है तब तक खुद का लेखन सुधर जाय नहीं तो फिर ऐसे टोटके होते ही रहें साल दर साल .....

मुझे खुद के मूल्यांकन /आत्म मूल्यांकन के बजाय दूसरों का मूल्यांकन ही बड़ा नकचढ़ा और अशिष्ट सा काम लगता है -बिलकुल अहमकाना ..और यह सब पूरे दिखावटी तामझाम के साथ किया जाता है -मगर खुद की पसंद को ही दूसरों की पसंद बताते हुए मजमा लगाने की हर फितरत की जाती है -यह गोबर पट्टी है बाबू .... . फला बहुत अच्छा लिखते हैं ..अच्छी बात है मगर फला फला से घटिया लिखते हैं यह ब्लागीय - अशिष्टता है ...फला नंबर एक हैं और फला नंबर पांच ...पता नहीं ब्लागिंग में ऐसे मूल्यांकन कितने समीचीन और औचित्यपूर्ण हैं और इनका निहितार्थ और फलितार्थ क्या है /होगा? 

लीजिए हम भी आलोचना का दरवाजा खोल कर बैठ गए ....कारण वही है ..मुझे भी इन दिनों अपने ब्लॉगों की घटती लोकप्रियता की आशंका हो आयी है ..कुछ निकार टोटका तो करना ही होगा ...खुद का बचा कर दूसरों का मूल्यांकन वाला टोटका तो बासी हो गया ....वैसे यह सूझ बड़ी जबरदस्त रही ..मैं भी शायद यह चतुर कर्म करता ही मगर हाय पिछड़ गया ....इसलिए यह पोस्ट लिख कुछ तो गम गलत कर रहा हूँ और कुछ टोटका भी .....एक बात मन में और कई बार आयी है कि हम ब्लागजगत को ठकुर सुहाती का अड्डा बना डाले हैं और बराबर मुंह देखी करते हैं और बेलाग बेलौस कहने में हिचकते हैं ...मेरी यह पोस्ट ऐसी प्रवृत्ति के भी विरोध में है -दोस्ती / मित्रता प्यार/ मोहब्बत अपनी जगह है मगर हिसाब किताब और बेमुरौवत खरी खरी अपनी जगहं ...यह करते हुए एक फायदा यह होगा कि दानेदार साथ रह जायेगें थोथे उड़ जायगें जिन्हें उड़ ही जाना चाहिए जितना भी जल्दी हो सके ..जाया करने का वक्त अब ज्यादा नहीं बचा .......

अरे हाँ तीसरे चौथे नंबर पर आये और पूरे परिदृश्य से गायब रहे बिचारे ब्लागरों से मेरी पूरी हमदर्दी है -हम जल्दी ही एक नगद पुरस्कार आयोजन करने ही वाले हैं, सच में भाई! ...तब तक मेरे यहाँ टीपते रहें .....टीपू सुलतान/ सुलताना  को एक आकर्षक पुरस्कार की गारंटी ....सम्मान लेकर ओढ़ेगें या बिछायेगें ? नगद रोकड़ मिलेगा तो उसका अपनी तई कल्पनाशील उपयोग करेगें ...गर्मी में अपनी पसंद की आईसक्रीम खायेगें ..क्यों?

33 टिप्‍पणियां:

  1. Kuchh jyada hee khari ho gayee.Kaheen kaheen to sulagkar jal bhun bhee gayee post.Girijesh ke prayash me aisee koee chhipee mansha nahi dikhatee.Parikalpana kaa aayyojan bhi blogging me halchal machane kee rochak koshish hai. Aapse mujhe aisee hee post ki aasha thee. Aapane mere vishvash kee raksha kee.

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  2. जो अंधों में काने निकले
    वे ही राह दिखाने निकले

    उजली टोपी सर पर रख कर
    सच का गला दवाने निकले

    चेहरे रोज़ बदलने वाले
    दर्पण को झुठलाने निकले

    बाते सत्य अहिंसा की हैं
    पर चाकू सिरहाने निकले

    जिन्हें भरा हम समझ रहे थे
    वे खाली पैमाने निकले !

    कल्चर को सुलझाने वाले
    रिश्तों को उलझाने निकले

    नाले ,पतनाले बारिश में ,
    दरिया को धमकाने निकले !


    Read more: http://satish-saxena.blogspot.com/2010/11/blog-post_13.html#ixzz1xXaSFMI9

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  3. पुरस्कार देना बुरा नहीं होता , मगर जल्दवाजी में ( बांटे ) पुरस्कारों से पुरस्कार की ही गरिमा नष्ट नहीं होती अपितु पुरस्कृत का भी अनचाहे अपमान ही होता है ! हाल में कुछ पुरस्कृत लोग बेहद सम्मानित हैं मगर अब उनकी मानसिकता पर सवाल उठते रहेंगे !

    कोई एक ब्लोगर सारे ब्लोग्स को ध्यान से नहीं पढ़ सकता , अधिक से अधिक २०-३० ब्लोग्स पर ही केन्द्रित रहेगा और अगर वे खुद पुरस्कार देंगे तो उनका नजरिया कहाँ तक जाएगा इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है !

    मेरी नज़र में यह विद्वान साथी जल्दबाजी में ऐसा करके हिंदी ब्लॉग जगत में पहले से ही फैली गुटवाजी को और हवा दे रहे हैं !

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  4. पुरस्कार देना बुरा नहीं होता , मगर जल्दवाजी में ( बांटे ) पुरस्कारों से पुरस्कार की ही गरिमा नष्ट नहीं होती अपितु पुरस्कृत का भी अनचाहे अपमान ही होता है ! हाल में कुछ पुरस्कृत लोग बेहद सम्मानित हैं मगर अब उनकी मानसिकता पर सवाल उठते रहेंगे !

    कोई एक ब्लोगर सारे ब्लोग्स को ध्यान से नहीं पढ़ सकता , अधिक से अधिक २०-३० ब्लोग्स पर ही केन्द्रित रहेगा और अगर वे खुद पुरस्कार देंगे तो उनका नजरिया कहाँ तक जाएगा इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है !

    मेरी नज़र में यह विद्वान साथी जल्दबाजी में ऐसा करके हिंदी ब्लॉग जगत में पहले से ही फैली गुटवाजी को और हवा दे रहे हैं !

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  5. @ Are bhai inaam kisee vidvan saathi ne nahi baante. Ye to pathako kee pasand ka nateejaa hai jee.

    आपकी उपरोक्त टिप्पणी एक मज़ाक भर है

    कितने पाठक और किसके पाठक ???

    सतीश सक्सेना को पढने वाले कितने पाठक हैं ??

    लगभग १०० पाठकों में मतदान करवा लेते हैं अनूप शुक्ल को ४ मत मिलेंगे अरविन्द मिश्र और अली साहब यकीनन मेरे यहाँ ४० मत लेने में सफल रहेंगे और नंबर १ अथवा २ बनाने में कामयाब रहेंगे !

    हाँ एक सुझाव ठीक रहेगा ...

    हर ब्लोगर अपने अपने पाठकों से मतदान करवा ले और पुरस्कार बाँट ले / दे !

    धन्य भाग्य !

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  6. अरे, कैसी खरी-खरी? कैसा जलना-भुनना? मुझे तो कुछ भी नहीं दिखा...यह आदरणीय की lyrical angel है।
    भई, पोस्ट-लेबल देखो...’मुद्दा हल्का-फुल्का’।

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  7. ये पुरस्कार और मूल्यांकन कभी समग्रता को समेट नहीं सकते खासकर अंतर्जालीय लेखन में...कोई उसी का मूल्यांकन कर सकता है जितनों को वह पढ़ता है.इस तरह से आज जो भी और जहाँ भी ऐसा हो रहा है उसका दायरा सीमित है इसलिए जो हो रहा है अच्छा है.जिन्हें नहीं पसंद है उनके भी अपने वाजिब तर्क हैं !


    आप तो मूल्यांकन और पुरस्कार-प्रणाली के पक्षधर रहे हैं,अब काहे गुलाटी मार रहे हैं..?

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  8. मौका दे दिया आपने, रास्‍ता भी आपका ही दिखाया हुआ- हमारी ओर से नं. 1 आपको.

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  9. सब प्रसन्न रहें और साहित्य सृजन में लगें।

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  10. @ अरविन्द जी,
    उक्त आयोजन पर कुछ ना कहने के लिए मेरा ख्याल ये है कि...

    (१) गिरिजेश जी ने मुझे भी अपनी पसंद के तीन ब्लाग्स नामित करने का मौक़ा दिया था चूंकि मुझे यह कार्य बहुत कठिन लगा ( शायद अप्रिय भी ) सो मैं आयोजन से निस्पृह बना रहा ! यही नहीं मैंने उन्हें , उनके इस उपक्रम को लेकर कोई सुझाव भी नहीं दिया !
    इसलिए इस मुद्दे पे मेरा अभिमत ये है कि , निस्पृहता के अपने व्यक्तिगत फैसले के बाद मुझे कोई हक नहीं कि मैं गिरिजेश राव के आयोजन की आलोचना करते फिरूं :)

    (२)
    गिरिजेश राव ने इस आयोजन को अपना व्यक्तिगत आयोजन माना है , जिसमें पाठकों को अपनी प्रियता के ब्लाग चुनने थे , जैसा कि हुआ भी ! वहां मौजूद पाठकों की जो भी पसंद थी वह अभिव्यक्त हुई तो मैं इस पर आपत्ति क्यों करूं ?या फिर उल्लसित होकर बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना क्यों बनूं :)

    (३)
    गिरिजेश जी के आयोजन की प्रक्रिया और उसपर सांख्यकीय निष्पत्तियों की खटक / पटक / चटक अगर (कोई) महसूस हुई हो तो भी , या फिर मतदान व्यवहार पर मेरे कोई भी अनुभव , मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से संबोधित करके कहना पसंद करूंगा :)

    (४)
    मुझे लगता है कि आपको इस मसले पर प्रतिक्रिया नहीं देना चाहिये थी पर दे ही दी है तो इतना ज़रूर कहूंगा कि वहां के फैसले पाठकों की प्रियता पर आधारित है ! वे पाठक कौन थे ? कितने थे ? कैसे थे ? क्यों थे ? उनकी प्रियता ऐसी क्यों है ? पर प्रश्न करना मेरा अधिकार नहीं है , क्योंकि मैं स्वयं अपनी प्रियता अभिव्यक्त करने वहां नहीं पहुंचा !

    (५)
    यूं तो हजारों ब्लाग्स है लेकिन...उनमें से कुछ , अगर उल्लसित होने का कोई बहाना ढूंढें तो इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिये , इससे जड़ता टूटती है , किटी पार्टीज चलती रहें ! चलनी रहना चाहिये :)

    (६)
    अगर कुछ गलत कह गया होऊं तो खेद की अग्रिम पेशकश के साथ विदा चाहूंगा !

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  11. @ अली सय्यद
    आपकी टिप्पणी के सन्दर्भ में गलत फहमियों न बढे अतः अपनी पहली टिप्पणी हटा रहा हूँ ...
    मेरा अर्थ किसी की आलोचना करना नहीं था मगर चूंकि यहाँ हर बात का गलत अर्थ अक्सर निकला जाता है अतः उसे हटाना ही श्रेयस्कर था !
    अगर यह आयोजन अपने पाठकों के लिए हैं तो किसी को क्या आपत्ति और क्यों होगी ...
    आप किसी को पहला बताएं अथवा किसी को अंतिम यह आप जाने ..
    बहरहाल किसी को ठेस पंहुची हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ ...

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  12. Arvind Mishra said...

    आपकी इस पोस्ट ने ,खराब और स्लो कनेक्शन और दिए लिंक ने आज मेरा बहुत समय कबाड़ा किया है -दो टूक बातें करनी हैं -

    १-अमरेन्द्र की इमेज एक यंग्री तुर्क की इमेज बन गयी है और लोग कब्र से भी निकल निकल कर उसे हवा दे रहे हैं ...

    २-जिन्हें कोई ब्लॉग पुरस्कार नहीं मिला है वही ट्रम्पेट बजाये फिर रहे हैं

    ३-जहाँ भी कुछ अच्छा हो उसे प्रोत्साहन मिलना चाहिए ...
    ४-सिनिसिज्म की भी एक सीमा हो तो अच्छी बात है

    ५-यहाँ भी गिरिजेश जी बता नहीं क्या बतिया रहे हैं -यह उनकी ख़ास स्टाईल है -जहाँ मुद्दे पर सीधी बात करनी होती है भाई साहब पगडंडी पकड़ लेते हैं जिसे प्राणी व्यवहार में डिस्प्लेसमेंट बिहैवियर कहते हैं -

    ६-आपकी यह पोस्ट जमी नहीं ,क्योके इसमें अच्छे कामों के प्रति प्रशंसा भाव की कमी है ...

    7-याहं कोई नोबेल पुरस्कार नहीं पाने वाला अतः छोटे पुरस्कारों के प्रति एक सम्मान भाव रखें

    ८-पुरस्कार ऐसे ही मिलते हैं अब ..याद करिये आप ने हाईस्कूल में कितने प्रतिशत अंक पाए थे और अब कितने मिलते हैं ..समय के साथ चलिए सतीश जी ..

    ९-ब्लागजगत में जब भी जिसे पुरस्कार जिसके द्वारा भी दिया गया मेरी निगाह में उभय पक्ष प्रशंसा के पात्र रहे हैं

    १०-एक उदासीनों ,निराशियों का गुट मत बनाईये ...अमरेद्र की पोस्ट पर कब्र से निकल निकल कर लोग आ रहे हैं उन्हें सामुदायिक भलमनसाहत से क्या लेना देना है स्पष्ट है .

    ११-रवीन्द्र प्रभात को लोग याद रखेगें बाकी यहाँ वहां टिप्पणियाँ करने वाले बियाबान में खो जायेगें -नोट कर लीजिये


    इतना विरोधाभास क्यों ...... आपकी आज की पोस्ट पढ़िये और आपकी इसी टिप्पणी को पढ़िये .... कभी ऐसा भी लिखा था महाशय आपने पुरस्कारों के बारे में। भूल गये क्या ?

    लिंक यह रहा -
    http://safedghar.blogspot.com/2010/12/blog-post_21.html

    अब आप कहेंगे समय के साथ जो सोच न बदले वो ....फिर थोड़ी सी चौपाई लायेंगे कही से उठाकर....फिर थोड़ा सा रोएंगे....अच्छी अभिनय क्षमता है आपके पास।

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  13. अच्छी चकल्लस चल रही है। जारी रहे।

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  14. मैंने तो पहले ही किनारा पकड़ लिया है ..हाँ! कभी-कभी लहरों के हलचल को देख लेती हूँ.. कूदने की साहस नहीं है या फिर फुर्सत भी नहीं... तब तो आपके द्वारा घोषित पुरस्कार से भी नाम वापस ले रही हूँ..

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  15. आज ही सप्ताह भर की पहाड़ी छुट्टी से दिल्ली लौटा हूँ .
    आप तो पुरुस्कार ले लिए हो . अब काहे दूसरों को चिढ़ाते हो भाई ! :)

    वैसे मैं भी इनके पक्ष में नहीं हूँ . कौन कैसा लिखता है , यह सब को पता होता है .

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  16. क्या कहें ...? छुट्टा विचार बड़े विचारणीय हैं ...

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  17. @व्यक्तिगत नामों लेकर इस पोस्ट के मुद्दे को हल्का न किया जाय

    @पुरस्कार का विरोधी मैं सचमुच कभी नहीं रहा मगर पुरस्कार नए ब्लागरों को दिया जाना चाहिए ..

    और पुरस्कारों के चयन के पीछे गोलबंदी और चौकड़ी -कारनामों का मैं विरोधी हूँ ...

    @ये पुरस्कार परिकल्पना सम्मान की प्रतिक्रया में आयोजित -ऐसी प्रतिक्रियात्मकता भी आपत्तिजनक है ...

    @परिकल्पना सम्मान का अपना एक ढर्रा बन चुका है और उनका सालाना जलसा भी काफी भव्य होता है ..

    और मेरी उनसे भी गुजारिश है कि नए लोगों को पुरस्कार देकर प्रोत्साहित करें -पुराने खुत्थों ,ठूंठों को पुरस्कार देकर कोई बड़ा काम नहीं होगा ......

    जब भी परदे के पीछे की चौकड़ी बनेगी उसका विरोध किया जाना चाहिए !

    @अनाम महोदय चौपाई से इतनी वितृष्णा क्यों ? मुझे मालूम है कि तुलसी गले के नीचे क्यों नहीं उतरते..बाकी रोने का काम तो मैंने कभी किया नहीं -रुलाने का ही किया है !

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  18. तुलसी कैसे गले से उतरेंगे , उनकी चौपाई ढोल गंवार में हमारा भी तो जिक्र है . वो घटना याद है आपको जब आप बुक्का फाड़ के रोये थे , अरे वही किताब की प्रकाशन वाली., पाठकों से पुछा भी था की कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए या नहीं. सबने एकमत से कहा था करो , फिर टाय टाय फिस्स. अब आप रोये की रुलाये , सबने देखा .

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  19. दानेदार साथ बना रहे, ये शुभकामना देता हूँ|

    ये पोस्ट पढते ही फुरसतिया जी की 'सदी का सर्वश्रेष्ठ ब्लोगर' वाली पोस्ट का ध्यान आ गया जिसपर सबसे पहली टिप्पणी आप की थी
    arvind mishra May 16, 2012 at 8:41 am | Permalink | Reply
    अरे इतनी शर्ते ? मैं तो पढने से रहा ..कोई भाई नामित कर दें तो और बात है !
    वैसे आपकी यह पोस्ट हिट होगी,कारण साफ़ है पुरस्कार मिलने वालों से न मिलने वालों की संख्या कई हजार गुना ज्यादा है ..
    और आपकी खुंदक यह है कि आप पहले नंबर पर नहीं आ पा रहे हैं ..इसलिए पुरस्कार बाँट रहे हैं …
    यह भी ठीक है खुद कहीं न बुलाये जाओ तो खुदै पुरस्कार बांटना शुरू कर दो
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..अंतर्जाल पर निजता बचाए रखना असंभव है!'

    -------------
    आपने लेबल में हल्का फुल्का लिखकर अच्छा किया, नहीं तो कोई ये समझने की गलती कर सकता था कि ये पोस्ट आपने खुंदक में लिखी है|
    बेनामी महो. ने सतीश पंचम वाली पोस्ट पर आपकी टिप्पणी दिखा दी, हमने ये वाली|

    इस बहाने आपके यहाँ हाजिरी भी लग गई, किस्मत अच्छी हुई तो आइसक्रीम का जुगाड भी हो जाएगा:)

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  20. किसी के परिश्रम को प्रतिक्रियात्मक रूप ना देकर व्यक्तिगत उत्सुकता के रूप में देखा जाए तो क्या हर्ज़ है इन आयोजनों में . अपनी कुल्हड़ी में गुड कोई कैसे भी फोड़े -- जबतक वह समाज अथवा किसी व्यक्ति के लिए किसी खतरे या दुर्भावना का कारण नहीं बनता , मुझे इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती . टिप्पणी के बदले हमें ना सम्मान चाहिए ना ही नकद ...अपने पढने के लिए पढ़ते हैं और पढ़े हुए पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए टिप्पणी !!

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  21. halki-fulki baton ko tool na diya jai........

    "aacharya jagganath kah gaye......
    munder-munder matribhinna .......


    pranam....

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  22. @बेनामी और अन्य,
    संत कवि तुलसी युग द्रष्टा थे यही बार बार साबित होता है :)

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  23. ...मुझे तो बेनामियों से ज़्यादा डरपोक कोई और नहीं लगता...भई,कुछ कहने में काहे को डर या झिझक ?

    ...घूंघट में रहकर किसी ने कोई क्रांति नहीं की है !

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  24. दूसरों को उनकी औकात बताने के नकचढ़पन की यह शायद वही प्रवृत्ति है जो हिन्दी आलोचना में काफी पहले ही मुखरित हो गयी थी ...अगर खुद के कृत्य -कृतित्व से लोगों में अपनी स्थायी छाप न बन पाने की आशंका हो आयी हो तो दीगर लोगों का मूल्यांकन शुरू कर दो ...लोग भय खाने लग जायेगें ..रुतबा भी बढ़ा सो अलग .
    अच्छा व्यंग्य विनोद है भाई साहब .
    कोई ब्लॉग नृप भयो हमें का हानि .

    जवाब देंहटाएं
  25. @ संत कवि तुलसी युग द्रष्टा थे यही बार बार साबित होता है :)

    ------

    तुलसी युगदृष्टा थे, तभी रास न आने पर गोस्वामियों की मठाधीशी छोड़ दी थी और आप हैं कि मठाधीशी जमाने की चाहत में हर जगह चू** बन जाते हैं

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  26. @संतोष त्रिवेदी
    यह हुयी न कोई मर्दानगी की बात :)

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  27. @बेनामी
    हम तो बनते हैं तुम तो जन्मजात हो !

    जवाब देंहटाएं

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