रविवार, 16 जनवरी 2011

बेनामियों की क़यामत का काउंटडाउन!


चिकित्सक के 'कम्पलीट बेड रेस्ट' की सलाह का मैं  आकांक्षी  रहता हूँ क्योकि यह मुझे कई मायनों में लाभान्वित करता है -यह किसी छुपे हुए वरदान से कम नहीं है ..आई मीन 'ब्लेसिंग इन  डिस्गायिस'....यह लोगों की संवेदनाओं को उकेर हलोर कर आपके पास लाता है .आप सहसा एक बहु वांछित से प्राणी बन जाते हैं ,अपने होने का ,अपने वजूद का,अपनी पहचान का भरपूर  अहसास कर पाते हैं - क्रूर बेदर्द होती  दुनिया की  एक अच्छी तस्वीर आपके सामने होती है और जीवन के प्रति आपका मोह बढ जाता है -दूसरे आपके पास फुरसत ही फुरसत होती है अपने तरीके से समय बिताने की ..स्वाध्याय की ..मन  मौज की ..इसलिए ही तो कवि कह गया है दिल चाहता है फुरसत के फिर वही चार दिन ....
.
तो जनाब यह मौका जब मुझे अता फरमाया गया तो मैंने ब्लॉगजगत से इस अल्पकालिक दूरी को कुछ पढने गुनने में बिताया और अब अपने स्वभाव के अनुरूप आपसे वही साझा करने को मन  उतावला है. मार्क जुकरबर्ग का नाम तो आपने सुना ही होगा ..अरे  वही अपने फेसबुक के फाउंडर जुकरबर्ग ..विश्वप्रसिद्ध पत्रिका टाईम ने उन्हें वर्ष २०१० का 'परसन आफ ईयर' के ख़िताब से नवाजा है ...और उन पर एक भरापूरा आलेख अपने वर्ष २०११ के प्रवेशांक में छापा है ...जो एक व्यक्ति चित्र न होकर एक व्यक्ति ,एक नौजवान का पूरा जीवन दर्शन ही है .अब मानव मनीषा का क्या कहिये कि यह अरबपति शख्स जो अभी खुद अपने जीवन का महज २६ बसंत /पतझड़ देख पाया है एक पूरा जीवन दर्शन लेकर अंतर्जाल पर आ उपस्थित है ...उन्होंने फेसबुक की स्थापना ही मेल मिलाप ,जान  पहचान को बढावा देने के लिए की .अंतर्जाल के धुप अधेरों से लोगों को अपने चेहरे को उजाले में लाने  के लिए की ....उसका नारा ही है अन्धकार से उजाले की ओर ...अज्ञेयता से ज्ञेयता की ओर .अनजानेपन से जान  पहचान की ओर ....आज फेसबुक पर भारत और चीन के बाद की सबसे बड़ी दुनिया वजूद में है ...अकेले भारत से ही डेढ़ करोड़ लोग फेसबुक पर आ चुके हैं ....मानव सबंधों में यह किसी अभूतपूर्व घटना से कम नहीं है ....फेसबुक की कोशिश यह है कि लोग यहाँ अपने वास्तविक पहचान के साथ जुड़ें ...अपना बायोडाटा शेयर करें ....इसके व्यावसायिक निहितार्थ भले हों मगर यह पूरा उपक्रम अंतर्जाल को गुह्यता ,गोपनीयता और दुरभिसधियों से बाहर  निकाल लेने की एक जोरदार कवायद जरूर है ..

 
  मार्क जुकरबर्ग :सामाजिकता के दीवाने  
.
 मुझे अपनी एक चिर पुरातन किन्तु चिर नवीन भारतीय सोच की सुधि हो आती है -असतो मा सदगमय....   तमसो मा ज्योतिर्गमय ....और अब उसी ही चिंतन परम्परा में फेसबुक की यह पहल अज्ञेयता से ज्ञेयता या फिर अनामता से संनामता की ओर सहसा ही आकर्षित करने वाली है -जूलियन असांजे भी प्रकारांतर से यही उद्घोष कर रहे हैं -गुह्यता और गोपनीयता से दूर पारदर्शिता की वकालत कर रहे हैं -युग सोच में एक क्रांतिकारी परिवर्तन है...पर शायद  भारतीय मनीषा के लिए नया नहीं  है  जहाँ संत कवि तुलसी पहले ही अलख जगा चुके हैं -इहाँ न गोपनीय कछु राखऊं वेद पुराण संत मत भाखऊ....... 
 जूलियन असान्जे :पारदर्शिता के परवाने 

जहां ओट है, वहां खोट है इसलिए अब पारदर्शिता में ही दूरदर्शिता है.मानव सभ्यता के आगामी चरणों के लिए लगता है अब यही मूलमंत्र है -सब कुछ साफ़ और झक्कास! तो अँधेरे से उजाले की ओर इस यात्रा में ब्लॉगर बन्धु भी शामिल हो लें -अनामता का युग अब बीत रहा, सनामता का/ पहचान का दामन थाम लें -माननीय न्यायाधीश हों ,शासन प्रशासन के ओहदेधारी हों या फिर खद्दरधारी,शिक्षाविद हों या वैज्ञानिक -गुमनाम बने रहने में क्या आनंद है? आपका चेहरा कोई वीभत्स तो नहीं या फिर आपका करतब भी कोई बुरा नहीं ..तो फिर मुंह छुपाये क्यूं बैठे हैं आखिर?

आखिर आपको किस बात का डर है? आईये अपना चेहरा अनावृत करें!ब्लागिंग को भी एक नए मानवीय संस्पर्श और रिश्ते की ऊष्मा दें!भगोड़े न बने! दुनिया को फेसबुक पर ही नहीं यहाँ भी फेस करें!
यह भी पढ़ें  

35 टिप्‍पणियां:

  1. .
    .
    .

    असतो मा सद्गमय:
    तमसो मा ज्योतिर्गमय:

    का उद्घोष तो पहले से ही था हमारे पास...

    अब अज्ञेयता से ज्ञेयता की ओर बढ़ने का नारा लग रहा है... पर इस नये उद्घोष में ही यह निष्कर्ष भी निहित है कि ' अज्ञेय कुछ भी नहीं '... लगता है उजाला अब दूर नहीं...

    रही बात 'अपना चेहरा अनावृत' करने के आपके आह्वान की... तो कुछ की अपनी मजबूरियाँ है और कुछ के पास ब्लॉगिंग के लिये समय बेहद कम है, और चेहरा उजागर करना उनके इस सीमित समय पर और ज्यादा स्ट्रेन डाल देगा...



    ...

    जवाब देंहटाएं
  2. जीवन दर्शन का प्रारम्भ देखें, दो लड़कियों का चेहरा मिला, सुन्दरता नापने से हुयी थी। सोशल नेटवर्किंग नामक फिल्म देख लें। ब्लॉग को ऊँचाई वही पहुचानी है, पर शुरुआत वैसी नहीं है।

    जवाब देंहटाएं
  3. तुलसी बाबा वाली तुलना जमी. वैसे बेनामी तो फेसबुक पर भी हो सकते हैं?

    जवाब देंहटाएं
  4. बड़ा मुश्किल है जगे हुए लोगों को यह बताना कि भई अब जाग जाइए.

    जवाब देंहटाएं
  5. बढ़िया और सामयिक आवाहन किया है आपने ! शायद साहस की कमी, इसका एक कारण हो !

    मगर अपवाद हो सकते हैं ....

    न्याय व्यवस्था से जुड़े अधिकारी आचार संहिता से बंधे होने के कारण अपना नाम नहीं प्रकट कर सकते ! और अगर कोई ऐसा कर भी दे तो यहाँ लाखों लेखक उनकी विद्वता और शालीनता की वह धज्जियाँ उड़ायेंगे कि वे यहाँ से हटना ही श्रेयस्कर मानेंगे ! :-)

    आशा करें कि शिक्षित और समझदार लोग ब्लोगिंग में और आयेंगे और जल्दी आयेंगे जिससे कुछ अच्छा मिलेगा !

    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  6. मैं जिस परिसर में हूँ वहाँ बेनामियों ने कहर बरपा रखा है। काश आपकी और हमारी मनोकामना पूरी हो जाती।

    एक वर्तनी में शंका है- ‘धुप अधेरों’ या ‘घुप अंधेरों’

    सादर!

    जवाब देंहटाएं
  7. पारदर्शिता में ही दूरदर्शिता है.
    वाह!

    जवाब देंहटाएं
  8. मुझे लगता है कि बेनामी टिप्पणियां और फर्जी प्रोफाइल सामान्यतः गुटबाजी और एक दुसरे को नीचा देखने की कोशिशों का दुष्परिणाम है.
    क्या यह उचित नहीं कि पहले हम इन प्रवृत्तियों से छुटकारा पाएं?

    जवाब देंहटाएं
  9. @प्रवीण पाण्डेय जी,
    बात आपकी सही है ,सोशल नेटवर्किंग में थोडा फैक्ट थोडा फिल्मीकरण है -जिस लेख का मैंने उद्धरण दिया है उसमें सब कुछ कवर किया गया है ! अब तो मार्क साहब काफी बदले हुए -बदले बदले से सरकार नजर आते हैं!
    @अभिषेक जी ,
    फेसबुक पर बेनामी हैं बिलकुल हैं मगर फेसबुक बेनामी के विरुद्ध एक जेहाद है!ये वीड आउट होंगें !
    @सतीश जी,
    अब ये धर्मसंकट बेमानी होते जायेगें ? न्यायाधीश भी आयेगें ही देर सवेर ....अभी देखिये सुप्रीम कोर्ट की माननीय जस्टिस को अपना पक्ष अलग से रखने के लिए मुंह खोलना ही पड़ा ...क्योंकि संवाद के अभाव में उनकी सहज बात को तोड़ मरोड़ कर मीडिया ने प्रस्तुत किया था -क्या एक न्यायाधीश की कोई निजी जिन्दगी नहीं होनी चाहिए ? सरकारी दायित्व अलग है और सामाजिक दायित्व अलग !

    जवाब देंहटाएं
  10. सिद्धार्थ जी ,
    धुप अँधेरा घुप अँधेरा
    मैं भी कन्फ्यूजिया गया -दोनों प्रयोग प्रचलन में है -गिरिजेश जी शायद मार्गदर्शन दे !

    जवाब देंहटाएं
  11. मेरे पास एक मत्र हे इन अनामी बेनामी को ओर छंद नाम से टिपण्णी करने वालो के लिये, इस लिये मुझे तो कोई डर नही इन से जो भी कोई आया उसे प्यार से समझाया बाई मान जाओ , दुसरी बार सीधा गुद्दी से पकडा ओर समझाया, अगर दोनो बार ना समझे तो गुगल बाबा जिन्दावाद

    जवाब देंहटाएं
  12. खुद को नहीं मालुम कि क्या हैं, तो दुनियां को क्या बतायें।
    मेरे ख्याल से अपने को जितना उजागर करते हैं, उतना उलझते जाते हैं!

    जवाब देंहटाएं
  13. "अब पारदर्शिता में ही दूरदर्शिता है"
    यह उक्ति तो हमेशा से कही जाती रही है पर ...
    'बेनामी' जरूरी तो नहीं प्रतिगामी ही हों. अनुभव बताता है कि प्रतिगामिता का व्यवहार् तो तथाकथित नामी ही बेनामी बनकर दर्शाते हैं.
    अस्तु, सार्थक आह्वान के लिये साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  14. ब्लॉग्गिंग में भी सम्पूर्ण पारदर्शिता की कामना मैं भी रखता हूँ. काश ऐसा हो सके.

    जवाब देंहटाएं
  15. बेनामी का उपयोग अगर असांजे के किरदार को निभाये तो वह कारगार साबित हो सकता है । अभी कहीं पढ़ रहा था कि उसने एग्रिगेटर लगा दिया है अपने ब्लोग पर , कारण मात्र बेनमी नाम का आतंक , मैंने भी कुछ दिनों पहले ऐसा ही किया, लेकिन कई बार बेनामी असांजे के किरदार में भी होता है , हां वह इनके जैसा हिम्मत वाला नहीं होता । मुझे लगता है कि बेनामी का रहना आवश्यक है खेल में ट्विस्ट के लिए ।

    जवाब देंहटाएं
  16. "आईये अपना चेहरा अनावृत करें!ब्लागिंग को भी एक नए मानवीय संस्पर्श और रिश्ते की ऊष्मा दें!भगोड़े न बने! दुनिया को फेसबुक पर ही नहीं यहाँ भी फेस करें!"


    सुंदर प्रस्तुती.अच्छा लगा पढना.

    जवाब देंहटाएं
  17. "जहां ओट है वहाँ खोट है"... या बात बिलकुल सही है मिश्रा जी ... पारदर्शिता बेशक बहुत ज़रूरी है ... मुझे लगता है यदि कोई अच्छे मन से टिपण्णी करता है तो उसे पहचान बताने में कोई हर्ज़ नहीं होना चाहिए ... शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  18. अत्यंत ज्ञानवर्धक पोस्ट. सोशल नेट्वर्किंग साइट्स की तो नहीं कह सकते, पर ब्लॉगजगत में ये समस्या जल्दी हल नहीं होने वाली.

    जवाब देंहटाएं
  19. दुनिया को फेसबुक पर नहीं यहाँ भी फेस करें ...सार्थक बात

    जवाब देंहटाएं
  20. ज्ञान और जानकारियों का परस्पर आदान-प्रदान ही इस फेसबुक व ब्लाग्स के द्वारा होता रह सके उसीमे मित्रता के इन माध्यमों की सार्थकता है । वर्ना तो एक दूसरे को नीचा दिखाने व छद्म नामों से गाली-गलौच व अपशब्दों के द्वारा नवाजने की कुत्सित चेष्टाओं पर अंकुश के बगैर इनका फैलाव विकृत मानसिकताओं का आसान संवाहक भी होता जा रहा है ।

    जवाब देंहटाएं
  21. ‘तो जनाब यह मौका जब मुझे अता फरमाया गया तो मैंने ब्लॉगजगत से इस अल्पकालिक दूरी को कुछ पढने गुनने में बिताया’

    पर जनाब यह नहीं फरमाया कि यह दूरी क्यों अता की गई :) ईश्वर आपको सहतयाब रखे॥

    और हां, इस रईसजादे ने अब फेसबुक बंद करने का एलान कर दिया है और करोड़ों-अरबों डालर को ठोकर मार दिया है॥

    जवाब देंहटाएं
  22. अरविन्द जी ,
    छलावे पर आपके ख्याल पढ़े ,गोपन पर आपका विश्लेषण देखा पर पता नहीं कैसे एक बात रह रह कर कचोट रही है कि आपने छद्म के प्रकटीकरण के विशद विवेचन यानि कि अनावृत्ति को हाशिये पर डाल दिया है ! निवेदन ये है कि संवेदनाओं को झकझोरने वाले विषय पर ऐसी कंजूसी जायज़ नहीं कही जायेगी !

    आलेख के मूल मंतव्य से सहमत होने के बावजूद हमारी शिकायत दर्ज करें !

    जवाब देंहटाएं
  23. ब्लोगिंग में तो एक चेहरा लोग दिखा जाते हैं..पर सैकड़ों मुखौटे पहनते-उतारते रहते हैं. ये बुरा है.

    अगर कोई अपनी तस्वीर...अपना परिचय नहीं reveal करना चाहता ...सिर्फ अपने विचारों के द्वारा ही पहचाना जाना चाहता हो, इसमें कोई बुराई नहीं...पर किसी फेक प्रोफाइल के पीछे छुप..लोगो के ऊपर निशाने साधे...यह निंदनीय है.

    जवाब देंहटाएं
  24. यह आभासी पहचान तो और अनजान बना रही है..... सच में उजाले की ओर चलने की दरकार है.....

    जवाब देंहटाएं
  25. चंद्रमौलि जी ,ज़रा अपने इस दावे को संदर्भ स्रोत से पुष्ट करें !
    'और हां, इस रईसजादे ने अब फेसबुक बंद करने का एलान कर दिया है और करोड़ों-अरबों डालर को ठोकर मार दिया है॥

    जवाब देंहटाएं
  26. मुझे भी यही लगता है गोपनीयता नही रखनी चाहिए ... पर कभी कभी नेट में फोटो इत्यादि का (विशेष कर महिलाओं की) दुरुपयोग भी होता है ....

    जवाब देंहटाएं
  27. जब तक ब्लौगिंग में दोहरे मापदंड रहेंगे , पारदर्शिता की उम्मीद या आग्रह बेमानी है ...ऐसी स्थिति में तो और भी जब किसी महिला को बहन या माँ कहते हुए भी वर्षगाँठ की शुभकामना देने जितनी सभ्य तमीज भी ना हो !

    जवाब देंहटाएं
  28. हिन्दी ब्लॉगजगत तो आजकल गालीमय हो चला है.. जिधर देखो गाली शास्त्र पर ही चर्चा हो रही है... :) वैसे आपका विश्लेषण बड़ा शानदार लगा....
    मार्क ज़ुकरबर्ग के जीवन पर अभी हाल ही में एक फिल्म आई है 'द सोशल नेटवर्क'.. इसमें दिखाया गया है कि किस तरह एक असफल प्रेम से फ्रस्ट्रेटेड मार्क ने मात्र ५ घंटों में अपने होस्टल के कमरे में अपनी पहली विवादित और सफल वेबसाईट बनाई और यह यात्रा आगे फेसबुक पर जाकर रुकी.... ऐसे लोग वाकई प्रेरणा देते हैं...

    जवाब देंहटाएं

यदि आपको लगता है कि आपको इस पोस्ट पर कुछ कहना है तो बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएं-आपकी प्रतिक्रिया का सदैव स्वागत है !

मेरी ब्लॉग सूची

ब्लॉग आर्काइव