कविवर सोम ठाकुर से शायद बहुत लोग यहाँ अपरिचित नहीं -आगरा निवासी यह मूर्धन्य कवि मेरा चहेता कवि रहा है.आज उनकी एक कविता पढ़िए ,सुनिए और फुरसत मिले तो गुनगुनाईये भी .यह कविता झांसी के एक कवि सम्मलेन में १९८९ में बुंदेलखंड विकास प्रदर्शनी के दौरान आयोजित बासन्ती काव्य संध्या में सुनायी गयी थी जिसके संयोजन का सौभाग्य मुझे मिला था .मुझे आश्चर्य है कि सोम जी की यह कविता अंतर्जाल पर नहीं है ,यहाँ तक कि कविता कोश में भी नहीं है .कौस्तुभ की फ़रियाद है कि इसे यहाँ मैं आपके समक्ष उनकी एकल आवाज में प्रस्तुत कर दूं ...हाँ पार्श्व स्वर इस नाचीज का है! आज का पिता संसार का एक सबसे लाचार प्राणी हो गया है ,उससे कई काम उसके न चाहते हुए भी बंधक बना कर करा लिए जाते हैं ....
पहले इंगित कविता लिखित फिर पठित रूप में प्रस्तुत है ..यह एक क्षोभ का गीत है और युग द्रष्टा कवि की तत्कालीन समाज की विसंगतियों पर एक करार व्यंग प्रहार भी है जो दुर्भाग्य से आज भी उतना ही सच है जितना आज से दो दशक पहले ...
नजरिये हो गए छोटे हमारे मगर बौने बड़े दिखने लगे हैं
जिए हैं जो पसीने के सहारे मुसीबत में पड़े दिखने लगे हैं
समय के पृष्ठ पर हमने लिखी थीं ,छबीले मोरपंखों से ऋचाएं
सुनी थी इस दिशा से उस दिशा तक अंधेरों ने मशालों की कथाये
हुए हैं बोल अब दो कौड़ियों के कलम हीरों जड़े दिखने लगे हैं
हुआ होगा कहीं ईमान महंगा यहाँ वह बिक रहा नीची दरों पर
गिरा है मोल सच्चे आदमी का जहर ऐसा चढ़ा सौदागरों पर
पुराने दर्द में डूबी नजर को सुहाने आंकड़े दिखने लगे हैं
हमारा घर अजायबघर बना है सपोंले आस्तीनों में पले हैं
हमारा देश है खूनो नहाया यहाँ के लोग नाखूनों फले हैं
कहीं वाचाल मुर्दे चल रहे हैं कहीं जिन्दा गड़े दिखने लगे हैं
मुनादी द्वारिका ने ये सुना दी कि खाली हाँथ लौटेगा सुदामा
सुबह का सूर्य भी रथ से उतर कर सुनेगा जुगनुओं का हुक्मनामा
चरण जिनके सितारों ने छुए वे कतारों में खड़े दिखने लगे हैं
यहाँ पर मजहबी अंधे कुएं हैं यहाँ मेले लगे हैं भ्रांतियों के
लगी है क्रूर ग्रह वाली दशा भी मुहूर्त क्या निकालें क्रांतियों के
सगुन कैसे विचारें मंजिलों के हमें खाली घड़े दिखने लगे हैं
नजरिये हो गए .......
और अब सुनिए भी ....
सोम ठाकुर जी की लिखा पढ़ पाया, सुन पाया, आभार आपका।
जवाब देंहटाएंआपको गायन के बारे में बस,
कहाँ बैठे थे छिप कर हे महाशय,
जरा सी धूप और दिखने लगे हैं।
बेहतरीन कविता है।
जवाब देंहटाएंआहहाहा.. कविता को सुनना बड़ा आनंददायक रहा.. धुन और लय भी कविता के भावों से मिलते-जुलते हैं.. बहुत बहुत आभार आपका..
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ है, बल्कि यह कहूंगा की दो दशक पहले से अधिक कठोर सत्य प्रतीत होती है आज !
जवाब देंहटाएंनजरिये हो गए छोटे हमारे, बौने बड़े दिखने लगे हैं!
अश्व कोई खरीदता नहीं,गधे जायदा बिकने लगे है!
:)
आगे आने वाले दशकों में शायद मंजर जुदा हो. प्रभावी शब्द और असरदार स्वर.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है.. सोम ठाकुर जी ने, यह कविता हमने पहली बार पढ़ी और सुनी... आनंद ही आनंद..
जवाब देंहटाएंपण्डित जी! आपका इस गीत सए जुड़ाव इसी से ज़ाहिर होता है कि गायन के जोश में कई शब्दों फेरबदल होता गया है!
जवाब देंहटाएंआदरणीय सोम ठाकुर जी का कविता पाठ सुना है और प्रशंसक भी रहा हूँ.. या रचना भी पसंद आई!!
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआदरणीय अरविंद जी मिश्र
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
क्षमाप्रार्थी हूं, आपके यहां आता रहा, प्रविष्टियों का आस्वादन करता रहा … लेकिन हाज़िरी रजिस्टर में हस्ताक्षर नहीं कर पाया । आशा है, क्षमा कर दिया जाऊंगा … :)
सोम ठाकुर जी के गीत के साथ आज की पोस्ट नजरिये हो गए छोटे हमारे … बौने बड़े दिखने लगे हैं! के लिए आभार !
कौस्तुभ अवश्य मेरा भतीजा है … बधाई और धन्यवाद उन्हें भी !
… लेकिन सुना नहीं जा पा रहा है, प्लेयर ही लोड नहीं हो रहा , एक बार प्लेयर दिख गया लेकिन आवाज़ सुनने को तरस गया … ।
कुछ कीजिए !
आज की पोस्ट बहुत प्रासंगिक है … संयोग है कि समाज के एक और कुरूप चेहरे को ले'कर मेरे ब्लॉग शस्वरं पर भी पीड़ा प्रस्तुत है ।
~*~संपूर्ण नव वर्ष 2011 तथा आने वाले पर्व-तयौंहारों के लिए सपरिवार हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
@बिहारी बाबू ,कृपा कर सही शब्दों को बताएं ताकि संशोधन हो सके!
जवाब देंहटाएं@राजेन्द्र जी ,और लोग सुन रहे हैं इसका मतलब रिकार्डिंग ठीक है ,फिर से प्रयास करिए !
कमाल हो गया ...शायद पहली बार कोई संगीत विहीन गीत सुना है ....
जवाब देंहटाएंमगर आखिर तक सुने बिना बंद न कर पाया ! एक अलग ही कशिश है इस गीत में और अंदाज़ में !
आपका यह प्रयोग सफल रहा भाई जी ! एक स्टेज परफोर्मेंस हो जाए ! यकीन करें बड़ी तालियाँ बजेंगी ! शुभकामनायें !
एक सुंदर रचना से परिचय करवाने के लिए आपका बहुत—बहुत आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसोम ठाकुर जी की बहत सी कवितायेँ पढ़ें हैं मैंने पर ये कविता नहीं पढी थी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पढ़ाने के लिए.
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंअरविंद जी-कौस्तुभ
जवाब देंहटाएंक्या बात है !
बड़े पंडित तो बड़े पंडित, छोटे पंडित राम भजो … ! :)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
शानदार जुगलबंदी के लिए हार्दिक बधाई !
इधर नेट की स्पीड बहुत मंद थी … लेकिन आख़िरकार
सुन ही लिया कुछ उपाय के बाद !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अरविंद जी-कौस्तुभ
जवाब देंहटाएंक्या बात है !
बड़े पंडित तो बड़े पंडित, छोटे पंडित राम भजो … ! :)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
शानदार जुगलबंदी के लिए हार्दिक बधाई !
इधर नेट की स्पीड बहुत मंद थी … लेकिन आख़िरकार
सुन ही लिया कुछ उपाय के बाद !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
एक मूर्धन्य कवि से परिचित कराने के लिए आपका और विशेषकर कौस्तुभ का [:-)] धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंएक मूर्धन्य कवि से परिचित कराने के लिए आपका और विशेषकर कौस्तुभ का [:-)] धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंएक मूर्धन्य कवि से परिचित कराने के लिए आपका और विशेषकर कौस्तुभ का [:-)] धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंशब्द और आवाज़ दोनों कमाल है...... ऐसी रचनाएँ पढ़ना और सुनना सौभाग्य की बात है ॥ धन्यावद आपका...
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
बहुत अच्छा लगा सोम जी के इस गीत को पढ़ना...
...
.
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी,
गीत पढ़कर बेहद पसंद आया.
जिस गीत को गया गया है उस गीत के गायन में कुछ कमियाँ हैं :
'सुनी थी इस दिशा से उस दिशा तक अंधेरों ने मशालों की कथाये'
@ गाने वाले 'अंधेरों में' गा रहे हैं .... शायद गीत अँधेरे में गाया गया है.
'हुए हैं बोल अब दो कौड़ियों के कलम हीरों जड़े दिखने लगे हैं'
@ गाने में 'हीरे' गाया जा रहा है.
'गिरा है मोल सच्चे आदमी का...'
@ मोल की जगह भूल से 'बोल' बुल रहा है.
इन्हीं सब से अर्थ है बिहारी बाबू [चला बिहारी ब्लॉगर बनने]का...
.
सोम ठाकुर को सुनना व उनके स्वर में एक जमाना हो गया बहुत पहले दूरदर्शन अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों के जरिये इस महान कवि के कविता पाठ को दिखाया करता था तब दूरदर्शन भी इतना व्यावसायिक नही था अब तो शायद ही संस्कृति संरक्षण के नाम पर ऐसे कविता पाठ सुनने व देखने को मिलते है आकाश वाणी से जरूर स्तरीय कवियों के कविता पाठ यदा कदा सुनने को मिल जाते है
जवाब देंहटाएंआपकी आवाज ठीक ठाक ही सुनाई दे रही है कविता को प्रस्तुत करना तथा गुनगुनाने ले लिए आभार
बहुत मज़ा आया....सुन के रोंगटे खड़े हो गए ....सोचने वाली बात है कि गाते समय गायक के क्या हाल हुए होंगे...
जवाब देंहटाएंकविता तो अच्छी है ही ...वाचन भी !
जवाब देंहटाएंआश्चर्य है की इतनी पुरानी कविता आज भी प्रासंगिक है ....कवि भविष्यद्रष्टा होते हैं या मूल्यों के ह्वास का समय एक ही कल पर ठहर गया है !
wah!!! bahut khoobsoorat
जवाब देंहटाएं@प्रतुल जी त्रुटियों की और ध्यान दिलाने के लिए आभार ,हाँ सलिल जी का भी इशारा उधर ही था ...
जवाब देंहटाएंअसावधानी के लिए खेद है !
बालक ने पालक की प्रतिभा की बहुआयामिता को उजागर करने में योगदान दिया ,तकनीकी कारणों से सस्वर पाठ नहीं सुन पाया ,बाद में सुनूंगा पर कविता का क्षोभ दिखाई दिया ,शब्द विन्यास बेहतर है ! कवि से परिचय कराने हेतु आपका आभार !
जवाब देंहटाएंमुझे ऐसा क्यों लगता है कि आजकल क्षोभाश्रित कवितायें फैशन /चलन में हैं :)
क्षोभ सदा फैशन में था। भले ही हम सत्यमेव जयते के अनुसरणकर्ता हों, जोश सदा पिटने वाली पार्टी के पक्ष में ही नज़र आता है। क्षोभाश्रित कवितायें चलती रहेंगी, आकर्षित भी करेंगी।
हटाएंवाह-वाह, वाह-वाह !!!
जवाब देंहटाएंजबर्दस्त काव्य का उम्दा गायन।
फिर भी खुद को नाचीज़ कह डाला!!!
ऐसा ग़जब क्यों ढाते हैं?
सोमजी का लेखन और गायन दोनों अतुलनीय हैं !
जवाब देंहटाएंआपका प्रयास सराहनीय है.
सुन्दर कविता और वैसी ही शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसोम ठाकुर जी की अच्छी रचना पढवाने के लिए आभार ..
जवाब देंहटाएंवचन की स्पीड कुछ तेज थी और ऐसा भी लग रहा था की दो जाने यह कविता वचन कर रहे हैं ....
कुल मिला कर अच्छी प्रस्तुति
@ सही शब्द बताएँ:
जवाब देंहटाएंपण्डित जी! शब्दों के बदलाव से तात्पर्य यह है कि जो आपने लिखा है उसे सामने रखकर आपका युगल गान सुन रहा था.. उसमें अंतर दिखा..
मैंने यह गीत नहीं पढ़ा.. इसलिये सही शब्द बताने जैसी धृष्टता नहीं कर सकता.
@सलिल जी मैं समझ गया था -आभार !
जवाब देंहटाएंहुआ होगा कहीं ईमान महंगा यहाँ वह बिक रहा नीची दरों पर
जवाब देंहटाएंगिरा है मोल सच्चे आदमी का जहर ऐसा चढ़ा सौदागरों पर
आज के दौर में अधिक संदर्भित लगे है डॊक्टर सा’ब:(
सोम ठाकुर जी की लिखा पढ़ा ,सूना बहुत आभार आपका।
जवाब देंहटाएंआपका गायन भी काबिले तारीफ है.
चरण जिनके सितारों ने छुए वे कतारों में खड़े दिखने लगे हैं
जवाब देंहटाएंयहाँ पर मजहबी अंधे कुएं हैं यहाँ मेले लगे हैं भ्रांतियों के
लगी है क्रूर ग्रह वाली दशा भी मुहूर्त क्या निकालें क्रांतियों के
सगुन कैसे विचारें मंजिलों के हमें खाली घड़े दिखने लगे हैं
नजरिये हो गए .......
आदरणीय कविवर सोम ठाकुर जी की इस कविता को सुनना और पढना दोनों ही बेहद अच्छा लगा. पहली बार इस कविता को पढने का मौका मिला आभार
regards
hoon....to ye rang bhi rakhhe hain...
जवाब देंहटाएंbarke bhaijee ne....aur haan bachba
ko badhaiyan......
pranam.
सोम ठाकुर जी की रचना बहुत पसंद आई .... हर पंक्ति लाजवाब है .... आपका आभार मिश्राजी ... ये रचना हम तक पहुँचाने के लिए ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता की शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसोम ठाकुर की रचनाएँ दिल तक जगह बनाती हैं, बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआपका स्वर क्या कहने .. बहुत सुन्दर
kul milakar anupam.
जवाब देंहटाएंFir Suna...Achcha Laga ....Abhar
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया। सोम ठाकुर जी को मंच पर सुनने के लिए देर रात तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
जवाब देंहटाएंआपने यहाँ महफ़िल लगाकर और खुद गाकर मुग्ध कर दिया।
विचारणीय रचना, सुंदर गायन।
जवाब देंहटाएं