कई सेशन पहले भी हो चुके हैं ..कुछ बीते अफ़साने फिर से याद आने लगे हैं और हम भूले बिसरे चंद शेर फिर से गुनगुनाने लगे हैं ..मुलाहिजा फरमाएं ...
न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है
मैं रो पड़ता हूँ जब गुज़रा ज़माना याद आता है
नहीं भूला हूँ अब तक तुझे ऐ भूलने वाले
बता तुझको भी क्या मेरा फ़साना याद आता है
तेरी तस्वीर को बस देखते ही बेवफा मुझको
मुझे वो प्यार का मौसम सुहाना याद आता है
न कर गम मेरी बरबादियों का भूलकर इशरत
मुझे अब भी तेरी कसमों का खाना याद आता है
(इशरत अंसारी )
अब आईये एक और शेड में चलें ...
कभी कहा न किसी से तेरे फ़साने को
न जाने कैसे खबर हो गयी ज़माने को
सुना है गैर की महफ़िल में तुम न जाओगे
कहो तो आज सजा दूं गरीबखाने को
दुआ बहार की माँगी तो इतने फूल मिले
कहीं जगह न रही मेरे आशियाने को
दबाके कब्र में सब चल दिए दुआ न सलाम
ज़रा सी देर में क्या हो गया ज़माने को
(मुन्नी बेगम ने गाया है किसका है पता हो तो बताएं )
और अब यह भी ......
अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शेर फकत उनको सुनाने के लिए हैं
आँखों में जो भर लेगें तो काँटों से चुभेगें
ये ज़ख्म तो पलकों पे सजाने के लिए हैं
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजें से लगाने के लिए हैं
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
एक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
इस सेशन में बस इतना ही .... शेरो सुखन के अगले सेशन में फिर मुलाकात होगी ...जाते जाते यह बात फिर कि महीन भावों की अदायगी का जो जज्बा और ताकत उर्दू जुबान में है वह शायद दुनिया की किसी भी लैंग्वेज में नहीं है .....इसलिए थोडा उर्दू की शेरो शायरी का आनन्द उठाईये और इस जीवन को तनिक तो भावनाओं से लबरेज कीजिये .....
और मेरी बहुत प्रिय गायिका मुन्नी बेगम जिनसे कभी क्रश तक हुआ था उनकी आवाज में यह भी सुन लीजिये ...
जवानी में जब इश्क हो जाता है तो शेरो शायरी के प्रति रुझान हो उठता है. वही बाद में चलकर अपनी तन्हाई के साथी बन जाया करते हैं.
जवाब देंहटाएंशेर भी पसन्द आये और गायन भी। वैसे तो एक खूबसूरत खस्ता पैरोडी भी बन गयी है मगर हम यहाँ सुनायेंगे नहीं।
जवाब देंहटाएंबढ़िया हैं सभी शेर .... मुन्नी बेगम जी की आवाज़ भी दिल को छूती है ....
जवाब देंहटाएंशीर्षक देखकर लगा था कि एक-दो शेर होंगे, यहाँ तो शेरो-शायरी का समां बंधा हुआ है :)
जवाब देंहटाएंअच्छे मूड में लगते हैं महाराज आज .....
जवाब देंहटाएंएक फटा शेर यह भी ...
अपनी खिड़की से वे झांके अपनी खिड़की से हम झांके
लगा दो आग खिड़की में, न हम झांके ना वे झांके !
" न जाने क्यों तेरा मिलकर बिछड़ना याद आता है,
जवाब देंहटाएंमैं रो पड़ता हूँ जब गुज़रा ज़माना याद आता है "
" कभी कहा न किसी से तेरे फ़साने को,
न जाने कैसे खबर हो गयी ज़माने को "
" अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें,
कुछ दर्द कलेजें से लगाने के लिए हैं;
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें,
एक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं "
वाकई - महीन भावों की अदायगी का जो जज्बा और ताकत उर्दू जुबान में है वह शायद दुनिया की किसी भी लैंग्वेज में नहीं है ....
एक से बढ़कर एक शेरों का संग्रह. अगली कड़ी की भी प्रतीक्षा रहेगी...
" अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं,
जवाब देंहटाएंकुछ शेर फकत उनको सुनाने के लिए हैं..... "
यह किनका लिखा हुआ है ?
बढ़िया हैं सभी.
जवाब देंहटाएंबढ़िया हैं सभी शेर ......
जवाब देंहटाएंये तो वही बात है-
जवाब देंहटाएंउल्फ़त के मेले से जो मैं लाया था
ग़म की वो अनमोल निशानी साथ रही
साथ कई अफ़साने थे जब साथ रहे
बिछड़े तो बस एक कहानी साथ रही.
किसका है नहीं पता .
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
जवाब देंहटाएंकुछ दर्द कलेजें से लगाने के लिए हैं
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
एक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
मर बे हवा .सुभान अल्लाह !
@सुब्रमन्यन साहब,
जवाब देंहटाएंअभी जवानी की ही बात करिए न उसके बाद जीवन कहाँ है?
जवानी ही जीवन है!और उत्साह ही जवानी ...
वाह.. अच्छा समां बाँध दिया है आपने.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत शेरों का दीदार करवाया आपने.
जवाब देंहटाएंऔर फिर गायिका मुन्नी बेगम की आवाज क्या कहने
@ अरविन्द जी १,
जवाब देंहटाएंआप और सुब्रमनियन जी का संवाद पढकर कहना सिर्फ ये है कि इश्क का इलज़ाम सिर्फ जवानों पे क्यों मढ़ रहें हैं आप दोनों :)
@ अरविन्द जी २,
पता नहीं मुन्नी बाई पे आपके 'क्रश' का नंबर क्या था :)
यहाँ तो कई दोस्त ऐसे देखे जिनके 'क्रशर' कभी बंद ही ना हुए :)
@ अरविन्द जी ३,
मुन्नी बाई को सुन तो लिया पर मलाल ये बाकी रहा कि फकत उनकी ही फोटो अपलोड ना की आपने :)
@ अरविन्द जी ४,
स्मार्ट इन्डियन साहब ने पैरोडी की और छुपा ली उसके बाद सतीश भाई ने खिड़कियां जला डालीं मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा कि आपकी महफ़िल में यार लोग ऐसा बिहेव क्यों कर रहे हैं :)
@ अरविन्द जी ५,
वीरू भाई से कहियेगा कि दुरुस्त तो 'मरहबा' है पर वे शायद 'मर बेहया' कहना चाहते हों :)
@ अरविन्द जी ६,
अपने एम वर्मा साहब काफी शरीफ इंसान लगते हैं हालांकि आपने दीदार के लिए फोटोज लगाईं थीं पर वे शेरों के दीदार से मुतमईन हुए :)
फिलहाल इतना ही मौक़ा लगा तो लौट के ज़रूर आऊंगा !
असी भी अली जी की तरह मुन्नी बेगम को ढूंढते ही रह गए ।
जवाब देंहटाएंआपके क्रश से जो क्रश होने से रह गई , उसका दीदार अधूरा ही रह गया ।
वाकई उर्दू जुबान में शायरी का अपना ही लुत्फ़ है ।
हर दिल जो प्यार करेगा वो गाना गायेगा,
जवाब देंहटाएंपर इतना अच्छा गायेगा !!!!!!!!!
apun to is samay munni begam aur mehandi hasan ke diwane hain.kabhi mauqa mila to tafseel se sunayenge ye bhi afsaane !
जवाब देंहटाएंali saab zindabad :-)
@अभिषेक जी
जवाब देंहटाएंअशआर मेरे यू तो जमाने के लिए हैं -
यह जनाब जांनिसार अख्तर का है !
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
जवाब देंहटाएंकुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
kya baat hai ..सभी शेर बहुत बढ़िया हैं ...धन्यवाद ।
गुरुदेव ! ये ' क्रश 'होने के मामले का तफसील से खुलासा करें :-)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अरविन्द जी.
जवाब देंहटाएंतुम भी कब का फ़साना ले बैठे
जवाब देंहटाएंअब वो दीवार है न दर बाबा
भूले बिसरे ज़माने याद आए
जाने क्य़ूं पसंदीदा शेर देखकर बाबा
सभी शेर बहुत खूबसूरत ..गाना चुन कर लगाया है ..
जवाब देंहटाएं@अली सा,
जवाब देंहटाएंक्या आपकी शरारत भरी जिज्ञासाओं /प्रहेलिकाओं का उत्तर जरुरी है ? और सभी प्रश्न मुझी से थे तो बार बार मेरा नाम क्यों ? ये तो बदनाम करने की साजिश है :)
आपकी व्यग्रता के निवारण के लीजिये संक्षेपतः -
१.सही फरमाया आपने ,मगर मैं कितनी बार कह चुका हूँ पुरुष कभी भी बूढा नहीं होता ....कुदरत ने उसपर एक बड़ी जिम्मेदारी सौंप रखी है जो....
२.खुदा आपके क्रशर को सलामत रखे ..दूसरों के मामले में क्यों हलकान हुए जा रहे हैं ?
३.प्रेमियों की यह पुराणी आदत है जिसे वे चाहते हैं उसे ज़माने से छुपाते हैं ..बुरी नज़रे भी तो कितनी हैं :) आप जैसा सर्वग्य मानुष भी इत्ती सी बात नहीं समझ पाया ..हैरत की बात !
४.गैरों की बात मत कीजिये ..आप भी कुछ कम तो नहीं ..मौका मिलते ही रौदने को चढ़ बैठते हैं .... :) अब तो लगता है आपसे अपने एक जब्तशुदा इश्क का किस्सा सुना कर हम गलती कर बैठे हैं ... :(
५-वीरुभाई आते होंगें ..झांकते है हुजुर वे भी रह रह कर !
६.एम वर्मा साहब के बारे में आपकी जानकारी बहुत कम है जितना वे खुल खुल कर करते हैं उसका दुगुना वे छिप छिपा कर .....वे पहुंचे हुए फ़कीर हैं ..बस हाथ में एक कटोरे की जरुरत है -स्वांग पूरा हो जाएगा !
और कोई सवाल हो तो रखिये इस समय हम आसनासीन है ..ब्रह्म वेदी पर हैं !
@ अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंअब पोस्ट आपकी , सो हवाला आपका , वर्ना सवाल दूसरे दोस्तों से भी थे :)
१.हमारी शुभकामनायें कि आपकी जिम्मेदारियां सलामत रहें और हौसला भी ! बाकी इल्जाम तो बेचारी प्रकृति को ही झेलने हैं :)
२.अपने दोस्तों(क्रशर)की चिंता में ही लीन हूं :)
३.अब हमें कैसे पता होता कि मित्र ने आवाज को छोड़ बाकी तमाम जगह परदे/बंदिशें तान रखे/रखी हैं :)
४.अब पता चला कि आप उन्हें गैर समझते हैं तभी तो वे आग लगा कर खिसक लिए :)
याद नहीं आ रहा कि आप किस जब्तशुदा किस्से की बात कर रहे हैं :)
५.क्या कह रहे हैं आप ? ताक झाँक ? ये तो अच्छी आदत नहीं है :)
६.पहुंचे हुओं को बिन पंहुचे हुए का सलाम पहुंचे :)
बहुत खूब शेर हैं,सभी उम्दा !
जवाब देंहटाएंअच्छा हुआ आपने पुरानी ग़ज़लों की याद दिलादी हम तो भूल ही गए थे ..
जवाब देंहटाएंये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
जवाब देंहटाएंएक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
शानदार ,अरविन्द भाई !भारत में तो अवैतनिक स्वास्थ्य सलाहकार गली गली घर दुआरे मिलेंगें ,वीरुभाई ऐसे में क्या करेंगे .
उम्दा शेरो शायरी से भरी पोस्ट बेहद रोचक लगी |
जवाब देंहटाएंउम्दा शेरो शायरी से भरी पोस्ट बेहद रोचक लगी |
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
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देव,
अपन तो सच बोलने में नहीं डरते कभी भी... तीनों गजलें एक निश्चित क्रम में लगी हैं... आप किसी 'खास' से तकाजा और मान मनुहार कर रहे हैं सरेआम... और टोपी पहनाई जा रही है बेचारे पाठक-टिप्पणीकार को...
यह अंदाज भी खूब है, चलेगा अपन को... ;))
...
सुन्दर पोस्ट!
जवाब देंहटाएंबढिया अश’आर। क्या यह वही मुन्नी बेगम है जो झंडू बाम हुई :)
जवाब देंहटाएंBahutu khoob ..... Sabhi sher aur ye ghazal Bhi lajawab hai .... Mazaa AA Gaya Munni began ko sun ke ....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंमुन्नी बेगम की गाई ग़ज़ल 'मेरी दास्ताने ..'भी पसंद आई..
नहीं भूला हूँ अब तक तुझे ऐ भूलने वाले
जवाब देंहटाएंबता तुझको भी क्या मेरा फ़साना याद आता'
' न कर गम मेरी बरबादियों का भूलकर इशरत मुझे अब भी तेरी कसमों का खाना याद आता है'
............ और यह लिखूं कि ...... सुबह सुबह आपके ब्लॉग पर आया उर रोये जा रही हूँ तो सब कहेंगे 'उफ़!यह कितना रोती है...पढते समय भी और कुछ सुन्त्व हव भी' पर..
क्या करूं ऐसिच हूँ मैं तो.
आपकी पसंद आपके बारे में सब बता रहे हैं सर! एक बहुत ही संवेदनशील और खूबसूरत दिल वाले अरविन्दजी से यूँ मिलना अच्छा लग रहा है.
हर शेर दिल को छू जाने वाला.उछ्कोती की पसंद.अब तो इस ब्लॉग को पूरा खंगालना पडेगा ,लगता है.
मुन्नी बेगम कि गजल पहली बार सुनी.बहुत पसंद आई.सुबह लगातार उसे सुनती रही.एक बहुत प्यारा पुराना गाना मेरी पसंद में शामिल है इससे बहुत मिलता जुलता है.किसने किस से प्रेरणा ली नही मालू पर है लगभग एक सा.'मेरी दास्ताँ मुझे ही मेरा दिल सुना के रोये कभी रो के मुस्कराए कभी मुस्करा के रोये.'इसका एकेक शब्द भीतर तक भिगो देता है मुझेऔर.............मेरे आंसू नही थमते 'मिले गम से अपने फुरसत तो मैं हाल पूंछू इसका,शब ए गम से कोई कह दे कहीं और जा के रोये.
जवाब देंहटाएंफिर कहूँगी लंबे अरसे बाद इतनी खूबसूरत नज्म/गजल सुनने ,पढ़ने को मिली.आपके लिखने में भी वाही एक बहाव है जो इन नगमों को पढ़ने सुनने में.बस बहती धारा में जैसे कोई खुद को लहरों के हवाले कर दे और वो उसे दूर बहा ले जाए ऐसा ही कुछ आपकी कलम में है.मस्का मारने की मेरी आदत नही.जिस दिन कोई चीज अच्छी नही लगी वो भी जरूर यहाँ लिख दूंगी.फिर आप चाहे मेरा,मेरे ब्लॉग का कितना ही पोस्ट मार्टम करें हा हा हा क्या करूं?आइसिच हूँ मैं तो.
पर........ सुबह आप के तीन आर्टिकल पढ़े.और सोच रही थी मैंने आपको अब तक क्यों रेगुलर नही पढा?