रात में सोते समय निहत्थे लाचार मासूम लोगों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार ? शेम! शेम!
आज सहसा ही पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की याद आयी -बाबरी ढाँचे के जमीदोज होने के बाद भोर ४ बजे जनता के नाम उनका सन्देश टी वी पर मैंने सुना था जो वहां उपस्थित जनता जनार्दन के लिए था -हाथ जोड़कर था कि अब आप लोग वहां से हट जायं ...नहीं तो किसी भी कार्यवाही की मेरी जिम्मेवारी नहीं होगी ....यह है एक लोकतांत्रिक कार्यवाही का नमूना -
अपना ये पगड़ी वाला तो दमन की इस अभूतपूर्व कार्यवाही के दौरान कहीं दिखा ही नहीं ...क्या वह खर्राटे की नीद ले रहा था -या भोर के सपनो में मगन था ...
अभी तक है कहाँ यह इटैलियन बैंड पार्टी ?
रात से जागकर सारे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए हूँ -साफ़ लगता है बड़े अपराध को छुपाने की नीयत से नैतिकता खो चुके लोगों और व्यवस्था के पिट्ठुओं ने वह कर दिखाया है जो किसी भी लोकतंत्र में मान्य नहीं है...बेहद शर्मनाक भी है ...
बर्बरता की ऐसी मिसालें आजाद लोकतांत्रिक देशों में कम ही देखने को मिलती हैं ..क्या कोई लोकतांत्रिक सरकार अपने ही देशवासियों से ऐसा बर्बर सलूक कर सकती है जो एक जायज मांग को लेकर सत्याग्रह कर रही हो .....क्या अमेरिका अपने देशवासियों के साथ ऐसा अमानवीय और मर्यादाहीन आचरण कर सकता है
?..वह भी एक लोकतंत्र है ....
रात में सोते हुए निरीह और निहत्थे लोगों पर हमला -यह तो महाभारत काल में भी केवल अश्वत्थामा के द्वारा किया गया था ...
...एक उल्लू को अपने दुश्मन कौओं का गला काट काट कर गिराए जाते देख अश्वत्थामा ने भी पांडवों के पांच पुत्रों का रात में सोते समय ही गला काटने का कायराना काम किया था ....यह नृशंसता फिर दिखी है ..यह नपुंसक आक्रोश की ही परिणति है !एक कायराना कार्य ..यह मर्दानगी तब कहाँ छुप जाती है जब आतंकवादी देश में आ जाते हैं ?
मैं बाबा रामदेव को ठीक से नहीं जानता था ..न हीं उनके योग का समर्थक हूँ ...लालू किसी दिन बोले थे कि वे अहीर जाति के हैं उन्हें दूध बेचने के अपने पैतृक धंधे पर लौट जाना चाहिए ....मगर बाबा जन्मना भले ही अहीर हों सही अर्थों में मुझे यह व्यक्ति एक द्विज लगता है .....उसकी जो मुहिम है वह देश के उन महापापियों के विरुद्ध है जिन्होंने गरीब से गरीबतर होते इस देश की अरबों की संपत्ति विदेशों में जमा कर रखी है..
अब उसे उजागर करने का कोई इतना बड़ा सत्याग्रह मूर्त रूप ले रहा हो और उसे नृशंसता से कुचलने की कार्यवाही की जाय तो इसके क्या निहितार्थ हो सकते हैं ? अपनी ही जनता से क्या छुपाया जा रहा है ??
क्या जो लोग यह दमनात्मक कार्य कर रहे हैं वे ही किसी महापापी को बचाने पर तो उतारू नहीं हैं ?
यह जवाब जनता लेकर रहेगी अब -
आपके लेख से अक्षरत: सहमत
जवाब देंहटाएंहम जैसे नपुंसक लोगों को आक्रोश दिखाने का कोई अधिकार नहीं हैं
रात के अन्धेरे में जो कुछ भी किया गया वह सरकार में बैठे लोगों की कलई खोलने के लिये काफी है। लोकतंत्र को दमनकारी भ्रष्टतंत्र में बदलने का काम काफी समय से निर्बाध चल रहा है - भले ही अलग-अलग बन्दूकों, डन्डों, झंडों और पार्टियों के नाम से हो
जवाब देंहटाएंशर्मनाक है जी ...
जवाब देंहटाएंराष्ट्रीय शोक ???
जवाब देंहटाएंमाफ़ किजिए मैं इससे सहमत नहीं हूँ। राष्ट्रीय शोक की बजाय 'राष्ट्रीय मौका' कहना ज्यादा फबेगा क्योंकि यह ऐसा मौका है जो सबके लिये है।
सरकार के लिये अपने राजनीतिक विरोधियों की मंशा पर रातों-रात तुषारापात कर दिखाये जाने का मौका, विरोधियों के लिये सरकार को घेरने का मौका, हाशिये पर धकेले गये लोगों के लिये पुन: अपने बयानों, फ्लैक्स बैनरों के जरिये लाइमलाईट में आने का मौका, मीडिया के लिये कुछ दिन और माल मसाले का मौका, फेसबुकियो-ब्लॉगरों के लिये की बोर्ड खटखटाने का मौका और साथ ही यदि जनता में कुछ थोड़ी बहुत हिम्मत बची हो तो उसे सरकार को दिखाने का मौका।
कुल मिलाकर सब के लिये मौका ही मौका है।
यदि सोते हुए लोगों पर लाठी डंडे बरसाना ही राष्ट्रीय शोक की श्रेणी में आता है तो यहां मुंबई में रोज ही राष्ट्रीय शोक घोषित हो क्योंकि यहां देश भर से आए, विभिन्न प्रांतों के लोग जो कि तमाम रोजी-रोटी कमाने की चाहत लिये आते हैं, अक्सर रात में फुटपाथ पर पुलिसिया डंडों या टुच्चे गुंड़ों के शिकार बनते हैं।
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जवाब देंहटाएं.
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यहाँ सतीश पंचम जी से सहमत हूँ...
वैसे अपनी बात मैंने अपनी पोस्ट पर लिख दी है पंचम जी के अनुसार फेसबुकियो-ब्लॉगरों के लिये की बोर्ड खटखटाने के मौके का फायदा उठाते हुऐ... वैसे पंचम जी भी अपन दोनों की तरह ही गुनाहगार हैं यहाँ पर... :(
...
@ वैसे पंचम जी भी अपन दोनों की तरह ही गुनाहगार हैं यहाँ पर... :(
जवाब देंहटाएं-------
जी बिल्कुल, मैं भी गुनहगार हूँ... मौका ही ऐसा है।
दिल्ली के रामलीला मैदान में पुलिसिया कार्यवाही से असहमति जाहिर करते हुए सतीश पंचम जी की पहली टिप्पणी से सहमत. मेरी नज़र में कल रात रामलीला मैदान में जो कुछ हुआ उसके लिए बाबा रामदेव दोषी हैं.
जवाब देंहटाएंऐसा पहला सन्यासी देखा जो मौत के डर से भयभीत होकर सार्वजनिक रूप से रोना धोना शुरू कर दे. अभी कल दोपहर में यही बाबा राम देव अपने समर्थकों से खून की अंतिम बूंद तक संघर्ष करते रहने का वचन ले रहे थे और रात में जब पुलिसिया लाठीचार्ज हुआ तो खुद डर के मारे दो घंटे तक एक कौने में छिपे रहे. ये मैं नहीं कह रहा बाद में प्रेस के सामने रोते हुए उन्होंने खुद बयान दिया है.
बलिहारी है ऐसे कलजुगी सन्यासी की...
@पंचम जी, चिंता मत कीजिए इसी प्रकार सलाइस ऑफ़ इटली का पिज्जा खाते रहे तो इसे मौके इंशा अल्ला जल्दी जल्दी आयेंगे और मुंबई में आये तो कृपया फोटो 'हेंचने' में कंजूसी मत करना
जवाब देंहटाएं@बलिहारी है ऐसे कलजुगी सन्यासी की...
विचार शुन्यजी: मैं यहाँ सहमत नहीं हूँ :
आज कलयुग में किसी व्यक्ति से अगर लीक से हाथ कर कुछ करने की इच्छा दिखाई दे रही है तो उसका स्वागत होना चाहिए......... अगर बाबा कुटिल राजनीति में निपुण होता तो उसकी अन्ना की तरह (माफ़ कीजिए) जय जयकार हो रही होती ......... न कि थू थू .. मैं चाहता हूँ ऐसे सन्यासी कलयुग के वातावरण में निपुण हो जाएँ ....... क्या है कि अब वो जमाना तो नहीं कि आनंद मठ की तरह हाथ में हथियार उठा लें........
@ सलाइस ऑफ़ इटली का पिज्जा
जवाब देंहटाएं-------
ये भी खूब रही :)
फिलहाल तो उसी इटालियन पिज्जा वाली मैडम से पूछिये कि 'बाटी-चोखा' का इंतजाम है क्या ? यदि है तो मैं भी दिल्ली कूच करूँ, वरना तो किसिम किसिम के पिज्जे यहां बहुतेरे मिलते हैं :)
राष्ट्र के गंभीर मुद्दे पर सभी मौका परस्तों ने मौका ताड़ा यह भी तो शर्मनाक स्थिति है।
जवाब देंहटाएंबाबा को यदि जान का खतरा था और इसे भांपते हुए उन्होने अपनी जान बचाई तो यह बुद्धिमानी का काम किया। वरना मौका परस्तों को और भी बड़ा मौका मिल जाता। मारी जाती असंख्य निरीह जनता।
राष्ट्र के गंभीर मुद्दे पर सभी मौका परस्तों ने मौका ताड़ा यह भी तो शर्मनाक स्थिति है।
जवाब देंहटाएंबाबा को यदि जान का खतरा था और इसे भांपते हुए उन्होने अपनी जान बचाई तो यह बुद्धिमानी का काम किया। वरना मौका परस्तों को और भी बड़ा मौका मिल जाता। मारी जाती असंख्य निरीह जनता।
मेरी टिप्पणी से मुझ पर "देश-द्रोही", "कांग्रेसी","सोनिया भक्त", "सेक्युलर" की पदवी मीलना तय है।
जवाब देंहटाएंरात के अंधेरे मे पुलिसिया कार्यवाही से असहमति! लेकिन दिन के उजाले मे क्या बाबा अनशन समाप्त करने मान जाते ?
क्या भीड़/भीड़तंत्र ज्यादा बेकाबू नही हो जाता ?
योग केन्द्र के बहाने ५००० लोगो की भीड़ जुटाने की अनुमति लेकर अनशन करना और लाखों लोगो को जमा करने को क्या कहेंगे ?
अनशन भी ऐसा जिसके शुरू होने से पहले ही खत्म करने का समझौता किया हुआ हो!
बाबा की मांगे:
१. काला धन वापिस लाया जाये/राष्ट्रीय संपत्ती घोषीत किया जाये! कैसे ? संसद मे कानून पास कर या लाल किले से घोषणा कर ! क्या होगा ? पैसा वापिस आयेगा ? स्वीटजर लैण्ड पर हमला कर! या उसके साथ व्यापार बण्द कर (कितना है?)? आपके पास काले धन के क्या सबूत है? क्या लोगो की सूची है ?
२. बड़े नोट बद किये जाये ? सब्जी लेने झोले मे नोट लेकर जाये और जेब मे सब्जी लायी जाये!
३. एम एन सी बंद हो ! टाटा, विडीयोकान जैसी कंपनी का क्या होगा। वैसे बाबा का फोन, गाड़ी, एसी कौनसी भारतीय कंपनी बनाती है।
४. अंग्रेजी मे शिक्षा बंद हो, माफ किजीये, मेरी नौकरी और मेरे जैसे लाखो लोगो की नौकरी इसी अंग्रेजी शिक्षा के भरोसे है।
@अन्ना की तरह (माफ़ कीजिए) जय जयकार हो रही होती ......
जवाब देंहटाएंअन्ना ने १९६५ की लड़ाई लड़ी है, अपने साथीयो को शहीद होते देखा है। पिछले ४० वर्षो से सार्वजनिक जीवन मे है। एक मंदिर मे रहते है। खुद की जमीन(कुछ एकड़) दान कर दी है। एक बार राळेगण सींदी हो आइये!
महाराष्ट्र मे उनसे चिढने वालो मे कांग्रेस या राष्ट्रवादि अकेली नही, भाजपा, शिवसेना भी है।
परिस्थितियाँ यक़ीनन शर्मनाक हैं....
जवाब देंहटाएं@सतीश पंचम जी,
जवाब देंहटाएंसही कहते हैं अब तो हर दिन राष्ट्रीय शोक का दिन है ...
@प्रवीण शाह जी ,
आप तो दन से पंचम जी से सहमत हो लिए ..क्या बात है ?:)
@विचार शून्य जी ,
कभी कभी ही सही लेकिन आप अपने ब्लागीय नाम की अर्थवत्ता शब्दशः साबित कर ही जाते हैं .:) .
क्या रामदेव आपको साधारण बाबा लगता है -भगवा पहनने वाला ?
वह तो एक आम आदमी की लड़ाई लड़ रहा है -
हमारी आपकी तरह नपुंसक होकर केवल की बोर्ड नहीं खटखटा रहा ....
उसके मुद्दों पर गौर करिए -क्या जरुरत थी इस मुद्दे पर उसे सरकार को घेरने की ?
वह भी एक शंकारचार्य की तरह मखमली रत्न जनित सिंहासन पर बैठता ...सिर पर सोने का मुकुट होता हाथ में चान्दी का दंड !
और रात के अँधेरे में सोती हुयी निरीह जनता पर आंसू के गोले,लाठी चार्ज -वहां समूचा भारत जीवंत था ?
आप विचार शून्य हों हमें इसमें कोई एतराज नहीं मगर संवेदन शून्य तो मत हों !
आधी रात में सोये हुए निहत्थे लोगों पर बिना चेतावनी लाठी भांजना , आंसू गैस के गोले छोड़ना , पत्थरबाजी करना संवैधानिक , सामाजिक , नैतिक हर प्रकार से अन्याय है ! विशेषकर उस परिस्थिति में जब आन्दोलन शांतिपूर्ण हो ...
जवाब देंहटाएंहरियाणा के किसी गाँव के बारे में पढ़ा था ...एक अपराधी को पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने से रोकने के लिए पूरा गाँव लाठियों , तलवारों , बंदूकों से लैस खड़ा था .. रेलवे पटरी पर कई दिनों तक जाम बना रहा , तब इस तरह की कार्यवाही की हिम्मत नहीं की गयी किसी भी सरकार के द्वारा !
@आशीष जी,
जवाब देंहटाएंमुझे संतोष हुआ कम से कम रात में निरीह जनता पर जुल्म का विरोध आपने किया ...
बाकी के मुद्दे प्रश्नवाचक है ..समय ही इनका उत्तर देगा ..
रही बात निरीह निशस्त्र जनता की -तो उससे कैसा डर था?
अब जो भीड़ हरिद्वार में जुट रही है क्या उस पर भी लाठी चार्ज होगा ?
बाबा योग शिविर में अब जीवंत रास्ट्रीय मुद्दों को भी उठाते हैं यह सभी को पता था ...
और उन के आयोजन में लाख भीड़ जुटना सहज बात है ..फिर इस बात को [अहले क्यों नहीं देखा गया
अंगरेजी को ख़त्म करने की बात कौन कह रहा ? वे तो बस भारतीय भाषाओं को भी महत्त्व दिए जाने की बात कर रहे हैं .....यह कौन सी गलत बात है ?
क्या रामदेव आपको साधारण बाबा लगता है -भगवा पहनने वाला ?
जवाब देंहटाएंवह तो एक आम आदमी की लड़ाई लड़ रहा है -
कार्पोरेट जेट मे उड़ान भरकर - आम आदमी की लड़ाई ?
यह कैसा लड़ाई है जिसके खत्म होने के लिए समझौता शुरुआत होने से पहले ही हो चुका हो?
@आज के इस अन्तरिक्ष युग में आप चाहते हैं बाबा गुफा मार्ग से चलें ....
जवाब देंहटाएंदूसरा कोई समझौता नहीं हुआ -दबाव में लेकर चिट्ठी लिखवाई गयी नहीं तो उसी दिन गिरफ्तारी हो जाती ..
बाबा ज्यादा स्मार्ट है -उसने अब एक ऐसे आन्दोलन को मोमेंटम दे दिया है जो थमेगा नहीं ....
देखते जाईये !
आवाम बाबा को लेकर उम्मीद के उतने ऊँचे पहाड़ पर न चढ़े जहाँ से गिरने पर अगले किसी आंदोलन तक के लिये पसली भी साबित न बचे। इसलिये जागरूक होकर सरकार की तुलना में कम बुरे ( बाबा) की तरफ से बोलने में तार्किक रहना जरूरी है।
जवाब देंहटाएंबाबा में अन्ना जैसा चरित्र बल नहीं है, पत्र-प्रकरण इसका एक प्रमाण है।
हाँ, पुलिस द्वारा जो कुछ किया गया वह भर्तसनीय है। निस्संदेह !
सहमत हूँ ... मैं किसी का भी पक्ष नहीं लूंगी क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी सोच होती है ....मेरा आक्रोश दमन के बर्बर और कायराना तरीके पर है .....
जवाब देंहटाएंटिप्पणियों सहित यह आलेख भी मैं पूरा नहीं पढ़ पाया... बाबा सहित यह विषय बड़ा उबाऊ हो चला है ।
जवाब देंहटाएंQ. क्या अमेरिका अपने देशवासियों के साथ ऐसा अमानवीय और मर्यादाहीन आचरण कर सकता है ?
A. नहीं.. क्योंकि वह ऎसा अमर्यादित आमरण ( ? ) अनशन होने ही न देता, उसके आँतरिक सुरक्षा व कठोर टैक्स नियम हैं, वह रामदेव सरीखों को लोकतँत्र के चरागाह में स्वच्छँद विचरने की नौबत ही न आने देता ।
लचर या बर्बर हमारे देश का कानून जैसा भी हो, फिलहाल कानून से बड़ा कोई नहीं ।
क्या ईँट -पत्थर, चप्पल इत्यादि अस्त्र में नहीं आते हैं... इस पर शोध जारी है !
जहाँ तक भ्रष्टाचार मिटाने की बात है अन्ना हजारे की मुहिम सही दिशा में जा रही है बीच में यह ध्यान बंटाने की बात संशयात्मक ही रही ...
जवाब देंहटाएंसारे देश में फैली इस बीमारी को दूर करना है तो पहले अपने गिरेवान में झांकते हुए, अपने घर से शुरू क्यों न करें ...
कि आज से अपना पैसा बचाने के लिए कोई बेईमानी नहीं करेंगे
चाहे बच्चों का एडमिशन हो...
उनकी नौकरी हो ...
बाज़ार की खरीदारी करते समय वैट टैक्स की रसीद अवश्य लेंगे...
घर खरीदने में सही कीमत से तिहाई कीमत दिखाते हुए टैक्स चोरी को सरकार में जमा कराएँ ....
आप अपने आसपास प्रोपर्टी सौदों की जानकारी लें, बड़े बड़े ईमानदार, लैंड वैलुएशन में झूंठ बोलते पाए जायेंगे ! जितना पैसा यह इन्कमटेक्स में बताते हैं उससे ५० गज जमीं मिलना भी संभव नहीं है और इन्हें उतने पैसे में ५०० गज का प्लाट मिल जाता है ....
एडमिशन के समय गलत उम्र लिखवाना तो कोई गलत मानता ही नहीं ....
अपने पैसे खर्च करते समय देश और ईमानदारी का ध्यान अवश्य रखें......
रचना का एक लेख याद आता है जिसमे उन्होंने लिखा था कि अगर कानून ठीक से लागू किये जाएँ तो देश का लगभग हर आदमी जेल में होगा .....
आइये टटोलें हम अपने आपको ....
निरीह निहत्थे लोगों पर हाथ उठाने को मैं भी गलत ही मानता हूँ और जो कुछ वहां हुआ उसकी जितनी निंदा की जाय कम है। लेकिन ये कैसा शोक है जिसमें सुषमा स्वराज नाच गा रही हैं ठुमके लगा रही हैं।
जवाब देंहटाएंकृपया राजनीतिक घात प्रतिघातों को राष्ट्रीय शोक कहकर शोक को जीवन के दुरभिसंधियों में निचले पायदान पर न धकेलिये । शोक होना और बात है राजनीतिक घात प्रतिघात और बात।
रही बाबा के स्मार्ट होने की बात तो बाबा पहले से ही स्मार्ट हैं। माहौल और परिस्थिति देख कर ही चलते देखा है उन्हें। किंतु यह कहना कि बाबा स्मार्ट थे जो पत्र पर सहमत हो लिये वरना गिरफ्तार हो जाते तो यह तो वही बात हुई कि फिसल पड़े तो हर हर गंगे। क्योंकि खुले आम बाबा ने कहा कि उनसे पत्र को लेकर विश्वासघात हुआ और दूसरी ओर कहा जा रहा है कि पत्र लिखकर बाबा ने स्मार्टनेस का परिचय दिया। वाह।
दुखी हूँ, यह टाला जा सकता था।
जवाब देंहटाएंडॉ मिश्र
जवाब देंहटाएंजो अखबार मे पढ़ा हैं आज सुबह और जो कल से दिख रहा हैं उसका विश्लेष्ण कर के ये सब लिखते
रात १२ बजे तक की समय सीमा थी जिसका नोटिस श्री रामदेव जी के पास था { अब ये बाबा रामदेव कहना मुझे उचित नहीं लगता क्युकी वो कोरपोरेट फ्य्सिकल ट्रेनर मात्र हैं } . उस नोटिस के अनुसार उनके पास योग शिविर { रैली } नहीं चलने के परमिशन थी .
समय सीमा समाप्त होते ही पुलिस ने उनको नोटिस दिया और पंडाल खली करने का आग्रह किया .
वो सत्याग्रही थे तो रैली के लिये आज्ञा लेते , योग शिविर के लिये क्यों ली
उस पंडाल मे पाइप लाइन बिछी थी जहां से पानी की सप्लाई की जा रही थी
किसने दिया इतना पैसा ??
जो भी उस शिविर में गया उसका बाकायदा रजिस्ट्रेशन किया गया , एक पहचान पात्र दिया गया और एक अलिखित आश्वासन भी की उनको ट्रस्ट से पैसा मिलेगा दिन के हिसाब से .
लाठियां पुलिस ने नहीं बरसाई हां पुलिस ने पत्थर जरुर खाए
एक रैली मे भादढ़ मचती हैं क्यूँ , क्युकी राम देव जी ऐसा चाहते थे
वो खुद महिला के कपड़ो मे पुलिस को मिले
देश की राज धानी मे सिविल disobedience का नाटक चल रहा था
जो खुद कानून को नहीं मानते वो कानून के रक्षक बन भ्रष्टाचार मिटाने की बात करते हैं
रामदेव जी के संरक्षक हैं नारायण दत्त तिवारी जो खुद एक निर्लज इंसान हैं , जो बच्चा पैदा तो कर सकते हैं पर नाम नहीं दे सकते
५००० लोगो का शिविर था , इतने की ही परमिशन थी फिर उस से ऊपर लोगो को क्यूँ आने दिया
पिछले बीस सालो में ना जाने कितने " युग परुष !!!!!!!" आये और चलाए गए जनता को ठग कर क्युकी आज भी भारत मे इनकी "जरुरत " हैं . आसा राम हो , सुधांशु हो , या बालाजी मंदिर मोडल town के "संत जिन्होने ने कई महिला का शोषण किया " सब एक से हैं .
अगर राम देव जी को आम जनता की फ़िक्र होती तो समय सीमा के अन्दर पंडाल खाली होता .
कानून को मान कर आम आदमी खुद भ्रष्टाचार से लड़ सकता हैं
कोई राष्ट्रिये शोक नहीं था कल , बेवकूफ लोग इन लोगो को गुरु मानते हैं किसी पढे लिखे को गुरु मानिये अपने आप इन लोगो से मुक्ति का रास्ता मिलेगा
जो वहाँ थे वो अपनी कम अकली से थे , पुलिस के पास भीड़ को हटाने का क्या रास्ता हैं अगर भीड़ जगह से ज्यादा हो जाए और मत भूलिये बे पढी लिखी जनता अंध भक्त होती हैं और उनको जागरूक करना पड़ता हैं ,
जिनको चोटे आयी उनके लिये मन द्रवित हैं क्युकी पहले भी वो बिचारे बेवकूफ बनते रहे हैं , कुछ पैसे देकर भीड़ जमा कर के कौन सी पार्टी रैली नहीं करवाती रही हैं .
आप से आग्रह हैं लोगो मे चेतना लाये अपने आस पास और लोगो को इन जैसो से दूर रहने का आग्रह करे
after all u are a scientist sir
हम तो सतीश सक्सेना जी की टिप्पणी का अनुमोदन करते हैं । आइये खुद से ही सफाई अभियान चलायें ।
जवाब देंहटाएंरचना का एक लेख याद आता है जिसमे उन्होंने लिखा था कि अगर कानून ठीक से लागू किये जाएँ तो देश का लगभग हर आदमी जेल में होगा .....
जवाब देंहटाएंsatish Saxena
thank you for reposting here my thoughts from my post the link is
http://mypoeticresponse.blogspot.com/2011/06/blog-post.html
जवाब देंहटाएंडॉ अरविन्द मिश्र ,
रचना का यह लेख मुझे बहुत पसंद आया जो हम सबको आइना दिखाने में कामयाब है बशर्ते एक एक लाइन, ब्लागरों की तरह न पढ़कर, ध्यान से पढ़ा जाए !
"
अब वो समय दूर नहीं हैं जब सरकारी तंत्र कहेगा की आम आदमी पर सब कानून लागू कर दो .
और ये भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम . लोकपाल इत्यादि अपने आप बंद हो जायेगा
सोच कर देखिये आम आदमी यानी आप और मै रोज कितने कानून तोड़ते हैं
कितने लोग सड़क पार करते हैं ज़ेब्रा क्रोस्सिंग से
कितने लोग पानी की सुप्लाई से गाडी धोते हैं
कितने लोग किरायेदार रखते हैं पर हाउस टैक्स वालो को नहीं बताते
कितने लोग बिना बिल के समान खरीदते हैं
कितने लोग लोकर में कैश रखते हैं
कितने लोग १८ साल की उम्र से कम बच्चो को घर के काम के लिये रखते हैं
कितने लोग बच्चो के साथ यौनिक सम्बन्ध रखते हैं
कितने लोगो के पास कंप्यूटर पर ओरिजिनल सॉफ्टवेर हैं
कितने लोग पिक्चर और गाने डाउनलोड करते हैं बिना पैसा दिये
कितने लोग नेट कनेशन के लिये ड्राइव का लोक तोड़ते हैं
कितने लोग सड़क पर शराब पीते हैं
कितने लोग सड़क पर कूड़ा फेकते हैं
कितने लोग एक दूसरे को धक्का दे कर मेट्रो में चढते हैं
कितने लोग बिना टिकेट यात्रा करते हैं
ये जितनी रैलियाँ होती हैं क्या उनके लिये परमिशन ली जाती हैं
कितने लोग बारात लेकर सडको पर शोर माचा ते हैं क्या जानते हैं इसके लिये सरकारी परमिशन चाहिये
दस बजे के बात जगराते के नाम पर शोर मचाना कौन नहीं करता
ज़रा और लोग भी इस लिस्ट में कुछ जोड़े और फिर किसी को समर्थन दे
पूरा देश जेल जा सकता हैं अगर हर कानून पूरी तरह लागू कर दिया जाए
जब तक पकड़े ना जाओ तब तक ठीक
हम करे तो सही कोई और करे तो भ्रष्टाचार"
@सतीश सक्सेना जी ,रचना जी ,
जवाब देंहटाएंआप मुद्दे को डायलूट कर रहे हैं ...काले धन का मुद्दा आपको रोजमर्रा के मसलों जैसा दिख रहा है ?
रचना जी तो सरकार की अनपेड प्रवक्ता की भूमिका में आ गयी हैं -उन्हें दो दिन से भूखे ,निरीह निरश्त्र सोयी हुयी जनता पर बिना पूर्व सूचना और आगाह किये सरकार की दमनात्मक कार्यवाही नहीं दिख रही ? चश्में का नंबर ज्यादा बढ़ गया है भाई जान/मैडम या फिर दिमाग में कोई असर आ गया है ..
मामले का स्वतः संज्ञान माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ले लिया है -और जो टिप्पणियाँ की हैं इससे नृशंसता और क्रूरता का जो दौर दौरा है उसकी यहाँ भी पुष्टि हो गयी है ..
क्या आप लोग आम जनता के दुःख दर्द से जुड़ने की सारी संवेदना खो बैठे हैं ?
हद है आप दोनों तो भ्रष्टाचार जस्टीफाई करने लग गए ...
बाब रामदेव चोर है डकैत है तो इस देश का कानून उसे सजा देगा ..मगर उसने जिस मुद्दे को उठाया है वह कहाँ गलत है ?
हमारे प्रधानमंत्री जी क्यों इतने लिजलिजे बने हुए हैं ? किसको बचाया जा रहा है और क्यों ?
अगर वहां से लोगों को हटाना था तो रात में सोते हुए क्यों ? क्या उनसे हिंसा का डर था ? उनके पास तो फल काटने का चाकू भर भी नहीं था ....खैर मनाईये वहां बजरंग दल नहीं था नहीं तो लाशें बिछ जाती ..शनत प्रिय लोगों पर दमन की ऐसी मर्दानगी ..थू थू ..मगर यह आपकी पीलिया ग्रस्त आँखों को नहीं दिखती ? संवेदना का ऐसा अभाव ?
क्षमा कीजियेगा आप दोनों का बेमौके का यह प्रलाप मुझे कतई रास नहीं आया -यह तो मेरे लिए राष्ट्रीय शोक ही था :(
@आदरणीय डॉ अमर जी,
जवाब देंहटाएंलगता है यहाँ से भी बैन करना पड़ेगा क्या आपको :)
नहीं गुरुवार सपने में भी नहीं ,आप आदरणीय हैं गुनी जन हैं ...महाजन हैं ..
महाजनों ये न गतः स पन्थाः
हाँ ईट पत्थर आदिम युग के अश्त्र हैं ,अपने आराध्य को बचाने के लिए एक कृतज्ञ भक्त समूह इतना भी न करता ..?
ब्लॉग जगत समझ लिए हैं क्या? जब देखों गलबहियां और फिर दूध की मखी की तरह निकाल बाहर ?
खैर मनाईये बजरंग दल के कार्यकर्ता नहीं थे नहीं तो ऐसी मूर्खता पर क्या हुआ होता अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है !
@सतीश पंचम जी ,
जवाब देंहटाएंआपको कुछ दिख ही नहीं रहा और उधर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान ले लिया ...
आप किसे राष्ट्रीय शोक कहेगें ? जरा पारिभाषित करिए ...
महज किसी राष्ट्रीय नेता का मर जाना ..
ईश्वर न करें हमारे और आपके बच्चे की दुर्घटना में टांग टूट जाय ....तो क्या हमें खुशी होगी ?
जब देश के कोने कोने से आये निशस्त्र निरीह जनता जो दो दिनों से भूखी थी ,सोयी हुई थी ,अचानक हमला कर दिया जाना -कौन सी नैतिकता या रणनीति है ? यह राष्ट्रीय शोक नहीं तो और क्या है ? क्या राष्ट्रीय शोक किसी (अब तो) महाभ्रष्ट किसी नेता का मर जाना ही है ?
मेरा कंसर्न बस केवल इतना और कालेधन के मुद्दे को उठाया जाना है!
जहाँ तक मेरे कमेन्ट का सवाल हैं अपने आप में स्पष्ट हैं !
जवाब देंहटाएंइसे इस विषय पर, आखिरी कमेन्ट मानिए !
@रचना जी,
जवाब देंहटाएंमैडम ,साईंटिस्ट हूँ तो क्या भावनाओं से रहित हूँ ?
एक काली रात की जो बर्बरता देखी हैं मैंने वह आपको क्यों नहीं दिख रही ?
आप तो सरकारी बयान दे रही हैं ?
नारायण दत्त तिवारी के एक चारित्रिक दोष से उनका पूरा वजूद खंडित हो गया ?
तब तो नेहरू गांधी सब इसी कोटि में आ जायेगें ?
मैंने भी उनकी पैत्रिकता के मुद्दे पर उनकी भ्रत्सना करता हूँ ,मगर उनके संवैधानिक अधिकारों पर कैसे उंगली उठा सकता हूँ ?
और उनके बाबा के दरबार में जाने से क्या बाबा का चारित्रिक पतन हो जाएगा ?
चन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग !
और आपकी साईंस में इतनी ही रूचि है तो जाईये एक साईंस के ब्लॉग(टीम फार सायिन्तिफिक अवेयरनेस टू लोकल मासेज ) पर ही आज इस मुद्दे पर अनर्गल प्रलाप किया गया है ..
उसे पढ़िए और धन्य होईये ...
@सभी टिप्पणीकारों से विनम्र अनुरोध,
जवाब देंहटाएंआप सभी के सामने पूरी विनम्रता और आदर के साथ अनुरोध है
कि मेरी टिप्पणियाँ भले ही आपको तल्ख़ लगें लेकिन आपके व्यक्तिगत सम्मान के
प्रति मेरे मन में कहीं भी कोई विकार नहीं है ..
संवेदनशील मुद्दों पर वाणी तल्ख़ हो जाती है ...
कृपया इसे अन्यथा न लें !
सादर ,
अरविन्द
जो लोग संवेदनशील मुद्दों पर तलख हो जाते हैं वो मुद्दे की पीछे का सच कैसे देखेगे
जवाब देंहटाएंआप को टिप्पणी हटाने का अधिकार हैं जो आप के मुद्दे को "पिघलाती " dilute करती हैं
देश मे कानून व्यवस्था हें और ये सुप्रीम कोर्ट ने आज फिर साबित कर दिया है
अरविंद जी,
जवाब देंहटाएंएक तो पहले ही मैं उकता गया हूँ इस बाबा प्रकरण से, सालों ने दिमाग खराब कर दिया है हर चैनल पर यही सब दिखा दिखा कर। तिस पर तमाम पोस्टें ( मैंने भी पोस्ट लिख मारी, नतीजतन कल परसों का बाबाईज्म अब तक चालू है )
सच कहूँ तो बाबा-बूबी को देखते ही मेरा दिमाग सटक जाता है क्योंकि जितने भी देखा साले सब एक ही कैटेगरी के निकलते हैं। इधर मुंबई में एक स्वंयभू पता नहीं कया क्या लिखकर अपना थोबड़ा हर ओर चिपकाये मिलता है। अतीत जानने पर पता चला कि कोई सरकारी अधिकारी था रिशवत लेते पकड़ा गया तो साधू बन गया। वो केस खुलने की कौन कहे, उसके आगे साले सीएम उएम तक सिर नवां रहे हैं। हद है । अब ज्यादा गुणी जन होंगे तो इस प्रकरण को वाल्मिकी डाकू से जोड़ कर बतायेंगे । धन्य है हमारे शास्त्र भी। हर बात का तोड निकाले हुए हैं। कब कहां कैसे बात को संभालना है सब लिखित में।
जहां तक दिखने न दिखने की बात है जो मैं देख रहा हूँ संभवत उसे आप नहीं देख पा रहे या तो जो आप देख रहे हैं मैं उसे नहीं समझ पा रहा हूँ। दृष्टिभेद लगता है।
आप अपनी बात पर डटे रहिये मैं अपनी बात पर। ज्यादा टाईम खोटी करने का मेरा भी मन नहीं हो रहा अब।
वो अंग्रेज थे और आज तो हमारे सहोदर-हमारे भाई अंग्रेजों की भूमिका में दिखे बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन को समाप्त करने के लिए | डॉ. मिश्र जी की यह बात सौ फीसदी सही है कि 'यह मर्दानगी तब कहाँ छुप जाती है जब आतंकवादी देश में आ जाते हैं ?'
जवाब देंहटाएंभारत का मध्यम वर्ग जो कोई आन्दोलन का बिगुल बजा सकता है मगर वो तो पश्चिमी नक़ल में चूर जींस पहने माल घूम रहा है, सिनेमा देख रहा है, पिज्जा भंकोस रहा है और जल्दी-जल्दी अंग्रेजी बोलना सिख रहा है | आज के बच्चे गाँधी, भगत सिंह, बिस्मिल, झाँसी की रानी को नहीं जानते मगर प्रियंका चोपड़ा, शकीरा, शाहरुख़ खान, धोनी को बखूबी पहचानते हैं | अभिभावक इसे अवेयरनेस नाम दे रहे हैं | हंसी आती है मुझे इस अवेयरनेस पर | आज अगर गाँधी होते तो इस हताशा में डूबकर आत्महत्या कर लेते की जिस देश की आजादी लाखों की कुर्बानी देकर हासिल हुई थी वो देश आगे चलकर इस दौर से गुजरेगा |
भारत एक बेहद शर्मनाक दौर से गुजर रहा है मगर अफ़सोस कोई रास्ता भी नहीं दिख रहा | रामदेव जैसों को जुल्मी कुचल रहे हैं | भारत आज अपने देश के ही मजबूत लोगों से परेशान और निराश हो चला है |
मनीष मोहन गोरे
'आपकी साईंस में इतनी ही रूचि है तो जाईये एक साईंस के ब्लॉग(टीम फार सायिन्तिफिक अवेयरनेस टू लोकल मासेज ) पर ही आज इस मुद्दे पर अनर्गल प्रलाप किया गया है .. उसे पढ़िए और धन्य होईये ... '
जवाब देंहटाएंआदरणीय अरविंद जी, कृपया अपने शब्दों का ध्यान रखिए। दूसरों पर अनावश्यक टीका-टिप्पणी करके व्यर्थ का विवाद न पैदा करें।
`क्या जो लोग यह दमनात्मक कार्य कर रहे हैं वे ही किसी महापापी को बचाने पर तो उतारू नहीं हैं ? '
जवाब देंहटाएंऔर इस महापापी का नाम सुझाने का कोई ईनाम भी नहीं है :)
डॊ. अमर कुमार जी इतने से ही बेज़ार हो गई!!!!!! लडाई तो बड़ी लम्बी चलनी है। मै डॉ. अरविंद मिश्र जी की बात से सहमत हूं कि मुद्दे को देखें, न कि व्यक्ति को... डाकू भी वाल्मिकी हुआ है इस देश में :)
अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंसही कहा आपनें यह राष्ट्रीय शोक घटना ही है। लोकशाही के पतन का बिगुल है। कौन बचाएंगे लोकतंत्र को? भ्रष्टाचार यथास्थितिवादी?
भ्रष्टाचार के विरोध में खड़ा होनें का यह अभियान अगर इन 'बाबा' विरोधियों के कारण निस्तेज हुआ तो इतिहास इन सम्वेदनाहीन पूर्वाग्रंथियों को कभी माफ नहीं करेगा। क्योंकि फिर न तो कोई दूध का धूला या आरोपित न किया जा सकने योग्य कोई होगा और न कोई साहस ही करेगा। और न कभी भ्रष्टाचार दूर होने तक की कल्पना भी की जा सकेगी।
दूध पीओ न हंड़ी पर ललचा कर क्या करना है। काला धन आएगा और लगे कि बाबा अकेला खा जाएगा तो फिर खड़े हो जाना बाबा के खिलाफ।
लेकिन यह स्वार्थी पूर्वाग्रंथी भ्रष्टाचार के विरोध का श्रेय इस बाबा-सन्यासी को मिलना नहीं पचा पा रहे है।
ऐसी विचारधारा के स्वार्थ को आराम से चिन्हित किया जा सकता है।
और 'मौका' भी है सभी की कुत्सित मानसिकताएं समझने का!
काफी कुछ कहा जा चुका है.देरी हो गई आने में.
जवाब देंहटाएंऔर जो भी हो पर सोये हुए निहत्थे और बेक़सूर लोगों पर जोर अजमाइश कहीं से भी जायज़ नहीं ठहराई जा सकती.
अरविन्दजी,
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट सोचने पर मजबूर तो करती है परन्तु राष्ट्रीय शोक किसी घटना को कैसे मानलें जब सभी को यहाँ घटित "राजनीती" का आभास है| चाहे वह रामदेव जी की ओर से हो या सरकार के, उनकी और अन्नाजी की तुलना निरर्थक है| इसमे कोई दो राइ नहीं की उन्होंने देश को नयी और स्वस्थ दिशा की और अग्रसर किया परन्तु देश और देश वासियों ने भी उन्हें उससे कही ज़यादा सम्मान, अधिकार, अवसर, प्यार और पैसा दिया है| खैर, यहाँ बात सहमति और असहमति की है, जिसमें सबकी अलग अलग राय है... रही बात इस कथन की, कि "एक कायराना कार्य ..यह मर्दानगी तब कहाँ छुप जाती है जब आतंकवादी देश में आ जाते हैं ?" जो हुआ वह गलत तो है ही परन्तु, यह घटना देश का आतंरिक मामला है इसमें हमारी सेना को लांछित करना ठीक नहीं है| हम सभी जानते हैं कि यदि सेना और सीमा सुरक्षा बल "मर्दानगी" ना दिखायें तो भारत का क्या हाल होगा!!!
जितना आतंकवाद मीडिया या आम जनता के सामने आता है वह हो रही घटनाओं का १०% भी नहीं है, DRDO से जुडी हूँ इसीलिए इतने विश्वास से सेना का पक्ष ले रही हूँ| कठपुतली कौन है और डोर कौन खीच रहा है इस परसे पर्दा हटना ज़रूरी है|
आभार...
http://gandhiheritage.org/
जवाब देंहटाएंsee whom Congress is saving...
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जवाब देंहटाएं@डा० अमर कुमार...
जवाब देंहटाएंQ. क्या अमेरिका अपने देशवासियों के साथ ऐसा अमानवीय और मर्यादाहीन आचरण कर सकता है ?
A. नहीं.. क्योंकि वह ऎसा अमर्यादित आमरण ( ? ) अनशन होने ही न देता, उसके आँतरिक सुरक्षा व कठोर टैक्स नियम हैं, वह रामदेव सरीखों को लोकतँत्र के चरागाह में स्वच्छँद विचरने की नौबत ही न आने देता ।
please have a look, how many times people have gone for hunger strike in USA and their issues were solved peacefully....
http://www.bhopal.net/oldsite/worldwide-action/hungerstrikers.html
beating bush is very easy.... talk on facts....
@सतीश पंचम जी,
जवाब देंहटाएंआपकी तरह मैं भी बाबाओं के प्रति बहुत असहिष्णु ,प्रतिरोधी और प्रतिक्रियावादी हुआ करता था ...
यह भी सही है कि ९९ फीसदी बाबा ढोंगी ,व्यभिचारी हुआ करते हैं ...
मगर जब आप आचार्य रजनीश ,धीरेन्द्र ब्रह्मचारी , रविशंकर जी ,और कुछ सीमा तक साई बाबा और अब बाबा रामदेव की बात
करें तो इनमें कुछ ही नहीं बहुत कुछ अलग है -मानता हूँ जनता मूढ़ है ...मगर पशु पक्षी भी हित अनहित पहचानते हैं -ह्युमन ब्रेन की बात तो अलग है ही -क्या है ऐसे बाबाओं में जो लोगों को सर्वस्व न्योछावर कर देने की सीमा तक मोहित कर देते हैं ? यह है जीवन के प्रति आशा और विश्वास का संचार ,जीवन जीने का मकसद -जो हम आप जैसे खुद ही निरीह और अपने बाल बच्चों तक ही जीवन काट लेने वाले आत्मकेंद्रित लोग कभी किसी और को दे नहीं पाते -
भारतीय मनीषा में जिसकी रचना(आपके लिए संबोधन नहीं है रचना जी :) } बड़ी संश्लिष्ट है ,त्याग को बड़ी गरिमा मिली हुयी है ..
जरा उनकी तुलना में अपने को रखकर देखिये -पासंग नहीं है हम !
बाबा रामदेव ने अपने लिए जो कुछ किया वह अलग है मगर जन जन और जन गण के लिए वह शखस कर रहा है वह कम नहीं
यही आध्यात्म की ताकत है जहां हम विज्ञानी और विज्ञान गौण हो जाते हैं ......हमें तो इनसे ईर्ष्या उत्पन्न होती है कि जहाँ विज्ञान के नाम पर हम चाँद लोगों को इकठ्ठा नहीं कर पाते -इनकी भृकुटी विलास मात्र से लाखो की भीड़ आ जुटती है -कुछ तो है जिस दिन यह कुछ आप समझने लगेगें बाबाओं के प्रति आपकी कमतर जरुर होती जायेगी !
बाकी आप आराम करें ! बहुत लिख पढ़ नोल चुके आप ..मगर बाबा को देखिये चार दिन होने को जा रहा अहर्निश जमा हुआ है वाचस्पति के पद पर !
First let me tell you this is my debut on blogs.... so i am not very much aware of the norms of blogging....
जवाब देंहटाएंBut i would like to mention some points which i feel should be made here...
I am a student pursuing MBA in Bangalore... let me tell you that i also got myself registered here in bangalore for same Satyagrah (against corruption)...not just for some Beard BABA.... but for the issues which he is raising.... humans have always been cynical... and if someone does something extraordinary they criticize it in a subtle way.... which i am witnessing here too.... people here are not criticizing RAMDEV because he is loony BABA.... but why the hell that idea didnt pump in my brain.... i would like to request to you all people if you can't appreciate a social cause..... den please dont criticize it.... because at least Ramdev is doing some thing....
"HELPING HANDS ARE ALWAYS BETTER THAN PRAYING EYES..."
I cant stop myself mentioning Dushyant Kumar here.... its for everybody....
मत कहो आकाश में कोहरा घना है।
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।
सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से ।
क्या करोगे सूर्य का, क्या देखना है ।
इस सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी है ।
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।
पक्ष औ प्रतिपक्ष संसद में मुखर है ।
बात इतनी है कि कोई पुल बना है ।
रक्त वर्षों से नसों में खौलता है ।
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है ।
हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था।
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है ।
दोस्तो अब मंच पर सुविधा नहीं है ।
आजकल नैपथ्य में संभावना है ।
- दुष्यंत कुमार
thnaks...
जाकिर अली रजनीश ,
जवाब देंहटाएंतस्लीम का पूर्ण रूप है -Team for Scientific Awareness on Local Issues in Indian Masses (तस्लीम).Team for Scientific Awareness on Local Issues in Indian Masses (तस्लीम).
इसके अवधारण और यहाँ तक कि नामकरण तक मैंने किया ....यह विज्ञान को समत्पित ब्लॉग है ..इसकी अपनी सीमाएं हैं !
आपने साईंस ब्लागर्स और तस्लीम को भी अपने गैर वैज्ञानिक संदर्भों के लेखन से संदूषित करने लगे जबकि आपके अन्य ब्लॉग हैं जहाँ आप यह कर सकते थे-मुझे बहुत अफ़सोस हुआ कि जो बिरवा मैने लगाया वह किन हाथों में पड़ गया -
आज आपने तस्लीम पर रामदेव इश्यू को ले लिया है .....साईंस के ब्लॉग पर रामदेव प्रकरण ? इसलिए ही मैंने प्रलाप कहा और अब आप फिर अपने धमकी अभियान में लग गए ....लगे तहिये अपने अभियान में ...देखिये कहाँ तक पहुँचते हैं और विज्ञान के अभियान को कहाँ तक पहुंचाते हैं -आपने निराश किया है मुझे ...
Thanks the awakening for relevant links and also pointing towards the democratic scenario in USA for the kind perusal of respected Dr.Amar Kumar...Trust he would respond!
जवाब देंहटाएंमुझे याद है एक व्यक्ति अमेरिका के किसी शहर में बुश के पुतले पर जूता फेको अभियान का दिन भर मजमा लगाए रखा ..मगर क्या मजाल कि पुलिस उसे आँखें भी तरेर सके ....यह है असली लोकतांत्रिक परिवेश !
लब्बाजी चलती रहे....आस्ट्रेलिया से....एअरकंड़ीशण्ड़ कमरे से....२०लाख की टोयटा में ब्लैकबेरी पर ट्वीट करते हुए...सड़क पर निकल कर कौनौ भकुआ बोले......काले से गोरा ह्वै जाय। मुद्दवा भ्रष्टाचार बाटै कि बबना? अहीर आदमी नही न होता है? ललुआ चारा ड़्कार कै नेतवा और लोकतंत्र का सिस्टम बतावैगा और बाबा रामदेव यादव के कौनो नागरिक अधिकार नही न हैं
जवाब देंहटाएं। हिंयनै बैठल के बकचोदी करने के बजाए सड़क पर मजमा लगाय समझाव जाए तो.....हाथ मे न आ जवै तो मुछ मुड़ै दें। चिरकुट...निहतथे मर्द औरत पर रात के अंधेरे में लाठी चलवाने वालों का जो समर्थ करता है वो नाली का कीड़ा है। महाभारत शुरु हो चुकी है पाले तय करलो..कौरब सेना में रहना है कि पाडव सेना में। रामदेव यदुकूल भूष्ण सत्य और गरीब जनता की आवाज की लड़ाई लड़ रहा है।
@कविता जी ,
जवाब देंहटाएंबावजूद इसके कि कई बार आतंकी भारत की सीमाओं को लांघ कर देश में घुस आये मैं अपनी सेना को बहुत इज्जत देता हूँ मगर जब वे चारदीवारी को फांद कर घर के भीतर आ गए तब अपने सुशासन की हालत देखी है आपने -घंटों बीत जाते हैं इन्हें रणनीति बनाने में ....और महज दो घंटों में अपने ही देशवासियों को कुचलने का पराक्रम जग गया ?
इस बिंदु को जरा सोचे ..बाकी आपसे सहमत हूँ ! सेना ,सुप्रीम कोर्ट बस अब इंही से ही तो आशा दिखती है !
जारी बहस के बीच बस इतना कहना है कि बाबा का मुद्दा सही है। बाबा क्या है इससे मुझे कोई मतलब नहीं वैसे ही जैसे लगातार हो रहे घोटालों के बीच सब गलत है मनमोहन सिंह सही? सहयोगी दल के सदस्यमंत्री भ्रष्ट और जेल जानें योग्य किन्तु कांग्रेस में सब दूध के धुले और पाक-दामन? कलमाड़ी जिस दिन मुंह खोलेगा उस दिन कई निपट सकते हैं बशर्ते जबरन या रिश्वत देकर मुँह बंद न करा दिया जाए। डा० अरविंद जी हिपोक्रेट कैसे होते है इसका अच्छा उदाहरण आजकल इंटरनेट पर देखनें को मिल रहा है, आपके यहाँ एक और फिल्म दिखी। जारी रहे।
जवाब देंहटाएं@जाकिर अली रजनीश,
जवाब देंहटाएंचलिए आपको यह सदबुद्धि तो आ गयी कि कथित पोस्ट को आपने तस्लीम से हटा लिया और अब वहां लगा लिया है जहाँ के लिए यह डिजर्व करती है !
बहस बहुत लम्बी हो गयी है मेरे हिसाब से घटना निंदनीय है सार्थक मुद्दे को कोई भी उठा सकता है |
जवाब देंहटाएंअरविंद जी, अभी रंजना जी ने मेरे ब्लॉग पर बाबा रामदेव के दवाईयों के सकारात्मक असर, उनके द्वारा नियुक्त योगाचार्यों की कार्यप्रणाली के बारे में अपने अनुभव शेयर किये हैं। बाबा रामदेव की इस कार्यप्रणाली को जान अच्छा लगा, बाकि जो बातें नकारात्मक हैं सो रहें या जांय कोई गल्ल नईं। संभवत उन बातों को जान मेरी ओर से थोड़ी तल्खी कम हो ।
जवाब देंहटाएंकिंतु इतना तय है कि ज्यादातर बाबा-साबा ढकोसले वाले ही हैं। उनके प्रति मेरे मन में असहिष्णुता सदा के लिये जम गई है। अपनी विश्वसनियता उन लोगों ने खो दी है। अब यह उन पर निर्भर है कि वे आम जनता के बीच विश्वसनीयता साबित करते हैं या वैसे ही रंगे सियार बने घूमते रहेंगे।
फिलहाल सफर में हूं और मोबाईल से कमेंट कर रहा हूँ वरना रंजना जी के द्वारा दिये अंश को यहां कापी पेस्ट करता। हो सके तो वह कमेंट आप ही यहां कापी पेस्ट करिये। (अरे भई, अब आप कुछ काम भी करिये :)
.
जवाब देंहटाएं@ The awakening
Clarifying over your observation "please have a look, how many times people have gone for hunger strike in USA and their issues were solved peacefully....
http://www.bhopal.net/oldsite/worldwide-action/hungerstrikers.html
beating bush is very easy.... talk on facts.."
Dear Mr. Awakened,
thanks for awakening me too :-)
Though have comfortably removed the links from here but I could manage to recover them .
As link given by you ( http://www.bhopal.net/oldsite/worldwide-action/hungerstrikers.html..) reveals list of known Hunger Strikers from all over the world, I cold gather 6 fellas relevant to you claim, 4 out of them Kristin Rothballer, Prachi Jawalikar, Samir Raiyani and Rajesh Veeraragavan carried an One day Token Hunger Strike on a local issue at San Francisco,USA from 22 July 2002 to 22 July 2002 . The other one Dana Clark adopted the same tool on her university issue at Berkeley, CA,USA from 26 July 2002 to 26 July 2002, another one Nadia Khastagir was on social discremination issue at San Francisco ,USA she too observed it for one day.. from 26 July 2002 to 26 July 2002 . Only 3 americans could manage indefinite hunger strike.. they were forcibly terminated of their strike on subsequent days.. I hope that you are aware of the fact that federal law does not allow a fast un-to death !
I cited the details because the comparative model put by you fails justify its relevance in RamDev's case ... do you see any .. my friend ? I have never came across any Baba, who waves a sword from stage ( 7 p.m.), challenging devotees of their pledge to be with him... an Lo.. the Baba himself elopes first at hour crisis,
leaving his followers at mercy of fate, in a cowardice manner. He sang 'Sarfaroshi ki tammana ... and wore a Salwar to save himself at need of hour ! I cannot digest such ridicule as his Divine Leela ! A sanyasi weeping for his life in press coference sums up the story.
A satyagrahi making secret deals in advance raised many a eyebrows for being it a non-political movement... If he was fighting on behalf of people then a fair morality demands that every such effort should have been made public and saught their consensses .. the poitical hands within it came to daylight when they supplemeted this drama with a SATTAGRAH today, Sushma could not hide her Joy over the turn of events and danced even .
What was the need to start a parellel compaign when an by Anna Hazare was under way anad they have not surrendered yet . Perhaps the charisma of mob and their suppot at issus lured him to hijack the anti-corruptin movement . So is our Baba !
I too admire Baba for his ability to manage the mass-psychology to his benefit and taking a ride on them ( including intelligentia at large )
आदरणीय अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढी और आपके प्रतिउत्तरों ने मुझे आपकी तार्किक क्षमता का कायल कर दिया.
बेहद संतुलित और तार्किक प्रति उत्तर दे रहे हैं सभी को...
कुछ लोगों को परेशानी है कि एक पुरुष ने सबसे समीपस्थ प्राण (स्व-प्राण) की रक्षा नारी के वस्त्र पहनकर क्यों कर ली? नारियों ने एक पुरुष की, जो दल का प्रमुख था कोई सशस्त्र सेनापति नहीं था, रक्षा क्यों की?
कुछ को परेशानी है कि नारी तो केवल सेक्स आदि की विषय-वस्तु है उसको राष्ट्र-धर्म में क्यों घसीटा गया? जिनकी पोस्टों में केवल इसी के इर्द-गिर्द मटेरियल रहता है.. वे क्या जानें राष्ट्र-धर्म को, वे अपना परिवार धर्म ही निभा लें पर्याप्त होगा.
लोक तंत्र में जो हो जाए थोड़ा है :
जवाब देंहटाएंबाबा को पहना दै कल जिसने सलवार ,
अब तो बनने से रही फिर उसकी सरकार ,
रोज़ रोज़ पीटने लगे बच्चे और लाचार ,
है कैसा ये लोकमत कैसी है सरकार ।
और जोर से बोल लो उनकी जय जयकार ,
सरे आम पीटने लगे मोची और लुहार ,
संसद में होने लगा ये कैसा व्यापार ,
आंधी में उड़ने लगे नोटों के अम्बार ,
संसद बनके रह गई कुर्सी का हथियार ,
कुर्सी के पाए बने मोटे गैंडे चार ।
भाई साहब कोंग्रेस के मुंह में आखिरी निवाला ,बाबा गले की हड्डी बनने वाला है ।
बधाई इस आक्रोश के लिए जो हम सबका सांझा है .
अमर कुमार जी बता रहे हैं कि अनशन करके जान देना संवैधानिक मर्यादा के विरुद्ध और गैर कानूनी है? मजा आ गया! भूख से किसान, गरीब सड़क पर तड़्प के जान देते रहे यह संवैधानिक है? बेनामी भाई नें अभद्र ढंग से ही सही लेकिन खरी बात कही है-जनता की अदालत में ऎसे तर्क देनें पर सच सामनें आ जाएगा। ५ प्रतिशत लोगों नें देश की सम्पति, संसाधन, सत्ता और शासन पर अवैध कब्जा करके ज्ञान ऎसे ही समझाते रहे तो यह ध्यान रहे की ऎसा अन्याय ज्यादा दिन नहीं चलेगा। मनमोहन सिंह के वित्तमंत्री काल से आज तक जितनें घपले हुए हैं वह अपनें आप में रिकार्ड़ है और उस पर भी वह जब कहते है कि भ्रष्टाचार मिटानें के लिए जादू की छड़ी नही है? अर्थशास्त्री और स्टेट्समैन यही अंतर होता है।
जवाब देंहटाएंडा० अमर कुमार...
जवाब देंहटाएंnice to see people like you read too...:-)
i am happy that at least you agreed that there are hunger strikes in US too...
that shows a part of you that how hypocrite are you... first you were not having any consent and now you say strike were there but for one day... Mr.... strike was there that is important not for how long...
What was the need to start a parellel compaign when an by Anna Hazare was under way anad they have not surrendered yet . Perhaps the charisma of mob and their suppot at issus lured him to hijack the anti-corruptin movement . So is our Baba !
well i guess you should see in details the demands of Mr. Anna Hazare and Ramdev.... if you want i can send you PPT which i presented here to awake everyone in my college.... and i will feel good if i am able to awake you too....coz i find that you are too sleepy.... and i am sorry to say some people like you discuss the social issues only in there AC rooms... because they dont bother....
there is a wonderful saying in english...."he who knows not and knows he knows knows not is simple.....awake him..."
but with your case... its a bit different....
"he who knows not and knows not he knows not... is dangerous shun him ...."
i dont want to extend this discussion more coz i am sick of cynical people... who love to bolster upon there own achievement...
i am pretty much sure you are a congress supporter.... and u will die to prove that your MADAM ji is right...
sorry if was harsh....
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
जब से पीजा पाश्ता बने मूल आहार ,
जवाब देंहटाएंइटली से अब चल रहा सारा कारोबार ।
आदरणीय अरविन्द जी !भारत की पीड़ा को व्यक्त किया है आपने राष्ट्री शोक और "शाक "की मार्फ़त .बाबा रामदेव एक व्यक्ति नहीं एक फिनोमिना का नाम है .एक जन समुन्दर का नाम है जिसे आलमी मान्यता प्राप्त है .गणतंत्री गैंडों की अब खैर नहीं है .ज़वाब मुझे और आपको देना है अब कोंग्रेस के इस दुस्साहस का .आप भी अरविन्द भाई इस मुहीम में अकेले नहीं है .इस सारे व्रतांत पर इस सारे ब्लॉग प्रलाप (सम्वाद तो ऐसा होता नहीं है जैसा इसे कुछ लोगों ने बना दिया है ,विमर्श भी नहीं ,विमर्श की मर्यादाएं भी होतीं हैं ,रचनात्मक भी होता है विमर्श )पर हम राष्ट्र की संवेदनाओं के साथ हैं उन लोगों के साथ हैं जिन पर तब वार किया गया जब वे निद्रा -लीन थे .इति.
शून्य विचारजी!जान तो अपनी वीर सावरकर जी ने भी अंग्रेजों से माफ़ी मांग के बचाई थी ताकि वह आजादी के संघर्ष की आंच को आगे भी सुलगाये रह सकें .कुछ शून्य विचार इसे भी कायरता कहतें हैं .चिंता मत कीजिये बाबा जल्दी ही कांग्रेस के गले कि हड्डी बनने वाले हैं मैं और आप दोनों यहीं हैं ।
जवाब देंहटाएंगज़ब है सच को सच कहते नहीं है /,हमारे हौसले पोले हुए हैं /,हमारा कद सिमट कर घट गया है /,हमारे पैर हम झोले हुए हैं .
वैसे मिसिर जी, एक बात समझ नहीं आई ई सुषमा बहिन काहे नाच रही हैं। बहुत खुस लग रही है। जरा इ बिन्दू पर भी परकाश डालिए न।
जवाब देंहटाएं@प्रतुल जी ,शुक्रिया
जवाब देंहटाएं@सुमंत जी ,मनमोहन जी की विद्वता और ईमानदारी सब राजनीति के भेंट
चढ़ गयी लगती है -क्या उन्हें भी ब्लैक मेल तो नहीं किया जा रहा ?
@वीरू भाई ,
आभारी हूँ कि आप मुद्दे पर साथ हैं
The Mr. Awakening,
जवाब देंहटाएंRhetoric apart, your concerns seem genuine.Your anger is also understandable.But the way you lambasted the arguments put forth by Dr.Amar Kumar a knowledgeable and senior blogger like Dr.Amar Kumar needs an appraisal.
It should have been polite and issue oriented not the person.
Anyways thanks a lot for coming to support the motion!
सुज्ञ जी ,
जवाब देंहटाएं"भ्रष्टाचार के विरोध में खड़ा होनें का यह अभियान अगर इन 'बाबा' विरोधियों के कारण निस्तेज हुआ तो इतिहास इन सम्वेदनाहीन पूर्वाग्रंथियों को कभी माफ नहीं करेगा। "
बिलकुल और यही करने के प्रयास हो रहे हैं !
आदरणीय अरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंक्षमाभाव के साथ 'नारी' ब्लॉग पर कल दी गई टिप्पणी आपकी पोस्ट पर चस्पा कर रहा हूँ, वहाँ पर प्रकाशित नहीं की गई. यदि अनुपयुक्त लगे तो हटा दीजिएगा.
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http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/06/blog-post_06.html
रचना जी,
अरे, आप भी आजादी का इस्तेमाल करना जानते हैं....
एक समय अदालत में सत्य की परिभाषा आर्यसमाजी हुआ करता था.
यदि अदालत को प्रमाण चाहिए होता था तो वे किसी आर्यसमाजी से तथ्य जानते थे....
जिसकी 'आर्यसमाज' ने परवरिश की हो वह मिथ्या आचरण कभी नहीं करता.. राष्ट्र धर्म उसके लिये प्राथमिक होता है.
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मेरे कुछ सवालों के जवाब दीजिये ...
— मैंने सभा की. स्वीकृति भी ली ५०० व्यक्तियों की. मीडिया आ धमका. मीडिया के लाइव प्रसारण से खिंचकर संख्या ५०१ हो गई.. क्या मैं कानूनी रूप से दोषी होउंगा? ऐसे में मेरे दोष की सजा पूरी सभा को दी जानी चाहिए?
— क्या मेरी सभा में ५०० व्यक्तियों में मीडिया के 100 लोगों की भी गणना होनी चाहिए?
— तभी बिना बुलाये ५००० पुलिसकर्मी आ गये... उन्होंने कहा यहाँ इतना स्पेस नहीं कि ५०० से अधिक लोग आ सकें... इसलिये सभा कानूनन जुर्म है...
आप ये बतायें कि जहाँ ५०० से अधिक लोग नहीं आ सकते वहाँ ५००० पुलिसकर्मी कैसे फिट हो गये?
... आप यदि तीनों सवालों के उत्तर देंगे तो फिर तीन सवाल करूँगा. आप जन जागृति का संकल्प जो लिये हैं. मैं आपका पूरा-पूरा साथ दूँगा. सोनिया जी की तरफ से आपको मेडल दिलवाने की भी सिफारिश करूँगा.
रंजना जी की कही एक-एक बात जानकार सरकार के प्रति घृणा में इजाफा हुआ.
2nd comment:
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एक बात और...
'जन हित में जारी' .... जितनी भी सूचनायें अब तक पढी थीं ... सरकार द्वारा प्रायोजित थीं... क्या आपकी भी...
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........... अब बताइये अरविन्द जी, क्या 'नारी' ब्लॉग एक स्वस्थ चर्चा या विमर्श करने का हिमायती है?
@अनाम ,
जवाब देंहटाएंबिलकुल सहमत ,इन बेहयों बेशर्मों को शर्म फिर भी नहीं आती ..
शोक के अवसर पर नाच गाना -बेशर्मी की हद है ,स्तब्ध हूँ !
इन बेहयों और भडुओं से कुछ नहीं हो पाया तभी जनता को ऐसे दिन देखने को अभिशप्त होना पडा है
एक नयी शक्ति के उदय होने के ग्रह नक्षत्र बनते दीख रहे हैं !
@प्रतुल जी स्वागत है !मेरी भी टिप्पणी वहां प्रकाशित नहीं हुयी अब तक !
जवाब देंहटाएंमुझे भी इंतज़ार है ..
@आदरणीय महानुभावों,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आप सभी ने इस चर्चा में पूरी सक्रियता से भाग लिया है -अच्छा लागा ,आभारी हूँ !
कुछ सवाल और आये हैं ..
बाबा का नारी भेष ,
कहब वेदमत लोकमत नृप नय निगम निचोर....सुनिए ..
अपनी पुराकथाओं जो मनुष्य की चेतना की चिरन्तन अभिव्यक्तियाँ हैं से उद्धरण -
पांडवों ने भी खुद को बचाने के लिए नारी रूप धारण किया था ..
बाबा ने क्या असंगत किया ?
देश हित और दूरगामी उद्येश्यों के लिए यह कदम बुद्धिमत्ता पूर्ण था !
@रचना जी ,
जवाब देंहटाएंनारी ब्लॉग पर मैंने आपसे सवाल पूछा था कि नारी की गरिमा को तर तार करने की कार्यवाही पर आपकी आँखें क्यों मुदी हैं अब जबकि आप नारी विषयों की ब्लॉगजगत में लम्बरदार नंबर वन हैं :( यह टिप्पणी अभी भी प्रकाशित नहीं हुई है !
क्या इस बार आप इक्सपोज नहीं हो गयी हैं ? बस नारी नामका ब्लॉग बनाकर चंद नारियों का इमोशनल ब्लैकमेल करके केवल पुरुषों के खिलाफ हल्ला बोल ही आपका एकमात्र अजेंडा रह गया है ?
महिलाओं के विरुद्ध जो सामूहिक ज्यादती हुई जिससे सारा देश स्तब्ध और संतप्त रह गया है आपको महसूस नहीं हो रहा है ?
आपके सारे थोथे विमर्शों की पोल खोलने और मात्र नारी के नाम पर घडियाली आंसू बहते रहने की नीयत क्या एक्सपोज नहीं हो गयी है ? माफ़ कीजियेगा हम ब्लॉग जगत में ठाकुर सुहाती न तो करने आये हैं और न सुनने आये हैं ..
एक दो ब्लॉगर और हैं जो इस समय भी रूहानी /रूमानी शेरो शायरी कर रहे हैं एक से तो आपका गहन भातृत्व रिश्ता भी है ..वे भी एक्सपोज्ड हो रहे हैं ......
ऐसे अवसरों पर ही लोगों के असली और वीभत्स चेहरे दीख जाते हैं! अपने स्टैंड को स्पष्ट कीजिये रचना जी ! आप इस बार एक गहरे संकट -आवर्त में आ गयी हैं ! यद्यपि आपके लिए मेरी शुभकामनायें हैं कि इससे उबर कर सामने आयें .....आपकी मंशा आपकी इन्टीग्रिटी सब दांव पर है मैंम ?? क्या नहीं ????
बाबा से इसलिए सहमत हूँ क्योंकि उन्होंने अन्य संतों (!)की तरह मात्र लफ्फाजी पर जोर न देकर आम जनों को उनके हाथ - पैरों को हिलाना तो सिखाया. जिस तरह से उनके समर्थकों के विरुद्ध कारर्वाई की गई, अनुचित है. मगर हर संवेदनशील विषय को हाईजैक करने में सिद्धहस्त दल द्वारा इतने सुनियोजित ढंग से इस मुद्दे पर भी मुखरता इन मुद्दों को भी राजनीति में खो जाने को ही इंगित कर रही है. और अभियान की 5 जून से निकटता स्थापित करना भी वेल स्क्रिप्टेड होने का अहसास तो देता ही है. होना तो यह चाहिए था कि अराजनीतिक खेमेबंदी के साथ बाबा अपने समर्थकों के साथ संसद का घेराव करते और दोषियों का इस्तीफा मांगते. मगर शायद बाबा भी इसे लंबे समय तक खींचना चाहते हैं (बाबा की माया ! आम जन भला कहाँ समझ पाएंगे). खैर राजनितिक निहितार्थ जो हों, मगर न चाहते हुए भी यह प्रश्न उठता ही है कि ऐसी कारर्वाई किसी गैर हिंदू जमात के साथ भी संभव थी?
जवाब देंहटाएंऔर एक प्रश्न यह भी कि 'साध्य और साधन' की सुचिता भी कोई चीज होती है, आखिर अनशन से गुजरने और वार्ता की मेज पर लाकर रोज आँखें तरेरने वाले अन्ना हजारे के साथ तो सरकार ऐसा (चाहती हो तब भी) कर नहीं पा रही.
भाई बेनामी जी, रात टी. वी में देखा था। सपनें में रह्स्य खुला कि वह सब राजघाट पर जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति के आह्वान की बरसी पर खुशी मना रहे थे कि अब दूसरी क्रांति में शहीद होंने का पर्व फिर आया है।
जवाब देंहटाएं@अंततः गिरिजेश,
जवाब देंहटाएंयह गिरिजेश जी की टिप्पणी उपसंहार है अब !सोने जा रहा हूँ !
"बहस तो हो ही रही है।
मेरे मन में एक बात आई है - अगर बाबा की जगह कोई साध्वी होती और पुरुष वेश में पलायन करते पकड़ी गई होती तो क्या उसके पुरुष वेश पर इतना ही बवाला मचता?
रात में सोये हुये हजारो निहथ्थे लोगों पर प्रशिक्षित सरकारी तंत्र द्वारा हमला हो तो उस समय एक किंकर्तव्यविमूढ़ नेतृत्त्व द्वारा सही(?) निर्णय न ले पाने, डर जाने और आगे आ कर 'पौरुष' दिखा कर पिटने या गिरफ्तारी दे कर नायकत्त्व में इजाफा करने का मौका गँवा देने की बातें तो समझ में आती हैं लेकिन ड्राइंग रूम के कम्फर्ट से टिपियाते और लिखते स्त्री स्वतंत्रता और समानता के समर्थक लोग अगर स्त्री वेश धारण करने को पौरुषहीनता और कायरता का लक्षण मानते हैं तो मैं यही कहूँगा कि कहीं उनके मन में स्त्री के प्रति तिरस्कार के भाव जीवित हैं।
जिस सरकार से आतंकवादी हमलों के समय फोर्स जुटाये नहीं जुटती उसने इतनी शीघ्र 10000 पुलिस फोर्स का जुगाड़ कर लिया! मरहब्बा!! तेल की धार देखो जनों!
धनदोहन सिंग का बयान याद करो - जो हुआ वह दुखद है लेकिन और कोई उपाय नहीं था। इसके पास कभी कोई उपाय नहीं रहता। बस सोना गिनी जो बताती है वही होता है। इस ईमानदार(?) बुढ़ऊ को जाने क्या पड़ी है कि इतने घोटालों के बावजूद इस्तीफा नहीं दिया? सब एक थैली के चट्टे बट्टे हैं। इस्तीफा दे देता तो दूसरा परबश मुख जी जी भी कुछ दिन कुर्सी, ऊँड़िस और अंत:पुर से निकटता का सुख ले लेता। हाय रे नसीबा!"
बहस तो हो ही रही है।
all the comments have been published
जवाब देंहटाएंi dont blog whole night !!!!
अरविन्द मिश्र
जवाब देंहटाएंज़रा ये लिंक देखिये
http://ajaykumarjha.com/blog/%e0%a4%9c%e0%a5%80-%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%82-%e0%a4%90%e0%a4%b8%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ab%e0%a4%bc-%e0%a4%b9%e0%a4%bf%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%a6%e0%a5%80-%e0%a4%ac/comment-page-1/#comment-2563
और उसके बाद के कमेन्ट पढिये
सरकार को पानी पी पी कर जो कोस रहे हैं वो खुद ही इस सरकार को लाये हैं
कोसना हैं तो खुद अपने को क्यूँ नहीं कोसते हैं
और एक बात बता दूँ पर्सनल संबंधो पर आक्षेप करने से पहले सोच लिया करे क्युकी किसी के सम्बन्ध किसी ब्लोगिंग दायरे में नहीं आते . और आप की तरह सब नहीं होते की मित्र बना कर कमेन्ट करवाए दूसरो के विरोध में .
बहस में तल्खिया होगी सही हैं पर कोई भी व्यक्तिगत टीका टिपण्णी शोभा नहीं देती हैं जैसी आप ने की हैं .
आप जिनकी ठाकुर सुहाती करते हैं और जिन पर पोस्ट लिखते हैं उनको ही समय असमय पीछे से पैर मारते हैं जैसे अभी आप ने किया हैं "एक से तो आपका गहन भातृत्व रिश्ता भी है ..वे भी एक्सपोज्ड हो रहे हैं ......" उनकी तारीफ़ में कसीदे आप पढ़ चुके हैं http://mishraarvind.blogspot.com/2009/05/blog-post_12.html
out of 33 people whom you have gone ahead and put on pedestal at least 3 you have already dumped and this is the 4th one
common Grow UP
राष्ट्रीय शोक अथवा धृतराष्ट्रीय शोक?
जवाब देंहटाएंबाबा का विरोध करने वालो की बुद्धि पर तरस आता है.
जवाब देंहटाएंलगता है जो एक लाख लोग भरी गर्मी मे वहाँ पहुचे थे और मैदान के बाहर एक किलोमीटर तक जो लंबी लाइन लगी थी.
जिसमे सब धर्मो के लोग थे.
वो सब मूर्ख थे.
और जो कम्पयूटर पे बैठ कर ची ची कर रहे है वो ज्यादा समझदार है.
Rachna ji ,
जवाब देंहटाएंOnly dead people and fools do not change their opinion!
You have an uncanny ability to observe.Gr8!
Thanks,
Dr Mishra
जवाब देंहटाएंSome people are impulsive , they jump to write a post and then after few months they write against their own view .
In my opinion either
they are fickle minded
or
they are not good at judgeing people
or
they dont have the analytical ability
or
they are pure and simple self centerd egoistic people who use others for their benefit
you can make your own choice and in my opinion in hindi blog it not changing views rather its changing colors to suit the time frame
कुछ लोग अन्ना अन्ना चिल्ला रहे है.
जवाब देंहटाएंउन्हे पता नही है कि अन्ना को महाराष्ट्र से बाहर निकाल कर उत्तर भारत मे बाबा रामदेव लाये.
पिछले दो साल से बाबा ने पूरे देश मे घूम घूम कर अपनी रैलियो और योग शिविर मे अन्ना एण्ड पार्टी को ले गये और जनता मे उनकी पहचान करवायी.
और फिर कांग्रेस ने अपने एजेँट अग्निवेश के माध्यम से अन्ना और रामदेव मे फूट डलवा दी.
अग्निवेश एण्ड पार्टी जो त्रतंभरा के मंच पर बैठने से बड़ा बिदक रहा थी .
27 फरवरी की रामलीला मैदान मे रामदेव की रैली मे मंच पर बड़े आराम से त्रतंभरा के साथ अग्निवेश अन्ना केजरीवाल सब बैठे थे.
क्यो कि तब इन लोगो को बाबा के सहारे अपनी पहचान बनानी थी.
ब्लाग जगत मे बदनाम अनवर जमाल की गंदी सोच देखिये.
जवाब देंहटाएंये कह रहे है कि
रामदेव पर एक औरत को नंगा करने का पाप भी चड़ा है. क्यो कि एक औरत ने अपने कपड़े उतार कर बाबा को दिये.
कितनी गंदी सोच है इस जाहिल आदमी की.
बाबा रामदेव को कपड़े देने वाली डा. सुमन आचार्य ने न्यूज चैनलो को बताया कि उन्होने अपने बैग से निकाल कर कपड़े दिये.
लेकिन इस जाहिल व्यक्ति अनवर को कौन समझाये.
@अनाम,
जवाब देंहटाएंबीच में एक शब्द इन्सर्ट कर बनाईये धृतराष्ट्रीय कृत शोक! :)
Rachna ji,
जवाब देंहटाएंWhat I believe WE ARE DIGRESSING FROM THE ISSUE IN POINT.....
lets don't do that !
waah you yourself gave personal remarks
जवाब देंहटाएंand tried to divert the issue
not only that you brought naari blog in for no reason
besides that you raised the issue of sameer lals intregrity
what has all this got to do with the issue of ram dev , ramleela maidan etc
the moment you do it its justified and not diverting the issue but the moment i show you the mirror the issue is being diverted
my god height of hypocracy
the moment you say something its bloging , the moment others do its blackmailing
my god how disgraceful
"what has all this got to do with the issue of ram dev , ramleela maidan etc"
जवाब देंहटाएंIts so subtle that its beyond your comprehension!Needs some extra neopalium to appreciate!
some PJS dont need appreciation
जवाब देंहटाएंरामलीला मैदान मे पुलिस की बर्बरता का आखो देखा हाल पढ़िये इस ब्लाग पर
जवाब देंहटाएंPNDIWASGAUR.BLOGSPOT.COM
@शुक्रिया रोहित!
जवाब देंहटाएंमैं सतीश पंचम से पूरी तरह सहमत हूँ,
जवाब देंहटाएं"माफ़ किजिए मैं इससे सहमत नहीं हूँ। राष्ट्रीय शोक की बजाय 'राष्ट्रीय मौका' कहना ज्यादा फबेगा क्योंकि यह ऐसा मौका है जो सबके लिये है।
सरकार के लिये अपने राजनीतिक विरोधियों की मंशा पर रातों-रात तुषारापात कर दिखाये जाने का मौका, विरोधियों के लिये सरकार को घेरने का मौका, हाशिये पर धकेले गये लोगों के लिये पुन: अपने बयानों, फ्लैक्स बैनरों के जरिये लाइमलाईट में आने का मौका, मीडिया के लिये कुछ दिन और माल मसाले का मौका, फेसबुकियो-ब्लॉगरों के लिये की बोर्ड खटखटाने का मौका और साथ ही यदि जनता में कुछ थोड़ी बहुत हिम्मत बची हो तो उसे सरकार को दिखाने का मौका।
कुल मिलाकर सब के लिये मौका ही मौका है।
यदि सोते हुए लोगों पर लाठी डंडे बरसाना ही राष्ट्रीय शोक की श्रेणी में आता है तो यहां मुंबई में रोज ही राष्ट्रीय शोक घोषित हो क्योंकि यहां देश भर से आए, विभिन्न प्रांतों के लोग जो कि तमाम रोजी-रोटी कमाने की चाहत लिये आते हैं, अक्सर रात में फुटपाथ पर पुलिसिया डंडों या टुच्चे गुंड़ों के शिकार बनते हैं।"
सादर विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
देख लो भ्रष्टाचार का मुद्दा भी स्वार्थलोलुपों को अब आन्दोलित नहीं करता। सभी अपने अपने तुच्छ स्वार्थों में लिप्त है। और मुद्दे से हटकर और उसे उलझानें में गर्क है। सम्वेदनाशून्य ये लोग अपने लिए और ओरों के लिए भी अभिशाप स्थायी करने का दुष्कर्म कर रहे है।
जवाब देंहटाएंमैं भी बाबा का कोई भक्त नहीं हूँ पर हाँ ठीक से सन्यास न पाल रहे बाबाओं का भी अपमान नहीं करता। उनमें भी जो अगर मात्र लफ्फाजी से भी जीवन-मूल्यों की स्थापना की बात करता है, उनका मैं आदर करता हूँ।
रामलीला मैदान में बाबा और उनके सारे अनुयायी निश्चित ही प्रशासन से अधिक गम्भीर और विवेकवान थे। अन्यथा पुलिस नें जिस तरह कारवाही की भगदड मचने के पर्याप्त आधार बना दिए थे। यदि भगदड़ मचती तो बहुत बड़ी दुर्घटना हो जाती। जो वहां की जनता की शान्ति और संयम से ही सम्भव हुआ।
जो लोग बाबा के स्त्री-वस्त्र पहनने, छुपने अथवा वहाँ से जाने को कायरता दर्शाकर बवाल कर रहे है। उनकी दुर्भावना स्पष्ठ परिलक्षित हो रही है। वे उनकी मृत्यु के अभिलाषी थे व है। वे समझदार थे और कुटिल लोगों के फैलाए जाल में तो कम से कम बलिदान नहीं हो सकते थे।
संकट काल में ही सज्जनों की पहचान होती है। यहां ब्लॉग जगत में कई नामी गिरामी एक्सपोज्ड हो रहे हैं। चाहते क्या है? तर्क क्या है? क्या कह रहे है? और क्यों कह रहे है।
सही कहा आपनें- ऐसे में लोगों के असली और वीभत्स चेहरे दीख जाते हैं!
विवेक जी,
जवाब देंहटाएं"यदि सोते हुए लोगों पर लाठी डंडे बरसाना ही राष्ट्रीय शोक की श्रेणी में आता है तो यहां मुंबई में रोज ही राष्ट्रीय शोक घोषित हो क्योंकि यहां देश भर से आए, विभिन्न प्रांतों के लोग जो कि तमाम रोजी-रोटी कमाने की चाहत लिये आते हैं, अक्सर रात में फुटपाथ पर पुलिसिया डंडों या टुच्चे गुंड़ों के शिकार बनते हैं।"
!!! जनहित कारण सत्याग्रही की तुलना पेट-स्वार्थी से करना तो अनुचित है। यहां मुंबई में विभिन्न प्रांतों के गर्दूलों पर भी रात में नशे में सोते में डंडे पडते है। एक दृष्टिकोण से वह सरकारी शोक ही है। उन्हे सरकारें साधारण जीवन आवश्यक साधन जो उपलब्ध नहीं करवाती।
सत्याग्रह निश्चित ही हमारे विरोध का राष्ट्रीय प्रतीक है। और सत्याग्रह की मौत राष्ट्रीय शोक। और उस पर यह चिंतन है लोकतंत्र की मौत के पहले के मरसिया।
वे दुर्भागी और प्रारब्ध क्षीण है जिन्हें सदैव पाखंडी बाबाओं का ही योग होता है। ऐसे हत्भागियों को सच्चे संत का समागम दुर्लभ होता है।
दुर्भागी, हत्भागी, प्रारब्ध क्षीण.....
जवाब देंहटाएंHmm.....Good
एक संत तो यहीं दिख गये, और दिखें भी क्यों न आखिर मौका जो है, राष्ट्रीय मौका :)
कोई शोक मनाते हुए की बोर्ड खटखटा रहा है, किसी ने कल से बीड़ी सिगरेट तो किसी ने दाना पानी छोड़ बस नेट के जरिये ही धुनी रमाई है, कोई किसी को कांग्रेसी घोषित कर रहा है तो कोई किसी को संघी बता रहा है।
और बताये भी क्यों न...... मौका ही ऐसा है। राष्ट्रीय मौका।
जय हो :)
कहीं पढा था ( शायद फुरसतिया पर ही) कि जब एक के बाद एक फिजूल खुरपेंच होने लगे तो समझ जाईये कि चेन रियेक्शन शुरू हो गया है और बहस अब नाम की बहस रह गई है।
फिलहाल इतना ही कहूंगा कि खुद रामदेव भ्रमित लग रहे हैं इस उहापोह में, खुद उनका नजरिया भी अगले पल क्या कह दे कुछ तय नहीं, कभी प्रधानमंत्री से खुश हो लेते हैं तो कभी नाराज। वही उलझन।
सुलझे हुए तो केवल खटरागी लग रहे हैं :)
पञ्चम जी,
जवाब देंहटाएं:)
अधिक खटराग जो न करनी है।
अरविंद जी, वास्तव में जैसा कि सुज्ञजी नें कहा और और चूंकि सतीश पंचम जी को राष्ट्रीय शोक जैसे शीर्षक में पंचम स्वर मध्यम लग रहा है अत: उस शीर्षक का नाम अविलम्ब बदल कर राष्ट्रीय शर्म घोषित कर दीजिये।
जवाब देंहटाएं@सुमंत जी,
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी मेरे मनोभावों को मुझसे भी कहीं बेहतर तरीके से व्यक्त किया है ..
लोकतंत्र का गला घोटा गया ,निरीह निशस्त्र अपने ही देशवासियों पर नर पशुओं को को हांक दिया गया ..
देश की राजधानी में इतनी बड़ी दबंगई और अमानवीय कृत्य हुआ ...यह सब भी अगर शोक की श्रेणी में नहीं
है तो फिर श्याद हमारे सोच का दायरा ही बहुत सीमित है ....अभी तो सतीश जी के प्रेरणा स्रोत फ़ुरसतिया गुरु लापता हैं..
वे आ जायेगें तो इस पर भी एक व्यंग आलेख पक्का.....
हम कितनी संकीर्ण और असंवेदित होते जा रहे हैं :(
चलेगा...सुकुल जी का भी चलेगा...जब पूरा सत्तासंस्थान आम जन पर मुँह दबा के या मुँह फाड़ के व्यग्य कर रहा है....उसकी बेबसी पर तो सुकुल जी भी पीछे न रहें......मुस्कराने से हँसने और हँसते-हँसते रोते हुए तो लोगों को आप नें भी देखा होगा।
जवाब देंहटाएं@ सतीश जी के प्रेरणा स्त्रोत फुरसतिया गुरू....
जवाब देंहटाएंअरविंद जी, ये बीमारी ब्लॉगिंग में बड़ी मात्रा में है कि जहां तहां किसी को गुरू औ सखा औ चेला औ बका बनाया बताया जाता है। और यहीं हिंदी ब्लॉगिंग में ज्यादा दिखता है।
खैर, बीमारी तो बीमारी है। लेकिन यहां कई गुरूओं को चेलों के चलते चींचियाते भी देखा है। समझदारी इसी में होती है कि हर कोई अपने स्वतंत्र अस्तित्व से ब्लॉगिंग करे न कि ब्लॉगिंग में बड़े भाई, बड़का गुरू फलाना ढेकाना बता बना कर टाईम पास करे। जिन्हें यह शौक हो उन्हें उनका शौक मुबारक लेकिन आईंदा कभी इस तरह से कभी सतीश पंचम को किसी से रिलेट करने की कोशिश न करिये। सतीश पंचम का अपना अस्तित्व है, अपना वैचारिक स्तर है ( चाहे अच्छा या बुरा, जो भी है) ।
आदरणीय अरविन्द मिश्र जी...सच में यह एक निंदनीय कृत्य है...अपनी आँखों से इस प्रकार का नज़ारा देखकर शर्म आने लगी कि क्या यही है दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र?
जवाब देंहटाएंसतीश पंचम जी ,
जवाब देंहटाएंदरअसल यहाँ कोई किसी को किसी से रिलेट नहीं करता लोग खुद ब खुद रिलेट हो जाते हैं ..
अपनी अपनी सुविधाओं और फायदों के लिए ....ब्लॉग जगत में भाई बहन के रिश्तों की पेशकश
एक आम बात है ...इनके अपने छिपे एजेंडे और निहितार्थ हैं ...
आप फ़ुरसतिया का जिक्र लाये मैंने नहीं ...और ऋषि दत्तात्रेय ने तो जीव जंतुओं और पशु पक्षियों को शामिल कर अपने २४ गुरु बनाए थे -अब अपने फ़ुरसतिया गुरु तो कम स कम मनुष्य योनि में और वह भी योग्य पुरुष हैं ..और वैसे भी मैंने आपको उनसे प्रेरणा लेते दिखाया है ....
निश्चय ही हमारे विचार अपने हैं और हमारा अपना अलग अलग एक वैचारिक स्तर है .....इसमें कैसी बहस?
जिसका अंदेशा था वही हुए जा रहा है। मैंने फुरसतिया को बहस के दौरान केवल कोट किया है, उद्धृत किया है और मेरा मानना है कि उद्धरण आदि किसी भी बहस को किसी एक के ही विचारों के इर्द गिर्द सिमटे रहने की बजाय हैं तार्किक दृष्टि से व्यापक नजरिया प्रदान करते हैं । यही मैंने भी किया। जाहिर है फुरसतिया का जिक्र मुझे करना ही था, (वह भी मैं कन्फ्म नहीं था कि ये उनके ही विचार हैं या किसी और के इसलिये 'शायद' कहा) न करता तो वैचारिक चौर्य का आक्षेप भी लग सकता था ।
जवाब देंहटाएंखैर, मैंने तो केवल कोट किया लेकिन आप ने उसे दूसरी ओर मोड़ते हुए व्यक्तिगत हो लिये कि फुरसतिया होते तो ऐसा लिखते वैसा लिखते, प्रेरणा , गुरू ब्ला ब्ला।
रही बात 24 गुरू एन अदर .....वो सब अब आप ही पढिये और समझाईये क्योंकि मैं कमेंट अनसब्सक्राईब कर रहा हूँ। बहस अब व्यक्तिगत हो चली है। मेरी किसी बात से कष्ट हुआ हो तो अनूप जी और आपसे क्षमा याचना सहित।
- सतीश
हरिद्वार में लाठी चार्ज नहीं होगा...
जवाब देंहटाएंजब तक उत्तराखंड में बाबा भक्त निशंक की सरकार है...
बाबा का बहुत बहुत शुक्रिया, हर ब्लॉगर के अंतर्मन से परिचय करा दिया....
जय हिंद...
@सतीश जी ,आप तो कृष्ण बन गए ..चल दिए रणक्षेत्र से ..
जवाब देंहटाएंजीवंत चर्चा से ऐसे जाया जाता है भला ..अब आप व्यक्तिगत ले लिए
क्योकि आपने शुरू से ही एक बड़ी राष्ट्रीय घटना पर एक चलताऊ स्टैंड ले लिया था ...
बहरहाल ....खुशदीप जी ने एक बात अभी अभी अच्छी कही कि इस घटना के बहाने
लोगों के अंतर्मन दिख गए ...
.
जवाब देंहटाएं.
.
आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,
पुन: आया इस पोस्ट पर... और टिप्पणियों में जो कुछ पढ़ा उसने निराश ही किया... खास तौर पर आपके रूख ने... आप एक नॉन-हीरो को हीरो बना रहे हैं यहाँ पर...
इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि "A Leader has to lead by example."... एक आंदोलन-नायक पूरे भारत के लोगों को एक Cause के लिये अपना सर्वस्व, अपनी जान तक न्यौछावर कर देने की अलख लगाता है और गिरफ्तार करने आई पुलिस, जो उसे पूरी दुनिया के मीडिया के कैमरों के सामने गिरफ्तार करना चाहती है उससे बचने के लिये हर तरह की कोशिश करते हुए अंत में महिलावेश में छिप कर भागते हुऐ गिरफ्तार होता है... अब बहाना बनाया जा रहा है कि मुझे जान जाने का भय था, क्या इस तरह की टेलीवाइज्ड गिरफ्तारी के बाद कोई सरकार ऐसा कर सकती थी ?... फिर आप स्वयं ही तो जान ही क्या अपना सर्वस्व तक लुटा देने की बातें कर रहे थे!... क्या यही नायकत्व-नेतृत्व है ?... यह किस तरह का उदाहरण है ?
अगर योगऋषि शांतिपूर्वक गिरफ्तारी दे देते और समर्थकों को भी शातिपूर्वक सभास्थल खाली करने के लिये कहते तो कुछ भी दिक्कत किसी को नहीं होती... पर उन्होंने यह नहीं किया, जो उन्होंने किया और फिर जो कुछ हकीकत में हुआ है वह मीडिया के मार्फत पूरे देश-दुनिया ने देखा... किसी पर भी ज्यादती के आरोप लगाने के पहले हमें मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग व अन्य जाँचों का इंतजार करना चाहिये...
आभार!
...
@प्रवीण शाह, कमरे मे बैठकर सैद्धान्तिक रायता फैलाना और जनता मे उतर कर अपनीं बात समझाना दूसरी बात है। एक सिद्धान्तहीन कुशासन के समर्थन में इस प्रकार की बयानबाजी भी देश के आज के हालात के लिए जिम्मेदार हैं।६३ सालों से शोषण और कुव्यवस्था का परिणाम है कि देश की एक बड़ी आबादी माओवाद/नक्सलवाद और हिंसा की मानसिकता की ओर बढ़्ती जा रही है। श्रीमान शाह, मुद्दा बाबा नहीं भ्रष्टाचार है और जहाँ तक कार्य पद्धति की बात है तो वह व्यक्ति के वैचारिक धरातल और पृष्ठ भूमि पर निर्भर करता है। देश के पांच प्रतिशत लोग जो १० हजार से ५ करोड़ की तनखाहें ले रहे उनकी तुलना में ५० रुपये प्रतिदिन में परिवार चलानें वालों की सोंच और दर्द के अहसास में अंतर होता है। गांधी के मुकाबिल रामदेव और अन्ना में अंतर भी यही है। गांधी बैरिस्टर थे और क्रांति की स्फुरणा रंगभेदी नीति से उपजी थी बाबा रामदेव और अन्ना हजारे को स्फुरणा भूख, गरीबी और लोकतांत्रिक शोषण की पराकाष्ठा से उपजी है। ईमानदार सरकार नें अन्ना हजारे को भी भ्रष्ट सिद्ध करनें के सारे प्रयास किये थे और बाबा को करेगी। लेकिन यह परिस्थितियों से उत्पन्न प्राथमिकता के कारण बीज से वक्ष बना वातावरण एक दिन में नहीं बना। १९९२ के मनमोहनीय वैश्वीकरण के साथ ही उगनें लगा था-स्वदेशी आंदोलन और ड़्कल प्रस्तावों के साथ। ये अलग बात है कि आप जैसे ऎश्वर्य में मस्तिआए लोगो को दिखायी और सुनायी ही तब देता है जो कोई आंख में उंगली घुसेड़्ता है। मि० प्रवीण शाह दर-असल आप उसी मानसिकता के प्रतिनिधि हैं जो इस लोकतंत्र का शोषण कर रही है।
जवाब देंहटाएंप्रवीन शाह जी ,
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी पढ़कर मैंने एक बार अपनी मूल पोस्ट को फिर से पढ़ा ...
.
व्यक्ति पूजा से मेरा मोह भंग हो चुका है ...आपकी टिप्पणी एक व्यक्ति पर ही केन्द्रित रह गयी ...न जाने कौन सी खुन्नस है उससे आपको ..मगर मेरी पोस्ट का मुद्दा ही अलग था ...
इन बातों का जवाब मुझे आपसे चाहिए .
१-आधी रात को ऐसी क्या तात्कालिकता थी कि हजारों की संख्या में पुलिस बल को वहां के लिए कूच करा दिया गया ?
२-वहां कम से कम भी ४०-५० हजार लोग थे ही ,अनशन उपवास पर थे ,उनीदे थे,-इतनी बड़ी कार्यवाही के पहले क्या किसी जिम्मेदार सरकारी प्रतिनिधि या स्वयं प्रधान मंत्री को राष्ट्र के नामा सन्देश देकर भीड़ को वहां से हटने का आग्रह करना चाहिए था ? ध्यान रहे देश के लगभग सभी प्रान्तों से वहां अनशनकारी जुटे थे...
३-आपको सरकार के आकाओं की नीयत पर कहीं कोई खोट नहीं दिखी ...यह नहीं लगता कि काले धन का नाम सुनते ही ये अपनी मर्दानगी दिखाने (किसे !) की मूड में आते हैं -एक रानी मक्खी की भी सैन्य व्यवस्था ऐसी ही है -उसकी स्टेरायिल फ़ौज भी किसी भी बेसाख्ता दौड़ पड़ती है उसकी रक्षा में ..
४-रामदेव आपनी जान दे देते तभी आप लोगों के कलेजे को ठंडक पहुंचती और वह आपने नायकत्व के इम्तिहान में पास होता ?
५-जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों का मुद्दा देश के कुछ सुविधाभोगी लोग क्यों नहीं देख समझ नहीं पाते ...
यहाँ मैं सुमंत जी से सहमत हूँ ..
सवाल तो और सारे भी हैं ...आगे भी पूछे जायेगें !
सतीश जी से सहमत हूँ अब तैयार रहें अपनी खुन्दक निकालने के लिये बाबा फौज़ बना रहे हैं क्या ये महत्वाकां़अ देश को बर्बाद करने के लिये नही? क्या फर्क है अब रिमोट इतालियन है बाबा के राज मे नेपाली हो जायेगा\ माफ करें सरकार ने जो किया वो गलत समय पर जरूर किया लेकिन एक लोगों दुआर्5अ चुनी हुयी सरकार को उखाडने के मकसद से चलाया गया अभियान कहाँ तक एक सन्यासी के लिये सही था आर एस एस के साथ मिले हुये थे भ्रष्टाचार मिटाना तो एक बहाना था पहले 10 साल मे अर्जित की गयी अपनी 1100 करोड की सम्पति का हिसाब तो दें। एक नेपाली बाहर से आ कर 200 कम्पनिओं का कर्ता धर्ता बन गया कैसे एक नम्बर के पैसे से सम्भव है? सरकारी टैक्स लगना चाहिये ऐसी अकूत सम्पति पर और दान देने वालों की जाँच होनी चाहिये। अगर बाबा सही निकले तो देश खुद सच जान जायेगा। मगररब आँख बन्द कर न सरकार पर न बाबा पर भरोसा किया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंारविन्द जी मेरी टिप्पणी भी जरा तल्ख हो गयी बुरा मत माने इसी लिये अब नेपाली पिज़्ज़ा खाने जा रही हूँ । कल से सुशमा जी के ठुमकों का आनन्द लेते रहे। शोक किस बात का करें जैसे को तैसा मिला बस। और कोई उपाय नही जो सरकार चाहती थी बाबा ने अपने हठयोग से पूरा कर दिया।
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"आप जैसे ऎश्वर्य में मस्तिआए लोगो को दिखायी और सुनायी ही तब देता है जो कोई आंख में उंगली घुसेड़्ता है। मि० प्रवीण शाह दर-असल आप उसी मानसिकता के प्रतिनिधि हैं जो इस लोकतंत्र का शोषण कर रही है।"
@ सुमंत मिश्र,
दो वर्ष की अपनी ब्लॉगरी में मुझे बहुत कुछ कहा गया है परंतु आप जैसा कोई नहीं मिला, काश मैं अपना ऐश्वर्य आपको दिखा पाता... :))
मेरा स्टैंड ही यही है कि लोकतंत्र के कारण पैदा विकृतियों का समाधान हमें लोकतांत्रिक तरीकों में ही ढूंढना होगा, जो भी समझता है कि वह बेहतर कर सकता है तो कौन उसे रोकता है लोकतंत्र के जरिये परिवर्तन करने को... पर यह धरना-प्रदर्शन-अनशन व कानून-व्यवस्था को चुनौती देती स्थितियाँ पैदा करने, हर किसी को बेईमान कहने, इलेक्ट्रानिक मीडिया को बाईट देते रहने से न तो कोई नेतृत्व निकलेगा न समाधान ही... आज योगऋषि ११००० सशस्त्र योद्धा भी तैयार करने की बात कह रहे हैं, इसे क्या कहेंगे आप ?
...
आज दिन तक हिंसक साधनों के प्रयोग का कभी भी समर्थन नहीं किया जा सकता। इसका यह मतलब नहीं है कि भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं है। देश के बड़े हिस्से में फैलता माओवाद/नक्सलवाद अगर बीमारी का चिन्ह नहीं समझा जारहा तो देश का ईश्वर ही मालिक है।
जवाब देंहटाएंजुल्म किसी तरह का हो शर्मनाक होता है. यह भी जुल्म ही था. हमारा विरोध भी अब सिर्फ सांकेतिक ही होता है. और फिर ऐसे में प्रधानमंत्री का बयान कि 'जो कुछ हुआ उसका अफसोस है पर और कोई चारा ही नहीं था.'
जवाब देंहटाएंनिर्मला कपिला जी
जवाब देंहटाएंबाबा रामदेव अपनी सारी संपत्ति का ब्यौरा आज शाम को दे रहे है.
अब आप जरा इटली वाली से भी कहिये कि वो भी अपने सैकड़ो ट्रस्टो का हिसाब किताब दे.
और जिनको आप नेपाली कह रही है उनका मूल नेपाली है लेकिन पैदा भारत मे हुये है.
और पैदा होने से लेकर शास्त्रो और आयुर्वेद का अध्ययन सब भारत मे हुआ है.
विद्धान व्यक्ति के लिये दिग्विजय सिँह की तरह रुखी भाषा का प्रयोग मत करिये.
और रही बात RSS की.
तो अगर इस देश मे संघ न हो तो ये देश पूरा ईसाइ और मुस्लिम देश बन जायेगा.
जरा गूगल पर ' ईसाइ धर्मान्तरण और संघ ' लिखकर सर्च कीजिये आपको पता चल जायेगा कि इटली वाली के इशारे पर ये मिशनरी पूरे देश मे घूम घूम कर कितने बड़े स्तर पर लालच देकर गरीबो को इसाई बना रहे है.
और संघ वाले उन्ही धर्मान्तरित लोगो को वापस हिँदु धर्म मे ला रहे है.
जब कि संघ के पास मिशनरी जैसा अकूत फंड नही है जो विदेशो से मिशनरियो को भेजा जा रहा है.
जो लोग संघ को गरियाते है वो एक बार संघ के जनहित के कार्य और अनुशासन देखे .
तुरंत संघ के चरणो मे लोटने लगेँगे.
रोहित जी,
जवाब देंहटाएंनिरुत्तर कर देते प्रतिउत्तर.
बाबा और बालकृष्ण जी की स्पष्टवादिता और पारदर्शिता से दुष्ट और देशद्रोहियों को कोई प्रेरणा नहीं मिलने वाली.
फिर भी प्रयास रत रहना चाहिए.
"रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान" कुछ लोगों को देर से समझ आती है... आ जायेगी.
रोहित जी आपका प्रयास अनुकरणीय है.
4 तारीख की राक्षसी घटना को जायज बताने वाले हमारे प्रधानमंत्री एक 95 साल के बूढ़े हुसैन की मौत को राष्ट्रीय क्षति बता रहे है.
जवाब देंहटाएंहो सकता है कि वो राष्ट्रीय शोक भी घोषित कर दे.
अपडेट
जवाब देंहटाएंइंडिया टी वी के वरिष्ठ
पत्रकार रजत
शर्मा जो आप की अदालत
के एंकर भी है. उनका ये लेख
कांग्रेस की बाबा रामदेव
के प्रति घिनौनी साजिश
को उजागर करता है.
.............,.................,.......
4जून को स्वामी रामदेव
ने मुझसे
पूछा था कि क्या ऐसा हो सकता है
कि पुलिस उन्हें गिरफ्तार
करने की कोशिश करे? मैंने
उनसे कहा कि कोई
भी सरकार इतनी ब़ड़ी
गलती नही करेगी “ आप
शांति से अनशन कर रहे
हैं,आपके हज़ारो समर्थक
मौजूद हैं, चालीस TV
Channels की OB Vans
वहां खड़ी हैं.” .. मैंने उनसे
कहा था
'सोनिया गांधी और
मनमोहन सिंह
ऐसा कभी नहीं होने
देंगे'...मेरा विश्वास
था कि कांग्रेस ने
Emergencyके अनुभव से
सबक सीखा है...पिछले 7
साल के शासन में
सोनिया गांधी और
मनमोहन सिंह ने
ऐसा कोई काम
नहीं किया जिससे ये
लगा हो कि वो पुलिस
और लाठी के बल पर
अपनी सत्ता की ताकत
दिखाने का कोशिश करेंगे
लेकिन कुछ ही घंटे बाद
सरकार ने मुझे गलत
साबित कर दिया..मैंने
स्वामी रामदेव से
कहा था कि आप निश्चिंत
होकर सोइये... देर रात
मुझे इंडिया टीवी के
Newsroomसे फोन आया :
"सर, रामलीला मैदान में
पुलिस ने धावा बोल
दिया है"...फिर उस रात
टी वी पर जो कुछ
देखा,आंखों पर विश्वास
नहीं हुआ कोई ऐसा कैसे कर
सकता है...कैमरों और
रिपोर्ट्स की आंखों के
सामने पुलिस ने
लाठियां चलाईं, आंसू गैस के
गोले छोड़े, बूढ़े और
बच्चों को पीटा,
महिलाओं के कपड़े फाड़
दिए...मैंने स्वामी रामदेव
को अपने सहयोगी के कंधे
पर बैठकर बार-बार
पुलिस से ये कहते सुना-
"यहां लोगों को मत मारो
, मैं गिरफ्तारी देने
को तैयार हूं"...लेकिन जब
सरकार पांच हजा़र
की पुलिस फोर्स को
कहीं भेजती है
तो वो फोर्स ऐसी बातें
सुनने के लिए तैयार
नहीं होती...पुलिस
वालों की Training
डंडा चलाने के लिए
होती है, आंसू गैस छोड़ने
और गोली चलाने के लिए
होती है पुलिस ये
नही समझती कि जो लोग
वहां सो रहे हैं वो दिनभर
के भूखे हैं, अगर
वहां मौजूद भीड़ उग्र
हो जाती है तो पुलिस
गोली भी चला देती
...वो भगवान का शुक्र है
कि स्वामी रामदेव के
Followersमें ज्यादातर
बूढ़े, महिलाएं और बच्चे थे
या फिर उनके चुने साधक थे
जिनकीTraining उग्र
होने की नहीं है
जब दिन में
स्वामी रामदेव ने मुझे
फोन
किया था तो उन्होंने
कहा था- कि किसी ने
उन्हें पक्की खबर दी है कि
''आधी रात
को हजारों पुलिसवाले
शिविर को खाली कराने
की कोशिश करेंगे'' और ये
भी कहा कि ''पुलिस
गोली चलाकर या आग
लगाकर उन्हें मार
भी सकती है''...मैंने
स्वामी रामदेव से
कहा था कि
''ऐसा नहीं हो सकता-
हजारों पुलिस शिविर में
घुसे ये कभी नहीं होगा और
आप को मारने की तो बात
कोई सपने में सोच
भी नहीं सकता''...रात एक
बजे से सुबह पांच बजे तक
टी वी पर पुलिस
का तांडव देखते हुए मैं
यही सोचता रहा कि रामदेव
कितने सही थे और मैं
कितना गलत...ये मुझे बाद
में समझ
आया कि स्वामी रामदेव
ने महिला के कपड़े पहनकर
भागने की कोशिश
क्यों की...उन्होंने
सोचा जब पुलिस घुसने
की बात सही है
लाठियां चलाने की बात
सही है तोEncounter
की बात भी सही होगी
...मैं कांग्रेस
को अनुभवी नेताओं
की पार्टी मानता हूं...मेरी हमेशा मान्यता रही है
कि कांग्रेस को शासन
करना आता है...लेकिन 5
जून की रात
की बर्बरता ने मुझे हैरान
कर दिया...समझ में नहीं आ
रहा कि आखिर सरकार ने
ये किया क्यों?...उससे
भी बड़ा सवाल ये
उठा कि कांग्रेस
को या सरकार को इससे
मिला क्या?
उम्मीद है अब लोगो को पूरी बात समझ मे आ जायेगी.
कि उस रात स्वामी रामदेव गिरफ्तारी देने के लिये तो खुद ही तैयार थे.
लेकिन गिरफतार तो वो तब होते न जब वाकई पुलिस उन्हे गिरफ्तार करने आयी होती.
पुलिस उनको दो तरीको से मारना चाहती थी.
पहला तरीका था कि आग लगाकर भगदड़ मे उनको दम घोटकर या कुचल कर मार दिया जाये.
दूसरा तरीका था कि स्वामी रामदेव के समर्थको को उग्र उत्तेजित कर दिया जाये.
जिससे पुलिस गोलियाँ चलाये और उसी मे एक गोली रामदेव को लग जाये.
लेकिन स्वामी जी ने पुलिस की दोनो गन्दी रणनीतियो पर पानी फेर दिया .
11 June 2011 16:40
ROHIT
फिर से.... एक बढ़िया पोस्ट
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