लन्दन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में इन दिनों एक प्रदर्शनी काफी प्रसिद्धि पा रही है जिसे टाईम पत्रिका ने भी कवर किया है ...सोचा इसे आपसे साझा किया जाय .वैसे तो यह मुख्यतः जीव जंतुओं के प्रणय व्यवहार और वन्य -प्रजनन पर आधारित है मगर विषय के मानवीय निहितार्थों से भी यह प्रदर्शनी अछूती नहीं है ...इस प्रदर्शनी को देखने वालों से की गयी रायशुमारी में कुछ बड़ी महत्वपूर्ण बातें सामने आयी है .लगभग ६८ फीसदी दर्शकों का मानना था कि सच्चा प्यार (ट्रू लव ) का वजूद समूची प्रकृति में है -मतलब मनुष्य से दीगर दूसरे जीवों में भी ....समुद्री घोड़ों की लम्बे समय तक चलने वाली प्रणय लीला जिसके दौरान नर मादा तरह तरह के रंग बदलते हैं लम्बे समय तक साथ साथ तैरते रहते हैं(साथी चल ... मेरे साथ चल तू ...!) और एक दूसरे की पूछों को थामे रहते हैं -मानो यही संकेत देता है ...४६ फीसदी यह सिफारिश करते हैं कि मनुष्य को एक पति/पत्नी व्रता(मोनोगैमस) होना चाहिए .चिड़ियों में ऐसे कई उदाहरण है -एक तो अपने सारस का है ....जो दाम्पत्य निष्ठा का बेजोड़ उदाहरण प्रस्तुत करता है ...
दाम्पत्य निष्ठा की मिसाल है सारस
रायशुमारी में यह बात भी उभर कर आयी कि मनुष्य में महज १४ फीसदी यौन संसर्ग प्रजनन को लक्षित होते हैं ..बाकी मनोरंजन ,आपसी सहभाव ,घनिष्ठता के पक्ष में खड़े दिखे ....मनुष्य की काम भावना का उदगम मानो बोनोबो कपियों से हुआ है जिन्हें हर पल सेक्स की ही सूझती रहती है ...उनमें किसी विपरीत लिंगी के स्वागत से लेकर खाने की मेज तक हर समय सेक्स की ही लगी रहती है ....यह प्रदर्शनी लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुयी है मगर यह आगाह भी किया गया है कि"प्रकृति के काम -व्यवहार हमारे नैतिक मानदंडों से निर्धारित -निर्णीत नहीं होते ..." उन्हें देखने जानने परखने की खुली दृष्टि होनी चाहिए ...
बोनोबो कपियों को हमेशा सेक्स की ही लगी रहती है
प्रेम बलिदान मांगता है - प्रेयिंग मैंटिस और एक मकडी की प्रजाति (ब्लैक विडो स्पाईडर ) यौन संसर्ग के दौरान प्रायः नर को चट कर जाती हैं ..मगर कुदरत के संतति प्रवाह के सामने ऐसा बलिदान कोई ख़ास मायने नहीं रखता -कम से कम मनुष्य का प्रेम तो ऐसा बलिदान नहीं मांगता -या हो सकता है कि ऐसे दृष्टांत यहाँ भी हों ...और इस पर अभी बारीकी से अध्ययन ही न हुआ हो :) ....किसी दूसरे नर का सामीप्य भी सहवास के दौरान कई जीवों को कतई पसंद नहीं है -स्टिक इन्सेक्ट केवल इसी आशंका के चलते मादा की पीठ से ५-६ महीने चिपका ही रह जाता है और अपनी वंशावली की शुद्धता प्राण प्रण से बरकरार रखता है ....क्या ऐसी भावना मनुष्य तक में विकसित नहीं होती गयी है .....? आप खुद सोचिये!
टाईम पत्रिका के ताजे अंक (२० जून ,२०११) के अनुसार प्रदर्शनी में वन्य पशुओं के प्रणय व्यवहार के विविध रूप रंग दीखते हैं ...यह मनुष्य की जिन्दगी में रूमानी अहसास के कैंडिल लाईट डिनर जैसी आश्वस्ति (कम्फर्ट ) भरी प्रेमानुभूति ही नहीं है . यहाँ द्वंद्व युद्ध है ,युयुत्सु प्रदर्शन है एक दूसरे के लिए जान देने का जज्बा पग पग पर दिखाई देता है ...हिरन /मृग प्रजातियों का मादा पर अधिकार का द्वंद्व युद्ध अक्सर घातक भी हो उठता है ....यहाँ रात रात भर प्राणेर गीत का गायन है -जैसा कि मादा को रिझाने के लिए नर मेढक या टोड फिश पूरी रात टर्र टर्र करते गुजार देते हैं ....और यहाँ तो चित्र विचित्र यौन उपकरणों का भी खेला है ! जैसे नर बैरान्कल का अंग विशेष उसके शरीर की तुलना में तीस गुना अधिक बड़ा होता है ......यह आंकड़ा बहुत संभव है एक आल टाईम गिनेज ब्रह्माण्ड रिकार्ड हो ..
यह प्रदर्शनी अभी लम्बी चलेगी ..२ अक्टूबर तक . लन्दन के कोई हिन्दी ब्लॉगर हों तो आँखों देखा हाल भी हम तक पहुँच सकता है ..कोई है ...?
धन्यवाद आपका इस जानकारी के लिए
जवाब देंहटाएंaaj jaa to rahe hain London lekin jara 2.30 ghante ki duri par rukenge.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएं@ डॉ अरविन्द मिश्र ,
कोई नहीं है ...?? आपकी पुकार मित्रों ने सुन ली है मगर लन्दन तक पंहुची होगी ...? शक है :-)
यह एक ऐसा विषय है जिसे सब पढना चाहते हैं मगर लिखना बहुत कम चाहते हैं !
स्वस्थ सामाजिक जीवन के सबसे आवश्यक और रुचिकर पहलू के, विषय को देखकर लोग कन्नी काट लेते हैं ! ऐसे लेख बेहद आवश्यक हैं जो शायद कुंद और बंद मस्तिष्क को कुछ किरणे संप्रेषित कर सकें !
हार्दिक शुभकामनायें आपको !
@उड़न तश्तरी ,
जवाब देंहटाएंवहीं से जरा लाईव का डाईव मारिये न ! हम तक सीधा आँखों देखा सुनाईये!
सतीश जी ने दुरुस्त फरमाया है - यह एक ऐसा विषय है जिसे सब पढना चाहते हैं मगर लिखना बहुत कम चाहते हैं !
जवाब देंहटाएंसेक्स/काम/इस विषय के गोपन को लेकर ेक खुला भाव रहा है यहां की संस्कृति में, पर विविध सांस्कृतिक विक्षोभों के चलते यह खुलापन दब गया, अब जो बचा उसे मानसिक रोग कहा जाता है! खूस हैं अपने यहां रोगी, डाकटर तक ! बहरहाल..यह खुलापन यहां भी आये कि आंगन में खुली च्र्चा हो सके और कंबल की आड़ में यौन-अनिष्ट न घटे।
पाश्चात्य जगत से जुड़ी यह खबर बता कर आपने अच्छा किया, लोग ओपन माइंड से सोचें इस पर यही उत्तम!!
जीवन का आधार है,
जवाब देंहटाएंयही परस्पर प्यार है।
मनुष्य की ज्ञान पिपासा ही है तो दूसरे जीवों से अलग करती है। वर्ना रति कर्म के बिना किसी जीव का निर्वाह नहीं है।
जवाब देंहटाएंस्वागत योग्य आलेख। रोचक भी।
निश्चय ही, गंभीर प्रदर्शनी होगी.
जवाब देंहटाएंमैंने सुना की एक कोई "Slut" आन्दोलन भारतीय सरजमीं से होकर गुजरने वाला है तो क्या ऐसी प्रदर्शनियों के लिए हमारे देश में कोई जगह नहीं मिल सकती. अब लन्दन तो अपने लिए बहुत दूर है.
जवाब देंहटाएंकाम रत जीव-जंतु
जवाब देंहटाएंकरते तो हैं
पर जान ही नहीं पाते
किसे कहते हैं
प्रेम
मनुष्य
जानता तो है
लेकिन मायाजाल में
खोता चला जाता है
प्रेम के सुनहरे पल
वास्कोडिगामा
ढूंढ ही लेता है
नई जमीन।
...अच्छी लगी यह पोस्ट।
यौन व्यवहार { मैं इसे सच्चा प्रेम नहीं कहूंगा क्योंकि मित्र बहस करने लग जायेंगे :) } के वजूद की समूची प्रकृति में मौजूदगी की स्वीकार्यता का प्रतिशत मात्र ६८ है ...घोर आश्चर्य !
जवाब देंहटाएंकोई आश्चर्य नहीं कि यौन जीवन में मोनोगेमी को पर्याप्त समर्थन नहीं मिल सका :)
अब ज़रा गौर फरमाइयेगा कि मनुष्येतर जीवों के कामजीवन में भी प्राथमिकताओं / वरीयताओं के समानांतर वर्जनायें / निषेध भी चलते हैं ,मिसाल के तौर पर एकल सहचर की प्राथमिकता के साथ बहुसहचर का निषेध और इसी तर्ज़ पर बहुसहचर की प्राथमिकता के साथ एकल सहचर की वर्जना !
मादा मकड़ी , नर मकड़े की , बहुसहचर समागम की संभावना ही समाप्त कर देती है इतना ही नहीं यहाँ शैय्या सुख के साथ डाइनिंग टेबिल जैसा माहौल भी मौजूद है कि नहीं ? बोनोबो कापियों की तर्ज़ पर उसके लिए भी सेक्स और भूख साथ साथ है :)
इसी तरह से स्टिक इंसेक्ट की अपनी प्राथमिकता और वर्जनाएं हैं :)
आपने मनुष्य की काम भावना को मानो बोनोबों कापियों से उदभूत कहा तो फिर अंग विशेष की विशालता और विकरालता के प्रति मनुष्य के आकर्षण को नर बैरान्कल से प्रेरित क्यों नहीं कहा :)
चलते चलते एक बात और ...जैसा कि आपने प्रदर्शनी के हवाले से आगाह किया कि "प्रकृति के काम -व्यवहार हमारे नैतिक मानदंडों से निर्धारित -निर्णीत नहीं होते ..."
तो अपना अभिमत ये है कि सभी जीवों के यौन व्यवहार में प्राथमिकताओं / वरीयताओं तथा निषेध / वर्जनाओं का अस्तित्व है तो इन्हें ही काम व्यवहार को निर्धारित और निर्णीत करने वाले नैतिक मानदंडों के रूप में स्वीकारा जाये :)
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंacchi jaankaari
जवाब देंहटाएं@ सतीश भाई से सप्रेम असहमत ,
जवाब देंहटाएंयह ऐसा विषय है जिसे सब ? पढ़ने से पहले ही व्यवहृत करना चाहते हैं :)
आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है.discovery या national geographic पर ऐसा programe देख कर हैरानी ही होती है.एक फर्क कि हम मानव कहाँ है?
जवाब देंहटाएंहम तो मौन-स्वभाव है जी :)
जवाब देंहटाएं"प्रकृति के काम -व्यवहार हमारे नैतिक मानदंडों से निर्धारित -निर्णीत नहीं होते ... उन्हें देखने जानने परखने की खुली दृष्टि होनी चाहिए ..."
जवाब देंहटाएंयथार्थपरक पंक्तियाँ और महत्वपूर्ण पोस्ट.
बोल्ड टॉपिक ।
जवाब देंहटाएंये बोनोबो कपियों वाला प्रोग्राम देखकर हमें भी हैरानी हुई थी ।
जानवर और पशुओं में मनुष्य के मुकाबले एक फर्क होता है । उनमे यौन सम्बन्ध प्रजनन के लिए ही होता है । और यह तभी संभव होता है जब मादा इसके लिए तैयार होती है । इसे ईस्ट्रस कहते हैं । सभी पशु या जानवरों का ईस्ट्रस साइकल अलग होता है । बिना ईस्ट्रस के मादा नर को कभी आकर्षित नहीं करती ।
मनुष्यों को यौन संबंधों को एन्जॉय करने की विशेष सुविधा प्राप्त है । लेकिन वह नालायक इस सुविधा का दुरूपयोग कर मानव जाति पर ही कलंक लगा देता है जैसा कि अभी रोज यू पी में हो रहा है ।
नर हो या वानर काम मनुष्य की एक नैसर्गिक प्रवृत्ति है .अनेक पुरुषार्थों में भी मान्य है .सिर्फ हमारा अर्जित व्यवहार हमें यौन -उन्मुख वानरों से अलग करता है .वरना प्रथम दृष्टि पात नारी की देह यष्टि पर ही होता है पुरुष का .पुरुष और प्रकृति सृष्टि के दो पहलूँ हैं संपूरक परस्पर ।
जवाब देंहटाएंइधर कई यौन -उन्मुख जीव महानगरों में निर्भय विचरण करतें हैं यह भी यौन सुख लूटने के बाद अपने शिकार की ह्त्या कर देतें हैं ।
दृश्य रतिक मनुष्येतर प्राणियों की प्रणय लीला से व्याग्रा का काम लेते हैं .कई चित्र कार यह अश्व -प्रणय लीला देख कर ही महान हो गए .
सोलह कलाओं में काम कला का भी विशेष उल्लेख मिलता है .काम सूत्र अपवाद नहीं रहा है नियम रहा है .आतताई संस्कृति ने हमारी धरोहर को बुर्का पहना के छोड़ दिया ।
अच्छे विचार -उत्पादक आलेख के लिए आपको बधाई भी ,आपका आभार भी .
न्यूयोर्क के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में होता तो हम कुछ मदद कर पाते. :)
जवाब देंहटाएंवन ऑफ़ दी बेस्ट म्यूजियम है (मेरे देखे हुए म्यूजियम्स के हिसाब से )
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि के जरिये काम को पहले ही मनीषियों नें जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा माना है।
जवाब देंहटाएंकिंतु अब भी यह विषय गोपनीय और गूढ़ माना जाता है। बहुत संभव है कि इस गोपनीयता ने लोगों के भीतर काम को लेकर एक प्रकार की जिज्ञासा , एक तरह की रोचकता को बरकरार रखने में भूमिका निभाई है। पश्चिमी देशों में जिस नजरिये से इस विषय को देखा जाता है उससे अलग नजरिया भारतीय परिवेश में होना लाजिमी है, तब तो और.....जब बाहर बैठक में मित्रों संग बैठे पति को किसी कार्य से बुलाने के लिये पत्नी को किवाड़ की सांकल खटखटाने जैसे माध्यम का सहारा लेना पड़ता हो।
अच्छी सूचना दी भाई साहब,इस पोस्ट का लिंक ब्लॉग4वार्ता पर है।
जवाब देंहटाएंआभार
और अरविन्द भाई साहब हमारे यहाँ तो सेक्स का एक और आयाम भी उत्खचितहै खजुराहो में -पशु -पुरुष यौनस लगाव .ज़ाहिर है पाशविक वृत्ति जब हावी होती है तब यौन चाहिए कैसे भी किसी के साथ.बलात्कार भी मानसिक धरातल पर पहले घटता है दैहिक पर बाद में .उंच नीच का बोध चुक जाता है .
जवाब देंहटाएं.वाह.. पहिले रहें रामदेव
जवाब देंहटाएंआजु छाये हैं कामदेव !
जानकारी अच्छी है..लेकिन आयोजन लँदन में
लँका में बरसे सोना, तो अपने बाप का क्या
समीर भाई विस्तृत रिपोर्ट पेश करें, तो बात बने ।
बहुत सुंदर और ज्ञानवर्धक पोस्ट सर बधाई |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और ज्ञानवर्धक पोस्ट सर बधाई |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई साहब !पिट्स बर्ग अभी -अभी पहुंचें हैं केंटन से .सुबह पेंसिलवानिया के फाउन्टेन विल के लिए निकलना है .
जवाब देंहटाएंप्यार के यह पल है , जानकरी के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंVaah! chatpata post..hu.n.n.n
जवाब देंहटाएंजानकारी शेयर करने के लिए आभार..अच्छी पोस्ट.
जवाब देंहटाएंviry nice yaha bhi aaye yaha bhi aaye
जवाब देंहटाएंविश्लेषणात्मक जानकारी ....
जवाब देंहटाएंFlowers in Hindi
जवाब देंहटाएंMeaning Of Facts In Hindi
DND in Hindi
Psychologist in Hindi
Territory Meaning In Hindi