कल
न्यूयार्क फिल्म देखी ! ९/११ के बाद अमेरिका में ऍफ़ बी आई द्वारा महज शक-सुबहे पर हजारों मुसलामानों के साथ जोर जबरदस्ती,अमानवीय प्रताड़नाओं की पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म यद्यपि टाइम्स आफ इंडिया की क्रिटिक मार्किंग में चार स्टार और व्यूअर मार्किंग में भी चार स्टार हासिल कर चुकी है -मगर कोई ख़ास प्रभावित नही करती !
हाँ मुसलमानों के जमीर को जरूर इस फिल्म के जरिये झकझोरा गया है जब ऍफ़ बी आईका एक शीर्ष अधिकारी जो ख़ुद मुसलमान है चेतावनी देता है कि सारे दुनिया में अब यह बात मुसलामानों को साबित करनी होगी कि कुरान और इस्लाम में दहशतगर्दी के लिए कोई जगह नही है और मुसलमान भी एक अमन चैन पसंद कौम है ! यह बात किसी और को नहीं ख़ुद मुसलामानों को आगे बढ बढ़ कर साबित करनी होगी -अपनी नजीर देकर उसने कहा कि अमेरिका में मुसलमानों के प्रति यह ट्रस्ट आज भी कायम है और तभी उसे ही एक मुसलमान होने के बाद भी इतना ऊंचा ओहदा दिया गया है ! ( अब कौन कहे कि अमेरिका की यह नीति तो देखो कि लोहे को लोहे से काट रहा है ).
कई बार तो मुझे लगा कि आखिर अमरीकी पृष्ठभूमि और केवल मुसलामानों को संबोधित इस फिल्म का मुझ जैसे एक आम हिन्दू से क्या लेना देना हो सकता है और यह फिल्म मेरे किस
काम आयेगी पर वहीं इस सोच से तत्काल राहत मिल गयी कि अब हिन्दी ब्लागजगत का आयाम इतना विस्तारित हो चला है कि वहां के लिए ,मेरे ब्लॉग के लिए एक पोस्ट का फायदा तो यह फिल्म मुझे अता
कर
ही देगी !और कुछ बेहतरीन टिप्पणियों का तोहफा भी !
मुसलामानों को निश्चित ही यह फिल्म देखनी चाहिए -प्रबल संस्तुति ! ख़ास कर मुस्लिम युवाओं को ताकि वे अपनी कौम के प्रति पूरी दुनिया में फैल रही गलतफहमी को समझ सकें और तदनुसार आगे बढ़ कर एक शांतिप्रिय दुनिया को बनाने सवारने में अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकें !
रही अभिनय की बात तो पहले ही कह दूँ कैटरीना कैफ अपने निस्तेज हो चले सौन्दर्य से पूरी तरह निराश ही करती हैं -निर्देशक लाख कोशिशों के बावजूद भी उनसे एकाध दृश्यों (निश्चित ही असंख्य रीटेक के बाद ) में ही थोड़ा अभिनय करा पाने में सफल हो सका है .नए चेहरे के रूप में नील नितिन मुकेश जमे हैं ! इरफान खान तो खैर मजे हुए अदाकार है ही -जान अब्राहम भी अपने माको इमेज से एक ख़ास वर्ग को आकर्षित करगें ही ,अभिनय की भी जी तोड़ कोशिश
इन्होने की है -
एक दीगर कारण से भी चर्चा में हैं ! संभी पुरूष पात्र मुस्लिम दिखाए गए हैं !
सिफारिशआप चाहें तो देख सकते हैं .
अब तो जरुर देखनी पडेगी....
जवाब देंहटाएंregards
तो क्या अब बोलीवुड होलीवुड पर पलट वार कर रहा है? अच्छा है।
जवाब देंहटाएंअच्छा किया बता दिया नहीं तो हम देख ही लेते इसे !
जवाब देंहटाएंलीजिये एक बेहतरीन टिप्पणी जिसके आप हकदार हैं !
ज़रूर देखेंगे।
जवाब देंहटाएंबढ़िया समीक्षा .
जवाब देंहटाएंaapakee sifaarish jaroor maanenge aabhaar
जवाब देंहटाएं''सारे दुनिया में अब यह बात मुसलामानों को साबित करनी होगी कि कुरान और इस्लाम में दहशतगर्दी के लिए कोई जगह नही है और मुसलमान भी एक अमन चैन पसंद कौम है''
जवाब देंहटाएंयह बात कितनी बार और किस किस के सामने साबित करनी होगी।
मूवी देखने का सुझाव काबिले गौर है, मौका लगा, तो जरूर देखी जाएगी।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
फिल्म न सही फिल्म समीक्षा तो देख ही ली. वैसे इसी विषय पर नसीरुद्दीन शाह की 'खुदा के लिए' भी एक प्रभावशाली फिल्म है.
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई जी आपको फ़िल्म समीक्षक बनने की. अब आपने समिक्षा की है तो देख आयेंगे.
जवाब देंहटाएंरामराम.
निश्चय ही देखेंगे यह फिल्म ।
जवाब देंहटाएं"...........के बहाने से {चिटठा:अन्योनास्ति } पर आगमन एवं अपने '' सद्विचार '' प्रगट करने का हार्दिक धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंपूरी फिल्म में कहानी इम्प्रेस करती है जिसके लिए आदित्य चोपडा बधाई के पात्र है.. फिल्म में यदि मंझे हुए कलाकारों को लिया जाता तो फिल्म और अच्छी बन सकती थी..
जवाब देंहटाएंअधिकतर दृश्यों में कैमरा कलाकारों के चेहरे पर ही रहता है ऐसे में सारा अभिनय चेहरे को ही करना पड़ता है.. यहाँ पर कैटरिना और जॉन दोनों ही कमजोर लगे.. नील मुकेश प्रभावित करते है..
ओवर ऑल मुझे फिल्म अच्छी लगी.. एक बार देखी जा सकती है.. फिल्म के स्वच्छ सन्देश के लिए..
कोई ख़ास प्रभाव नहीं छोड़ती ये पिक्चर............
जवाब देंहटाएंहम तो देखते ही नही आज कल की बकबास फ़िल्मे,
जवाब देंहटाएंलेकिन आप ने इस फ़िल्म की समीक्षा अच्छे ढंग से की है,
धन्यवाद
अपनी तो समझ में ही नहीं आ रहा की देखूं या नहीं
जवाब देंहटाएंअखबारों की रेटिंग तो अखबार जानें पर हफ्ता भर पहले ऐसी ही बढ़िया रेटिंग वाली "The Hangover' फिल्म देखी. वह भी कुछ ख़ास नहीं थी.
जवाब देंहटाएंये फिल्म पाकिस्तानी में बनी फिल्म "खुदा के लिए" से काफी मिलती है...उसमें भी एक मुसलमान को जबरदस्ती आंतकवादी बता कर अमेरिकी जेल में डाल देते हैं...वो फिल्म अपने संगीत, प्रस्तुति करण, अभिनय और तथ्य के कारण बहुत सराही गयी थी...इस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह ने कमाल का अभिनय किया था...इसका डी.वी.डी बाज़ार में उपलब्ध है मिले तो जरूर देखें...
जवाब देंहटाएंनीरज
हमने तो पाकिस्तानी फिल्म देखी थी 'खुदा के लिए'. अच्छी भी लगी थी. सुना है उसी से 'इंस्पायर' होकर बनाई गयी है. पर उतनी अच्छी नहीं. तो अब डाउनलोड कर के ही देखी जायेगी !
जवाब देंहटाएंदुनिया में शान्ति कायम करने में मुसलमानों की महति भूमिका होगी। बस वे कब अदा करेंगे? उसी की प्रतीक्षा है।
जवाब देंहटाएंअच्छी समीक्षा कर दी है आपने देखेंगे जरुर इसको .शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंआतंक का भस्मासुर इस्लाम को ग्रस रहा है!
जवाब देंहटाएंSameeksha achhi lagi. film nahin dekhenge. Vaise dekhte bhi nahin hain. Abhar.
जवाब देंहटाएंहम भी विवेक जी के विचार वाले हैं। यानि अच्छा किया बता दिया नहीं तो हम देख ही लेते इसे!
जवाब देंहटाएंपिक्चरहाल जाकर फिल्म देखे अरसा गुजर गया। अब मन ही नहीं करता। तीन घण्टे में जो मजा ब्लॉगरी देगी वह एक फिल्म में कहाँ मिलने वाला है...!?
प्रबंध करते हैं देखने का!!
जवाब देंहटाएंजनाब मुसलमानों को फिल्म देखने का मशवरा दे रहे हो, मुसलमान फिल्म नहीं देख सकता, मेरा जैसे नालायक देखने पहुंच जाते हैं, फिल्म अच्छी बनी है लेकिन 9/11 इससे कहीं अच्छी जानकारी परवीन जाखड जी ने प्रस्तुत की है--
जवाब देंहटाएंpraveenjakhar.blogspot.com
आखिर क्या है पेंटागन का सच! : 9/11 अमरीकी हमला : कड़ी 2
लैरी सिल्वरस्टीन ने पूरे वल्र्ड ट्रेड सेंटर को 3.2 बिलियन डॉलर में 99 साल की लीज पर लिया। यानी 11 सितम्बर के छह हफ्ते पहले। इस लीज में 3.5 बिलयन डॉलर की बीमा पॉलिसी भी शामिल थी, जो खास तौर पर आतंकवादी हमलों को भी कवर करती थी।
'टावर के अंदर पहले से रखे बमों के फटने से टावर नीचे आया। यह मुमकिन ही नहीं कि विमान के टकराने और इसमें लगी आग से टावर नीचे आए।' लेकिन आश्चर्यजनक रूप से दस दिन बाद उन्होंने अपना यह बयान बदल दिया और कहा 'टावर आग लगने की वजह से नीचे गिरे थे।'
होसके तो कुरान शब्द ठीक तरह कुरआन लिखा करें, देखें www.quranhindi.com
मुहम्मद सल्ल. सब धर्मों के कल्कि व अंतिम अवतार
antimawtar.blogspot.com
अल्लाह के चैलेंज
islaminhindi.blogspot.com
समीक्षा के बहाने फिल्म के बारे में काफी कुछ जानकारी मिली.धन्यवाद.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंफ़िल्म निःसँदेह अच्छी है,
पर किसे देखनी चाहिये और किसे नहीं, यह सँस्तुति नहीं होनी चाहिए ।
काहे से कि हृदय परिवर्तन यूँ नहीं हुआ करते ।
एक बात और.. आपको ब्लैक में टिकट नहीं लेना चाहिये था !
समीक्षा अच्छी की है..
जवाब देंहटाएंयहाँ तो एक ही दिन में उतर गयी..चली नहीं... CD में देखनी होगी.
उस के बाद आई नयी फिल्म 'कमबख्त इश्क'देखी जो बिलकुल अच्छी नहीं थी..बच्चों के साथ बिलकुल भी नहीं देखनी चाहिये..
फिल्म में ॐ मंगलम [ शादी के मन्त्र ]को टॉयलेट में [..]भी बजा रहे हैं!और किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई[आश्चर्य है ??]
फिल्मे भी यथार्थ का आइना ही होतीं हैं -
जवाब देंहटाएंअभी तक फिल्म देखी नहीं -
शुक्रिया इसे शेर करवाने के लिए जी
- लावण्या
फिल्म देखने का मौका तो नहीं मिल पाया है अब तलक, आपकी इस जबरदस्त समीक्षा के बाद देखूँगा जरूर।
जवाब देंहटाएंये बात तो यकीनी तौर पर कही जा सकती है कि इस कौम ने जितना कुछ झेला है, जितना कुछ झेल रही है महज चंद सिरफिरे लोगों की बिना पर..बीड़ा तो पूरी कौम को ही उठाना पड़ेगा इस इमेज को बदलने के लिये।
कोई सुन रहा है क्या उस पार?