रूमानी होने की जरूरत नहीं ,इस आशा से मिलकर आपकी आँखें चार नही बल्कि चौकन्नी हो जायेंगीं ! क्या है कि इन दिनों नौकरी के चक्कर में गाँव गाँव की धूल फांकनी पड़ रही है -तो ऐसे ही एक दिन आशा से मुलाकात हो गयी ! यहाँ जो आशा हैं वे भारत वर्ष के हर गाँव में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के बदौलत नियुक्त Accredited Social Health Activist (ASHA ) हैं ,हिन्दी में बोले तो मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्री -मगर जिस आशा से मैं मिला वे मुझे ठीक से समझा नहीं सकीं कि उनके क्या काम हैं और किस तरह वे ग्रामीणों की सेवा कर रही हैं .लिहाजा मैंने यह जानकारी निकट के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सक से प्राप्त की .आप भी आशा के कार्य दायित्वों को देखें और यह भी देखें कि सरकार वास्तव में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए कितना कुछ कर रही है मगर खामी तो हमारे सिस्टम में है ।
आशा इन कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं जिसके लिए उन्हें अच्छा खासा मानदेय मिलता है -
१-संस्थागत प्रसव -६०० रूपये प्रति प्रसव (मानदेय )
२-नसबंदी पुरूष -२०० ,महिला १५०रूपये (अरे यह जेंडर डिफ़रेंस क्यों ?)
३-सम्पूर्ण टीकाकरण प्रत्येक केस रूपये ५०
४-स्तनपान को सुनिश्चित करना -तदैव
५-टीकाकरण के लिए उत्प्रेरण प्रति केस रूपये १५० एक दिन में अधिकतम १२ मामले
६-टी बी उपचार प्रति रोगी -६०० रू.
७-कोढ़ उपचार पार्टी रोगी -५०० रू।
८-जन्म पंजीकरण प्रति केस रूपये पाँच
९-मृत्य पंजीकरण तदैव
१०-गाँव में स्वास्थ्य बैठक -आशा मीटिंग -प्रत्येक १०० ,हर मांह दो
११-मोतियाबिंद आपरेशन -२०० रूपये प्रति केस
१२-गंभीर रोगी को पी एच सी तक परिवहन -२५०
१३-बच्चों में आँख के दोष की जांच प्रतेक केस २५० रू.
१४-सी सी एस पी चेक अप -बच्चे के उत्तरजीविता की पूरी जांच -१०० प्रत्येक बच्चा
१५-सर्वे रजिस्टर का रख रखाव -एक वर्ष में एकमुश्त रूपये ५००
१६-पल्स पोलियो ७५ रूपये प्रत्येक
इसके अलावा ग्राम्य स्वास्थ्य से जुड़े और भी विषय और जिम्मेदारी भी आशा के जिम्मेहै ! फिर गाँव में भला निरोगी कौन रहेगा ?
चलिए हम भी अब नौकरी पूरी होते ही गाँव का रुख करते हैं ,जान है तो जहानहै !
आप भी जब गाँव जाये तो पता लगा कर आशा से मिले जरूर !
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
-
Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
लगता है काफी खोजबीन करने के बाद यह मेनू ( रेट) कार्ड आपके हाथ लगा है :)
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी मिली है।
मिश्र जी..
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो बहुत बहुत आभार इस जानकारी को हम तक पहुंचाने के.लिए....ये सही बात है की सरकार की आधी से ज्यादा योजना की जानकारी के अभाव में आम लोग ..खासकर ग्रामीण इसका लाभ नहीं उठा पाते..इस बार गाँव गया तो मैं भी पता करूँगा....
"मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्री -मगर जिस आशा से मैं मिला वे मुझे ठीक से समझा नहीं सकीं कि उनके क्या काम हैं और किस तरह वे ग्रामीणों की सेवा कर रही हैं .लिहाजा मैंने यह जानकारी निकट के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सक से प्राप्त की ."
जवाब देंहटाएंइसलिए तो सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं से समाज को कोई फायदा नहीं हो रहा .. जब काम करनेवालों को पता ही नहीं कि उसके उत्तरदायित्व क्या क्या हैं .. तो वह काम किस प्रकार कर पाएगी ?
बजा फ़रमाया आपने सर।
जवाब देंहटाएंसिस्ट्म, सिस्टम, सिस्टम, दुष्टम हाँ नहीं तो। हा हा। रोचक जानकारी दी आपने। आभार।
और आप कैसे हैं जी ? आज बहुत दिनों बाद फिर शुरू कर रहा हूँ। इतने दिनों तक आपसे मुलाक़ात न हो सकी इसका मलाल है जी, आपके दोस्त बवाल को।
क्या बात है, अजब विशलेषण है
जवाब देंहटाएं---
विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
बढ़िया जानकारी दी आपने पर निचे गौर से पढिये नई-नवेली आशा के साथ क्या हो रहा है .
जवाब देंहटाएंJagarn News Jaunpur-
भ्रष्टाचार निवारण संगठन वाराणसी की टीम ने गुरुवार को रामपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के एक फार्मासिस्ट को एक आशा कार्यकर्त्री से एक हजार आठ सौ रुपया घूस लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया है।
पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के अन्तर्गत आने वाले गांव रघुनाथपुर की आशा कार्यकर्त्री निर्मला पाण्डेय ने भ्रष्टाचार निवारण संगठन वाराणसी के उपाधीक्षक गोरख सिंह को अवगत कराया कि मेरे सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर तैनात फार्मासिस्ट राकेश प्रकाश मिश्र मुझसे प्रति प्रसव मिलने वाले छह सौ रुपये के चेक से दो सौ रुपया मांगते है और अब तक कुल नौ प्रसव का चेक है जिसमें से वे एक हजार आठ सौ मांग रहे है।
पुरुषों पर महिलाओं से ज्यादा इनाम ? :)
जवाब देंहटाएंआशा दीदी के बहाने काम की बातें पता चलीं।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सरकार की नीतियों ने वाकई ग्रामीणों को लाभ तो पहुँचाया है, मगर मैंने देखा है कि अब वे अपने छोटे-से-छोटे कार्य के लिए भी सरकार पर अति निर्भर होते जा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जानकारी मिली. आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
धन्यवाद इस सुंदर जानकारी के लिये, युरोप मे भी एक ऎसे ही नाम से सोसाइटी किसी ने बनाई है, जिस का नाम आशा ही है, ओर यहां चोटे मोटे प्रोगराम कर के चन्दा इक्कटा करती है, मेने तो कभी एक पेसा नही दिया, क्योकि लोगो ने वि्शास जो तोड दिया, क्या यह वो ही संस्था है ? जरुर बताये.ओर हां जिस आशा की मै बात कर रहा हुं वो भी किसी भारतीया ने ही बनाई है.
जवाब देंहटाएंऐसी न जाने कितनी योजनायें हैं जिनकी जानकारी हमें नहीं है. आभार.
जवाब देंहटाएंसूत्र वाक्य तो कह ही दिया आपने - "खामी तो हमारे सिस्टम में है ।"
जवाब देंहटाएंआशा कनाडा की मिटिंग मे अक्सर जाना होता है. बेहतरीन काम कर रहे हैं उसमें.
जवाब देंहटाएंअसली काम की बातें तो आप बताना ही भूल गए ! जैसे इसके लिए योग्यता क्या है? और नियुक्ति कौन करता है? और अगर जान पहचान हो/ना हो तो नियुक्ति में कितने पैसे लगेंगे? :)
जवाब देंहटाएं--
@समीरजी: वो आशा (http://www.ashanet.org/) और ये आशा अलग है शायद से तो. ये भारत सरकार की कोई योजना लगती है !
शुक्रिया जी आशा सरकारी योजना के बारे मेँ बताने के लिये ..
जवाब देंहटाएं- लावण्या
हम आशा बन सकते हैं क्या?
जवाब देंहटाएंअभी गाँव में ही लोंगो को पता है की ये आशा बहन कौन हैं ,इनको भारत सरकार नें जो स्वास्थ विषयक पुस्तिका उपलब्ध कराई है यदि उसी को पढ़ लिया जाय तो छोला छाप डाक्टर गाँव में नहीं दिखेंगे.
जवाब देंहटाएंआशा योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है। जितने आइटम आपने गिनाए हैं उन सब पर भारी भरकम बजट भी खर्च होता है। लेकिन आशादेवी अपने सारे केस केवल कागज में तैयार करती हैं और मानदेय की बन्दरबाँट हो जाती है।
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्य विभाग में जितनी जनकल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं उन्हें यदि ठीक से लागू कर दिया जाय तो बीमारी कहीं दिखायी ही नहीं देगी। लेकिन सारा बजट गटर में जा रहा है। भ्रष्ट नौकरशाहों , माफिया ठेकेदारों, दवा कम्पनियों और लालची सरकारी डॉक्टरों ने अन्धेरगर्दी मचा रखी है। उफ़्फ़्...।
बहुत बहुत शुक्रिया जी आशा सरकारी योजना के बारे मेँ बताने के लिये..
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ जी ठीक कह रहे हैं। कागजी खानापूरी कर मानदेय राशि की चिकित्साकर्मियों व आशा कार्यकर्ताओं द्वारा बंदरबांट कर ली जाती है। गांवों में हम यह सब अक्सर देखते हैं। निजी क्लीनिक मेंहै। हुए प्रसव को भी सरकारी अस्पताल में हुआ रजिस्टर पर दिखा दिया जाता है। प्रसवती महिला को भी प्रोत्साहन राशि मिल जाती है, इसलिए जच्चा बच्चा का फोटो जमाकर रजिस्टर पर हस्ताक्षर बना देती है।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया! अच्छी जानकारी देने के लिए शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंक्या सचमुच इन नीतियों का फायदा भी हो रहा है ग्रामीण वासियों को..............
जवाब देंहटाएंसूचनाये देने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंअपने कभी कभी देखा ही होगा की कुछा लोगों का चेहरा बड़ा साधारण सा होता है परन्तु फोटो में इतने सुन्दर लगते हैं कि अच्छे अच्छे हीरो - हीरोइने भी उनके आगे फीके लगें | शायद ऐसे ही चेहरों को '' फोटोजेनिक '' फेस कहतें है ?
मीनू कार्ड की और गाँव की वास्तविक आशा -बहू में यही अंतर है |
यह भारतीय प्राचीन दाई या धाय परम्परा का ही आधुनिक और आयातित रूप है|
उद्देश्य अच्छा है |
न्यूनतम साक्षर होना शायद पर्याप्त है ,या कक्षा ५ ?, ८ ? पास होना चाहिए |
और सिस्टम को दोष देने का क्या फायदा ? आखिर सिस्टम कौन है ? उसे चला कौन रहा है ?
हम ,आप , या हमारे - आप के परिवार का ही कोई कुल-भूषण !
कोई मैं झुट बोलियां ? ओए कोई ना |
कोई मैं कुफर बोलियां ? शाश्श्श ........!
हन जी , हां जी !!!!!!!!!!!!!!!!!!! !
हम सुधरें जग सुधरा ; हम बदलें जग बदला ||
हमीं लक्ष्य हैं ,साध्य है ,साधन हैं उद्देश्य है , हमीं माध्यम है , हमीं साधक हैं |
और अंत में .........
हमीं कर्ता - धर्ता है [धरता हैं ::अब यह हम पर निर्भर है कि '' ये सब मन में धरता या जेब में धरता ]
अभी अपने गाँव में ही हूँ कुछ दिनों..और आपके इस पोस्ट के मद्देनजर तो हमारे गाँव में आशा का ’अ’ भी नहीं झलक रहा है कहीं!
जवाब देंहटाएंकुछ बनने का प्रयास हुआ-सा था कागजों पे...
सही है लेकिन अाशा वोर्कर बहाल कर के पब्लिक का अोर नोकशान हो रहा है कियो कि अाश सरकारी योजना का जानकारी तो नहीं देते है परावेट डा० क्लिनिक एवं मेडिकल का जानकारी देते है कियो कि वहा से फिफ्टी % कमीशन मिलता है
जवाब देंहटाएं