एक नारीवादी के इस कुकर्म ने मेरे होश उड़ा दिए हैं .कल "बिना लाग लपेट के जो कहा जाय वही सच है " नामक ब्लॉग पर 'बिना लाग लपेट' के यह छपा-
मोगाम्बो खुश हुआ
"ब्लॉग मे साइंस का परचम लहराने वालो कि क़ाबलियत पता नहीं कहा चली गयी जब उनका नाम एक किताब पर से हटा कर किताब को छापा गया । किताब के लिये ग्रांट मिलाने कि शर्त यही थी कि उनका नाम हटा दिया जाये क्युकी उनके दुआरा प्रस्तुत तथ्यों को गलत माना गया । सो नाम हट गया हैं
मुगाम्बो खुश हुआ !!!!
कुल कुल दुर्गति हो रही हैं पर घमंड का आवरण पहन कर वो अपने को विज्ञानं का ज्ञाता बता रहे हैं और बताते रहेगे ।
धिक्कार है धिक्कार है !" (स्नैप शाट सुरक्षित )
पढ़ कर मेरे होश फाख्ता हो गए ...इसलिए कि एक नारीवादी का प्रतिशोध मानवीय नीचता के इस स्तर तक भी जा सकता है इसकी कल्पना से ही सिहरन पैदा होती है ..आईये बताएं आपको कि माजरा क्या है ?
चार्ल्स डार्विन की जन्म द्विशती पर मैंने और एक मेरे मित्र ने एक पुस्तक प्रकाशन की योजना बनायी -पुस्तक में मेरे विगत ३० वर्षीय सतत लेखन के दौरान डार्विन पर लिखे और प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित चुनिन्दा लेखों का संकलन भी समाविष्ट हुआ -मुझे जानने वाले जानते हैं कि मेरे ऊपर चार्ल्स डार्विन का बहुत प्रभाव है तो उनकी जन्म द्विशती पर मेरी यह एक विनम्र श्रद्धांजलि थी इस महामानव को ....मेरे सह लेखक मित्र ने उस पुस्तक को भारत सरकार के एक प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थान को प्रकाशन के लिए सौपा .यहाँ तक तो सब ठीक था ..अब दिक्कत यहाँ शुरू हुई ..प्रकाशन विभाग में ब्लॉग जगत के नारी वाद से अनुप्राणित और यहाँ भी गाहे बगाहे मौजूद एक नारीवादी महिला मेरा नाम देख कर भड़क गयीं ..उन्होंने कहा कि अरविंद मिश्र ,यह तो नारी विरोधी है यह इस किताब का सह लेखक कैसे हो सकता है ...मेरे मित्र पर पिछले एक वर्ष से मेरा नाम हटाये जाने का अनुचित दबाव पड़ रहा था ..उन्होंने पिछले दिनों इसका जिक्र मुझसे किया ,फिर वे भी चुप्पी मार गए ..कोई गुपचुप समझौता शायद मूर्तरूप लेने लगा था ...और आज इस खबर से तो स्तब्ध ही रह गया हूँ ?
क्या भारतीय नारीवाद इतना प्रतिशोधात्मक और घृणित हो चला है ? चार्ल्स डार्विन पर मेरे अध्ययन, समर्पण को नारीवाद के नाम पर क्या इस तरह किनारे किया जा सकता है .क्या एक सरकारी कार्यालय में कार्य करने वाली मुलाजिम रंजिशन अपने व्यक्तिगत फैसले को जिस संस्थान में वह काम कर रही है उस पर इस तरह लाद सकती है ? क्या यह भारतीय अकादमीयता के नाम पर कलंक नहीं है ? क्या मेरी किताब से मेरा ही नाम हटा कर और मुझे धिक्कार धिक्कार कहने के पीछे का दिमाग पूरी तरह से सामाज विरोधी, विगलित और नैराश्य पूर्ण मानसिकता का नहीं हो चुका है ? अपने जीवन की व्यक्तिगत हताशा की परिणति क्या ऐसे कृत्यों में किया जाना घोर घृणित और सर्वथा निंदनीय नहीं है ...?
मैं आज यह प्रकरण भारी मन से आप सुधी जनों -हिन्दी ब्लॉग संसार के सामने ला रहा हूँ ? कृपा कर बताईये मैं क्या करुँ ? क्या ऐसी बेइंसाफी अनदेखी कर जाऊं ? मेरे लिए लिखना कोई बड़ी धरोहर नहीं है ...यह मेरी आदत में शुमार है ...मगर मेरी ही सामग्री किसी और के नाम से एक षड्यंत्र की तरह छापी गयी है ? क्या यह दंश सहा जा सकता है ? क्या ब्लॉग जगत के कथित और भ्रमित नारीवाद के नाम पर ऐसा प्रतिशोध और अत्याचार किया जाता रहेगा ? मुझे ब्लॉग जगत की उन समर्पित नारीवादियों से भी जवाब चाहिए जो आन्दोलन में मनसा वाचा कर्मणा ईमानदार बने रहने का दावा करती आई हैं ?
और अंततः यदि प्रश्नगत किताब मेरा नाम हटाकर एक षड्यंत्र के तहत प्रकाशित की गयी है जिसकी प्रथम सूचना स्वरुप उपर्युक्त ब्लॉग की प्रथम रिपोर्ट भी है तो मुझे माननीय नायालय की शरण लेनी पड़ेगी ...दुष्टों को दंड और न्याय के लिए ...
क्या आपकी अनुमति है ?
(यहाँ महिला का नाम ,मेरे सह लेखक का नाम ,प्रकाशन संस्थान का नाम सार्वजानिक न करने के पीछे विधिक कारण हैं ,व्यक्तिगत रूप से आप जान सकते हैं ! )
एक नारीवादी का प्रतिशोध -अत्याचार की कहानी !
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
-
Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
लेखक को लेखन का श्रेय न मिलना अनुचित।
जवाब देंहटाएंएक विषय को दूसरे से जोड़कर देखना अनुचित।
वैचारिक मतभिन्नता वैचारिक स्तर पर निपटायी जायें, उनका इस स्तर तक अवमूल्यन अनुचित।
सार्वजनिक माध्यम से व्यक्तिगत आक्षेप अनुचित।
मै अवाक् हूँ उस कथित नारीवादी की प्रतिक्रिया से. आपको क़ानूनी प्रक्रिया का सहारा लेना ही चाहिए.
जवाब देंहटाएंजो भि हुआ है वह दुखद व शर्मनाक है लेकिन उस तथाकथित नारीवाद के समर्थकों को किस प्रकार से प्रताड़ना का साक्ष्य जुटा सकेगें लडाई लम्बी है ब्लाग जगत मे नारी वादियो से गुहार व चर्चा व मत सन्ग्रह से कुछ नही होने वाला
जवाब देंहटाएंले्किन एक बात तय हो कि आप कुख्यात हो गये इतना टेरर नाम से जैसे अरविन्द नाम शोबराज का पर्यायवाची हो नारीवादियो शान्त हो जाओ नही तो अरविन्द आ जायेंगे मुझे तो आप हमेशा नारी हितबद्ध ही लगे है
लेखक को उसके लेखन का श्रेय मिलना ही चाहिए।
जवाब देंहटाएंप्रवीण पाण्डेय जी से सहमत
अब आप क्या कह सकते है मेरे हिसाब से तो अगर आप के पास सारे सुबूत मौजूद है तो आपक प्रशाशन की मदद ले
जवाब देंहटाएंहां एक बात और ब्लॉग ने अपना प्रभाव वहा भी नहीं छोड़ा :)
बडे दुख की बात है। ब्लोग-ब्लोग काफी खेल लिया ... अब आगे:
जवाब देंहटाएं1. सारे सबूत इकट्ठे कीजिये।
2. विभाग के ज़िम्मेदार अधिकारी के आधिकारिक स्थिति की जानकारी लीजिये।
3. पता कीजिये कि पुस्तक में आपके आलेख हैं भी या नहीं।
4. पता कीजिये (या अन्दाज़ लगाइये) कि सरकारी विभाग की यह जानकारी इस बचकाने तरीके से ज़ाहिर करने के लिये कौन-कौन ज़िम्मेदार है।
5. सहलेखक से उसके पक्ष की जानकारी लीजिये पूछिये।
6. एक भरोसेमन्द वकील ढूंढिये और अदालत का दर्वाज़ा खट्खटाइये।
7. वकील से सलाह लेकर पुस्तक की पांडुलिपि अन्य प्रतिष्ठित प्रकाशक को देकर प्रकाशित कराइये।
सर्वथा अनुचित आचरण. पुस्तक का इस तरह प्रकाशन आपके मौलिक अधिकारों का हनन है.
जवाब देंहटाएं"बिना लाग लपेट के जो कहा जाय वही सच है " एक बेनामी टाइप ब्लॉग है। रचना नाम दिखता है लेकिन रचनाएँ तो बहुत हैं।
जवाब देंहटाएंमज़ा लो और अपनी सुविधानुसार नकारते सकारते भी रहो। बढ़िया है।
इसने एक घृणित आरोप लगाया है। स्पष्ट इंगिति है लेकिन नाम नहीं लिया। विकृति क्या इसी को नहीं कहते? अन्धेरा कर कुकर्म कर उजाले में लिहो लिहो करने जैसा है यह।
आरोप है कि,"किताब के लिये ग्रांट मिलाने कि शर्त यही थी कि उनका नाम हटा दिया जाये क्युकी उनके दुआरा प्रस्तुत तथ्यों को गलत माना गया।"
पहले आप सच झूठ का पूरा पता लगाइए। कहीं यह कोरी सनसनी तो नहीं?
अगर सच है तो ये कौन 'वैज्ञानिक' जन हैं जो तथ्यों को ग़लत समझने, कहने और पूर्व शर्तें रखने की पात्रता और अधिकार रखते हैं? नाम सामने आने चाहिए। स्त्री हों या पुरुष - नंगों को नंगा करने में क्या हिचक?
अब आइए वाद पर। कोई भी वाद, वादी यानि इंसान से बड़ा नहीं होता। सन्निपात और सम्मोहन में प्रलाप या जप करते हुए लोगों पर मुझे तरस आता है। दुर्भाग्य से नारीवाद हो या कोई और वाद विकृतमना सुविधाजीवियों की भरमार है। ...
आप अब भंडाफोड़ मिशन पर केन्द्रित होइए।
लगे हाथ poetic justice पर प्रकाश भी डाल दीजिए। होश को फाख्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं। सुलझे मन से इस समस्या से निपटिए।
सारा ही प्रकरण दुखद है। आप धैर्य के साथ रहें और सत्य का पता लगाएं। कई बार जल्दबाजी में उठाया गया कदम ठीक नहीं होता है। आप पूरी जानकारी लें और उसी के बाद कार्यवाही करें।
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद...
जवाब देंहटाएंअब किसका नाम है किताब पर??
बेहद शर्मनाक और दुखद. आपका आक्रोश भी जाएज है. सभी की सलाह मानने योग्य है, पूरी जाँच कीजिये और फिर उचित करवाई कीजिये.
जवाब देंहटाएंregards
पूरी जांच के बाद ही वस्तुस्थिति का पता चल सकता है !!
जवाब देंहटाएंदुखद प्रकरण है ...किसी के लेखन प्रयास को दूसरे के नाम से प्रकाशित करना अनुचित ही माना जायेगा ...
जवाब देंहटाएंयदि आप पर बार -बार नारी विरोधी होने का आरोप लग रहा है तो आपको इस पर गौर भी करना चाहिए ...एक शुभेच्छु होने के कारण निवेदन मात्र है ...मानना या नहीं मानना आपकी मर्जी है ..!
@@चलिए मैं नारी विरोधी (मीसोजिनिस्ट ) हूँ तो क्या मेरी पुस्तक से षड्यंत्र कर मेरा नाम हटा दिया जायेगा -सुपारी देकर मेरी ह्त्या करा दी जायेगीं ?
जवाब देंहटाएंऐसी आपराधिक मनोवृत्ति से तो मीसोजीनिस्ट होना ठीक है -और अब तो मुझे जबरिया मीसोजिनिस्ट बनाया जा रहा है -कोई कब तक धैर्य रखेगा ?
बस बहुत हुआ. अनुराग जी की बात को ध्यान से सुनिये और कदम उठाइये.
जवाब देंहटाएंवो ब्लॉग गायब कर दिया गया है पर ये रहा उसका कैश्ड लिंक:
http://webcache.googleusercontent.com/search?q=cache:YrVISk7urdwJ:mypoeticresponse.blogspot.com/+%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%97+%E0%A4%AE%E0%A5%87+%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B8+%E0%A4%95%E0%A4%BE+%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%AE+%E0%A4%B2%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87+%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8B&cd=8&hl=en&ct=clnk&gl=in
[ आपने जो लिंक दी है वो संभवतः किसी दुर्घटना का शिकार हो गई है ]
जवाब देंहटाएंमित्र,
अभी आपने जो भी लिखा वह विलोपित मोगाम्बो की सूचना पर आधारित है इसलिए स्पष्ट और प्रामाणिक सूचना के बगैर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना शायद जल्दबाजी होगी ! कुछ शंकाएं मन में हैं :-
(१)आपको या आपके सहलेखक मित्र को इस घटना की सूचना उक्त सरकारी विभाग से प्राप्त हुई है ? यदि नहीं तो...मोगाम्बो को यह सूचना कैसे प्राप्त हुई ?
(२)यदि आपका नाम हटाया जाना पुस्तक प्रकाशन और अनुदान की शर्त थी तो इस पर पत्राचार जरुर किया गया होगा अथवा संवाद ? उक्त संस्थान की ओर से अधिकृत व्यक्ति कौन था ?
(३)आपके विज्ञान पत्र पत्रिकाओं (जर्नल्स)में छप चुके आलेखों को त्रुटिपूर्ण कहने का औचित्य ? और किसने कहा यह ?
(४)क्या आपके नाम के साथ आपके आलेख भी पुस्तक से हटा दिया गये हैं ? यदि नहीं तो आपके आलेख दूसरे के नाम से कैसे छपे गये होंगे ?
(५) क्या आपके मित्र सह लेखक नें उक्त संस्थान से कोई व्यक्तिगत डील कर ली है ?
(६)आपके आलेखों के रिजेक्शन की कोई सूचना आपको किसने दी,उक्त संस्थान या सह लेखक नें ?
देखिये शंकाएं और भी हैं पर ये सभी अभी हवा हवाई हैं ! यदि हुआ है तो मोगाम्बो / सह लेखक /और उक्त संस्थान का व्यवहार निश्चय ही संदिग्ध है और इसकी निंदा की जानी चाहिये ! इस हाल में विधिक कार्यवाही की संभावना भी देखिये लेकिन पहले मामले की पुष्टि कर लीजिए !
हमारा व्यक्तिगत मानना है कि सरकारी कार्यालय और पदों का व्यक्तिगत दुरूपयोग संभव तो है किन्तु इसके विधिक दुष्परिणाम भी हुआ करते हैं और यह तथ्य अधिकारी स्वयं जानते हैं अतः संभावना ये है कि आपके आलेख हटाकर पुस्तक छापी गई होगी ! तब आलेख हटाये जाने का कारण बताने के लिए वे बाध्य हैं ! फिर से कहते हैं कि जानकारी पक्की करने के बाद ही कोई टीका टिप्पणी कीजिये !लैंगिक भेदभाव पर भी तभी कोई बात कही जाये !
अगर मैं कहूं कि अरविन्द जी दुनिया के सर्वाधिक बौद्धिक व्यक्ति हैं तो आप कहेंगे कि चने के झाड में मत चढाइये तो फिर पहले से ही प्रकाशित आलेख त्रुटिपूर्ण हैं कह देने से विषाद के गर्त में क्यों जाना ?
बहरहाल पुष्ट खबर बताइए तो हम पक्की टिप्पणी ठोंकें !
शुक्रिया मित्र घोस्ट बस्टर और अन्य मित्र गण -सुझाव सम्मतियाँ सर माथे !
जवाब देंहटाएंदुखद घटना....सच्चाई की खोजबीन करें...मन बहुत आहत होता है ऐसे में....आपको सफलता मिले इसकी शुभकामना..
जवाब देंहटाएंयह प्रकरण नीचता की पराकाष्ठा है और मानवीयता के नाम पर कलंक है। जो भी लोग इसमें शामिल हैं, उनको हतोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है। इसके लिए सबसे पहले आप विभागीय अधिकारियों से सम्पर्क पर पुस्तक की अद्यतन स्थिति का पता लगाएँ। यदि पुस्तक अभी प्रकाशित नहीं हुई है, तो उसे रूकवाने का प्रयास करे। इसके लिए मैं आपको अलग से सम्पादकीय विभाग के फोन नं० और फैक्स नं० मेल से भेज रहा हूँ। सारी वस्तुस्थिति कन्फर्म होने के बाद यदि यह सूचना सही पाई जाती है, तो इसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही ही एक रास्ता बचता है।
जवाब देंहटाएंऔर जहाँ तक 'रचना' की बात है, इस दुराग्रहपूर्ण और घृणित कृत्य से इनकी नारीवादी मंशा और असलियत स्वयं सामने आ गयी है। ऐसी नीच मानसिकता वाले कभी भी अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकते। हाँ इतना तो तय है कि जिस क्षेत्र में यह सक्रिय रहेंगे, उसका बंटाधार होना तय है।
मै अवाक् हूँ उस कथित नारीवादी की प्रतिक्रिया से. आपको क़ानूनी प्रक्रिया का सहारा लेना ही चाहिए.
जवाब देंहटाएं@-लेखक को लेखन का श्रेय न मिलना अनुचित।
जवाब देंहटाएंएक विषय को दूसरे से जोड़कर देखना अनुचित।
वैचारिक मतभिन्नता वैचारिक स्तर पर निपटायी जायें, उनका इस स्तर तक अवमूल्यन अनुचित।
सार्वजनिक माध्यम से व्यक्तिगत आक्षेप अनुचित
Praveen ji ki baat se sehmat hun.
@-दुखद प्रकरण है ...किसी के लेखन प्रयास को दूसरे के नाम से प्रकाशित करना अनुचित ही माना जायेगा ...
यदि आप पर बार -बार नारी विरोधी होने का आरोप लग रहा है तो आपको इस पर गौर भी करना चाहिए
Vani ji se bhi sehmat hun.
Lekin aapke saath anyaay hua hai...aapko nyay milna hi chahiye.
बहुत दुखद...
जवाब देंहटाएंअगर यह रचना वही महिला है, जो नारी ब्लॉग चलाती हैं, तो यह कोई नया नहीं है। पूर्व में भी उनके द्वारा इस तरह की आपत्तिजनक हरकतें की जाती रही हैं। ऐसे में मेरी समझ से एक ही उपाय है- लंठ के साथ लंठई। बाकी आप खुद समझदार हैं।
जवाब देंहटाएंआपको अपने हक की लड़ाई लड़ने का पूरा हक है .............मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है !
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी और अनुराग जी से सहमत हूँ !
घोस्ट बस्टर जी आपका बहुत बहुत आभार !
न न, मैं ये वो वाला नहीं, मैं तो असली मर्द हूँ, जो बिना लाग लपेट के कह रहा हूँ। ऐसी रचना के रचनाकर्म की चौराहे के बीच समीक्षा की जानी चाहिए, तभी उसे अक्ल आएगी।
जवाब देंहटाएंये तो हद हो गयी ………………लेखक को उसका हक मिलना ही चाहिये और इसके लिये आवश्यक कदम भी उठाये जाने चाहिये…………………सोच समझ कर सारी जानकारी प्राप्त करके ही सही कदम उठाइयेगा।
जवाब देंहटाएंमन बहुत आहात होता है इन बातों से ...आपको न्याय मिलना ही चाहिए.
जवाब देंहटाएंमैं भी प्रवीण जी, वाणी जी और अली जी की बात से सहमत हूँ... पर एक बात और कहनी है. मुझे आप से पूरी सहानुभूति है. लेकिन, जो व्यक्तिगत स्तर पर जाकर इस प्रकार का काम कर सकता है उसे नारीवादी कहकर आप नारीवादियों पर आरोप लगा रहे हैं. इस प्रकार आप स्वयं वही काम कर रहे हैं, जो उन्होंने किया. विचारधारा कभी भी बुरी नहीं होती उसका उपयोग गलत ढंग से किया जाता है, ऐसे में आपलोग किसी वाद या विचारधारा को बुरा कैसे कह सकते हैं...? मुझे नहीं लगता कि जिसने नारीवादी विचारधारा को ठीक से समझ लिया है वह इस प्रकार का कोई कार्य कर सकता है और यदि उसने ऐसा वास्तव में किया है तो वह नारीवादी नहीं हो सकती या हो सकता.
जवाब देंहटाएंयदि कोई भी ऐसी गलत बात हुई है तो अदालत का दरवाज़ा खटखटाना उचित है ...
जवाब देंहटाएंइसमें देर न करिये ... जितना जल्दी हो सके सारे सबूतों के साथ शुरू हो जाइये ..
यदि कोई भी ऐसी गलत बात हुई है तो अदालत का दरवाज़ा खटखटाना उचित है ...
जवाब देंहटाएंइसमें देर न करिये ... जितना जल्दी हो सके सारे सबूतों के साथ शुरू हो जाइये ..
बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफी है,
जवाब देंहटाएंहर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तान क्या होगा??
जो हुआ है वह दुखद व शर्मनाक है,सर्वथा अनुचित आचरण. पुस्तक का इस तरह प्रकाशन आपके मौलिक अधिकारों का हनन है. सर्वप्रथम तो मैं इस कुकृत्य की भर्त्सना करता हूँ कि किसी की मौलिकता को हाईजैक करना सर्वथा अनुचित है . ऐसे लोग आखिर क्या सिद्ध करना चाहते हैं . हमारे समझ से कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए ताकि कोई दूसरा फिर ऐसा कुकृत्य न करे ....!
जवाब देंहटाएंवो मीसेंड्र्रीस्ट "रेनबो (इन्द्रधनुष)" बहनजी तो नहीं?
जवाब देंहटाएंऔर हां एक बात जो सुबह कहना भूल गया था ...
जवाब देंहटाएं"लिखने वाले नें खुद को मोगाम्बो कहा इसका क्या मतलब हुआ ?"
आपको न्यायलय की शरण लेनी चाहिए.हमारी शुभकामनायें आपके साथ है.
जवाब देंहटाएंशर्मनाक और दुखद कृत्य है अरविन्द जी ऐसे लोगो को माफ मत करना ये लोग है विज्ञान के व्यपारी
जवाब देंहटाएंअपने लाभ और प्रतिशोध के लिए इतना नीच काम करने वाले लोगो पर लानत है ....
प्रवीण जी ,
जवाब देंहटाएंक्लांत था ,आपका पहला संबल मिला -इस औदार्य को याद रखूंगा
आशीष जी ,
जी लगता है कानूनी रास्ता ही अब एक मात्र विकल्प है ..
अरुण प्रकाश भाई ,
गंभीर समय में भी आपका मजाकिया स्वर ..आनंद आया .
ललित जी ,
आपका कथन दुरुस्त है ,आभार
पंकज जी ,
सही कहा अपने ब्लॉग जगत ने यह गहरी चोट कर दी मुझ पर
अनुराग भाई ,
आपने बहुत ही सुचिंतित और औचित्यपूर्ण बिंदु इंगित किये हैं ...मैंने नोट कर लिए हैं तदनुसार कार्यवाही
की रणनीति बनायी जा रही है ..
पी एन सुब्रमनयंन
निश्चित ही मैं ठगा हुआ समझ रहा हूँ
गिरिजेश जी ,
जवाब देंहटाएंइस सब के पीछे दो सन्नाम नारीवादियों के घृणित चेहरे हैं जिन्होंने दुरभिसंधियां कर
सहलेखक को मेरा नाम हटाने को मजबूर किया है !
जी आप सरीखे मित्र साथ हों तो फिर होश क्षण भर के लिए गायब भी हुआ था तो वापस लौट आया है
डॉ अजित गुप्ता ,
बहुत आभार ,जांच शुरू हो गयी है .
..
उड़न तश्तरी बनाम समीर जी ,
किताब हाथ में आये तो पता चले ..
सीमा जी ,
मनोबल बनाये रखने वालों शब्दों के लिए आभारी हूँ .
सगीता जी ,
सही कह रही हैं ,शुक्रिया
Lato ke bhoot baato se nahee mante. Mujhe itna hi kahna hai.
जवाब देंहटाएंआपके लेखों को कोई अपने नाम से छपवाता है तो इसका विरोध केवल ब्लॉग पर पोस्ट लिख कर न करें. ऐसे कृत्य के विरुद्ध कानूनी कार्यवाई करें. आपके इतने पुराने लेख हैं. जहाँ तक हो सके पुरानी पत्र-पत्रिकाओं को खोजकर सुब्बोत इकठ्ठा कीजिये और कानूनी कार्यवाई कीजिये. यह तो हद हो गई. और जैसा कि जाकिर जी ने लिखा है, अगर अभी तक किताब न छपी हो तो उसे रोकावाइये. तुरंत रोकावाइये.
जवाब देंहटाएं@@अली सा ,
जवाब देंहटाएंऔर हाँ ,मित्र प्रेत विनाशक ने काश्द प्रति का लिंक दे ही दिया है .मैंने सनद के लिए स्नैप शाट पहले ही लेकर सेव कर लिया है ,
और यह ब्लॉग भी परिवाद मे में दर्ज होगा ही ,हाँ मोगाम्बो का चारित्र एक पर पीडक का ही है जो दूसरों को पीड़ा में देखकर आनंदित होता है -सही पहचाना आपने...
संगीता स्वरूप जी ,
जवाब देंहटाएंआपने मनोबल बढ़ाया ,याद रहेगा !
जाकिर भाई ,
लगता तो यह है की मुझे अँधेरे में रख कर पुस्तक प्रकाशित हो गयी है ,
मेरा नाम हटा दिया गया है -सहलेखक और प्रकाशन संस्थान इसका उत्तरदायी होगा ,
हाँ ऐसी मानसिकता और वाद से जुड़े लोग जहां होंगे बंटाधार ही होगा
सलीम भाई
बहुत शुक्रिया
दिव्या जी ,
आपने इसे अन्याय माना यह आपके विवेक को दर्शाता है ,
मेरे साथ न्याय हो -आपकी इस सदाशयता के लिए आभार
साजिद भाई ,
विचार व्यक्त करने के लिए आभार
राजकुमार जैन राजन जी ,
जवाब देंहटाएंआपने आपने विचार व्यक्त किये ,आभार !
शिवम् मिश्र जी
शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया !
वंदना जी
आपके दिशा निर्देशन और साद इच्छा के लिए आभार
शिखा वार्षनेय जी ,
मेरे लिए न्याय की कामना के लिए आभारी हूँ
बेहद दुखद और निंदनीय घटना !
जवाब देंहटाएंस्पष्ट बोलना नारी विरोधी कैसे मान लिया जाता है, और अगर किसी के आपसे मतभेद हैं भी तो वह व्यक्तिगत स्तर पर क्यों जाते हैं इस प्रवृत्ति की निंदा होनी चाहिए ! मुझे नहीं लगता कि कोई भी पढ़ा लिखा पुरुष नारी विरोधी हो सकता है यह शायद सिर्फ तभी संभव होगा कि यदि उसके घर में कोई महिला दूर दूर तक न हो ! महिला प्यार का प्रतिविम्ब है उसका विरोध किसी भी जीवन को मृतप्राय जैसा करने के लिए काफी है !
आपके साथ गलत हुआ है तो विरोध करना ही उचित है और उसे जब तक जीत न हो जाये लड़ना चाहिए ! शुभकामनायें !
अली सर की बात पर गौर किया जाए.. लिखने वाले ने अपने आप को विलेन पहले ही स्वीकार कर लिया.. :)
जवाब देंहटाएंमुक्ति जी ,
जवाब देंहटाएंमैंने नारीवाद के एक दो स्वयम्भू लम्बरदारों का असली चेहरा अनावृत करना चाहा है -ये सचमुच नारीवाद के नाम पर कलंक हैं..... पूरा घिनौना चेहरा तो मानीत न्यायालय इन्हें दिखाएगा ...
जो सच्चे नारीवाद से जुड़े हैं उन्हें ऐसे तत्वों को अलग थलग कर देना चाहिए ...
और हाँ मुझे सहानुभूति नहीं नैतिक समर्थन चाहिए ,मैं सहानुभूति का निरीह पात्र नहीं हूँ
आप उन्हें आड़े हाथों लीजिये जो नारीवाद को कलंकित कर रहे हैं
इंद्रानील भट्टाचार्जी जी ,
आपका कहना बिलकुल दुरुस्त है
मुझे सबूतों के साथ न्यायालय की शरण लेनी चाहिए
जीशान जी
दुरुस्त फरमाया आपने ,शुक्रिया!
रवीन्द्र प्रभात जी ,
आपसे ऐसे विचारों की ही अपेक्षा थी
हम कृत संकल्प हैं इस बार छोड़ेगें नहीं ताकि ये दुबारा ऐसा दुष्कृत्य न कर सकें
ऐब असहज साहब
जवाब देंहटाएंतनिक विस्तरेण करें ना ...
लवली ,
बहुत आभार ,सचमुच इस संबल की जरूरत थी ..............
न्यायालय जाना ही होगा,आपकी शुभकामनाएं जरूरी होंगी ...
दर्शन जी ,
कतई माफ़ नहीं करेगें दोषियों को इस बार ...
शिव भाई,
आखिर खून बोल ही पडा न ... :)हाँ कार्यवाही शुरू कर दिया है ....आभार !
आपकी नाराज़गी का सबब क्या है?
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट
सतीश जी ,
जवाब देंहटाएंवही तो स्पष्टवादिता को नारी विरोधी क्यों मान लिया जाता है और व्यक्तिगत स्टार पर उतर कर नुकसान पहुचाना क्या
इंगित नारियों के लिए तनिक भी शोभनीय है ?
मेरी ही पुस्तक से षड्यंत्र कर नाम हटाया गया,इसकी सार्वजनिक घोषणा की गयी और मुझे ही धिक्कार धिक्कार कहा जा रहा है ....
अब आप ही बताईये -यह तो आपराधिक कृत्य हो गया -इनका वश चले तो मेरी सुपारी भी दे दें ...
दीपक जी ,
मनोरोग से ग्रस्त भयानक विलेन खुद को विलेन घोषित कर आनंदित होते हैं ..
1. घृणित और निंदनीय कृत्य .
जवाब देंहटाएं2. पहली नज़र में यह प्रतिशोधात्मक ही लगता है .जिसमें किसी ने रंजिशन अपने व्यक्तिगत फैसले को लादा है.
3. आप ने पूछा ''क्या यह भारतीय अकादमीयता के नाम पर कलंक नहीं है ?''जी हाँ ,बिलकुल है .साथ ही किताब से लेखक का नाम हटा कर उसके मौलिक अधिकारों का हनन भी है.
4. यह सरासर अन्याय है इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिये .
5. सार्वजनिक माध्यम से व्यक्तिगत आक्षेप अनुचित है और आप मान हानि का दावा भी कर सकते हैं,.
6. साथ ही उस लेख में इस्तमाल भाषा द्वारा मिली मानसिक प्रताड़ना का भी दोषी पर आरोप तय हो सकता है.
7. यकीनन पूरे सबूतों के साथ कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए.
8. एक लेखक को उसका हक़ न मिले तो यह उसकी आधी मौत ही है.
आप ने संयम बनाये रखा यह बड़ी बात है ,नहीं तो ऐसे खबरों और व्यक्तिगत आक्षेपों से कोई भी विचलित हो सकता है.[यह नयी बात नहीं है कि बहुत से कुंठित लोग नेट पर बैठकर उलजुलूल लेखों से यही प्रयास करते रहते हैं कि किस तरह दूसरे को मानसिक पीड़ा दी जाये]
आप धैर्यपूर्वक सारे सबूत एकत्र कर के अपने पक्ष को अदालत ले जाईये.
[ब्लॉग किस का है यह भी पता लग सकता है क्योंकि आज कल ब्लॉग बनाने के लिए फ़ोन द्वारा confirm करना होता है .]
इस घटना की जितनी निंदा की जाय कम है। स्तब्ध हूँ इस तरह के ओछी मानसिकता वालों की हरकत देख।
जवाब देंहटाएंएक लेखक को उसके लेखन का श्रेय मिलना ही चाहिए...। जो लोग इस कुत्सित कार्य में लिप्त हैं उनकी अदालत के सामने ही बखिया उधेड़ी जाय।
अब तो कानूनी कार्रवाई करना मुझे उचित लग रहा है।
पढकर अचंभित हूँ.
जवाब देंहटाएं..लेखक को लेखन का श्रेय न मिलना अनुचित।
एक विषय को दूसरे से जोड़कर देखना अनुचित।
वैचारिक मतभिन्नता वैचारिक स्तर पर निपटायी जायें, उनका इस स्तर तक अवमूल्यन अनुचित।
सार्वजनिक माध्यम से व्यक्तिगत आक्षेप अनुचित.
..गिरिजेश जी और अली जी की शंकाएं भी उचित हैं.
..लिंक नहीं मिल रहा.
..यदि ऐसा सचमुच है तो घोर घृणित और सर्वथा निंदनीय है.
नारीवाद की आड़ में फ़ैलता बौद्धिक आतंकवाद है यह तो, संविधान द्वारा दिये गये मौलिक अधिकारों का हनन है, मौलिक अधिकारों की रक्षा करना प्राथमिक कार्य है न्यायालय का। न्यायालय जाकर इस बौद्धिक आतंकवाद को उखाड़ना होगा और मौलिक अधिकारों की रक्षा करना होगा।
जवाब देंहटाएंब्लॉग को व्यक्तिगत और सार्वजनिक झगड़ों का अखाड़ा न बनाया जाये तो बहुत अच्छा होगा। ब्लॉग अपने विचार रखने के लिये हैं, न कि इस तरह से किसी के विचारों पर आतंकवाद फ़ैलाने के लिये।
कड़ी भर्त्सना करते हैं, ऐसे नारीवाद की आड़ में किये जा रहे इस बौद्धिक आतंकवाद की !!
बेहद शर्मनाक....
न्यायालय संज्ञान में ले और यथोचित कार्यवाही करे।
डॉ दिनेश चन्द्र सरस्वती ,
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही फरमाया आपने लातो के भूत
अल्पना जी ,
जी सच कहा आपने ,बहुत विचलित हूँ ...
यह तो दोस्तों का भरोसा और ढाढ़स है
नहीं तो दुश्मनों ने कोई कोर कसर नहीं छोडी ...
आपने कुछ और पहलुओं को सामने रखा है ,शुक्रिया
सतीश जी ,
सही कहा आपने ,अब इससे ओछी हरकत अकादमीय दुनिया में क्या होगी ?
बेचैन आत्मा ,
लिंक घोस्ट बस्टर ने अपनी प्रतिक्रिया में दे दिया है ...
विवेक जी ,
आपने सच कहा यह एक तरह उग्रवाद ही तो है इसे कुचलना होगा ..मैं कृत संकल्प होता हूँ ..आभार !
@*डॉ दिनेश चन्द्र अवस्थी (सरस्वती नहीं ,अनजानी भूल के लिए खेद !)
जवाब देंहटाएंdost qaanuni karyvaahi kron hm tumhaare saath he chote mote hm bhi vkil he agr haari zrurt smjho to hm aapki khidmt men haazirt rhenge . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंनिहायत ही घटिया और वाहियात हरकत है ...लेकिन यदि उन्हीं का कृत्य है ..जिनकी ओर आपका ईशारा है ..तो ..मुझे कदाचित आश्चर्य नहीं हुआ ....बस दु:ख हुआ कि ..लोग इतना नीचे तक गिर चुके हैं ..वे जो जाने कैसी कैसी समानता की बातें करते हैं , ;लिखते हैं पढते हैं ..।
जवाब देंहटाएंअब कुछ बात उस ब्लोग के बारे में ..जिसके लिए संशय व्यक्त किया जा रहा है या अटकलें लगाई जा रही हैं ...इस ब्लोग का सबसे पुराना नाम था हिंदी ब्लोग्गिंग की देन ...और इस ब्लोग की संचालक रचना जी ही हैं , या थीं ,इस ब्लोग का सदुपयोग ब्लोग लेखिका ने कभी हिंदी ब्लोग्गिंग तो कभी हिंदी ब्लोग्गर्स का माखौल उडाने
के लिए , यहां तक कि सबका अपमान करने के लिए ही किया ..फ़ेहरिस्त इतनी लंबी है कि ,....शायद ही कोई पुरूष लेखक बचा हो ...और जैसा कि खुद ब्लॉग लेखिका हमेशा ही मान सम्मान की बात करती रही हैं , यदि सही में ही सबने अपने मान के लिए इसका प्रतिरोध करना शुरू कर दिया तो कमोबेश पचास वाद तो दायर हो ही जाएंगे...मानहानि के ..।
आपको अब निश्चित रूप से कानून को ये सब दिखाना ही चाहिए .....फ़ैसला वो अपने आप कर लेगा ....वो ब्लॉगर नहीं है .....
अर्विंद्र जी थोडी खींचा तानी तो हम सब मै होती है, लेकिन इस तरह से घ्रणित काम तो मैने सोचा भी नही था,हेरान हुं मै.... इस बारे मै आप दिनेश राय जी से जरुर बात करे, आप की किताब है ओर आप का हक है, आप आदलत तक जा सकते है, लेकिन उस ब्लांग को कापी जरुर कर ले.... बहुत दुख हुआ ऎसी घटिया हरकत पर, जिस के बारे ह्म सोच भी नही सकते थे, मै आप के साथ हुं किसी भी प्रकार की मदद चाहिये तो जरुर बताये
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आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,
सबसे पहले- मैं आपके साथ हूँ इस मामले में...
दूसरी बात-
"प्रकाशन विभाग में ब्लॉग जगत के नारी वाद से अनुप्राणित और यहाँ भी गाहे बगाहे मौजूद एक नारीवादी महिला मेरा नाम देख कर भड़क गयीं ..उन्होंने कहा कि अरविंद मिश्र ,यह तो नारी विरोधी है यह इस किताब का सह लेखक कैसे हो सकता है ...मेरे मित्र पर पिछले एक वर्ष से मेरा नाम हटाये जाने का अनुचित दबाव पड़ रहा था ..उन्होंने पिछले दिनों इसका जिक्र मुझसे किया ,फिर वे भी चुप्पी मार गए ..कोई गुपचुप समझौता शायद मूर्तरूप लेने लगा था ..."
मैं अभी भी उम्मीद कर रहा हूँ कि यह महज एक अफवाह ही हो...परंतु यदि वाकई में ऐसा हो चुका है तो मेरी नजर में सबसे बड़ा दोषी है आपका वह मित्र-सहलेखक...संकुचित दॄष्टिकोण रखने वाली उस 'कथित नारीवादी' महिला का दोष आपके मित्र-सहलेखक से कम है...सबक लीजिये और दूर रहिये ऐसे मित्रों(???)से...
ज्यादा कुछ दंडित करने की आवश्यकता नहीं है...यह सार्वजनिक धिक्कार, मैं सोचता हूँ काफी है, उन दोनों के लिये...धिक्कार जनित यह सिम्बोलिक पानी कई चुल्लू भर सकता है...डूब मर जाने दीजिये दोनों को!... काहे अपनी उर्जा व समय व्यर्थ करेंगे किसी कानूनी लड़ाई-वड़ाई में ?
आभार!
...
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आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,
सबसे पहले- मैं आपके साथ हूँ इस मामले में...
दूसरी बात-
"प्रकाशन विभाग में ब्लॉग जगत के नारी वाद से अनुप्राणित और यहाँ भी गाहे बगाहे मौजूद एक नारीवादी महिला मेरा नाम देख कर भड़क गयीं ..उन्होंने कहा कि अरविंद मिश्र ,यह तो नारी विरोधी है यह इस किताब का सह लेखक कैसे हो सकता है ...मेरे मित्र पर पिछले एक वर्ष से मेरा नाम हटाये जाने का अनुचित दबाव पड़ रहा था ..उन्होंने पिछले दिनों इसका जिक्र मुझसे किया ,फिर वे भी चुप्पी मार गए ..कोई गुपचुप समझौता शायद मूर्तरूप लेने लगा था ..."
मैं अभी भी उम्मीद कर रहा हूँ कि यह महज एक अफवाह ही हो...परंतु यदि वाकई में ऐसा हो चुका है तो मेरी नजर में सबसे बड़ा दोषी है आपका वह मित्र-सहलेखक...संकुचित दॄष्टिकोण रखने वाली उस 'कथित नारीवादी' महिला का दोष आपके मित्र-सहलेखक से कम है...सबक लीजिये और दूर रहिये ऐसे मित्रों(???)से...
ज्यादा कुछ दंडित करने की आवश्यकता नहीं है...यह सार्वजनिक धिक्कार, मैं सोचता हूँ काफी है, उन दोनों के लिये...धिक्कार जनित यह सिम्बोलिक पानी कई चुल्लू भर सकता है...डूब मर जाने दीजिये दोनों को!... काहे अपनी उर्जा व समय व्यर्थ करेंगे किसी कानूनी लड़ाई-वड़ाई में ?
आभार!
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सबसे पहले- मैं आपके साथ हूँ इस मामले में...
दूसरी बात-
"प्रकाशन विभाग में ब्लॉग जगत के नारी वाद से अनुप्राणित और यहाँ भी गाहे बगाहे मौजूद एक नारीवादी महिला मेरा नाम देख कर भड़क गयीं ..उन्होंने कहा कि अरविंद मिश्र ,यह तो नारी विरोधी है यह इस किताब का सह लेखक कैसे हो सकता है ...मेरे मित्र पर पिछले एक वर्ष से मेरा नाम हटाये जाने का अनुचित दबाव पड़ रहा था ..उन्होंने पिछले दिनों इसका जिक्र मुझसे किया ,फिर वे भी चुप्पी मार गए ..कोई गुपचुप समझौता शायद मूर्तरूप लेने लगा था ..."
मैं अभी भी उम्मीद कर रहा हूँ कि यह महज एक अफवाह ही हो...परंतु यदि वाकई में ऐसा हो चुका है तो मेरी नजर में सबसे बड़ा दोषी है आपका वह मित्र-सहलेखक...संकुचित दॄष्टिकोण रखने वाली उस 'कथित नारीवादी' महिला का दोष आपके मित्र-सहलेखक से कम है...सबक लीजिये और दूर रहिये ऐसे मित्रों(???)से...
ज्यादा कुछ दंडित करने की आवश्यकता नहीं है...यह सार्वजनिक धिक्कार, मैं सोचता हूँ काफी है, उन दोनों के लिये...धिक्कार जनित यह सिम्बोलिक पानी कई चुल्लू भर सकता है...डूब मर जाने दीजिये दोनों को!... काहे अपनी उर्जा व समय व्यर्थ करेंगे किसी कानूनी लड़ाई-वड़ाई में ?
आभार!
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आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,
सबसे पहले- मैं आपके साथ हूँ इस मामले में...
दूसरी बात-
"प्रकाशन विभाग में ब्लॉग जगत के नारी वाद से अनुप्राणित और यहाँ भी गाहे बगाहे मौजूद एक नारीवादी महिला मेरा नाम देख कर भड़क गयीं ..उन्होंने कहा कि अरविंद मिश्र ,यह तो नारी विरोधी है यह इस किताब का सह लेखक कैसे हो सकता है ...मेरे मित्र पर पिछले एक वर्ष से मेरा नाम हटाये जाने का अनुचित दबाव पड़ रहा था ..उन्होंने पिछले दिनों इसका जिक्र मुझसे किया ,फिर वे भी चुप्पी मार गए ..कोई गुपचुप समझौता शायद मूर्तरूप लेने लगा था ..."
मैं अभी भी उम्मीद कर रहा हूँ कि यह महज एक अफवाह ही हो...परंतु यदि वाकई में ऐसा हो चुका है तो मेरी नजर में सबसे बड़ा दोषी है आपका वह मित्र-सहलेखक...संकुचित दॄष्टिकोण रखने वाली उस 'कथित नारीवादी' महिला का दोष आपके मित्र-सहलेखक से कम है...सबक लीजिये और दूर रहिये ऐसे मित्रों(???)से...
ज्यादा कुछ दंडित करने की आवश्यकता नहीं है...यह सार्वजनिक धिक्कार, मैं सोचता हूँ काफी है, उन दोनों के लिये...धिक्कार जनित यह सिम्बोलिक पानी कई चुल्लू भर सकता है...डूब मर जाने दीजिये दोनों को!... काहे अपनी उर्जा व समय व्यर्थ करेंगे किसी कानूनी लड़ाई-वड़ाई में ?
आभार!
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हमें तो ये समूचा प्रकरण जितना दुखद लगा, उससे कहीं अधिक हतप्रभ करने वाला रहा....अखिर लोग ऎसा कैसे कर सकते हैं!!
जवाब देंहटाएंपंडित जी! मैं ने पहले भी कहीं लिखा है कि साहित्य सर्जना एक प्रसव पीड़ा की तरह होती है जिससे निकलकर एक साहित्य का जन्म होता है... पुरानी कहावत है कि बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा.. अगर ऐसा हुआ है तो यह निश्चय ही एक बच्चा चुराने जैसा अपराध है...इस सनसनी में कितनी सच्चाई है, या यह एक कोरी गप्प है... इस बात की पूरी छान बीन करनी चाहिए और आपक तथाकथित मित्र से भी स्पष्टीकरण मांगना चाहिए आपको...यह पूरा घटनाक्रम ही निंदनीय है... कोई भी वाद, कोई भी विरोध, कोई भी रोष, कोई भी व्यक्तिगत ईर्ष्या, किसी को किसी की कृति चुराने या हथियाने का लाइसेंस नहीं देती...
जवाब देंहटाएंअजय जी,
जवाब देंहटाएंआप सच कहते हैं -इस मामले में कथित नारीवादी महिला और भारत के एक प्रतिष्ठित पराक्षण विभाग की नारीवादी महिला जिनका ब्लॉग भी अंतर्जाल पर मौजूद है की दुरभिसंधि है. -क्या कहा जाय,ये मानवता के नाम पर ही कलंक हैं ...और जिन संस्थानों में ये हैं उनके पवित्र उद्येश्यों को कलंकित कर रही हैं ! यही है भारतीयनारी वाद का घिनौना चेहरा और प्रतिनिधि घिनौने लोग...
राज भाटिया जी ,
ऐसे समय मदद के लिए आपका बढ़ा हाथ सचमुच आपके प्रति कृतज्ञ कर गया ..
प्रवीण शाह जी ,
आपका कहना तो सही है की इतना ही जमीर वाले के लिए चुल्लू में डूब मरने के लिए काफी है ,
मगर इन्हें दण्डित किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में अपनी कलाई करतूतों से ये मानवता को और कलंकित न कर सकें
पंडित वत्स .,
जवाब देंहटाएंकर दिखाया मित्र उन लोगों ने
वो कहते हैं न प्रमदा सब दुःख खान
का कर सके न अबला प्रबल ,काह न सिन्धु समाय..
दुष्टाओं से सावधान रहने की जरूरत है ,
अब तो यही सीख मैं अपनी अगली पीढी को दूंगा न ?
संवेदना का स्वर ,
मित्र,
पूरी घटना दुर्भाग्य से शब्दशः सच है ,
अब केवल यह पता लगा रहा हूँ कि पुस्तक छप गयी या अभी
प्रक्रिया में है! कोर्ट केस तो अब अवश्यसंभावी लग रहा है
आश्चर्य है सरकारी सेवा में काम कर रहा मुलाजिम कैसे भ्रमित नारीवाद की झंडा बरदारी कर रहा है ,
देशवासियों के टैक्स के पैसे के टुकड़े पर पल रहे लोग कैसे कैसे गुल खिलाते हैं ...परले दर्जे के चालबाज और मक्कार
अरविन्द मिश्र जी,
जवाब देंहटाएंकिसी भी पोस्ट के लिखने से समर्थन प्रतिक्रियाएं आनी स्वाभाविक हो जाती हैं, मगर दूसरे का पक्ष जाने बिना इंगित करना उचित नहीं लगता ! मेरे विचार में प्रतिष्ठा दोनों की ही महत्वपूर्ण होती है , बेहतर है अगर आपको उनका नाम पता है तो पहले उनके नाम से ही पत्र लिख कर अपना विरोध व्यक्त करें ...अन्यथा आप भी दूसरे पक्ष के दोषी माने जा सकते हैं !
इस आभासी जगत में व्यक्तिगत कडवाहट निंदनीय है मेरी प्रार्थना है कि कडवाहट घटाने के लिए पहल, आप ही करलें शायद एक सुखद पहल हो !
सादर
अरविन्द मिश्र जी,
जवाब देंहटाएंकिसी भी पोस्ट के लिखने से समर्थन प्रतिक्रियाएं आनी स्वाभाविक हो जाती हैं,मेरे विचार में प्रतिष्ठा दोनों की ही महत्वपूर्ण होती है , बेहतर है अगर आपको उनका नाम पता है तो पहले उनके नाम से ही पत्र लिख कर अपना विरोध व्यक्त करें ...अन्यथा आप भी दूसरे पक्ष के दोषी माने जा सकते हैं !
इस आभासी जगत में व्यक्तिगत कडवाहट निंदनीय है मेरी प्रार्थना है कि कडवाहट घटाने के लिए पहल, आप ही करलें शायद एक सुखद पहल हो !
सादर
आप इस ब्लॉग लिंक पर जाकर फिर से देख लें कि मोगाम्बो इसलिए खुश हुआ है कि एक किताब से उसके मुख्य लेखक का नाम ही हटा दिया गया है ..
जवाब देंहटाएंhttp://webcache.googleusercontent.com/search?q=cache:YrVISk7urdwJ:mypoeticresponse.blogspot.com/+%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%97+%E0%A4%AE%E0%A5%87+%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B8+%E0%A4%95%E0%A4%BE+%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%9A%E0%A4%AE+%E0%A4%B2%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87+%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8B&cd=8&hl=en&ct=clnk&gl=in
और यह मामला जब ब्लॉग जगत में हायिलायिट हुआ तो मोहतरमा ने झट से ब्लॉग ही डिलीट कर दिया ..
यह एक पुस्तक चार्ल्स डार्विन का मामला है जिसमें मैं प्रमुख लेखक था और सह लेखक के रूप में मेरे एक मित्र जो दिल्ली में हैं -उनसे बात होती रही है और उन्होंने यह जिक्र किया था कि एक महिला जो उस सरकारी प्रकाशन संस्थान में कार्यरत हैं और उनका यहाँ एक ब्लॉग भी है को मेरे नाम और दिए हुए तथ्यों से घोर आपत्ति थी -अब रचना के नाम से प्रकाशित उक्त पोस्ट ने यह बिल्कुल साफ़ कर दिया है कि इन मोहतरमा ,ये जो भी हों से उक्त प्रकाशन संस्थान की महिला अधिकारी से गुफ्तगूँ चलती रही जिसने अंत में साम दाम दंड भेद से मेरा नाम उक्त किताब से हटवा कर ही दम लिया ....
रचना के नाम से छपे उक्त ब्लॉग पोस्ट को ही वाद हेतु मानकर इस पूरे कारनामे पर विधिक कार्यवाही की तैयारी आरम्भ हो गयी है ..दोषी नपेगें ही .....
ये जो भी लोग हैं जो भी इनका मोटिव हो... निंदनीय है. घोर निंदनीय है.
जवाब देंहटाएंकिसी से विचार ना मिलना स्वाभाविक है... पर एक के बाद एक ऐसी गलतियाँ. ऐसी बदले की भावना?
अनुरागजी ने सही सलाह दी है. दुर्भाग्य है कि अपने देश में इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी जैसे नाम की कोई चीज नहीं होती है. पर इनके खिलाफ तो जो भी हो सकता हो किया जाना ही चाहिए.
भारत सरकार के प्रकाशन विभाग जिसका नाम आपने नही लिया है इस प्रकार की ओछी घट्ना यह सिध्द करती है कि नारी व नारीवत व्यक्तित्व जिनके बारे मे बाबा तुलसी दास ने लिख छोडा है कितने प्रभावशाली है तथा गलत काम करने वाले लोग कितनी उदण्डता से अपने काम को अन्जाम दे डालते है
जवाब देंहटाएंआपकी भविष्य की सारी लडाई अब इस बात पर निर्भर करती है कि आपका यह मित्र आपके साथ कितना मित्रवत साथ देता है क्योंकि पूरे प्रकरण मे मुझे उसकी मौन सहमति उस नारी तथा नारीवादी व्यक्ति के प्रति दिख रही है हो सकता है मै गलत होऊँ वर्ष 2010 की शुरूआत आपके साथ गलत हुई जब नारीवादी ने लैंगिक उत्पीड़न की धमकी दी और अब यह घट्ना तो आपका सीधा उत्पीड़न ही है लगता है शनि की साढे साती असर दिखा रही है मजाक नही है मित्र अपना अनुभव है ऐसी दुखद घट्नाए मनोबल कम करने के लिये अनायास ही घट जाती है सावधानी भी रखने की आवश्यकता है यह बात मै पूरी गम्भीरता से कह रहा हू
इस पूरी बहस मे किसी भी नारी नारी वादी तथा जिसका नाम भी अनेक लोगो द्वारा लिया गया है उसकी कोई प्रतिक्रिया ना आना भी आश्चर्यजनक है ऐसा तो पहले कभी नही हुआ स्पष्ट है षड़यंत्रकारी व्यक्ति दूर से देख देख कर मजे ले रहा है
हे प्रभु उन्हे क्षमा कर जो नही जानते कि वे क्या कर रहे है
अरविंद जी बहुत देर से आप की पोस्ट देखी…लेकिन देख कर अवाक रह गयी हूँ । मैं प्रवीण जी, अजित गुप्ता और अन्य मित्रों से सहमत हूँ कि आप को पूरे मामले की छानबीन कर पक्के सबूतों के साथ मामले को सही अंजाम तक ले जाना चाहिए। लेखक लेखक होता है नर नारी नहीं। हर किसी को उसकी मेहनत का श्रेय मिलना ही चाहिए।
जवाब देंहटाएंWhatever happened is really shameful.
जवाब देंहटाएंMany have spoken in your favor.
I am also supporting you.
See one thing is very clear from this episode that A 'woman' can go to any extent if she wants to destroy or take revenge.Any extent means any extent ,So please be very very careful.
Take every step carefully.
My best wishes are with you.
इतनी देर से इस पोस्ट पर आई...सबने अच्छी सलाह दी हैं...उनके अनुसार उचित कार्यवाई करें
जवाब देंहटाएंयह कृत्य तो निनदनीय है
शुक्रिया रश्मि जी ,कुछ कर रहा हूँ !
जवाब देंहटाएंआभार कृतिका ,-शुभाकांक्षियों का संबल आत्मबल बनाए रखने में मदद करता है..
.
अनिता जी बहुत आभार ,जैसा कह रही हैं उसी की तैयारी में हूँ !
मैं हतप्रद भी हूँ और दुखी भी दुनिया में इतनी मक्कारी और धूर्तता क्यों है सिर्फ भले लोग इनका शिकार क्यों होते हैं
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय पोस्ट । चोरों का परम्परागत उपकरण से सम्मान होना चाहिए । आपने मामले को सार्वजनिक किया . बधाई ।
जवाब देंहटाएंआपका क्षोभ सही है ..
जवाब देंहटाएंआशा है आगे
कारवाई आरम्भ हो गयी होगी -
बतलाएं क्या हुआ ?
सत्यमेवजयते
अरुणेश जी ,
जवाब देंहटाएंस्नेह समर्थन के लिए आभार ! हाँ बात आपकी दुरुस्त है -कोई पुराना उपकरण ढूंढता हूँ :)
लावण्या जी ,
बहुत आभार ,हाँ अवगत तो कराऊंगा ही ..अभी कानूनी प्रक्रिया को आरम्भ करने में लगा हूँ ..
सच है सत्यमेव जयते नानृतम .....नासतो विद्यते भावो ...
@@
जवाब देंहटाएंउन सभी मित्रों ,शुभचिंतकों का बहुत आभार जिन्होंने इस दुष्कृत्य का मुखर विरोध कर मुझे नैतिक बल दिया और कानूनी कार्यवाही की मुखर मांग की है ...कानूनी प्रक्रिया लम्बी है मगर शुरू हो रही है ... ...भारत सरकार के उस प्रकाशन विभाग में नारीवाद को कलंकित करती एक स्वयंभू नारीवादी ब्लॉगर महिला और उनकी मनोविकृति की शिकार दूसरी साथिन नारी ब्लॉगर का यह साझा प्रयास -यह दुष्कृत्य भारत में नारीवाद के भविष्य को यदि समग्रतः उजागर नहीं भी करता तो एक झलक देता ही है ...और यह भी बताता है की मनुष्य के अधोपतन और प्रतिशोध की कोई सीमा नहीं हो सकती ....इन दो मुखर नारीवादियों और मेरे उस मित्र (?) की दुरभिसंधि से अकादमीय दुनिया का एक अविस्मरनीय निंदनीय खेल एक सरकारी विभाग में खेला गया ...किताब से मुख्य लेखक का नाम ही उड़ा कर पुस्तक छापने का षड्यंत्र रच डाला गया -
इसकी परत दर परत खुलेगी और आपको अवगत करता रहूँगा ...प्रयास यह भी चल रहे हैं की मेरे मित्र या तो सरकारी गवाह बनें या आप सभी के सामने नारीवाद का विकृत -घिनौना चेहरा सामने लायें ! और बतायें कि नागरिकों के कर से जीवन यापन करने वाली एक वेतनभोगी कथित नारीवादी किस तरह अपना निजी एजेंडा एक सरकारी विभाग में चला रही है ...उन्होंने मेरे मित्र से क्या क्या शर्ते रखीं चार्ल्स डार्विन पर पुस्तक प्रकाशन के लिए...... यह देश और दुनिया भी जाने ...शेम... शेम ...
अरविंद जी,
जवाब देंहटाएंसबसे पहले किताब हाथ में आने का इंतज़ार कीजिए...
अगर सह-लेखक जैसे दोस्त हैं तो फिर दुश्मनों की ज़रूरत ही क्या है...
आस्तीन में सांप पालना इसे ही कहते हैं...
जय हिंद...
@"अगर सह-लेखक जैसे दोस्त हैं तो फिर दुश्मनों की ज़रूरत ही क्या है..."
जवाब देंहटाएंबजा फरमाते हैं खुशदीप जी....और हाँ इस साप को तो मैंने तभी से दूध पिलाया है जब यह सपोला था ! क़िबला अब तो यह फुफकारता नाग बन गया है !
तीन चार दिनों से व्यक्तिगत व्यस्तताओँ के कारण ब्लाग नहीं पढ़ पा रहा था। उस का खामियाजा यह कि मुझे इस पोस्ट का पता अब लग रहा है। अभी भी अदालत के लिए निकल रहा हूँ। शाम को पढ़ कर ही कुछ कहने की स्थिति में आ सकूंगा।
जवाब देंहटाएंआज पढ़ी यह पोस्ट बहुत दुखद पूर्ण है यह ...आशा है उचित कार्यवाही होगी और सब ठीक हो जाएगा
जवाब देंहटाएंसारे प्रकरण को दुखद कह देने से काम नहीं चलने का। यह सब इस बात को उजागर करता है कि सार्वजनिक संस्थाओं में कैसे कैसे लोग बैठे हैं और लोग प्रकाशन के लालच में सही गलत भी विस्मृत कर देते हैं। इस प्रवृत्ति के विरुद्ध संघर्ष होना चाहिए। और हाँ मैं ऐसे व्यक्ति को नारीवादी नहीं मानता। यूं कहने को तो कोई भी खुद को कुछ भी कह सकता है।
जवाब देंहटाएंsir, what is the title of the book? Is it in Hindi? Pl. inform me at shamimua@hotmail.com. regards
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजो भी हुआ है वह सर्वथा अनुचित और घृणास्पद है। लेकिन ऐसे मामले में न्यायालय न जाना कहीं से भी उचित नहीं है। मुझे ऐसा लगता है कि न्यायालय की सहायता और मीडिया की मदद् से इस मामले को अच्छी तरह से उठाए जाने की आवश्यकता है। समाज में छद्मवेशधारी कथित लेखकों और वैज्ञानिकों की तादात बहुत बढ़ गई है। ऐसे लोगों तक कठोर संदेश पहुचाने के लिए ऐसा बहुत जरूरी है।
जवाब देंहटाएंयह तो वाकई अन्यायपूर्ण घटना है, भला इसपर कोई अट्ठास कैसे कर सकता है और वह भी मोगेम्बो बन कर? किताब पर अगर लेखक का नाम नहीं होगा तो क्या इन तथाकथित मोगेम्बो का होगा??? न्यायिक कार्यवाही करना आपका अधिकार है.
जवाब देंहटाएंऐसा भी होता है ? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ऐसी मिसाल .दुःख हुआ ..
जवाब देंहटाएंमिश्राजी ,आपके साथ हुए अन्याय से सभी सुधीजन विचलित हैं.दर-असल आज लिखने से ज़्यादा अहमियत इस बात की है की आप किस खेमे से हैं? अगर आपका खेमा मज़बूत नहीं है तो फिर आप निपट अकेले और 'अलेखक' हैं.
जवाब देंहटाएंसंयोग कहिये या दुर्योग,मैं अचानक किसी पोस्ट के लिंक से उसी तथाकथित ब्लॉग पर पहुँच गया,फिर तो मेरी कस के मरम्मत हुई! मैंने केवल इस बात को रेखांकित कर दिया कि 'हेडर' में 'ब्लॉगर रचना का ब्लॉग' जैसा उद्घोष क्यों किया गया है,भाई जो ब्लॉग लिखता है उसका स्वामी वही है और उसका विवरण भी मिल जाता है.साथ ही यह तुच्छ सलाह दे डाली कि 'कुछ सार्थक लिखने की कोशिश करें',बस न जाने कितने सवाल और अपना बखान...?
मुझे साहित्य में नारीवादी या दलित लेखन नाम से भी आपत्ति है.क्या लेखन को,शब्दों को,अक्षरों को भी हम इसी नज़रिए से देखेंगे ? क्या लेखक का 'तंगदिल' होना ठीक है? वह पाठकों को भी ऐसे ही तक़सीम करना चाहता है ?