सतीश जी से जान पहचान कोई बहुत पुरानी तो नहीं मगर अब तो एक अंतरंगता सी हो गयी है ..जब पिछले दिनों वे बनारस आये तो उनके व्यक्ति (त्व ) से भी रूबरू हो गया ,रचनाओं से तो उन्हें पहले से ही जानता था .. मुम्बईया सतीश 'भैया' हैं तो वैसे अपने मुलुक के ही मनई ,अपने जार जवार के ,ठेठ जौनपुरी मगर उनका लालन पालन मुम्बई में हुआ है तो ऊपरी तौर से देखने पर सहसा उनके शहराती होने का भरम हो सकता है .मगर तनिक भी उनके करीब होने पर मन से उनकी वही गवईं सहजता इम्प्रेस करने लगती है -जबरिया नागरी मिथ्याचारों से दूर हैं अपने सतीश भाई !
सतीश जी 'देवायन ' ,१६ काटन मिल कालोनी चौकाघाट में तशरीफ़ लाये ...
मैंने कहा न कि उनका मन आज भी गवईं वितानों और बिम्बों में सकून पाता है ...जरा यह आत्म परिचय तो देखिये जिसने समान मनसा आराधना चतुर्वेदी का भी मन ललचा दिया था ....
अच्छा लगता है मुझे,
कच्चे आम के टिकोरों से नमक लगाकर खाना,
ककडी-खीरे की नरम बतीया कचर-कचर चबाना।
इलाहाबादी खरबूजे की भीनी-भीनी खुशबू ,
उन पर पडे हरे फांक की ललचाती लकीरें।
अच्छा लगता है मुझे।
आम का पना,
बौराये आम के पेडो से आती अमराई खूशबू के झोंके,
मटर के खेतों से आती छीमीयाही महक ,
अभी-अभी उपलों की आग में से निकले,
चुचके भूने आलूओं को छीलकर
हरी मिर्च और नमक की बुकनी लगाकर खाना,
अच्छा लगता है मुझे
केले को लपेट कर रोटी संग खाना,
या फिर गुड से रोटी चबाना।
भुट्टे पर नमक- नींबू रगड कर,
राह चलते यूँ ही कूचते-चबाना।
अच्छा लगता है मुझे।
कच्चे आम के टिकोरों से नमक लगाकर खाना,
ककडी-खीरे की नरम बतीया कचर-कचर चबाना।
इलाहाबादी खरबूजे की भीनी-भीनी खुशबू ,
उन पर पडे हरे फांक की ललचाती लकीरें।
अच्छा लगता है मुझे।
आम का पना,
बौराये आम के पेडो से आती अमराई खूशबू के झोंके,
मटर के खेतों से आती छीमीयाही महक ,
अभी-अभी उपलों की आग में से निकले,
चुचके भूने आलूओं को छीलकर
हरी मिर्च और नमक की बुकनी लगाकर खाना,
अच्छा लगता है मुझे
केले को लपेट कर रोटी संग खाना,
या फिर गुड से रोटी चबाना।
भुट्टे पर नमक- नींबू रगड कर,
राह चलते यूँ ही कूचते-चबाना।
अच्छा लगता है मुझे।
अब उनके इस परिचय से जैसे मैं किसी लम्बी आत्म विस्मृति से जागा और अपने को देर से पहचान पाया ..अरे मैं भी तो यही हूँ ....तत त्वम् असि ...वही हूँ ...बिल्कुल ...और कितना शुक्रगुजार मैं इस शख्सियत का जिसने मेरे खुद होने का मुझे अहसास दिलाया नहीं तो कबका मैं आज की इस दुनियावी आपाधापी में खो सा गया था ....
सतीश जी की साहित्य में गहरी रूचि है -जो मानवीयता का प्रत्यक्ष प्रमाण है ...उनकी साहित्यिक समीक्षायें सफ़ेद घर पर अक्सर आती रहती हैं और मेरी साहित्यिक जमापूजी में भी अभिवृद्धि करती रहती हैं ...यह एक और कारण है कि मैं उनका कृतज्ञ हूँ -सतीश जी की ओर मेरा ध्यानाकर्षण तब हुआ था जब उन सरीखा एक और मानवीय व्यक्तित्व उनसे मोहमयी नगरी में जा मिला था ...और उस महामिलन का प्रतिपल विवरण अपने ब्लॉग पृष्ठ पर अंकित कर गया था ...तब से मैंने सतीश जी को सीरियसली लेना शुरू किया और उत्तरोत्तर उनसे तादात्म्य बनाता ही गया ...लिहाजा वे भी मुझसे मिलने का कार्यक्रम ज्यादा मुल्तवी नहीं कर पाए और एक अल्लसुबह बनारस आ ही गए ...साथ में आम भी चूसे जो मेरा एक प्रिय शगल है ....लोग कहते हैं जो मेरे साथ आम खा लेता है वह मेरा और मैं उसका बन के रह जाते हैं ..सुदामा और कृष्ण के बीच का चावल बन जाता है यह आम ....इस ब्लॉग जगत में कितने ही खूबसूरत लोग हैं जिनके साथ मैं आम खाना क्या चूसना पसंद करूंगा! नाम बताना जरूरी है क्या?
इस बार सतीश जी अपने गाँव आये तो बिचारे को बिच्छू ने डंक मार दिया ...जैसे उनके गवईं बनने में कोर कसर रह गयी हो ...तो यह संस्कार-अनुष्ठान भी पूरा हो गया ...और इस मामले में सतीश जी मुझसे बाजी मार ले गए ...हाय मुझे अभी तक किसी बिच्छू ने क्यों नहीं संस्कारित किया ...मैं तो फिर जन्मना ही गवईं रह गया ...यहाँ सतीश जी से जलन हो हो रही है ....अब वे कर्मणा गवईं हो गए और मैं बपुरा जन्मना ही गवईं बना रहा हूँ ...सतीश जी के शहरी और गवईं संस्कारों का मिक्सचर कभी कभी उनके लिए असहज स्थितियां ला देता है ..कहते हैं कि 'मजे से ईयर प्लग लगाये गानों के तराने सुनता रहता हूँ और तभी घर आ जाता है और बच्चे देख ना ले इसलिए झटपट कानों से उसे अलग कर छुपा लेता हूँ ..'वाह जैसे बच्चे अपने पापा की करतूतों को जानते न हों!
एक ब्लॉगर के रूप में सतीश जी के सफ़ेद घर का कंटेंट ''व्हाईट हाऊस ' की भव्यता (केवल भव्यता ही!) की प्रतीति कराता है भले ही उसकी अंतर्कथाओं से दूर हो ,यद्यपि यहाँ भी कुछ कथाएं हैं ....और हम उनका लुत्फ़ उठा चुके हैं ..मसलन उनकी एक कथा समीक्षा में आप शहरी और गवईं रतिलीला का एक मूलभूत फर्क अनुभूत कर सकते हैं ....चूंकि गाँव और शहर का द्वंद्व /अंतर्द्वंद्व उनके मन मस्तिष्क को कुरेदता रहता है सो जाहिर है वह उनके रचना कर्म और अन्तींद्रिय संसार का हिस्सा बनता रहता है ..
.
आप तो पहले से ही इस संभावनाशील ब्लॉगर से परिचित होंगे आज मेरे नजरिये से भी इन्हें देख परख लिए ..जिससे कभी यह न कह सकें कि आपने तो कभी बताया नहीं ...और पहले परिचित न भी हुए हों तो उनके ओढनियाँ ब्लागिंग की परिभाषा और इस पारिभाषिक शब्द ने जरूर आपको इनके पास पहुँचाया होगा !
सतीश जी की साहित्य में गहरी रूचि है -जो मानवीयता का प्रत्यक्ष प्रमाण है ...उनकी साहित्यिक समीक्षायें सफ़ेद घर पर अक्सर आती रहती हैं और मेरी साहित्यिक जमापूजी में भी अभिवृद्धि करती रहती हैं ...यह एक और कारण है कि मैं उनका कृतज्ञ हूँ -सतीश जी की ओर मेरा ध्यानाकर्षण तब हुआ था जब उन सरीखा एक और मानवीय व्यक्तित्व उनसे मोहमयी नगरी में जा मिला था ...और उस महामिलन का प्रतिपल विवरण अपने ब्लॉग पृष्ठ पर अंकित कर गया था ...तब से मैंने सतीश जी को सीरियसली लेना शुरू किया और उत्तरोत्तर उनसे तादात्म्य बनाता ही गया ...लिहाजा वे भी मुझसे मिलने का कार्यक्रम ज्यादा मुल्तवी नहीं कर पाए और एक अल्लसुबह बनारस आ ही गए ...साथ में आम भी चूसे जो मेरा एक प्रिय शगल है ....लोग कहते हैं जो मेरे साथ आम खा लेता है वह मेरा और मैं उसका बन के रह जाते हैं ..सुदामा और कृष्ण के बीच का चावल बन जाता है यह आम ....इस ब्लॉग जगत में कितने ही खूबसूरत लोग हैं जिनके साथ मैं आम खाना क्या चूसना पसंद करूंगा! नाम बताना जरूरी है क्या?
इस बार सतीश जी अपने गाँव आये तो बिचारे को बिच्छू ने डंक मार दिया ...जैसे उनके गवईं बनने में कोर कसर रह गयी हो ...तो यह संस्कार-अनुष्ठान भी पूरा हो गया ...और इस मामले में सतीश जी मुझसे बाजी मार ले गए ...हाय मुझे अभी तक किसी बिच्छू ने क्यों नहीं संस्कारित किया ...मैं तो फिर जन्मना ही गवईं रह गया ...यहाँ सतीश जी से जलन हो हो रही है ....अब वे कर्मणा गवईं हो गए और मैं बपुरा जन्मना ही गवईं बना रहा हूँ ...सतीश जी के शहरी और गवईं संस्कारों का मिक्सचर कभी कभी उनके लिए असहज स्थितियां ला देता है ..कहते हैं कि 'मजे से ईयर प्लग लगाये गानों के तराने सुनता रहता हूँ और तभी घर आ जाता है और बच्चे देख ना ले इसलिए झटपट कानों से उसे अलग कर छुपा लेता हूँ ..'वाह जैसे बच्चे अपने पापा की करतूतों को जानते न हों!
एक ब्लॉगर के रूप में सतीश जी के सफ़ेद घर का कंटेंट ''व्हाईट हाऊस ' की भव्यता (केवल भव्यता ही!) की प्रतीति कराता है भले ही उसकी अंतर्कथाओं से दूर हो ,यद्यपि यहाँ भी कुछ कथाएं हैं ....और हम उनका लुत्फ़ उठा चुके हैं ..मसलन उनकी एक कथा समीक्षा में आप शहरी और गवईं रतिलीला का एक मूलभूत फर्क अनुभूत कर सकते हैं ....चूंकि गाँव और शहर का द्वंद्व /अंतर्द्वंद्व उनके मन मस्तिष्क को कुरेदता रहता है सो जाहिर है वह उनके रचना कर्म और अन्तींद्रिय संसार का हिस्सा बनता रहता है ..
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आप तो पहले से ही इस संभावनाशील ब्लॉगर से परिचित होंगे आज मेरे नजरिये से भी इन्हें देख परख लिए ..जिससे कभी यह न कह सकें कि आपने तो कभी बताया नहीं ...और पहले परिचित न भी हुए हों तो उनके ओढनियाँ ब्लागिंग की परिभाषा और इस पारिभाषिक शब्द ने जरूर आपको इनके पास पहुँचाया होगा !
व्यक्तित्व बखान, प्यार भरा गुणगान जारी रहे...
जवाब देंहटाएं--
इंटरनेट के जरिए घर बैठे अतिरिक्त आमदनी के इच्छुक ब्लागर कृपया यहां पधारें - http://gharkibaaten.blogspot.com
शहरी कथा
हटाएंमैं भी बहुत प्रभावित हूँ उनकी लेखनी का ...ऐसे लोगों से ही हिंदी ब्लॉग्गिंग कि प्रतिष्ठा कायम है ...लगे रहो सफ़ेद घर वाले ऐसे ही :)
जवाब देंहटाएंजब भी इनका लेख पढ़ा लगता है वास्तविक ग्रामीण जीवन के दर्शन हो गए हैं , साहित्यिक अभिरुचि वाले लोगों के लिए भण्डार है यहाँ ! सतीश पंचम जी को शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंसतीशजी के सफ़ेद घर से परिचय उनकी ग्राम्य श्रृंखला के दौरान ही हुआ ...गाँव से शहर गए देशज लोगों की आत्मा तो गांवों में ही बसती है ...
जवाब देंहटाएंNice Post ...!
दिल्ली आने पर आपका एक फोटो खिंच कर आपको देना है !
जवाब देंहटाएं:-)
ओह! आपकी नजर से सतीश जी को देखना ...अच्छा लगा |
जवाब देंहटाएंबाकि
आम को चूस चूस के खाना ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक तो होता ही है |
सतीश जी के सफ़ेद घर के तो हम भी प्रसंशक हैं.आभार उनके मिलाने का.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट पर आ रही प्रतिक्रियायें पता नहीं क्यों यहाँ नहीं दिख रही हैं ,फिलहाल मैंने माडरेशन आन कर दिया है -
जवाब देंहटाएंफिर देखते हैं क्या मामला है ..फिलवक्त आप अपना कमेन्ट यहाँ देते रहें कृपया !
मैं भी सफेद घर बिना नागा आता-जाता रहा हूँ। सतीश जी तो बिल्कुल अपने घर के लगते हैं। मैं मिला तो नहीं लेकिन उनका सानिध्य महसूस कर सकता हूँ।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट बहुत अच्छी है। माकूल परिचय दिया आपने। साधुवाद।
आपके मार्फ़त उनसे मिलकर अच्छा लगा पर एक कसर सी लग रही है पोस्ट में ... :)
जवाब देंहटाएं(१)
अंग्रेजों के लिए सोचता ससुरों को नाम का टोटा पड़ गया जार्ज...प्रथम...अष्टम वगैरह वगैरह ,चकल्लस से बचने के लिए यूरोपियन इतिहास ही पढ़ना छोड़ दिया !
(२)
फिर अपने ही देश में पांचवां सुर लगा कर आर.डी.बर्मन साहब 'पंचम' हुए !
(३)
अब सतीश पंचम से परिचय आपने कराया तो लगा कि देश...रमेश / महेश / सतीशों से भरा पड़ा है क्या उसमें से पांचवां :)
अरविन्द जी ज़रा इस रहस्य से पर्दा उठाइए और उन्हें हमारी ओर से प्रणाम कहिये !आदर सहित !
अच्छा लगा सतीश जी से मिलना ।
जवाब देंहटाएंबिच्छु वाली बात तो अद्भुत लग रही है ।
क्या हो गया भाई जी ! यह कमेंट्स कहाँ गायब हो जाते हैं ! आपके साईट पर एक भी कमेन्ट न पाकर दिल कुछ हल्का हुआ ;-)
जवाब देंहटाएं( मेरे ब्लाग पर पिछले कई घंटे से आये सारे कमेन्ट गूगल खा गया ). एक शेर नज़र है
दिल खुश हुआ मस्जिद ए वीरान देख कर
मेरी तरह खुदा का भी खाना खराब है !
भैया हम तो इनके फैन हैं। तुम तड़ाम वाले भी आप अपनाव वाले भी।
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी की टिप्पणी से यह ज्ञान मिला कि आम को काट कर खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है ;) उ हूँ ! नाराज़ न होइए - ऐसे ही कह रहे हैं। सतीश भाई पर पोस्ट हो तो ऐसी छूट ली जा सकती हैं।
कितनी बार हम लोगों ने साझी पोस्टों की योजना बनाई और मसौदों तक का आदान प्रदान किया लेकिन जे सोच कर कि बमफाट पोस्टों को ब्लॉग जगत झेल नहीं पाएगा - मुल्तवी कर दिया गया।
ब्लॉग जगत में जो गिने चुने लंठ हैं उनमें इन महराज का वही स्थान है जो लंठ शब्द में 'ठ' का। जैसे इस अक्षर के बिना ठसक नहीं आती वैसे ही कितने ही विषय ऐसे रहे हैं जिन्हें ये महराज न छूते तो कसक नहीं आती। कसक का अर्थ कसक नहीं - कसाव से है :)
सफेद घर का उजलापन चकाचक बना रहे, बस यही चाहना है।
वैसे सतीश भाई अगर अपने को लंठ नहीं मानते तो यहाँ आ कर स्पष्टीकरण दें, उनकी भरपूर काट प्रस्तुत की जाएगी।
सोने के पहले ध्यान आया कि इस महाशय से मिलने पर तो अपन ने भी एक लेख लिखा था और वह इस वाले से अच्छा था ;) ;)
जवाब देंहटाएंhttp://girijeshrao.blogspot.com/2009/11/blog-post_28.html
हे भगवान....अब मै क्या कहूँ .....आप लोग तो मुझे गदगदाय दिए हैं :)
जवाब देंहटाएंअली जी,
मेरे नाम में पंचम शब्द इसलिए है क्योंकि पंचम मेरे पिताजी का नाम है.......उस जमाने में जब लोग अपने बच्चों का नाम बेतरतीब सा रखते थे तब मेरे पिताजी का पंचम जैसा आकर्षक नाम मेरी दादी ने रखा था ।
बाकी रही गिरिजेश जी के लंठ वाली बात तो मेरे हिसाब से तमाम लंठई का कुछ न कुछ अंश सबमें है....किसी में ज्यादा तो किसी में कम....।
वैसे मेरे जैसा शख्स जो सुबह के चार बजे बनारस में खड़े होकर बनारस स्टेशन की सुंदरता निहारे उसे लंठ न कहा जाय तो क्या कहा जाय :)
और जब सारी दुनिया घर में आराम कर रही हो....तब भरी दुपहरीया मेरे जैसा शख्स केवल अपने ग्राम्य जीवन से परिचित होने के लिए गमछा बाँधे जनगणना वालों के संग संग घूमे उससे बड़ा लंठ तो कोई न होगा :)
इसलिए मैं मानता हूँ कि अमूमन मेरे जैसे लोगों को ही लंठ कहा जाता है और कुछ कुछ लंठई तो सबमें होती है....यह ब्लॉगिंग भी एक किस्म की लंठई ही है जो हम लोग दुनिया के तमाम जरूरी काम छोड समय व्यतीत कर रहे हैं :)
लेकिन क्या किया जाय....ब्लॉगिंग चीज ही ऐसी है कि लंठायमान होने को दिल करता है :)
आप सभी के स्नेह को पा अभिभूत हूँ....और अरविंद जी को विशेष धन्यवाद देना चाहूँगा कि उन्होंने मुझ पर कुछ लिखा...... और हाँ यह सब पढ़ ...देख कर कुछ कुछ अचम्भा सा भी महसूस कर रहा हूँ ....कि क्या मैं वाकई ऐसा हूँ :)
हे भगवान....अब मै क्या कहूँ .....आप लोग तो मुझे गदगदाय दिए हैं :)
जवाब देंहटाएंअली जी,
मेरे नाम में पंचम शब्द इसलिए है क्योंकि पंचम मेरे पिताजी का नाम है.......उस जमाने में जब लोग अपने बच्चों का नाम बेतरतीब सा रखते थे तब मेरे पिताजी का पंचम जैसा आकर्षक नाम मेरी दादी ने रखा था ।
बाकी रही गिरिजेश जी के लंठ वाली बात तो मेरे हिसाब से तमाम लंठई का कुछ न कुछ अंश सबमें है....किसी में ज्यादा तो किसी में कम....।
वैसे मेरे जैसा शख्स जो सुबह के चार बजे बनारस में खड़े होकर बनारस स्टेशन की सुंदरता निहारे उसे लंठ न कहा जाय तो क्या कहा जाय :)
और जब सारी दुनिया घर में आराम कर रही हो....तब भरी दुपहरीया मेरे जैसा शख्स केवल अपने ग्राम्य जीवन से परिचित होने के लिए गमछा बाँधे जनगणना वालों के संग संग घूमे उससे बड़ा लंठ तो कोई न होगा :)
इसलिए मैं मानता हूँ कि अमूमन मेरे जैसे लोगों को ही लंठ कहा जाता है और कुछ कुछ लंठई तो सबमें होती है....यह ब्लॉगिंग भी एक किस्म की लंठई ही है जो हम लोग दुनिया के तमाम जरूरी काम छोड समय व्यतीत कर रहे हैं :)
लेकिन क्या किया जाय....ब्लॉगिंग चीज ही ऐसी है कि लंठायमान होने को दिल करता है :)
आप सभी के स्नेह को पा अभिभूत हूँ....और अरविंद जी को विशेष धन्यवाद देना चाहूँगा कि उन्होंने मुझ पर कुछ लिखा...... और हाँ यह सब पढ़ ...देख कर कुछ कुछ अचम्भा सा भी महसूस कर रहा हूँ ....कि क्या मैं वाकई ऐसा हूँ :)
हे भगवान....अब मै क्या कहूँ .....आप लोग तो मुझे गदगदाय दिए हैं :)
जवाब देंहटाएंअली जी,
मेरे नाम में पंचम शब्द इसलिए है क्योंकि पंचम मेरे पिताजी का नाम है.......उस जमाने में जब लोग अपने बच्चों का नाम बेतरतीब सा रखते थे तब मेरे पिताजी का पंचम जैसा आकर्षक नाम मेरी दादी ने रखा था ।
बाकी रही गिरिजेश जी के लंठ वाली बात तो मेरे हिसाब से तमाम लंठई का कुछ न कुछ अंश सबमें है....किसी में ज्यादा तो किसी में कम....।
वैसे मेरे जैसा शख्स जो सुबह के चार बजे बनारस में खड़े होकर बनारस स्टेशन की सुंदरता निहारे उसे लंठ न कहा जाय तो क्या कहा जाय :)
और जब सारी दुनिया घर में आराम कर रही हो....तब भरी दुपहरीया मेरे जैसा शख्स केवल अपने ग्राम्य जीवन से परिचित होने के लिए गमछा बाँधे जनगणना वालों के संग संग घूमे उससे बड़ा लंठ तो कोई न होगा :)
इसलिए मैं मानता हूँ कि अमूमन मेरे जैसे लोगों को ही लंठ कहा जाता है और कुछ कुछ लंठई तो सबमें होती है....यह ब्लॉगिंग भी एक किस्म की लंठई ही है जो हम लोग दुनिया के तमाम जरूरी काम छोड समय व्यतीत कर रहे हैं :)
लेकिन क्या किया जाय....ब्लॉगिंग चीज ही ऐसी है कि लंठायमान होने को दिल करता है :)
आप सभी के स्नेह को पा अभिभूत हूँ....और अरविंद जी को विशेष धन्यवाद देना चाहूँगा कि उन्होंने मुझ पर कुछ लिखा...... और हाँ यह सब पढ़ ...देख कर कुछ कुछ अचम्भा सा भी महसूस कर रहा हूँ ....कि क्या मैं वाकई ऐसा हूँ :)
पंडित जी (अब आप ऐतराज़ करें तो भी हमारा यह सम्बोधन नहीं जाने वाला)... सबसे पहले तो आपने शीर्षक में ही पंचम जी की रूह को स्पष्ट कर दिया... असल माल तो रूह है, मन जो गँवई है, सवा सोरह आने.. चोला तो आज बम्बईया (कोई सुन तो नहीं रहा है, नहीं तो मुम्बैया बोल देते हैं) है कल पता नहीं क्या होगा...कविता तो पढने के बाद यह कहने को मन विवश हो गया कि “खेत की मेंड़ पर बैठ कर” लिखी गई है...आभार, एक सितारे से परिचय कराने का, वैसे वे अपना परिचय स्वयम् हैं.
जवाब देंहटाएंउनके सफ़ेद घर से परिचित हैं.उनका ओढनिया ब्लोगिंग लेख वाकई बहुत बढ़िया था.नौटंकी का इश्तहार कहाँ से ढूंढ लाए थे ,आश्चर्य है.
जवाब देंहटाएं-उनके लिए शुभकामनाएँ और आप का आभार .
aam ke aam guthalii ke daam..!
जवाब देंहटाएंsafed ghar se main bhii chakachaundh hoon . pahle to ise amerika ka white hose samjhkar door hii rahta tha lekin jab padha to jaana kii yah to thiik ulta choone kii safedii vala apnaa hii safed ghar hai..!
aapki is post ne aur bhii bhay nikaal diya.
mere bhii blag se kament gayab ho rahe hain. kal shaam ko 34 se ghatkar 17 ho gaye ..aaj subah dekh raha hoon ki 28 hain ...!
mera google vaala hindi tool gayab ho gaya hai ..laane kii mehanat kar raha hoon..
..aabhar.
अरविंद जी, क्या हम एक-दूसरे को पहले से जानते हैं? क्या आप की एलाहाबाद में अमृत प्रभात या आगरा में आज या अमर उजाला में अतीत में किसी सुभाष राय नामक अखबारनवीस से मुलाकात या बात हुई है. दर असल आप के ब्लाग को तो यत्र तत्र सर्वत्र मैं देखता ही रहता था पर अभी दो दिन पहले जाकिर अली रजनीश आगरा आये तो उन्होंने अरविंद मिश्रा और विज्ञान का एक साथ जिक्र किया. एक पल में मुझे ऐसा लगा कि मेरी आप से मुलाकात हुई है, बात भी और कई-कई बार. पर पता नहीं मैं सही याद कर रहा हूं या नहीं? कभी-कभी यूं भी किसी नाम से आत्मीयता सी लगती है. अगर मैं सही हूं तो... raisubhash953@gmail.com पर जरूर लिखियेगा.
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंSatish Pancham ji is indeed a wonderful person. I admire the way he beautifully narrates the beauty of a village or movie or train travels. His description of scorpion bite was so realistic that i felt the sting in my toe.
With such narration I also get an opportunity to enjoy the natural beauty of our villages.
I love reading his posts and i always come up with my opinion there [rarely sensible often silly]. I hope Satish ji will forgive me for my ignorance.
It will be my fortune if a great writer and person like Satish ji will visit my blog[ zealzen.blogspot.com ].
His opinion will surely be valuable and encouraging for an aspiring writer like me.
Arvind ji, thanks for the wonderful post.
Regards,
zeal [Divya]
बीड़ी जलई ले वाले संस्कार से पूर्णतया गाँव की आत्मा में समा जायेंगे ।
जवाब देंहटाएंसतीशजी के ब्लाग में उनकी पोस्ट में आम आदमी अपनापन पता है |"सफेद घर" हर किसी का होता है गाँव में चूने वाला |कितु ये "सफेद घर "रहस्यमय लगता है क्योकि यह पेटी पैक है |
जवाब देंहटाएंआपकी कलम से सतीशजी को जानना अच्छा लगा |
अच्छा लगा सतीश जी के व्यक्तित्त्व से परिचित कराता ये, आलेख....'सफ़ेद घर' की गाँव की सोंधी मिटटी की महक वाली उनकी पोस्ट्स के प्रशंसक तो सभी हैं.
जवाब देंहटाएंसतीश जी से परिचय पा कर अच्छा लगा....आभार
जवाब देंहटाएंSateesh ji ke baare men dilchasp baaten pataa chaleen, shukriya.
जवाब देंहटाएंसतीश पंचम जी का परिचय आपसे पाना अच्छा लगा, सफेद घर के द्वारे हम भी सलाम बजाते हैं.
जवाब देंहटाएंसतीश पंचम जी से मिल चुकी हूँ। आज आपके चश्मे से भी उन्हें देखा।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
भैया बड़े धांसू आदमी हैं इतना तो पता ही है.
जवाब देंहटाएं