पहले ही मुआफी मांग लूं यह पोस्ट कौनू तैयारी के साथ नहीं लिख रहा हूँ -यी त अपने शिव भैया आज आके टोक दिए कि बार बार दरवज्जे पर आकर लौट जा रहे हैं और हमरा दीदार ऊ कर नहीं पा रहे हैं लिहाजा ई पोस्ट उनही के समर्पित कर रहे हैं -नामालूम काहें शिव भैया को देख के बाहुत माख आ जाती है -अपने जार जवार क मनई कलकत्ता में जाके कहाँ फंस गए हैं -पूर्वांचल के विरह साहित्य में कलकत्ता प्रवास का बड़ा भारी जिकर है ...लेकिन यी बात नहीं है आज की पोस्ट लिखै के खातिर ...हम आज शिव भइया के कुछ पूर्वांचल का याद दिलाई चाहत हैं -ई हमें नइखे पता कि शिव भइया खाई पियई के शौक़ीन हैं या नाही मगर हम उन्हें आज पूर्वांचल के कुछ पांच सितारा व्यंजनों की याद दिला कर गृह विरही बनाये बिना नहीं छोड़ेगें ..
हमारे पूर्वांचल में एक से एक ऐसे व्यंजन हजारो नहीं तो सैकड़ों सालों से बनते आ रहे हैं जो किसी का भी दिल जीत लेने की खूबी रखते हैं ...मतलब पेट से दिल के रास्ते का रोडमैप यहाँ बहुत पहले ही तैयार हो चुका था ...इन दिनों गाँव से माता जी पधारी हुई हैं सो हम अतीतजीवी होने का सुख भोग रहे हैं ...रोज कुछ न कुछ पुराने जमाने के कम खर्च बालानशी व्यंजन का लुत्फ़ उठा रहे हैं ...वैसे इनके पाक शास्त्र में टिटिम्मा (जहमत ) कम नहीं है और इसलिए रसोईं घर संभालने वालों की नई पीढियां इन्हें बाय बाय कहती जा रही हैं ...मगर मुझे पक्का लगता है कि इनका वैल्यू एडीशन करके अगर पॉँच सितारा होटलों में उतार दिया जाय तो कई अंतर महाद्वीपीय व्यंजन सी सी कर पानी मांग उठेगें .इस बीच इधर खाए गए कुछ व्यंजन का ब्यौरा दे रहा हूँ -अगर आप पूर्वांचल के भाई हैं तो अपने व्यंजनों के नाम इसमें जरूर जोड दीजियेगा ..
पहले तो सगपईता जो अरहर/उरद की दाल में अरवी की पत्ती,करेमुआ का साग आदि एक साथ पका कर हींग ,लहसुन, मर्चा का तड़का देकर बनाते हैं ..कहते हैं इसमें देशी घी मिलाकर खाने पर सीधे स्वर्ग का द्वार दिख जाता है ....( वहां जाने की नौबत ही नहीं पड़ती ....यह मतलब है इसका ) ..इसी तरह का दूसरा प्रेपेरेशन है ...नकदावा या लगदावा जिसमें कटहल के टुकड़ों या लौकी/ .कुम्हड़ा के टुकड़े डालकर, कोहडौरी (मसाला चंक्स ) की छौंक के साथ बनाते हैं ...यह भी यम यम .....और एक व्यंजन है रिकवच जिसमें अरवी की पत्ती को उर्द की दालों के साथ तेल में फ्राई करके चंक्स तैयार करते हैं फिर पकौड़े /सगौडे के नाम से मिलने वाले चाट जैसा सूप तैयार करके उसमें डाल कर परोसते हैं -सचमुच क्या स्वाद है!बथुआ का साग एक और आकर्षण है मगर यह जाड़े में शुरू होगा -यहाँ मक्के की रोटी और बथुए के साग जिसमें सरसों का तेल मिला हो का खूब प्रचलन है ...एक बनता है दाल का दूल्हा -सामान्य दाल में आंटे के विभिन्न आकार की डिजाईनों में छोटे छोटे टुकडे पकाए जाते हैं ....बच्चे इन पर लहालोट हो जाते हैं. और एक चावल या मक्के के आटे के मिश्रण की लोई बनाकर उसमें मसालेदार पीठी -उड़दऔर चना की दाल का पेस्ट स्टफ किया जाता है -इधर गोइंठा/फरा बोलते हैं -इसके छोटे छोटे स्लाईस तलकर खाने पर बैकुंठ की प्राप्ति यहीं धरती पर ही हो जाती है ऐसा भोजन पंडित लोग कहते आये हैं ....
काश इनमें से किसी का चित्र हम लगा पाते -इसलिए ही कहा न कि यह पोस्ट तैयारी के साथ नहीं लिख पाया -बस यारी में शुरू हो गए ...और हाँ एक बात और कहे देते हैं -मैंने महज कुछ पूर्वांचल के व्यंजनों का मात्र परिचयात्मक विवरण ही यहाँ दिया है ..रेसिपी /पाक विधि नहीं बतायी है -इसलिए इसे अपने रिस्क पर ही ट्राई करें ...या फिर इंतजार करें अगली किसी पोस्ट का या किसी ख़ास व्यंजन में इंटेरेस्ट हो तो बतायें माता जी से रेसिपी पूछ कर मेल कर देगें ....
रिकवच तो मेरा प्रिय है...
जवाब देंहटाएंदाल का दुल्हा और फरा- मिर्जापुरियों की खास फरमाईशी आईटम है ये तो. :)
पूर्वांचल के ये जो व्यंजन आपने गिनाये हैं इनमे से कुछ का स्वाद हमने भी चखा है.....विगत एक साल में गोरखपुर में इनमे से कुछ सितारा व्यंजन खाने का मज़ा लेना वाकई नया अनुभव था.....दाल का दूल्हा और गोइंठा/फरा का स्वाद तो चखा है..मगर सगपईता,रिकवच और नकदावा जैसी रेसिपी नहीं खाए हैं जल्दी ही किसी लोकल कुक से बनवा कर खाते हैं....!
जवाब देंहटाएं'इनका वैल्यू एडीशन करके अगर पॉँच सितारा होटलों में उतार दिया जाय तो कई अंतर महाद्वीपीय व्यंजन सी सी कर पानी मांग उठेगें '
जवाब देंहटाएं:)...
दाल का दूल्हा-गोइंठा/फरा-आदि व्यंजनों के नाम तो बड़े निराले हैं.नए नए से हैं.व्यंजनों के साथ लेख की भाषा भी बदल गयी.रोचक प्रस्तुति.
[उधर कमल ककड़ी फ्राई यहाँ बालानशी [?]व्यंजन!आजकल रसोई में ड्यूटी है आप की, ऐसा लगता है!]
etna tari lagake parosenge to munh me pani t" aa jaega.
जवाब देंहटाएंbina khaile swad lag raha hai.
abhar.
हमने तो एक भी नाम नहीं सुना ।
जवाब देंहटाएंलेकिन सावन के कई पुराने व्यंजन याद आ गए ।
अब तो यादों में ही रह गए हैं ।
मुह में पानी भर आया. आभार.
जवाब देंहटाएं@समीर जी ,आपकी तो दसो उंगलियाँ घी में और मुंह कडाही के करीब होना चाहिए -भाभी मिर्जापुर की हैं ...आनन्द उठाईये !
जवाब देंहटाएं@अल्पना जी , आईये आप भी हाथ बटाईए न ,साथी हाथ बटाना साथी रे .... :) वैसे मैं रसोईं में कम डाईनिंग टेबल पर ज्यादा हूँ ....आईये अपनीचेयर चुनिए !
फ़ार्म में हैं इन दिनों :)
अरबी के पत्तों को छोड़ कर बताइए ,बनाने की विधि सहित !
जवाब देंहटाएंजी ललचा गया ।
जवाब देंहटाएंbahiya aapne to muh me pani la diya, aisa post na likha kariye, aap to hain ghar par jab man kiya banwa ke kha liya, lekin tanik hamara bhi khyal rakhiye, hum kaise khaenge.........
जवाब देंहटाएंपंडित जी,
जवाब देंहटाएंहमरी माइ त बनारसी हैं अऊर रिहाइश मिरज़ापुर की..हम ठहरे ठेठ बिहारी..इसलिए ई सब ब्यंजन को आपने जो पाँच सितारा कहा है वो इनका तौहीन है, क्योंकि हमरे अनुसार तो यह व्यंजन यदि तारांकित किए जाएँ तो इनकी गिनती छः से शुरू होनी चाहिए, मेरी इस बात को रेखांकित कर लें... क्योंकि एक बार एक प्रसिद्ध पाँच सितारा होटल में टुडे’ज़ स्पेशल में इनमें से तीन ब्यंजन तो मैंने अपनी आँखों से देखा है.
अब मुँह में पानी की बाढ रुक नहीं रही..अनुमति दें. रेसिपी न सही फोटो तो होनी ही चाहिए थी.
अरे ! जब मैंने पोस्ट का शीर्षक पढ़ा तभी सोचा कि देखूं रिकवच के बारे में लिखते हैं कि नहीं... आपने तो इसकी याद दिलाकर मुझे भी नास्टेल्जिक कर दिया. मेरी बड़ी भाभी (चाचा की पतोह) बहुत अच्छा बनाती हैं इसे और मैं अरुई के पत्ते से गले में खसुअहट होने के बाद भी चटखारे ले-लेकर खाती थी. दाल का दूल्हा बचपन में खाया था, अम्मा बनाती थीं. अब तो इतने दिनों से गाँव ही नहीं गयी. बरसात में रिकवच बहुत याद आता है.
जवाब देंहटाएंपढ्कर ही मुंह में पानी आ गया।
जवाब देंहटाएंअब देखते हैं कि आप के शिव भैया किस तरह लपेटते हैं :)
जवाब देंहटाएंभोजपुरी+अवधी+खड़ी - बोलियों की त्रिवेणी हो गई !
इन व्यञ्जनों में एक खास बात दिखती है - रोज के खान पान के तत्त्व लेकर ही पकवान बनते हैं। ये नहीं कि काजू पेस्ट चाहिए तो काश्मीरी केसर ...
@ दाल का दूल्हा - कहाँ से अजीब सा नाम ले आए! इसे दलपीठा या दलपिठ्ठा कहा जाता है।
भाऊ अगर टहलते हुए यहाँ आएँ तो रिकवच या रिकवँच शब्द की व्युत्पत्ति बताएँ।
इन व्यंजनों की फाइव स्टार में डाल दिया जाय तो उनके यहाँ भी कुछ अच्छा खाने को मिलने लगे :)
जवाब देंहटाएंआज गाना सुन रहा था तो किसी गाने के पहले एक लाइन थी 'माँ के हाथ की सूखी रोटी भी पाँच सितारा के खाने से अच्छी होती है'. मैंने सोचा 'रोटी भी' से क्या मतलब है 'होती ही है'. और फिर आपने जिन व्यंजनों का नाम लिया है ये तो पेटेंट कराने वाली रेसिपीस हैं. ऐसे ब्लॉग पर छापिएगा तो कौनों कूक पेटेंट करा लेगा रिकवच को 'रिकियाओनों पल्सियस कोलोकसिया रैप' टाइप्स नाम दे के.
पढ़भर लेने से स्वाद आ जाता काश। बिना भोज कराये पोस्ट पूरी न मानी जायेगी।
जवाब देंहटाएं@अली सा -आप तो फोन पर बतियाते रहते हैं ..बता दूंगा !
जवाब देंहटाएं@ संवेदना ,हाँ भाई फोटो की कमी तो हमें ही अखरी है ,खेद प्रकाश कर लिए थे
आपकी ननिहाल /बनारस मिर्ज़ापुर की है --हमारी और समीर लाल जी की ससुराल ....
फिर काहें न इन व्यंजनों से पुरानी जन पहचान हो !
@मुक्ति ,बनारस आ जाईये ,खूब खिलाएगें ,भले ही गला कट जाय ..हा... हा ..सचमुच कभी कभी गला काटता है अगर ठीक व्यंजन विधि न अपनाई गयी हो -आपने अरुई ...ठीक लिखा !
@गिरिजेश जी ,मुझे भी दाल का दूल्हा कुछ जमता नहीं मगर क्या करें ये मिर्जापुर वाले यही बोलते हैं ....इसका भी कोई राज होगा ....मगर पिट्ठा पिट्ठी में मूंग या उड़द की दाल होती है इसमें केवल आंटा! दलफरा श्याद ज्यादा उपयुक्त हो !
@अभिषेक जी ,रिकियाओनों पल्सियस कोलोकसिया रैप' हा हा मगर ये किसी डांस जैसा नाम ज्यादा लग रहा है
@प्रवीण जी ,बनारस आना होगा जीमने के लिए ...कब आ रहे हैं ?
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जवाब देंहटाएं.
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पूर्वांचल में रहने के दौरान यह सब व्यंजन चखे हैं मित्रों के घरों में... वाकई अलौकिक स्वाद है इनका... नाम आपकी आज की पोस्ट ने दोबारा स्मरण करा दिये...
आभार!
...
सारे ही नाम पहली बार सुने हैं ...
जवाब देंहटाएं" दाल का दूल्हा " को राजस्थान में दाल ढोकली कहते हैं , आटे के विभिन्न प्रकार के आकार के अलावा आटे में बेसन का मसाला भरकर उसकी गोलियां बनाकर भी डालते हैं ....
" रिकवच " शायद अरबी की पत्ते के पकौड़े या कही कही पतौड़ा भी कहा जाता है ...मां बनाती रही है ...बस नाम ठीक से याद नहीं ...
ये ठीक ही है कि पुरानी पीढ़ी के बनाये व्यंजन फाईव स्टार होटल में कम तेल मसालों के साथ अजीबो गरीब नाम से परोसे जा सकते हैं ...
अच्छी लगी पोस्ट ...चित्रों की कमी अखरी ...
पहली बार ही सुने हैं ये सब नाम, पर अरबी के पत्तों के पतोड़े बहुत खाये हैं।
जवाब देंहटाएंइन सबकी अगर बनाने की विधी भी मिल जाती तो मजा ही आ जाता। इधर ही कोशिश कर लेते, पूर्वांचल जाने का इंतजार न करना पड़ेगा।
अभी नया व्यंजन सीखा है वो है "दाल ढ़ोकली" गुजराती व्यंजन है पर स्वाद लाजबाब है।
ये व्यंजन ऐसे हैं जिन्हें खाने के लिए धनी हैना जरूरी नहीं. अच्छा पांच सितारा वालों की नज़र नहीं लगी.
जवाब देंहटाएं@ अभिषेक ओझा
जवाब देंहटाएंरिकियाओनों पल्सियस कोलोकसिया रैप
हा, हा, हा ...
धुनफीताबन्दी और दीमाकृषि अभी पढ़े कि नहीं?
@ अभिषेक ओझा
जवाब देंहटाएंरिकियाओनों पल्सियस कोलोकसिया रैप
हा, हा, हा ...
धुनफीताबन्दी और दीमाकृषि अभी पढ़े कि नहीं?
ये सारे व्यंजन(कुछ सब्जियाँ-अरबी के पत्ते वाली-अरबी को हमारे यहां कोचई कहते हैं) हमारे 36 गढ में भी बनती हैं।
जवाब देंहटाएंबाकी दाल में आटे की छोटी-छोटी लोई डाल कर बना हुआ व्यंजन राजस्थान में बनता है उसे दाल ढोकली कहते है।
बढिया व्यंजन विवरण रहा
इ सुबह सुबह कहाँ से इत्ती खुसबू का झोंका आई के हम का हेरान किये रई.... कौनू हींग ,लहसुन, मर्चा का तड़का लगी है हमका......इ लो अब समझ पड़ी ...इ तो यहाँ गोइंठा/फरा की तैयारी हो रई है
जवाब देंहटाएंregards
अभिषेक जी ने सच ही कहा है. अच्छा किया आपने जो रेसिपी नहीं दी... वरना तो सच में कोई कुक पेटेंट करा लेगा. वैसे भी इटली का पास्ता अपने 'दाल के दुल्हे' जैसा ही होता है और मोमोज 'फरा' जैसा ... नहीं????
जवाब देंहटाएंकलकत्ता आकर कौन नहीं फंसा? अपनी तरफ बंगाल के काले जादू के बारे में कितना कहते हैं लोग. मुझे देख कर भी कोई 'मखाता' यह आज पहली बार सुना/पढ़ा...:-)
जवाब देंहटाएंपूर्वांचल के व्यंजन भले ही टिटिम्मा करके बने लेकिन उनमें किसी वैल्यू ऐडीशन की ज़रुरत नहीं है. सगपईता (जिसे सपहिता भी कहा जाता है) हो या फिर नकदावा (जिसे लखदावा भी कहा जाता है) और या फिर गोइंठा, सब एक से बढ़कर एक हैं. अपनी तरफ जो करेला की या बैंगन की कलौंजी बनती है वो किसी पाँच सितारा होटल के किसी शेफ का बाप भी नहीं बना सकता. और छोड़ दीजिये गाँव में होने वाले भोज में जो कुम्हड़े की सब्जी बनती है, और उसके साथ जो कचौड़ी बनती है, वह विश्व में कहाँ मिलेगी? ऊपर से ये कि कुम्हड़े को 'चैला' से घोंटा जाता है. जिसे हेल्दी फ़ूड कहते हैं वह शायद पूर्वांचल से बढ़िया मैंने कहीं नहीं देखा.
अभिषेक का कहना ठीक है. इन सब व्यंजनों का पेटेंट नहीं कराया गया तो ऐसा न हो कि एक दिन मैकडोनाल्ड अपने नाम से करवा ले.
और यह जानकार बढ़िया लगा कि आपने पहली बार किसी कुमार (मेरा मतलब शिवकुमार से है) के लिए पोस्ट लिखा...:-)
अब हिंदी के इस कमेन्ट को अपनी भाषा में पढ़िए...:-)
हे भईया, अब देखइ वाली बात ई बा कि कलकत्ता आइ के, के नाहीं फंसा? अइ अपने तरफ बंगाल का काला जादू का किस्सा-किहिनी कम सुना थ~? अउर आजि पहिली बार सुना कि हमहूँ के
देखि के केउ मखा थ...:-)
अई, अपने तरफ के खाना में चाहे जेतना टिटिम्मा भले बा लेकिन ओहमें कौनउ भैलू ऐडीशन का ज़रुरत नहीं बा. सपहिता होइ, लखदावा होइ औ चाहे गोइंठा होइ, सब एक से बढी का एक
हैनि. अइ इहइ देख~~कि अपने तरफ जौन करइला और भांटा का कलौन्जी बन~~ थ~~ऊ.................:-)
@गिरिजेश जी
काहे भइया? हम हर चीज के लपेटि लेब अइसन काहे सोच~~ थय~~?...:-)
मैने तो किसी का भी स्वाद नही चखा सिवाबथुये के साग के\ अर्बी के पत्तों के भी हम लोग बेसन से पकौडे या पतेहर बनाते है। मुझे इन रेसेपी की पूरी जानकारी चाहिये ताकि बना कर बैकुन्ठ प्रस्थान कर सकूँ। एक पोस्ट मे सभी रेसेपी के बनाने की विधी लगा दें बस नही तो हमे आपके घर आना पडेगा और माता जी को कितना कष्ट उठाना पडेगा? हम पेटू है। बहुत बडिया पोस्ट है। धन्यवाद}
जवाब देंहटाएंरिकवच, अरबी के पत्तो को उल्टा रखे, पहले से चना दाल भीगा कर नमक, मिरच, खटाई, के साथ बारीक पेस्ट बना ले, इस पेस्ट को अरबी के उल्टे पत्ते पर लगाये, ऐसे ही 4 /5 पत्ते की कह बना कर रोल बना कर धागे से बांध ले, पानी मे ढेर सारा इमली का पत्ता /नीबु का सत् डाल कर उबाला, इस पानी के बरतन पर चलनी मे पत्तो का रोल रख कर भाप मे पकाये, पकने पर ठंडा कर तेज चाकू से स्लाइस काटो, कटी स्लाइस के दोनो तरफ चने का पेस्ट लगा कर सरसो तेल मे शैलो फ्राइ करे, ब्राउन होने पर ईमली की चटनी के साथ सर्व करे
हटाएंनिर्मला जी आ जाईये न प्लीज ..हम इंतज़ार करेगें ..हाँ रेसिपी मेल करेगें तनी व्यस्त हैं !
जवाब देंहटाएं@शिव भाई ,
जवाब देंहटाएंअरे वाह मर्दवा तू तो बिल्कुलै नाई बदलअ हो कलकत्त्वा जायिके ..आज करेजवा जुड़ायिगे ....(खडी -वाह शिवकुमार भाई आप तो बिलकुल भी नहीं बदले कोलकाता जाकर !
मनाये रहिये गुलजार गंज -और हाँ करेला क कलौजेई त सचमुचई जान मारिले हो और हाँ कोहड़ा क सब्जी क पाक विधि, दबैला स ओकर पेस्ट ..वाह ..
अब ज्यादा न बतियाब ..मोहेम पानी भरिग ...हाँ पेटेंट वाली बात बिकुल ठीक है ! सहमत ! मुला करेगा कौन ?
@मुक्ति -बढियां साम्य ढूंढ निकाला आपने-दिटटो!मोमो के अन्दर कुछ भरा होता है न ?
इतना सब हो गया और मन्ने खबर तक नईं....ओय होय.....। पोस्ट का शीर्षक पढ़ लिया था पहले लेकिन सोचा कि बाद में पढ़ता हूँ फुर्सत से....और इसी बाद बाद में.....अब पता चला कि मिर्जापुर से होते हुए...गोंड़ा बहराइच....फूलपूर...होते होते कहानी पूर्वांचल घूम रही है :)
जवाब देंहटाएंमजा आ गया जी इस पोस्ट से तो। सगपइता....गोंइठा.....फरा....ये तो अपने यहां का स्पेशल आइटम है जी....अच्छा हुआ पूर्वांचल के इस खास रेसिपी पर कोई पंचतारा वालों की नजर नहीं पड़ी । अभिषेक जी का दिया इस्पेशल नाम तो मजेदार लगा...एकदम रापचीक।
और शिव जी ने भी क्या खूब याद दिलाया.....चइला....।
मस्त पोस्ट है जी....एकदम मनमाफिक।
टिटिम्मा....इस शब्द का अक्सर उपयोग मेरे चचा जी करते है ... कहते हैं.....मसाला थोड़े ही डालो...ज्यादा टिटिम्मा करोगे तो बगद जाएगा :)
जवाब देंहटाएंmuh mein paani aa gaya.Desi khane kee baat hi alag hoti hai.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंअरे वाह, यम यम। मेरे मुँह में तो पानी आ रहा है। जानकारी के लिए शुक्रिया।
…………..
पाँच मुँह वाले नाग देखा है?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
हमको तो व्यंजनों के बारे मे पढते ही स्वर्ग प्राप्ति की अनुभूति हो रही है, असल में खाने पर तो वाकई यहीं स्वर्ग मिल जायेगा.
जवाब देंहटाएंदाल का दूल्हा तो हमारे इधर बनने वाली दाल ढोकली ही है इसमे शुद्ध देशी घी डालकर खाते ही स्वर्गानुभुति प्राप्त होती है.
आज हमने फ़रमाईश भी करदी है, पर अफ़्सोस हमे स्वर्ग नही मिलेगा.:) क्युंकि हमे इसे बिना देशी घी डाले ही खाना पडेगा.
रामराम.
ताऊ ,राम राम ,हालचाल ठीक है ? और ई का बात कह दिया आपणे ...सच्छी दाल की धोक्ली को बिना खालिश भैंस के घी में डुबो डुबो के तर किये कहाँ परमानंद की प्राप्ति ?
जवाब देंहटाएंइन दिनों काहे परमानद की राह छोड़ दिए हो ?यावत् जीवेत घृतं पीबेत...भूल गए क्या?
अरविन्द भैया, मुंहवा में पानी आ गईल हो. एक त उमर क तकाजा अऊर दूसरका एतना लम्मे आ गईलीं सभे की अइसन लजीज घर गांव क व्यंजन मिलबे ना करेला. चला पढिये के मन मस्त हो गईल. बहुते धनबाद तहरा के.
जवाब देंहटाएंलगता है भाभी जी का is लेखन मे सहयोग नही मिला है अन्यथा इस के बनाने की विधि पर भी प्रकाश डालते एक बात और यह दाल का दुल्हा नही बल्कि दालि मे के दुल्हा ठेंठ भोजपुरी भाषा मे है यह अब वास्तव मे पांच सितारा आज के सन्दर्भ मे हो गया है क्योन्कि दाल खुद ही फ़ाइव स्टार हो चुकी है वैसे यह मूल रूप से कोई व्यन्जन नही है आलसी लोगो द्वारा इजाद की हुई दाल रोटी को ही अलग अलग ना बना कर एक ही मे किसी तरह लपेट कर बनाने का एक फ़ास्ट फ़ूड है लेकिन गर्मागर्म ही खाया जा सकता है बनने के बाद तो कुछ अन्तराल के बाद इसे निगल पाना कठिन हो जाता है यह लपसी अवलेह बन जाता है इस व्यन्जन की फ़र्माइश बहुत ही कम होती है यह रन्डूओ व विद्यार्थी वर्ग मे ही झटपट बनने के कारण इस वर्ग मे ही पसन्द की जाती है जहा तक मेरी निजी राय है अभी अनेक रत्न व्यन्जनो के है भाभी जी का सहयोग लीजिये
जवाब देंहटाएंशिव जी का नाम यहाँ खेंच लाया ...शिव जी तो नहीं मिले मगर यहाँ तो पार्टी हो गयी...
जवाब देंहटाएंलगता है खाने पीने के खूब शौक़ीन हो गुरुदेव !
बिना तैयारी के लिखी इस पोस्ट को पढ़ के, सुबह सुबह मुंह में पानी आ गया , इनसे मिलते जुलते कई स्वाद याद आ गए...मगर यहाँ कौन बनाये बहुत झंझट है .. :-)
खाना खुद बनाये बड़ा मज़ा आता हैं जब कोई डिश परफेक्ट बनती हैं केवल रेसीपी की बात करना बेकार होता हैं !!!! ज़रा बना कर बताये कैसी बनी
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