शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

प्लीज ,कोई मुझे तफसील से समझायेगा कि यह पुरूष मानसिकता क्या होती है ?

अपनी एक उद्विग्नता आपसे बांटने की ध्रिष्टता कर रहा हूँ -मेरे एक ब्लॉगर मित्र ने मुझ पर आरोप लगाये हैं कि मैं पुरूष मानसिकता से ग्रस्त हूँ ! मेरी हताशा भरी पीडा यह है कि पुरूष मानसिकता की अवधारणा (यह जो कुछ भी है ) मुझे पूरी तरह बुद्धिगम्य नही हो पाती -क्या सचमुच ऐसी कोई मानसिकता होती भी है या फिर यह कुछ नारी वादी सक्रियकों का मानसिक फितूर है /जुमला है /फिकरा है /फ्रेजहै -बात का बतडंग है ? कोई कृपा कर मुझे बताएगा कि आख़िर यह पुरूष मानसिकता भला है क्या ? और फिर यदि किसी ऐसी मानसिकता का वजूद है भी तो क्या कोई नारी मानसिकता भी होती है -या फिर पुरुषों की यह उदात्तता है कि उन्होंने ऐसा कोई जुमला कभी बुलंद नही किया !

मैंने अपने मित्र से हताश परास्त होकर अंततः कहा कि मैं पुरूष हूँ तो फिर मानसिकता भी तो पुरूष की ही रखूंगा अब नारी मानसिकता भी कैसे रख सकता हूँ -मुझे जो मैं हूँ उसके विपरीत कुछ बनना कभी आया ही नही ! सच कहता हूँ यह जुमला मैंने कर्कश /कर्कशा आवाजों में बस इसी हिन्दी ब्लागजगत में ही सुना और अब तो सुन सुन कर कान पक गए हैं ! इस एक जुमले के चलते हिन्दी ब्लॉग परिवेश कुछ कम असहिष्णु नही हुआ -वैमनस्य ,तिक्तता तारी होती गयी है यहाँ ?!

मैं बार बार और अब तो भोंपू लगा कर बोलता हूँ कि नर नारी में कोई इक दूजे से बढ़ चढ़ कर नही हैं -अपने अपने संदर्भों में दोनों ही बढ़चढ़ कर हैं -मगर समाज में उनके रोल रिवर्जल को लेकर मेरी कुछ गहरी आशंकाएँ ,(अन्तिम मत नही ) जरूर हैं .पहनावे को लेकर भी कोई वर्जना नही पर उनके जैवीय संदर्भों को जरूर देखा जाना चाहिए -तो यह सोच क्या पुरूष मानसिकता का परिचायक है ? क्या पुरूष मानसिकता का फतवा मात्र कुछ अतिरेकी ,आपवादिक या रुग्ण मनोवृत्ति की ही देन तो नही है ? जो पूरे समाज में एक विकृत सोच के प्रसार के लिए उद्यत है ? क्या हम मिल जुल कर एक ऐसे समाज को नही मूर्त कर सकते जिसकी नींव परस्पर आदर भाव,एक दूसरे के प्रति सम्मान और सहिष्णु भाव पर आधृत हो ?

मैं विज्ञान के परिवेश में पला बढ़ा हूँ ,जो चीजें मुझे समझ में नही आतीं सीधे स्वीकार करने में मुझे कभी कोई हिचक नही होती ! भले ही लोग मुझे पिछड़ा ,गैर संवेदनशील या कुछ और भी समझें -मुझे पाखण्ड का आवरण कभी नही सुहाया ! तो मित्रो बहुत खुले मन से और पूरी विनम्रता से मैं आज यह सवाल आपके सामने रख रहा हूँ -मुझे समझाएं कि यह पुरूष मानसिकता क्या है ? एक विग्यानसेवी होने के नाते मैं इस गुत्थी का एक वस्तुनिष्ठ विश्लेषण चाहता हूँ -बोले तो नीर क्षीर विवेचन ताकि मैं उस विश्लेषण के आईने में यह परख सकूं कि क्या मुझ पर जो पुरूष मानसिकता से ग्रस्त होने की तोहमत लगाई जा रही है वह कहाँ तक उचित है ?
क्या आप मेरे लिए अपना कुछ समय जाया करेगें ?

36 टिप्‍पणियां:

  1. पता नही? वैसे मैने भी कई बार सुना है।

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  2. मेरा अनुमान है कि यह जुमला पश्चिमी उदारवाद के अगले चरण (नव उदारवाद) में जब लैंगिक समानता और नारी सशक्तिकरण के आन्दोलन ने जोर पकड़ा होगा तब पुरुष प्रधान समाज की उन प्रवृत्तियों को शब्द देने के लिए गढ़ा गया होगा जो इस आन्दोलन को चुनौती दे रही होंगी।

    अंग्रेजी में male chauvinism का कमजोर हिन्दी अनुवाद मान सकते हैं इसे। और कदाचित्‌ इसीलिए इस शब्द के प्रयोक्ता इसका अर्थ अलग-अलग लगाते रहते हैं।

    मेरे हिसाब से जो मानसिकता आपत्तिजनक है उसे ‘पुरुषवादी सोच’ कहना चाहिए, न कि पुरुष मानसिकता। ‘पुरुषवादी मानसिकता’ भी एक बेहतर विकल्प हो सकता है। आपका यह कहना बिल्कुल सही है कि एक सर्वथा स्वस्थ और सामान्य ‘पुरुष’ की मानसिकता भी पुरुषों वाली ही होनी चाहिए। लेकिन मुझे लगता है कि आपके/आपकी ब्लॉगर मित्र का आशय पुरुषवादी मानसिकता से रहा होगा जिसके अन्तर्गत समाज में पुरुष की प्रधानता और स्त्री को दोयम दर्जे पर रखने की पैरवी की जाती है।

    मुझे विश्वास है कि आप जैसा विज्ञानप्रेमी और उदारमना ब्लॉगर ऐसी सोच कतई नहीं रख सकता है। जिसने आपके बारे में ऐसा सोचा उसे आत्मपरीक्षण करना चाहिए। शायद उसे ‘पुरुषविरोधवाद’ का रोग लग चुका है।

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  3. पुरुष या नारी मानसिकता कुछ नहीं होती। हाँ पुरुषवादी और नारीवादी मानसिकताएँ हो सकती हैं। पुरुषवादी या नारीवादी होना बुरा है। क्यों कि ये मानिसकताएं एक दूसरे पर आधिपत्य की बात करती हैं।
    क्यों नर का नारी पर और नारी का नर पर आधिपत्य हो? क्यों वे प्रेम से जीवन निर्वाह नहीं कर सकते।

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  4. मुझे तो आप भले से इन्सान लगते हैं. जैसे हैं बहुत अच्छे हैं, वैसे ही बने रहिये, और गर्व के साथ.

    हिन्दी पट्टी कुएँ के मेंढ़कों से पटी पड़ी है. बंधी-बंधाई सोच पर चलने वाले विद्वानजन स्वयं किसी काम के नहीं, दूसरों में मीन-मेख तलाशना इनका प्रिय शगल है. ध्यान मत दीजिये.

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  5. हा हा! ए पिक्चर इज़ वर्थ अ थाऊजंड वर्ड्स!
    इस कडी (http://capozzi.ca/mario/Artwork/True%20Romance.jpg) को अपने ब्राऊजर में खोलिये समझ में आ जाएगा मेल मेंटालिटी क्या होती है.
    (आपको अपने नितंबमय लेख भी याद आ जाएंगे और ये भी समझ में आ जाएगा की स्त्रीयां वैसे लेख क्यों नही लिखतीं! ईज़ी लो भई.)

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  6. पुरूष मानसि‍कता शब्‍द दरअसल नारीवाद के उभार के साथ प्रचलन में आया है। जैसे पूँजीवाद में शोषक और शोषि‍त होते हैं और शोषक की मानसि‍कता का शोषि‍त समाज वि‍रोध करता है, ठीक उसी तरह नारीवाद पुरूष मानसि‍कता का वि‍रोध करता है। यह पूरी तरह जेंडर वि‍मर्श का मसला है।
    ज्‍यादातर लोग जेंडर और सेक्‍स में फर्क नहीं करते हैं। वास्‍तव में जेंडर स्‍त्री-पुरूष के सामाजि‍क और सांस्‍कति‍क छवि‍ का द्योतक है जबकि‍ सेक्‍स उसकी जैवि‍क और प्राकृति‍क छवि‍ का द्योतक। सेक्‍स की असमानता से कि‍सी को परेशानी नहीं है। परेशानी है सेक्‍स के आधार पर की जाने वाली जेंडर की असमानता से यानी पुरूष होने के कारण वह स्‍त्री को बल, बुद्धि‍ और तमाम क्षेत्रों में अपने से हीन मानता है। यही पुरूष मानसि‍कता है।

    पुरूष मानसि‍कता से ग्रस्‍त आदमी ऐसा नहीं लि‍ख सकता-
    क्या हम मिल जुल कर एक ऐसे समाज को नही मूर्त कर सकते जिसकी नींव परस्पर आदर भाव,एक दूसरे के प्रति सम्मान और सहिष्णु भाव पर आधृत हो ?
    इसलि‍ए आपपर ये आरोप गलत है:)

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  7. पुरुष मानसिकता यह है कि स्‍वयं को बुद्धिमान और स्‍त्री को बुद्धिहीन मानना। पुरुष को भोगवादी और महिला को त्‍याग की प्रतिमूर्ति मानते हुए स्‍वयं के लिए स्‍वतंत्रता से भी बढकर स्‍वच्‍छन्‍दता की वकालात और महिला के लिए पूर्ण बंधन। हमारा भारतीय समाज परिवार प्रधान है, यहाँ स्‍त्री और पुरुष की मानसिकता नहीं है अपितु यहाँ माता और पिता की भूमिका है। वर्तमान में परिवार संस्‍था को तोडने का प्रयास किया जा रहा है इसी कारण माता-पिता के स्‍थान पर पुरूष और स्‍त्री आ गए हैं। त्‍याग के स्‍थान पर भोग आ गया है। इन सभी से निकली है पुरुष और स्‍त्री मानसिकता। हमने दोनों की सत्ता को प्रथक मान लिया है, जब कि ये दोनों एक हैं। पुरुष में काम गुण की प्रधानता है तो स्‍त्री में ममता की। अति काम को गुण के स्‍थान पर दोष की संज्ञा दी है और इसे सतत संस्‍कारित करने पर बल दिया गया है। लेकिन दुर्भाग्‍य से वर्तमान में पुरुष को संस्‍कारित करने के स्‍थान पर महिला में भी काम दोष की वृद्धि के प्रयास किए जा रहे हैं जिससे सम्‍पूर्ण समाज भोगवादी हो जाए। यह बाजार वाद को बढावा देने का परिणाम है यदि हमने बाजारवाद के स्‍थान पर परिवारवाद को महत्‍व दिया होता तो आपका प्रश्‍न नहीं होता।

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  8. पुरुष मानसिकता प्रयोग गलत होने के साथ साथ एक तरह से पूरे 'नर समाज' को एके लौरी हाँकने का धृष्ट प्रयास (या षड़यंत्र)है। सही प्रयोग 'पुरुष-वर्चस्व-वादी' है, जो स्वत: स्पष्ट है।


    अल्ट्रॉ फेमिनिस्ट तरह के लोग ऐसे प्रयोग करते हैं। उनकी चले तो 'नर' या उस टाइप के सारे जीवों का समूल विनाश कर दें। दूसरे अतिवादी प्रयोगों की तरह इनकी भी उपेक्षा करनी चाहिए।

    चूँकि आप ने प्रसंग नहीं बताया, इसलिए मेरी पोस्ट उससे जोड़ कर न देखें। आजकल मैं ब्लॉगों को पढ़ नहीं पाता।

    स्त्री पुरुष की बराबरी, एक दूसरे के प्रति सम्मान भाव और लिंग जनित सीमाओं या कमियों के समाहार का मैं समर्थक हूँ लेकिन इतना भी नहीं कि पुरुष को नारी या नारी को पुरुष हो जाने का नारा दे डालूँ।
    दिल बहुत नाजुक चीज है, इसलिए इस पर बहुत सी बातों या कुबातों का जोर न डालें। लेखन में ईमानदार रहें, बस्स।

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  9. आपका प्रश्न बडा सामयिक है. पर आप पहले ये बताईये कि आप पर यह तोहमत मित्र ने लगाई है या मित्रा ने? उसके बाद हम कुछ फ़ैसला दे पायेंगे?:)

    रामराम.

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  10. अरे भाई साहब...वही जो स्त्रियों में अधिकतर पाई जाती है:)...:)....:)

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  11. हिंदी ब्लॉगिंग में मानव मष्तिष्क और मानवविज्ञान की समझ रखने वाले नहीं के बराबर हैं, मैंने कभी किन्ही लोगों से अनुरोध किया था की डेसमंड मौरिस और एलेन व बारबरा पेज की पुस्तकें पढ़ कर इस बारे में कुछ और जानकारी लें, पर लोगों को समस्याओं का मैकेनिस्म जानने से सरोकार नहीं है, अपना रटा-रटाया राग भर आलापना है.

    अगर आप समस्या के मूल कारणों को नहीं समझेंगे तो कितना ही चीख-चिल्ला लें, समाधान की तरफ एक कदम भी नहीं बढा पाएंगे.

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  12. मिश्र जी, जब आपको कोई स्कौलर बंधु इस सवाल का जवाब दे दे...तो कृपया एक विस्तृत आलेख ब्लौग पर लगाइयेगा...हम भी इस प्रश्न से सदियों{?} से विचलित हैं।

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  13. प्रश्न विकट है...आपके लिए तो जान हाजिर है, पर इस सवाल का जवाब....:)

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  14. क्या कहे ?हम भी पुरुष है ....शायद कोई ओर टॉर्च डाले ?

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  15. हम गारण्टी लेते हैं कि आप तथाकथित पुरुष मानसिकता से ग्रस्त नहीं हैं ,

    अगर इतने से काम न चले तो बताइयेगा, फ़िर पुरुष मानसिकता किसी से पूछ कर बता देंगे !

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  16. या फिर पुरुषों की यह उदात्तता है कि उन्होंने ऐसा कोई जुमला कभी बुलंद नही किया !

    बस यही सही है. बाक़ी सब फ़िज़ूल.

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  17. समलैंगिकता की स्वीकृति के चलते यह मानसिकता बदलने ही वाली है.

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  18. आपको व्यक्तिगत रूप से तो नहीं जानती,या फिर यह बात आपने किस परिपेक्ष्य में कही है,यह भी नहीं जानती,पर आपके इस आलेख को पढ़कर मन में जो बात आई है,वह आपसे कहना चाहूंगी....

    आप या हम जो भी करते हैं,वह सही है या गलत ,इसका प्राथमिक निर्णायक हमारी आत्मा,हमारा विवेक होता है....वह यदि जगा हो तो किसी भी गलती पर क्षमा करना नहीं जानता...वह यदि आपको कहता है कि आप जो कर रहे हैं,वह सही है...तो निर्भीक हो जाइये और निश्चिंत होकर कर्म निष्पादन कीजिये...हाँ यदि एक पूरा समूह आपको सचेत करता है कि अमुक कार्य सही नहीं तो उसे भी अपनी विवेक की कसौटी पर परखिये....लेकिन यदि यह लगे कि सामने वाला स्वयं ही किसी कुंठा से ग्रसित है तो उसकी बात पर ध्यान दे आहत होना या अपने कर्म से विमुख होना कदाचित भी उचित नहीं....

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  19. चंद नारियों की झंडाबरादारी करने वाले/वालियों की दुष्प्रवृति का परिचायक है ये आरोप। और जितने भी आप जैसे शीर्ष चिठ्ठाकार हैं उन सबकी इज्जत खराब करने की मुहिम चलाई जा रही है। आप सब बुढ्ढों को एक साजिश के तहत यहां से बाहर करने की तैयारी है जिससे इनका यहां निर्बाध राज चल सके।

    इस मुहिम मे गंदी टिपणि करना, किसी दुसरे के ब्लाग पर गंदी टिपणीयां करना करवाना, किसी भी अनाम ब्लाग से गंदी और चरित्र हनन करने वाली पोस्ट लिखना..इनका शगल है। लोगों को बरगलाना।

    आप यकीन मानिये कि ये कुंठित मना लोग/लुगाईयां है। इनका कुछ नही हो सकता। ये अपने आपको नारी के हितेषि/हितेषियां समझते हैं पर ये एक नम्बर यानि अब्बल दर्जे के नारी के दुश्मन हैं।

    यहां और भी लोग लुगाईयां हैं। कौन इनके जैसे पगलाये हुये हैं? कोई बतायेगा मेरे को? इनका तो बस सिर्फ़ एक ही नारा है कि सब बुढ्ढे बुजुर्गों को बाहर करो जिससे इनकी तथाकथित सत्ता बनी रहे।

    जय ब्लाग युवक मोर्चा" जिंदाबाद..जिंदाबाद..जिंदाबाद।

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  20. Purushon ki kisi bhi soch- jo mahilaon ko apne anukool na lage, ko nakarane ki pravritti.

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  21. शाविनिज़्म एक सामान्य फ़्रेंच शब्द है, जो की वर्चस्व या सर्वेसर्वा होने को दर्शाता है । अधुनातन काल से ही बाहुबल या अन्य कारणों से पुरुषों का आधिपत्य रहा ! यहाँ तक की स्त्री को धन की सँज्ञा या उपमा दी गयी । कबीलाई युग में विजेता स्त्रियों को लूट कर ले जाया करता था ! सो, समाज में पुरुष वर्चस्व को ही मेल शाविनिस्ट कहते हैं । यह गुज़रे ज़माने की बातें हैं, जिसे १९६० के दशक में यूरोप में किन्हीं स्त्री मँच से उठाया गया ( देश का नाम स्मरण नहीं आ रहा ) !
    सो, गाहे बगाहे फ़ैशन के तौर पर सही, यह ज़ुमला उछाला और लोका जाता रहा है,
    पर बँधु अब जरा यह बताओ कि, तुम्हरे पाले में यह किसके बाउन्डरी से गिरा.. और यह भी कि, तुम्हरे अँगने में इसका क्या काम है ?
    माडरेशन लगाये हो का ?

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  22. एक शब्द और इतनी दण्ड-बैठक! पुरुष मानसिकता न हुई साहित्य हो गयी। :)

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  23. Dr. Amar Kumar ji said it right - Re: मेल शाविनिस्ट !
    [ MCP = Male Chauvenist Pig is a derogatery word in West ]
    Dr. Smt. ajit gupta ji has also written well.

    और रँजना जी की बातेँ
    " आप या हम जो भी करते हैं,वह सही है या गलत ,इसका प्राथमिक निर्णायक हमारी आत्मा,हमारा विवेक होता है....वह यदि जगा हो तो किसी भी गलती पर क्षमा करना नहीं जानता...वह यदि आपको कहता है कि आप जो कर रहे हैं,वह सही है...तो निर्भीक हो जाइये और निश्चिंत होकर कर्म निष्पादन कीजिये...हाँ यदि एक पूरा समूह आपको सचेत करता है कि अमुक कार्य सही नहीं तो उसे भी अपनी विवेक की कसौटी पर परखिये....लेकिन यदि यह लगे कि सामने वाला स्वयं ही किसी कुंठा से ग्रसित है तो उसकी बात पर ध्यान दे आहत होना या अपने कर्म से विमुख होना कदाचित भी उचित नहीं...."

    भी ध्यान देने योग्य लगीँ --
    -- लावण्या

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  24. जब स्त्री मानसिकता, पुरूष मानसिकता है तो जरूर कोई नपुँसक मानसिकता भी होती होगी। लगे हाथ उसके बारे में भी पता चल ही जाना चाहिए....:)

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  25. हद हो गयी मिश्रा जी
    वैसे आप हैं तो पढ़े लिखे जो हिल गये हैं नारी मानसिकता वालों के ऐसे कथित मित्र (बड़प्पन आपका जो आप अभी भी मित्र मानते हैं) के आरोप से।
    सीधी सी बात है। आपके मित्र की जो मानसिकता है आप उसके विरूद्ध चलने का प्रयास करते दिखते है उन्हें। अब आप पुरूष हैं (शुक्र है, वरना कईयों को तो मानने से इंकार कर दिया गया है), इसलिये हो गयी पुरूष मानसिकता!
    रही बात मिल जुल के रहने की तो हमारा उनका क्या मेल? वो समझदार हैं हम …

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  26. जो पुरुष होगा तो उसकी मानसिकता भी तो पुरुष वाली ही होगी न .
    वैसे भी सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी ने स्पष्ट कर ही दिया है.

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  27. ओह तो आप मान'sick'ता की बात कर रहे है..

    वैसे आप सही है.. पुरुष मानसिकता नामक शब्द मैंने हिंदी ब्लोगिंग में ही देखा है.. और सिर्फ यही नहीं.. हिन्दू मुस्लिम, इर्ष्या, द्वेष और भी कई ऐसी चीजे देखने को मिली है.. जो मुझे पता ही नहीं थी.. सोचता हूँ पता ही नहीं चलता तो अच्छा था..

    वैसे मैंने अपनी एक फ्रेंड को कहा था नारी मुक्ति पे तेरी क्या राय है.. तो उसने कहा तु तो अपनी मुक्ति की सोच.. मेरी एक फ्रेंड् को मैंने एक हिंदी ब्लॉग पर नारी मुक्ति टाइप आर्टिकल पढाया था.. उसका रिप्लाई था.. व्हाट अ क्रेप?

    मैं भी यही कहूँगा...व्हाट अ क्रेप?

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  28. यह तो आप के लिए फ़क्र की बात है।
    बधाई हो।
    मुझे भी आये दिन घर में यह सुनने को मिलता है कि आखिर हो तो तुम भी औरत ही और मैं बहुत गर्व से कहती हूँ, जी हाँ।

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  29. मुझे तो आप निष्पक्ष ,संयत और समभाव रखने वाले व्यक्ति ही मालूम होते हैं.
    और मेरी समझ से तो आप एक सुलझे हुए बुद्धिजीवी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं.

    [पुरुष या नारीवादी मानसिकता क्या है?इस की परिभाषा और मापदंड वे ही जाने जो ऐसी बात करते हैं.]

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  30. "मेरे एक ब्लॉगर मित्र ने मुझ पर आरोप लगाये हैं कि मैं पुरूष मानसिकता से ग्रस्त हूँ"
    अगर आपके यह मित्र मित्र मनोचिकित्सक हैं तो अपने सवाल का जवाब भी उन्हीं से निश्शंक पूछ लीजिये और अगर ऐसा नहीं है तो उनकी झुंझलाहट को उनकी समस्या मानकर नज़रंदाज़ कर दीजिये.

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  31. आभार !
    मैं आप सभी का बहुत आभारी हूँ -आपके विचारों ,स्नेह से अभिभूत हूँ मैं ! आप सभी ने विषय को कई कोणों से विवेचित किया -शाब्दिक व्युत्पत्ति और सही अभिव्यक्ति के साथ ही इस सोच के उदगम और विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला -कई मित्रों ने इसे बस हलके फुल्के मजाकिया स्टाईल में भी लिया -दिल पर मत ले यार स्टाईल में -कुछ ने स्नेहभरा चुहल भी किया ! सिद्धार्थ जी ,दिनेश जी और गिरिजेश राव ने इस धारणा के लिए सही शाब्दिक अभिव्यक्ति सुझायी ! घोस्ट बस्टर ,अल्पना वर्मा जी ,स्मार्ट इन्डियन ने निजी तौर पर मुझे उत्साह भरे शब्दों की सौगात दी .जीतेंद्र भगत और डॉ श्रीमती गुप्ता ने इस विषय को व्यापक परिप्रेक्ष्यों में विवेचित किया -ई स्वामी का शरारत भरा मजाक कहाँ भूला जा सकता है ! एब इन्कांवेंती ने मेरे फेवरिट लेखक देज्मंड मोरिस की याद दिलाई -उन्होंने बिलकुल सही कहा की हमें मनुष्य के जीवन के जैवीय पहलुओं -मूल कारणों को भी देखना होगा ! रंजना जी और उन्हें उद्धृत करते हुए लावण्या जी ने मनुष्य की चेतना और विवेक का हवाला देकर सच और गलत के निर्णय की बात की ! डॉ अमर कुमार ने मुद्दे के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को सामने रखा -ज्ञान जी ने अपने कटाक्ष की चुभन को बरकरार रखा .कुछ की मासूमियत ने मुझे संस्पर्षित किया ! और भी मेरे नियमित शुभचिंतकों ने मुझे अपने विचारों से अवगत कराया ! सभी को हार्दिक आभार !

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  32. बहुत बढ़िया पोस्ट! आजके ज़माने में पुरूष और महिला में कोई फर्क नहीं है! चाहे वो सोचने की बात हो या किसी काम के बारे में हो! सब चीज़ में समान तरीके से चलते हैं महिलाएं आज! मुझे तो गर्व है की मैं एक औरत हूँ!

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  33. पुरुष है तो पुरुष मानसिकता ही होगी... बात तो सही है !

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  34. वैसे अरविन्द जी ..मुझे हैरानी जरूर है ...किसी ने कहा....... वो भी आप से ??

    strange !!!

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  35. आज की दुनिया में पुरुष बचे ही कहाँ हैं, जो पुरुष की वास्तविक मानसिकता को समझ सके. मिसाल भी दे रहा हूँ:
    * पहले के मर्द अपनी बात से मुकरते न थे, और आज दोगलेपन की हद ही दिखाई पड़ती है.
    * पहले का पुरुष मूछ में अपनी शान समझता था, पर आज मूछ ही गायब मिलती है.
    * पहले का मर्द अपनी बात से मुकरने पर मूछ मुडाने का दावा ठोकता था, पर आज के पुरुष किस चीज़ का दावा ठोकने की हिमाकत कर पाते हैं.
    * पहले का पुरुष घर की जिम्मेदारी उठाने का दम रखता था, पर आज हर किसी को कमाऊ पत्नी की आस रहती है.
    * पहले के पुरुष आठ-दस बच्चे पालने का दम रखते थे, पर आज पत्नी की कमाई होते हुए भी दो बच्चे से ज्यादा की औकात नहीं रख पाते.
    आदि-आदि
    कृपया स्पष्ट करें की आप पर आरोप लगाने वाला व्यक्ति उपरोक्त गुणों से युक्त तो नहीं, यदि है तो आरोप स्वतः निराधार है, यदि है तो बस का मुद्दा बनता है............

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