शनिवार, 13 अक्टूबर 2012

तू हाँ कर या ना कर?


अपनी  फेसबुक भित्ति पर एक प्रखर नारीवादी विदुषी ने विवाह नाम्नी सुदृढ़ सामजिक  व्यवस्था पर  कटाक्ष करते हुए लिखा "  . कल एक ब्लॉगर और फेसबुकीय मित्र ने मुझे यह सलाह दी कि .... मैं शादी कर लूँ, तो मेरी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो जायेगी :) इस प्रकार का विवाह एक समझौता ही होगा. तब से मैं इस समझौते में स्त्रियों द्वारा 'सुरक्षा' के लिए चुकाई जाने वाली कीमत के विषय में विचार-विमर्श कर रही हूँ और पुरुषों के पास ऐसा कोई सोल्यूशन न होने की मजबूरियों के विषय में भी :).." यह एक टिपिकल नारीवादी चिंतन है जो विवाह की पारम्परिक व्यवस्था पर जायज/नाजायज सवाल उठाता रहा है. यहाँ के विवाह के  फिजूलखर्चों ,दहेज़ ,बाल विवाह आदि का मैं भी घोर विरोधी रहा हूँ मगर नारीवाद हमें वह राह दिखा रहा है जहाँ विवाह जैसे सम्बन्धों के औचित्य पर भी प्रश्नचिह्न उठने शुरू हो गए हैं -और यह मुखर चिंतन लिविंग रिलेशनशिप से होता हुआ पति तक को भी "पेनीट्रेशन" का अधिकार देने न देनें को लेकर जागरूक और संगठित होता दिख रहा है . क्या ऐसे अधिकार की वैयक्तिक स्वतंत्रता की इज़ाज़त दी जा सकती है -क्या समाज के हितबिंदु इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगें ? धर्म तो विवाह को केवल प्रजनन के पवित्र दायित्व से जोड़ता है -अगर 'पेनीट्रेशन' नहीं तो फिर तो प्रजनन का प्रश्न  नहीं और प्रजनन नहीं तो फिर प्रजाति का विलुप्तिकरण तय .  क्या कोई भी धर्म और समाज या क़ानून समाजिक सरोकारों के ऊपर/अपरंच  जाकर ऐसे दिमागी फितूरों को वैयक्तिक/नागरिक आधिकारों के रूप में स्वीकृति  प्रदान कर सकता है? मामला गंभीर है और एक प्रबुद्ध विमर्श की मांग करता है.  
मैं अपने विचार यहाँ रख रहा हूँ जो समाज जैविकी(Sociobilogy)  के नजरिये से है और कोई आवश्यक नहीं कि मेरा इससे निजी मतैक्य अनिवार्यतः हो भी? अकेले मनुष्य प्रजाति में  यौन भावना का प्राबल्य या प्रजनन किसी ख़ास माहों तक सीमित न होकर सदाबहार है . हमारी नजदीकी चिम्पांजी मादा भी छठे छमासे ही हीट में आती है ..मगर मनुष्य के मामले में यह बारहोमास है .और प्रत्येक माह में अंड स्फोटन(ovulation)  के साथ ही मनुष्य -मादा के गर्भधारण की संभावनाएं बलवती हो उठती हैं -इस ग्रह पर अरबों जनसँख्या उसकी इसी अति प्रजननशीलता की ही देन है -यहाँ नारी या पुरुष किसी भी वक्त संयोग करते हैं गर्भधारण की तिथियों से दीगर भी ..... निश्चित ही मात्र प्रजनन ही मनुष्य के मामले में हेतु नहीं है कोई और भी कारक है जो जोड़े को साथ बनाए रखता है और गहन आत्मीय/यौन  सम्बन्ध ही जोड़े के लिए सीमेंट का काम करता है ..मगर क्यों यह जोड़ा सीमेंटेड होना चाहिए? इसलिए कि विद्रूप नैसर्गिक सत्य यह है कि जैव- विकास की  सीढी में न जाने क्यों प्रकृति ने मनुष्य प्रजाति की मादा को ही वात्सल्य देखभाल (पैरेंटल केयर ) का नब्बे फीसदी तक का उपहार /ठेका  देकर नारी को बिचारी बना दिया ...मनुष्य शावक पट्ठा(!) बरसों बरस तक मां  की छाती पर मूंग दलता रहता है ..दुग्धपान से डायपर बदलाव के  बहुत बाद तक भी वह मां पर पूरी /बुरी तरह आश्रित रहता है -और बाप बस उसे कभी कभार निर्मिमेष निगाहों से पलता बढ़ता देखता और औपचारिकता स्वरुप कभी कभार कुछ प्यार पुचकार करता रहता है ताकि कम से कम यह आभास तो होता ही रहे की साहबजादे उसी की औलाद हैं :-) अब सभी डी एन ऐ जांच  के लिए तो जाने से रहे ... :-) 
बच्चे  के बाप कहीं अपने दायित्वों से खिसक न लें इसलिए मनुष्य के मामले में प्रकृति ने सेक्स को और भी "सेक्सियर" -आनंददायक बना डाला -ले पट्ठे तुझे साथ रहना है तो भरपूर मजे लेता रह  और संतान की अपनी जिम्मेदारियों से  मत भाग ....मनुष्य नर  के ऊपर प्रकृति ने वात्सल्य देखभाल की  उतनी विवशता डाली ही नहीं.....न तो मानसिक स्तर पर ही और न ही शारीरिक स्तर पर ....उसके चूचक भी अवशेषी होकर सिमट सिकुड़ गए नहीं तो कम से कम प्लेसेबो दुग्धपान की राहत कभी कभार तो  बच्चे को देते ही ...... :-) 
अब उक्त परिप्रेक्ष्य में जरा सोचिये भारत ही नहीं पूरे विश्व के किसी भी भूभाग या संस्कृति में शादी एक नारी के लिए कितनी जरुरी है -मुख्यतः एक कारण से -एक तो  बच्चों के बड़ा होने तक जच्चा बच्चा  दोनों को  किसी  आपदा की स्थितियों में पुरुष का तन मन धन से तात्कालिक और दूरगामी सहयोग देना और इस तरह वंश रक्षा की निरापदता सुनिश्चित करना ....विवाह जैसी संस्था इसी जैवीय और सांस्कृतिक जरुरत को ही पूरा करती है. एक सामाजिक   संस्था के रूप में भी वह यह भी सुनिश्चित  करती है कि बच्चा पैदा कर बंदा कहीं और न सटक ले ...कुछ तो लाज भय रहेगा ...अगर मनचाहा कुदरती आनंद न भी मिल रहा हो तो बेचारा  सामजिक/कानूनी  भय और संकोच वश वैवाहिक जीवन को निबाहते रहने को अभिशप्त हो रहता है -और यह नारी के ही पक्ष में एक छुपा हुआ वरदान है . पुरुष को एक ओर गहन वात्सल्य देखभाल से मुक्त कर प्रकृति ने काम भावना को बुलंद कर दिया ताकि वह कम से कम  नारी बिचारी से जुड़ा रहे ....अन्यथा समागम के बाद उसका काम ख़त्म ..और वह बीजारोपण के लिए आगे भटक /सटक लेगा .
शादी इसलिए जरुरी है .हाँ अगर बच्चे पैदा करने का  मातृत्व बोध क्षरित हो गया लगता है (जैसा कि अभी तक नहीं है )  तो फिर विवाह जरुरी नहीं तथापि पश्चिमी देशों में यही हो रहा है -कई कई तलाक और पुनर्विवाह! नैसर्गिक इंस्टिंक्ट बस वही है -पुरुष  रुकना नहीं चाहता और नारी को वात्सल्य देखभाल से निवृत्ति नहीं है .पश्चिम में इसलिए ही आजीवन बिन व्याहे और विवाहेत्तर सम्बन्ध,तलाक  का  आंकडा बढ़ रहा है . आखिर भारत क्या चाहता है ? 

75 टिप्‍पणियां:

  1. न ना कर, न हाँ कर !
    मरें, ख़ुदकुशी कर !
    तड़पने दे, जल बिन !
    न मिल, मुस्करा कर !
    यही रस्म है,आज तक जो निभी है !
    न समझो,तो जाकर पतंगे से पूंछो !

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  2. एकाकी जीवन जिए, काकी रही कहाय |
    माँ के झंझट से परे, समय शीघ्र ही आय |
    समय शीघ्र ही आय, श्वान सब होंय इकट्ठा |
    केवल आश्विन मास, बने उल्लू का पट्ठा |
    आएँगी कुछ पिल्स, काटिए महीने बाकी |
    हो जाए ना जेल, रहो रविकर एकाकी ||

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  3. किसे के साथ रहना एक अनुभव है, क्यों उसे भी न जी लिया जाये।

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  4. हद है! मैंने विवाह की अनिवार्यता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया था. मेरा कहना बस इतना था कि "क्या विवाह जैसी महत्त्वपूर्ण संस्था को स्त्रियों के लिए मात्र आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा का आधार मान लिया जाय?"
    मेरे लिए विवाह दो लोगों के साथ रहने के निर्णय को सामाजिक स्वीकृति है. मेरे लिए विवाह एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है, जिसे निभाने के लिए प्रेम, विश्वास और ईमानदारी बहुत आवश्यक है. मैं विवाह को औरतों के लिए मात्र एक सामाजिक या आर्थिक सुरक्षा का साधन मानने के विरुद्ध हूँ...

    और आप इस बात को कहाँ से कहाँ ले गए?

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    1. जो संबंध अर्थ के आधार पर ही जोड़ना चाहते हैं, वे दहेज लोभी आर्थिक सुरक्षा क्या देंगे! सामाजिक सुरक्षा की भी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि जान खतरे में पड़ती देख सभी दुम दबाकर भाग जाना ही श्रेयस्कर समझते हैं। दोनो ही कारणों से विवाह की सहमति बेकार है। हाँ.. प्रेम, विश्वास और ईमानदारी के साथ इस गृहस्थ आश्रम का स्वाद जरूर चखना चाहिए। बिना इसके जीवन जीना, कुछ अधूरा सा छोड़कर जाना जैसा है।

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    2. @ मेरे लिए विवाह एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है, जिसे निभाने के लिए प्रेम, विश्वास और ईमानदारी बहुत आवश्यक है. मैं विवाह को औरतों के लिए मात्र एक सामाजिक या आर्थिक सुरक्षा का साधन मानने के विरुद्ध हूँ...

      डॉ आराधना के द्रष्टिकोण को समर्थन करता हूँ..

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    3. सतीश जी मगर आज के समाज का यह बड़ा सच है -नब्बे प्रतिशत नारियां पुरुष की ही गाढी कमाई से अपना गुजर बसर कर रही हैं मगर पुरुष को इसमें फख्र होता है क्योकि वे उसके वंशधरों को पालती है -प्रजाति सुरक्षा को सुनिश्चित करती है ....महिला को अगर यह भूमिका निभानी पड़े तो पुरुष के नारकीय जीवन की कल्पना सहज ही की जा सकती है .......

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  5. और प्लीज़ ! अपने इस अतिवादी "नैसर्गिक" और "जीववैज्ञानिक" आग्रहों से ऊपर उठिए. और इस भय से भी कि औरतें विवाह करना बंद कर देंगी. विवाह औरतों के लिए भी आवश्यक है, जितना पुरुषों के लिए, लेकिन इसे उनके निर्णय पर छोड़ दीजिए.
    आज से नहीं वैदिक युग से स्त्रियाँ अध्ययन और अन्य आवश्यक कारणों से अविवाहित रहती आयी हैं और तभी वे 'ब्रह्मविद्या' जैसी विद्याओं में पारंगत हो पाईं. एक-दो स्त्रियों के विवाह न करने से न सृष्टि प्रक्रिया रुक जायेगी और न ही पुरुषों के लिए 'वधुओं' की कमी हो जायेगी. तो चिन्ता मत कीजिये.
    कोई किसी स्त्री से अगर यह कहे कि प्रेम और किसी का साथ आवश्यक है, इसलिए विवाह कर लो तो बात समझ में आती है, पर सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए विवाह की सलाह देना उचित है क्या?
    और आप उससे भी एक कदम आगे बढ़ गए. आपको ये लग रहा है कि एक स्त्री के विवाह न करने से सृष्टि प्रक्रिया रुक जायेगी, तो 'नैसर्गिक' और 'जीववैज्ञानिक' तर्क देने लग गए.
    स्त्रियाँ क्या करें क्या न करें? विवाह करें न करें? करें तो कब करें? किस युवक से करें? ये सभी निर्णय उनके ऊपर छोड़ दीजिए.

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    1. @अपवाद हर जगहं रहे हैं मगर वे व्यवस्था नहीं बनाते -जिस तरह आप मेरे समाज जैविकी चिंतन को अतिवादी कह रही हैं -उसी तरह मुझे आपके नारीवादी विचार भी वैज्ञानिकता से रहित लगते हैं और जब उसपर मार्क्सवाद का तड़का भी लग जाता है तो वह कोढ़ में खाज जैसा होता है ..सारी ..मगर सच यही है!

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    2. शादी विवाह कैसे भी किसी के लिए (किसी के लिए भी )सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा का आधार हो सकती है पता नहीं.इतने बुद्धिजीवियों के समक्ष कहने में संकोच होता है ,किन्तु लगता है कि हम अभी भी विवाह को शरीर कि किसी जरूरत को पूरा करने का साधन मानने कि स्थिति से ऊपर नहीं उठ पाये.पुरुष और स्त्री एक दूसरे के पूरक हैं .मेरी पौरुषता तभी सही मानो में सार्थक है जब मुझे इसका एहसास स्त्री ने कराया. वरना अधूरा था मैं.हजारों स्त्री -पुरुष विवाह के बिना रहते हैं\रहते आए हैं.किसी प्रकार कि सामाजिक -आर्थिक समस्या उन्हे हुई हो या नहीं हुई मुझे नहीं पता .किन्तु एक बात भलीभांति जानता हूँ कि उनमें से किसी ने भी अपनी पूर्णता को प्राप्त नहीं किया होगा.प्रेम है तो विवाह होना चाहिये ,विवाह है तो प्रेम होना चाहिये.वरना दैहिक क्षुधा की शान्ति के लिए तो दोनों के ही पास कई अन्य नैसर्गिक तरीके हैं. स्त्री नहीं हूँ इस कारण उस पक्ष कि ओर से तो कुछ नहीं कह सकता किन्तु पुरुष होने के नाते जानता हूँ कि यदि जीवन में कभी किसी स्त्री के हृदय को ना जीता होता तो क्या खोया होता.तब मैं, मैं ना होता.संतान तो इस चक्र को नियमित रखने का कुदरती तरीका है.

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  6. शायद अभिव्यक्ति की कड़ी कहीं टूटती है तब ही ऐसी आलोचना समालोचना की स्थिति बनती है , किन्तु रहनी चाहिए स्वस्थ ....

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  7. शादी करना आपको,आप नही मजबूर
    शादी से है फायदे,मिल जायगी हूर,,,,,,,

    MY RECENT POST: माँ,,,

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  8. विवाह को मात्र एक सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के माध्यम के रूप में ही कम से कम आज तो नहीं देखा जा सकता. मगर विवाह की उपयोगिता से इंकार भी नहीं किया जा सकता. हाँ, दो अलग-अलग व्यक्तित्वों के संयोजन और समर्पण के लिए प्रभावशाली कारण तो चाहिए ही...

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  9. मेरा प्रश्न यह है कि जब मैंने अपने स्टेटस में 'विवाह की अनिवार्यता' पर प्रश्न लगाया ही नहीं तो उस पर विवाह की अनिवार्यता को लेकर पोस्ट लिखना क्या rhetoric retort नहीं है? आपने जो बातें लिखी हैं, वो बिलकुल सही हैं और मैं उन्हें कई बार पहले पढ़ भी चुकी हूँ और भी कई पहलू जानती हूँ, जो चिकित्सीय दृष्टि से विवाह को सिर्फ औरतों के लिए आवश्यक मानते हैं और वो ये हैं कि एक निश्चित आयु के बाद बच्चे पैदा न करने से औरतों को कई हार्मोनल समस्याएं हो जाती हैं, जिनका कि जिक्र आपने किया ही नहीं है.
    कुल मिलाकर समझ में यही आता है कि आपको इस बात की चिन्ता नहीं है कि यदि औरतें विवाह नहीं करेंगी तो उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा या उन्हें प्यार नहीं मिलेगा. आपके तर्क इस बात को लेकर हैं कि यदि औरतें विवाह नहीं करेंगी तो सृष्टि प्रक्रिया रुक जायेगी...और पुरुषों को सेक्स का अधिकार छिन जाएगा. देखिये आपकी पोस्ट से
    "यह एक टिपिकल नारीवादी चिंतन है जो विवाह की पारम्परिक व्यवस्था पर जायज/नाजायज सवाल उठाता रहा है. यहाँ के विवाह के फिजूलखर्चों ,दहेज़ ,बाल विवाह आदि का मैं भी घोर विरोधी रहा हूँ मगर नारीवाद हमें वह राह दिखा रहा है जहाँ विवाह जैसे सम्बन्धों के औचित्य पर भी प्रश्नचिह्न उठने शुरू हो गए हैं -और यह मुखर चिंतन लिविंग रिलेशनशिप से होता हुआ पति तक को भी "पेनीट्रेशन" का अधिकार देने न देनें को लेकर जागरूक और संगठित होता दिख रहा है . क्या ऐसे अधिकार की वैयक्तिक स्वतंत्रता की इज़ाज़त दी जा सकती है -क्या समाज के हितबिंदु इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगें ? धर्म तो विवाह को केवल प्रजनन के पवित्र दायित्व से जोड़ता है -अगर 'पेनीट्रेशन' नहीं तो फिर तो प्रजनन का प्रश्न नहीं और प्रजनन नहीं तो फिर प्रजाति का विलुप्तिकरण तय "

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    1. @आराधना,
      मैंने नारीवादी चिंतन के उत्तरवाद को भी विमर्श का मुद्दा बनाया है -जो कोई न कोई कारण देकर विवाह संस्था को धकियाता रहता है ,आप सभी तो अभी डायिलेमा में है जो कुछ पश्चिम में हो रहा है वह आँखे खोलने वाला है -विवाह पुरुषों के बजाय नारियों के समाज -जैविकी दृष्टि से जैसा कि मैंने पोस्ट में व्यक्त किया है ज्यादा जरुरी है और सकूं भरा है! विवाह जैसी बाध्यता ख़त्म हो जाय तो पुरुष को सबसे ज्यादा खुशी होगी -मगर तब समाज अराजकता में पहुँच जाएगा जैसा कि डॉ ,दाराल कह रहे हैं !

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  10. मुझे लगता है यह पोस्ट संदर्भित फेसबुकीय पोस्ट पर उठाये गये विवाह की पारम्परिक व्यवस्था पर एकाध नाजायज सवालों पर आधारित है जिसमें 'पुरूष पत्नियाँ' जैसे शब्द उछाले गये थे।:)

    "पेनीट्रेशन" का अधिकार देने न देनें को लेकर जागरूक और संगठित होता दिख रहा है..!

    ...क्या यह संभव है? पुरूष के अलावा किसी और को पेनीट्रेशन का अधिकार मिल जाय?:)सर्वाधिकार तो प्रकृति ने ही सुरक्षित कर रख्खा है सरकार। किसी संगठन से डरने की जरूरत नहीं है।:)

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    1. "पुरुष पत्नियाँ" शब्द भी व्यंग्यात्मक है. उन लोगों के सामने यह प्रश्न रखा गया है जो ये मानते हैं विवाह स्त्रियों के लिए सामजिक और आर्थिक सुरक्षा का माध्यम है. मेरे मन में भी यह प्रश्न उठा था, तो ऐसा पुरुषों के लिए क्यों नहीं हो सकता? क्या मेरी तरह अविवाहित मर्द को यह सलाह दी जा सकती है कि 'विवाह कर लो, तुम्हारी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो जायेगी'
      कोई भी जागरूक महिला इस आधार पर सम्बन्ध नहीं बनाना चाहेगी. यह तो वही बात हो गयी कि जिस बात के विरोध में हम खड़े हैं, उसी का किसी और के लिए समर्थन कर रहे हैं...लेकिन सोचकर देखिये कि जिस बात को औरतों ने वर्षों झेला हो, क्या पुरुष वह करने को तैयार होगा?

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    2. एक बंगाली बाला ने करीब सौ वर्ष पहले एक कहानी लिखी थी जिसमें उसने एक ग्रह के ऐसे समाज की संकल्पना की थी जहाँ पुरुष रिवर्स रोल में थे और उसने धरती पर महिलाओं की त्रासदी को इसके जरिये बहुत बढियां प्रस्तुत किया था .....

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    3. Roquia Sakhawat Hussain (Begum Rokeya), an early Islamic feminist, wrote Sultana's Dream, one of the earliest examples of feminist science fiction in any language. It depicts a feminist utopia of role reversal, in which men are locked away in seclusion, in a manner corresponding to the traditional Muslim practice of purdah for women. The short story, written in English, was first published in the Madras-based Indian Ladies Magazine in 1905, and three years later appeared as a book.

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    4. जहाँ प्रेम,विश्वास और ईमानदारी बरकरार है वहीं कोई भी संबंध टिका रह सकता है। जिस पल यह खत्म हुआ उसी समय से जंगल का कानूल लागू हो जाता है..जिसकी लाठी उसकी भैंस। फिर कोई भी किसी से कम नहीं है चाहे वह पुरूष हो या फिर स्त्री। वर्तमान में यह लाठी पुरूषों के पास होने के कारण स्त्रियों पर शोषण दिखाई देता है। प्रेम और आपसी विश्वास की नींव जब दरकने लगती है तो उसी पल विवाह की जरूरत अधिक महसूस होती है। क्योंकि यहाँ दो कुटुंब संबल बन खड़े होते हैं। दोनो मिलकर प्रयास करते हैं कि विवाहित जोड़े के मध्य जो शंकाएं उपजी हैं उसका समाधान कर दिया जाय। जरूरी नहीं कि दोनो मिलकर ईमानदार प्रयास ही करें, सफल ही हों लेकिन एक संभावना तो रहती ही है कि ये आपसी संबंधों को फिर से मजबूती प्रदान करेंगे।

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  11. शादी सम्भोग और प्रजनन से आगे भी अहमियत रखती है . यह बात हर शादीशुदा व्यक्ति जानता है . शादी सांसारिक ढांचे की बुनियाद है .
    यह अराजकता पर एक नियंत्रण है . :)

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  12. काश तुम मेरी वैलेंटाईन होती...!
    तुम्हे पता है इन दिनों मैं कितना व्यस्त हूँ ..बावजूद इसके अपने प्रेम का इज़हार करने का कुछ समय चुरा ही लिया -धरती के भूगोल के इस हिस्से में प्रेम के नए महापर्व के पूर्व दिवस पर....यह पत्र मैं गोपन भेज सकता था मगर न जाने क्यों यह मन हो आया कि इसे सार्वजनिक दृश्य पटल पर रखूँ ...प्यार कोई गुनाह नहीं फिर डरना भी क्यों ....कभी कभी ऐसा भी होता है जो बात अकेले में कहने में संकोच होता है उसे सार्वजनिक करने में उतनी मशक्कत नहीं होती .... यह सहानुभूति और जन सहमतियाँ बटोरने का कारगर नुस्खा भी रहा है ...टंकी रोहण का धर्मेन्द्र का शोले दृश्य भला किसी को भूल सकता है .....

    अब लोगों को शायद गुमान हो या न भी हो मगर यह पत्र केवल तुम्हारे लिए है ......तुम कौन? कभी मैंने इसका उत्तर दिया था -तुम जो मात्र शरीर ही नहीं एक शाश्वत कामना हो .....अब उम्र के इस पड़ाव पर सहसा ही यह अहसास हो चला है कि प्यार केवल और केवल सूफियाना ही होता है ....और जो सूफियाना हो वही दरअसल सच्चा प्यार है ....देह की हिस्सेदारी तो महज कुदरत की चालबाजी है जो केवल अपनी लीला का विस्तार चाहती है और कितनों को ही बसंत के फसंत में फंसाती है -बड़ी ठगिनी है रे यह कुदरत......मगर इस देह फांस के बाद भी जो बच रहता है वही तो है न प्यार!

    मैंने सोचा कल पता नहीं हो या न हो यह इज़हार आज ही कर संतुष्ट हो लूं ....वैसे भी कल परसों यू पी के इलेक्शन में मरने की भी फुरसत नहीं रहेगी ...लोग कयास लगायेगें कि यह बासंती सन्देश किसके लिए है मगर तुम्हे तो किंचित भी डाउट नहीं होना चाहिए ...जानेमन यह तुम्हारे और केवल तुम्हारे लिए है ....मुझे उन लोगों की अस्मिता और स्टीरियो टाईप सोच पर तरस आता है जो प्यार के मनोभावों को महज इसलिए जगजाहिर नहीं करते कि आखिर लोग क्या कहेगें ..दुनिया क्या सोचेगी ..इमेज का क्या होगा ? उनसे केवल यही सवाल है कि प्यार में भला कौन सी भद्दगी है या गन्दगी छुपी है? और वैलेंटाईन दिवस से बेहतर कौन सा दिन हो सकता है ऐसी अभिव्यक्ति का -वैसे भी वैलेंटाईन दिवस और बसंत का आह्वान साथ होने में महज कोई संयोग नहीं दीखता ....हमारे कुछ साथी न जाने क्यों इस अवसर पर आक्रामक हो उठते हैं ..प्यार मनुहार पर आक्रोशित हो उठते हैं ....मुझे नहीं लगता कि मानवीयता और मानवता का इतना उत्कृष्ट प्रदर्शन कोई और होता हो ....कहीं यह कुछ दिशाहीन मित्रों की कोई अपनी ही संकीर्णता तो नहीं जो अवसर पर मुखरित हो उठती हो ? कहीं वे प्यार के चिर प्रवंचित तो नहीं ..सहानुभूति है उनसे ....मुझे लगता है उन्हें भी रेड रोजेज चाहिए ..ढेर सारे रेड रोजेज... काश वे प्यार के अहसास से लबरेज हो पाते....

    मैंने अपने मन की बात कह दी है ..मुझे तुम्हारे जवाब की अधीरता से प्रतीक्षा रहेगी .यहीं या मेरे मेल पर .....
    तुम्हे और मेरे सभी मित्रों और दुश्मनों को भी वैलेंटाईन दिवस की अनेक अशेष शुभकामनाएं! http://mishraarvind.blogspot.in/2012/02/blog-post.html

    THIS IS YOUR OWN POST

    I WAS WONDERING RESPECTED DR ARVIND MISHRA , DOES A MARRIED MAN HAS A RIGHT TO LOVE ANOTHER WOMAN AFTER MARRIAGE . I READ SOMEWHERE MENTAL INFIDELITY HARMS A MARRIGE MORE THEN PHYISICAL INFIDELITY

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    1. @रचना जी,
      प्रेम तो ईश्वरीय है कब किससे कहाँ हो जाय क्या कहा जा सकता है ,मैं गौरवान्वित हूँ आप मेरे पोस्ट आर्काईव को देखती रहती हैं !

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  13. उत्तर
    1. अगर ये मेरे दिये हुए कमेन्ट के लिये हैं तो सतीश जी


      जो व्यक्ति शादी के बाद प्रेम निवेदन कर सकता हैं वो शादी नारी के लिये सही हैं पर लेख देता हैं
      क्या सही हैं शादी नारी के लिये , बजाये सुरक्षा के ये तो असुरक्षा का भाव ही देती हैं पत्नी को

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    2. @सतीश जी,रचना जी आपसे कुछ पूछ रही हैं जवाब देना चाहेगें ?

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    3. अगर जवाब दिया गया तो टिप्पणी का आकार असीमित हो जाएगा ...

      भारतीय सामजिक वर्जनाओं के परिप्रेक्ष्य में तो सरासर गलत ही लगता है मगर यदि मानवीय कमजोरियों के आधार पर विवेचन करेंगे तो सदियों से होता आया है कहीं छुपकर कहीं खुल कर !

      अगर आपके कोई विशेष कारण न हो तो इसे अनैतिक तो कहा ही जाएगा ..

      चूंकि मुझे इस विषय पर अधिक नहीं पता अतः अधिक नहीं कह पाऊंगा बेहतर होगा रचना द्वारा बताई आपकी पोस्ट पर, आप खुद ही प्रकाश डालें !

      बेहतर है यह प्रसंग व्यक्तिगत मानकर,आम न बनाया जाए और साधारण ब्लोगिंग का आनंद लें !

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    4. सतीश भाई !
      एक पोस्ट ही क्यों न लिख डालिए :-)
      उदात्त प्रेम गलत लगता है? अनैतिक -नैतिक का मिलन बिंदु का बहुत धुंधला नहीं है !
      सबसे बड़ी अनैतिकता है छद्म और झूठ !
      जो कुछ है सामने है -इससे इतर किसी को भी पाटा होने की जरुरत क्या है ?
      निजता भी आखिर कुछ है !
      यह सलाह उन्हें ही दी जानी चाहिए जिन्हें इसकी बेहद जरुरत है ...
      दूसरों के चरित्र हनन के सायास प्रयासों में लोग अपने चरित्र को पिछवाड़े रखते हैं !

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    5. @ सबसे बड़ी अनैतिकता है छद्म और झूठ !

      यह सच है और मैं आपकी शानदार स्पष्टवादिता, जो दुर्लभ है, का सम्मान करता हूँ डॉ अरविन्द मिश्र !

      हटाएं
    6. @निजता भी आखिर कुछ है !

      जो पोस्ट मैने दी हैं वो आप की ही लिखी हैं शादी क्यूँ इतनी गैर प्राथमिक हो रही उसका कारण हैं पुरुष कर विवाहित होकर दूसरी स्त्री से प्रेम का इजहार करना . ये अनैतिक हैं या नैतिक प्रश्न ये नहीं हैं , प्रश्न हैं की क्या इस प्रकार का प्रेम, पत्नी को असुरक्षा देता हैं या ये प्रेम का केवल दिखावा मात्र हैं
      इस में निजता कहां हैं , आप की पोस्ट को आप की पोस्ट पर पेस्ट किया हैं , अब इस मे चरित्र , दुश्चरित्र इत्यादि का प्रश्न कहा से उठ गया
      शादी क्यूँ की , दैहिक सुख के लिये , प्रजनन के लिये , फिर प्रेम उसी से क्यूँ नहीं ,
      शादी का पुरजोर समर्थन और प्रेम के लिये कोई और , कितनी सुरक्षा से रही हैं ये शादी पत्नी को ??? { आप की बात नहीं है , आप लिखी हुई पोस्ट की बात हैं }
      @दूसरों के चरित्र हनन के सायास प्रयासों में लोग अपने चरित्र को पिछवाड़े रखते हैं !
      ये आप ने बिलकुल सही कहा रेस्पेक्टेद अरविन्द मिश्र क्युकी चरित्र हनन करने वाले आईना नहीं देखते .

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    7. @प्रेम कोई जबरदस्ती की चीज थोड़े ही है कि किसी से जबरिया कर ली जाय -जबकि अपुन के हिंदुस्तान
      में शादियाँ जरुर जबरिया हो जाती हैं!
      और पुरुष का प्रेम तो सलिल प्रवाह है कोई भी आचमन कर लें और कृत्यर्थ हो जाय!
      मतलब पुरुष की जैविकी मात्र एक ही से प्रेम के लिए नियोजित नहीं है .....वह कृष्णमय है !

      हटाएं
    8. मतलब पुरुष की जैविकी मात्र एक ही से प्रेम के लिए नियोजित नहीं है .....वह कृष्णमय है !

      todays woman is not willing to take this up and that is why man are frustrated and try to malign the woman

      और पुरुष का प्रेम तो सलिल प्रवाह है कोई भी आचमन कर लें और कृत्यर्थ हो जाय!

      ha haa at last you have come out with the hidden ajenda of this post that woman should be obliged that a man loves them and wants to marry them , wants to penetrate them blah blah blah
      शादियाँ जरुर जबरिया हो जाती हैं!
      again thanks very much for this statement because the very fact that marriages are made mandatory by itself makes it non obligatory .
      the right to chose is what is important and for both genders


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    9. @जो जैवीय तथ्य है वह है किसी के चाहने न चाहने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है !

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    10. Man is at all not frustrated,who is frustrated is clearly visible here!

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    11. @जो जैवीय तथ्य है वह है किसी के चाहने न चाहने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है !

      you are a scientist of great repute , it takes me by surprise when you say such things because आराथी प्रसाद ने ऐसे बहुत से जीवो पर रीसर्च की हैं जो प्रजनन के लिये विपरीत लिंग पर निर्भर नहीं होते हैं .
      अब उन्होने अपनी किताब में कहा हैं की समय वो दूर नहीं हैं जब ऐसा मनुष्य में भी संभव होगा .http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2012/08/indian-woman-has-arrived.html

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    12. @ who is frustrated is clearly visible here

      good
      at least the readers know your take in clear words &
      why the need arose to write the post far away from the issue that was being discussed on face book .

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    13. @वो दिन सुदूर भविष्य के गर्भ में है!

      गर्भधारण और शैशव -लालन पालन का अभी तो कोई विकल्प नहीं है!

      मनुष्य का क्लोन भी अभी विवादास्पद ही है !
      and neither women are lizards nor men the Iguanas!

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  14. ...गंभीर विषय है.विवाह करना या न करना किसी का बेहद निजी मामला हो सकता है पर इससे इसके अस्तित्व पर प्रश्न-चिह्न नहीं लगता.जहाँ तक विवाह से सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा की गारंटी का सवाल है तो वो भी पूरी तरह सही नहीं है.विवाह किये होने के बाद भी कई परिवार यह सब हासिल नहीं कर पाते.दर-असल इस सबके लिए विवाह किया भी नहीं जाता.ये चीज़ें तो अपने-आप आ जाती हैं.विवाह न होने पर या विधवा/विधुर होकर भी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा पाई जा सकती है.
    ...दर-असल विवाह इन सब कानूनी दाँव-पेंचों से आगे कहीं प्राकृतिक रूप से सृजन और सृष्टि का द्योतक है.हम एक परिवार के माध्यम से सुख-दुःख समझते हैं,रिश्तों को जीते हैं.विवाह होने के बाद भी संतानोत्पत्ति न होना या वंश में पुत्र न होना आदि भी बताता है कि महज़ विवाह से ही पूर्णता नहीं होती,हाँ इससे हम पूर्णता के निकट ज़रूर पहुँचते हैं !

    ...इतिहास में कई महापुरुष/महानारी विवाह करके और न करके भी महान बने,पर पुरुषों की सफलता के पीछे नारी का हाथ कहने में क्या चालाकी बरती गई है,यह सुधीजन ही बता सकते हैं.
    ...मेरे निजी विचार से वैवाहिक-जीवन सर्वोत्तम विकल्प है !

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    1. विवाह का हेतु क्या है प्रजनन और प्रजनन के बाद की शिशु की जिम्मेदारी एक दम्पति की जिम्मेदारी है -नारी पुरुष को संतुष्ट नहीं रखती तो बच्चों का विकास प्रभावित हो सकता है ....इसलिए जोड़े सलामत रहें और इस सलामती की सुनिश्चितता विवाह में है !

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    2. @"नारी पुरुष को संतुष्ट नहीं रखती तो बच्चों का विकास प्रभावित हो सकता है." और नारी की संतुष्टि तो कोई मायने ही नहीं रखती न? मुझे मनु याद आ रहे हैं. उन्होंने भी ठीक यही बात कही थी.

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    3. यह तो पारस्परिक सहभागिता की ही क्रिया है मैंने जो नहीं कहा उसे आप क्यों कह रही हैं और क्यों मनु याद आ गए ?
      यही प्रभावित सोच का परिणाम है! :-( यौनतुष्टि उभयपक्षी ही होनी चाहिए!
      भारतीय नर नारियां यह बिंदु समझ लें तो कितनी ही पारिवारिक समस्यायें चुटकी में सुलझ जाएँ!
      मुक्ति दरअसल आपकी भी यह लैटेंट प्रतिभा है बहस करते जाना ,,,,,इसे आदत से निकाल फेकिये!
      अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है :-)

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    4. ओह, तो बहस मैं ही कर रही हूँ. आप तो चुप बैठे हैं, ना? जब स्त्री-पुरुष उभय पक्ष की संतुष्टि ज़रूरी है तो 'स्त्री पुरुष को संतुष्ट करे' ऐसा क्यों कहा गया? 'संतुष्टि होनी चाहिए' ऐसा क्यों नहीं? क्या पुरुष के बारे में कह देने से स्त्री की बातें understood हैं. स्त्री की अपनी कोई इच्छा, कोई राय नहीं?

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    5. Oh,I really feel sorry for you now!And would keep mum!Be content with your logic and philosophies!

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  15. विवाह करने न करने के विषय पर कबीर से संबंधित एक साखी ध्यान आ रही है जिसमें एक नवयुवक सन्यास लेने या विवाह करने के द्वन्द्व से मुक्ति पाने उनके पास आया था।
    कुछ साल पहले TOI का एक आर्टिकल भी ध्यान आ रहा है जिसमें जापान के रहने वाले एक व्यक्ति(single) के ऑफ़िस के बाद घर लौटने के पश्चात का ब्यौरा था। उन सज्जन ने अपने घर में आठ-दस रबड़ की गुडि़या(सेक्स-ट्वॉयज़) रखी थीं, मोटे तौर पर लगभग हर मेक, एक नीग्रो, एक मंगोलियन, एक यूरोपियन आदि आदि। घर लौटकर वो फ़ैसला करता है कि आज रात किस टाईप के साथ बितानी है और उसके बाद धो-पोंछकर उसे यथास्थान बैठा-खड़ी कर देता था। The article stated, that fellow was quite happy with his life style & it was a snapshot of latest trend among new generation men there who preferred this way of life due to rising problems in nowadays marital relationships.
    विवाह करना या अविवाहित रहना एक व्यक्तिगत च्वॉयस होना चाहिये। जिसका जैसा मन करे, वही अपनाये। शोषण नहीं होगा तो फ़िर शिकायतें भी शायद\यकीनन नहीं ही होंगी। लेकिन हम लोग(जेंडर न्यूट्रल) फ़िर भी संतुष्ट होंगे? रोज अखबार में, टीवी पर लिव-इन रिलेशनशिप पार्टनर्स के झगड़े, खुद्कुशियाँ की खबरें आती ही रहती हैं जबकि इसकी तो नींव ही no-responsibility principles बताई जाती है।
    प्रबुद्ध लोगों के दो उदाहरण बता दिये, ब्लॉगजगत के बौद्धिक-विमर्श को देखने के लिये फ़िर से आयेंगे।

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    1. भटके नारीवाद की चरमता यहाँ देखी जा सकती है !जापान और अमेरिका और अब भारत में भी यही सब शुरू हो रहा है .....पुरुषों और नारियों के अलग अलग खिलौने हैं -मगर क्या इनसे जीवन की गुणवत्ता प्रभावित नहीं हो रही है?

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    2. संजय जी के कमेन्ट में उद्धृत जापानी व्यक्ति से नारीवाद का क्या सम्बन्ध है. हर एक बात के लिए नारीवाद को दोष देना कब बंद करेंगे आपलोग?

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    3. विवाह संस्था और उस के प्रति बढ़ती अरुचि के परिपेक्ष्य में यह उद्धरण दिया था, शायद मैं मंतव्य स्पष्ट नहीं कर सका।

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  16. मैं विवाह की भारतीय मानसिकता से बहुत सहमत नहीं हूँ, विवाह को सामजिक, आर्थिक,धार्मिक या जातीय रंग देना ठीक नहीं | ये पूरी तरह से शादी करने वालों पर छोड़ देना चाहिए | ये भी एक तरह की आज़ादी है | परन्तु भारतीय तरीकों ने इसे एक ऐसे बंधन में बाँध दिया है, कि चाह कर भी आप किसी से शादी नहीं कर सकते और कभी कभी ना चाह कर भी किसी से भी करनी पड़ती है | इस तरह की व्यवस्थाएं, रीति-रिवाज़ और कर्म-काण्ड अपनी जटिलताओं के चलते विवाह जैसी "संस्था" पर ही प्रश्नचिन्ह लगाने लगे हैं | और अगर हमने इन समस्याओं का समाधान निकालना नहीं शुरू किया तो इसकी जड़े हिल जाने की काफी संभावनाएं हैं !!!

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    1. @बिलकुल सहमति देवांशु ,मेरी निष्पत्ति केवल इतनी थी कि नारी के लिए शादी कहीं ज्यादा आवश्यक है समाज जैविकीय आधारों पर!

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    2. अरविन्द सर, मुझे अपनी सोसाइटी, "शादी" के मामलों में सबसे कन्फ्यूज़ सोसाइटी दिखती है | कई देशों के मेरे मित्र हैं, जहाँ अलग अलग तौर तरीके फ़ॉलो किये जाते हैं | पर उनके मूल में कहीं न कहीं मुझे "ख़ुशी" और "संतोष" जैसे शब्दों के अर्थ दीखते हैं | और जहाँ ये दोनों नहीं हैं, वहाँ , चाहे कोई देश हो, "शादी" का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है |

      अपने यहाँ समस्या ही दूसरी है | जिन्हें "शादी" करनी है, वो सबसे कम इम्पोर्टेंट हैं | बाकी सब आगे आ जाता है : समाज, जाति, उम्र और ना जाने क्या क्या !!!!

      थोड़ी असहमति रखता हूँ यहाँ पर आपसे सर | शादी करना-ना करना और किससे करना ये सब, जिन्हें शादी करनी है उनके निर्णय होने चाहिए | मात्र "शादी" कर लेने से ना तो किसी को किसी प्रकार की सुरक्षा मिल सकती है, चाहे वो सामाजिक हो या आर्थिक हो, ना ही ना करने से कोई परेशानी ही आ जाती है | कितने ही लोग हुए हैं इतिहास और वर्तमान में , जिन्होंने शादी नहीं की , पर उन्होंने दुनिया को नयी दिशा दे डाली है!!!

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    3. आप भले ही असहमत दिख रहे हैं मगर आपकी बात से मुझे कतई भी असहमति नहीं है ....बस मेरी केवल यह बाटम लाईना है -
      पुरुष की तुलना में एक नारी को विवाह की ज्यादा जरुरत है !

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    4. @पुरुष की तुलना में एक नारी को विवाह की ज्यादा जरुरत है !


      समस्या इतनी हैं की नारी की जरुरत को पुरुष सोचता हैं की वो नारी से बेहतर समझता हैं .
      नारी को क्या चाहिये ,
      कितनी बहस करनी चाहिये ,
      किस विषय पर कितना पढना चाहिये ,
      किस कमेन्ट को कैसे समझना चाहिये ,
      नारी के पास अपनी सोच , अपना नज़रिया , अपनी समझ , अपने मुद्दे , अपनी बहस , अपने तर्क , अपने कुतर्क हो सकते ये पुरुष नहीं समझना चाहता क्युकी वो नारी को अपने आधीन देखने का आदी हैं

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  17. मैं तो अब यह सोच रहा हूँ कि विवाह क्या चीज है और इसे मनुष्यों ने क्यों ईजाद किया? और इस का अंत क्या है?

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    1. किसी निष्कर्ष पर पहुंचे तो बताएं जरुर :-)

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  18. मैं अपने विचार यहाँ रख रहा हूँ जो समाज जैविकी(Sociobilogy) के नजरिये से है ........(हैं ).........और कोई आवश्यक नहीं कि मेरा इससे निजी मतैक्य अनिवार्यतः हो भी?

    लो जी हम थक गए थे पढ़ते पढ़ते .,पूरा विमर्श .

    एक आँखिन देखि -हमारे एक सर !हैं ,हाँ हम सर ही कहतें हैं उन्हें .किशोरावस्था से वर्तमान अवस्था में आने तक हमने उन्हें बहुत नजदीक से देखा है .सागर विश्व विद्यालय से रोहतक विश्व विद्यालय तक .बाद सेवानिवृत्ति आज भी उनसे संवाद ज़ारी है .

    कोई आदर्श जोड़ा नहीं था यह पति -पत्नी का .अक्सर हमने इन्हें परस्पर लड़ते झगड़ते देखा .अपनी झंडी अकसर दूसरे से ऊपर रखते देखा .होते होते दोनों उम्र दराज़ भी हो गए .

    73 -74 वर्षीय हैं ये हमारे सर !अभी कल ही इनकी पत्नी दिवंगत हुईं हैं .बतला दें आपको -गत आठ वर्षों से अलजाईमार्स ग्रस्त थीं .और ये हमारे सर उनको हर मुमकिन इलाज़ मुहैया करवाते रहे .पूरी देखभाल हर तरीके से उनकी की गई .घर की सुईं इनके हिसाब से घुमाई जाती थी ताकि इन्हें किसी भी बिध कष्ट न हो .आप जानते हैं अलजाईमार्स की अंतिम प्रावस्था में आदमी अपनों की पहचान भी भूलने लगता है .उसे यह भी इल्म नहीं रहता वह ब्रेक फास्ट कर चुका है .
    चण्डीगढ़ में दो मंजिला कोठी और रहने वाली दो जान .कारिंदे इस घर में अपनी अपनी शिफ्ट में आते थे ,अपना काम करके चले जाते थे .सबके फोकस में इनकी पत्नी की देखभाल सर्वोपरि रखी गई थी .अब उनके जाने के बाद इस आदमी के पास करने को कुछ भी नहीं है एक बेहद का खालीपन हावी है .
    तो ये प्रति-बद्धता ,कमिटमेंट सबसे ज़रूरी तत्व है शादी का .कर्तव्य को निजी भावना से ऊपर रखना पड़ता है .अपनी ड्यूटी से हमारे सर कभी नहीं भागे .आपस में बनी न बनी ये और बात है .

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  19. बात कोई भी हो मिसिरजी उसे घुमाफ़िरा कर अपने ठीहे पर ले जाने में सिद्धहस्त हैं। "आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के लिये विवाह को एक समझौता है" इस बात को घसीट के प्रजनन/'पेनीट्रेशन' तक ले गये।

    वैसे तो बड़ी ऊंची बहस में लगे हैं मिसिर जी लेकिन पूछने का मन हो रहा है कि ऐसी फ़ितरत वाले के लिये क्या आपरेशन काम दमन कुछ कारगर उपाय होगा? :)

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    1. @आप और सुश्री रचना सिंह जी पुराने उद्धरणों को देकर अपने कौन से अजेंडे को लागू करते हैं क्या मैं जानता नहीं?
      हुंह ! :-)

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    2. mr mishra
      why do you club me with others ? you started a discussion and i participated in it . why should you want my participation to go your way , you started your post with "naarivadi" and i just brought forward the other posts of yours

      the reason why marriages are no more a "good option " for woman is the fact that husbands feel being a man its their right to flirt { mental / physical or both } out side marriage because "man has a right to do "

      think on it and thank you very much for giving me and idea and i am putting up a post soon why marriage gives no security

      हटाएं
    3. हमारा कोई अजेंडा नहीं है। हमने आपकी पोस्टें पढ़ते हुये अपने अनुभव से महसूस किया वो बताया:
      " बात कोई भी हो मिसिरजी उसे घुमाफ़िरा कर अपने ठीहे पर ले जाने में सिद्धहस्त हैं। "आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के लिये विवाह को एक समझौता है" इस बात को घसीट के प्रजनन/'पेनीट्रेशन' तक ले गये। "

      आपरेशन कामदमन आपकी ही कहानीर है। जिसका सार है:
      इस कहानी में लेखन ने जीवन , सृजन में कामजीवन के महत्व को स्थापित किया है। काम को झंझट मानते हुये लोग सोचते हैं कि अगर काम वासना न होगी तो बहुत काम कर लेंगे। लेकिन जब वैज्ञानिक तरीके से ऐसे लोगों की कामग्रंथियां आपरेशन करके निकाल दी गयीं तो उनकी सृजन क्षमता भी खतम हो गयी। वे बेचारे न घर के रहे न घाट के। पैसा लेकर लौट आये।

      अपने अपने लिखे हुये के विपरीत किसी विपरीत बात को ’हुंह’ कर देने से आपकी बात सही नहीं साबित हो जाती। आपके ही लिखे-पढ़े के विरोधाभास को आप भले ’हुंह’ करके खारिज करने की कोशिश करें लेकिन बात तो अपनी जगह रहती ही है।

      मजे करिये। इतवार का उपयोग करिये और कोई लिंक खोजिये फ़ड़कता हुआ जिससे अगली पोस्ट लिखें।

      हटाएं
    4. @अनूप जी,

      विरोधाभास आपके मन में है, न तो कहानी में है और न ही मेरे लिखे और आचरण में-यह सोच और नजरिये के फर्क हैं और यह अब ऐसे ही चलता रहेगा !

      आपरेशन दमन कहानी तबके जनसत्ता में भी प्रकाशित हुयी थी और उसका निष्कर्ष केवल इतना है कि कामभावना मनुष्य के तमाम सृजनात्मक कामों की भी उदगम है!बस ,आपने इस कहानी को यहाँ क्यों उद्धृत किया मैं जानता हूँ -मगर छोडिये, बहरहाल यहाँ आने और अपने अजेंडे का ही विचार प्रस्तुत करने के लिए, आभार !

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    5. @अनूप जी,
      एक बात और ,हम यहाँ बैठे हैं तो अपने ठीहे की ही फ़िक्र करने को ,आपके ठीहे पर भला क्यों जाने दूंगा ? :-)

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  20. विवाह से तात्पर्य ? स्त्री-पुरुष के बीच लैंगिक सम्बन्ध समाज स्वीकृत ढंग से या वैधानिक ? हमारे धर्म निरपेक्ष देश में कहीं यह आत्माओं का मिलन है ,कहीं एक अनुबंध ,बहुपत्नी समाजों में स्टेटस सिम्बल और बहु पति में एक सामाजिक रूप से मान्य सुविधाजनक व्यवस्था ,कहीं आर्थिक कारणों से बहुपतित्व- सम्पति का बार-बार और अधिकाधिक हिस्सा होने से रोकने के लिए ? पहले यह तय करें बहस तो चलती रहेगी

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  21. @राजेश जी,
    आपने विवाहों के इन स्वरूपों की और ध्यान आकर्षित किया -आभार!

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  22. जहाँ जीवन ही एक समझौता है तो किसी एक बिंदु पर झंडा लहरा कर कोई भी अपने आप को विजयी घोषित कर सकता है . पर कितने ही बिन्दुओं पर मिली हार को बस वही जानता है. मुझे बायो में पढाया गया वो जीवन-चक्र की याद हो आई कि कैसे सब एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं. अब कोई भी इस चक्र से बाहर निकल कर कुछ नया उदाहरण बन सकता है. अब तो '' अपनी मर्जी '' का राज है.

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    1. अमृता जी, यह यथार्थ दृष्टिकोण है, आपसे सहमत!!

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  23. Mai sahasa kisee wiwaad me nahee padtee...lekin itna zaroor kahungee ki samajik tatha aarthik suraksha ke maddenazar wiwaah waqayee ek samjhouta....ya spasht kahun to bewaqoofee hai.

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  24. पोस्ट और टिप्पणियाँ पढ़ीं।

    ऐसी बहसों का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि हिंदी के तमाम नए शब्द मिल जाते हैं। बहस बढ़िया होती है तो कुछ चौपाई और श्लोक वगैरह भी मिल जाते हैं। लोगों का हिंदी ज्ञान बढ़ता है। बाकी सब तो चलता रहेगा।

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    1. १-लोगों को मेरे श्लोक और चौपाईयां के उद्धरण अनावश्यक रूप से ज्यादा लगते होगें -और यह किंचित कदाचित सही भी हो सकता है .
      २-जो भी यहाँ है उसकी कोई न कोई यू एस पी है -नाम क्या गिनाना-मेरी यही है ...लोग बर्दाश्त करें मुझे बस यही विनय कर सकता हूँ .
      ३-हर एक अच्छे लेखक /ब्लॉगर की अपनी एक सोच ,अपनी एक शैली और इडियोसिनक्रेसी सी है -मेरी यही है श्लोक और चौपाईयां बात बात पर उद्धृत करना ..
      ४-किसी सुधी ब्लॉगर ने एक बार मुझसे पूछा कि क्या वे मुझे याद होती हैं ? जवाब है हाँ अधिकाँश!
      ५-इन आदतों के पीछे लोगों के पारिवारिक संस्कार ,बचपन का पालन पोषण होता है इसलिए मैं दोषी नहीं ...

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  25. शाश्वत चलने वाली बहस है स्त्री-पुरुष की जिम्मेदारियों और अधिकारों की। जितने लोग उतने विचार, और क्यों न हों?
    ब्लॉगिंग एक बहुत अच्छा माध्यम प्रदान कर रही है विचारों के स्वस्थ आदान-प्रदान के लिए। ‘इंडियनटॉपब्लॉग्स’ हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगों की डाइरेक्टरी संकलित करने जा रहा है, सर्वश्रेष्ठ भारतीय ब्लॉगों की डाइरेक्टरी की तर्ज पर। आशा है हम अच्छे ब्लॉगों को डाइरेक्टरी में स्थान देकर हिन्दी ब्लॉगिंग में एक छोटा सा योगदान दे सकेंगे।

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  26. मानें या न मानें विवाह समाज़ मे नारी को (पुरुष को भी) एक सामाजिक प्रतिष्ठा तो देता ही है । वरना कितनी भी काबिल महिला या लडकी कयूं न हो उसे छेडने की हासिल करने की चाह रखने वाले बहुत होते हैं । जहां तक विवाह की बात है हमारे समाज में यह सिर्फ जो व्यक्तियों का ही नही दो परिवारों का संबंध होता है और इसका निर्वाह दोनो को (स्त्री और पुरुष ) करना है । साथ रहते रहते आकर्षण भी प्यार में बदल ही जाता है । और प्यार की स्नेह की आवश्यकता किसे नही होती ।

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  27. इस ब्लॉग पर जब भी आता हूँ, सोच में पड़ जाता हूँ.. पूरी पोस्ट पढ़ी, सारे कमेन्ट भी... और अंत में अनूप जी एक कमेन्ट उठाकर चिपकाए देता हूँ क्यूंकि इस सारी बहस का सार वही है....
    ________________
    " बात कोई भी हो, मिसिरजी उसे घुमाफ़िरा कर अपने ठीहे पर ले जाने में सिद्धहस्त हैं। "आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के लिये विवाह को एक समझौता है" इस बात को घसीट के प्रजनन/'पेनीट्रेशन' तक ले गये। "

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    उत्तर
    1. @हम यहाँ बैठे हैं तो अपने ठीहे की ही फ़िक्र करने को ,आपके ठीहे पर भला क्यों जाने दूंगा?:-)
      वैसे भी ये बाते आपको समझने में वक्त लगेगा -थोडा और मेच्योर हो जाईये!

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    2. After reading your blogs i always feel i am far matured than you... at least in the right direction..
      आपका ये दंभ कि आप मुझसे उम्र में, पद में या डिग्रियों में ज्यादा हैं तो आप मुझसे ज्यादा समझदार भी होंगे.. यही आपको कमतर कर देता है...

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    3. क्या बात है? मजेदार! :-)

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