शोण भद्र से कालान्तर में सोनभद्र शब्द बना. यहाँ आने के बाद यहाँ की संस्कृति,आबो हवा में मेरे अनुकूलित होने का सप्रयास क्रम जारी है. यहाँ कितना कुछ जानने समझने को है.उत्तर प्रदेश से उत्तरांचल के अलग हो जाने के बाद सोनभद्र ही वह अकेला जिला है जहाँ आज भी वनों का आच्छादन ५३ फीसदी है .बड़े बड़े बाँध,झीलें और जलाशय है .अकूत वनौषधि और खनिज तथा खनन संपदा है. मगर दुर्भाग्य से आज भी यह एक बहुत ही पिछड़ा हुआ अंचल है. विकास के आधुनिक मानदंडों पर इसे अभी हाल में ही हुए एक सर्वे (पंचायती राज मंत्रालय )में उत्तर प्रदेश ही नहीं देश का सबसे पिछड़ा जिला पाया गया है. मगर इतना कुछ होने के बावजूद भी इसकी अपनी कुछ विशिष्टतायें हैं -यह देश की ऊर्जा राजधानी है .जल विद्युत और ताप विद्युत की कई परियोजनाएं यहाँ पर हैं .जल प्रपात और प्राकृतिक धरोहरों के मामले में सोनभद्र का अनूठा स्थान है .एक विश्वविख्यात जीवाश्म क्षेत्र (फासिल बेड ) यहाँ है . प्रागैतिहासिक शैल चित्र भी हैं . सोन और कर्मनाशा नदियाँ हैं . सोन दरअसल एक पुरुष "नदी" है और इसलिए इसे वस्तुतः नदी नहीं नद कहा जाता है-सोन नद ..रेनुकूट में हिंडालको के विश्वप्रसिद्ध एल्मूनियम कारखाने के साथ ही कई औद्योगिक गतिविधियाँ यहाँ की एक अलग पहचान हैं ,
राबर्ट्सगंज के सोन इको प्वायंट से सोन घाटी का एक विहंगम दृश्य
सोनभद्र से मेरा संवेदित होना अभी शुरू ही हुआ है . बहुत कुछ अभी जानना समझना शेष है जिसे आपके साथ साझा करता रहूँगा .ज्ञान जी को गंगा जिस भाति मिल गयीं हैं अन्वेषण पुनि पुनरपि पुनरान्वेषण के लिए, मैं समझता हूँ मेरी झोली में अब सोनभद्र उसी तरह आ गया है और मैं कृत्यार्थ हो उठा हूँ . अभी तो सोनभद्र के नामकरण को लेकर मन में उथल पुथल मची हुयी है . अग्निपुराण में आया है -नमस्ते ब्रह्मपुत्राय शोणभद्राय ते नमः कालांतर में शोण ही सोन बन गया है ..किन्तु शोण का शाब्दिक अर्थ क्या है ? क्या शोणित का शाब्दिक अर्थ खून तो नहीं है? कोई संस्कृत का विद्वान मेरा मार्गदर्शन करेगा? .कभी कोई भयंकर युद्ध तो इस नदी के किनारे नहीं हुआ जिससे इसका रक्त रंजित जल दूर दूर तक लाल हुआ हो और नाम शोणभद्र हो गया हो -मगर भद्र का अर्थ कुशलता से है .अर्थात शोणित होकर भी जन कल्याण करने वाली नदी -शोणभद्र! ये बस विचारभर है और मुझे किसी गुरु की खोज है जो मुझे दिशा दिखाये! लेकिन यह तो तय है कि जिले का नाम सोनभद्र सोंन नदी के कारण ही है .कहीं आल्हा की व्याहता सोनवा के नाम से तो सोनभद्र का कोई कनेक्शन नहीं है ? यहाँ की चंदेलों के वक्त की कुछ लड़ाईयां आल्हा की अगुवाई में हुयी हैं -पास के चुनार के किले में सोना के विवाह मंडप में कितने ही योद्धा मार दिए गए थे .
वाराणसी -सोनभद्र मार्ग पर अहरौरा बांध का एक मंत्रमुग्ध करता दृश्य
यहाँ आदिवासियों का भी बाहुल्य है, उनकी कई जातियां उपजातियां हैं. यहाँ का करमा नृत्य मशहूर है . पत्नी जो मिर्जापुर की मूल वासी है (यह जिला मिर्ज़ापुर से ही पिछले नवे दशक में अलग हुआ था ) बता रही है कि सोनभद्र के एक तहसील घोरावल के घड़े मशहूर हैं. यह जानकारी देने का उनका छुपा मंतव्य हो सकता है कि मैं एक घड़ा यथाशीघ्र उनके लिए ले आऊँ :-)
बनारस सोनभद्र मार्ग मध्य का एक नयनाभिराम जल प्रपात -लखनियां दरी
यहाँ की लोक परम्परा में पत्नियां मोतीझील की मेहन्दी के साथ बहुत कुछ अपने पिया से मांगती रही हैं और अब उस फेहरिस्त में घोरावल का घड़ा भी जुड़ गया है! यहाँ आल्हा के बाद के दूसरे लोक विख्यात जननायक लोरिक की कथायें भी जन श्रुतियों में व्याप्त हैं -एक विशाल शैल खंड राबर्ट्सगंज -शक्तिनगर मुख्य मार्ग पर ही है जिसे लोरिक पत्थर कहा जाता है और मान्यता है कि उसे महा लोकनायक लोरिक ने अपने खड्ग वार से दो भागों में विभक्त कर दिया था ... यह वृत्तांत भी मैं तफसील से आपके सामने लाऊंगा!
अभी तो मेरी सोनभद्र की खोज यात्रा बस शुरू ही हुयी है!
सोनभद्र की धरती धन्य हुई आपको पा कर। अब तो हमे भी सोनभद्र के बारे में बहुत कुछ जानने को मिल जायेगा। शोण के बारे में किसी संस्कृत के विद्वान से पूछ कर बताता हूँ। बढ़िया लगी आपकी यह पोस्ट। अधिक के लिए फक्कड़ बन घूमना पड़ेगा।:)
जवाब देंहटाएंउम्मीद है सोनभद्र के बारे में आपसे बहुत कुछ जान पायेंगे !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपके नवप्रवास के लिए !
अपने ननिहाल का इतिहास देखने का मौक़ा मिलेगा.. शोण कर्ण के भाई का नाम बताया जाता है (सन्दर्भ- मृत्युंजय).. पता लगाइए कोई इतिहास कर्ण तक जाता है???
जवाब देंहटाएंसोनभद्र के बारे में जानकारी मिली ...आभार
जवाब देंहटाएंआशा है और चित्र भी लगाया करेंगे आप
जवाब देंहटाएंअगली पोस्ट का इंतजार
जवाब देंहटाएंऔर जानने की उत्सुकता रहेगी .
जवाब देंहटाएंसोन घाटी का चित्र अद्भुत!
जवाब देंहटाएंआश्चर्य है कि कैसे ये जगह पिछड़ी /उपेक्षित रह गई है?
अखिलेश बाबू को देश के पर्यटन विकास पर भी ध्यान देना चाहिए.
मुझे खास कर कर्मनाशा नदी के बारे में और अधिक जानने की उत्सुकता है.
आजकल तो फ्रीज वाले घरों में घड़े का प्रयोग मात्र पूजा आदि में ही होता है?
@अल्पना जी,
जवाब देंहटाएंअब चाहे इसे संस्कृति का दबाव मानिए या फिर च्वायस हम गर्मी के दिनों में फ्रिज के समान्तर सुराही या घड़ा भी पानी के लिए रखते आये हैं -और गर्मी भर उसी से पानी पीते हैं -
किसी शायर ने कहा है -जहां रहेगा वहीं रोशनी लुटाएगा /किसी चराग का अपना मकां नहीं होता |सर सोनभद्र भी आपकी लेखनी को सलाम करेगा |बहुत उम्दा जानकारी आगे कुछ और भी जानने की अभिलाषा रहेगी |
जवाब देंहटाएंआपकी इस यात्रा में हमारा ध्यान सदा आपके साथ चलेगै, सहयात्री बन।
जवाब देंहटाएंअब तक आपकी लेखनी से बनारस के चर्चे थे और क्या खूब थे !यह भी विचारणीय है कि स्थान परिवर्तन दिल-दिमाग पर भी कुछ असर डालता है कि नहीं.आगे की लेखनी इसका उद्घाटन करेगी !
जवाब देंहटाएंशोण का अर्थ लहू के निकट तो हमने भी पढ़ा है और भद्र का अर्थ भला,सभ्य या सज्जन होता है,आपने यहाँ नया अर्थ (कुशलता)दिया है जिसके बारे में मैं अनजान हूँ !
...बनारस से कहीं ज़्यादा यहाँ आप प्रकृति के पास होंगे,यह बहुत बड़ा फायदा है !
बहुत सुन्दर बढ़िया लिखा आपने ..आगे जानने की उत्सुकता रहेगी
जवाब देंहटाएंपूर्व संयोजित आशा के अनुरूप प्रथम भाग ही जिज्ञासा को ऐसे उद्वेलित कर रहा है कि अगले भाग की प्रतीक्षा अभी से ही शुरू हो गयी है. कोई भी क्रिया दोतरफा होती है . यदि आप कृतार्थ हुए सोनभद्र को पाकर तो सोनभद्र भी ऐसे अन्वेषक को पाकर अवश्य प्रसन्न होगा .
जवाब देंहटाएंअच्छा वृतान्त |
जवाब देंहटाएंआभार गुरुवर ||
बहुत बढ़िया लिखा,.आगे जानने की उत्सुकता रहेगी,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
मेरा प्रिय विषय इतिहास और पर्यटन,अच्छा लग रहा है जानना. और लगता है इतिहास की कई परतें खुलेंगी. उत्सुकता है आगे जानने की.
जवाब देंहटाएंडा साहेब, जय हो.
जवाब देंहटाएंकुछ नया जानने को जरूर मिलेगा तय है. शुभकामनाएं...
दूसरे कई दिन से देख रहा हूँ, कि ब्लॉग की आउट लुक और डिजाईन से भी छेड़छाड बहुत हो रही है. :) हर पोस्ट के साथ नए रंगों का समन्वय दिख रही है...
लगता है डॉ साहेब का मन शांत नहीं है. :)
इतना सम्पदा संपन्न होने के बावजूद सोनभद्र एक पिछड़ा हुआ kshetr है , यह jankar आश्चर्य हुआ और दुःख भी .
जवाब देंहटाएंऔर जानने की उत्सुकता रहेगी .
रोचक, सूचनाप्रद. सोन सपूत यहां भी है.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के माध्यम से सोनभद्र से जुडी कुछ नई जानकारियां मिलीं. प्राकैतिहसिक धरोहर देखने तो मैं भी पहुँच ही जाऊंगा यहाँ कभी-न-कभी...
जवाब देंहटाएं@दीपक बाबा!
जवाब देंहटाएंमैंने पहले भी देखा है आप मेरे मन की अच्छी पकड़ रखते हैं :-)
हाँ अशांत है और दुखी भी हूँ -अशान्तस्य कुतो सुखं ?
शोण और ब्रह्मपुत्र पुरुष नदियां हैं। नर्मदा के बारे में लिखते हुये अमृतलाल बेगड़ जी ने बताया है- अमरकंटक में मेरा और सोन का उद्गम आस-पास है।लेकिन मैं पश्चिम में बहती हूं और सोन पूर्व में-बिल्कुल विपरीत दिशाओं में। इसे लेकर पुराणों में एक सुन्दर कहानी है। उसके अनुसार मेरा और सोन(यानी शोणभद्र, जिसे उन्होंने नद माना है) का विवाह होने वाला था। पर शोण मेरी दासी जुहिला पर आशक्त हो बैठा तो मैं नाराज हो गई। कभी विवाह न करने के संकल्प के साथ मैं पश्चिम की ओर चल दी । लज्जित और निराश शोण पूर्व की ओर भागा। मैं चिरकुमारी कहलाई।इसीलिये भक्तगण मुझे अत्यंत पवित्र नदी मानते हैं और मेरी परिक्रमा करते हैं।"
जवाब देंहटाएंशोण के नाम के पीछे शायद शूलपाणि का भी कुछ योगदान हो। शोण के साथ भद्र जुड़े होने का कारण बताते हुये ललित शर्मा बताते हैं-रेवा के क्रोध का सामना शोण नहीं कर सके उन्होने सिर झुका लिया। इसके घटना के बाद वह शोण से शोण भद्र कहलाने लगे। क्योंकि सिर का झुकना याने भद्र होना होता है।
’रेवा’ नर्मदा जी का एक नाम है।
जवाब देंहटाएं@ अनूप जी ,
जवाब देंहटाएंआभार इस जानकारी के लिए ....यह महत्वपूर्ण है !
@मगर शोण क्यों कहते हैं -या शोण नामा क्यों पड़ा ? शोण तो रक्त है -शोणित रक्तिम ! कौन बतायेगा ? वो संस्कृत वाली तो अंतर्ध्यान हो गयीं हैं या समाधिस्थ !
जवाब देंहटाएंचलिये आपने हमे भी सोनभद्र की यात्रा करवा दी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबुद्ध के समकालीन एक ख्यातिनाम , भोगी सम्राट हुआ करते थे - श्रोण . जिसे बुद्ध ने दीक्षा दी थी और वह सन्यस्त हो गए . शायद उनके नाम से ही सोनभद्र का कुछ रिश्ता तो नहीं. कारण यह भूभाग उनके राज्य के आस-पास ही था.
जवाब देंहटाएंजानना रसप्रद रहेगा……
जवाब देंहटाएंअगले अंक का इन्तजार।
@अमृता,
जवाब देंहटाएंबहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी है आपने ,दरअसल कर्मनाशा नदी के उस पार का क्षेत्र मगध राज्य के विस्तार में बौद्धों के ही अधिपत्य में ज्यादा समय रहा है -बहुत संभव है आपकी बात में यथार्थ हो -सनातनियो ने इस लिए ही काशी को हमेशा पवित्र माना और सनातनियों के विरोधी बौद्धों के अधिपत्य क्षेत्र को -कर्मनाशा के उस पार को पापमय ! यहाँ तक कि देह छोड़ने के बाद आत्मा को कर्मनाशा नदी के पार जाने के लिए तरह तरह के अनुष्ठानों के विधि विधान बनाये ....कर्मनाशा को ही पापमयी नदी करार किया !
सोनभद्र से जुडी रोचक जानकारियां प्राप्त हुई . खूबसूरत प्राकृतिक स्थलों पर्यटन के लिहाज़ से लोकप्रिय हो सकता है .
जवाब देंहटाएंये तो बढ़िया वर्णन रहा, घूमने फिरने की जगह लग रही है , अगली पोस्ट का इंतज़ार है अब !!!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया है. आपको मनोरम पोस्टिंग मिली है :)
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