बनारस इस समय सचमुच रसमय हो चला है ..रसराज आम की बहार है ...बनारसी लंगड़े ने क्या खूब रिझाया है लोगों को ..कभी कभी हैरत यह होती है आमों के दीवाने चचा ग़ालिब बनारस छोड़ बेदिल बेरस दिल्ली में कैसे जन्मे और बस गए ....आमों की जो चौकड़ी पूरी यू. पी. में मशहूर है उसमें शामिल हैं -दशहरी ,चौसा ,लंगडा और सफेदा ....वैसे तो भारत में इतने भांति भांति और आकार प्रकार के आम हैं कि उनकी प्रजातियों और रसास्वादन के तरीकों की उपमा के लिए बस एक सौन्दर्यशास्त्रीय उदाहरण ही दिया जा सकता है ....जिसे रस प्रेमी समझ सकते हैं ...अक्लमंद को इशारा काफी ...बनारस के लंगड़े की भी अपनी एक राम /आम कहानी है -देखने में सुडौल और खाने में ख़ास फ्लेवर लिए मीठा ....आम को रसाल कहा गया है -रस से भरा हुआ!
आम को खाने का शहरी तरीका निहायत नौसिखिया वाला है -इतने सुन्दर सुडौल आयटम पर छुरी चलाना? आम कैसे खाया जाय ताकि फलो के राजा का सम्मान भी बना रहे और खाने वाले को स्वार्गिक संतृप्ति हो इसके लिए किसी गवईं से इसकी तकनीक सीखनी चाहिए ..पहले आम को हाथों से हलके हलके संस्पर्श से गुलगुलाईए फिर शुरुआती बूंदों (चोपी ) जो काफी तीक्ष्ण होती हैं को त्यागकर शेष रस को होठों से लगाकर चूसिये ....आम को नकली नफासत से खाने का मतलब है कि फलों के राजा की आप को कोई कद्र नहीं है!
आम को खाने का शहरी तरीका निहायत नौसिखिया वाला है -इतने सुन्दर सुडौल आयटम पर छुरी चलाना? आम कैसे खाया जाय ताकि फलो के राजा का सम्मान भी बना रहे और खाने वाले को स्वार्गिक संतृप्ति हो इसके लिए किसी गवईं से इसकी तकनीक सीखनी चाहिए ..पहले आम को हाथों से हलके हलके संस्पर्श से गुलगुलाईए फिर शुरुआती बूंदों (चोपी ) जो काफी तीक्ष्ण होती हैं को त्यागकर शेष रस को होठों से लगाकर चूसिये ....आम को नकली नफासत से खाने का मतलब है कि फलों के राजा की आप को कोई कद्र नहीं है!
मुझे भी आम बेहद पसंद हैं ..मैंने इस बार बनारस के बाहरी ग्रामीण क्षेत्र (कंट्री साईड ) में जाकर एक बागीचे में लंगडा आम के एक पूरे पेड़ को (आई मीन फलों को ) बयाना देकर ही खरीद लिया था....जहाँ से अभी तक आमों की आमद बदस्तूर जारी है ....अब तक के खेपों का पाल डालना पड़ा था (कच्चे आमों को रखकर पकाने की विधि ) ..ये भी कुछ कम स्वाद वाले नहीं है ....मगर असली मजा तो सीधे डाल से पके पकाए आम का है ---उसकी वैलू भी ज्यादा है ..
मुझे याद है कि एक आला आफिसर के मातहत ने जब एक पेटी आम उन्हें दिया तो उसको मनचाहा कार्य पटल मिल गया था -आफिसर ने बस यह पूछा था कि-यह डाल का है या पाल का ? मातहत का नपा तुला संक्षिप्त जवाब आया था -सर डाल का है ,और उसी दिन उसे मनचाहा कार्य पटल अलाट कर दिया गया था ..मगर उसी आफिसर के दुसरे ईर्ष्यालु मातहत ने सारी पोल ही खोल कर रख दी और दावे के साथ यह साबित कर दिखाया कि कथित आम डाल का नहीं पाल का ही था ....फिर तो पहला वाला मातहत पुनर्मूसको भव की गति को प्राप्त हो गया बिचारा ....मुझे भी अब डाल के लंगड़े का ही बेसब्री से इंतज़ार है ..मानसून की छपाछप भी शुरू हो चुकी है तो डालों के आम भी बस पकने वाले हैं ..
मुझे याद है कि एक आला आफिसर के मातहत ने जब एक पेटी आम उन्हें दिया तो उसको मनचाहा कार्य पटल मिल गया था -आफिसर ने बस यह पूछा था कि-यह डाल का है या पाल का ? मातहत का नपा तुला संक्षिप्त जवाब आया था -सर डाल का है ,और उसी दिन उसे मनचाहा कार्य पटल अलाट कर दिया गया था ..मगर उसी आफिसर के दुसरे ईर्ष्यालु मातहत ने सारी पोल ही खोल कर रख दी और दावे के साथ यह साबित कर दिखाया कि कथित आम डाल का नहीं पाल का ही था ....फिर तो पहला वाला मातहत पुनर्मूसको भव की गति को प्राप्त हो गया बिचारा ....मुझे भी अब डाल के लंगड़े का ही बेसब्री से इंतज़ार है ..मानसून की छपाछप भी शुरू हो चुकी है तो डालों के आम भी बस पकने वाले हैं ..
सतीश जी के साथ पिछले साल की अमवाही
मैंने इसलिए ही सोचा कि इस आम -पर्व पर आपको क्यों न निमंत्रित करूं -एक दिन की 'अमवाही' के आयोजन का मूड बन रहा है -मतलब एक पूरा दिन आम के रसास्वादन को ही समर्पित ....जैसे यहाँ 'सतुवाही' होती है -मतलब तुरंता भोजन (फास्ट फ़ूड ) के लिए एक दिन 'सतुआ संक्रांति' का आयोजन होता है तो क्यों नहीं उसी तर्ज पर अमवाही ....अब यह कोई न पूछ ले यह सतुआ(सत्तू) क्या होता है ...बनारस में तो एक सतुआ बाबा का आश्रम ही है ...सतुआ शास्त्र फिर कभी ...विषयांतर हो जाएगा !
मुझे याद है मेरे बचपन में उन रिश्तेदारों, जिनके यहाँ आम के बड़े बड़े बाग़ होते थे, के यहाँ से बाकायदा अमवाही का निमंत्रण आता था ..बड़े बड़े देगचों,बाल्टों में भर भर कर किसिम किसिम के आम लाये जाते थे और लांग डाट लगती थी कि देखो कौन कितना खा लेता है -मेरा रिकार्ड भी वन गो में पचास से ऊपर आमों को खाने.... ओह सारी चूसने का था ....अब वे दृश्य लोप हो गए ...पिछले बार आमों के सीजन में सतीश पंचम जी बड़े भाग से बनारस आ गए और हममे यह स्पर्धा फिर हो गयी ...नतीजा इस बार वे इधर आये तो बगल की पतली गली से ही निकल गए ..हा हा ...
मुझे याद है मेरे बचपन में उन रिश्तेदारों, जिनके यहाँ आम के बड़े बड़े बाग़ होते थे, के यहाँ से बाकायदा अमवाही का निमंत्रण आता था ..बड़े बड़े देगचों,बाल्टों में भर भर कर किसिम किसिम के आम लाये जाते थे और लांग डाट लगती थी कि देखो कौन कितना खा लेता है -मेरा रिकार्ड भी वन गो में पचास से ऊपर आमों को खाने.... ओह सारी चूसने का था ....अब वे दृश्य लोप हो गए ...पिछले बार आमों के सीजन में सतीश पंचम जी बड़े भाग से बनारस आ गए और हममे यह स्पर्धा फिर हो गयी ...नतीजा इस बार वे इधर आये तो बगल की पतली गली से ही निकल गए ..हा हा ...
आप बनारस आ रहे हों तो अमवाही का मेरा निमंत्रण स्वीकार करें!अनुगृहीत होउंगा!
पचास आमों को चूसने का रेकॉर्ड! बाप रे बाप!
जवाब देंहटाएंनाचीज़ के लिए तो एक आम ही काफी है जी.
आठ दस प्रजातियों के आम खाये हैं यहाँ के आम महोत्सव में, पचास तो बहुत अधिक हैं।
जवाब देंहटाएंदशहरी ,चौसा ,लंगडा और सफेदा -
जवाब देंहटाएंआहा , पढ़कर ही मूंह में पानी आ गया ।
लेकिन भैया , सभी आम तो चूसने वाले नहीं होते । इसलिए चाकू से काटकर ही खाने में मज़ा आता है ।
डाल का है या पाल का ?--
यह डर तो यहाँ दिल्ली में भी लगा रहता है । आम में भी ज़हर कीखबर आ रही है ।
लेकिन मुकाबला तो अपने बस का नहीं । कभी दो चार आम वैसे ही सही आपके साथ ।
kuchh dinon se दिल्ली से बाहर था , पता होता तो वहीँ चले आते ।
चूसने वाला देसी तो बस एक चम्मच रस वाला होता है और वही एक है जो लंगड़े से टक्कर लेता है. पचास क्या सौ चूस जाइये मन नहीं भरेगा और सुपाच्य भी.
जवाब देंहटाएंमुझे भी इस समय लखनऊ में रहते हुए आम का आनंद खूब मिल रहा है। पिछले साल ऐन आम के सीजन में विदर्भ क्षेत्र (वर्धा) चला गया था। अत्यंत महंगे और बासी आमों ने मजा खराब कर दिया था।
जवाब देंहटाएंइस साल तो ससुराल से साले साहब सपत्नीक पधारे हैं। साथ में डाल का पका ‘गौरजीत’ और ‘सबुजा’ गत्तों में भरकर लाये हैं- अत्यंत मीठे, रसीले और सुस्वादु जो सलहज के हाथ से गुजरकर मिल रहे हैं। आप सोच सकते हैं कि आपकी ‘अमवाही’ से मुझे ईर्ष्या होने की गुंजाइश कम से कम इस इस बर्ष तो नहीं है। :)
अरविंद जी,
जवाब देंहटाएंलंगड़ा आम तो मुझे भी बेहद पसंद है और इसके जोड़ का दशहरी भी अच्छा लगता है। वैसे यह बात देखने में आई है कि आम क्षेत्रियता की परिधि में नॉस्टॉल्जिया को बांधे रखते हैं। मसलन जो बंदा गुजरात से होता है उसे केसरी आम औरों के मुकाबले ज्यादा पसंद होता है, जो महाराष्ट्र से होता है उसे हापुस के सामने सब फीके लगते हैं, वही हाल बनारस और मलीहाबाद के बाशिंदों का होता है।
शायद यही कारण हो कि गालिब को दिल्ली के आमों में ज्यादा नफासत नजर आई हो :)
वैसे बादशाह जहाँगीर के बारे में सुना था कि उसने एक बार कहा था कि ढेर सारे आम हों सामने तो उसके सामने दुनिया निसार कर दूँ। अब ये बातें बंदे ने होश में कही थीं या मदहोशी में ये तो वही जाने लेकिन इतना जरूर है कि आम बाकी फलों से लोकप्रियता के मामलों में आम बीस ही नहीं बल्कि इक्कीस बाईस तक ठहरता है। जहां तक मैं समझता हूं लोकगीतों में भी आम की खूब चर्चा रहती है - मसलन -
अमवा की डार पतरानी,
सुगन फिर आवा त जानी...
...ऐसा ही कुछ है पूरा याद नहीं :)
.पँडित जी, मेरा तो मकान ही आम कटहल और कई तरह के फलों के बाग के बीचोबीच है... आज ही डाल से 20-22 लँगड़े तुड़वाये हैं.. फट से इँटरसिटी पकड़ो, खट से आ जाओ, झट से आम जीमों, सट से सटक लो । कुल एक दिन का झमेला है । दशहरी एक बरसात के बाद ही मज़ा देगी । वैसे इस बार बेवक्त की आँधी और तोतों ने बहुत उजाड़ा है ।
जवाब देंहटाएंआ रहे हो ?
vah kya baat hai
जवाब देंहटाएंaap ki link yaha link aapki jodi gai yaha aakar apna anubhav hame bataye
कोलकाता के हीमसागर और मालदह सबसे प्रिय हैं ..!
जवाब देंहटाएंआम खाने की खास प्रतियोगिता ....... बहुत अच्छा लगा जानकर ....
जवाब देंहटाएंअफ़सोस बनारस आने में जल्दी कर दी. फिलहाल तो दिल्ली के 'जहरीले' आमों से ही काम चला रहा हूँ.
जवाब देंहटाएंइस वर्ष तो देर हो गयी .. आती हूं अगले वर्ष !!
जवाब देंहटाएंअमवाही का यह मंजर आँखों में घूम गया. यहाँ दिल्ली में तो आम खास हो गया है, आम आदमी के बस मे नहीं है.
जवाब देंहटाएं@डॉ दराल, संगीता जी ,
जवाब देंहटाएंअभी भी बहार है ,आ जाईये न !
डॉ. अमर ,
इधर का लंगडा खलास हो तो चौसा खाने आयेगें ..
आदरणीय डाक्टराईन को बोलिए की उनका पाल न डालें
सीधे हम डाल का ही खायेगें !
.
जवाब देंहटाएं.
.
मेरी नजर में 'लंगड़ा' आमों में सर्वश्रेष्ठ है और फिर बनारसी हो तो क्या कहने...
देखिये कब मौका लगता है आपके साथ बनारस आ अमवाही करने का...
...
कभी मेरठ के पास किठौर का रटौल आम चख कर देखिए...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
आम तो अब खास लोगों के लिए हो रहे हैं!अब गाँव में इनकी पैदावार भी बहुत कम हो गई है.
जवाब देंहटाएंबरसात में भीगते हुए आम के बाग में आम खाना बहुत याद आता है !
शायद आम खाने की स्पर्धा मे मुझे कोई नही हरा सकता। चलिये इसी बात पर पहले आम खा लिया जाये।
जवाब देंहटाएं@डॉ.अमर ,
जवाब देंहटाएंमैंने बचपन में ढेलों से आम तोड़ा है -मतलब चेका चलेगा क्या ?
@निर्मला कपिला जी ,
जवाब देंहटाएंतो फिर बाजी ...
अमवाही का यह मंजर आँखों में घूम गया|
जवाब देंहटाएंसावधान डॉ.मिश्र जी। आज ही डॉ.अमर कुमार जी ने २०-२२ को लंगडे तुडवाए हैं.... अब आपकी बारी लगती है :)
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया अरविंद भैया.हम लोगों को बचपन में नानी के घर का न्योता याद आ गया.परीक्षा खतम होते ही रवाना हो जाते थे ननिहाल आम के बाग,पकाने वाले कमरे में घुसना और आम खाने के बाद फुन्सियों का चेहरों पर आम की तरह निकल आना.हा हा हा हा हा.महिनो टिके रहते थे वंही अब तो जैसे समय मिलता ही नही.मस्त रसीली पोस्ट.
जवाब देंहटाएं'Amvaahi'!!!!!!
जवाब देंहटाएंkya ittefaq hai..main ne bhi aam se related post likhi hai..
-aap ne to aam khaane ka vidhivat Taraeeka bhi badi hi khuubi se samjha diya.
haan, Aaj kal ke samy mei 'daal ka pakaa Aam milna /khana bhi khushnaseebi[kaheeye-luxury] hi hai..
@अल्पना जी,
जवाब देंहटाएंचलिए किसी ने तो समझा आम ज्ञान को :)
सचमुच कितना रोमांटिक इत्तेफाक है :)
इधर मैं आमरस में डूबा उधर आप
आपसे तो आम सन्चूषण प्रतियोगिता का जी चाहता है!
कबूल है ?
यह पोस्ट तो आम के कारण ही कितनी ख़ास बन गयी है कि
क्या बताऊँ ?
हाँ सभी आम चूसने लायक नहीं होते इस बात से इत्तफाक रखता हूँ !
इस पोस्ट से और टिप्पणियों से बड़े नए नए आमों के नाम जाने.हमें तो २-४ ही पता थे और यहाँ तो मुश्किल से २ किस्म ही मिल पाती हैं उसी में निहाल हो जाते हैं हम.
जवाब देंहटाएंठीक है जो चीज़ चूस के खानी होती है वह चूस के ही खाई जाती है .आम्र रस में भीगी ऊंगलियों और हथेली को चाटा जाता है आपने देखा नहीं -"जायका इंडिया का "कैसे ऊंगलियों को चूस चूस के लिया जाता है .और दक्षिण में तो भैया कोहनी तक रस आजाता है घमासान होता है केले के पत्तों पर खाने के संग ।
जवाब देंहटाएंबेशक आम और आम का स्वाद लेने वालों की और बात है .वे जानते हैं और अच्छी तरह से मानतें हैं -आम मान मनोव्वल ,फॉर -प्ले के बाद ही स्वाद देता है .और "टपका"(डाल से टपकके अपने आप से गिरने वाला पका हुआ देसी आम. )तो भैया बस चैंपा निकार के बस चूसत ही रह्यो .गर्मी कभी नहीं करेगा .जित्ता मन हो चूसो .
भाई साहब आप भी खूब छांट छंट के रसीले आम से विषय लातें हैं ,और बनारस भी बुलातें हैं .हमारा तो वैसे ही बनारस पे मन आया हुआ है .दसवां रस है हिंदी साहित्य का बनारस और ग्यारह -वां हाथरस .(काका हाथरसी ).बधाई आम के लिए ललचाने के लिए .गुड न दे आदमी गुड सी बात तो कह दे .आपने बुलाया तो सही .हम सार्वजनिक निमंत्रण को वैयेक्तिक बनाने की क़ला के माहिर हैं .
और भाई साहब हम चेन्नई आई आई टी कैम्पस में दो साल रहे .वहां तो आम दर्जन के हिसाब से मिलतें हैं .पूरे साल किसी न किसी किस्म का आम तोता -परी से अलफांसो तक .४० -४०० रुपया दर्ज़न तक और आकार में भी विविधता कोई कमसिन छरहरा कोई थुलथुल विशाल काय ।
जवाब देंहटाएंचुटकुलों में भी आम के सौदाई छाये हुएँ हैं ।
एक मर्तबा अकबर और बीरबल आमने सामने बैठे आम खा रहे थे .बादशाह अकबर आम खा के गुठली अकबर के आगे सरकाते जा रहे थे .कुछ देर बाद बोले बीरबल अब बस करो देखो तो सही कित्ते आम खा गएतुम .बीरबल ने तपाक से कहा -महाराज आप तो गुठली भी खा गए .
आम और आम खाने वाले आम और ख़ास के बारे में जाना ...
जवाब देंहटाएंपंडित जी,
जवाब देंहटाएंआम-चर्चा ज़ोरदार है. गांव में पुराने बागों में हर पेड का अपना नाम होता था...बोदरह्वा, कोनहवा, तलहवा, मिसरिहवा, अइंठ्हवा.... आदमी ग्लोबल हुआ है तो आम भी नामरहित होकर किस्म में तब्दील हो गये ! और अब तो कैटरीना के अन्दाज़ में आमरस का ज़माना है !!
ये "आमवाही" बहुत अच्छा लगा ... पर आपका रिकॉर्ड ... मुश्किल है टूटना ... बचपन में तो आमवाही बहुत होता था ... अब लंबे समय से नही हुवा ...
जवाब देंहटाएंएक पानी से भरी बाल्टी में आम डाल कर और बंडी (बनियान) पहने हुए सामने बैठ कर पारंपरिक देसी तरीके से आम खाए जाएँ तो आम खाने का मजा द्विगुणित हो जाता है |
जवाब देंहटाएंमिठास के साथ साथ आपसे और पंचम जी से इर्ष्या भी हो गई ....
जवाब देंहटाएंहमारे यहाँ (गाँव) में आम के पेड नहीं होते ..
और बनारस आ नहीं सकते :(
अमवाही शब्द अच्छा लगा । यहां तो अमरस पुडी की पार्टी हुआ करती है।
जवाब देंहटाएंसतुआ वोही तो नहीं जिसे लालूजी खाते है । हम जब गांव में रहते तो सतुआ बोलते थे अब सत्तू बोलते है। चने जौ और गेहूं का बनता है।
पचास आमों को चूसने का रेकॉर्ड!
जवाब देंहटाएंआदरणीय मिश्र जी मान गए आपको हमारे नेताओं को तो एक आम आदमी को चूसने का रिकार्ड है| आप जीत गए , बधाई हो....
badhiya hai bhaiyaa
जवाब देंहटाएंमुंबई आने से पहले मुझे भी लगता था, किसी को लंगड़ा आम कैसे पसंद नहीं आ सकता...पर उसकी सुगंध के जहाँ उत्तर-भारतीय दीवाने हैं....मुंबई वासियों को वो सुगंध ही अच्छी नहीं लगती...उन्हें तो उनका अलफांसो ही प्यारा है...
जवाब देंहटाएंशायद हर क्षेत्र पर यह बात लागू होती है...पर आम किसी भी प्रजाति का हो प्रिय सबका है.
ऑफर (सीजन) कब तक है? बताइये अगर मेरे टाइमलाइन में पड़ा तो आता हूँ एक दिन.
जवाब देंहटाएंआम से रसीला............ मीठा-मीठा पोस्ट
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