इस ब्लॉग के लम्बे समय से सूने चल रहे स्तम्भ चिट्ठाकार चर्चा को आज गुले गुलजार करने तशरीफ़ लाये हैं देवेन्द्र पाण्डेय जी जो बेचैन आत्मा के नाम से ब्लॉग जगत में खासे मशहूर हैं ....जब पहले से ही मशहूर हैं तो फिर यहाँ उनकी चर्चा क्यों? मैं पहले भी बताता रहा हूँ कि किसी चिट्ठाकार की यहाँ चर्चा के पीछे उसके प्रति खुद मेरी अपनी सोच ,अपने रुख का उजागर करना होता है और कुछ तो उसके प्रति सम्मान -उदगार की अभिव्यक्ति का भी भाव रहता है .यह उसके अवदानों की एक कृतज्ञ अभिस्वीकृति(अक्नालेज्मेंट) भी है ....यद्यपि मुझ पर यह आरोप है कि मैं खुद अपनी ही गढ़ी मूर्तियों को कालांतर में अपवित्र -अपमानित करने की प्रवृत्ति रखता हूँ ....अन्यत्र यह कहा जा चुका है कि मैंने इस स्तम्भ के कम से कम तीन चिट्ठाकारों के साथ ऐसा किया है..... ....अब कहने का क्या ,कुछ लोगों की हमेशा नक नकाने की आदत जो होती है ...
बात पिछले लोकसभा के चुनावों की है .सभागार में हजार से भी ज्यादा अधिकारी चुनावों के संचालन की दीक्षा ले रहे थे.....जैसे ही मध्याह्न अंतराल /अवकाश हुआ अधिकारियों के हुजूम से एक आम चेहरा डायस की ओर लपका और ठीक पास आकर बुदबुदाया -मैं बेचैन आत्मा ..और तत्क्षण ही वह ख़ास बन गया ..अरे ये तो अपने प्रिय ब्लॉगर बेचैन(आत्मा ) जी निकले जो अब अपनी सुडौल देह और निराकार बेचैन आत्मा दोनों के साथ मेरे सामने आ उपस्थित थे....अब तक आनंद की यादें पर अपने जीवंत संस्मरण और बेचैन आत्मा पर अपनी काव्य प्रतिभा का वे लोहा मनवा चुके थे-तो यह था हमारा पहला मिलन ...दुबारा वे घर पर एक लघु और संक्षिप्त सी ब्लॉगर संगोष्ठी में शिरकत करने आये और अपनी व्यंजन प्रियता (gourmet होने का ) का संकेत दे गए ...
मेरा अपना अनुभव है कि कविता /कविताई का निपुण व्यक्ति प्रायः अच्छा गद्यकार होता है मगर गद्यकार को कवि होते कम ही देखा है मैंने .....मगर देवेन्द्र जी इन दोनों विधाओं में सिद्धहस्त हैं ...सच कहूं तो उनका ब्लॉग आनंद की यादें जो आत्म संस्मरणात्मक है ,मुझे बहुत प्रभावित करता है ..बचपन की यादों और अतीत के बनारसी परिवेश का इतना प्यारा और प्रामाणिक विवरण मैंने कम ही पाया है ....उनकी कवितायें भी इसी तरह बहुत मौलिक और विभोर करने वाली होती हैं ....उनमें एक हास्यकार (ह्यूमरस- ता) का भी आवेग कभी कभी उभरता है ....मगर संस्मरण और कविता उनकी सृजनशीलता के स्थाई भाव हैं ..
एक सरल ,हंसमुख व्यक्तित्व के मालिक तो वे हैं ही जबकि हैं वित्त/अकाउंटिंग जैसे रूखे सूखे विषय के जानकार ...आज ब्लॉग जगत में उनका होना एक अच्छी बात है और उससे भी अच्छी बात है कि वे सतत सक्रिय रहकर अपने रचना कर्म से हमें कृत कृत्य कर रहे हैं ...अहर्निश अशेष शुभकामनाएं!
एक मूर्तिकार की किसी मूर्ति को देखकर देखने वालों ने उसकी प्रतिभा की बहुत तारीफ़ की...
जवाब देंहटाएंमूर्तिकार ने जवाब दिया...मैंने कुछ नहीं किया...मूर्ति तो पहले से ही पत्थर में छुपी हुई थी...मैंने तो बस गैर-ज़रूरी टुकड़े तलाश कर अलग किए हैं...
जय हिंद...
bahut sundar post........hum bhi inke comment ke murid hain.....milte nahi
जवाब देंहटाएंthe.....ab milte rahenge.............
@k.s.....veerji kamal ki tip de gaye......
pranam.
पाण्डेय जी की कविताई बहुत पसंद है क्योंकि मुझे समझ आ जाती है. मेरे लिए तो पांडेयजी हिंदी ब्लॉगजगत के नजीर हैं .
जवाब देंहटाएंजहाँ तक आपके अपनी ही गढ़ी मूर्तियों को कालांतर में अपवित्र -अपमानित करने की बात है तो मैं कहूँगा की यदि कोई हमें प्रेम करता है और हम उसके स्नेह/प्रेम को स्वीकार करते हैं तो हम पर क्रोध करने का अधिकार उसे स्वतः ही प्राप्त हो जाता है. इसलिए जो आपके अति स्नेह को लूटते हैं उन्हें कहीं न कहीं आपके क्रोध को हज़म करने के लिए भी अपने मन में प्रयाप्त जगह रखनी चाहिए क्योंकि ये हो नहीं सकता की स्नेह की बेरियाँ हम खाएं और क्रोध के कांटे किसी दुसरे को चुभें.
बेचैन आत्मा की बेचैनी के विशेष आयाम प्रस्तुत कर आपनें पाण्ड़ेय जी के पाण्डित्य को मूर्तिमंत कर दिया।
जवाब देंहटाएंशानदार परिचय आलेख
बेचैन आत्मा के बारे मे जानकारी अच्छी लगी। उन्हें पढना हमेशा ही सुखद लगता है ।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र पाण्डेय जी के योगदान से परिचित कराने का शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी के लेखन में तो कहीं बेचैनी नहीं दिखती .. बहुत शांत और संतुलित लिखते हैं .. अच्छा लगता है उन्हें पढना .. मेरी ओर से उन्हे शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी के लेख पढता रहता हू। व्यक्तित्व के वाबत आपने बताया । आप तो साहित्यकार के साथ पारखी भी है वाकई वे ग़द्य और पद्य दौनो में अच्छा दखल रखते है। जनरली लोग अपने ही वारे में लिखा करते है परन्तु आपके व्दारा ब्लागर की रचनाओं की समीक्षा की गई है । आलोचना और समालोचना का अभाव है ,ब्लाग से बाहर पत्रिकाओं में तो बहुत कुछ पढने मिल जाता है । धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी का परिचय आप के इस स्तम्भ द्वारा कुछ और विस्तार से मिला .
जवाब देंहटाएंआभार
बेशक वे गद्य और पद्य ही विधाओं में सिद्धहस्त हैं.
हमारी भी शुभकामनाएँ .
....................
अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंमैं देवेन्द्र जी के ब्लॉग का नियमित पाठक हूं और उनकी सृजनशीलता का कायल भी ! मेरी नज़र में वे उन गिने चुने ब्लागर्स में से एक हैं जो अपनी वैचारिक स्पष्टता और विषय बोध के चलते मुझे अत्यधिक प्रिय हैं !
व्यक्तिगत रूप से उनसे कब भेंट होगी यह तो पता नहीं पर उनमें बेहद अपनापन देखता हूं !
उत्सुक्तताजन्य कारणों से , उनसे आपकी मुलाकात में एक कमी महसूस कर रहा हूं ! आपको उनके निज / पारिवारिक जीवन में और अधिक झांकना चाहिए था !
पांडेयजी हिंदी ब्लॉगजगत में सच में महत्वपूर्ण हैं,
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
गिरिजेश राव :
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी विलक्षण् प्रतिभा के धनी हैं। उनके एक अलग मिज़ाज को देखिये:
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
जरूरत से ज्यादा कहीं जल न जाए।
मुद्रा पे हरदम बको ध्यान रखना
करो काग चेष्टा कि कैसे कमायें
बनो अल्पहारी रहे श्वान निंद्रा
फितरत यही हो कि कैसे बचाएं
पूजा करो पर रहे ध्यान इतना
दुकनियाँ से ग्राहक कहीं टल न जाए।
दिखो सत्यवादी रहो मिथ्याचारी
प्रतिष्ठा उन्हीं की जो हैं भ्रष्टाचारी
'लल्लू' कहेगा तुम्हे यह ज़माना
जो कलियुग में रक्खोगे ईमानदारी।
मिलावट करो पर रहे ध्यान इतना
खाते ही कोई कहीं मर न जाए।
नेता से सीखो मुखौटे पहनना
गिरगिट से सीखो सदा रंग बदलना
पंडित के उपदेश सुनते ही क्यों हो
ज्ञानी मनुज से सदा बच के रहना।
करो पाप लेकिन घडा भी बड़ा हो
मरने से पहले कहीं भर न जाए।
देवेन्द्रजी की पोस्टों में सदा ही नयापन मिलता है, विस्तृत परिचय का आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे से आपने देवेन्द्र जी का परिचय दिया...... उनकी रचनाएँ पढ़ी हैं..... प्रभावित करती है उनकी लेखनी....
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी का परिचय जिस अंदाज में दिया वह अच्छा लगा वैसे वह किसी तारीफ़ के मोहताज नहीं है |आभार
जवाब देंहटाएं.देवेन्द्र जी की अपनी मौलिक शैली है...जो बहुत प्रभावित करती है.
जवाब देंहटाएंपढ़ती रही हूँ देवेन्द्र जी की कवितायेँ ..
जवाब देंहटाएंयहाँ परिचय पढना भी अच्छा लगा !
देवेन्द्र पाण्डेय जी मिलवाने के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लेखन के साथ एक अच्छे इंसान की स्पष्ट छाप छोड़ने में कामयाब हैं देवेन्द्र !
जवाब देंहटाएंयह उन लोगों में से हैं जिनका मेरे दिल में बहुत आदर है !
आभार कि आपने इन्हें उचित मान दिया ! ?
आपका और सभी प्रशंसकों का आभारी हूँ जिन्होने इस नाचीज को इतना प्यार दिया। हिंदी का कमजोर विद्य़ार्थी हूँ। साहित्य किसे कहते हैं पता नहीं। ले दे कर कुछ भाव उपजते हैं जिसे अभिव्यक्त करने का प्रयास करता हूँ। ब्लॉग जगत से एक लाभ यह हुआ है कि यह खूब उचकाता रहता है। उत्साहित हो लिखता जाता हूँ । यह सोचकर कि कुछ नहीं तो भावनाओं को समझने वाले कवि ह्रदय, संवेदन शील मित्र तो मिल ही रहे हैं।
जवाब देंहटाएंवैसे ..
जब भी मिलता है सम्मान,डरता भीतर का इंसान।
अब यूं के ... मेरी तो नकनकाने की आदत तो है नहीं :) फिर भी, आपने बेचैन आत्मा को तृप्त कर दिया, मन प्रसन्न हुआ॥
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी को पढ़ते हुए अच्छा लगता है ...... अब उनके बारे में जानकर भी अच्छा लगा ....
जवाब देंहटाएंअमूर्त को मूर्त करती आपकी लोक लुभावन शैली "अब कहने का क्या कुछ लोगों की हमेशा नक् -नकाने की आदत
जवाब देंहटाएंहोती है "में पाण्डेय जी साकार हुए .निर्गुण से सगुण हुए हमारे लिए . आपके सौजन्य से .आभार .
शून्य विचार की टिपण्णी से हम भी सहमत :अम्मा कहती थी "ये क्या मीठा मीठा गप कडवा कड़वा थू ".आप मिटटी से शिल्प बनातें हैं ये क्या कम है .
जवाब देंहटाएंइससे इत्तेफाक है कि कवि लोगों का गद्य अमूमन नीकै होता है मुला गद्यकार नीक कवि भी हो, कमै दिखता है!
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी बेहद सुलझे व्यक्ति हैं, साहित्यिक हैं, स्त्व-गुण संपन्न भी! गुण-ग्राही हैं, कोई बंदिश पस्म्द नहीं करते!
मसरूफियत में कम जा पा रहा हूँ उनके दुवारे, मुला यकीन है कि बुरा न मानत होइहैं! ;-)
और ये गिरिजेश जी बढ़िया बिउहार बिद्धि सिखै रहे हैं, मुला केहिके खातिर?? के इतना भोला है हियाँ? ;-)
एक योग्य व्यक्ति पर सुंदर चर्चा देखकर जी प्रसन्न हुआ ! आभार !
सारा व्यक्तिव अच्छे से बयां किया है आपने :]
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी से परिचय हो ही गया|
आपके इस सुन्दर पोस्ट से बेचैन आत्मा के साथ-साथ हमें भी आनंद मिल रहा है..
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी के व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों से मैं भी अत्यंत प्रभावित हूँ. जिस आत्मीयता से हम मिले ऐसा लगा ही नहीं कि पहली मुलाकात है. गद्य और पद्य दोनों में सिद्धहस्त देवेन्द्र जी अद्वितीय प्रतिभा के धनी है .. उम्मीद है जल्द ही फिर मुलाकात का अवसर मिलेगा.
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी की कविताई के फ़ैन तो हम भी हैं।
जवाब देंहटाएंlekh ka title badha hi aakarshak laga...thanks for sharing.
जवाब देंहटाएंसुन्दर ।
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जवाब देंहटाएंForest Fire in Hindi
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