इन दिनों बहुत व्यस्तता है -राज काज नाना जंजाला! सिद्धार्थशंकर त्रिपाठी जी से कल बात हुई उन्होंने भी अपनी इसी पीड़ा का इजहार किया .लेकिन ब्लागरी है मुई कि अपनी ओर बरबस खींचती ही रहती है -किसी जादूगरनी की ही तरह -बार बार मोहभंग होने के बाद भी.यह मनई तीन वर्ष से बिना टंकी( हिन्दी ब्लॉग शब्दावली का एक शब्द,वे जो नहीं जानते पर जान ही जायेगें ) पर चढ़े लगातार यहाँ खुद उत्साह वर्धित होता रहा है भले ही लोगों का उत्साह वर्धन कर पाया होया नहीं .हाँ कुछ लोग मुझसे नाराज भी हुए हैं और उनकी भयंकर नाराजगी का दंश लिए भी मैं निर्लज्जता के साथ यहाँ डटा हूँ -निश्चय ही कोई "इदं न मम " का भाव/मर्म ही है जो मुझे रोके है ,बोरिया बिस्तर लपेटने से . मगर यह भी सच है हमारे यहाँ रुकने न रुकने से किसी को भी या पूरे ब्लागजगत को कोई फर्क नहीं पड़ता /पड़ेगा .कोई भी हम सरीखा अकिंचन अपरिहार्य नहीं है यहाँ!
अब आज की शीर्षक चर्चा ..... देखिये मानव मन ही ऐसा है कि वह अपनी प्रशंसा सुनना चाहता है .ऐसा न होता तो चमचे चाटुकारों का बिलियन डालर का व्यवसाय न होता .जिनके चलते देशों के सरकारे हिल डुल जाती हैं .उनके पद्म चुम्बन से पद्म पुरस्कारों तक में भी धांधली हो जाती है .तो वही मानव मन यहाँ ब्लागजगत में अपनी पोस्टों पर टिप्पणियाँ भी चाहता है .कौन नहीं चाहता ? मैं नहीं चाहता या समीर भाई नहीं चाहते . मगर हम उतनी उत्फुल्लता से दूसरों के पोस्ट पर टिप्पणियाँ नहीं करते .समीर भाई अपवाद हैं . इस टिप्पणी शास्त्र पर बहुत चर्चा पहले भी हो चुकी है -मैं विस्तार नहीं करना चाहता .मगर यह भी है कि टिप्पणी की चाह एक व्यामोह नहीं बन जाना चाहिए .एक व्यसन न हो जाय टिप्पनी पाने का .आप श्रेष्ठ रचोगे समान धर्मा लोग मिलगें ही ,टिप्पणियाँ भी झकाझोर आयेगीं -आखिर ससुरी जायेगीं कहाँ ? मगर शर्त वही श्रेष्ठता की है .अन्यथा पीठ खुजाई का अनुष्ठान टिकाऊ नहीं है .संत लोग कहीं डोल डाल लिए तो फिर मजमा उखड़ जाएगा और सन्नाटा छा जाएगा .संत लोग कोई टिकाऊँ होते हैं कहीं?
मैं राज की बात बताता हूँ- पीठ खुजाऊ टिप्पणियाँ मैं भी करता हूँ मगर काफी कम .मैं ब्लागवाणी /चिट्ठाजगत स्क्राल करता जाता हूँ जो रुचता है वहां टिप्पणी करता हूँ .इसलिए कई बार टिप्पणियों का आग्रह मुझे क्लांत कर जाता है .टिप्पणी कोई अनुष्ठान नहीं है मेरे लिए कि मूढ़ मगज करता रहूँ चहुँ ओर ...
बाकी फिर अभी भागना है आफिस !
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
-
Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
शर्त वही श्रेष्ठता की है-बस बहुधा यही ध्यान रखा जाये.
जवाब देंहटाएंअब आपसे तो मैं ज़बरदस्ती अपनी पोस्ट पर टिप्पणी करवाऊंगा.... क्यूँ ना करवाऊं ? आख़िर आप मेरे अपने हैं..... चाहे मेरी पोस्ट खराब हो या अच्छी ... मैं तो ज़िद करूँगा आपसे.... ख़ैर! आपसे ज़िद तो मैं करता ही हूँ..... और आप हैं अभी इतने अच्छे कि मेरी हर ज़िद पूरी कर देते हैं.... वैसे ! मेरी कोशिश रहती है कि मैं श्रेष्ठ लिखूं... वैसे जहाँ तक मुझे लगता है कि मैं श्रेष्ठ लिखता हूँ.... (अपने मूंह मियां मिट्ठू.. हे हे हे ....) ... और आप तो हैं ही.... टिप्पणी करने के लिए.... नहीं करेंगे.... तो ज़िद करूँगा... हाँ! श्रेष्ठ टिप्पणी करने की भी कोशिश करूँगा...
जवाब देंहटाएंऔर आप कैसे हैं? मैं तीस को लखनऊ पहुँचने वाला था... सिर्फ आपसे मिलने के लिए.... लेकिन तब तक के खबर आ गई.... कि...अचानक आपका प्रोग्राम बनारस वापस जाने का हो गया.... तो मैंने भी अपना प्रोग्राम कैंसल कर दिया .... कल रात ही में आया हूँ....
नोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....
खूब टिप्पणी लो और दो पर एक अपने को दो तो ५ अच्छो को भी दो
जवाब देंहटाएंअत्म प्रकाश शुक्ला जी को याद करता हू. जो कहते है
पल भर हो भले पहर भर हो
चाहे सम्बन्ध उमर भर हो
केवल इतनी सी शर्त मीत
हम मिलकर बेईमान ना हो
टिप्पणी करने का मतलब सिर्फ तारीफ करना नहीं होगा .. असहमति दर्ज करने के भी की जाती है ..!!:)
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी, एक महीने घर पर चुपचाप बैठ जाओ फिर देखिये टिपण्णी के भाव :)
जवाब देंहटाएंहम पोस्ट लिखे ना लिखॆं मगर टिपप्णी करने का मोह नही त्याग पाते...भले ही २० की ४ मिले....;)
जवाब देंहटाएंकोई किसी के ब्लाग पर जाये ।
जवाब देंहटाएंपढ़े और मन को भाये
तो टिप्पणी किये बिना कैसे जाये ?
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सही कहा आपने. टिप्पणी शाश्त्र के बारे मे बःई और यहां टिके रहने के बारे मे भी. आपकी जीवटता को नमन करता हूं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
पोस्ट और टिप्पणी का सम्बन्ध मूल और सूद का है। बैंक के नियमों से ब्याज अर्जित करना ठीक है लेकिन देहात में फैली सूदखोरी जो साहुकारों की लत हुआ करती थी उसे अच्छा नहीं माना जाता। एक बार लत लग जाय तो सूद कमाने के लिए तमाम गलत हथकंडे अपनाने लगते हैं लोग। मैने तो गाँव में लोगों को यह भी कहते सुना है कि मूल से सूद अधिक प्यारा।
जवाब देंहटाएंमैं भी ब्लागवाणी देख कर जो टापिक मुझे अच्छा लगता है उस पर जरूर टिप्पनी करती हूँ कोई चाहे मेरे ब्लाग पर आये या न क्या ये सही नहीं--- लेकिन आपकी टिप्पणी का मोह मुझे भी रहता है हा हा हा
जवाब देंहटाएं@सलोनी सुबह, आप का जो चित्र प्रोफाईल पर लगा है बहुत स्निग्ध सुन्दर है ,मन में कई सात्विक भाव जगाता है .आज सुबह से इतना मूड ऑफ था इस चित्र को देखकर कुछ राहत हुयी है ,कृपया साथ रहें -नहीं रोक पाया हूँ यह टिप्पणी करनेसे ....
जवाब देंहटाएंलेकिन ज्यादातर के लिए तो टिप्पणी एक कर्मकाण्ड ही है। प्रतिदान की तरह।
जवाब देंहटाएं--------
घूँघट में रहने वाली इतिहास बनाने निकली हैं।
खाने पीने में लोग इतने पीछे हैं, पता नहीं था।
"टिप्पणी की चाह एक व्यामोह नहीं बन जाना चाहिए .एक व्यसन न हो जाय टिप्पनी पाने का"
जवाब देंहटाएंमेरा भी यही विचार है। यदि लेखन सामग्री अच्छी होगी तो लोगों को पसंद भी आयेगी और टिप्पणियाँ अपने आप मिलेंगी। आज नेट में हिन्दी को जरूरत है तो सिर्फ अच्छी सामग्री की।
टिप्पणी वह जो जब मन हो तब दी जाए। जैसे जनरन पैसा लिया जाए तो डाका, कुछ काम करवाने के मोह में दिया जाए तो रिश्वत, किसी के काम से खुश हो कर दिया जाए तो बख्शीश, किसी को प्रेम से सकारण दिया जाए तो उपहार, अकारण दिया जाए तो अचंभित करने वाला उपहार या सरप्राइज़ गिफ्ट। अन्तिम ही सर्वोत्तम माना जाएगा। शायद टिप्पणियाँ भी इन्हीं सब श्रेणियों में आती हैं। लोग ब्लॉगिंग पर पी एच डी कर रहे हैं, अब समय आ गया है कि टिप्पणियों पर भी की जाए।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
टिप्पणी के मामले में हमारी सहमति घुघूती बासूती के साथ है भाई !
जवाब देंहटाएंटिप्पणी की बात पर (और वाणी जी की टिप्पणी पर) याद आया कि हिन्दी ब्लोगरी से काफी पहले और आतंकवाद पर शिकंजा कसने से पहले अमेरिका में पाकिस्तान न्यूज़ सर्विस नामक एक साईट हुआ करती थी. तकनीकी रूप से भी साईट बड़ी अनगढ़ थी और न्यूज़ शब्द तो सिर्फ नाम में था, मुख्य आकर्षण था उनकी भारत विरोधी फोरम. पढ़ते ही लोगों का खून खुल उठता था, और फिर धडाधड टिप्पणी पर टिप्पणी. कहना न होगा कि न्यूज़-रहित नफरत-सहित वह साईट काफी पोपुलर थी. टिप्पणी-मात्रा बढाने के लिए यह सिद्धांत आज भी कारगर है. बल्कि आजकल हिन्दी ब्लॉग-जगत में भी कुछ गुरुजन सिर्फ इस सिद्धांत का प्रयोग बखूबी कर रहे हैं. हम भले ही इसे जंजाल कहें मगर नव-तकनाढ्य (R) इसे ट्राल कहते नहीं अघाएंगे.
जवाब देंहटाएं?
जवाब देंहटाएंnice
:)
good
;)
very very nice :) ;)
The photograph you talked about, is really good.
Thanks kvachid+anyato+api.
सिद्धार्थ जी सही कह रहे हैं.
जवाब देंहटाएंThanks a lot Anon for appreciation and and also appreciation of my appreciation .
जवाब देंहटाएंwow
जवाब देंहटाएंpeople even appreciate spam
इस विषय में क्या बोलूं ..
जवाब देंहटाएंआपही लोगों से जान - समझ रहा हूँ ..
mujhe aapki tipanni ka intzaar hai :):)
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी सच कहूँ तो मैं भी यही सोच रही थी कि टिपण्णी बॉक्स ही बंद कर दूँ ....क्योंकि इस टिपण्णी के चक्कर में बहुत से काम अधूरे रह जाते हैं .....!!
जवाब देंहटाएं@Well said Mam,but spams are sometimes of immense use when real ones lose their sheen. Of course deliberately not spontaneously...the portrait is really mind blowing.
जवाब देंहटाएंकर्म-कांड ही तो हैं...लेखन का कर्म-कांड।
जवाब देंहटाएंसही कहा !! मुझे भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता, कोई टिप्पणी करे या न करे और मैं ज्यादा ब्लॉग्स पढ़ती भी नहीं हूँ. समय ही नहीं मिलता, लेकिन जब पढ़ती हूँ, तो टिप्पणी ज़रूर करती हूँ. हाँ, आप जैसे कुछ लोगों की टिप्पणी की प्रतीक्षा रहती है.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ठीक है भाई साहब। आपके विचारों से सहमत। उम्मीद करता हूं मेरे ब्लाग पर आप टिप्पणी करते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ आपसे ।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंलीजिये पँडित अरविन्द जी, अपुन ने भी टीपणी दे दी,
अब आगे क्या करने का, वो भी बोलना । बरोबर करूँगा !
एक टीपणी वास्ते अक्खा पब्लिक काय कूँ मरेला गिरेला है,
एक का बोलो ना ब्रादर, अम तो हज़ार देगा.. पण दरवज़्ज़ा खोल के रखने का !
दे दाता के नाम तुझको पाठक घेरे. मिलें टिप्पणी तुझे और तू मुझको दे दे.
जवाब देंहटाएंहममम.. एक और पूर्वाग्रह..
जवाब देंहटाएंआपको नहीं कर रहा हूँ अरविंद जी.. यहाँ पढ़े किसी कमेन्ट को देख कर कह रहा हूँ..
सही कहा आपने,लेखन में एक ही शर्त चलती है....लेखन के स्तर के प्रति यदि व्यक्ति सजग और समर्पित रहेगा तो देर सबेर पाठक और टिप्पणी उसे मिलेगा ही..लेकिन लक्ष्य यदि टिप्पणी की भीड़ जुटाना होगा तो न माया मिलेगी न राम...
जवाब देंहटाएंआह!
जवाब देंहटाएंटिप्पणी करने में कोई बुराई नहीं है ..शर्त इतनी कि
झूठी न हो..जहाँ सच लिखने की हिम्मत न हो वहाँ टिप्पणी न हो.
संवाद का कोई सुगम विकल्प सूझता नहीं अन्यथा मैं तो टिप्पणी का विकल्प ही बन्द कर देता।
जवाब देंहटाएंएक बात कह सकता हूँ..सबको पता है 'टिप्पणी-विषयक' मूल शास्त्र. इसकी वज़हें, कमजोरी, सकारात्मकता आदि-आदि..! पर बिना इस बुखार के चैन भी नहीं..! :)
जवाब देंहटाएंमेरी नज़र में टिप्पणी लिखना , करना नहीं कहूंगा क्योंकि मैं तो लिखता हूं उन्हें भी ....पोस्ट लिखने से बेहतर कला है ........मगर शर्त यही कि कला जैसी ही दिखे । और सबसे बडा सत्य ये कि बचेगा वही जो उत्तम होगा और बांकी सब तो चीथडे हो जाएगा ।
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
टिप्पणी करने से ही तो आपसी पहचान मजबूत होती है। दरवाजे से कई लोग निकलते हैं लेकिन जो दस्तक देता है वही तो अपना होता है।
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉग जगत का सिरमौर "टिप्पणी"
जवाब देंहटाएंमहाशब्द इस दुनिया का
वेरी गुड !
जवाब देंहटाएं---bhgvaan ka lakh shukra hai sir,mujhe abhee iska nsha nhee lga,badhiya post----
जवाब देंहटाएंkya baat hai...
जवाब देंहटाएंपल भर हो भले पहर भर हो
चाहे सम्बन्ध उमर भर हो
केवल इतनी सी शर्त मीत
हम मिलकर बेईमान ना हो
mann prasanna ho gya
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