अभी अभी कुल जमा २ भक्तजनों ने रामचरित मानस का राम रावण प्रसंग सुना .भक्तजनों की क्या कहिये, वैसे ही कलि काल है उनकी संख्या घटती बढ़ती रहती है मगर आज तो बहुत ही कम हो गयी -बस घर के दुई परानी -बेटे और पत्नी -बिटिया बाहर है नहीं तो वह भी एक भक्त श्रोता है .राम चरित मानस की कई पारायण विधियाँ है -जो इस ग्रन्थ में उल्लिखित हैं वे तो महज दो है -एक तो नवाह्न पारायण और दूसरी मास पारायण की मगर लोकमानस में 'अखंड रामायण ' भी बहुत प्रचलित है जिसमें सामान्यतः २४ घन्टे के आस पास पाठ पूरा हो जाता है . मेरी पारायण विधि महीने वाली है -मगर कुछ अधिक समय लग जाता है अपरिहार्य कारणों से .कारण यह कि मैं खुद महज स्वान्तः सुखाय पारायण न करके प्रायः अर्थ के साथ प्रवचन मोड /मोड्यूल का सहारा लेता हूँ -भक्तजनों को हर्षित होता देख हर्षित भी होता हूँ और कभी कभी कोई भक्तजन प्रवचन के दौरान सोने लगता है तो क्रोध भी आता है और प्रवचन स्थगित भी कर देता हूँ -इसलिए थोडा समय अधिक लग जाता है.बहरहाल थोडा बैकग्राउंड देना जरूरी था न! आज से आप भी भक्तजनों की मंडली में शामिल हो रहे हैं ,अरे घबराईये न आप को तो कभी कभी ही सुनाऊंगा.
आज राम ने रावण से खुद युद्ध करने का निर्णय लिया है -कहा कि वानरों अब आप विरत होईये अब रावण से मेरा युद्ध देखिये .यह प्रसंग इसलिए आपको भी सुनाने का मन हो आया क्योंकि राम ने एक बहुत अच्छी सीख दी है रावण को -हे रावण व्यर्थ डींग मारकर अपने सुयशों का नाश मत करो -पराक्रम दिखाओ!एक बड़ा ही सुन्दर छंद है -
जनि जल्पना कर सुयश नासहूँ
नीति सुनहि करहिं क्षमा
संसार में पुरुष त्रिविध
पाटल रसाल पनस समा
एक सुमन प्रद ,एक सुमन फल
एक फलहिं केवल लागहिं
एक कहहिं करहिं नहिं
कहहिं करहिं एक
एक करहिं न केवल गावहिं
( हे रावण ,डींग हांककर अपना सुयश नष्ट मत करो ,क्षमा करो और एक नीति की बात सुनो (क्षमा इसलिए कि रावण विद्वान् था उसे नीति सिखाने की बात किंचित अशिष्टता थी )- इस संसार में तीन तरह के पुरुष होते हैं गुलाब ,आम और कटहल जैसे -जिसमे एक में तो केवल फूल लगा दिखता है फल नहीं(गुलाब ) , दूसरा आम जिसमें फूल (मंजरी -बौर ) भी लगा होता है और फल भी और तीसरा कटहल जिसमें फूल नहीं दिखता मगर फल ही दृश्यमान होता है -इसी तरह कुछ लोग बस हांक तो देते हैं उसे चरितार्थ नहीं कर पाते,कुछ जो कहते हैं कर दिखाते हैं और तीसरे कहते ही नहीं बस कर दिखाते हैं )
हे ब्लाग भक्त जनों आप ब्लॉग जगत में भी यह कथा साम्य ढूंढिए और यह सुन कर प्रणाम कीजिये -
एक करहिं न केवल गावहिं .......
जवाब देंहटाएंसमाज में नब्बे प्रतिशत ऐसे ही लोग हैं क्योंकि त्रेता-द्वापर और फिर कलयुग -
उस दौर से इस दौर तक परिवर्तन-बदलाव तो होना ही था ...
कथा-वाचन शैली अच्छी लगी ,श्रोताओं की संख्या बढ़ गयी है.
क्या बात है पंडितजी ! क्या प्रसंग इस्तेमाल किया साहब। बहुत वाजिब, बहुत सटीक। आपका इशारा भली भांति समझ गए सर। बिल्कुल दुरुस्त दृष्टांत है यह। हम भी घमंडीजनों से यही अर्ज़ करते हैं कि जिन सज्जन के दस सर हुआ करते थे उनकी तक तो बैंड बज गई, तो क्या इनकी शहनाई भी न बजे ?
जवाब देंहटाएंहा हा।
प्यारे राम जी को हमारा आदाब।
बहुत ही सटीक दृश्य देकर आपने अच्छा संदेश दिया है।
जवाब देंहटाएंजब हमें रामायण पाठ करवाना होगा तो पंडित जी आपको जरुर निमंत्रण भिजवायेंगे :)
व्यर्थ डींग मारकर अपने सुयशों का नाश मत करो .... इन् पन्क्तियों को आत्म सात कर लिया हूँ.... इस पंक्ति को खुद पर लागू भी कर लिया है..... आपका इस सुंदर पोस्ट के लिए आभारी हूँ....
जवाब देंहटाएंजय श्री राम....
कथा साम्य बहुत खोजा किन्तु मिल नहीं पाया...खैर कोई बात नहीं! पुन: एक बार ओर प्रयास करते हैं :)
जवाब देंहटाएंअपनी तो नियति ही है सुनना , सो यह उपदेश भी सुन लिया आर्य ! आभार !
जवाब देंहटाएंबढिया!
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात कही है...पर साम्य ढूंढे नहीं मिल रहा :) ..बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंबस, मानों आँख मींचे प्रवचन सुन रहे हैं, कुछ तो लाभ होगा ही... :)
जवाब देंहटाएंआनंद आया पढ़ कर आप से मानस को पढ़ने का मजा कुछ अलग ही होगा।
जवाब देंहटाएंमैं तो लिखने वाला था कि आपको मानस पढ़ते सुनकर आनंद आ गया. लेकिन ये पहले ही दिखा रहा है कि मेरा कमेंट अप्रूव होने के बाद दिखेगा ! कोई टेक्नीकल लोचा लगता है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा आपका पाठ --
जवाब देंहटाएंkya bat kah di Arvind ji ..bahut hi manan karne yogy baat hai...vyarth ka abhimaan kyun ??
जवाब देंहटाएंis baat ko gaanth baandh kar rakhungi main bhi..
aapka aabhaar...
ये तो हद हो गई ...साम्य ढूंढने के चक्कर में हमनें टिप्पणीकारों को भी शक की निगाहों से देखा :)
जवाब देंहटाएंफिर सोचा कि उन बानरों को चीन्हने के काम में लग जायें जौन ससुरे युद्ध-विरत होने को तैयारै बैठे थे :)
अब लगता है कि फल और फूलों के चक्कर में कांटा होने का रिस्क व्यर्थ है :)
जय हो!
जवाब देंहटाएंकथा-श्रवण का पुण्य-लाभ प्राप्त कर रहा हूँ । साप्ताहिक आवृत्ति होती रहे तो ठीक !
जवाब देंहटाएंआभार ।
@हिमांशु जी ,यह टेस्ट पीस है ,भक्तजनों (भक्तिने समाहित ) के रिस्पांस पर निर्भर करेगा !
जवाब देंहटाएंरामकथा का इतना सुन्दर और मधुर वाचन...!! ....किसी रामकथा विशेषज्ञ जैसा ही ...
जवाब देंहटाएंमगर ये समझ नहीं आया सीधे राम- रावण संवाद से शुरू कैसे हुआ ...(सोचने की बात है )
सुन्दर प्रस्तुति ....आप चौंकाते बहुत हैं ....!!
वाह ! सुनकर अच्छा लगा. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबाबा समीरानंद आश्रम के बाद आपका अखाडा भी प्रवचन के लिये तैयार हुआ. अब भक्तों का कल्याण होना सुनिश्चित होगया है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
प्रसंग तो अच्छा लगा. शैली भी. पर ज़रूर कोई बात हुई होगी. आप ऐसे ही तो ये प्रसंग शुरू नहीं करते. कोई कारण समझ में नहीं आया. वैसे भी, मुझे अभिधया कही गयी बात अधिक समझ में आती है, व्यंग्य या लक्षणा नहीं.
जवाब देंहटाएंकुछ भक्तजनों की जिज्ञासा यह है कि प्रवचन राम -रावण युद्ध से क्यों शुरू हुआ -
जवाब देंहटाएंकल मानस के मास पारायण में वही प्रसंग ही था और श्री राम के द्वारा रावण को डींग हांक कर अपना यश विनष्ट न
करने की सलाह मुझे अच्छी लगी सो भक्त श्रोता जनों से बांटना चाहा -
और ब्लॉग जगत में युद्ध का माहौल भी तो बना रह्ता है न इसलिए भी युद्ध से शुरुआत और शान्ति से समापन हो तो सर्वथा उचित ही है न ?
अन्यथा तो उचित नहीं लगता -अभी तो समर शेष है ......
श्रोताजन जुट नहीं रहे -मगर जो जुटे हैं वे प्रशस्त है -प्रवचन जारी रखने पर विचार किया जा सकता है !
अब संस्कृत की विदुषी को लक्षणा व्यंजना न समझ आये तो यह बात भी कोई सहज में आने वाली नहीं है -जरूर कोई (दीगर )बात है !
अरसे बाद प्रवचन सुनने का अवसर मिला .वह भी युद्ध प्रकरण !
जवाब देंहटाएंसाप्ताह में एक बार ऐसा प्रवचन रख दिया करें .
गुलाब/आम/कटहल के माध्यम से मनुष्य की श्रेणियाँ बताई!बहुत सुंदर पाठ लगा.
@पंडित वत्स जी भी pravachan पॉडकॅस्ट शुरू कर दें ,सप्ताह में एक दिन.सुझाव मात्र है.
विवाह की वर्षगांठ पर अनन्त शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंरावण जुद्ध प्रसंग के कोई ब्लॉगजगतीय निहितार्थ तो नहीं हैं?
जवाब देंहटाएंअन्यथा जय श्री राम।
वैवाहिक वर्षगाँठ की हार्दिक बधाई अवम शुभकामनायें अरविन्द जी।
जवाब देंहटाएंविवाह वर्षगांठ की शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रसंग..सार्थक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंकई बार ऐसा होता कि ज्ञानी जन कुछ ऐसा पढ़ लेते हैं कि उसे सभी को सुनाने का मन करता है..अब अच्छे व् गुनी श्रोता मिलें यह वाकई अहोभाग्य है ...वैसे ही मूढ़ को भी यदा-कदा साधू संगति का सुख मिल जाता है और वह इस कृपा के लिए ज्ञानी का आभारी हो जाता है.
..आभार.
बंधू वर ,
जवाब देंहटाएंआपके इस पक्छ से अपरिचित ही था. सार्थक हुआ श्रवण ! बहुत कुछ सिखा भी गया .