अपने गिरिजेश भाई इन दिनों तन मन लगन से एक अभियान में लगे हुए हैं -अपने वर्तनी सुधारों अभियान से हर किसी की ऐसी तैसी करने में पिले पड़े हैं .हाय बटोर रहे हैं . कभी मैं भी इस काम में तन मन से मुब्तिला होकर लोगों की बद दुआएं बटोरता फिरा था. सिद्धार्थ भाई का बड़ा सहारा मिला था उन दिनों .फिर यह 'बेकाम का काम' दिनों दिन उबाऊ बनता गया मेरे लिए -और कुछ अपने सुहृद जन भी वर्तनी की गलतियों की ऐसी ढेर लगा बैठे कि मैं दबता गया अपनी और उनकी गलतियों के नीचे -सहसा कमान छूट ही गयी अभियान की मेरे हाथो और मेरे भाग्यवश आदरणीय दिनेश जी के हाथ लग गयी .काफी बहस मुबाहिसा हुआ .एक मोहतरमा बार बार यह समझाती रहीं (मानो सब यहाँ बुद्धू बकलेल ही हैं ) कि महत्वपूर्ण संवाद है शब्द नहीं ...शब्द वब्द ब्रह्म नहीं है सब पंडितो के चोचले हैं -बात समझ में आ जाय चाहे अंखियों की भाषा से या फिर लात घूँसा से, अभीष्ट इतना भर है .बात सच भी लगती है संचार /व्यवहार वैज्ञानिको की राय में महज ९ प्रतिशत संचार - संवाद वाचिक / भाषिक है .बाकी तो हाव भाव भंगिमाएं मुद्राएँ और इशारे हैं जो जैव /मानव संवाद का दामन थामे हुए हैं -फिर बार बार ये वर्तनी विलाप क्यों?
गिरिजेश जी इन बातों का उत्तर देगें यही संबल है अब तो क्योंकि मैंने अपना हाथ इस प्रोजेक्ट से काफी पहले ही खींच लिया था -यह पोस्ट इसलिए लिखने को बाध्य होना पडा कि जिस कंटकाकीर्ण मार्ग को मैं त्याग चुका हूँ छोटे भाई निर्भीक उसी पर बढे जा रहे हैं बेपरवाह ,आत्मलीन या शायद आत्ममुग्ध भी ..यह नहीं देख रहे हैं कि लोगों की आहें अब उनके दामन तक पहुंचने लगी हैं .मैं गिरिजेश जी को डिफेंड करना चाहता हूँ इसलिए आज यह सब लिख रहा हूँ -मित्र जनों ,गिरिजेश भाई यह जान बूझ कर नहीं कर रहे हैं यह उनसे हो जा रहा है -यह एक वृत्ति है -वर्तनी दोष देखने पकड़ने की वृत्ति -मैं इसका भुक्तभोगी हूँ इसलिए यह मर्म समझ रहा हूँ -ऐसे व्यक्ति को राह चलते विज्ञापन बोर्डों के चित्ताकर्षक दृश्य बाद में दिखते हैं वर्तनी दोष पहले ....यह एक आब्सेसन है मगर है लोक कल्याण और शुचिता बोध से प्रेरित ...नहीं तो गिरिजेश जी जैसे व्यस्त व्यक्ति (वे एक बड़े उपक्रम में अधिशासी हैं) को कहाँ इतनी फुरसत कि वे हर किसी की पोस्ट पर वर्तनी जांचते चले .मगर वे सर्वजन हिताय इस काम में जुटे हुए हैं मगर क्या वे अकेले इस काम को पूरा कर पायेगें ? आपका सहयोग चाहिए .
कई जगहों पर उन्होंने वर्तनी दोष को इंगित करते हुए लम्बी लम्बी टिप्पणियां की हैं -उदाहरणार्थ -
श्रुंग को श्रृंग कीजिए। वैसे शुद्ध तो शृंग होगा - खटकेगा क्यों कि उचित टाइप सेट नहीं है। निम्न संशोधन भी अपेक्षित हैं: द्रष्टि - दृष्टि युध्ध - युद्ध चिडीयों - चिड़ियों श्रध्धा - श्रद्धा विद्वत्ता - विद्वता परम्मात्मा - परमात्मा सीखलाये - सिखलाये, अच्छा हो कि सिखाये कर दें चुडियाँ - चूड़ियाँ
बानगियाँ तो और भी हैं मगर बात समझने और समझाने के लिए यही काफी होनी चाहिए.
यह अभियान किसी अकेले एक बूते का नहीं है -एक अकेला थक जायेगा साथी हाथ बढ़ाना साथी रे .....
शायद सभी लोगों को राह चलते विज्ञापन बोर्डों के चित्ताकर्षक दृश्य बाद में दिखते हैं वर्तनी दोष पहले .. क्यूंकि आजकल ऐसे बोर्डों में जानबूझकर वर्तनी दोष छोड दिए जाते हैं .. गिरिजेश राव जी द्वारा वर्तनी दोष सुधारने के निर्देश दिए जाने का लोगों को बुरा नहीं मानना चाहिए .. क्यूंकि इसमें हिंदी की भलाई है!!
जवाब देंहटाएंhttp://mishraarvind.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंgoogle page rank 2
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/
google pagerank 3
http://girijeshrao.blogspot.com/
goole pange rank 2
लिखने में थोडा-बहुत तो, "अपनी ली हुयी शिक्षा" का इस्तेमाल करना ही चाहिए. तभी भाषा की शुद्धता बनी रह सकती है
जवाब देंहटाएंआपका विचार एकदम सही है.
वैसे हमारा भी गूगल पेजरैंक सिर्फ 2 ही है...इसलिए आपसे सहमति का जोखिम नहीं उठा सकते :)
जवाब देंहटाएंरचना जी को प्रणाम कीजिए कि बकौल गूगलपेज रेंक वे अधिक महत्वपूर्ण हैं।
जवाब देंहटाएंचावल पकाने से पहले कंकड़ बीनना कतई जरूरी नहीं। जब दांत के नीचे आए तब निकाल फैंको, पहले से आँख फोड़ने से क्या फायदा।
http://anvarat.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंgoogle pagerank 3
http://sangeetapuri.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंgoogle page rank 3
गूगल पेजरैंक तो नाप कर बता दिया जा रहा है लेकिन क्या कभी विचारों को नापने का भी कोई जरिया है क्या कि फलां ब्लॉग के विचार अच्छे रैक में आते हैं, फलां ब्लॉग के विचार बुरे रैंक में आते हैं।
जवाब देंहटाएंऐसा विचार नापू फीता हो तो मजा आ जाय :)
गिरिजेश जी की वर्तनी सुधार नीति का मैं भी समर्थक हूं, लेकिन यह बात मुझे उतनी प्रैक्टिकल नहीं लग रही है। तरह तरह के लोग हैं, तरह तरह का समय है उनके पास। किसी के पास समय ही समय है तो किसी के पास बस थोडा सा ब्लॉग में टहलबाजी कर सकने भर का ही समय है। ऐसे में कोई कितना इस ओर ध्यान दे पाएगा यह विचारणीय है।
गिरिजेश जी का इस तरह का प्रयास दिल खुश कर गया। वैसे लोग यदि सीधे सीधे इस तरह के वर्तनी दोषों पर ध्यान न भी दें तो यदि इस तरह वर्तनी दोष पर आने वाले ध्यानखेंचू कमेंट या मेल आएं तो यह कमेंट और मेल उनके सबकॉन्शियस माईंड को रह रह कर उद्वेलित जरूर कर रहे होंगे कि यार तनिक शुद्ध लिखा जाय।
पता नहीं, इस कमेंट में ही न जाने कितने वर्तनी दोष हैं :)
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जवाब देंहटाएं.
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आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,
आदरणीय गिरिजेश जी का परिश्रम तारीफ के काबिल है पर एक नेक सलाह उनको अवश्य दूंगा कि केवल उस ही ब्लॉग में वर्तनी दोष इंगित करें जहां पर ब्लॉग-स्वामी सहॄदय हो और उसे इस पर कोई आपत्ति न हो, बड़ी-बड़ी इगो लिये बैठे होते हैं ब्लॉगवुड में लोग, तनिक भी नहीं सुहाता उन्हें किसी के भी द्वारा अपने वर्तनी दोषों का भी जाहिर करना...यकीन न हो तो देखिये आज ही एक पोस्ट पर जहाँ टांग अड़ाना बीमारी है या कलाकारी इस पर विहद् विश्लेषण है।
हमारी दुआयें गिरिजेश जी के साथ हैं !
जवाब देंहटाएंऔर मिसिर जी ये प्रतिशत में बात कैसी ?
श्रृंगार जिसका भी हो पूर्ण होना चाहिये !
मुझसे तो कई बार फान्ट सपोर्ट नहीं होने के कारण भी गलती हो रही है या फिर शायद मैं अभी ठीक से प्रयोग सीख नहीं पायी हंू।
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी माफ़ कीजियेगा टिप्पणी में मिसिर जी को मिश्रा जी पढ़ा जाये !
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी का अभियान तो अच्छा है मगर क्या करें वो पंजाबी मे कहावत है न *वादडियाँ सजादडियाँ निभण सिरां दे नाल । अपना तो वो हाल है मगर कोशिश जरूर करेंगे। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआप ने हाथ बढ़ाने की बात की और पब्लिक हाथ बढ़ा रही है - अक्षतम् समर्प्यामि। दुआ, प्रशंसा, सलाह लेकिन यह काम कोई हाथ में लेने को तैयार नहीं। आप ने यूँ ही हाइलाइट कर दिया, हम तो चुपचाप लगे थे, पब्लिक भी चुपचाप झेलने में लगी थी :)
जवाब देंहटाएंबाकी रैंकिंग की बात यहाँ ऐसी ही है कि 'राका' कहा जाय और सामने वाला 'रुक रुक' बोले।
रैंकिंग बड़ी मजेदार चीज होती है। मेरा ब्लॉग यूँ तो दोयम दर्जे का है लेकिन जब आयातित हो कर http://girijeshrao.wordpress.com पर पहुँचता है तो 'थर्ड क्लास' का हो जाता है मतलब 3 । .. वहाँ कउनो इंडियन बैठा है जिसे इम्पोर्टेड माल से बहुत परेम है। :)
परेम न लिख कर प्रेम लिख दूँ क्या? कल भलमनसाइत दिन जो है ;)
@ अली जी,
जवाब देंहटाएंमिश्रा नहीं मिश्र होता है :)
गिरिजेश भाई का अभियान सही है पर शुद्ध व्याकरण के चक्कर में ब्लॉग जगत कहीं उन्हें केशवदास की उपाधि न दे दे.
जवाब देंहटाएं(वैसे वर्तनी वाले इस इशारे को नहीं समझ पाएंगे...?)
गिरिजेश भाई सही कह रहे हैं पर जोर देने की आदत है , जाती ही नहीं और अरविन्द भाई नें कभी टोंका भी नहीं कि मैं मिश्र हूँ मिश्रा नहीं :)
जवाब देंहटाएंपाँचवी का हमारा एक सहपाठी इतना सुन्दर लिखता जैसे गीताप्रेस की छपाई लेकिन उसकी पहुँच बस वहीं तक थी।
जवाब देंहटाएंउसके द्वारा व्याकरण की दी गई परिभाषा हमारे बुच्चुन आचार्य जी बहुत दिनों तक 'मदन ले कौड़ी दनादन' का संपुट देते दोहराते रहे -
"ब्याह करने की क्रिया को ब्याकरण" कहते हैं।"
इसका इस पोस्ट से कोई सम्बन्ध नहीं है। किसी को चिढ़ा नहीं रहे। अप्रासंगिक बात तो हम भी कर सकते हैं :)(जोर जोर से हँसने का सिम्बल क्या होता है?)
हा हा जोगीरा सर र र र ।
मुझे भी सिखना है ।
जवाब देंहटाएंआपके और हम सबके प्रयास से गिरिजेश जी के अभियान को बल मिलेगा... ये जरूरी भी था..
जवाब देंहटाएंजय हिंद... जय बुंदेलखंड...
गिरिजेश जी की वर्तनी सुधार नीति का मैं भी समर्थक हूं
जवाब देंहटाएंमैं स्वयं भी ऐसा ही प्रयास कर चुका हूँ, लेकिन लगा कि भैंस के आगे बीन बजाने से कोई फायदा नहीं
इसलिए प्रवीण जी की बात उचित है कि उसी ब्लॉग में वर्तनी दोष इंगित करें जहां पर ब्लॉग-स्वामी सहॄदय हो और उसे इस पर कोई आपत्ति न हो
बी एस पाबला
गिरिजेश जी सराहनीय कार्य में लगे हैं ... उन्हें आभार ...
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी सराहनीय कार्य में लगे हैं..
जवाब देंहटाएंमेरी वाट तो पता नहीं कितनी बार लगा चुके हैं...
लगे रहे मुन्ना भाई..
आरी, वर्तानी ढोस जन्बुझाकर थोड होत्या हो.
जवाब देंहटाएंवैसे आप का पेजरैंक २ होने की बधाई - हमारे सदा चर्चाविहीन ब्लॉग का तो शायद शून्य ही होगा!
गिरिजेश भाई, अब यह मिश्र-मिश्रा का जेंडर-वार यहाँ काहे शुरू करा रहे हैं? [आधुनिक वर्ग से निवेदन - प्राचीन परम्परा में पुरुष मिश्र लिखते थे और महिलायें मिश्रा]
जवाब देंहटाएंअब ये तो घणा गंभीर विमर्श उठता दिख रहा है..
जवाब देंहटाएंजहाँ तक गिरिजेश जी के वर्तनी सुधार आंदोलन (यस माई लॉर्ड, इट्स एन आंदोलन इन्डीड) का प्रश्न है, मैं इसका भयंकर समर्थन करता हूँ.. निश्चित रूप से लेखकों को वर्तनी की शुद्धियों का अधिकतम संभव ध्यान रखना चाहिये.. कारण, हिन्दी में अंतर्जाल पर स्तरीय जानकारी का वैसे ही अभाव है, जो थोड़ी बहुत जानकारी उपलब्ध है भी, वह वर्तनी दोष के चलते पाठक तक सही तौर पर न पहुँच पाये, इससे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति और कोई नहीं हो सकती।
माना कि ब्लॉगजगत में ज्यादातर पाठक स्वयं लेखक हैं, लेकिन गैर-लेखक पाठक वर्ग भी बड़ी मात्रा में उपलब्ध है.... यह अगंभीर पाठक वर्ग हिन्दी ब्लॉगों पर ऑथेंटिक न सही, लेकिन स्तरीय जानकारी की तलाश तो करता ही है, अस्तु ब्लॉग लेखक का थोड़ा बहुत दायित्व तो शुद्धता के प्रति बनता ही है..!
यह बात ऐसी नहीं, कि कोई इक्के-दुक्के लोग पूरे ब्लॉगजगत को बताते फिरें.. अपितु सभी लेखकों को स्वयं यह बात समझनी होगी.. गिरिजेश जी, सिद्धार्थ जी, अरविन्द जी के अभियान को शुभासंसा मिलनी चाहिये।
प्रवीण शाह जी की बात भी बहुत सत्य है.. दुःखद है कि ब्लॉगलेखकों का एक बड़ा तबका बहुत ही एमेच्योर तरीके से व्यवहार करता आया है.. हल्की सी असहमति जताती टिप्पणी को ज्यादातर लोग अपने अभिमान पर प्रश्नचिह्न के रूप में लेते हैं.. फलस्वरूप कुछ बेहतरीन बहसें ग़लत मोड़ लेकर सुपुर्दे-खाक़ होती पाई गईं हैं.. सुधारवादियों को अपने अभियान के दौरान इस बात का भी खयाल रखना होगा, कि उनके पी.आर. ज्यादा खराब न होने पायें..
एक बिन माँगी सलाह- स्थापित लोग, जहाँ तक हो सकें बारहा का प्रयोग करें.. गूगल ट्रांसलिटरेशन अक्सर ग़लतियाँ करता रहता है.. उदाहरण के लिये.. टिप्पणी को 90% जगह पर टिपण्णी लिखा हुआ मैनें देखा है.. कारण गूगल ट्रांसलिटरेशन!
वर्तनी सुधार आंदोलन को मेरा पुरजोर समर्थन!
वाह भाई!! ये बहुत अच्छी बात है. मैंने तो अपने लेखों में वर्तनी-सुधार के लिये उन्हें आमंत्रित किया था. ये नहीं पता था कि वे इस अभियान में इतनी तत्परता से लग जायेंगे. वैसे ब्लॉगर बन्धुओं को उनका एहसान मानना चाहिये कि उन्हें बैठे-बिठाये, बिना डिक्शनरी उठाये भूल सुधार करने का अवसर मिल रहा है. धन्य हो बाबा...!!!
जवाब देंहटाएंमेरे विचार से सिद्धार्थ जी, दिनेश जी और आपको भी इस अभियान में पुनः गिरिजेश जी का साथ देना चाहिये.
जवाब देंहटाएंआपके विचारों से सहमत हूँ और अपना समर्थन देता हूँ
जवाब देंहटाएंमेरी कोशिश रहती है कि लेख में वर्तनी दोष ना हो और टिप्पडी करते हुए भी ध्यान देता हूँ
वीनस केशरी
यह तो न्यूनतम अपेक्षा है .. ।
जवाब देंहटाएं.वीर तुम बढे चलो ,धीर तुम बढे चलो.
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी का यह आन्दोलन अत्यन्त सराहनीय़ है । हम तो पोस्ट लिखकर बहुधा गिरिजेशागमन की प्रतीक्षा में रहते हैं, कि जहाँ किसी को न दिखायी दे वहाँ भी आपकी दृष्टि की पहुँच है ।
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है यह आन्दोलन शुरु हुआ अपने नाम की वर्तनी को ’गिरजेश’(बहुत से ब्लॉग पर लिखा देखा मैंने) से ’गिरिजेश’ करवाने के लिये, और बाद में इसने व्यापक-रूप ग्रहण कर लिया ।
हम सब सहयात्री हैं इस आन्दोलन में ।
@परेम न लिख कर प्रेम लिख दूँ क्या?
कुछ भी लिंख दें । यह तो कैसे भी लिखे, शुद्ध ही है ।:)
गिरिजेश जी की दृष्टि बहुत तीव्र है मगर उन्हें दृष्टि ज़माने तक पहुँचाने वालों की और भी तीव्रतम है ...
जवाब देंहटाएंवर्तनी दोष सुधारने का ये झंडा -उत्सव उत्सव कामयाब रहे ...
@ हाँ ...मिश्र जी ने कभी टोका नहीं ...मिश्र नही मिश्रा होता है ...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंBehatrin Pahal...swagat hai.
जवाब देंहटाएंBehatrin Pahal...swagat hai.
जवाब देंहटाएंअच्छी बहस है. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गूगल का नया टूल प्रयोग में ज्यादा आसान है पर वर्तनी की गलतियाँ भी ज्यादा होती हैं, शायद आदत में न होने की वजह से. बारहा पर हाथ जम चुका है, पूरी कोशिश रहती है कि अशुद्धियाँ कम से कम हों.
जवाब देंहटाएंये मुहिम एक न एक दिन जरूर रंग लाएगी , और इसका....... लाभ दोष....तो भविष्य खुद तय करेगा । गिरिजेश जी, द्विवेदी, अरविंद जी और जितने भी ज्ञानी लोग ये कार्य कर रहे हैं वो पोस्ट लिखने पढने और टिप्पणी करने से ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
वर्तनी के साथ साथ हमें भाषा की शुद्धता पर भी ध्यान देना आवश्यक हैं....यथासंभव अन्य भाषाई शब्दों को काम न लिया जाये....
जवाब देंहटाएंमेरी कोशिश यही रहती है कि वर्तनी सही रहे..... हाँ! पर कभी....कभी.... ज्यादा लिखने के चक्कर में.... रौंग तो हो ही जाता है...
जवाब देंहटाएंमैं भी हरसंभव प्रयत्न करता हूं कि वर्तनी और व्याकरण संबंधी दोष न हों, लेकिन कभी कभी रह जाते हैं, कभी अज्ञानतावश, कभी जल्दी के कारण तो कभी टूल के चलते. मुझे यदि कोई इन दोषों के बारे में आगाह करता है तो बड़ी खुशी होती है. भाषा जितनी दोषरहित हो उतना अच्छा. अंग्रेजी में आपने कभी वर्तनी की इतनी अशुद्धियां देखी हैं? गिरिजेश जी को पूरा समर्थन.
जवाब देंहटाएंअच्छा है, कोशिश जारी रहनी चाहिए
जवाब देंहटाएंवर्तनी की गलती तो सभी से होती है. सबसे अधिक तो मैं ही करता हूँ. कोई गलतियाँ मुफ्त में सुधार दे इससे अच्छा और क्या हो सकता है!..स्वागतयोग्य कदम. सुंदर पोस्ट के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी सराहनीय कार्य में लगे हैं .. हम सभी को उनका समर्थन करना चाहिए ...... और कोशिश भी करनी चाहिए वर्तनी सुधारने की ..... मैं भी आज से ही शुरुआत करता हूँ ....
जवाब देंहटाएंगिरिजेश जी...एक बहुत ही सराहनीय काम कर रहें हैं...किसी को फर्क पड़ा हो या ना पर र्मैने थोड़ी मेहनत शुरू कर दी है....पहले जरा लापरवाही बरत जाती थी.पर अब कोशिश करती हूँ कि अशुद्धियाँ ना रहें.पूरी सफलता तो नहीं मिलती.G mail पर टाइप करती हूँ ,जहाँ कई बार ऑप्शंस मिलते ही नहीं...और 'कि' और 'की' में भी बहुत परेशानी होती है.....फिर भी उनकी इस 'एकला चलो रे' ने सबका ध्यान खींचा है...और थोड़ी बहुत कोशिश सब कर रहें हैं...क्यूंकि पता है कोई नज़र रख रहा है :)
जवाब देंहटाएंयहाँ ब्लॉगवुड अपना ब्लॉग दर्ज करवाएं। मुझे खुशी हो गई, शायद आपको भी।
जवाब देंहटाएंmain to google indic par 'Un' type karna chahta hoon to 'ohm' type ho raha hai. kisi ke paas hai iska solution?
जवाब देंहटाएं@ zeashan zaidi
जवाब देंहटाएंआप उसी लिखे शब्द पर क्लिक करें तो आपको कुछ शब्दों के चुनाव की सुविधा मिलेगी, जो चाहिए उसे चुन लें। उदाहरण के लिए यहाँ देखें
वैसे हिन्दी लिखने के लिए मैं इस युक्ति का प्रयोग करता हूँ
बी एस पाबला
राव साब के इस प्रयास की तो खैर जितनी भी तारीफ की जाय कम है और हमसब को उनका समर्थन और सहयोग करना चाहिये।
जवाब देंहटाएंDhanywad Pabla Ji
जवाब देंहटाएंआप हमें सुधारेंगे तो हमें अच्छा लगेगा.. हम सुधरने को तैयार बैठे हैं.. वैसे भी मेरे पिताजी को मुझसे और मेरे ब्लॉग से अक्सर शिकायत होती है की हिज्जों में गलतियाँ बहुत करते हो..
जवाब देंहटाएंवैसे कोई गूगल से भी तो पूछे की पेज रंक को क्या वह बरकरार रखा है?? मेरी जानकारी में तो यह ४-५ महीने पहले ही बंद कर चुका है.. :)