....सुबह दिल्ली यात्रा की तैयारियां कीं -केवल एक हैंडबैग जिसे यात्रा के दौरान साथ रख सकते हैं लिया - रेजर, जेल,शेविंग क्रीम,आफ्टर शेव , जिसे सुरक्षा जांच में अमूमन निकाल दिया जाता है को छोड़कर बस दो जोड़ी कपडे ,फरवरी माह की रीडर डाईजेस्ट के साथ आई सी ४०५ में पौने चार बजे सवार होकर ठीक एक घंटे ९ मिनट में दिल्ली एअरपोर्ट पर पहुँच गया -फेरी बस से अगले पांच मिनट में निकास द्वार तक और अगले ही पल इंदिरागांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के घरेलू उडान टर्मिनल से बाहर था -मनीष जी ने ध्यान आकर्षित करने के लिए हाथ हिलाया -मैंने जवाब दिया और उनकी ओर बढ चला -मैंने इधर उधर चौतरफा नजरे घुमाई किसी और को भी देखने की प्रत्याशा में -यद्यपि मैं जानता था कि किसी और के द्वारा एअरपोर्ट पर पहुंच जाने का वायदा महज एक मजाक ही था मगर मनुष्य भी कितना आशावादी है -क्षीण से क्षीण संभावनाओं को भी वजूद में आ जाने के सपने देखता रहता है .
मनीष ने टोका भी कि किसे देख रहे हैं ? मैंने सिर झटका और कहा कि किसी को नहीं चलिए चलते हैं -और संस्थान द्वारा भेजे वाहन से हम गंतव्य तक चल पड़े .अगले एक घंटे में में हम नेशनल फिजिकल लैबोरटरी के अतिथिगृह में थे-जहां रुकने की व्यवस्था थी .यह संस्थान ही भारतीय मानक समय के प्रतिपल के प्रबंध और घोषणा का काम करता है -रेडियों और दूरदर्शन समाचारों के ठीक पहले जारी होने वाली बीप बीप भी यहीं से प्रसारित होती है . यह कार्य एक एटामिक घड़ी के जरिये होता है-संस्थान के मुख्य द्वार पर ही एक डिजिटल घड़ी बनी हुई है जो इस संस्थान के मुख्य द्वार को दूसरे संस्थानों के मुख्य द्वारों से अलग पहचान देती है . जीवन में कभी कभार साधारण मानुषों को भी वी आई पी होने की गौरवानुभूति होती ही होगी जैसी कि मुझे होने लग गयी थी और मैं बलपूर्वक उस श्रेष्ठताबोध - विचार को दिमाग से परे धकेलने में लगा था -मनीष को मैंने चाय पिलवायी और विदा कर दिया क्योंकि उन्हें अपने आवास -इंदिरापुरम, गाजियाबाद के सृजन विहार तक जाना था .उन्हें देर हो रही थी ,रात के ८.३० बज चुके थे ....खाना खाया ..कुछ देर तक अपने सोनी एरिक्सन जी मोबाईल पर मेल और फेसबुक पर आये संदेशों को देखा जिसमें हिन्दी फांट का सपोर्ट न होने के कारण डब्बे डब्बे दिख रहे थे-रोमन स्क्रिप्ट और अंगरेजी के संदेशों को पढ़ा और जवाब भी दिया ...... फिर सो गया ....
२३ फरवरी ,२०१० मंगलवार
सुबह डोर वेल की आवाज से नीद खुली -मतलब घोड़े बेंच कर सोया -उठा, दरवाजा खोला .बेड टी साब! ट्रे संभाले एक अटेंडेंट बालक खडा था ..मतलब सुबह हो चुकी थी -घड़ी देखा,समय था ६.३० , रोज से भी डेढ़ घंटे ज्यादा सो गया था -क्या बेदिल दिल्ली की रातें सचमुच इतनी पुरसकूं होती हैं -शायद हाँ ,क्योंकि तभी उदीयमान प्रसिद्ध दिल्ली ब्लागर मिथिलेश जी का एक एस एम एस सन्देश भी मिल गया था -निश्चित ही रात पुरसकून थी -सन्देश था -
पानी की बूंदे फूलों को भिगों रही हैं
नई सुबह इक ताजगी जगा रही है
हो जाओ आप भी इनमें शामिल
एक प्यारी सी सुबह आपको जगा रही है
गुड मार्निंग!
पहले तो मैं चौका कि मेरे गोपनीय दिल्ली प्रवास की खबर कैसे और किससे लीक हो गयी (ये तो मैंने आज ही देखा जाकिर मियाँ इसको तस्लीम पहेली की पोस्ट पर उद्घोषित किये बैठे हैं.) मगर फिर संयत होकर मैंने एस एम एस का जवाब लिखा -जी सचमुच सुहावनी है सुबह दिल्ली की ......शुक्रिया ..मगर एस एम एस पहुंचा नहीं और आउट बाक्स में ही ठहर गया .नए उम्र के ब्लॉगर सहज ही बहुत व्यग्र होते हैं -अब इतने प्रेम से एस एम एस लिखा गया था तो जवाब देना भी जरूरी था -फोन मिला ही दिया -मिथिलेश की उत्साहित आवाज सुनायी दी -शिष्टाचार संबोधनों का आदान प्रदान हुआ -मैंने वही एस एम एस वाला जवाब दुहरा दिया -सचमुच सुहावनी है सुबह दिल्ली की!(रात में बूंदा बांदी हुई थी और मौसम सचमुच सुहाना हो गया था मगर मुझे यह बाहर निकलने पर पता चला था ...)
मिथिलेश की सहज जिज्ञासा थी कि सर आपको कैसे पता चला ?
"मैं दिल्ली मैं हूँ ''-फिर तो शुरू हुआ शिकायतों का सिलसिला ..और मैं डिफेंसिव मोड मे .....बहरहाल मैंने उनसे गोपनीय रहने की क्षमा मांग ली ....और ब्लॉगर मित्रों को भी अपनी व्यस्तता के मद्दे नजर न बताने की गुजारिश की और दैनिक क्रिया कर्म में लग गया -१० बजे से वह गोपनीय काम जो शुरू होने वाला था जिसके लिए मैं वहां पहुंचा था ....नाश्ता वगैरह के बाद ठीक दस बजे संस्थान का वाहन मुझे लेने आ गया था ......
जारी ......
हम तो आपकी अनुपस्थिति से ही अंदाजा लगा बैठे थे कि किसी गोपनिय मिशन पर सवारी निकली है. जरुर कोई बात है. इंतजार करते हैं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
badhiya...........
जवाब देंहटाएंnot fair at all...
जवाब देंहटाएंregards
गोपनीय यात्रा!?
जवाब देंहटाएंखुदा खैर करे :-)
गोपनीय मिशन .... ये खबर सनसनी को पहुँच गयी तो सुर्ख़ियों में आ जायगी ........
जवाब देंहटाएंवाकई बहुत गोपनीय ..अच्छा नहीं किया आपने वाकई :)
जवाब देंहटाएंआप घोड़े बेंच सो रहे हैं और मा पलायनम् पर जबरदस्त फगुआ चल रहा है!
जवाब देंहटाएंकैसे आ रही है नींद?!
अरे हजूर !! ई जेम्स बोंड की तरह म्यूजिक काहे बजा रहे हैं ... जब इतनी गोपनीय थी तो अब काहे बता कर दिल जला रहे हैं सबका...
जवाब देंहटाएंहाँ नहीं तो...!!
अरविंद जी, ये छापामार कला कहाँ सीखी?
जवाब देंहटाएंतभी मैं सोचूँ....कि आप नज़र क्यूँ नहीं आ रहे थे.... आज सोचा था कि शाम में आपको फोनियाऊंगा .....अभी फोनियता हूँ .... देखिये घंटी जा रही है.... तनिक उठाइए तो....
जवाब देंहटाएंओफ्फोह ...२२ फरवरी के संस्मरण में आपने भनक तक नहीं लगने दी कि आपके पास घोड़े भी थे और जब २३ फरवरी को उन्हें बेच डाला तो फिर दिल्ली जैसी जगह में रकम के साथ आपको नींद कैसे आ गई ? खैर ...ब्लागिंग के वास्ते घरेलू बजट से जो भी उधारी लिये थे वो पैसे लौटा दीजियेगा !
जवाब देंहटाएंघर वापसी पर हार्दिक स्वागत है :)
आशा है, यात्रा आनंद दायक रही होगी.
जवाब देंहटाएंबढ़िया है..गोपनीय यात्रा की गोपनियता कायम रखे रहिये...:)
जवाब देंहटाएंहो सकता है अगले प्रधान मत्री आप ही बन जाये... लेकिन गोपनियता कायम रखे, यह तो बीच की बात है, ओर घोडे कितने मे बेचे???
जवाब देंहटाएंTabhi itane dino se aapki kami khal rahi thi .....lag hi gaya tha ki aap kahi bahar gae hue hai!
जवाब देंहटाएंaapke punha aagaman ki pratiksha me ...
Sadar
ऐसी गोपनीयता !
जवाब देंहटाएंधन्न हो ।
होली पर कुछ बमफाट लिखिए।
सर जी मेरी शिकायत यथावत बनी है, लेकिन कोई बात नहीं मैं आपसे वाराणसी मे ही जल्द मिलने वाला हूँ ।
जवाब देंहटाएंसर जी उपर वाली टिप्पणि मेरी ही है।
जवाब देंहटाएंबाकी सब तो ठीक ही है. लेकिन ये लाइन "मैंने इधर उधर चौतरफा नजरे घुमाई किसी और को भी देखने की प्रत्याशा में..." अब ये भी बता देते कि प्रतीक्षा किसकी थी?????
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