२३ फरवरी ,२०१०
निस्केयर (NISCAIR ) में जिस गोपनीय काम के लिए गया था वह तो अपेक्षा के विपरीत जल्दी ही निपट गया .तीन बजे हम फुरसत पा गए थे -अब कोफ़्त हो रही थी की आखिर कुछ ब्लॉगर मित्रों को बता दिया होता तो उनसे मिलना जुलना हो जाता .अब इतने कम समय में शायद यह संभव नहीं था तो मैंने अपने कुछ स्वजनों /परिजनों से मिलने को ठानी .मनीष को बुलवा लिया और निकल पड़ा मालवीय नगर जो दक्षिण दिल्ली में है -दिल्ली की दूरियां और ट्रैफिक .... लाहौलविलाकूवत .....हमें बहन ज्योत्स्ना के यहाँ ही पहुँचने में आठ बज गए -मन में यह भी आया कि रंजना भाटिया जी भी उधर ही कहीं रहती हैं और मुक्ति भी जरा सा ही कुछ और दूर .....मगर अब इतना समय भी नहीं बचा था और न ही किसी भलेमानुष के यहाँ जाने का वह उपयुक्त समय ही था -ज्योत्स्ना ने खाना खिलाने का बहुत आग्रह किया मगर मैंने वहीं पुष्प विहार में अपने एक मित्र के यहाँ जल्दी पहुँच जाना उचित समझा -वहां भी आवाभगत खूब हुई -खाना खाने की मनुहार भी मगर खाने के दाने तो कहीं और प्रतीक्षा कर रहे थे-वहां से एक लम्बी और उबाऊ ड्राईव पर दिल्ली से ही सटे और लगभग दिल्ली का ही एक पार्ट -गाजियाबाद के इन्दिरापुरम के सृजन विहार का जी -११ कक्ष मेरा पलक पावडे बिछाए प्रतीक्षा कर रहा था -यह मनीष का घर है जो विज्ञान प्रसार में वैज्ञानिक अधिकारी हैं -वहां चार जोडी ऑंखें हमारी राह देख रहीं थी -अनुपमा और नवजात मनु जिसके नामकरण के लिए मनीष ने मेनका गांधी विरचित एक बेटियों के नाम की पुस्तिका भी खरीद रखी है जो छपी तो है पेंगुइन से मगर इसमें सूर्पनखा का भी नाम है -अब भला बताईये कोई भारतीय अपने बेटी का सूर्पनखा नाम कैसे रख सकता है! मेनका गांधी जैसे लोगों को भारत और भारतीयता की ऐसी ही भोथरी समझ है -बस टीप टाप कर किताबें जरूर प्रकाशित करवा लेती हैं.बहरहाल रात के १२ बजे हमने अनुपमा के हाथों का बहुत ही सुरुचिपूर्ण और मन से बनाये गए भोजन -व्यंजनों का लुत्फ़ उठाया -देर से सोये मगर सुबह जल्दी उठ गए -कसक यह रह गयी कि बहुत प्यारी सी मनु के फोटो और इस सुन्दर छोटे से परिवार की तस्वीरें हम अपने फोटोकैम से आपाधापी और भागदौड़ के चक्कर में नहीं उतार सके .
२४फरवरी २०१०
आज तो वापसी का दिन था ....सुबह मनीष के यहाँ आलू के पराठे और सेवईं का तगड़ा नाश्ता करके निकल पड़ा ,पहले विज्ञानं प्रसार, जो मनीष का संस्थान है . वहां विज्ञान के लोकप्रियकरण और संचार में जुटे कई महारथियों से मिला -सुबोध महंती ,निमिष कपूर आदि मित्रों से ..फिर हम दिल्ली की सड़कें फिर से नापने निकल पड़े .
पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक़ दिल्ली युनिवर्सिटी में पढ़ रही प्रियेषा (बेटी ) को बनारस लौटना था --प्रियेषा ने पूरा झाम फैला दिया था -पापा या तो आप मुझे भी प्लेन से ले चलो या फिर आप भी हमारे स्वर्ग रथ -गरीब रथ से ही चलो .....बड़ी मुश्किल थी ...मुझे तो संस्थान की तरफ से दोनों ओर का फ्लाईट अनुमन्य की गयी थी मगर प्रियेषा के लिए अतिरिक्त न्यूनतम ४००० रूपये ? हिम्मत नहीं हो रही थी .मैंने प्रियेषा की बड़ी चिरौरी विनती की मगर जैसा कि बिट्टी की आदत है अपने फैसले से टस से मस नहीं होतीं (जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय में पढने का फैसला भी इनका ही था ) लिहाजा बाप ने बेटी के लिए इतिहास का एक सबसे बड़ा त्याग किया और संस्थान से गरीब रथ की वापसी का किराया मात्र ५०० रूपये लिया और गरीब रथ से ही वापस लौटने का फैसला कर लिया -(प्रियेषा ,आखिर हम तुम्हारे बाप जो हैं -तुम भी क्या याद रखोगी हा हा हा) ..प्रियेषा से कहा कि तुम समय से रेलवे स्टेशन पहुँच जाना और मैंने इस दौरान अपने कुछ और मित्रों से मिलने का मन बना लिया -
मनीष ने अपने संस्थान से वाहन की जुगाड़ कर ली थी -हम साथ ही राजेश शुक्ल जी से मिले जो नेशनल काउन्सिल आफ अप्लायिड इकोनोमिक रिसर्च (आई टी ओ के समीप ) में रिसर्च फेलो हैं (यहाँ रिसर्च फेलो बड़ी ऊँची तोप है ).वहां से हम एक दूसरे तोप आईटम डाक्टर मनोज पटैरिया से मिलने राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद् नई दिल्ली(यह मेहरौली रोड पर है ) पहुंचे -वहां सेक्योरटी से कुछ झडपें भी हुईं और ब्लॉगर चरित्र का पूरा निर्वहन किया गया .तमतमाए राजेश शुक्ल ने यहाँ तक कह दिया कि असली आतंकी यहाँ फोड़ कर चले जायेगें और तुम्हारी सारी काबिलियत तब नहीं दिखेगी -बहरहाल मैं सेक्योरिटी की समस्याओं को समझता हूँ -बात संभल गयी .हम वहां से चार बजे फुरसत पा गए -मनीष को वहीं छोड़ा और राजेश जी ने मुझसे यह पूंछा कि ट्रेन कहाँ से हैं -पुरानी या नई दिल्ली से ? मैंने अकस्मात कहा नई दिल्ली और उन्होंने अपने विभाग के वाहन से मुझे अगले आधे घंटे में नई दिल्ली स्टेशन छुडवा दिया. ट्रेन का समय था शाम को ५.५० और मुझे भूख सी लग आई थी .
जारी .......
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
पानी की बूंदे फूलों को भिगों रही हैं
जवाब देंहटाएंनई सुबह इक ताजगी जगा रही है
हो जाओ आप भी इनमें शामिल
एक प्यारी सी सुबह आपको जगा रही है
गुड मार्निंग!
आज ही दोनो पोस्ट्स पढी रोचक रही यात्रा। ऐसी ही गुपचुप यात्रा मै भी करने वाली हूँ दिल्ली की। धन्यवाद इस जानकारी के लिये।
चलिए सर जी ये जानकर बहुत खुशी हुई की आपकी यात्रा सुखःद रही, संस्मरण लाजवाब लग रहा है पढ़ने में ।
जवाब देंहटाएंसजीव और ताजगी भरी यात्रा.
जवाब देंहटाएंबंधुवर, गुप्तयात्रा की इतनी बातें बारबार निकलें गुप्त मिशन पर,अंदाज अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंआप के संस्मरण से आप को जानने का बेहतर अवसर मिल रहा है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा दिल्ली यात्रा संस्मरण...बिटिया के साथ लौटे ये और भी बढ़िया रहा...
जवाब देंहटाएंआपकी सुखद यात्रा .....और बिटिया के साथ गरीब रथ से जाने का सफर ..पढ़ कर बहुत अच्छा लगा .......
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक यात्रा वृतांत रहा. इसमे से अभी यह स्पष्ट नही हो पाया कि आपने वहां कितने घोडे निपटाये? या इस गोपनीय मिशन में ताऊ के संतू गधे को ही सलटा दिया? सस्पेंस अभी बरकरार है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आप दिल्ली आये थे?
जवाब देंहटाएंबताना चाहिये थी.
आपका संस्मरण ..अंक दो पढ़कर कुछ प्रतिक्रियाएं उपजीं जरुर पर दे नहीं पा रहे हैं...शब्द जो हमने छांटें है लिख देते हैं ! प्रतिक्रिया की कल्पना आप करके देखिएगा ! मेनका गांधी / फोटो / बिटिया / सेक्युरिटी !
जवाब देंहटाएं( प्रतिक्रिया पहेली के लिए संकेत ... आगामी अंक की प्रतीक्षा में )
---सर ,आप आये भनक तक नहीं लगी----
जवाब देंहटाएंयात्रा सुखद रही अति हर्ष हुआ!!!
जवाब देंहटाएंआप के संस्मरण से आप को जानने का बेहतर अवसर मिल रहा है।
जवाब देंहटाएंसर, गुप्त-यात्रा और वो भी दिल्ली की!! पकिस्तान के साथ वार्ता के उपलक्ष में गए थे क्या? यात्रा वृत्तांत बढ़िया लगा. वैसे अगर पकिस्तान के साथ वार्ता के उपलक्ष में कुछ सुझाव देने गए हों तो खुलासा किया जाय.
जवाब देंहटाएं@प्रयास ,
जवाब देंहटाएंअभी यात्रा पूरी नहीं हुयी है
बिटिया आप पर ही गयी लगती हैं. जिद की पक्की और लगन की धनी. अच्छा है.
जवाब देंहटाएं@भूत भंजक भाई!
जवाब देंहटाएंमैं जिद्दी हूँ ?
एक तो मिले नहीं आप ऊपर से सब लिख रहे हैं :)यानी की जले पर नमक ..:)
जवाब देंहटाएंहम्म, तो अब ब्रेक के बाद की प्रतीक्षा करते हैं..
जवाब देंहटाएंक्या अरविन्द जी , दिल्ली आये भी और दिलवालों से मिले भी नहीं । ओह !मेरा मतलब दिल्ली वालों से ।
जवाब देंहटाएंखैर अगली बार सही ।
शुभकामनायें।
यात्रा वृतांत बहुत ही रोचक ठंग से प्रस्तुत किया आपने कभी कभी तो द्रश्य इतने सजीव लगे की खुद को आपके साथ ही पाया......लेकिन आलू के पराठे खा नहीं पाए हाथ बढाया भी पर हाथ नहीं आए :)
जवाब देंहटाएंआभार !!
रोचक वृतांत
जवाब देंहटाएंप्रतीक्षा अगली कड़ी की
बढ़िया..यात्रा जारी है...पढ़ रहे हैं...और हम भी यह हठीपना देख रहे हैं...
जवाब देंहटाएंपढ़ रहा हूं, अगली किश्त की प्रतीक्षा कर रहा हूं, लेकिन साथ ही शिव कुमार भैया द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब का भी इंतेजार कर रहा हूं
जवाब देंहटाएं;)
हम कुछ नहीं बोलेंगे...पर आपकी बिटिया बहुत प्यारी है...
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