गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

रिटर्न टू अल्मोड़ा से ....कृपया ध्यान दें , वयस्क सामग्री है !

इंटर गवर्नमेंटल पैनेल आन क्लाईमेट चेंज (IPCC ) के मुखिया और इसी संस्थान के लिए नोबेल पुरस्कार झटक लेने वाले अपने राजेन्द्र पचौरी साहब इन दिनों सुर्ख़ियों में हैं, मगर इस बार कारण दूसरे हैं . हिमालय के ग्लेशियरों के पिघल जाने  संबंधी २००७ में किये गए अपने दावों में कतिपय गलतियों के लिए उनकी खिंचाई अभी थमीं नहीं थी कि एक दूसरा मामला उनकी जग हंसाई का कारण  बनता जा रहा है .यह दूसरा मामला दरअसल उनके रोमांटिक उपन्यास रिटर्न टू अल्मोड़ा को लेकर है जिसके हाट विवरणों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में बवेला मचा हुआ है .
 कृपया ध्यान दें ,आगे वयस्क सामग्री है -
 रिटर्न टू अल्मोड़ा  की कहानी का  मुख्य पात्र  एक मौसम विज्ञानी  संजय नाथ है जिसके साथ खुद पचौरी साहब का स्पष्ट तादात्म्य झलकता है -साठोत्तरी जीवन में पदार्पण कर चुके संजय नाथ अपने संस्मरणों का साझा करते हैं पाठकों से -कैसे वे भारत के एक कसबे से निकल कर पेरू से होते हुए अमेरिका पहुंचे और उनकी एक अध्यात्मिक यात्रा पूरी हुई .उनके उपन्यास में वनों  को विदीर्ण करते ठेकेदार माफिया और भ्रष्ट राजकीय तंत्र के साठ गाठ  का खुलासा तो है मगर उपन्यास के गर्म वृत्तांत पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों और साहित्यकारों और मीडिया के बीच चर्चा का विषय बन चुके है जो चटखारे ले लेकर उन्हें पढ़ और एक दूसरे से बतिया रहे हैं -नोबेल प्रतिष्ठा प्राप्त एक जग प्रसिद्ध शख्सियत की  यौनिक आसक्ति/फंतासी का मसला  गरमाया हुआ है .कई विवरण तो बहुत ही गरम हैं -यहाँ उद्धृत करने में की बोर्ड पर थिरकती अंगुलियाँ  शायद  और भी थरथरा उठें, मगर कुछ बानगी तो न चाहते  हुए भी  जी कड़ा करके यहाँ दे रहा हूँ -बस गुजारिश यही है कि मित्रगण मुझे बख्श देगें -भैया इदं न मम -यह मेरा नहीं पचौरी साहब का जज्बा है और मैं तो उनके जज्बे को देख खुद भी  हतप्रभ हूँ -प्रतिभा और सेक्स फंतासी में जरूर कोई न कोई सम्बन्ध है जरूर -हा हा -लीजिये मुलाहिजा फरमाएं सीधे रिटर्न टू अल्मोड़ा से .......

"अपनी  महबूबा शिरले मैक्लीन  से नैनीताल में  संजय के मिलन का यह पहला मौका था  -वह खुद संजय को बेडरूम में ले गयी ....उसने पहले गाऊँन उतारा ,नाईटी को भी नीचे सरका दिया और  शरीर को रजाई के भीतर  ढकेल दिया ...संजय ने उसे बहुओं के घेरे में ले लिया   और ताबड़तोड़  चुम्बनों की बरसात कर डाली...धीरे धीरे बाहुओं का  कसाव और चुम्बनों की  गहराई बढ़ती गयी ....
मैक्लीन फुसफुसाई ,सैंडी .मुझे आज कुछ नया अनुभव हुआ ....मेडिटेशन के ठीक बाद  तो तुम गजब ढाते हो .....क्यों नही तुम हर मेडिटेशन सेशन के बाद एक यह सेशन भी करते ....."

यह तो बस एक छोटी सी बानगी है .मुख्य पात्र के नारी उभारों  के प्रति असीम ललक के वृत्तांत से पृष्ठ दर पृष्ठ रंगे हुए हैं ...... यौनिक आनंदों के खुल्लम खुलाखुल्ला उल्लेख तो उपन्यास में खुला खेल फरुखाबादी से भी आगे बढ़ता  चला गया  है.
एक और बानगी ...."संजय ने एक स्थानीय  सावली  सलोनी कन्या को विनय के बिस्तर पर देखा ... उसकी भी सहसा एक अतृप्त कामना बलवती हो उठी ....उसने  अपने कपड़ों को उतार फेंका और संजना  के शरीर की स्पर्शानुभूति में जुट गया .खासकर उभारों को.........लेकिन अतिशय उत्तेजना के चलते शुरू होने के पहले ही वह ढेर हो गया था ......
.....उसने कन्धों को थोडा पीछे की ओर पुश किया इससे उन्नत उभार आगे की ओर और उभार पा गए ....जिन्हें देखकर उसकी सांसे धौकनी हो चलीं ...."
उपन्यास के कई वृत्तांत समूह यौनिक आनन्द पर फोकस होते हैं .एक दृश्य में तो नायक चलती ट्रेन की सहयात्री के रेशमी  लाल रुमाल को झटक कर   उसी के ही सहारे  अपनी पिपासा  शांत कर लेता है . 

यूनाईटेड नेशंस के अधिकृत एक वैश्विक संगठन का बॉस और नोबेल सम्मान से जुड़े एक प्रखर मेधा के वैज्ञानिक के लिए ऐसा क्या आन पड़ा कि वह भारतीय सन्दर्भ में अश्लीलता से भरे एक सतही  रूमानी उपन्यास की रचना कर बैठा ? उपन्यास का विमोचन अभी हाल ही में मुम्बई में उद्योगपति  मुकेश  अम्बानी के हाथों हुआ -प्रतिभा का एक और अधोपतन! सर्वे गुणा  कांचन माश्रयंते ....

पचौरी  अपने इन कृत्यों से भारतीयों के सामने कौन सा आदर्श स्थापित कर रहे हैं ?-कहीं इस व्यक्ति को पहचानने में पूरी दुनिया को कोई  धोखा तो नहीं हुआ है ? 
चाहें तो कुछ यहाँ,  और यहाँ  भी देख सकते हैं .


 


40 टिप्‍पणियां:

  1. धन्य है पहिलै नाईस सुमन वर्षा शुरू हो गयी -बस पोस्ट के छपने के अगले ही पल ....अब काँटों का इंतज़ार है हा हा

    जवाब देंहटाएं
  2. अब ये तो पचौरी साहब खुद ही बता सकते हैं कि उन्हें यह उपन्यास लिखने की जरूरत क्यों आ पड़ी? हो सकता है अपनी कृति को बेस्ट सेलर बनाना चाहते हों और कोई अन्य मार्ग नहीं दिखाई पड़ा हो।

    जवाब देंहटाएं
  3. If he had made it into a film , it would have been a matter of criticism 'cos film is for mass consumption cutting across age groups , but i do not think Pachauri has committed a sin by writing a novel embellished with these intimate encounters. Eat Kachauri and read Pachauri is my verdict !

    जवाब देंहटाएं
  4. मान गए मुनीश भाई आपको .....कचौरी दबाईये (मुंह में ) और पचौरी (को ) पचायिये -वाह !

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रतिभा का एक और अधोपतन! सर्वे गुणा कांचन माश्रयंते ...

    बात पूरी हो गई.


    बकिया तो कचोरी-पचोरी काम्बिनेशन सही ही कहा है. :)

    जवाब देंहटाएं
  6. look who !!! is finding nudity in creativity

    जवाब देंहटाएं
  7. 'नाईस सुमन वर्षा'!
    --------------
    Khushwant Singh,Shobha de and Pachauri...who is next..
    ---------------
    publicity stunt..nothing else!
    ----------------
    saal 2009-10 ke bhi tak ke adhiktar 'naami puruskaar' aur 'naami puruskaar vijeta' vivadon ke ghere mein hain.
    ------

    जवाब देंहटाएं
  8. :)क्या ये असहजता है ? बौद्धिक संसार की सिद्धियों और दैहिक अनिवार्यताओं का घालमेल क्यों किया जाये ? क्या बौद्धिकता और नपुंसकता एक दूसरे की पर्याय हैं ? यह किसी प्रायवेट डायरी के अंश तो नहीं ? एक उपन्यास उन्होंने आंग्ल भाषी पाठकों के लिए लिखा है अतः हिंदी पाठक जगत की यौन नैतिकता और निषेध उनपर थोपना क्या उचित है ? कितने ही अंग्रेजी उपन्यास ( विशेषकर जासूसी ) इस तरह के विवरणों से भरे हुए अनूदित होकर हिंदी पाठकों की आंखों की चमक और जिस्म की हरारत बढ़ा रहे हैं ( मार्केट से आंकड़े लिए जा सकते हैं ) तो फिर अन्दर स्वीकृति...बाहर यौन वर्जना जैसा द्वैध क्यों हो ? फैंटेसी बतौर ही सही यौन सामर्थ्यता और आनंद की अनुभूति से क्या कोई सिर्फ इसलिए वंचित कर दिया जाए की वह वैज्ञानिक है ?

    ये सवाल हैं !
    मेरा जोर आंग्ल भाषी उपन्यासकार और आंग्लभाषा के पाठकों पर है ! मैं वैज्ञानिक के सन्यासी होने के विचार की अपरिहार्यता के विरुद्ध हूँ ! फिलहाल मैं फेंस पर पचौरी की तरफ टंगा हुआ हूँ :) आप कोई ठोस वजह बताइये जिससे मैं कूद कर फेंस के दूसरी तरफ आ सकूं :)

    जवाब देंहटाएं
  9. @अल्पना जी आपने२००९-१० के पुरस्कारों की उपयुक्तता पर गौर किये जाने वाली बात कही है -दर है की कहीं यह वर्ष एक ट्रेंड सेटर वर्ष न बन जाय .
    @अली साहब आपने कलम / की बोर्ड तोडू टिप्पणी कर दी है ,आपसे असहमत नहीं हुआ जा सकता -अब छोटे मोटे वैज्ञानिक तो हम भी हैं ही -फेंस के इसी ओर रहिये पार्टनर --

    जवाब देंहटाएं
  10. अब इतनी गर्म माहौल को पचौरी जी झेलेंगे तो ग्लेशियर तो पिघलेंगे ही :)

    लोग नाहक उन पर तोहमत लगा रहे हैं कि ग्लेशियरों के पिघलने पर गलत सलत रिपोर्ट पचौरी पेश किये हैं। जो ऐसा बोले, उसे यह किताब थमा दो। किताब पढते ही खुद ब खुद एक और किताब लिख डालेगा -

    ग्लेशियर, द डाईंग एरा :)

    जवाब देंहटाएं
  11. दिल खोल कर लिखी गयी किताब, जाहिर है, बिक्री भी दिल खोल कर ही होगी।
    परिचय कराने का शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  12. हम तो खैर केवल साहित्‍य के मास्‍टर भर हैं और नहीं जानते कि क्‍या ये कोई ऐसी अहम साहित्यिक कृति मानी गई है जिस पर ध्‍यान दिया ही जाए क्‍योंकि उन्‍हें नोबेल तो साहित्‍य में मिला नहीं :)

    पर शरारतन ये कहने का मन जरूर कर रहा है कि आपकी निगाह कहॉं कहॉं और क्‍यों जा अटकती है इसका मनोविश्‍लेषण करना बनता है। पर चलिए इसी बहाने अभार, कसाब, चुम्‍बन... कितने ही गूगल कीवर्ड आपने जुगाड़ लिए...ढेर सा सर्च ट्रेफिक मुबारक हो :)

    जवाब देंहटाएं
  13. IPCC is pressure valve between activist groups and corporate interests.

    They are acting as double agents.

    जवाब देंहटाएं
  14. उपन्यास पढ़े बिना 'पचौरी' पर टिप्पणी नहीं किया जा सकता.
    साहित्य जगत में क्या कुछ घट रहा है इसकी जानकारी भी जरूरी है.
    जानकारी देने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  15. पचौरी को छोडिये अरविन्द जी , ये तो वही बात हो गई ---जहाँ लिखा हो--- यहाँ झांकना मना है ---लोग वहीँ जाकर ज़रूर देखते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  16. विवेक रस्तोगी जी की ई मेल से प्राप्त टिप्पणी -

    बहुत गरम गरम बातें चल रही हैं, देखियेगा कहीं अपना हिमालय ही न पिघल जाये इसकी गर्मी से। क्यों नाहक कचौरी को पचौरी के पीछे बदनाम किया जा रहा है। वैसे भी देखें तो क्यों साहित्य को इस नजर से देख रहे हैं, जैसा साहित्य है वैसे ही उसके पाठक होंगे, वहाँ कुछ नया मिलने वाला नहीं है। जो है वह सब पहले से ही उपलब्ध है बस लेखक ने नये आयाम गढ़ लिये हैं।

    जवाब देंहटाएं
  17. हम तो दिनेश जी की बात से सहमत हैं.

    जवाब देंहटाएं
  18. rachanaa jee se 1000000 times sahamat

    vaise se poore ke poore vakeel sahab se sahmat

    aur thode thode ali ji se bhee

    जवाब देंहटाएं
  19. these words are saying something-
    प्रतिभा और सेक्स फंतासी में जरूर कोई न कोई सम्बन्ध है and why are you becoming judgmental- पचौरी अपने इन कृत्यों से भारतीयों के सामने कौन सा आदर्श स्थापित कर रहे हैं ?-कहीं इस व्यक्ति को पहचानने में पूरी दुनिया को कोई धोखा तो नहीं हुआ है ?
    अपनी ही बातों को काट रहे हैं आप. और इदं न मम कहकर बच रहे हैं. सच में आपसे शरारती इस ब्लॉगजगत में कोई नहीं.

    जवाब देंहटाएं
  20. ऐसा नहीं है कि हिन्दी उपन्यासों में या संस्कृत साहित्य में यौन वर्णन नहीं हुए हैं।
    'मुझे चाँद चाहिए' में नायक नायिका के प्रथम संभोग का चित्रण बहुत कलात्मक है जब कि वह 'कुँवारी कन्या के नीविबन्ध को खोलने' से लेकर प्रवेश तक का वर्णन करता है। कुमारसम्भव तो जग विदित है।
    मैंने कचौड़ी जी का उपन्यास नहीं पढ़ा लेकिन उद्धरणों को देख यही लग रहा है कि कोई घटिया फुटपाथी साहित्य पढ़ रहा होऊँ - कर्नल रंजीत या ऐसा ही कोई था जिसके एक हाथ में टेलीफोन का चोंगा तो दूसरे हाथ में किसी स्त्री का उरोज हुआ करता था।
    अंग्रेजी वाले ऐसे प्रकरण ढंग से नहीं लिख पाते, ऐसा भी नहीं है। डी एच लारेंस के एक उपन्यास में नग्न नायिका का वर्षा में नृत्य कितना सम्मोहक बन पड़ा है !
    अंतर अनुभूति और सम्प्रेषण से पड़ता है - मायने रखता है कि आप आदिम भावनाओं को कुरेद कर लोगों को चटकारा देना चाहते हैं या विषयवस्तु केन्द्रित सहजता के साथ लिख रहे हैं। फर्क पड़ता है।

    जवाब देंहटाएं
  21. @गिरिजेश जी ,मुझे चाँद चाहिए .मिल सकेगी फौरन !
    साहित्य अगर मौलिक नहीं है तो दो कौड़ी का है .

    जवाब देंहटाएं
  22. आपके कमेंट्स पर प्रतिक्रिया दी है कृपया एक बार देख लें !
    http://satish-saxena.blogspot.com/2010/02/blog-post_11.html
    सादर
    PS: pl provide your email !

    जवाब देंहटाएं
  23. साहित्य में सेक्स बहुत रहा है.... पहली बार हिंदी और उर्दू साहित्य में सेक्स इस्मत चुगताई ने ही लिखा था.... लेस्बियन सेक्स को इस्मत ने बहुत अच्छे ढंग से बताया था... जिसको कि सरकार ने बैन भी किया था..... लेकिन बाद में सन ६० में यह बैन पब्लिक डिमांड पर हटा लिया गया था....

    जवाब देंहटाएं
  24. Aap khud wahi sab likhen to vigyan pachauri likhen to ashleel...wah ji wah. dogalapan to koi arvind mishra se seekhe. lage rahiye janab..apka bhavishya ujjwal hai...

    जवाब देंहटाएं
  25. प्रिय अनामा,
    इसी तरह अपने सुभाषितों से मुझे समृद्ध करते रहें -आभार !

    जवाब देंहटाएं
  26. पचौरी के दाढी भरे मुख से क्या आप उन्हे सन्यासी समझ रखे है क्या वैसे भी वे प्रक्रिति प्रेमी है सो प्रक्रिति का नग्न यथार्थ यदि वे लिख रहे है तो इसे उचित ही माना जाना चाहिये आपके उध्ध्ररण मे नायिका का यह कथन कि मेडिटेशन के उपरान्त काम केलि का आनन्द अधिक आता है यह एक शोध का विषय है प्राणायाम व योग के आचार्यो व साधको के लिये खुशखबरी पुराने दिनो मे इन्द्र शायद मेडिटेशन कर के ही अप्सराओ के साथ प्रेमादि क्रिया करते रहे होगे
    मेडिटेशन को और प्रचारित किया जाना चाहिए इसी सन्कल्प व विकल्प के सन्दर्भो मे ही इसे लिये जाने की जरूरत है

    जवाब देंहटाएं
  27. Dearest Arvind Misharji,

    It's no secret Mishraji that sex sells.It sells like a hot cake.I am really surprised at your take on the whole issue ? In fact,I am so surprised the way some of them-the Hindi bloggers- are condemning Pachauri or ,for that matter,the way they are targeting Pachauri with bogus remarks.I am sure given an opportunity they can come out with more explicit details.Haven't the guys here not read Arundahti Roy,Khuswant Singh, Shoba De and others ,to name a few ?

    Don't jump to this conclusion that I like Pachauri and that I am defending Pachauri's bonhomie with such bold revelations.I am trying to point out that freedom of expression and how one uses his/her privacy is nobody's business.Let's not be judgemental like a blockhead.

    You are much older in age than me Mishraji but I must say to you just stop kidding ? What's so odd in these revelations ?

    Do you want to say that Pachauri,being head of an important insitution,becomes more than an average human being who needs to keep a tab on his sexual instincts ?

    Okay.I am not endorsing his writing.I am myself very critical of such writings which is full of such writings.It's merely an attempt to turn into a
    controversial figure.And U know controversy like sex sells :-))

    However,I can smell rat .I can also smell a rat.I can smell how the Hindi blog world is dominated by perverts of all sorts. Thank God ! I am not part of this tamasha going on in the world of Hindi bloggers.

    I can write many things on the whole issue but sadly I am running short of time. If we are so interested in condemning or ridiucle Pachauri then go ahead and do that.Who am I to stop others from expressing what's their in mind of others ?

    Just do remember such critics are failed writers.I think it was Gandhi who said"Hate the sin and not sinner".Also remembering a song from a memorable song " yaar hamaari baat suno aisaa ik insaan chuno
    jisane paap naa kiyaa ho jo paapi naa ho
    koi hai chaalaak aadamii koi seedha-saadaa
    ham mein se har ek hai paapi thoda koi zyaadaa
    ho koi maan gayaa re koi ruuth gayaa
    ho koi pakada gayaa koi chhuut gayaa
    yaar hamaari baat suno aisaa ik beimaan chuno
    jis ne paap na kiya ho jo paapi na ho
    is paapan ko aaj sazaa denge milkar ham saare
    lekin jo paapi na ho vo pahalaa patthar maare
    ho pahale apane mann saaf karo re phir auron kaa insaaf karo
    yaar hamaari baat suno aisaa ik naadaan chuno
    jis ne paap na kiya ho jo paapi na ho"

    Lastly,it depends on one's motive.If it's merely for cheap titilation of the senses then such description is really bad.If it's for some greater purpose then let's not come in way of such expression.IT'S ALL DEPEND ON THE MOTIVE.

    Ending from where I started that sex in our age sells like hot cake :-)..Mishraji,don't be taken aback like a kid :-)) U have seen so many "basants" of human life and I know U know all ....Certainly, more than me :-)) ..


    Okay ,I must tender my apology as well if have come too strong in terms of expressions :-))..Bura Na Mano Holi Hai :-))

    HAPPY HOLI TO YOU AND OTHER ENLIGHTENED HINDI BLOGGERS !!!

    Yours sincerely,
    Arvind K.pandey

    जवाब देंहटाएं
  28. Dear Pndey ji ,
    You will at least appreciate that it was only me who discussed about the novel in Hindi Blogging.
    And I just put forth the matter before the audience without being judgmental myself -Please see the comment made by Mukti which have an inkling of what was on my mind.
    But please do not criticize Hindi blogging -just search the net and find for yourself how mr Pachauri have been fiercely concertized by the world media -perhaps you did not bother to check up those links of the writeup! Any way thanks for coming to Kwachadnayatoapi....

    जवाब देंहटाएं
  29. Sorry for the typos.I need to correct them.

    I am myself very critical of such writings which is full of such details,especially if projected in crude way.

    However,I can also smell a rat.I can smell how the Hindi blog world is dominated by perverts of all sorts. Thank God ! I am not part of this tamasha going on in the world of Hindi bloggers.

    Who am I to stop others from expressing what's in their minds ?


    Also remembering a wonderful song from a memorable movie Roti.

    जवाब देंहटाएं
  30. @Mishraji,

    I appreciate that U discussed this novel in Hindi blog world.Yes,I didn't check the links because I felt it's more important to say what I have felt than to remain in awe of what others have said !! I don't recycle view of others !!

    Anyway, I will check the links.That will help me to tackle my counterparts in Western circles.The Western world has greater hypocrites than Indian world.Even if some of them in Westen circles are citicizing Pachauri then I must remind those chosen fools in Westerrn circle that in the same world just look at the way the Americans love Clinton despite being aware of what he did with Monica Lewinsky :-))

    Anyway,mishraji,I have hinted at some insinuations and one of them is why the hell we love to trample someone's privacy ? I have asked this to my western friends.I am also asking you.Mind U privacy does not give license to indulge in wrong activities but it's still the most desired thing in life of an any human being.It's a very complex angle.I can write at length but let me keep my mouth shut for the time being.

    I nearly read all the views. I also read your views in comment section and views of Aradhana. I must say about you that U know the art of playing safe !!! You have said all without sounding judgmental.Your instincts to judge are quite obvious.It's inherent in the views given here !!

    Ragrding Aradhana,I must say that she has given mixed signals.She like a "trishanku" is caught in between two absolutely different thought patterns :-))

    Anyway,wishing both you and Aradhana Happy Holi :-))

    indowaves.instablogs.com

    Yours sincerely,
    Arvind K.Pandey

    जवाब देंहटाएं
  31. Thank you for your work. Article helped me a lot.

    जवाब देंहटाएं
  32. आदरणीय अरविन्द मिश्रा जी
    आपकी इस समीक्षा का लिंक साभार गद्यकोश भी डाला गया है
    http://www.gadyakosh.org/gk/%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8_%E0%A4%9F%E0%A5%82_%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%AA%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%80_/_%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE#.UjU_VtJHIwY

    जवाब देंहटाएं
  33. आदरणीय अरविन्द मिश्रा जी
    आपकी इस समीक्षा का लिंक साभार गद्यकोश भी डाला गया है
    http://www.gadyakosh.org/gk/%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A8_%E0%A4%9F%E0%A5%82_%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%AA%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%80_/_%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE#.UjU_VtJHIwY

    जवाब देंहटाएं

यदि आपको लगता है कि आपको इस पोस्ट पर कुछ कहना है तो बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएं-आपकी प्रतिक्रिया का सदैव स्वागत है !

मेरी ब्लॉग सूची

ब्लॉग आर्काइव