संशय तो पहले से ही था,मगर फिल्म ने सारे संशयों को मिटा कर साबित कर दिया कि वर्ष २०१० के सबसे बोर फिल्मों में तीसमारखां ने भी अपना नाम दर्ज कर लिया.पैसे और वक्त दोनों की बर्बादी है तीसमारखां . रही बात शीला की जवानी का आईटम डांस तो वह पहले से ही तमाम चैनलों पर कोहराम मचाये हुए है .इसके बारे में भी यही समझ लीजिये कि दबंग के मुन्नी बदनाम के आगे यह मसाला आईटम भी पनाह और पानी मांगता नजर आता है और गीत के अश्लील बोल की बात तो अलग है ही .
न जाने शुरू से ही क्यों फिल्म झोल खाती नजर आती है ,निर्देशन का कसाव तो फ़िल्म में कहीं है ही नहीं और शायद इसका अहसास निर्देशक फरहा खान को हुआ और इंटरवल के बाद उन्होंने मेहनत दिखाई मगर मामला हाथ से फिसल चुका था .हाँ एक गीत वल्लाह रे वल्लाह कर्णप्रिय जरुर है और मुस्लिम रहन सहन/परिवेश के अनुकूल है .मगर इतना तड़क भड़क और रंगों साज इस्लाम के अनुकूल तो नहीं -इस विरोधाभास पर दिमाग चलता रहा और फिल्म की रील आगे खिसकती रही .
शीला की जवानी वाला आईटम भी फिल्म के शुरू होते ही डाल दिया गया और उसके ख़त्म होते ही लग जाता है कि अगर इस बहु प्रचारित दृश्य का यह हाल है तो फिर पूरी फिल्म का क्या होगा -और आशा के अनुरूप ही फिल्म बाँध नहीं पाई -हाँ आठ दस वर्ष के बच्चे जरुर नायक की उल जलूल हरकतों पर किलकारियां मार रहे थे-मगर मुझे तो अक्षय कुमार की कलाबाजियां और बेहूदी संवाद अदायगी पर कुढ़न हो रही थी .
फिल्म की कहानी एक चोरों के सरताज की है जो एक पूरी ट्रेन को लूटने का तामझाम अंजाम देता है जिसमें सरकार के अन्टीक -पुरातात्विक महत्त्व के दुर्लभ खजाने भरे हैं .कहानी की मूल सोच दुरुस्त है मगर उसे ठीक से फिल्माया नहीं जा सका है ..छोटे मोटे दृश्य बच्चों के मनोरंजन के लिए बढियां बन पड़े हैं -जैसे अद्भुत ब्रेसलेट के जरिये चोर का गायब होना और बिना सर वाले घुड़सवार भूत का आतंक .
मेरी ओर से एक स्टार ...बच्चों को भेज सकते हैं मगर वहां भी शीला की जवानी रोड़े अटकाए हुए हैं ...निर्णय आपका!