एअर इंडिया का यह विमान तनिक आधुनिक साज सज्जा लिए था -सभी यात्रियों के ठीक सामने यानि की अगली सीट के पीछे मानिटर था कुछ कुछ वैसे ही जैसे कभी अपनी एक विज्ञान कथा जो चन्द्र उडान पर थी में वर्णित था ...कुछ पल के लिए ऐसा लगा कि मैं अपनी उस कहानी मोहभंग का एक पात्र हो गया हूँ -मानिटर पर प्लेन के उडान के क्षण प्रतिक्षण का लोकेशन दिख रहा था -विमान दिल्ली से भारत के बिलकुल मध्य रेखा में (नीचे )तेजी से आगे बढ रहा था ..वैसे तो प्लेन के सहयात्री बिलकुल निःसंग होते हैं, आजू बाजू से कोई मतलब नहीं होता उनका -एक इम्पेर्सोनल सा भाव होता है -मगर बगल की सीट पर एक प्रोफ़ेसर साहब थे -न उन्हें मानीटर के चैनलों पर चल रही फिल्मों में कोई रूचि थी और न मुझे ही ..हाँ कुछ देर तक मैंने पशुओं की न्यारी दुनिया पर एक डॉक्यूमेंट्री जरूर देखी .अब पता नहीं पहल किसने की मगर हम थोड़ा बतियाने लगे थे -प्रोफ़ेसर साहब थोडा मजाकिया /मनोविनोदी स्वभाव के थे -पहले तो मुझसे किंगफिशर की फ्लाईट छूट जाने पर उन्होंने जब कुछ ज्यादा ही अफ़सोस जताया तो मेरी उत्कंठा मुखर हो आई ...
"ऐसा भी क्या था किंगफिशर में ..? ."
"कमनीय कंचन काया परिचारिकाएँ और लाजवाब भोजन और कुछ उपहार भी ..."
"ओह " फिर मेरी दुखती रग फिर जैसे छेड़ दी गयी हो एक ठंडी उच्छ्वास अनायास ही निकल पडी .
"अब एयर इंडिया की परिचारिकाओं को तो देखिये ...मतलब इनमें अब देखने को रह ही क्या गया है ...हा हा हा "
६५ वर्षीय प्रोफ़ेसर की वाईटल सांख्यिकी में रूचि ......मैं थोडा असहज हुआ ..इसलिए नहीं कि मैं कोई निस्पृह विरत रागी योगी हूँ बल्कि इसलिए कि बात कुछ अन्य सदर्भों को लिए हुए थी -क्या औरतों को नौकरी से केवल इसलिए निकाल देना चाहिए कि वे कमनीय नहीं रहीं .....यह तो मानवता का तकाजा नहीं है ..मैंने प्रोफ़ेसर से अपना ऐतराज जताया .मगर उनके पास मानो उत्तर पहले से ही तैयार था ....
" यह व्यावसायिकता का युग है -किंगफिशर जैसी एअरलायिने यात्रिओं को विभिन्न तरीकों /कम्फर्ट से आकर्षित कर रही हैं ..एअर इंडिया में हम और आप गरजू लोग ही अब यात्रा को रह गए हैं ......" यह एक अंतहीन सी वार्ता थी ...
.... और यूं सूर्यास्त हो गया !
इस लम्बी हवाई यात्रा का सबसे रोमांचपूर्ण क्षण वह था जब लगभग पौने सात बजे शाम हमने कोचीन पहुँचने के पहले ही मुम्बई से थोडा आगे बढ़ने पर सूर्यास्त का नजारा देखा -वायुयान में आसमान और धरती का मिलन/क्षितिज हेजी हेजी सा नहीं बल्कि बहुत स्पष्ट दिखता है -लगता है कि एक स्पष्ट विभेदक रेखा दोनों जहां को अलग वजूद दे रही है -और उसी रेखा पर कोई २ मिनट तक सूर्य हिलकोरे लेता हुआ दिखा और फिर नजरों से ओझल हो गया ....और लो शुक्र ग्रह भी दिखने लगा -बिलकुल साफ़ और चमकीला -अब करीब सात हजार मीटर की ऊँचाई पर जहाँ न कोई गर्द गुबार ,न कोई प्रदूषण हो आकाशीय पिंड इतने साफ़ क्यों न दिखें ! मगर हाँ दूसरे तारे तो तो नहीं दिखे मैंने इधर उधर बहुत गरदन घुमाई .अचानक सामने के मानीटर पर नजर गयी -बाहर का तापक्रम माईनस ४० डिग्री था ..सोचकर ही कंपकपी छूट गयी!
आगे की यात्रा कोई ख़ास घटना पूर्ण नहीं थी ..हाँ जब कोचीन उतरने पर हम तो यान में ही बैठे रहे मगर इक रोचक बात हुई -दो जन आये और उन्होंने मांग की उनकी सीटे खाली कर दी जायं जिन पर हम बैठे थे-हद है उन्हें हमारी ही सीट कोचीन से अलोट थी -प्रोफ़ेसर साहब भुनभुनाये -देख लिया न एअर इंडिया की करतूत ....बहरहाल सीटें कोचीन में बहुत खाली हो गयीं थी और परिचारक उन्हें अलग सीट पर बाइज्जत बैठाने का जतन करने में लग गए थे -हमने भी कह दिया था कि भाई लोग हम शुरू से जहां से बैठे हैं आखीर तक वहीं बैठे रहेगें ....हजरते दाग जहाँ बैठ गए बैठ गए ...(धीरे से बुदबुदाया था मैं ) .
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ठीक दस बजे हम तिरुवनंतपुरम पहुँच गए थे .मुझे लेने मेरे मित्र और मत्स्य फेडरेशन केरल के डी जी एम डॉ के .शोभना कुमार आये हुए थे -हम ठीक आमने सामने ही खड़े एक दूसरे को मोबिलिया रहे थे ...वे धोती पहने थे और मैं मोटा हो गया था इसलिए एक दूसरे को पहचान नहीं पा रहे थे .....यात्रा का एक बड़ा हिस्सा पूरा हो गया था ....अब कल से केरल परिभ्रमण शुरू होना था ....
जारी .....
आसमान से मैंने देखा सूर्यास्त ...(केरल यात्रा संस्मरण -३)
आसमान से मैंने देखा सूर्यास्त ...(केरल यात्रा संस्मरण -३)