लीजिये ,एक अल्पान्तराल के बाद फिर हाजिर हूँ .इस बीच विभागीय कार्य से केरल यात्रा कर आया .सोचा था कि इस बार यात्रा की अपनी परेशानियों जिनसे अपुन का चोली दामन का साथ है से ब्लागर मित्रों को बिलकुल भी क्लांत नही करूंगा .घर में तो "जहाँ जाईं गग्घोरानी तहां पड़े पत्थर पानी ' के कहावत को चरितार्थ करने वाला तनखैया घोषित हो ही चुका हूँ अब ब्लागजगत में भी अपनी यह लंठ इमेज रूढ़ करना खुद के फेवर में नही - किसी के साथ यात्रा आमंत्रण का स्कोप भी खत्म !-कौन चलेगा हमारे साथ, जहाँ पग पग प्रयाग की कौन कहें पग पग परेशानियां मानो स्वागताचार के लिए खडी हों .मगर मैं इसे दूसरे नजरिये से भी देखता हूँ -अपनी परेशानियों से अगले को कुछ सीख मिल जाए तो चलो परेशानियाँ भी सार्थक हो जाएँ .हाँ अगर अगला पहले से ही होशियार हो और मेरी तरह ही गोबर गणेश न हो तो बात दीगर है -मगर वो कहते हैं न कि दूसरो के अनुभव से बुद्धिमान सीखते हैं और अपनों से मूर्खजन!
तो हे बुद्धिमान ब्लागरों तुम भी सुनि लो कान लगाये केहिं विधि केरल से हम लौटे हैं आय!
प्रस्थान
पहले हम लालू को कोसते नहीं अघाते थे और अब दीदी ओ दीदी को लानत मलामत भेज रहे हैं -ट्रेनों के सञ्चालन शायद इन दिनों बहुत ही बुरे दौर से गुजर रहा है -मुझे २३ तरीख को दिल्ली से किंगफिशर एयर लाईन्स से १० बजे सुबह तिरुवानंतपुरम ,केरल पहुंचना था .सहृदय दुखी होंगे और मेरे अ -हितैषी सुखी कि मेरी यह फ्लाईट छूट गयी -मैंने बनारस से श्रमजीवी सुपर फास्ट एक्सप्रेस से २२ तारीख को यहाँ से (बनारस ) से दिल्ली जाने का यात्रा कार्यक्रम बनाया था -जो यहाँ ३ बजे अपराह्न चल कर अगले अल्लसुबह दिल्ली साढ़े पांच बजे पहुंचती है -अब कोई तो बताये कि समय का इतना मार्जिन क्या ठीक नही था ? मगर ट्रेन ही पटना से बनारस पहुँचने में तीन घंटे लेट हुई और लेट होते होते दिल्ली सवा दस पहुंची! हाल यह था कि भक्क भक्क गाड़ी चले और धक्क्क धक् दिल होए -हम पूरे भकुए बने अपने भाग्य को कोसते रहे -अब ट्रेन में रहकर क्या क्रायसिस मैनेज की जाय ? जहाज का टिकट भी तो नान रिफंडैबल श्रेणी का ही था (रिफंडिबल श्रेणी काफ़ी महंगी होती है सो नहीं ले सके थे) -किसी तरह किंगफिशर एयर लाईन से सम्पर्क हुआ तो वह भी नौ बजने के बाद दूसरे दिन! जहां से बहुत विनम्रता से कहा गया कि सर फ्लाईट तो ठीक समय पर है और आपने अगर दस बजने के एक घंटा पहले भी बता दिया होता तो हम आपको "नो शो " नहीं ट्रीट करते यानी आपको कुछ पैसे रिटर्न हो जाते -अब तो आपका नाम 'नो शो ' कटेगरी में आया गया है यानि आपने प्लेन छूटने के एक घंटा पहले तक अपनी यात्रा निरस्त होने की कोई सूचना नही दी अतः अब हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते .पूरे आठ हजार गये पानी में .....बहरहाल एयरपोर्ट जाने पर यह जानकारी हुई कि टैक्सेज वगैरह रिफंड होंगें -मामला प्रगति पर है .सीख मिली है कि भारतीय रेल कतई भरोसे मंद नही रह गयी है यह आपके महत्वपूर्ण अपायिन्टमेंट ,इंटरव्यू और तो और किसी के अंतिम दर्शन तक छुड़वा सकती है . मेरे एक सह यात्री कोई बिष्ट जी अपने पिता के अन्तिम दर्शन नही कर सके -ठीक नौ बजे उन्होंने अन्तिम सांसे ले लीं -पुत्र की प्रतीक्षा करते करते पथरा गयीं आँखें मरणासंन्न बाप की -बिष्ट साहब फफक पड़े -उनके दुःख के आगे मेरा दुःख कितना कम हो गया -बिचारे फोन पर ही रोगी बाप के परिचारकों को जिनमें उनकी पत्नी भी थीं को बस पहुंच रहा हूँ बार बार कहते ही रह गये .
आखिर कोई जवाबदेह है इस अन्धेर गर्दी का ? एक सुपरफास्ट पॉँच घंटे लेट हो गयी और होती ही चली गयी -पश्चिमी देशों
में तो यह अनहोनी है और ऐसी अनहोनी घट भी गयी तो पूरी भरपाई! यहाँ के रेल के रूल तो कपटपूर्ण हैं -धूर्त्तता भरे -यात्रियों की सुविधा गयी भाड़ में!अनुभवी लोगों ने बताया कि इन दिनों अपने कार्य के नियत समय से दस घंटे की मार्जिन का यात्रा प्रबंध (ट्रेन यात्रा ) करना समझिये अनिवार्य हो गया है .
बहरहाल आनन फानन इन्डियन एयरलाईन्स की शाम साढ़े पांच बजे की टिकट का इंतजाम हो पाया और हम प्रतीक्षारत हो लिए .......
जारी प्रतीक्षा .........
बहुत ही गुस्सा आता है ऐसे समय तो, इन संस्थाओं के ऊपर और ऐसी परिस्थितियों के ऊपर जिन पर हमारा कोई बस नहीं होता है।
जवाब देंहटाएंचलिये चूना तो हुआ परंतु शाम की फ़्लाईट तो मिल गई, जवानी की फ़्लाईट (किंगफ़िशर) छूटी और बुढ़ापे की फ़्लाईट (इंडियन एयरलाईंस) मिली।
आप की ये 'छोड़ने' वाली आदत बहुत खराब है :)
जवाब देंहटाएंयात्रा वृतांत रोचक होगा, इसकी पूरी आशा है। 'अपुन का चोली दामन का साथ' को 'अनुप का चोली दामन का साथ' पढ़ गया - सच्ची। दुबारा से पढ़ा। :)
वापसी अच्छी लगी।
@जी विवेक जी -और ये जवनी और बुढ़ापे की बात आगे -रोना तो यह भी है की हर जवानी अब साथ छोड़ रही है .किंगफिशर भी !
जवाब देंहटाएंरेलवे पर मुकदमा किजिये न अपनी फ्लाईट की टिकिट के लिए..उनके कारण आपको नुकसान हुआ.
जवाब देंहटाएंयात्रा संस्मरण लिखने की शैली बहुत बढ़िया है....फ्लाईट छूट गयी इसले लिए बस सांत्वना ही दे सकते हैं और रेल विभाग को कोस सकते हैं...
जवाब देंहटाएंसमीर लाल 'उड़न तश्तरी वाले' जी की बात को गंभीरता से लीजिए
जवाब देंहटाएंबात बन जाएगी
समीर लाल जी ने बिलकुल सही सलाह दी है। आप रेलवे को नोटिस दीजिए और उपभोक्ता अदालत में मुकदमा कीजिए।
जवाब देंहटाएंआपका हवाईजहाज तो छूटना ही था. इत्ते दिन से गायबे हैं और ताऊ से बिना बताये निकल रहे थे. अनूप से आपका चोली दामन का साथ मुबारक हो. बहुत अच्छी गुजरेगी जब मिल बैठेंगे दिवाने दो.
जवाब देंहटाएंसही बात तो यह है मिश्र जी कि आपको नजर लग गई है, और आप ताऊ नजर उतारू ताबीज कीमत १२५००/- मात्र का खरीद कर गले मे धारण किजिये. देखिये आठ हजार तो डुबे गये हैं ना. वो तो आप अपने खास आदमी है तो आपको दस प्रतिशत डिस्काऊंट देदेंगे. फ़टाफ़ट ड्राफ़्ट भिजवाईये. फ़िर देखिये ईंडियन रेल्वे आपको बिफ़ोर टाईम पहुंचायेगी. रेल्वे से ताऊ प्रोडक्ट का कंट्रेक्ट है. जो भी ताऊ प्रोडक्ट यूज करता है उसका रेल्वे खास खयाल रखती है.
रामराम
-ताऊ मदारी एंड कंपनी
जब से दीदी रेल की मंत्री बनकर आयी हैं, रेल का बंटाधार हो गया है. अब ये दीदी के कारण है कि रेल पर बढ़ते बोझ के कारण, भगवान जाने. पर ट्रेनें बहुत लेट होने लगी हैं. आपने अगर एक बार भी पूछा होता, तो हम आपको बता देते कि एक दिन का मार्जिन लेकर जाइये. पर अफ़सोस...आप तो लौटकर बताते हैं या फिर रास्ते से फ़ेसबुकियाते हैं कि हाय हम फँस गये हैं...खैर, कोई बात नहीं. अब आगे से याद रखियेगा कि "भारतीय रेल से बदतर परिवहन व्यवस्था पूरे विश्व में कहीं नहीं है."
जवाब देंहटाएंअफ़सोस....कल्पना कर सकता हूं आपके मनस्ताप अर्थात कलपने की।
जवाब देंहटाएंदेखते हैं ज्ञानजी क्या कहते हैं रेलवे की सफाई में। हमें तो अगली तफ़सील का इंतजार है।
रेल के कारण प्लेन का छूटना ...कोई नयी बात नहीं है ...हमारे देश में ...
जवाब देंहटाएंमगर वो कहते हैं न कि दूसरो के अनुभव से बुद्धिमान सीखते हैं और अपनों से मूर्खजन.....
हाँ ..यदि अनुभव से बुद्धिमानी सीखना चाहे तब ना ....!!
केरल बहुत ही शांत हरा भरा स्थान है ...हम मरू प्रदेश वासियों के लिए ...
यात्रा का वर्णन निश्चय ही रोचक होगा ...!!
कम से कम अब १० घंटे का अंतराल लेकर चला जाय तभी कल्याण है.
जवाब देंहटाएंTill the biased and irresponsible people are holding important positions in govt, such things are gonna happen.
जवाब देंहटाएंThackreys are busy cursing UPites,
Chauhaan is busy opposing Amitabha ji just because he is brand ambassador of Gujarat.
Sheela ji is not at all aware that Abhishek Bachhan in Brand Ambassador of Delhi Tourism.
Modi kind of serious, rational, balanced and a sensible person is dragged to face SIT.
Mayawati kind of 'Good for nothing "people are ruling intellectuals of UP.
Rahul Gandhi ki to 'aish' hai..He loves lime light and he is enjoying his life at the fullest at the cost of emotions of dalits.
IRONY !
"Har shaakh pe ullu baitha hai, anjaame gulistaan kya hoga?"
On a lighter note...
"What 'll happen after 33% reservation?"...."Bas ek hi 'didi' kafi hain, barbaad gulistaan karne ko'
Smiles !
Thanks Divya (Zeal).
जवाब देंहटाएंI am adding this on lighter zone!
कद्रदानों की तबीयत का अजब हाल हैआज
बुलबुलों की ये हसरत कि वे उल्लू न हुए
(जील ये आपके लिए .......)
बड़े बड़े लोग आप को चने के झाड़ पर चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। :) कोर्ट कचहरी के चक्कर में न पड़िए।
जवाब देंहटाएं"बीती ताहि बिसार दे बस ब्लॉग के खातिर याद रखौं"
इस पंक्ति में सुधार कीजिए। अच्छा गुरु मिल जाय तो पद्माकर फेल हो जाँय।
@गिरिजेश जी यहाँ कितने रिश्ते टूटे छूटे -जब उनको झेल गया तब यह तो महज आर्थिक लॉस है !
जवाब देंहटाएं@ बुलबुलों की ये हसरत कि वे उल्लू न हुए
जवाब देंहटाएंक्या बात है!
रोचक लगा आपका ये यात्रा विवरण....
जवाब देंहटाएंregards
Bulbuls are indeed proud of what they are ! But they wonder what prompted Laxmi ji to choose owl and not Bulbul?
जवाब देंहटाएंKaash Devi Laxmi ne , Devi Saraswati se vimarsh kiya hota about an appropriate vehicle, then definitely Goddess Laxmi would have advised her to go for bulbul.
But Godess Laxmi is no less wiser that Saraswati....She preffered to take 'owls' for a ride.
Smiles !
वाकई परेशानी कि बात है.....मगर आप क्लेम कर दीजिये ! रेलवे आपके पैसे वापस करेगी!
जवाब देंहटाएंये दुर्घटनाएं आप ही के साथ क्यों होती हैं?
जवाब देंहटाएंअजी रेले ही नहीं वायुयान के भी यही हाल है। एक बार परिवार की शादी में जाना था। आनन-फानन में शादी तय हुई थी तो भागते-भागते हवाई जहाज का टिकट मिला। लेकिन जहाज उदयपुर से जयपुर के लिए चला और जोधपुर जा पहुंचा। जब कन्या विदा हो रही थी तब जाकर हम पहुंचे। लेकिन यह यहाँ की ही समस्या नहीं है सभी जगह है ऐसी समस्याएं। बस अपना समय का अन्तराल बनाकर चले।
जवाब देंहटाएंArvind ji,
जवाब देंहटाएंbulbul aur ullu ke sandarbh mein ek reply likha thaa....post nahi kiya aapne?...koi khaas wajah?
Don't be so selfish !
जवाब देंहटाएंDon't claim for your money only.
Raise voice against the person who is responsible ! buland kariye aawaaz...mamta didi ke khilaaf.
"Na rahega baans, na bajegi baansuri"
Be selfless !
Sabka bhala ho jaayega !
कद्रदानों की तबीयत का अजब हाल हैआज
जवाब देंहटाएंबुलबुलों की ये हसरत कि वे उल्लू न हुए
बड़े बड़े लोग आप को चने के झाड़ पर चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। :) कोर्ट कचहरी के चक्कर में न पड़िए।
"बीती ताहि बिसार दे बस ब्लॉग के खातिर याद रखौं"
सबसे अच्छी यही बाते हैं. निकम्मों पर कोई कार्रवाई नहीं होती.. स्टाफ कम है, भर्ती नहीं होती.. देश का यही तो होगा..
@sorry Zeal inadvertently it was left to get published ,
जवाब देंहटाएंNow its visible!
लक्ष्मी उल्लूओं की सवारी इसलिए ही करती हैं की बुद्धिमान लोगों ने ऐसा चाहा है -सरस्वती को तो राजहंस देकर नीर क्षीर की प्रतिष्ठा स्थापित की उसे मानसरोवर का मोती चुगने को दिया और सब तरह के गैर वैष्णवी काम में लगे उल्लू को लक्ष्मी का वाहन बनाकर मानो अपनी चिर विपन्नता का बदला चुका लिया -बुद्धिजीवी और लक्ष्मी का बैर सनातन रहा है !
सरस्वती के पास तो राजहंस पहले से ही है वे बुलबुल लेकर क्या करेगीं ?
संस्-मरण अच्छा है ..
जवाब देंहटाएंफ्रस्ट-रण की सीमा में दाखिल होता हुआ ..
बुलबुल पर एक बात गौरतलब है ;
'' कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बेअसर
पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए '' ( चचा ग़ालिब )
हलके में मत लेइयो , ओ सरकार ;
'' बहकि/चहकि/लहकि/घसकि जाला केऊ '' !
.
@ गिरिजेश जी ,
........... @ लोग आप को चने के झाड़ पर चढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। :) कोर्ट
कचहरी के चक्कर में न पड़िए।
----------------- '' जनीन आसां नहीं यह घर मोहब्बत का / ये तो उन्हीं का काम
जो बर्बाद होते हैं | '' :)
.
बाकी हम उल्लू क्या बोलेंगे 'उल्लू-चरित-चर्चा' पर !
यूँ भी हो जाता है
जवाब देंहटाएं---
अभिनन्दन:
आर्यभटीय और गणित (भाग-2)
एक बार शताब्दी पर भरोसे के चक्कर में हमारी अन्तराष्ट्रीय फ्लाईट छूटते छूटते मिल गयी ! खैर मिल गयी तो अब सुनाने में मजा आता है.
जवाब देंहटाएं@अमरेन्द्र जी ,
जवाब देंहटाएंशेर कलेजे तक पहुँचने की मादा रखता है -पहुँच भी गया -आखिर है किसका ?यकीनन ग़ालिब का और किसका ??
बदलाव आ रहा है, और आयगा। आज इसका एक उदाहरण सारथी पर दिया है http://sarathi.info/archives/2644
जवाब देंहटाएंचलिये शुक्र है कि एर्नाकुलम का आपका कार्यक्रम गडबड नहीं हुआ!!
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??
http://www.Sarathi.info
कभी कभी भकुआ बनना भी एक अनुभव होता है.
जवाब देंहटाएंअब पढ़ना शुरु कर रहा हूँ आपका यह यात्रा-संस्मरण ! बहुत दिन तक सम्हाले रखा है इसे रीडर में !
जवाब देंहटाएं