गया के आगे ....
गया से लौट कर विक्षुब्ध मन लुम्बिनी में रात बितायी..लुम्बिनी एक ठीक ठाक होटल है ..खाने के जायके ने मन को कुछ हल्का किया ...दिन भर के थके मादे तो थे ही ..बस ऐसी नीद लगी जिसे घोड़े बेंच के सोना कहते हैं ...सुबह जल्दी जल्दी तैयार हो निकल पड़े बोध गया के मूल स्थल को ...जिसके बारे में अभी तक बस इतना ही मालूम था कि यहीं एक पीपल के पेड़ के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान मिला था ....स्थानीय लोगों से बात चीत करने पर यह आभास हो गया था कि मुख्य दर्शनीय स्थल 'बोधि वृक्ष' वही पीपल का पेड़ ही है ....मेरी उत्कट इच्छा हो रही थी कि मैं भी तनिक उस वृक्ष के तले कुछ देर ठहर लूं -भले ही सारा ज्ञान महात्मा बुद्ध ले गए हों तब भी कुछ जूठन शायद बची खुची हो जो परासरण (आस्मोसिस= इधर तो कुछ भी नहीं है न!) के चलते इस किनारे भी आ लगे और याचक का कल्याण हो जाय -कुछ यही भाव मैंने फेसबुक पर टिपियाया भी ...सो बड़े जोश खरोश से उस स्थल पर सदल बल जा पहुंचा -बड़े बोर्ड पर लिखा था विश्व धरोहर (यूनेस्को ,२७ जून २००२ ) ...
जाहिर है उत्कंठा अब और बढ़ चली थी ..आस पासके परिवेश की भव्यता अहसास होने लगी थी जैसे सचमुच हम किसी अलौकिक स्थल पर पहुँचने वाले हों ....अचानक सामने निगाह उठी तो एक भव्य मंदिर दिखा ....यहाँ मंदिर? ..स्तूप के जगह मंदिर?? -मैं भौचक रह गया ....भगवान् बुद्ध से जुड़ा कोई स्मारक स्तूप के बजाय मंदिर? अक्ल सचमुच चकरा गयी! पूछ ताछ शुरू हुई तो रहस्यों का अनावरण होने लगा ..
नील वर्णी बुद्ध के साथ मैं ,पत्नी संध्या और मित्र कंचन जैन जी
.... यह पता चला कि सामने का भव्य और नयनाभिराम मंदिर महाबोधि (महाविहार ) मंदिर है जो बोध गया का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है और यहीं ईसा से छठवीं शती पहले गौतम बुद्ध को ज्ञान/बोध /बुद्धत्व प्राप्त हुआ था ..मगर यहाँ मंदिर कैसे? कोई स्तूप क्यों नहीं? दरअसल अपने मूल रूप में यहाँ ईसा पूर्व तीसरी शती में सम्राट अशोक का बनवाया हुआ स्तूप ही था मगर इसे दूसरी शती में तोड़ा गया और फिर बुद्ध की प्रतिमा स्थापित की गयी...सातवीं शताब्दी में गुप्त राजाओं ने इसे अंतिम रूप दिया ....यहाँ एक विरोधाभास् स्पष्ट था ...गौतम बुद्ध वैदिक कर्मकांडों ,पाखंडों ,धर्म के नाम पर छद्म आचरणों के विपरीत अलख जगाते रहे ...यह मात्र संयोग ही नहीं है कि उन्होंने अपनी वैचारिक क्रान्ति का बिगुल गया से ही फूंका -अब गया से बढ़कर और कहाँ कर्मकांडों का भोंडा प्रदर्शन और जीवन के बाद भी आत्मा की अवधारणा को लेकर तरह तरह के अनुष्ठानों ,यज्ञों का विधि विधान था ? सर्वथा उचित ही था कि बुद्ध ने यही से अपने 'बुद्ध मार्ग' प्रवर्तन किया ....यद्यपि बुद्ध ने ऐसा कुछ नहीं कहा जो उपनिषदों से सर्वथा अलग रहा हो ...नैतिकता ,अहिंसा ,सत्य के प्रति आग्रह, करुणा हिन्दू जीवन दर्शन के मूल अवयव बन चुके थे ....याज्ञवल्क्य पहले ही धर्म के ९ लक्षण बता चुके थे ...(अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना) , दान, संयम (दम) , दया एवं शान्ति) बुद्ध ने भी ऐसे ही आचरण को अपनाने पर बल दिया -मगर पोंगा पंथ ,अंधविश्वास पर कुठाराघात किया ...एक तरह से गौतम बुद्ध हिन्दू धर्म दर्शन के एक बड़े सुधारक /उद्धारक नजर आते हैं और कालांतर के मनीषियों ने इस बात को अच्छी तरह समझ भी लिया था ...
हम आगे बढे ..सामने ही एक पट्टिका लगी हुयी थी जो बुद्ध के इस वचन की उद्घोषणा कर रही थी कि कोई भी जन्म से नहीं कर्म से ब्राह्मण होता है ......इस मंदिर में बुद्ध की प्रतिमा बड़ी ही सम्मोहक लग रही थी .....मंदिर के ठीक पीछे पीपल का एक विशाल वृक्ष है जिसे बोधि-वृक्ष की पांचवीं पीढी का बताया जाता है ...इसी के नीचे 623 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा जो संयोगवश (?) उनका जन्म और परिनिर्वाण दिन भी है ,गौतम बुद्ध को 'ज्ञान बोध' हुआ था ...और इसलिए ही कालान्तर में स्थान का नामकरण हुआ बोध गया ....
शंकराचार्य ने बुद्ध की मान्यताओं -उनकी व्यावहारिक दृष्टि को अपनाया -प्रछन्न(छिपे ) बुद्ध तक कहे गए ...बुद्ध परिसर में ही हमने एक शंकराचार्य का मठ भी देखा ...थोडा आश्चर्य भी हुआ कि सनातनियों ने किस तरह बुद्ध को अपने में समाहित कर लिया .... हाँ धर्म को व्यवसाय बना चुके ब्राह्मणों को बुद्ध रास नहीं आये ...अब यह कोई सोची समझी रणनीति रही हो या कुछ विवेकवान मनीषियों की दिव्य दृष्टि कि मूर्ति पूजा के विरोधी बुद्ध की खुद मूर्तियाँ बन गयीं -उन्हें हिन्दू दशावतारों में पद प्रतिष्ठा दे दी गयी -सामने का भव्य मंदिर तो जैसे यही कहानी बता रहा था...बहरहाल हम बुद्ध की वैचारिक विराटता के सामने नतमस्तक थे ..एक नीलवर्णी बुद्ध प्रतिमा के सानिध्य में हमने फोटो भी खिंचाई ...निकट ही एक बैठे हुए विशाल बुद्ध की ८० फीट ऊंची प्रतिमा तो बड़ी ही भव्य थी ...
इस आशा में बोधि-वृक्ष के नीचे खड़ा रहा कि शायद कुछ बुद्धत्व की प्राप्ति हो जाय
एक विषद परिसर है यहाँ और बुद्ध के ध्यानस्थ होने के दौरान के कई प्रसंग यहाँ अभिव्यक्त हैं .....यहाँ का विस्तृत वर्णन चीनी घुमक्कड़ यात्री हुयेन त्सांग ने भी ६७३ ईस्वी में किया था ...मैंने बोधि वृक्ष के नीचे खड़े होकर प्रशांति का अनुभव किया...फेसबुक पर टिपियाया और फोटो भी खिंचाई ....बोधि वृक्ष के नीचे जहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ बौद्ध सिंहासन है .... वज्रासन -डायिमंड थ्रोन भी कहते हैं इसे ...बोधि वृक्ष के नीचे खड़े खड़े गिरिजेश राव से बतियाया तो उन्होंने वहां पहले ही आ चुकने की कथा छेड़ दी .... सुजाता का मौन प्रेम और खीर का अर्पण ..बुद्ध का मार (कामदेव) से संघर्ष ..गिरिजेश जी से अनुरोधपूर्वक आग्रह है कि वे ब्लॉग जगत को इन बुद्ध -प्रसंगों से अपनी शैली में समृद्ध करें ... आगे के विशाल परिसर में चहलकदमी करते हुए मैंने विचित्र दृश्य देखे ....जिस कर्मकांड का बुद्ध आजीवन विरोध करते रहे सामूहिक रूप से गया के पण्डे वहां वही आहूत किये हुए थे -पिंडदान जारी था ..जब बुद्ध दशावतार में शामिल हो गए तो इतनी छूट कालांतर में पुरोहित ब्राह्मणों को लेनी ही थी ....
हे बुद्ध! तेरे परिसर में भी पिंड दान
धन्य है यह भारतीय मानस जहां सब कुछ गुड गोबर होते देर नहीं लगती .....और गोबर पट्टी से गुदड़ी के लाल को प्रगट होना भी आश्चर्य में नहीं डालता ..बुद्ध इधर के ही थे .... आज गया और बोध गया का कोई फर्क नहीं रह गया है ....हाँ यह स्थान एक सुन्दर से पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है ...और इस लिहाज से आपको भी वहां जाना चाहिए -बुद्ध अनुयायी कितने ही देश -भूटान ,चीन ,थाईलैंड ,जापान,श्रीलंका आदि वहां अपने अपने भव्य बुद्ध प्रासादों / विहारों की स्थापना कर चुके हैं -सभी बहुत खूबसूरत और दर्शनीय हैं . यहाँ अब बहुतों की रोजी रोटी पर्यटन से चलती है जैसे कृष्ण भाई की जो पर्यटन साहित्य बेंचते है और उनकी बेलौस स्टाईल खरीदने वालों की जेबे हल्की जरुर करती है ..
बुद्धत्व मिले न मिले कृष्ण को रोजगार तो मिल ही गया
कृष्ण का कहना था कि रोजगार मंदा चल रहा है सारी पूंजी तो पण्डे पिंडदान कराने में ले लते हैं पर्यटकों का ..मगर जब मैंने विदेशी पर्यटकों के क्रय शक्ति के बारे में पूछा तो कुछ छिपाने से लगे कृष्ण जी ....मतलब साफ़ था धंधा चोखा चल रहा था ....पंडों को सभी कोसते हैं मगर भूल जाते हैं अगर वे नहीं होते तो फिर बुद्ध भी नहीं होते ....उनकी जरुरत ही नहीं थी तब .... :) बुद्धं शरणं गच्छामि (समाप्त )
@ पंडों को सभी कोसते हैं मगर भूल जाते हैं अगर वे नहीं होते तो फिर बुद्ध भी नहीं होते.....
जवाब देंहटाएं------------
ई तो वही बात हुई कि रावण न होता तो राम भी न होते :-)
बहुत रोचक यात्रा विवरण है। चित्र भी बहुत आकर्षक हैं। मैं कुछ वर्ष पूर्व सारनाथ में गया था तो ऐसा ही कुछ माहौल पाया था। अच्छा लग रहा था औरॉ इस लिहाज से समझ सकता हूं कि आप कितने आनंदित हुए होंगे उस माहौल में स्वंय को पाकर।
अगली कड़ी का इंतजार है।
*और
जवाब देंहटाएंतीन कड़ियों में विभक्त यह आलेख संग्रहणीय बन गया है। कभी गया जाना हुआ तो इसे पुनः पढ़ने की इच्छा होगी। चित्र और रोचक वर्णन ने ऐतिहासिक विषय को पढ़ना केवल सरल बना दिया। वृक्ष के नीचे खड़े होने से कुछ लाभ तो हुआ ही दिखता है, वरना इतनी सुंदर पोस्ट कैसे आती! आपके पुन्य का फल हमे भी मिल गया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर. हमने बुद्ध को दशावतार में स्थान दे दिया. कोई चारा ही नहीं था. ब्राह्मन वाकई बुद्धिमान थे. "निकल पड़े बोध गया" भैय्या आपतो बोध गया ही में थे (लुम्बिनी होटल).
जवाब देंहटाएंबुद्धं शरणं गच्छामि
जवाब देंहटाएं"पंडों को सभी कोसते हैं मगर भूल जाते हैं अगर वे नहीं होते तो फिर बुद्ध भी नहीं होते ..."
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा है आपने. मगर यह ब्राह्मणवाद की बौद्धिकता या भारतीय संस्कृति की अद्भूत विशिष्टता है जिसने कर्मकांड विरोधी बुद्ध को भी दशावतार में शामिल कर नए कर्मकांड चलवा दिए. उक्त मंदिर के स्वामित्व पर दोनों पक्षों में इसी आधार पर विवाद भी कायम है.
कहते हैं बुद्ध ने आनंद से कहा था कि उनकी कोई मूर्ति न बनाये, मगर उनकी मृत्यु के दो सौ वर्षों के अंदर ही बामियान तक इतनी मूर्तियां स्थापित हो गईं कि आक्रमणकारियों की नजर में हम 'बुद्ध्परस्त' से 'बुतपरस्त' हो गए. अब विशेष तथ्यों पर प्रकाश तो आप ही बेहतर डाल सकते हैं.
बहुत संग्रहनीय पोस्ट(श्रंखला-वृतांत ).
जवाब देंहटाएंजाते तो हम भी एक पर्यटक के रूप में ही हैं ।
जवाब देंहटाएंबोद्ध वृक्ष के नीचे शांति का महसूस होना इस बात को दर्शाता है कि आखिर मनुष्य का मष्तिष्क कहीं न कहीं सुपर पावर को मानता है ।
लेकिन एक बात पर प्रकाश नहीं डाला --कि आधुनिक युग में गौतम बुद्ध के अनुयायी सिर्फ दलित वर्ग के लोग क्यों होते हैं ।
बौद्धिक कथा।
जवाब देंहटाएं@डॉ. साहब , आपने तो एक बहुत ही महत्व के सवाल को पूछ लिया -जब बुद्ध के विचार आम जन के बीच आये तो उस समय
जवाब देंहटाएंशूद्रों(आज के दलित ) की सामाजिक स्थिति बड़ी हीन थी ...उनका वेद पाठ वर्जित था वे यग्य नहीं कर सकते थे...और अपने से उच्च तीन वर्गों के सेवक मात्र थे-ऐसे में बुद्ध की करुणा ,समानता की दृष्टि ,सौहार्द्र और कर्मकांडों की निरर्थकता आदि भावों ने शूद्रों को इस ओर आकर्षित किया ..बाद में तो डॉ .भीम राव अम्बेडकर के बुद्ध धर्म अपनाने से यह एक राजनीतिक झुकाव को भी जन्म दे गया ....(संक्षेप में यही )
@अभिषेक,
जवाब देंहटाएंआपका प्रेक्षण भी बहुत सटीक है ..बुद्ध धर्म को बुतपरस्ती से जोड़ कर देखने का परिणाम तो आपने देख ही लिया!जबकि मूलतः इस धर्म का बुतपरस्ती से कुछ लेना देना नहीं है!इस्लाम में भी बुतपरस्ती कुफ्र है ....मगर मजे की बात यह है कि बुद्ध धर्म अनीश्वरवादी है और यह इस्लाम के बिलकुल विरुद्ध इस लिहाजा से है !
वास्तव में बड़ी सार-गर्भित पोस्ट है यह.हमें तो पढ़कर ही बुद्धत्व का थोड़ा-सा अहसास हो रहा है !
जवाब देंहटाएंआपने अपनी तरफ़ से भी काफ़ी शोध किया है.बोधगया एक ऐतिहासिक-स्थल से कहीं ज़्यादा हमारी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है.आप वहाँ बुद्ध की भूमि से अनुप्राणित हुए,निश्चित ही भाग्यशाली हैं.रही बात पंडों और वहाँ होने वाले कर्मकांड की, तो वह बदलते समाज को दर्शाता है.हमेशा अच्छाई के साथ बुराई रही है,भले ही उसका रूप बदला हुआ हो !
@डॉ. दराल मेरी समझ से बुद्ध और वाल्मीकि का उपयोग महज़ राजनैतिक लाभ के लिए कुछ लोग कर रहे हैं, दलित-समुदाय को कुछ लोग भरमा रहे हैं.बुद्ध और वाल्मीकि ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा की उनको भी जातीय-खाँचे में फिट कर दिया जायेगा.
सुन्दर चित्र-सज्जा और सार्थक-शब्दों से भरी पोस्ट !
मजेदार यात्रा वृत्तांत
जवाब देंहटाएंउस दिन आपसे बात हुई थी न, जाना तो है ही और यह अद्भुत संयोग है कि आपकी पोस्ट श्रृखला भी इसी समय आई और इसका भी लाभ मिलेगा.
जवाब देंहटाएंमुझे यह बात बड़ी अजीब लगती है कि बुद्ध के जन्म, बोधी, और महापरिनिर्वान की तिथि एक ही है. सुनते हैं कि मोहम्मद के जन्म और स्वर्गारोहण की तिथि भी एक ही है जिसे मुसिलम मिलादुन्नबी के रूप में मनाते हैं.
पिछले दिनों ब्लौग जगत में ही एक वयोवृद्ध विद्वान को बुद्ध और बौद्ध धर्म पर कषाय कमेन्ट करते देखा. बौद्ध धर्म और बुद्ध के प्रति पढ़े-लिखे व्यक्तियों में भी बहुत कड़वापन है.
मैं तो यही समझता था कि पुणानो में बुद्ध को भगवान विष्णू का नौवां अवतार कहा गया है। क्या यह उनकी मृत्यु हो जाने के बाद जोड़ा गया?
जवाब देंहटाएंमजेदार यात्रा वृत्तांत| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंगनीमत है कि पहले बुद्ध अवतारों में फिर दीक्षाभूमि (नागपुर) में आ गए, वरना वे तो चीनी-जापानी हो कर रह जाते. हां, लेकिन इससे बुद्ध की व्यापकता का अनुमान किया जा सकता है.
जवाब देंहटाएंबाऊ जी,
जवाब देंहटाएंशब्दों और चित्रों का नपा-तुला मिश्रण.
हम भी जायेंगे.
आशीष
--
लाईफ़?!?
वैसे बोधगया का (ईंट निर्मित) मंदिर 5-6वीं सदी र्इस्वी का माना जाता है और इसके कुछ बाद का ईंटों के मंदिर का श्रेष्ठ उदाहरण छत्तीसगढ़ में सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर है.
जवाब देंहटाएं@निशांत जी,
जवाब देंहटाएंवेरे विचार से महात्मा बुद्ध ने हिन्दू जीवन दर्शन को ही सामयिक बुराईयों से मुक्त करने का बीड़ा उठाया और एक ऊँचाई को ले गए -बुद्ध की लोकगम्यता ,सहजता सरलता दया करुणा समभाव आदि उदात्त भावभूमि ने उन्हें व्यापकता प्रदान की ....सचमुच वे एक अवतार सदृश ही तो हैं .....जो बुद्ध को ग्राह्य नहीं कर पाते पाखंडी हैं ,छदम व्यवहारी हैं या चिंतन की क्षमता से परे संभ्रमित लोग हैं -पर हाँ जैसा संतोष त्रिवेदी ने कहा कि उन्हें राजनीति का विषय बना देना सचमुच दुखद है!
@उन्मुक्त जी,
जवाब देंहटाएंबड़ा मासूम सवाल है आपका जैसे सचमुच नहीं जानते :)
बस मुझसे सुनना चाहते हैं सो पहले ही बात चुका हूँ !
@ अंततः आपने सुजाता को गिरिजेश के हवाले कर दिया ,
जवाब देंहटाएंगया जाके क्या मिला
लौट आये सब लुटा के :)
एक अच्छा विचारोत्तेजक यात्रा वृतांत । जो स्वयं मूर्तिपूजा का विरोधी माना गया है हमने उसकी मूर्ति जगह जगह लगा दी , विडम्बना कही जा सकती है। हम शायद आदर्शों और सिद्धांतों को मूर्त-रूप में देखने के अभ्यस्त थे इसलिए ऐसा किया । वैसे तरीके से ज्यादा महत्व का है - बुद्ध को मानना और सबसे महत्वपूर्ण है स्वयं बुद्ध बनना- चरमोत्कर्ष ।
जवाब देंहटाएंSuperb narration..
जवाब देंहटाएंu keep ur readers hooked till the tiny capsules of funny moments which u add so often makes it worth a read !!!
अच्छा विश्लेण किया है आपने... हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंमगर जब मैंने विदेशी पर्यटकों के क्रय शक्ति के बारे में पूछा तो कुछ छिपाने से लगे कृष्ण जी ....मतलब साफ़ था धंधा चोखा चल रहा था ....पंडों को सभी कोसते हैं मगर भूल जाते हैं अगर वे नहीं होते तो फिर बुद्ध भी नहीं होते ....उनकी जरुरत ही नहीं थी तब .... बेहतरीन विश्लेषण और अनुभव संसिक्त पोस्ट .
जवाब देंहटाएंGyanwardhak yatra varnan! Rochak bhee bahut hai!
जवाब देंहटाएंअहिंसा ,सत्य के प्रति आग्रह, करुणा हिन्दू जीवन दर्शन के मूल अवयव बन चुके थे, पर शंकराचार्य जी ने जब सनातन धर्म का पुनरुध्दार किया तब बौध्द धर्म जन मानस पर हावी हो चला था तरुण मानस वैराग्य की और आकर्षित हो रहा था । हमने अपने जापान प्रवास के दौरान वहां के एक मंदिर में भी विष्णु के दशावतारों की मूर्तियां देखी थीं उनमें बुध्द जी को नौ वा अवतार दर्शाया गया था ।
जवाब देंहटाएंहमारा तो समाज विरोधाभासों से भरा पडा है जो भुद्द और महावीर मूर्तिपूजा के विरोधी थे उनकी मूर्तियां आपको जगह जगह मिल जाती हैं ।
अहिंसा के पुजारी महावीर जी के पांच नमोकार मंत्र तो शुरु ही होते हैं नमो अरिहंतानम से ।
आपका ये यात्रा विवरण बहुत रोचक लगा आपको बोधिवृक्ष के नीचे बैठना था तस्वीर खिचवाने से पहले । तस्वीरें सुंदर हैं, मन है कि कभी हम भी जायें बोध गया । आप नित नई जगहें देखें और हम लाभान्वित होते रहें ।
आशा जोगेलकर जी ,
जवाब देंहटाएंजापान की बहुत रोचक बात बताई आपने. आईये न कभी मुंबई -हावड़ा मेल से हम आपको मुगलसराय में ज्वाईन कर लेगें और आपके मुफ्त के गाईड बन जायेगें मगर मराठी डिशेज पैक कर लानी होगीं!
मैं बोध वृक्ष के नीचे तब तक बैठा रहा जब तक कुछ 'बोधांश ' नहीं मिल गया और उसके मिलते ही फोटो खिंचा ली ...:)
आदरणीय अरविन्द मिश्र जी सादर अभिवादन इस किश्त /आलेख में इतिहास और दर्शन का भी ज्ञान मिला |आपकी लेखनी,लिखने की शैली अद्भुत है |आभार |
जवाब देंहटाएंरायकृष्ण तुषार जी ने कहा :
जवाब देंहटाएंआदरणीय अरविन्द मिश्र जी सादर अभिवादन इस किश्त /आलेख में इतिहास और दर्शन का भी ज्ञान मिला |आपकी लेखनी,लिखने की शैली अद्भुत है |आभार |
जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता- इस छोटे से तथ्य को क्यों नहीं मानते है लोग?
जवाब देंहटाएंबुद्ध धर्म या ऐसे और धर्म जो हिन्दुओं के तथाकथित पाखंड अथवा कर्मकांड के विरोध में जन्मे , वहां इन भव्य मूर्तियों की स्थापना बताती है कि आडम्बर वहां भी कम नहीं रहा है ! क्या बुद्ध या महावीर ने कभी सोचा होगा कि उनके मूर्तिपूजा के विरोधक होने के बावजूद लोंग उनकी ही मूर्तियाँ बना लेंगे ...
जवाब देंहटाएंजैन धर्म को मानने वालों का पितरों के तर्पण में विश्वास आश्चर्यचकित करने वाला है !
रोचक वृतांत और जानकारी !
@पंकज अवधिया(pankajoudhia@gmail.com ) ने पूंछा -
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी,
आपका ब्लॉग पढ़ता रहता हूँ| आपने नई पोस्ट में बोधी ट्री के बारे में लिखा है| आपने लिखा है कि यह पीपल है| मैन कुछ असमंजस में हूँ| वट शब्द तो बरगद के लिए प्रयोग होता है| उसी तरह निग्रोध भी पाली का शब्द है बरगद के लिए| विकीपीडिया भी बरगद को ही बोधी वृक्ष कहता है और यह भी कहता है महात्मा बुद्ध को इसके नीचे ही परम ज्ञान प्राप्त हुआ| यदि आप कन्फर्म करे कि आपने पीपल देखा है वहां तो विकीपीडिया आदि की त्रुटियाँ दूर की जाए|
धन्यवाद
पंकज अवधिया
@मेरा जवाब:
अवधिया जी ,
भारत में बनयान की एक प्रजाति फायिकस रेलिजिओसा यानि पीपल है और यही बोध गया में है और कहा जाता है कि इसी के नीचे बुद्ध को ज्ञान मिला था ,
सादर ,
अरविन्द
sundar yaatra chitran!!
जवाब देंहटाएंjahir hai....post padh ke gar itna
जवाब देंहटाएंachha lag raha hai......to, bodh-briksh ke niche kitni shanti hogi...
is sundar post ke liye abhar....
pranam.
सुखद यात्रा वर्णन, बुद्ध के विचार वैभव की यात्रा, लेकिन सनातन परंपरा भी अद्भुत जिसने बुद्ध के शक्तिशाली विचारों का सामना भी कर लिया और अंत में बुद्ध भी अवतारवाद में समाहित हो गए. जो भी हो, गया के इतिहास के संबंध में जिज्ञासा और बढ़ गई है यह जीने और मरने के कर्मकांडों से बढ़कर भी जीवन दर्शन तो सीखने नहीं बुलाता।
जवाब देंहटाएंशुभ कामनाएं डॉ अरविन्द भाई .जै माता दी .बेहतरीन पोस्ट के लिए आभार .ब्लॉग पर आके उत्साह वर्धन के लिए भी आभारी हूँ .
जवाब देंहटाएंएक संग्रहणीय श्रृंखला.थोड़ा ज्ञान हमें भी मिल गया.
जवाब देंहटाएंबुद्ध केवल ब्राह्मण धर्म ,चिंतन और समाज-व्यवस्था के विरुद्ध नहीं थे बल्कि ब्राह्म्नेतर अराजकता के भी विरुद्ध थे जिसका प्रमाण संस्कृत का बहिस्कार और पालि भाषा का जनमानस में प्रचार-प्रसार है जिससे वे अपनी बात को जन-जन तक पहुंचा सके. मेरी समझ से उनका समाज भी आज के हमारे समाज जैसा ही रहा होगा . जो बड़े परिवर्तन की मांग कर रहा होगा . शायद.. अति आकर्षक वृतांत ...पूर्ववत..
जवाब देंहटाएंबेचारे बुद्ध ...!
जवाब देंहटाएंपंडों की जय जय :-)
इस उत्कृष्ट रचना के द्वारा जो विशेष दुर्लभ जानकारी आपने दी वह अब तक नहीं जानता था !
आभार आपका !
बहुत सुन्दर यात्रा कथा, विश्लेषण, भाव प्रकाश और चित्र ...
जवाब देंहटाएंभारत के बौद्ध धर्न्स्थालों पर मैंने भी एक पोस्ट दिया था ... लिंक दे रहा हूँ
http://indranil-sail.blogspot.com/2011/05/blog-post_17.html
bahut jankare se paripun hai magar vichro se sahmat nahi ho pa raha hu kyoki har burai ko nast karne vala achha aadmi kahlata hai isse burai ko mahatv dena uchit nahi
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक यात्रा विवरण है। चित्र भी बहुत आकर्षक हैं
जवाब देंहटाएंसारगर्भित पोस्ट आभार .....
सुंदर सार्थक जानकारी ...जो बोधात्मक विचारों के साथ दी गयी...... आभार
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट से पता चलता है कि बुद्ध ने हिंदुओं में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए कार्य किया. इस संदर्भ में यह जानने की आवश्यकता है कि हिंदू शब्द का प्रयोग भारत में कब हुआ.
जवाब देंहटाएंऐतिहासिक दृष्टि से बौध धर्म और जैन धर्म उस समय के भारत (तब कुछ और नाम रहा होगा) के सनातन या आदि धर्म हैं.
सिंधुघाटी सभ्यता जिसे आज कल विद्वान मोहनजो दाड़ो (मोहन जोदड़ो) कहना अधिक पसंद करते हैं, के कबीलों और मध्य एशिया से आए आर्य कबीलों के संघर्ष की कहानी है. सदियों चले संघर्ष में पराजित यहाँ के स्थानीय कबीले ग़ुलाम बना लिए गए. वे ही अधिकतर बौध धर्म आए. आज के दलित (SC,ST और OBC) वही लोग हैं. जहाँ तक धर्म का संबंध है इसने समय-समय पर कई रंग बदले हैं और आज भी बदल रहा है.
आपने वृत्तांत रुचिकर रहा. आभार.
भूषण जी वहां हिन्दू धर्म को सनातन धर्म के समानार्थी शब्द के रूप में जानबूझ कर प्रयोग किया गया है -बाकी तो इतना धुंधलका छाया हुआ है और सूत्र इस तरह से यत्र तत्र बिखरे एवं उलझे हुए हैं कि बस सवाल दर सवाल हैं ...जिस युद्ध की बात आप कर रहे हैं वह मध्य एशिया -इरान से आये अवेस्ता /वैदिक सभ्यता के प्रतिनिधियों और मूल वासियों के बीच हुआ था या फिर दक्षिण से आये दिगपालों और उत्तर के पहले से बसे लोगों के बीच -यह सब बहुत गड्ड मड्ड है ....रावण के बारे में कथाएं यह भी है कि वह धुर उत्तर तक बेख़ौफ़ बेधड़क आया जाया करता था -राजा दशरथ के पूर्वजों के रनिवास में भी ताक झांक कर जाता था .....शिव को आराध्य बनाया ही था ...यह सब विमर्श कभी फिर .आज तो विजया दशमी की शुभकामनाएं स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंयह सचित्र और विस्तृत पोस्ट वाकई संग्रहणीय बन गयी है। पंडों को कोसना तो फैशन में शुमार है।
जवाब देंहटाएंअभी पिछले सप्ताह ही लौटा हूँ मैं भी वहाँ से। आपके वृतांत से सजीव हो उठा फिर।
जवाब देंहटाएंhame bahut chinta hoti hai apne ko na jankar kisi dusro ki aalochana karna kitna man prassan hota hai jab hum dusro ke bare me kuchh kahane ko tatpar rahate hai
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया मिश्र जी !
जवाब देंहटाएंजिन बुराइयों के विरोध में बौद्ध और जैन धर्म जन्मे थे । आज उन्ही में इनकी अधिकता हो गयी है । आपकी पोस्ट से मेरी भी बोधगया यात्रा याद आ गयी ।
बहुत बढ़िया मिश्र जी !
जवाब देंहटाएंजिन बुराइयों के विरोध में बौद्ध और जैन धर्म जन्मे थे । आज उन्ही में इनकी अधिकता हो गयी है । आपकी पोस्ट से मेरी भी बोधगया यात्रा याद आ गयी ।
दलित के हाथ में गया बुद्ध धर्म bhrsht कर दिया इन कुत्तो ने पहिली बात बुद्ध को भगवान् बनाकर दूसरी बात मूर्ति पूजा करकर और असंख्य
जवाब देंहटाएंइन्हें भूलना नही चाहिए आज बुद्ध और जैन है तो सिर्फ हिन्दू धर्म की वजहसे हमी ने इस दुनिया को सिखाया ध्यान तथा योग से भी ईश्वर प्राप्त किया जा सकता है बुद्ध का ज्ञान सिर्फ उपनिषद का लिया हुआ है मेने पढ़ा उपनिषद किसी बुद्ध को ये नही भूलना चाहिए की बेटा बेटा होता है और पिता पिता होता है...
ब्राह्मण ने दलित की मारी इसलिए वे ब्राह्मण विरोधी हो गए है जब हम obc wale हिन्दू धर्म के तरफ आवाज उठनी वाली हर एक आवाज को खामोश करते है तो ये साले कुछ नही बोलते सिर्फ ब्राह्मण ब्राह्मण
बुद्ध किसी का द्वेष नही करते थे और ये नमूने बुद्ध का अपमान कर रहे है...
इन कुत्तो के मन दिन रात ब्राह्मण ब्राह्मण ही चलता है क्या इसी वजहसे इनकी गति नही हो पाती ये वही के वही रुक जाते है और जो बुद्ध धर्म का व्यक्ति इन सब बातो से परे हो जाता है वो बुद्ध को prpat करता है और जो घृणा करते है वो यमराज को prpat हो जाते है.......
बुध ने सिर्फ हिन्दू धर्म की गड़ी हुई बातो को फिरसे उजाला दिया है....
बुद्धिस्ट और जैनियो लोगो को देखे बुद्धिस्ट आज भी विचारो से पीछे ही नजर आते है बल्कि जैनियो के विचार हिन्दू धर्म से भी परे हो गए है....
जवाब देंहटाएंबुद्धिस्ट ब्राह्मण में ही फसा रहता है और जैनियो ईश्वर को prapt हो जाते है....
बुद्ध को बुद्ध के ही लोग गड्ढे में ले जा रहे है जो लोग दुसरो से घृणा तथा वाणी से असभ्य शब्द बोलते है वो बुद्ध के लोग नही है
दूसरी और आप जैनियो को देखे ना किसीसे शत्रु नाही अपने मुख से किसीका अपमान...
बुद्ध का प्रचार ऐसे तियों लोगो के पास गया ये समझ रहे है हिन्दू लोग बुद्ध धर्म अपना लेगे ये सपने में ही जी रहे है बुद्ध धर्म उतना आकर्षित भी नही करता जितना ये समझ रहे है आज के समय में बुद्ध धर्म के आर्य सत्य पे चलना बेहद कठिन है...
ना सन है ना त्यौहार बस लोगोने बना दिया लेकिन हर मनुष्य को बुद्ध की और लौटना ही चहिये क्योकि सीधा सरल बना दिया है बुद्ध ने अपना धर्म...
ध्यान तथा योग और आर्य सत्य.Follow..Clear...
हिन्दू धर्म अपने आप में महान है मै मानता हु वेदो में ही सर्व धर्मो के मत है और विचार है हिन्दू धर्म महान है...
बुद्ध ने बहुती अपने ज्ञान से इसे एक नया रूप दिया इसके लिए धन्यवाद देते है...
अब ये मत कहियेगा बुद्ध अलग धर्म है उपनिषद पढ़िए और जितने भी बुद्ध ने बाते बतायी है वो सब मिल जाएंगे ऐसी बात हुई सिर्फ
ex-upnishd ke 1lack panno me se buddh ne inka sar bata diya...
ok
क्योकि 1lack aaj ka insan nhi padh skta....
मै लोगो से कहना चाहता हु जो भी धर्म अपनाओ भारत के अपनाओ ईसाई या इस्लाम नही Danger Zone hai...
मै obc हु और दलित मादरचोदो कोई बाहर से नही आया है अंग्रेजो ने गड़बड़ी की भारत आर्यो का देश है और रहेगा....
जवाब देंहटाएंभारत को तोड़ो नही और इस्लाम का साथ देयो नही नही अफगानिस्तान में बुद्ध की मूर्ति के कैसी धजिया उड़ाई देखा है की हमारा दिमाग घूम गया तो पुरे बुड्ढे को खत्म कर देंगे ज्यादा टीव टीव मत करो...
बुद्ध के मार्ग पर चलो
आरक्षण के बिखारियो अकल तो है नही चले हिन्दू धर्म को बदनाम करने...
औकात क्या है बुद्ध की उपनिषद के सामने....
जो ज्ञान आसानी से prpat किया जा सकता है उसे ध्यान लगाकर prpat करना बेकार था....
दलित कुत्तो को समझना चाहिए की वेदिक और sanksrut भाषा भारत की ही है विदेश की होती तो पुख्ता प्रमाण होते जो है नही अब ये मत बोलना की ब्राह्मणों ने उडा दिए अस्मभव है....
भारत को जो तोड़ेगा ओबीसी उसकी कमर तोड़ेगा....
जाओ कुत्ते अपने बाप का डीएनए मैच करो अपने पूर्वजो से जो कभी पता ही नही है कोण है...
जब अमेरिका ने ब्राह्मणों का dna liya और तमिल और दूसरे sc ओबीसी से मिलाकर देखा तो 99% Real Tha....
भारत सदियोसे आर्य देश था और आर्य देश रहेगा....
जितना ज्ञान हिन्दू धर्म में है उतना ज्ञान दूसरे धर्म में एक माचिस के तीली के भी बराबर नही है....
तुम ब्राह्मणों को गाली देते हो और हिन्द ओ गाली देते हो तो क्या हम ओबीसी वाले खुस है नही जिस दिन मौका मिलेगा बुद्द लोगो को उड़ा देंगे....
sindhu sabhyata आज जितने भी हिन्दू है भारत में उनकी रियल सभ्यता थी साला 200 वर्ष का इतिहास ठीक ठीक से पता नही कर पाते चले साले 10000 साल इतिहास का पता करने भाग यहासे जाओ जाकर अंग्रेजो की तलवे चाटो...
Sc kutaa bhart ko swatntr karne me aik bhi nhi tha...
कुत्तो की तरह झगड़ो मत भारत को एक बनाओ अगर इतना दम है तो आरक्षण के बिना नोकरी पे लग के दिखाओ...
दिमाग है 0 और बड़ी बड़ी बाते करते है.....
हिन्दू चुप है इसलिए ज्यादा उचलते हो बार बार हिन्दू धर्म का अपमान करते रहते हो यही बात इस्लामी देश में करते तो gaa...?मार दी जाती अब तक तो