वैसे तो मोनल या मोनाल पक्षी के बारे में मैं जानता तो पहले से था मगर जब इसे बिलकुल करीब से देखने का अवसर मिला तो इसकी सुन्दरता को बस देखता रह गया ...सुनहले मोनल की इस जाति-क्रायिसोलोफस पिक्टस पर लगता है प्रकृति ने अपने पसंदीदा रंगों का खजाना ही लुटा दिया हो ...मैं बनारस के मशहूर बहेलिया टोला नाम की एक गली में पहाडी मैना ढूँढने गया था जो मनुष्य की बोली की काफी हद तक नक़ल करने में माहिर है ....पहाडी मैना तो नहीं मिली मगर वहीं मोनल से मुलाक़ात हो गयी ....वैसे भी पहाडी मैना अब वन्य जीव अधिनियम के अंतर्गत प्रतिबंधित है ..मतलब उसे हम अब कैद में नहीं रख सकते ....मगर मोनल का मामला मुझे सदैव उलझाता रहता है ...यह प्रतिबंधित श्रेणी में है या नहीं यह वन्य जीव अधिनियम की सूची से भी साफ़ साफ़ स्पष्ट नहीं होता ..
मोनल यानि क्रायिसोलोफस पिक्टस
दिक्कत यह है कि जीव जंतुओं के वर्गीकरण की लीनियस प्रणाली में भी जीनस(गण) और स्पीसीज (प्रजाति ) के नाम भी हमेशा एक जैसे नहीं रहते ..इनमे भी पुराने और नए नामकरण की झंझट बनी रहती है ....अब जो सूची वन्य जीव अधिनियम में दी गयी है वहां क्रायिसोलोफस पिक्टस नदारद है ....जबकि मेरी अंतरानुभूति है कि इतना महत्वपूर्ण पक्षी जरुर अबध्य होना चाहिए ..इसका आम बोलचाल की भाषा में जो नाम है -मोनल या मोनल फीजेंट उसकी दो प्रजातियाँ लोफोफोरस जीनस की हैं और वे प्रतिबंधित की गयी है यानि यहाँ भी क्रायिसोलोफस पिक्टस को क्लीन चिट है ....और यह बहेलिया टोला में उपलब्ध है ..जोड़े का दाम १५ हजार है ..अंतर्जाल पर भी इसकी बिक्री की कई साईट हैं .....
अभी कुछ वर्षों पहले बनारस में बाबतपुर एअरपोर्ट पर मोनल पक्षी के जोड़े पकडे गए ..वन्य जीव अधिनियम के अधीन केस दर्ज हुआ मगर विभाग यह साबित करने में असफल रहा कि वह जोड़ा अधिनियम की अनुसूची में दर्ज प्रजाति का ही था ..आरोपित कोर्ट से बेदाग़ छूट गए और विभाग की किरकिरी हुयी सो अलग ...यह एक बड़ा दुर्भाग्य है कि पक्षी या अन्य वन्य प्रजातियों की सही पहचान के लिए वन विभाग के पास विशेषज्ञों की भारी कमी है ...कभी कभी तो स्थिति इतनी हास्यास्पद हो जाती है कि पकड़ा जाता है बाघ तो बताया जाता है चीता क्योकि भार्गव साहब अपने पुराने अंगरेजी -हिन्दी शब्द कोष में भूलवश टाईगर को हिन्दी में चीता क्या लिख बैठे कि आगे की एक दो पीढी यही भूल करती गयी..जबकि टाईगर बाघ /व्याघ्र है, चीता तो भारतीय जंगलों से कब का लुप्त हो गया है ..दुर्भाग्य यह है कि जब हम अपने प्रमुख पशु पक्षियों को भी पहचान तक नहीं पा रहे हैं तो उन्हें संरक्षित क्या कर पायेगें?
क्रायिसोलोफस पिक्टस: एक और छवि
अब मोनल का मामला ही ले लीजिये २००५ तक यह हिमाचल प्रदेश का राज्य पक्षी था ..और जब इसे संरक्षण की बड़ी जरुरत थी तो इसे राज्यपक्षी की पदवी से हटाकर एक दूसरे पक्षी जुजुराणा ( ट्रागोपान ) को राज्यपक्षी बना दिया गया और कम संख्या में बचे मोनल पर और भी आफत आ गयी ...पूरी रिपोर्ट यहाँ पर है .. इन बदलावों से भी जीवों के संरक्षण में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है ..१९७२ तक भारत का राष्ट्रीय पशु सिंह था मगर प्रोजेक्ट टाईगर को लागू होते ही १९७३ से यह बदलकर बाघ हो गया .....आशय यह कि ऐसे निर्णय लिए ही क्यों जाय जिससे किसी जानवर को बचाने के चक्कर में किसी और की शामत आ जाय ...
मोनल /फीजेंट की कई प्रजातियाँ भारत में मौजूद है मगर उनके संरक्षण स्टेटस को लेकर भ्रम है ..सम्बन्धित लोगों से गुजारिश है कि इस मामले में छाई धुंध को साफ़ करें नहीं तो यह बहुमूल्य पक्षी संपदा ही साफ़ हो जायेगी ....सुरेश सिंह ने अपने किताब भारतीय पक्षी में फीजेंट पक्षियों में कालिज,कोकलास,पोकरास,जोवार यानी ट्रेगोपान ,कठमोर ,चिलमे (ब्लड फीजेंट ) .मोनाल (लोपोफोरस इम्पेजानस ) ,चेड,लुंगी,परबतिया (सिल्वर फीजेंट ) आदि का वर्णनं किया है ....ताज्जुब है कि अपनी बुक आफ इन्डियन बर्ड्स (हैन्डबुक ) में सालिम अली साहब ने इन पक्षियों का जिक्र ही नहीं किया है ...इसलिए मुझे भी इनकी पहचान को लेकर संशय बना रहता है ...और यही कारण है कि मोनल से जुड़े इस अनुभव को आपसे साझा करने की जरुरत समझ में आयी ....कोई पक्षी प्रेमी इस पर और प्रकाश डालें तो मैं आभारी होउंगा ....
पंडित जी!
जवाब देंहटाएंहमारे लिए तो इन विषयों के प्रकाश-स्तंभ आप ही हैं... मगर वास्तव में यह सुन्दर पक्षी हमारे पटना के चिडियाघर में भी है.. और जैसा आपने कहा प्रकृति के इन रंगों को देखकर आश्चर्य होता है!!
क्या खूब जानकारी भरी पोस्ट लिखी है आपने, चित्र देखकर मन प्रसन्न हो गया ।
जवाब देंहटाएंमोनाल शायद उत्तराखंड का राज्य पक्षी है. इसके बारे में मैंने भी इधर-उधर थोड़ा बहुत पढा है, यहाँ और भी जानकारियाँ मिलीं. आपने वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में जो विसंगतियाँ बताईं, वे निश्चय ही चिंतनीय हैं. आप ही इस क्षेत्र में कुछ करें.
जवाब देंहटाएंआपने वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में जो विसंगतियाँ बताईं, वे निश्चय ही चिंतनीय हैं|
जवाब देंहटाएंआप यह लिंक देखें और आई यू सी एन को अपनी चिंता से अवगत कराएं|
जवाब देंहटाएंhttp://www.iucnredlist.org/apps/redlist/details/141345/0
उनसे सम्पर्क में कोई दिक्कत हो तो मुझे बताएं| सलीम अली साहब ने इसका जिक्र शायद इसलिए न किया हो क्योंकि इसका उत्पत्ति स्थान चीन है| वैसे यह तो आप भी मानेगे कि उनकी पुस्तक में सुधार (अपडेट भी) का बहुत स्कोप है|
चिंतनीय विषय हैं
जवाब देंहटाएंमनमोहक है मोनल..... बहुत अच्छी जानकारी दी ...आभार
जवाब देंहटाएंमोनाल पक्षी के बारे में पहली बार इतनी सारगर्भित जानकारी मिली,चिंता तो यही है कि कई प्रजातियों की तरह यह भी लुप्त होने की कगार पर है !
जवाब देंहटाएंसुन्दर और मासूम पक्षी आपकी गोद में शायद डर रहा है !
सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत आकर्षक है यह तो। काफी नये किस्म की जानकारीयां मिली।
जवाब देंहटाएंrango ki pyali ulat gayi ho mano inper..
जवाब देंहटाएंपक्षी तो कवियों शायरों को भी बहुत लुभाते हैं |यह पोस्ट बहुत ही रोचक ,ज्ञानवर्धक और सहेजने के काबिल है |बहुत -बहुत बधाई सर
जवाब देंहटाएंविरल पक्षी प्रजाति से मुलाक़ात के लिए आभार .
जवाब देंहटाएंमोनल पक्षी के बारे में जानकारी मिली ..
जवाब देंहटाएंबहुत आकर्षक है मोनल,
पशु-पक्षियों की सुरक्षा के लिए सक्रियता मानवीयता का ऊँचा उदाहरण है. आपका ब्लॉग अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी मिली ... बहुत सुन्दर पक्षी है मोनल ..ऐसे वन्य प्राणियों के संरक्षण की आवश्यकता है
जवाब देंहटाएंमहराज ,सुना है इधर बिल्लियों की कुछ प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं,उन पर भी थोड़ी कृपा-दृष्टि बनाएँ और जैसे भी हो संरक्षा प्रदान करें
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर है। सरकारी नीतियों के बारे में आपकी चिंता जायज़ है। वैसे जब हिल मैना प्रतिबन्धित नहीं थी तब मैने उसकी आश्चर्यजनक नकल क्षमता का खूब आनन्द उठाया है।
जवाब देंहटाएंहम तो इसे इलीट क्लास का तोता ही समझ रहे थे ,अच्छी जानकारी ।
जवाब देंहटाएंआपको खोजी ब्लॉगर की उपाधी से नवाजा जाना चाहिए। नायाब जानकारी ढूंढ कर लाते हैं!
जवाब देंहटाएंवैसे हम तो किसी भी पक्षी को कैद में रखने के खिलाफ हैं। पक्षियों पर एक कविता का वादा रहा।
एक लाइन अभी बन रही है पढ़ लीजिए...
मीठी जितनी बोली ज़ख्म उतने गहरे
कैद हैं परिंदे जिनके पर सुनहरे।
मोनल वास्तव में बहुत सुन्दर पक्षी है । इसे एक बार शिमला के एक पक्षी संग्राहलय में देखा था ।
जवाब देंहटाएंसंरक्षण की बात सही कही है ।
सचमुच बहुत ही ख़ूबसूरत पक्षी है
जवाब देंहटाएंअब तक आदमी को जानने से फुर्सत ही नहीं मिली है . लेकिन आपको पढ़कर पक्षियों को भी जानने लगी हूँ . हाँ ..थोड़ी-थोड़ी पहचान भी होने लगी है..मुझे तो बहुत अच्छी लगी पोस्ट..
जवाब देंहटाएंप्रकृति ने हमे रंगे-बिरंगे पुष्प व जन्तु दिए और हम लगे हुए हैं उनको नष्ट करने। हाय मनुष्य तेरी यही कहानी... मन काला और क्रूर बानी :)
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
badhiya jankari di aapne
जवाब देंहटाएंहमें तो आपने ही मोनल के विषय में ज्ञान दिया । कितना सुंदर कितना मनमोहक । जितनी अचछी जानकारी उतने ही सुंदर चित्र ।
जवाब देंहटाएंआदरणिय अरविंद जी,
जवाब देंहटाएंबहुत आनंद आया मोनल से मिलकर। दादामुनी का गाना याद आ गया एकदम से। मैं बन का पंछी बनके बन बन डोलूँ रे।
बहुत जानकारीपूर्ण आलेख रहा...मोनाल तो बहुत ही प्यारा पक्षी लग रहा है...आभार ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारा पक्षी
जवाब देंहटाएंसच्चाई यही है कि जब हम अपने प्रमुख पशु पक्षियों को भी पहचान तक नहीं पा रहे हैं तो उन्हें संरक्षित क्या कर पायेगें?
संभवतः हमारे उपमहाद्वीप का पक्षी नहीं है यह.
जवाब देंहटाएंवाकई यह समस्या विकट है कि पक्षियों को संरक्षित करने का कार्य कैसे संभव होगा जब उनकी पहचान ही नहीं होगी ...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा मोनल से मिलना !
बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमोनाल की तीन प्रजातीय भारत वर्ष में पाई जाती है और तीनो हैण्ड बुक में है प्लेट नंबर ३४ २९० २९१ २९२ में अंकित है मोनाल तो अभी कुछ पाए भी जाते है पर जुजुराना तो लगभग लुप्त ही हो चले है .जुजुराना मोनाल से भी अधिक सुन्दर पक्छी है
जवाब देंहटाएंsorry ,i comented before i consulted the literature! monal is Lophophorus impejanus and L. SCLATERI . YOUR PHOTOGRAPHS ARE NOT OF MONAL. I DO NOT REMEMBER THE NAME OF THIs bird but it belongs tosouth east asian country probably sumatra,
जवाब देंहटाएंएक यह वेबसाईट मिली है इस पर pheasants का जिक्र है नीचे
जवाब देंहटाएंजिसमे एक यह Monal और दूसरा यह पृष्ट कुछ जानकारी दे सकता है
It is golden phesant found in western china and introduced in u s a.
जवाब देंहटाएंअपने आस-पास के पशु पक्षियों और पेड़ - पौधों के प्रति हमारी उदासीनता दुखद है.
जवाब देंहटाएं@बहुत आभार पाबला साहब,महत्वपूर्ण स्रोत उपलब्ध कराया है आपने .....
जवाब देंहटाएंडॉ.शुक्ल जी ,बहुत आभार आपने मोनाल फीजेंट और यहाँ प्रस्तुत गोल्डेन फीजेंट का फर्क स्पष्ट किया ....यहाँ के स्थानीय मार्केट में इसे मोनाल कहा जा रहा है ...क्योकि कोई अन्य हिन्दी नाम इसका नहीं है ...सुरेश सिंह ने जहां अपनी पुस्तक में फीजेंट की कई प्रजातियों का जिक्र किया है सालिम अली की हैन्डबुक में इनका उल्लेख नहीं है ...आप संभवतः उनकी कई खंडों में उपलब्ध पुस्तक का जिक्र कर रहे हैं ...सुरेश सिंह ने परबतिया के नाम से सिल्वर फीजेंट का जिक्र किया है ....मगर गोल्डेन फीजेंत का जिक्र उन्होंने इसलिए ही नहीं किया क्यों कि निश्चय ही मध्य चीन का मूल निवासी है ....मजेदार बिंदु यह है कि क्या इस पर वन्य जीव अधिनियम के शिड्यूल १ के निषेध लागून होंगें ?
@आभार अवधिया साहब ,आप दुरुस्त फरमाते हैं
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक आलेख. क्या इसके लिए World Pheasant Association India कुछ नहीं करती.
जवाब देंहटाएंhttp://www.gbwf.org/pheasants/golden.html
जवाब देंहटाएंजो पक्षी सालिम अली की नज़र से छूट गया.. वो आपकी नज़र में है.. क्या बात है अरविन्द भाई!! इस की हिफ़ाज़त के लिए जो सम्भव हो किया जाना चाहिये!
जवाब देंहटाएं@अभय जी ,
जवाब देंहटाएंक्या बात है आप आये! मैंने देखा तो नहीं मगर सालिम अली ने निश्चित ही बर्ड्स ऑफ़ इंडियन कांटीनेंट की कई खंडों की किताब में इसका जिक्र किया होगा !वैसे भी यह पक्षी प्रजाति मध्य चीन की है और यह भारतीय मोनाल नहीं है मगर पक्षी की दुकानों में इसे मोनाल के नाम से ही जानते हैं !
2-3 वर्ष पहले जब मनाली घूमने के लिये गये थे, तब इस पक्षी का नाम सुना था, और इसी पक्षी के नाम के होटल में ही रुकना हुआ था। तब हमें पता चला था कि यह राज्यपक्षी है, परंतु अब पता चला कि अब यह राज्यपक्षी नहीं रहा ।
जवाब देंहटाएंमोनल की ख़ूबसूरती तो हम भी देखते ही रहे...
जवाब देंहटाएंइस प्रस्तुति से इस बात को और पुष्टि मिली के
पक्षी हमारी धरती का, हमारे जीवन का मौलिक हिस्सा है...पक्षी इस धरती की जीवंतता और ख़ूबसूरती का अटूट अंग है...
'चूक' हमारी आदतों में शामिल है और जवाबदारी (accountability)को हम इस कारण या उस कारण के तहत कमजोर कर देते हैं. religiously पक्षियों का संरक्षण हो, यह कौन न चाहे...!
आपके द्वारा किए जा रहे प्रयत्नों को नमन.
इस रविवारीय सुबह में यह शोध लेख पढ़ना अच्छा लगा, पसंद तो आया ही. सलीम अली को भी याद किया, उनकी चूक सहित...
"धन्यवाद".
गढ़वाली भाषा में इसको करेंय कहते हैं. मोनाल का हिंदी-संस्कृत नाम संभवत: किरात पक्षी है. शिव पुराण में इस पक्षी का ज़िक्र बार बार आता है. इस बात को अब 30 वर्ष से ज्यादा बीत चुके है, जब इसी पक्षी को इंगित कर मेरे दादाजी, शिव-पुराण के किस्से कहते थे. इनकी हिमालयी क्षेत्र में पांच जातियां पायी जाति थी.
जवाब देंहटाएंIt's an old memory of childhood and I may be mistaken. In that case pardon me.
सादर
sn
डॉ.सुषमा जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत महत्वपूर्ण बात बतायी है आपने ....मुझे घोर आश्चर्य इस बात का है कि इतना महत्वपूर्ण पक्षी होते हुए भी डॉ. सालिम अली ने इसे अपनी हैन्डबुक में क्यों नहीं लिया था ..इसे किरात पक्षी का नामकरण मिला हुआ है यह जानकारी नई है ..दरअसल पुराण गाथाओं में किरात शिव का ही एक रूप है =किरातार्जुनीयम युद्ध का एक विशद विवरण मिलता है ....मजे की बात यह है कि शिव का किरात रूप विवरण बहुत कुछ मंगोल जाति से मिलता है और इस पक्षी की कई प्रजातियाँ मंगोल देशों -प्रदेशों की है ....मैं आपके इस विवरण की दिशा में और खोज बीन करूँगा ! आभार ,
सादर ,
नेपाली में "करैंत". किरात ट्राइब हिमालय में बसी बहुत पुरानी ट्राइब है, जिसका विस्तार अफगानिस्तान से लेकर, पूर्व , नेपाल और मंगोलिया तक था. ये मुख्य रूप से हंटर, गैदरर -ट्राइब थी. शिव का एक रूप किरात नही है. वरन शिव ने किरात का रूप धरकर अर्जुन से युद्ध किया था, जिसका जिक्र महाभारत में है. किरात मान्यताओं का जबरदस्त हनन करके "खस" जाति के शाषकों ने जो मैदानों से पहाड़ की तरफ गए, और नेपाल में दमन किया. फिर भी नेपाल में. और तिब्बत में बोद्ध मान्यताओं को उनपर लड़ा गया. फिर भी कुछ किरात मान्यताओं का हिन्दू और बौद्ध दोनों में समावेश है. शिकार और पशुबलि को लेकर दैवीय भाव, हिन्दू लोगों के बीच और मांस-भक्षण की प्रथा तिब्बती बौद्ध लोगों के बीच से आज तक नही मिट पायी. शिव और काली के मिथक भी सामान रूप से किरात, शक, हिन्दू, बोद्ध, हूण जनजातियों में सामान रूप से अलग अलग नामों से प्रचलित है. तब भी जबकि पारंपरिक हिन्दू धर्म बद्रीनाथ से उपर की चढ़ाई नही चढ़ सका. मेरी अपनी रूची, कृषि और भारत की हंटर-गैदरर -ट्राइबस में है, जो कभी कभी ऐसी जानकारियों तक ले जाती है.
जवाब देंहटाएंसंस्कृत में सर्दी के मौसम को हेमन्त कहा जाता है। यह हेम भी हिम् से ही आ रहा है। हेमन्त से त का लोप होकर पहाड़ी बोलियों में हिमन्, हेमन्, हिम्ना,हिमान्, एमन, खिमान् जैसे रूप भी बनते हैं। सर्दी का, बर्फ़ीला या शीत सम्बन्धी अर्थों में इन शब्दों का प्रयोग होता है। कश्मीरी में हिमभण्डार के लिए मॉन / मोनू शब्द भी है। जाहिर है यहाँ ह का भी लोप हो गया है। उत्तर पूर्वांचल में मॉन, मुनमुन जैसे कोमल शब्द खूब सुनाई पड़ते हैं। इनमें और हिमाचल, उत्तराखण्ड, कश्मीर क्षेत्रों में हिमन्, हेमन् का मन, मोन, मॉन नज़र आ रहा है। यहाँ मोनाल पक्षी का अर्थ बर्फीला या हिम क्षेत्र का सार्थक हो रहा है। हिमालय, हिमाल से ही शिमला रूप है, ऐसी सम्भावना रामविलास शर्मा जता चुके हैं। मराठी में हिंवाँळ और गुजराती में हिमालु का अर्थ भी बर्फ सम्बन्धी होता है।मोनाल का आल् प्रत्यय आलय यानी आश्रय, निवास का द्योतक है। हिमालय से हिमाल या हिमाला आलय से बना आल् प्रत्यय निश्चित ही पहाड़ी बोलियों में भी प्रचलित है। हेमन से ह का लोप और मन से आल् जुड़ कर पहाड़ी और बर्फीले क्षेत्र के तीतर, मुर्गेनुमा पक्षी के लिए मोनाल नाम सार्थक है।
जवाब देंहटाएंसंस्कृत में सर्दी के मौसम को हेमन्त कहा जाता है। यह हेम भी हिम् से ही आ रहा है। हेमन्त से त का लोप होकर पहाड़ी बोलियों में हिमन्, हेमन्, हिम्ना,हिमान्, एमन, खिमान् जैसे रूप भी बनते हैं। सर्दी का, बर्फ़ीला या शीत सम्बन्धी अर्थों में इन शब्दों का प्रयोग होता है। कश्मीरी में हिमभण्डार के लिए मॉन / मोनू शब्द भी है। जाहिर है यहाँ ह का भी लोप हो गया है। उत्तर पूर्वांचल में मॉन, मुनमुन जैसे कोमल शब्द खूब सुनाई पड़ते हैं। इनमें और हिमाचल, उत्तराखण्ड, कश्मीर क्षेत्रों में हिमन्, हेमन् का मन, मोन, मॉन नज़र आ रहा है। यहाँ मोनाल पक्षी का अर्थ बर्फीला या हिम क्षेत्र का सार्थक हो रहा है। हिमालय, हिमाल से ही शिमला रूप है, ऐसी सम्भावना रामविलास शर्मा जता चुके हैं। मराठी में हिंवाँळ और गुजराती में हिमालु का अर्थ भी बर्फ सम्बन्धी होता है।मोनाल का आल् प्रत्यय आलय यानी आश्रय, निवास का द्योतक है। हिमालय से हिमाल या हिमाला आलय से बना आल् प्रत्यय निश्चित ही पहाड़ी बोलियों में भी प्रचलित है। हेमन से ह का लोप और मन से आल् जुड़ कर पहाड़ी और बर्फीले क्षेत्र के तीतर, मुर्गेनुमा पक्षी के लिए मोनाल नाम सार्थक है।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की ११०० वीं बुलेटिन, एक और एक ग्यारह सौ - ११०० वीं बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंकैसा इन्द्रधनुषी पंछी है - कैमरे में पकड़ना भी मुश्किल होता होगा ... !
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