आज शरद पूर्णिमा है मतलब क्वार (आश्विन ) माह की पूर्णिमा -स्निग्ध खिली खिली चांदनी पूरी रात ....गुलाबी जाड़े का संस्पर्श और खिली चांदनी आखिर क्यों न श्रृंगारिकता का उद्रेक करे ...फिर तो यही महारास भी होना था कृष्ण का ..दुग्ध धवल चांदनी में काले गिरधारी का चेहरा निश्चय ही गोपियों को साफ़ शफ्फाक दिखता होगा और प्रेम आसक्ति का भाव गाढ़ा होता होगा ..कहते हैं इसी दिन ही रास नहीं कृष्ण महारास रचाते थे -रास में तो वे केवल राधा के साथ होते, महारास समस्त प्रेम विह्वल गोपियों का आह्वान था ....आज की चांदनी देखिये तो आपको खुद लग जाएगा कि महारास की यही तिथि क्यों चुनी गयी होगी -यह प्रेम का स्फुरण और उत्प्रेरण है ..मिलन का आमंत्रण है!
फेस बुक पर यह महारास आयोजित हो गया है ...ब्लॉग जगत न जाने क्यों रीता रीता सा है ...रास पूर्णिमा को भी यहाँ घनी कालिमा छाई हुयी है ....सोचा तनिक चेता दूं रसिक जनों को ..... :) ज्योतिषी कहते हैं कि केवल आज की रात चन्द्रमा सभी सोलह कलाओं से युक्त होते हैं जैसे वे भी नायक नायिका के अटल प्रेम को अपनी सम्पूर्णता में निरख रहे हों ....बड़ी मान्यताएं है आज के रात की ....कहते हैं चाँद आज रात भर अमृत वर्षा करता है ..सोम नाम चन्द्रमा का इसलिए ही है ...चिर जीवनीय गुणों से युक्त औषधियां इसी अमृत वर्षा से और भी गुणकारी हो उठती हैं ...अब इतने गुणकारी अमृत वर्षा को लक्ष्य कर ही वैदिक ऋषि ने कहा होगा ....तस्मै सोमाय हविषा विधेम .....यही अमृत संचित कर सेवन कर लेने के लिहाज से यह भी परम्परा है कि रात में खीर बनाकर चांदनी में रखा जाय और फिर रसास्वादन कर आरोग्यता लाभ लिया जाय ..मैंने गृहिणी जी को इस व्यवस्था के लिए कह दिया है ..अब अनुष्ठान प्रिय तो मानव है ही और इसमें सुस्वादु खीर खाने का जुगाड़ भी है ....वैसे तो गृहिणी ना नुकर भी करतीं मगर शरद पूर्णिमा का महात्म्य बताने पर सहर्ष तैयार हो गयी हैं ....अच्छी गृहणियां ऐसी ही होती हैं न ..... :)
शरद पूर्णिमा का महारास
कहीं कहीं व्रत भी रखते हैं -जिसे कौमुदी व्रत कहते हैं -कौमुदी चांदनी की पर्यायवाची है ....विधान यह भी है कि खीर बनायी जाय और उसी के साथ बैठा भी जाय ....रास ,महारास के साथ रस भोग भी ....चांदनी में सूई में धागा भी पिरोया जाय .....पता नहीं इनमें से आप की तैयारी कुछ है भी या नहीं ..अभी भी समय है कुछ जुगाड़ कर सकते हैं ....मान्यता यह भी कि रात में लक्ष्मी जी गश्त लगाती हैं और देखती हैं कौन जग रहा है और उसे धन धान्य से परिपूर्ण कर देती हैं ...महारास भी धन धान्य भी ..और चाहिए भी क्या? अब लक्ष्मी भगवती का यह देखना कि कौन जाग रहा है इस महारास पर्व को कोजागर पर्व नाम भी दे गया है ...
अब कुछ ज्यादा लिखने लग गया तो आप को फिर सारे इंतजाम का मौका नहीं मिलेगा और अक्लमंद को इशारा ही काफी होता है ..क्या समझे?
आज शरद पूर्णिमा का कार्यकर्म है जी ...
जवाब देंहटाएंखीर तो खूब बनेगी... पर कब्बडी कौन खेले.
सर आपकी इस ज्ञानवर्धक और सुन्दर पोस्ट पढ़कर कैलाश गौतम का एक दोहा बरबस याद आ गया -
जवाब देंहटाएंचाँद शरद का मुँह लगा भगा चिकोटी काट
घन्टों सहलाती रही नदी महेवा घाट
सर आपकी इस ज्ञानवर्धक और सुन्दर पोस्ट पढ़कर कैलाश गौतम का एक दोहा बरबस याद आ गया -
जवाब देंहटाएंचाँद शरद का मुँह लगा भगा चिकोटी काट
घन्टों सहलाती रही नदी महेवा घाट
यहां महाराष्ट्र में कहां महारास मनाउं। (कह तो ऐसे रहा हूं जैसे उ.प्र. में होता तो मनाता :)
जवाब देंहटाएंसुना है कृष्ण जी को सुबह ऑफिस नहीं जाना पड़ता था इसलिये भर चांदनी महारास मनाते थे। इधर तो सुबहिये सुबहिये ऑफिस के लिये दौड़ लगानी है :)
वैसे खीर तो अपने यहां भी बन रही है।
;)
जवाब देंहटाएंबचपन से शरद पूर्णिमा पर खीर चाँदनी की अमृत बरसवा कर खा रहे हैं, आज भी खीर का प्रबंध किया गया है और चाँदनी का इंतजार कर रहे हैं। वैसे आपसे आज महारास का महात्म्य पढ़ने का अवसर भी मिला और सतीश पंचम जी की बात भी बिल्कुल जायज है।
जवाब देंहटाएंफ़िर सुबह ऑफ़िस के लिये दौड़ लगानी है।
हमें भी घर ( भारत ) से सलाह मिली कि खीर बनाकर चांदनी में रखो. पर हमने कहा फिर तो बिल्ली खा जायेगी..और जान छुडा ली :)
जवाब देंहटाएंRas ki rat.............aur............ Khair khir to kal milegi hi kal........jai radhe
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंहमारी बधाई स्वीकारें ||
टिप्पणी जय-जय करे, इक लेख पर दो बार हरदम-
कविता अगर 'रविकर' रचे तो, संग-ताला ले चलो |
http://dcgpthravikar.blogspot.com/2011/10/blog-post_10.html
आज रात बिल्ली बन छत-छत घूमने का मन हो रहा है। उल्लू बन लक्ष्मी को अगोरने का मन हो रहा है। कृष्ण बन....वैसे हम तो सुबह-सबेरे वाले हैं।
जवाब देंहटाएंकोजाग्रत पूर्णिमा के दिन रात भर जुआ खेलने की भी परंपरा रही है।
परंपराओं को सहेजती सुंदर पोस्ट।
फेसबुक में हर रात दीवाली सा माहौल है।
जवाब देंहटाएंकोजागर पर्व ...यह नयी जानकारी है मेरे लिए ....शायद इसीलिए यह कोजागरी पूर्णिमा कहलाती है.......
जवाब देंहटाएंशरद पूर्णिमा है जी,भिनसारे काहे नहीं बताया...?अभी घर आके ,खाके कम्पूटर पर बैठा हूँ तो ई रासलीला केर ख़बर लगी है.अब इत्ती बिलम कउन खीर बनावेगा ? सो मुँह में दू ठो बताशा धर लिए हैं,का पता लक्ष्मी जी रात मा हियाँ आवें और उनको अपनी सवारी ही मिल जाय !
जवाब देंहटाएंअउर हाँ,रासलीला का भी इंतज़ाम ना है !
Badhai is anokhe parv ki.
जवाब देंहटाएंWaise main to devendra pandey ji ke sath billi bankar aapki chat par aane waala hu.
Kheer bachakar rakhiyega....
Matlab. ..billiyon se bachakar...
Aapke blog par... oh... i... mean... chat par bahut aati hain.
खीर तो हमने भी बनायी है ,पर छत पर रख देते तो हमसे पहले बिल्लोरानी चख लेतीं इसलिये कान्हा को अर्पण कर के प्रसाद भी ले लिया ...:)
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी , हमने तो बिना चांदनी को दिखाए ही खीर खा ली । :)
जवाब देंहटाएंओह ! लेकिन आज रात जाग नहीं सकते क्योंकि कल बहुत ज़रूरी काम है ।
अब महारास का पुण्य तो प्राप्त नहीं कर पाएंगे ।
कई नई जानकारियां मिली ।
हमारे यहाँ भी खीर रखने तक की तो मान्यता का पालन होता रहा. अब चन्द्रमा जाते-जाते औरों में भी प्रेम रस उत्प्रेरित करा दे तो इस महारास की और भी सार्थकता है.
जवाब देंहटाएंबचपन में रात भर छत पर, दूधिया चाँद की रौशनी में रखी हुई शीतल खीर का स्वाद याद आ गया ! आभार !
जवाब देंहटाएंघर से दूर रहते हुये पता ही नहीं लगता कि कब कौन सा पर्व आया या गया। शरद पूर्णिमा की कुछ परम्परायें अभी भी याद हैं। चान्द तो यहाँ भी बड़ा खूबसूरत लग रहा था, कुछ चित्र लिये थे मैंने, समय मिलते ही लगाता हूँ।
जवाब देंहटाएंखीर तो हमने भी बनाई , लेकिन श्रीमानजी के कहने से नहीं !
जवाब देंहटाएंपर्व त्यौहार के बारे में हम ही उन्हें बताते हैं!
खीर तो पकी, परोस ही दी है आपने, बस अमृत वर्षा होने को है.
जवाब देंहटाएंaap hamesha hee adbhut jaankaari dete hain sir aur is baar to mithaas jhalak hee rahee hai!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वर्णन्।
जवाब देंहटाएं@अशोक कुमार शुक्ला भाई,आप सुने नहीं का ? मिसिरजी,गया से हाल-फिलहाल लौटे हैं.सुनते हैं,बिल्लियों का भी तर्पण वहीँ कर दिया है या कील-वील बाँध दी है,सो वे अब बिल्लियों से महफूज़ हैं !हाँ,और ज़रूर होशियार रहें...म्याऊँ.....!
जवाब देंहटाएं-गांव गांव में सोल्लास मना कोजागरा
जवाब देंहटाएंसुनील कुमार मिश्र,मधुबनी, निज संवाददाता : मंगलवार को शारदीय पूर्णिमा की खिली अमृत बरसाती चांद की चांदनी के बीच रात भर आमंत्रित लोगों के बीच मखान, पान व बतासा का वितरण मैथिल परंपरा के अनुसार किया गया।
पुराणों व शास्त्रों में शारदीय पूर्णिमा की रात को लक्ष्मी पूजा का विधान है। वर्ष के सबसे पवित्र माने जाने वाले चांदनी भरे रात में लक्ष्मी भ्रमण करती हैं व जिस घर में लोग इनकी पूजा के बाद जाग रहे होते हैं, उनके घर धनों की बरसात करती हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि इस रात चंद्रमा की चांदनी में अमृत का निवास रहता है। इसलिए इसकी किरणों से अमृतत्व और आरोग्य की प्राप्ति सुलभ होती है। लक्ष्मी जी को जागर्ति कहने के कारण इसे कोजागर व मिथिला में कोजागरा कहते हैं। पुराणों में कहा गया है कि भगवान श्री कृष्ण ने इसी रात में रासलीला की थी। इसलिए ब्रज में इस रात को रासोत्सव का आयोजन किया जाता है।
मिथिला में पर्व त्योहार को सांस्कृतिक रूप में मनाने की अनोखी परंपरा रही है। जिसमें कोजागरा महत्वपूर्ण है। इस दिन नवविवाहित वर का मिथिला परंपरा के अनुसार ससुराल से आए वस्त्र पहना कर, वहीं से आए डाला जिसकी सजावट आकर्षक होती है से महिलाएं चुमाओन करती है। महिलाओं द्वारा की जा रही हंसी ठिठोली के बीच वर साला के साथ थाली में पचीसी खेलते हैं। जो काफी मनोरंजक होता है। तदपश्चात कुल देवी को प्रणाम व बड़े बूढ़ों का आशिर्वाद लेते हैं। फिर आमंत्रित लोगों के बीच मखान, बतासा व पान का वितरण होता है। इस अवसर पर मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इस रात में अन्य घरों में रात भर पचीसी खेलने की भी परंपरा है। जिसमें महिलाएं आगे रहती हैं। वर्तमान मेंअब पचीसी खेलने की परंपरा कम हो गयी है, लेकिन कोजागरा के पर्व पर अभी तक कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है और वर्ष दर वर्ष यह परंपरा मजबूत हो रही है। जानकारी हो कि कोजागरा के अवसर पर मखान, पान, बतासा, मिठाई आदि सभी सामग्री कन्या पक्ष के यहां से आते हैं। इस अवसर पर वर पक्ष के पारिवारिक सदस्यों के लिए वस्त्र भी आते हैं।
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रुचिकर वर्णन।
जवाब देंहटाएंशरद पूर्णिमा और गुलाबी सरदी.... हम तो पंखे के नीचे बैठे हैं .... खीर के इंतेज़ार में :)
जवाब देंहटाएंयहां तो बारिश और बादल ही छाये रहे चांद पर खीर या बासुन्दी को चांदनी में रख ही ना पाये । हमारे यहां आज के दिन जेष्ठ संतान का औक्षण (आरती ) करने की परंपरा है तो बेटे और पोती का औक्षण किया ।
जवाब देंहटाएंचांद का आकर्षण इस दिन गज़ब का होता है । िस रुपहली पोस्ट के लिये आभार ।
@santosh trivedi ji.
जवाब देंहटाएंMishra ji ko lagta hai ki
kisi apne ki najar lag gayi hai...
So najar utarne ko koi totka aata ho to kuch madad kare....
मैंने भी गाँव में एक बार कोजागर को देखा था जब बहुत छोटी थी . यादें धुंधली पड़ गयी थी ..आपने इस सुन्दर पोस्ट से कुछ याद दिला दी..जैसे रात में मीठा पान खाने का भी कोई विध (रस्म ) होता है शायद.अच्छी लगी ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहद ज्ञानवर्धक पोस्ट.चांदनी, महारास, शरद ऋतू और कृष्ण की चर्चा अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंकृष्ण से सम्बंधित मेरी नयी कविता पर नज़र डालें.
www.belovedlife-santosh.blogspot.com
महकती हुई पोस्ट देर से पढ़ी पर महक अभी बाकी है ...........बेहतरीन
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