अभी परसों ही दिल्ली प्रवासी बहन
ज्योत्स्ना(ज्योति ) ने मुझे फोन कर एक अजब सवाल सामने रख दिया . पहले तो यह पूछा कि
"प्रात नाम जो लेई हमारा ता दिन ताहि न मिलै अहारा" कहाँ का प्रसंग है .अब मैं मानस का कोई व्यास तो हूँ नहीं कि हर पंक्ति हर दोहा प्रसंग सहित मुझे याद रहे फिर भी सहज बोध से बता दिया कि सुन्दरकाण्ड का होना चाहिए और हनुमान या अंगद द्वारा कहा होना चाहिए . मगर प्रसंग याद नहीं आ रहा था जबकि यह अर्धाली मुझे बचपन से याद थी ..लगता है उम्र प्रभावी होती जा रही है .संयोगवश मैं नेट पर था तो तुरत फुरत ढूंढ लिया -यह प्रसंग लंका में प्रवेश करते ही विभीषण हनुमान संवाद का है . हनुमान एक अलग ढंग का घर देखते हैं जहाँ विभीषण का वास है -वे आश्चर्यचकित होते हैं कि राक्षसों के बीच यहाँ कौन से सज्जन का निवास हो सकता है -लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा।।मन महुँ तरक करै कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा।। फिर शुरू हुए विभीषण -हनुमान संवाद में आगे हनुमान द्वारा होता कही गयी उक्त अर्धाली भी मिल गयी जिसका अर्थ है जो प्रातः बन्दर (का) नाम ले लेता है उसे उस दिन भोजन नसीब नहीं होता . मैंने झट से ज्योत्स्ना को प्रसंग बता दिया -थैंक्स अंतर्जाल! ज्योत्स्ना ने कहा कि मैंने तो बहुत खोजा नहीं मिला तो मैंने संक्षिप्त उत्तर दिया कि यह बड़ा भाई होने का फर्क है? मगर अब बड़े भाई की मुसीबत होने वाले थी ...ज्योत्स्ना का दूसरा प्रश्न असहज करने वाला था ..
सवाल था तो क्या सुबह हनुमान चालीसा नहीं पढना चाहिए ? अब मुझे पूरा प्रसंग देखना पड़ गया ..आप भी देखिये न… तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीति न पद सरोज मन माहीं।।अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।।जौ रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा।।सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीती।।कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना।।प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।। दोनों रामभक्तों में जान पहचान कुशल क्षेम के बाद यह संवाद हुआ . विभीषण ने कहा कि मैं तो जन्म से ही अभागा हूँ ...मेरा तो यह राक्षस का अधम शरीर ही है और मन में भी प्रभु के पद कमल के प्रति प्रीति नहीं उपजती, आज आप जैसे संत ह्रदय से भेंट हुयी है तो यह तो हरि की कृपा ही है . हनुमान को यह भान हुआ कि विभीषण में अपने राक्षस रूप को को लेकर हीन भावना है . तो उन्होंने खुद अपना उदाहरण देकर उन्हें वाक् चातुर्य से संतुष्ट किया -अब मैं ही कौन सा कुलीन हूँ विभीषण ? और एक बन्दर के रूप में मैं भी तो सब तरह से,तन मन से हीन ही हूँ ..और लोक श्रुति तो यह भी है कि अगर कोई सुबह हमारा नाम(बन्दर का नाम) ले ले तो उसे दिन भर आहार नहीं मिलेगा!
यहाँ हनुमान की प्रत्युत्पन्न बुद्धि और वाक् चातुर्य स्पष्ट दीखती है ....विभीषण को हीन भावना से उबारने के लिए उन्होंने खुद अपने बन्दर रूप का उदाहरण दिया और प्रकारांतर से यह कह गए कि तन मन योनि से कोई फर्क नहीं पड़ता अगर प्रभु राम की कृपा हो जाय .प्रभु कृपा से अधम भी पुण्यात्मा बन जाय -मेरा ही देखिये जो कुछ भी मैं हूँ वह प्रभु कृपा से ही हूँ नहीं तो एक बन्दर की क्या औकात थी? "अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर" ...
प्रभु राम की कृपा जिस पर हो जाय ..अपावन कौए पर हो गयी तो वे महाज्ञानी पावन काकभुशुण्डी बन गए . और मधुर वचन भी बोलने लग गए ..."मधुर वचन बोलेउ तब कागा :-) ....तो सब कुछ प्रभु की कृपा पर ही निर्भर है . अब जिस पर प्रभु की कृपा हो तो उसका नाम तो हर वक्त लिया जा सकता है .सुबह शाम ..वह तो प्रातः स्मरणीय है और उस पर हनुमान का नाम जो राम के सबसे बड़े भक्त है . ज्योत्स्ना शायद यह पोस्ट तुम्हे संतुष्ट कर सके ...... अन्य मित्रगण भी अपना मंतव्य व्यक्त करेगें तो मुझे अच्छा लगेगा ..जय श्रीराम!
बोल सियावर रामचंद्र की जै।
जवाब देंहटाएंमानस अनुक्रमणिका में रामचरित मानस की कोई भी सामग्री खोजने की व्यवस्था है।
http://hindini.com/fursatiya/archives/442
आप पर प्रभु राम की कृपा है!
हटाएंलिंक शेयर करने के लिये शुक्ल जी का विशेष आभार।
हटाएंanup shukla ji
हटाएंthanks for the link :)
very useful
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंमहोदय जी वहा आहार नहीं अहारा कहा गया है पीछे आता है
हटाएंसुरसा बोलती है आज सुरहन मोहि दिन्ह आहारा
दोनों जगह आहारा उपयोग किया गया है जिसका अर्थ है आहारा ( मांस युक्त भोजन ) अर्थात जो प्रात: हनुमान जी का नाम स्मरण करता है उसे मांस युक्त भोजन नहीं मिलता ।
मैं तो रोज़ रात को पढता हूँ ..
जवाब देंहटाएंप्रेत सुंदरी नज़र न आये ,
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा
बड़े मनोरथ मन में आवें
कोई कोई जीवन फल पावै
संकट तै हनुमान छुडावै,
कोई ब्लागरी पीछे पद जावे
दूर रखें गुरु घंटालों को ,
जपत निरंतर हनुमत बीरा
ब्लॉग भूतनी निकट न आवै,
महावीर जब नाम सुनावै
तुम्हरो मंत्र हमऊ ने माना,
ब्लॉगर नाम न कोऊ जाना
अब कछु किरपा करउ हनुमाना,
मिश्र सरीखा नाम कमाना
- कट्टा कानपुरी असली वाले
(:(:(:
हटाएंpranam.
जय हो..... :) :) :)
हटाएं:)
हटाएंजय हो ...
हटाएंअसली वाले कट्टा कानपुरी पर हनुमत किरपा बरसती रहे!
हटाएंआनंद आ गया दोस्तों कि किरपाओं से :)
हटाएंअरे प्रभू ..
जवाब देंहटाएंकमेन्ट कहाँ गायब हो रहे हैं ..??
हर प्राणी को बनाने वाले ईश्वर हैं .हर प्राणी में ईश्वर का वास है फिर किसी को अच्छा किसी को अपसकुन मानना, अल्पवुद्धि का परिचायक है-हनुमान -विभीषण संवाद का आपका विश्लेषण सही है.
जवाब देंहटाएंlatest post सुख -दुःख
बंदरों के सम्बन्ध में कही गयी कहावत का उल्लेख करते हुए हनुमान जी राम के सामने अपनी विनाम्रताजनित लघुता को प्रदर्शित करते हैं इन शब्दों से ...कि इतना महत्वहीन होने पर भी श्रीराम ने उन्हें कृपा प्रदान की ...प्रसिद्द प्रसंग है , आप कैसे भूले !!
जवाब देंहटाएंराम कृपा से वंचित स्मृतिलोप का शिकार हो चला हूँ ! :-)
हटाएंमेरे लिए तो असमंजस की स्थिति नहीं है:) सुबह-सुबह सिर्फ शिव की वंदना कर पाता हूँ. हाँ कपीश को नमन ज़रूर करता हूँ.
जवाब देंहटाएंमहोदय जी वहा आहार नहीं अहारा कहा गया है पीछे आता है
हटाएंसुरसा बोलती है आज सुरहन मोहि दिन्ह आहारा
दोनों जगह आहारा उपयोग किया गया है जिसका अर्थ है आहारा ( मांस युक्त भोजन ) अर्थात जो प्रात: हनुमान जी का नाम स्मरण करता है उसे मांस युक्त भोजन नहीं मिलता ।
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंहम तो रोज याद करते हैं -
आहार ना मिले अच्छा है -
वजन कम होगा-
सादर-
महोदय जी वहा आहार नहीं अहारा कहा गया है पीछे आता है
हटाएंसुरसा बोलती है आज सुरहन मोहि दिन्ह आहारा
दोनों जगह आहारा उपयोग किया गया है जिसका अर्थ है आहारा ( मांस युक्त भोजन ) अर्थात जो प्रात: हनुमान जी का नाम स्मरण करता है उसे मांस युक्त भोजन नहीं मिलता ।
Mahoday ji masukt bhojan kise kahyety hai sursa ko hanuman ji dikhy ahar ya ahara thye plz Gyan de
हटाएंरोचक पोस्ट बन पड़ी है।
जवाब देंहटाएंसुबह-सबेरे कपि दिखे, बिल्ली काटे राह।
मंजिल तक पहुचे वही, जिसके मन में चाह।।
उनका नाम तो रोज़ ही लेते हैं सुबह सुबह ..... जय श्रीराम
जवाब देंहटाएंअब जिस पर प्रभु की कृपा हो तो उसका नाम तो हर वक्त लिया जा सकता है -- सहमत हैं।
जवाब देंहटाएंजय हो बजरंगबली की.
जवाब देंहटाएंरामराम.
jay shri ram
जवाब देंहटाएंजय बजरंग बलि की ... चौबिस घंटे लिया जाने वाला नाम है ये तो ... संकट तो कभी भी आ सकता है ... फिर संकट मोचन को काहे नहीं याद किया जा सकता किसी भी समय ...
जवाब देंहटाएंरोचक विश्लेषण .... हनुमान जी की विनम्रता बहुत कुछ सिखाती है ...
जवाब देंहटाएंसुबह अख़बार पढने से पहले हनुमान चालीसा ही पढना चाहिए।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक सुंदर प्रस्तुति ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : अभी भी आशा है,
विशलेष ठीक ही लग रहा है..वैसे भी घट घट में राम हैं..
जवाब देंहटाएंविशलेष ठीक ही लग रहा है-ठीक ही मतलब ? आपके पास कोई और तर्कसंगत व्याख्या तो साझा कीजिये न!
हटाएंजय बजरंग बली जय श्री राम।
जवाब देंहटाएंहनुमान इतने विनम्र हैं, इसीलिये ऐसा कह रहे हैं। हम तो जीभर के हनुमान चालीसा पढ़े हैं और ढंग से खाना खाये हैं।
जवाब देंहटाएंपरंपरा में हनुमान और विभीषण दोनों ही प्रातः स्मरणीय हैं:
जवाब देंहटाएंअश्वत्थामा बलिर्व्यासों हनूमांश्च विभीषण: कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:
बहुत अच्छी पोस्ट लगी। जिज्ञासु की शंका का समाधान तो आपने कर ही दिया था, हमें भी अच्छी पोस्ट पढ़ने को मिली।
जवाब देंहटाएंये प्रश्न तो सुना हुआ है :)
जवाब देंहटाएंवैसे एक पुस्तक छपती है (शायद गीता प्रेस से) "मानस-शंका-समाधान". शायद उसमें भी ये प्रश्न हो.
बढ़िया पोस्ट,इस बहाने कई लोगों के संदेह सूर हुए होंगे.
जवाब देंहटाएंवैसे मुझे तो रोज़ सुबह-सुबह हनुमान जी के दर्शन अवश्य होते हैं क्योंकि रसोई में ही विराजे हुए हैं लेकिन कभी ऐसा हुआ नहीं कि उनके दर्शन से दिन भर भूखा रहना पड़े.
कृपया @सूर को' दूर ' पढ़ें,
हटाएंदो -तीन ब्लॉग हैं जो मेरी टिप्पणी को फटाफट स्पेम बॉक्स में डाल देते हैं..समझ नहीं आता कि ये चक्कर क्या है?उनमें से एक आप का टिप्पणी बॉक्स भी है जो हर बार मेरी टिप्पणी स्पेम में पहुंचा देता है.
जवाब देंहटाएंगूगल बाबा सर्वज्ञाता हैं ,कुछ कारण तो होगा ही :p
हटाएंआपने सही कथा सुनाकर मर्म को सुलझा दिया प्रणाम सियाबर रामलला की जय
जवाब देंहटाएंअब सुबह सुबह अगर कोई बन्दर को बुलाएगा तो आहार तो बन्दर खायेगा और हनुमान चालीसा को बाद में लिखा गया हैं हनुमान की स्तुति में सो उस समय तक हनुमान "इश्वरिये " ताकत पा चुके थे . " अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता ! अस वर दीन्ह जानकी माता !! " अष्ट सिद्धि का वरदान माता सीता ने हनुमान जी को दिया था
जवाब देंहटाएंअब माँ सीता को याद करिये और नित हनुमान चालीसा पढिये . राम का अस्तित्व सिया राम से हैं
भाई साहब यह इसी वक्त का गायन और यादगार है -हनुमान की पवित्रता (ब्रहचर्य ),सर्वर हैं एक शक्तिशाली हनुमान ,शिव के .हाँ भाई साहब भगवान का एक नाम राम भी है .दशरथ सुत राम नहीं निर्गुनिया राम (ज्योतिर्लिन्गम शिव ),वही सत - नाम भी है यह इसी वक्त का गायन हैं यह इ स घोर कलियुग में ही विभीषण जैसी पुण्य आत्माएं भी होतीं हैं सतयुग और त्रेता तो है ही स्वर्ग ,वहां न कोई विकार हैं न माया -रावण यह सब इसी संगम युग का यादगार है ब्रह्मा मुख वंशावली हम ब्रह्मणों का (भौतक ब्राहमण नहीं )ब्रह्मा मुख वंशावली ,ब्रह्मा और शिव बाबा के गोद लिए बच्चों का .
जवाब देंहटाएंबेहद की सुन्दर काल-जै प्रस्तुति है भाई साहब आपकी यह पोस्ट .आनंद सरोवर में डुबकी लगवादी .
आज की बुलेटिन "काका" को पहली पुण्यतिथि पर नमन .... ब्लॉग बुलेटिन।। में आपकी पोस्ट (रचना) को भी शामिल किया गया। सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंarvind mishra जी आप तो डा० हे फ़िर ऎसी बातो पर विश्वास करते हे ?
जवाब देंहटाएंमन मे श्रद्धा हो तो कोई शंका नहीं व्यापती.
जवाब देंहटाएंहर हर महादेव....रामेश्वर नाम की व्याख्या ही अपने आप में संपूर्ण हैं....अपने में संपूर्ण रामभक्त हनुमान हैं।
जवाब देंहटाएंsubah subah jo man kare wo karna chahiye :)
जवाब देंहटाएंshagun...apshagun ye sab baatein mere liye to irritating si hai... bandar ne bhala kya bigada hai..
जवाब देंहटाएंपता नहीं ऐसी बातें समाज में कहाँ से प्रचलित हुई । नाम लेने ना लेने से क्या होता है । भाव कलुषित हो तो नाम लेकर भी क्या फायदा . मन में श्रधा हो तो फिर कल्याण ही कल्याण है ।
जवाब देंहटाएंजय श्री राम । अच्छा प्रसंग बताया है आपने ।
जवाब देंहटाएंयह बात पहले भी सुनी है....
जवाब देंहटाएंजब हनुमान जी, श्री राम जी के कष्ट दूर करते रहे तो भला हमें वो कष्ट क्यों कर देंगे ?
मेरे हिसाब से, उनका स्मरण किसी भी काल या परिवेश में किया जा सकता है.…
आपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर "ब्लॉग - चिठ्ठा" में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी निरंतर टिप्पणियों का।
जवाब देंहटाएंआप पर प्रभु की कृपा बनी रहे.
जवाब देंहटाएंप्रसंग एवं सन्दर्भ जानने पर ही मानस के सुन्दरकाण्ड में आई ये पंक्तिया स्पष्ट हो सकती हैं...
जवाब देंहटाएंआपने बहुत बढ़िया इन्टरप्रेट किया और समझाया है!
बचपन से शनिवार को सुन्दरकाण्ड का पाठ करते आ रहे हैं... अब प्रसंग, अर्थ एवं चौपाईयां तो कंठस्त हो चुकी हैं,देखें सुन्दरकाण्ड में वर्णित दिव्य भावों को कब पूर्णरूप से आत्मसात करता है मन!
आप ने विश्लेषण अच्छा किया जो प्रभु राम का अनन्य भक्त हो वह तो स्वतः प्रातः स्मरणीय होगा यह तो दास्य भक्ति के अनुरूप हनुमान जी ने कहा है इसी प्रकार से विभीषण ने भी अपने मुह से कहा है मै निशिचर अति अधम सुभाउ-- शुभ आचरण किन नहीं काऊ तो क्या इसे सत्य माना जा सकता है
जवाब देंहटाएंपहली ही बार ,मैंने इस पृष्ट पर नजर डाली है , और मन पुलकित हो गया , अंतर्जाल पर हिंदी की भी पठनीय सामग्री उपलब्ध है जानकार हर्ष हुआ . धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंजय हनुमान जी
जवाब देंहटाएंआप से सहमत। प्रभु के भक्त का नाम कभी भी लें
जवाब देंहटाएं।
http://www.fnur.bu.edu.eg/
जवाब देंहटाएंhttp://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/departements
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/medical-surgical
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http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/about-faculty/vision-mission
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/about-faculty/goals
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/about-faculty/faculty-administration
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/about-faculty/previous-deans
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/about-faculty/t-magies-faculty
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/about-faculty/faculty-deps
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/index.php/about-faculty/degrees-offered
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http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/images/news/maaeer%20eetemad01_Page_1.jpg
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/images/news/kheta%20maaeer.pdf
http://www.fnur.bu.edu.eg/fnur/images/news/khta%20edaria.pdf
सुन्दर प्रसंग , मज़ा आ गया ।
जवाब देंहटाएंGreat post, thanks for sharing.traditional stuff..Excellent work..
जवाब देंहटाएंPerformed sunderkand path online
Japar kripa Ram ki hoi
जवाब देंहटाएंTa par kripa Karen sab Koi
Jai Shri ram